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अतीत का कैदी बना हुआ है संयुक्त राष्ट्र”, एस जयशंकर ने की यूएन में सुधारों की वकालत
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की जोरदार वकालत की है। भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि, संयुक्त राष्ट्र अतीत का कैदी बना हुआ है। ग्लोबल दक्षिण के देशों को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी श्रेणी में इन देशों का उचित प्रतिनिधित्व विशेष रूप से आवश्यक है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने न्यूयॉर्क में जी-20 विदेश मंत्रियों की बैठक में कहा कि सुधारित यूएनएससी की स्थायी और निर्वाचित दोनों श्रेणियों में एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों का उचित प्रतिनिधित्व एक 'विशेष अनिवार्यता' है।विदेश मंत्री ने कहा कि ग्लोबल साउथ के देशों को 'असहयोगी' नहीं बनाया जा सकता। जयशंकर ने कहा कि आज विश्व एक स्मार्ट, परस्पर संबद्ध और बहुध्रुवीय क्षेत्र में विकसित हो गया है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से इसके (संयुक्त राष्ट्र के) सदस्यों की संख्या चार गुना बढ़ गई है। फिर भी संयुक्त राष्ट्र अतीत का बंधक बना हुआ है। उन्होंने कहा कि, इसका परिणाम ये हुआ है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने में संघर्ष करती दिख रही है। जिससे उसकी प्रभावशीलता और विश्वसनीयता कम होती जा रही है। विदेश मंत्री ने कहा, स्थायी श्रेणी में विस्तार और उचित प्रतिनिधित्व एक अहम जरूरत है। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका, ग्लोबल दक्षिण को लगातार नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उनकी वैध आवाज दी जानी चाहिए। जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वास्तविक परिवर्तन होना चाहिए और इस प्रक्रिया में तेजी की जरूरत है।
इजराइल के नेतन्याहू ने युद्ध विराम योजना को खारिज किया, हिजबुल्लाह ड्रोन यूनिट प्रमुख मारा गया

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गुरुवार को लेबनान में 21 दिन के युद्ध विराम के लिए अपने प्रमुख समर्थक संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में किए गए प्रयास को खारिज कर दिया और कसम खाई कि सेना अनिश्चित काल तक हिजबुल्लाह के ठिकानों पर बमबारी जारी रखेगी। वार्षिक संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने के लिए न्यूयॉर्क पहुंचे बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि जब तक इजराइल के सभी उद्देश्य पूरे नहीं हो जाते, तब तक हवाई हमले जारी रहेंगे।

बेंजामिन नेतन्याहू का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बेरूत के दक्षिणी उपनगरों पर इजराइली हमले में हिजबुल्लाह की ड्रोन यूनिट के प्रमुख मोहम्मद हुसैन सरूर की मौत हो गई। ईरान समर्थित हिजबुल्लाह ने एक बयान में पुष्टि की कि हमले में 1973 में जन्मे मोहम्मद हुसैन सरूर की मौत हो गई।

इज़राइल-हिजबुल्लाह संघर्ष पर 10 अपडेट:

1.बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इज़राइल की "नीति स्पष्ट है।" "हम पूरी ताकत से हिजबुल्लाह पर हमला करना जारी रख रहे हैं। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर लेते, जिनमें से सबसे प्रमुख उत्तर के निवासियों की सुरक्षित रूप से उनके घरों में वापसी है।"

2.उनकी टिप्पणियों से ठीक पहले, इज़राइली सेना ने कहा कि उसने बेरूत के उपनगरीय इलाके में हवाई हमले में हिजबुल्लाह के ड्रोन कमांडर मोहम्मद हुसैन सरूर को मार गिराया।

3.विदेश मंत्री इज़राइल कैट्ज़ ने पहले एक्स पर पोस्ट किया, "कोई संघर्ष विराम नहीं होगा", जबकि रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने कहा कि सशस्त्र बलों का उद्देश्य "हिजबुल्लाह को असंतुलित करना और उनके नुकसान को गहरा करना है।"

4.समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के बयानों से ऐसा प्रतीत होता है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और उनके फ्रांसीसी समकक्ष इमैनुएल मैक्रोन द्वारा तीन सप्ताह के संघर्ष विराम को सुरक्षित करने के प्रयासों को अवरुद्ध करते हैं।

5.लेबनान के विदेश मंत्री अब्दुल्ला बौ हबीब ने दावा किया है कि इजरायल की बमबारी से देश के अंदर पाँच लाख लोग विस्थापित हुए हैं। लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार देर रात कहा कि पिछले 24 घंटों में इजरायली हमलों में देश में 92 लोग मारे गए और 153 घायल हुए हैं।

6.पिछले साल अक्टूबर में इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच शत्रुता शुरू होने के बाद से 1,500 से अधिक लोग मारे गए हैं, गुरुवार की मौतों के साथ ही अकेले सोमवार से लेबनान पर इजरायली हमलों में मारे गए लोगों की संख्या 700 से अधिक हो गई है।

7.अमेरिका, यूरोपीय राज्यों और सऊदी अरब और कतर सहित अरब शक्तियों ने बुधवार देर रात लड़ाई को रोकने का आग्रह किया, जब इजरायल ने संकेत दिया कि वह लेबनान पर संभावित जमीनी आक्रमण की तैयारी कर रहा है। इससे क्षेत्रीय संघर्ष में वृद्धि होने का खतरा होगा जो अमेरिका और ईरान को घसीट सकता है।

8.लंदन में बोलते हुए अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा कि "एक और पूर्ण पैमाने पर युद्ध इजरायल और लेबनान दोनों के लिए विनाशकारी हो सकता है"। उन्होंने कहा कि "सैन्य समाधान नहीं बल्कि एक कूटनीतिक समाधान ही यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि सीमा के दोनों ओर विस्थापित नागरिक अंततः घर वापस जा सकें।"

9. मैक्रोन ने नागरिकों के हताहत होने की "बिल्कुल चौंकाने वाली" संख्या का हवाला देते हुए लेबनान को "नया गाजा बनने" के खिलाफ चेतावनी दी।

10. लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती, जिनकी सरकार में हिजबुल्लाह तत्व शामिल हैं, ने युद्धविराम की उम्मीद जताई थी, जिसके बाद इजरायल के रुख ने एक त्वरित समझौते की उम्मीदों को धराशायी कर दिया।

समंदर का सिकंदर बनना चाहता है चीन, नई नवेली "परमाणु पनडुब्बी" समुद्र में डूबी

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चीन समुद्री क्षेत्रों में भी लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है। हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक वो अपनी शक्तियां बढ़ाने में जुटा हुआ है। हालांकि, इस बीच चीन को बड़ा झटका लगा है। चीन ने जो नई परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बी बनाई थी, वह इस साल की शुरुआत में डूब गई। हालांकि, चीनी अधिकारियों ने इस दुर्घटना को छिपाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन इसका खुलासा हो ही गया। दो अमेरिकी रक्षा अधिकारियों के अनुसार, चीन की लेटेस्ट परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बी डूब गई और चीनी नौसेना ने नुकसान को छिपाने की कोशिश की, इस कारण दुर्घटना का खुलासा कई महीने बाद हुआ है।

अमेरिकी अधिकारियों ने बताया है कि चीनी परमाणु पनडुब्बी मई के अंत या जून की शुरुआत में वुहान के पास एक शिपयार्ड में डूब गई थी।एक वरिष्ठ अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने कहा कि चीन की नवीनतम परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बी इस साल की शुरुआत में समुद्र में डूब गई थी। अधिकारी ने कहा कि हमलावर पनडुब्बी वुहान शहर के पास एक शिपयार्ड में निर्माणाधीन झोउ-श्रेणी के जहाजों की नई लाइन की पहली पनडुब्बी थी। यह उसके लिए शर्मिंदगी की बात है, क्योंकि वह अपनी सैन्य क्षमताओं का विस्तार करना चाहता है। वह अपनी सेना को सबसे ताकतवर बनाना चाहता है। मगर जो अपनी एक पनडुब्बी नहीं बचा सका, वह क्या खाक किसी से लड़ पाएगा?

यह घटना ऐसे समय में हुई है जब चीन अपनी नौसेना का विस्तार करने पर जोर दे रहा है।हाल ही में चीन ने अपना अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) का प्रशांत महासागर में परीक्षण किया। यह टेस्ट चीन ने 44 साल बाद किया था।

समुद्र में अमेरिका दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश है, लेकिन चीन इस अंतर को कम करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।चीन के पास पहले से ही 370 से अधिक जहाजों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है। इसके साथ ही उसने परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बियों की एक नई पीढ़ी का उत्पादन शुरू कर दिया है। चीन परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के उत्पादन में विविधता लाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। चीनी परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण हुलुदाओ के शिपयार्ड में सबसे अधिक हुआ है, लेकिन अब वुहान के पास वुचांग शिपयार्ड में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है।

चीन की सैन्य शक्ति पर पिछले साल जारी पेंटागन की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के अंत तक बीजिंग के पास 48 डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियां और छह परमाणु पनडुब्बियां थीं। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि नई हमलावर पनडुब्बियां, सतही युद्धपोत और नौसैनिक विमान विकसित करने का चीन का उद्देश्य संघर्ष के दौरान ताइवान की सहायता के लिए अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों का मुकाबला करना और "समुद्री श्रेष्ठता" हासिल करना है।

बांग्लादेश में पूरी प्लानिंग से किया गया तख्तापलट, मोहम्मद यूनुस ने मास्टरमाइंड का नाम बताया

#muhammadyunusrevealsnamebehindsheikhhasinaousterin_bangladesh

5 अगस्त 2024... वो तारीख, जब बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ था। हालांकि, शेख हसीना का तख्तापलट अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसकरे पीछे पूरी प्लानिंग के तरह काम किया गया। शेख हसीना ने भी देश छोड़ने बाद ये आरोप लगाया था। अब खुद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने ये बात स्वीकार की है। यही नहीं मोहम्मद यूनुस आंदोलन के पीछे के असली मास्टरमाइंड के बारे में बताया। इस शख्स को मोहम्मद यूनुस ने अपना विशेष सहायक बना रखा है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने गए मोहम्मद यूनुस ने न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में तख्तापलट की साजिश का पर्दाफाश किया। मोहम्मद यूनुस ने 'क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव' कार्यक्रम में शिरकत की। यहां उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन सावधानीपूर्वक किए गए थे और ये संयोग नहीं था। उन्होंने छात्र नेता महफूज आलम का भी नाम लिया। स मौके पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी मौजूद थे।

बिल क्लिंटन की मौजूदगी मास्टरमाइंड का खुलासा

बिल क्लिंटन की मौजूदगी में यूनुस ने मंच पर महफूज आलम को बुलाकर कहा, 'पूरी क्रांति के पीछे यही (महफूज) थे।मोहम्मद यूनुस ने महफूज आलम के नेतृत्व की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, ये इससे इनकार करते हैं, लेकिन क्रांति के पीछे यही थे। ये अचानक हुई चीज नहीं थी। आंदोलन को बहुत अच्छे से डिजाइन किया गया था। लोगों को ये भी नहीं मालूम था कि नेता कौन हैं। ऐसे में आप किसी एक को पकड़कर ये नहीं कह सकते कि आंदोलन खत्म हो गया।'

मोहम्मद यूनुस ने महफूज आलम की जमकर की तारीफ

मोहम्मद यूनुस ने अपने विशेष सहायक महफूज आलम का परिचय कराते हुए कहा, 'वे भी किसी अन्य युवा की तरह ही दिखते हैं, जिन्हें आप पहचान नहीं पाएंगे। लेकिन जब आप उन्हें काम करते हुए देखेंगे, जब आप उन्हें बोलते हुए सुनेंगे, तो आप हिल जाएंगे। उन्होंने अपने भाषणों, अपने समर्पण और अपनी प्रतिबद्धता से पूरे देश को हिला दिया।'

हसीना ने अमेरिका पर लगाए थे तख्तापलट के आरोप

इससे पहले अगस्त में शेख हसीना ने अमेरिका पर तख्तापलट के आरोप लगाए थे।उन्होंने कहा था, वे छात्रों के शवों पर चढ़कर सत्ता में आना चाहते थे, लेकिन मैंने इसकी अनुमति नहीं दी। मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मैं सत्ता में बनी रह सकती थी अगर मैंने सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता अमेरिका के सामने समर्पित कर दी होती और उसे बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति दे दी होती।

अवामी लीग के कुछ नेताओं ने भी सत्ता परिवर्तन के लिए मई में ढाका का दौरा करने वाले एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक को जिम्मेदार ठहराया था।आरोप है कि अमेरिकी राजनयिक चीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए हसीना पर दबाव डाल रहे थे।

सिद्धारमैया सरकार का बड़ा फैसला, कर्नाटक में अब सीबीआई जांच के लिए लेनी होगी राज्य सरकार से सहमति

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पर लगे भूमि घोटाले के आरोपों के बीच राज्य मंत्रिमंडल ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से राज्यों के मामलों की जांच की अनुमति वापस ले ली है।मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के बाद कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच के पाटिल ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत कर्नाटक राज्य में आपराधिक मामलों की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति देने वाली अधिसूचना वापस ले ली गई है।अब केंद्रीय जांच एजेंसी बिना राज्य सरकार की अनुमति के कर्नाटक में प्रवेश नहीं कर सकेगी।

राज्य के कानून मंत्री एचके पाटिल ने सीबीआई पर पक्षपाती कार्रवाईयों का आरोप लगाते हुए कहा, "हम राज्य में सीबीआई जांच के लिए खुली सहमति वापस ले रहे हैं। हम एजेंसी के दुरुपयोग के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हैं। वे पक्षपातपूर्ण हैं...इसीलिए यह निर्णय ले रहे हैं।" उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि सीबीआई या केंद्र सरकार अपने साधनों का उपयोग करते समय उनका विवेकपूर्ण उपयोग नहीं कर रही है। इसलिए मामले-दर-मामले हम सत्यापन करेंगे और सीबीआई जांच के लिए सहमति देंगे। सामान्य सहमति वापस ले ली गई है।

सीएम सिद्धारमैया पर आरोपों के कारण फैसला लेने से इंकार

पाटिल ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला इसलिए नहीं लिया गया है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर भूमि घोटाले के आरोप लगे हैं। पाटिल ने कहा, "हमने जितने भी मामले सीबीआई को भेजे, उनमें उन्होंने कोई आरोपपत्र दाखिल नहीं किए, जिससे कई मामले लंबित रह गए हैं। उन्होंने हमारे द्वारा भेजे गए मामलों की जांच करने से भी इनकार कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं।"उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य सीबीआई को गलत रास्ता अपनाने से रोकना है।

बंगाल-पंजाब समेत विपक्ष शासित कई राज्यों में है रोक

राज्य की कांग्रेस सरकार के इस फैसले के बाद कर्नाटक भी अब उन विपक्षी शासित राज्यों की सूची में शामिल हो गया, जिन्होंने अपने-अपने राज्यों में सीबीआई से खुली सहमति वापस ली है। इससे पहले पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, केरल में कम्युनिस्ट पार्टी और तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने ऐसा किया है। पंजाब में में नवंबर 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी ऐसा फैसला लिया था।

विपक्ष लगाता रहा है एजेंसियों के दुरूपयोग का आरोप

बता दें, विपक्षी राज्य और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र में सीबीआई को लेकर विवाद है। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल केंद्रीय जांच एजेंसियों पर गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग सभी पर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए हैं। उनका आरोप है कि केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा नीत गठबंधन सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। उनका दावा है कि इन एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी दलों और उनके नेताओं को फंसाने या परेशान करने के लिए किया जा रहा है।

कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह को भोजनालयों के पहचान पत्र नियम पर आलोचना के बीच फटकार लगाई

हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह को कथित तौर पर दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान द्वारा एक विवादास्पद निर्णय के लिए फटकार लगाई गई, जिसमें राज्य भर में भोजनालयों को मालिकों के पहचान पत्र प्रमुखता से प्रदर्शित करने की आवश्यकता थी।

लोक निर्माण और शहरी विकास विभाग के मंत्री सिंह को परामर्श के लिए दिल्ली बुलाया गया और इस मामले पर विवादास्पद टिप्पणी करने से बचने के लिए कहा गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कथित तौर पर इस मामले को संभालने के सिंह के तरीके पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है, जो अब राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

सिंह के अनुसार, नीति में अनिवार्य किया गया है कि दुकानदार और रेहड़ी-पटरी वाले अपने प्रतिष्ठानों पर अपने पहचान पत्र प्रदर्शित करें, जो पारदर्शिता में सुधार और सुरक्षा बढ़ाने के लिए है। मंत्री ने इस कदम के औचित्य के रूप में राज्य में प्रवासियों की बढ़ती संख्या के बारे में जनता की चिंताओं का हवाला दिया।

सिंह ने संवाददाताओं से कहा, "हमने स्ट्रीट वेंडरों के लिए स्थानीय स्ट्रीट वेंडर समिति द्वारा जारी किए गए अपने पहचान पत्र दिखाना अनिवार्य करने का फैसला किया है।" उन्होंने कहा कि यह उपाय हिमाचल प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती संख्या के बारे में स्थानीय लोगों के बीच आशंकाओं को दूर करने के लिए बनाया गया है, खासकर शिमला जैसे लोकप्रिय पर्यटन क्षेत्रों में।

कांग्रेस में असंतोष उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लागू किए गए कार्डों के समान ही कार्ड जारी किए जाएंगे, जिसने कथित तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने के लिए विवाद पैदा किया था। कांग्रेस के भीतर कई लोग चिंतित हैं कि यह नीति उत्तर प्रदेश में लागू किए गए उपायों की याद दिलाती है, जिसका इस साल की शुरुआत में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने तीखा विरोध किया था, जैसा कि एएनआई ने बताया।

कांग्रेस नेतृत्व में जुलाई में यूपी सरकार के निर्देश पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की थी, नेताओं ने इसे धर्मनिरपेक्षता और न्याय की जीत के रूप में सराहा था। अब, एक ऐसे राज्य में इसी तरह के मुद्दे का सामना करते हुए, जहां वह सत्ता में है, कांग्रेस खुद को मुश्किल स्थिति में पाती है। एएनआई के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व ने सिंह से इस निर्णय के पीछे के तर्क पर स्पष्टीकरण देने और यह सुनिश्चित करने को कहा है कि भविष्य में बयान और नीतियां इस तरह से तैयार की जाएं जिससे भ्रम या विवाद उत्पन्न न हो।

‘राहुल बाबा की तीन पीढ़ियों में इतना दम नहीं की 370 वापस ले आएं’, स्टेटहुड के वादे पर अमित शाह का वार*
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गृह मंत्री अमित शाह आज जम्मू-कश्मीर में चुनावी रैली की। उन्होंने चेनानी और उधमपुर में लोगों को संबोधित किया।शाह ने गुरुवार को उधमपुर के चिनैनी विधानसभा के केवी मैदान में आयोजित विजय संकल्प महारैली में भाजपा प्रत्याशी बलवंत सिंह मनकोटिया के लिए और उधमपुर के मोदी मैदान में उधमपुर पूर्व से भाजपा प्रत्याशी आरएस पठानिया व ऊधमपुर पश्चिम से भाजपा उम्मीदवार पवन गुप्ता के लिए जनसमर्थन जुटाया। इस दौरान शाह ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर जमकर हमला बोला। धारा 370 पर विपक्ष पर हमलावर शाह ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में ऐसा चुनाव हो रहा है, जिसमें न धारा 370 है और न ही अलग झंडा। उन्होंने कहा हमारे अध्यक्ष पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे, और मोदी जी ने 5 अगस्त 2019 को इसे खत्म कर दिया। अमित शाह ने आगे कहा कि मोदी जी की सरकार में न पत्थरबाजी हो रही है और न ही आतंकवाद है। राहुल बाबा कल बोले हम स्टेटहुड देंगे। देश की संसद में कहा है कि चुनाव के बाद हम जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देंगे। जम्मू कश्मीर को स्टेटहुड जरूर मिलेगा, लेकिन वो नरेन्द्र मोदी देंगे। उमर अब्दुल्ला और राहुल बाबा कहते हैं कि हम कश्मीर में लोकतंत्र लाएंगे, 70 साल तक जम्मू कश्मीर को इन परिवारों ने बांट के रखा। पहले यहां चुनाव होता था क्या ? ये काम हमारे नेता मोदी जी ने किया। अमित शाह ने कांग्रेस, एनसी, और पीडीपी पर आरोप लगाते हुए कहा इन दलों ने जम्मू-कश्मीर को आतंक में झोंकने का काम किया। 40 वर्षों तक यहां आतंकवाद फैला, जिसमें 40 हजार लोग मारे गए। 70 वर्षों तक कश्मीर के लोकतंत्र को अब्दुल्ला, गांधी और मुफ्ती तीन परिवार ने बांध कर रखा।उस समय फारूक अब्दुल्ला कहां थे? वह गर्मियों में लंदन में छुट्टियां मना रहे थे और महंगी मोटरसाइकिल चला रहे थे। कोई पार्टी नहीं, केवल बीजेपी ने जम्मू और कश्मीर से आतंकवाद को खत्म किया है। अमित शाह ने आगे कहा कि अफल गुरु को फांसी देनी थी या नहीं? जो आतंक फैलाएगा उसका जवाब फांसी से ही दिया जाएगा. शिंदे साहब ने कुछ दिन पहले कहा कि मैं मंत्री तो था पर लाल चौक आने से डरता था, पर आज शिंदे साहब बुलेट प्रूफ गाड़ी की भी जरूरत नहीं है, आप परिवार के साथ आइए।
राहुल गांधी की नागरिकता पर फिर छिड़ी बहस, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारत सरकार से मांगा जवाब

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राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुलगांधी की नागरिकता के विवाद पर केंद्र सरकार से ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत की गई शिकायत पर केंद्र सरकार से कार्रवाई का ब्योरा मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेच में कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की ब्रिटिश नागरिकता को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। ये याचिका कर्नाटक के बीजेपी कार्यकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर सीबीआई जांच कराई जाए। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने एएसजी सूर्यभान पांडेय को निर्देश देते हुए कहा कि वो इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय से जानकारी हासिल करें।

जून में रायबरेली लोकसभा से इलेक्शन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में 3 महीने पहले ये जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया है कि राहुल गांधी भारत के नहीं बल्कि ब्रिटेन के नागरिक हैं। इसके आधार पर राहुल गांधी का चुनाव पर्चा रद्द करने की मांग की गई थी।

जुलाई में इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस पर कोर्ट ने कहा था कि याची पहले तो सिटीजनशिप एक्ट कतहत सक्षम प्राधिकारी के पास शिकायत कर सकता है। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि उसके पास पर्याप्त सबूत हैं कि राहुल गांधी ब्रिटेन नागरिक हैं। याची ने दलील दी कि उसके पास तमाम दस्तावेज और ब्रिटिश सरकार के कुछ ई-मेल हैं जिनसे ये साबित होता है कि राहुल गांधी एक ब्रिटिश नागरिक हैं। ऐसे में वो भारत में चुनाव लड़ने के अयोग्य है। वो लोकसभा के सदस्य पद पर नहीं रह सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने गांधी की ब्रिटिश नागरिकता के आरोपों की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता को भारतीय न्याय संहिता व पासपोर्ट एक्ट के तहत अपराध बताया और केस दर्ज करने की मांग की। याची ने कहा कि वो इस संबंध में सक्षम अधिकारी से दो-दो बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल है।

कंगना रनौत की ‘इमरजेंसी’ कट के साथ रिलीज हो सकती है: सेंसर बोर्ड ने कोर्ट से कहा


केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा है कि अगर निर्माता कुछ अनुशंसित कट करते हैं तो वह भाजपा सांसद कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ को प्रमाण पत्र जारी कर देगा। यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल पर आधारित है।कंगना रनौत फिल्म में इंदिरा गांधी का किरदार निभा रही हैं। यह फिल्म 6 सितंबर को रिलीज होनी थी। हालांकि, प्रमाण पत्र को लेकर निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच विवाद के कारण रिलीज को रोक दिया गया था।

इंदिरा गांधी की मुख्य भूमिका निभाने के अलावा फिल्म का निर्देशन और सह-निर्माण करने वाली कंगना रनौत ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) पर रिलीज में देरी करने के लिए प्रमाणन में देरी करने का आरोप लगाया था। शिरोमणि अकाली दल सहित कुछ सिख संगठनों ने फिल्म पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इसमें समुदाय को गलत तरीके से पेश किया गया है और ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है।

पिछले सप्ताह न्यायालय ने 'आपातकाल' के लिए प्रमाण-पत्र जारी करने पर निर्णय न लेने के लिए सीबीएफसी की आलोचना की थी। न्यायालय ने सीबीएफसी को 25 सितंबर तक अपना निर्णय लेने का निर्देश दिया था। फिल्म के सह-निर्माता जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज ने न्यायालय से प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए सीबीएफसी को निर्देश देने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। गुरुवार को पीठ ने सीबीएफसी से पूछा कि क्या उसके पास फिल्म के लिए "अच्छी खबर" है।

सीबीएफसी के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने न्यायालय को बताया कि बोर्ड की पुनरीक्षण समिति ने अपना निर्णय ले लिया है। उन्होंने कहा, "समिति ने प्रमाण-पत्र जारी करने और फिल्म को रिलीज करने से पहले कुछ कट लगाने का सुझाव दिया है।" जी एंटरटेनमेंट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शरण जगतियानी ने कट लगाने या न लगाने के बारे में निर्णय लेने के लिए समय मांगा। इसके बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को तय की। पिछले सप्ताह जी एंटरटेनमेंट ने आरोप लगाया था कि राजनीतिक कारणों और हरियाणा में आगामी चुनावों के कारण प्रमाणपत्र रोक दिया गया है। पीठ ने तब आश्चर्य जताया था कि सत्तारूढ़ पार्टी रनौत के खिलाफ कार्रवाई क्यों करेगी, जो भाजपा सांसद हैं।

कट्टरपंथियों के दबाव में है बांग्लादेश सरकार? अब हिजाब में नजर आएंगी महिला सैनिक

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बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद जिस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं उससे ऐसा लगने लगा है कि अंतरिम सरकार ने कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए हैं।बांग्लादेश की सेना ने पहली बार महिला सैनिकों को हिजाब पहनने की अनुमति दी है। बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर महिला सैनिक हिजाब पहनना चाहती हैं तो वे पहन सकती हैं। पहली बार ऐसा हुआ है, जब बांग्लादेश की सेना ने महिला सैनिकों को हिजाब पहनने की अनुमति दी है। साल 2000 में बांग्लादेश की सेना में महिलाओं को शामिल किया गया था, तभी से सेना में हिजाब पहनना मना था।

एडजुटेंट जनरल कार्यालय से इसको लेकर आदेश जारी किया गया है। जिसके बाद अब महिला सैन्यकर्मियों को हिजाब पहनना वैकल्पिक कर दिया गया है। महिला सैनिक यदि अब हिजाब पहनना चाहती हैं तो पहन सकती हैं। एडजुटेंट जनरल के कार्यालय से जारी आदेश में कहा गया है, '3 सितंबर को पीएसओ सम्मेलन के दौरान सैद्धांतिक रूप से निर्णय लिया गया, जिसमें इच्छुक महिला कर्मियों को अपनी वर्दी के साथ हिजाब पहनने की मंजूरी दी गई।'

एडजुटेंट कार्यालय ने निर्देश दिया है कि अलग-अलग वर्दी (लड़ाकू वर्दी, कामकाजी वर्दी, साड़ी) के साथ हिजाब के सैंपल प्रस्तुत किए जाएं। सैंपल में फैब्रिक, रंग और माप को भी शामिल करने को कहा गया है। प्रस्तावित हिजाब को पहने हुए महिला सैन्यकर्मियों की रंगीन तस्वीरें गुरुवार 26 सितम्बर तक संबंधित विभाग में जमा करनी होगी।

बता दें कि साल 1997 की शुरुआत में बांग्लादेशी की आर्मी में पुरुषों की तरह ही महिलाओं को अफसर बनने की अनुमति दी गई थी। पहली बार साल 2000 में बांग्लादेश की महिलाएं सेना में अफसर बनीं और साल 2013 में सैनिक के रूप में महिलाएं शामिल हुईं। हालांकि, अभी भी बांग्लादेश में महिलाएं पैदल सेना और आर्मर कोर में अफसर नहीं बन सकती हैं।