तुर्की ने यूएन में नहीं उठाया कश्मीर का मुद्दा, क्यों छोड़ा पाकिस्तान का साथ?
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मोदी सरकार ने पाँच अगस्त 2109 को जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया था तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आई थीं। चीन और तुर्की ने भारत के इस फ़ैसले का खुलकर विरोध किया था। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 2019 से हर साल संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाते थे और भारत की आलोचना करते थे। भारत अर्दोआन के बयान पर आपत्ति जताता था और पाकिस्तान स्वागत करता था। लेकिन इस बार अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का नाम तक नहीं लिया।
आम तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वार्षिक संबोधन में कश्मीर का जिक्र जरूर करते थे। संयुक्त महासभा में पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन फिर एक बार कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे,लेकिन उन्होंने तो इस बार इसका नाम लेना तक जरूरी नहीं समझा। राष्ट्रपति एर्दोगन ने यूएन की महासभा को संबोधित तो किया पर कश्मीर पर एक लफ्ज नहीं बोले। तुर्की के इस रुख ने पाकिस्तान को हैरान कर दिया। तुर्की के इस रुख के बाद लोग कई तरह के कयास लगाने लगे हैं। एर्दोगन की इस चुप्पी को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
कयास लगाया जा रहा है कि तुर्की के कश्मीर पर एक शब्द न बोलने के पीछे ब्रिक्स है। ऐसा कहना है कि तुर्की ब्रिक्स देशों के साथ खुद को खड़ा देखना चाहता है, उसे इसमें शामिल होना है और यही वजह है कि उनके राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक बार भी अपनी स्पीच में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया।
न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “हम ब्रिक्स के साथ अपने संबंधों को विकसित करने की अपनी इच्छा को बनाए रखते हैं, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।”
ब्रिक्स गुट में ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ़्रीका हैं. भारत इस गुट का संस्थापक सदस्य देश है। इस गुट के विस्तार की बात हो रही है और कई देशों ने इसमें शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। तुर्की भी इसी लाइन में है। तुर्की का यूएन महासभा में कश्मीर के मुद्दे को न उठाना भारत को खुश करना भी है।
तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन यह भलीभांति जानते हैं कि अगर उन्हें ब्रिक्स का सदस्य बनना है तो भारत को खुश कर के रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री भारत की मंजूरी के बाद ही मिल सकती है। तुर्की को यह भी पता है कि अगर भारत ने मना कर दिया तो उसका ब्रिक्स का हिस्सा बनना मुश्किल हो जाएगा। तो इसका लब्बोलुआब यह है कि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री तभी मिलेगी जब वह भारत के करीब आए और उसे खुश करने की कोशिश करे।
तुर्की को पता है कि भारत का कश्मीर को लेकर रुख साफ है। वह किसी भी कीमत पर कश्मीर पर समझौता नहीं करेगा। यही नहीं भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों से स्पष्ट है कि पीओके जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, उसे भी लेने की प्लानिंग है।
Sep 27 2024, 13:46