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संस्कृतनिष्ठ भारतीय संस्कृति में ही है मूल्यपरक जीवन पद्धति का वर्णन : प्रो. पांडेय

गोरखपुर। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने कहा कि यूनान, रोम, मिस्र, यूरोप समेत दुनिया के किसी भी देश के धर्मग्रंथ या इतिहास में जीवन पद्धति का उल्लेख नहीं है। जबकि संस्कृत से प्रस्फुटित वेदों, पुराणों से बनी भारतीय संस्कृति में ही मूल्यपरक जीवन पद्धति का वर्णन है। भारतीय संस्कृति ही एकमात्र ऐसी संस्कृति है जिसमें परिवार, समाज, राष्ट्र और यहां तक कि दुश्मनों के प्रति मर्यादा बताई गई है। अमर्यादित आचरण तभी होता है जब हम अपनी संस्कृति से विमुख होते हैं। मर्यादित आचरण का भान कराने वाली हमारी संस्कृति संस्कृतमूलक है और हमें अपनी भारतीय संस्कृति और संस्कृत पर गर्व होना चाहिए।

प्रो. पांडेय बुधवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के चौथे दिन ‘संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत पढ़ने और समझने वाला कभी भी भारतीय संस्कृति नहीं छोड़ सकता है। क्योंकि, संस्कृत का गहरा प्रभाव पड़ता है और संस्कृत से बनी भारतीय संस्कृति मन-मस्तिष्क को शुद्ध करती है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति विकास और ज्ञान के समवेत स्वरूप को लेकर चलती है। हमारे यहां ज्ञान और विज्ञान साथ-साथ चले हैं। अध्यात्म, धर्म भारतीय संस्कृति के मूल अंग हैं। प्रो. पांडेय ने कहा कि संस्कृति को समझने के लिए हमें प्रकृति और विकृति को भी समझना पड़ेगा। उदाहरण के लिए भूख लगना प्रकृति है। भूख लगने पर जब समूह में लोगों का भोजन कोई एक ही छीन ले तो यह विकृति होगी जबकि सबके साथ मिल बांटकर खाना या फिर खुद भूखे रहकर अन्य जरूरतमंद लोगों को खिला देना संस्कृति कही जाएगी। और, यही भाव भारतीय संस्कृति का है। उन्होंने कहा कि आज जब पूरा विश्व अर्थवाद और बाजारवाद की चपेट में है, दूसरों का अधिग्रहण न करने का ज्ञान देने वाली भारतीय संस्कृति ही मार्गदर्शक नजर आती है। इसलिए आज पूरी दुनिया भारतीय संस्कृति का अनुपालन करने के लिए लालायित है।

*संस्कृति ने ही भारत को स्थायी गुलामी से बचाया*
प्रो. पांडेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों की ही देन रही है कि भारत को स्थायी रूप से कोई गुलाम नहीं बना पाया। भारतीयों को उनकी संस्कृति से दूर करने के लिए विदेशी आक्रमणकारियों ने सबसे पहले संस्कृत ज्ञान परंपरा को मिटाने की कोशिश की। मैकाले की शिक्षा पद्धति इसका उदाहरण है क्योंकि उसे पता था कि जब तक भारत के घरों में संस्कृत है तब तक भारत को हमेशा के लिए गुलाम नहीं बनाया जा सकता।

*भारतीय संस्कृति कराती है कर्तव्य बोध*
प्रो. पांडेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान है। यह कर्तव्य का बोध कराती है। जबकि पश्चिमी देशों की संस्कृतियां अधिकारों पर जोर देती हैं। अधिकार प्रधान इन संस्कृतियों ने लोगों को कर्तव्यों से विमुख करना शुरू कर दिया। भारत के संस्कृतनिष्ठ ग्रंथों से हमेशा कर्तव्यों की राह दिखाई है। कारण, कर्तव्य करेंगे तो अधिकारों से कोई भी वंचित नहीं कर सकता है।

*विश्व की अन्य संस्कृतियों में मनुष्य उपभोक्ता*
प्रो. पांडेय ने कहा कि विश्व की अन्य संस्कृतियों में मनुष्य को प्रकृति का उपभोक्ता माना गया है। भारत की संस्कृति मनुष्य को प्रकृति का एक अंश मात्र, प्रकृति की श्रेष्ठ कृति और उसका संरक्षक मानती है। संस्कृत से आगे बढ़ी भारतीय संस्कृति ने सदैव ज्ञान, मूल्यों की स्थापना पर आधारित स्थायी विकास और विश्व बंधुत्व की भावना पर जोर दिया है।

*दो हजार वर्ष पूर्व थे दो ही विज्ञान, ज्योतिष और आयुर्वेद*
प्रो. पांडेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति ने ज्ञान आधारित विज्ञान को अपनाया। उसने हमेशा यही माना है कि विज्ञान जरूरी है लेकिन हमें विनाश वाला विज्ञान नहीं चाहिए। पुरातन भारतीय संस्कृति इसीलिए पेड़ों को भी देवता मानती थी कि उसे पर्यावरण विज्ञान का संरक्षण करना था। उन्होंने कहा कि दो हजार वर्ष पूर्व दो ही विज्ञान थे, भारतीय ज्योतिष और आयुर्वेद। इसके अलावा दुनिया में और कोई विज्ञान नहीं था। 

*किसी घटना के मूल में छिपा होता है संस्कृति का मूल*
प्रो. पांडेय ने कहा कि संस्कृति को सभ्यता और परंपरा से जोड़ देते हैं या तीनों को समानार्थी शब्द मान लेते हैं। जबकि हमें यह जानना होगा कि संस्कृति एक दिन में नहीं बनती है। समाज की घटनाओं के परिणामों से संस्कृति बनती है। किसी घटना के मूल में संस्कृति का मूल छिपा होता है। उन्होंने कहा कि बार-बार होने वाली घटनाएं परंपरा वन जाती हैं और जब इसका समाज पर सकारात्मक परिणाम दिखने लगे तो यह संस्कृति बनती है। उन्होंने कहा कि 19वीं शताब्दी तक दुनिया रोम, यूनान और बेबीलोन की संस्कृति से आकर्षित थी। तब यह मान लिया गया था कि जीवन पद्धति का विकास इन्हीं संस्कृतियों से हुआ है। पर, 20वीं शताब्दी में जब विदेशी विद्वानों के भारतीय संस्कृति को लेकर शोधपरक लेख आते हैं तब दुनिया की आंख खुलती है।

*एकाकार रूप में हैं संस्कृत और भारतीय संस्कृति : डॉ. लक्ष्मी मिश्रा*
सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग की सह आचार्य एवं समन्वयक डॉ. लक्ष्मी मिश्रा ने कहा कि भारतीय सभ्यता और मनीषा में संस्कृत और संस्कृति को कभी पृथक रूप में नहीं देखा जा सकता। हमारे सभी वेदों, वेदांगों और पुराणों, दर्शनों समेत सभी वैदिक विद्याओं की रचना संस्कृत में ही है। ये वैदिक विद्याएं ही हमें संस्कृति देती हैं। इसलिए संस्कृत केवल भाषा नहीं है अपितु संस्कृति की जननी है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि संस्कृति का सीधा संबंध संस्कार से है। संस्कृति को जानना अर्थात संस्कृति से जुड़ना और यदि संस्कृति से जुड़ना है तो हमें संस्कृत को आत्मसात करना ही होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत सृजित भारतीय संस्कृति मुख्यतः आध्यात्मिकता पर केंद्रित है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने भी इसी आध्यात्मिक संस्कृति को जन-जन से जोड़ने का व्यापक अभियान चलाया। डॉ. मिश्रा ने कहा कि संस्कृत और भारतीय संस्कृत के पोषण में गोरक्षपीठ और इसके श्रीमहंतों का माननीय योगदान रहा है। यह संस्कृत और संस्कृति की ध्वजवाहक पीठ है। उन्होंने कहा कि भारत में जब संस्कृत को त्रिभाषा से पृथक किया जा रहा था तब इस पीठ की अगुवाई में इस कृत्य का मुखर विरोध किया गया। संस्कृत और संस्कृति के उन्नयन में इस पीठ के महंत दिग्विजयनाथ जी, महंत अवेद्यनाथ जी और वर्तमान में योगी आदित्यनाथ जी की भूमिका अनिर्वचनीय है।

*संस्कृत से प्रस्फुटित हुई है भारतीय संस्कृति : प्रो. कमलचंद्र*
सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के पूर्व आचार्य प्रो. कमलचचंद्र योगी ने कहा कि आज एक बार फिर पूरा विश्व भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की महत्ता को स्वीकार कर रहा है। यह आध्यात्मिक संस्कृति, संस्कृत से ही प्रस्फुटित हुई है। संस्कृत और भारतीय संस्कृति को कभी विलग नहीं किया जा सकता है। संस्कृत ने न सिर्फ अध्यात्म बल्कि जीवन के भौतिक पक्ष का भी मार्गदर्शन करने वाले ज्ञान का प्रादुर्भाव किया है। आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टिकोण से यदि भारतीय संस्कृति दुनिया में बहुमूल्य है तो इसका श्रेय भी संस्कृत को जाता है। उन्होंने कहा कि जब पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण का दौर शुरू हुआ तो गोरक्षपीठ ने संस्कृत और भारतीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का बीड़ा उठाया। सवाई, आगरा से आए ब्रह्मचारी दासलाल ने कहा कि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है। भारतीय संस्कृति, संस्कृत पर ही आश्रित है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति एक माला के रूप में है जिसमे वेद, वेदांग, पुराण आदि मनके हैं तो इन मनकों को माला में पिरोने वाली संस्कृत धागे की भूमिका में है।

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. शैलेंद्र प्रताप सिंह संचालन माधवेंद्र राज, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी ने किया।

इस अवसर पर दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महंत सुरेशदास, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी डॉ. विलासनाथ, कटक उड़ीसा से आए महंत शिवनाथ, अयोध्या से आए महंत राममिलनदास, काशी से पधारे महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा, नीमच मध्य प्रदेश से आए योगी लालनाथ, देवीपाटन शक्तिपीठ, तुलसीपुर के महंत मिथलेशनाथ, जबलपुर से आए महंत नरसिंह दास, कालीबाड़ी के महंत रविन्द्रदास, दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. ओमप्रकाश सिंह आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

भारतीय युवा मोर्चा महानगर इकाई द्वारा प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर किया रक्तदान

गोरखपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिवस के अवसर पर सेवा पखवाड़ा के अंतर्गत भारतीय जनता युवा मोर्चा महानगर इकाई द्वारा गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय के ब्लड बैंक में रक्तदान शिविर" का आयोजन किया गया। शुभारंभ जल शक्ति मंत्री, गोरखपुर प्रभारी मंत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने फीता काट कर किया। जल शक्ति मंत्री ने युवा मोर्चा के इस प्रयास को सराहा। कहां की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिवस पर रक्तदान शिविर लगाना युवा मोर्चा कार्यकतार्ओं के देश और समाज के प्रति सेवा और समर्पण को दशार्ता है।

इस अवसर पर सत्यार्थ मिश्रा, मनमोहन सिंह, रजत गुप्ता, हर्ष श्रीवास्तव, कर्मवीर सिंह, कृष्णा तिवारी, शिवम राय, विशाल सिंह, शिवम राय, अभिषेक श्रीवास्तव, शिवम सिन्हा, हर्ष गुप्ता, मनीष सिंह, सुमित चौहान, साहिल श्रीवास्तव, अभिनव एबट, अनुराग त्रिपाठी, सुंदरम दुबे, अरुण सिंह, सत्या सिंह, आदर्श सिंह, सहित लोगों ने रक्तदान किया।

इस अवसर पर मुख्य रूप से महानगर अध्यक्ष राजेश गुप्ता, विधायक विपिन सिंह, क्षेत्रीय उपाध्यक्ष विशवजिताशू सिंह आशू, विधान परिषद सदस्य सलिल विश्नोई, विधायक महेन्द्र पाल सिंह, मीडिया प्रभारी राहुल साहनी सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

मृत गोवंश नदी में फेंकने वाले 5 सफाईकर्मी निलंबित

खजनी गोरखपुर। कस्बा संग्रामपुर उनवल नगर पंचायत के वार्ड संख्या-7 भकटोलिया मौजे के निवासी अब्दुल खालिद के मृत गोवंश को जरलहीं आमी नदी पुल से नदी के पानी में फेंकने वाले नगर पंचायत में कार्यरत 4 सफाई कर्मचारियों और एक वाहन चालक को कार्यमुक्त कर दिया गया है। बीते 12 सितंबर को 4 सफाई कर्मचारियों प्रभुनाथ, सर्वेश, पुरूषोत्तम, चंद्रशेखर और चालक संतोष को कार्यदाई संस्था व्ही.सी.कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर के द्वारा कार्यमुक्त कर दिया गया है।

बता दें कि मृत गोवंश को पुल से नदी में फेंकने की घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। अमानवीय घटना को संज्ञान में लेते हुए नगर पंचायत के अधिशासी अधिकारी संजय कुमार सरोज ने कार्यदाई संस्था को कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया था। साथ ही नगर पंचायत कार्यालय के लिपिक व टेक्स कलेक्टर ने थानाध्यक्ष खजनी को प्रार्थनापत्र देकर पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन तथा मानवीय संवेदनहीनता के आरोप में केस दर्ज करने की अपील की है। थानाध्यक्ष सदानंद सिन्हा ने बताया कि घटना की जांच क्षेत्राधिकारी के द्वारा की जा रही है ?।

नंदापार में घर के समीप मृत मिला दिव्यांग युवक

खजनी गोरखपुर।थाना क्षेत्र के नंदापार गांव के निवासी रामप्रीत गुप्ता के पुत्र राम अचल गुप्ता का शव घर के समीप एक स्कूल के पीछे पड़ा मिला परिवारीजन उसे उठा कर अपने घर ले आए। इस बीच स्थानीय लोगों की सूचना पर पहुंची खजनी थाने के पुलिस ने फारेंसिक टीम को बुला कर प्रारंभिक जांच पड़ताल तथा पंचायतनामे के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिले पर भेज दिया।

मिली जानकारी के अनुसार मृतक दिव्यांग गूंगा, बहरा और अविवाहित तथा नशे का आदी था। उसे शराब पीने की बुरी लत थी। पुलिस घटना को स्वाभाविक मौत मान रही है।

थानाध्यक्ष सदानंद सिन्हा ने बताया कि मृतक के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला है, शव को पीएम के लिए भेज दिया गया है।

सेवा पखवाड़ा के रूप में मनाया गया पीएम का जन्मदिन

खजनी गोरखपुर। इलाके के प्रसिद्ध कोटही माता मंदिर परिसर और तहसील के समीप स्थित हनुमान मंदिर में सफाई करते हुए स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकतार्ओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 74 वां जन्मदिन मनाया। स्वच्छता एवं सेवा पखवाड़े के रूप में मनाए जा रहे पीएम के जन्मदिन के मौके पर सबेरे मंदिर परिसर में अभियान चला कर सफाई करने के बाद अस्पताल में भर्ती मरीजों को फल वितरित किए गए, साथ ही मिठाई खिलाकर और केक काट कर एक दूसरे को खिलाते हुए जन्मदिन बधाई देते हुए उनके लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना की गई। सांस्कृतिक कार्यक्रम भजन कीर्तन का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर भाजपा जिला उपाध्यक्ष हरिकेश त्रिपाठी खजनी मंडल अध्यक्ष धरणीधर राम त्रिपाठी आदि ने बताया कि उजार्वान नेता प्रधानमंत्री मोदी जी के अथक परिश्रम एवं देश के प्रति उनके समर्पण, राष्ट्र के विकास के प्रति उनके दृढ संकल्प से हमें और देश के सभी युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। मौके पर बृजकिशोर उर्फ गुलाब त्रिपाठी, खजनी मण्डल महामंत्री बृजेन्द्र चतुवेर्दी उर्फ बंटी, मंडल मंत्री आदर्श राम त्रिपाठी,केशव राय, अनिल पाठक नंदलाल जायसवाल, बृजेंद्र नाथ तिवारी उर्फ भोलू, कृष्ण मोहन भारतिया, राजेश सिंह, बी.एल. मौर्य, ग्रामप्रधान राहुल त्रिपाठी,गंगेश्वर त्रिपाठी, उत्तम मिश्रा जगरनाथ चौबे, पवन त्रिपाठी उर्फ टॉमी, अमित त्रिपाठी उर्फ रामू, आकाश शर्मा, गोंसाई बाबा, अमन सिंह, हरिलाल यादव, आकाश गौंड, सुधीर त्रिपाठी, शिवम त्रिपाठी, सहित दर्जनों लोग मौजूद रहे।

मृत गोवंश नदी में फेंकने वाले 5 सफाईकर्मी निलंबित

खजनी गोरखपुर। कस्बा संग्रामपुर उनवल नगर पंचायत के वार्ड संख्या-7 भकटोलिया मौजे के निवासी अब्दुल खालिद के मृत गोवंश को जरलहीं आमी नदी पुल से नदी के पानी में फेंकने वाले नगर पंचायत में कार्यरत 4 सफाई कर्मचारियों और एक वाहन चालक को कार्यमुक्त कर दिया गया है। बीते 12 सितंबर को 4 सफाई कर्मचारियों प्रभुनाथ, सर्वेश, पुरूषोत्तम, चंद्रशेखर और चालक संतोष को कार्यदाई संस्था व्ही.सी.कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर के द्वारा कार्यमुक्त कर दिया गया है।

बता दें कि मृत गोवंश को पुल से नदी में फेंकने की घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। अमानवीय घटना को संज्ञान में लेते हुए नगर पंचायत के अधिशासी अधिकारी संजय कुमार सरोज ने कार्यदाई संस्था को कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया था। साथ ही नगर पंचायत कार्यालय के लिपिक व टेक्स कलेक्टर ने थानाध्यक्ष खजनी को प्रार्थनापत्र देकर पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन तथा मानवीय संवेदनहीनता के आरोप में केस दर्ज करने की अपील की है। थानाध्यक्ष सदानंद सिन्हा ने बताया कि घटना की जांच क्षेत्राधिकारी के द्वारा की जा रही है ?।

नशे में धुत्त बाइक सवार ने मारी स्कूटी को टक्कर, 2 गंभीर

खजनी गोरखपुर।थाने की उनवल चौकी क्षेत्र के कस्बा संग्रामपुर उनवल नगर पंचायत के वार्ड संख्या 11 में स्कूटी से जा रहे पिता पुत्र को नशे की हालत में तेज गति से बाॅक्सर बाइक सवार युवक ने जोरदार टक्कर मार दी।

हादसे में बुरी तरह से जख्मी हुए पिता पुत्र को गंभीर हाल में इलाज के लिए जिला अस्पताल भेजा गया है।

घटना रात 9 बजे के बाद की है। बांसगांव थाने के धनईपुर गांव के निवासी रामसागर साहनी 45 वर्ष अपने बेटे अतुल साहनी 16 वर्ष के साथ अपने घर लौट रहा था। गौसिया मस्जिद के पास तेज रफ्तार में नशे की हालत में बाॅक्सर बाइक सवार युवक ने जोरदार टक्कर मार दी।

प्रत्यक्षदर्शीयों के अनुसार ठोकर इतनी तेज थी कि स्कूटी सवार पिता पुत्र हवा में उछल कर दूर जा गिरे, हादसे के बाद स्थानीय लोग बचाव में दौड़ पड़े बाइक सवार युवक भी बाइक से छिटक कर दूर जा गिरा। सूचना पर पहुंची पुलिस ने तत्काल एंबुलेंस से घायलों को इलाज के लिए जिले पर भेजा। साथ ही युवक की बाइक को कब्जे में लेकर उनवल पुलिस चौकी पर ले जाया गया।

हादसे के दौरान दोनों स्कूटी और बाइक सवार ने हेलमेट नहीं पहनी थी। बताया गया कि घायल युवक अपनी ससुराल उनवल में ही रहता था तथा टेकवार चौराहे पर समोसा पकौड़ा बेचकर आजीविका चलाता था। घटना के दौरान दुकान बंद कर अपने घर लौट रहा था।

सामाजिक समरसता का भारत पूरे विश्व की आवश्यकता : प्रो. विश्वकर्मा

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने कहा कि भारत सिर्फ एक देश नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व का मार्गदर्शन करने के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता भी है, इसलिए इसका समर्थ और सशक्त होना अति आवश्यक है। भारत के समर्थ और सशक्त होने के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि जहां सामाजिक समरसता अपने उच्च स्तर पर दिखे। सामाजिक समरसता का भारत पूरे विश्व की आवश्यकता है। सामाजिक समरसता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने ऋषियों और संतों की उस परंपरा से प्रेरित होना होगा जिन्होंने हमें समरस और समर्थ समाज की विरासत दी थी। यह सबके लिए गौरवपूर्ण अनुभूति है कि समरस समाज के लिए नाथपंथ, इसके आभिर्भावक शिवावतार महायोगी गोरखनाथ और इस परंपरा के संवहन से अहर्निश एवं अद्यतन जुड़ी गोरक्षपीठ की मार्गदर्शक भूमिका इस लक्ष्य की ओर उन्मुख है।

प्रो. विश्वकर्मा मंगलवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के तीसरे दिन 'सामाजिक समरसता : महायोगी गोरखनाथ और नाथपंथ के विशेष संदर्भ सन्दर्भ में’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। सभ्यता के प्रादुर्भाव काल से ही भारत पूरी दुनिया में अन्य देशों से बिल्कुल भिन्न रहा है। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं कि भारतवर्ष पूरे विश्व में श्रेष्ठतम है। इसका कारण यह है कि एकमात्र ऐसा देश है जिसके समाज का निर्माण ऋषियों, मुनियों एवं संतों की चिंतन परंपरा से हुआ है। संतों की चिंतन परंपरा ने ही मनुष्य को एक समाज के रूप में सबसे विचारवान प्राणी बनाया। मनुष्यता को केंद्र में रखकर हमारे ऋषियों और संतों ने समाज को जो विरासत दी, उसकी सबसे अमूल्य निधि रही समरसता। संतो द्वारा बनाए गए हमारे समाज की ही विशेषता थी कि हमें वसुधैव कुटुंबकम का दर्शन विरासत में प्राप्त हुआ।

प्रो. विश्वकर्मा ने कहा कि जब हमारी विरासत सामाजिक समरसता को लेकर इतनी समृद्धि थी तो यह विचारणीय प्रश्न है कि आज हमें इसे लेकर अलग से चिंतन क्यों करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की सामाजिकता और सामाजिक चिंतन प्रणाली का एक दौर ऐसा भी था जब विदेशी अध्येता भारत का दर्शन करने और यहां के विचार-दर्शन का अध्ययन करने आते थे। उन्होंने कहा कि वाह्य आक्रमण, धर्म परिवर्तन जैसे कारण ही सामाजिक समरसता कम होने के लिए जिम्मेदार नहीं है बल्कि सबसे बड़ा कारण हमारा संतों की परंपरा से विलग होना रहा है।

विकृति के बाजार में संस्कृति की शंखनाद हैं संत

प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने हरेक कालखंड में संतों की भूमिका महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संत विकृति के बाजार में संस्कृति की शंखनाद हैं। संत की भूमिका उस धोबी की है जो सत्संग के धोबीघाट पर मनुष्यों की कलुषता के दाग को धो डालता है। इस महत्वपूर्ण भूमिका के परिपेक्ष में देखें तो समाज में सबसे बड़ा योगदान हमें नाथपंथ की तरफ से देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि नाथपंथ के संतों ने सिर्फ सामाजिक आंदोलन का ही नेतृत्व नहीं किया है बल्कि स्वाधीनता के आंदोलन में भी समाज को सही दिशा दिखाई है। देश जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब शिवावतार योगी गोरखनाथ के अनुयायी नाथपंथी योगी सारंगी लेकर समाज को जगाने के लिए निकल पड़े थे।

अस्पृश्यता और जातिवाद के खिलाफ महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का योगदान अतुलनीय

प्रो. विश्वकर्मा ने कहा कि गोरख पीठ के पेठाधीश्वरों ने सामाजिक समरसता को मजबूत करने मेंअथक प्रयास किए हैं। इस पीठ के ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने जातिवाद और अस्पृश्यता से मुक्ति के लिए जो योगदान दिए हैं, वह अतुलनीय हैं। महंतद्वय के नेतृत्व में आगे बढ़ा राम मंदिर का आंदोलन वास्तव में सामाजिक समरसता को भी प्रतिबिंबित करता है। जिस प्रकार भगवान राम ने अपने जीवन में निषादराज, शबरी आदि के माध्यम से सामाजिक समरसता का आदर्श प्रस्तुत किया था उसी तरह राम मंदिर को लेकर चलाए गए अभियान में भी महंत अवेद्यनाथ जी ने दलितों, वंचितों को आगे लाकर सामाजिक समरसता को यथार्थ रूप में स्थापित किया। उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति सबके साथ रहने की अर्थात कौटुंबिक संस्कृति है। इस संस्कृति को आगे बढ़ाने में नाथपंथ की विशेष भूमिका सदैव परिलक्षित हुई है। वर्तमान में नाथपंथ का नेतृत्व करने वाली गोरक्षपीठ ने सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षा, चिकित्सा और सेवा के अनेक प्रकल्पों को भी आगे बढ़ाया है।

सामाजिक समरसता नाथपंथ का मूल : डॉ. पद्मजा सिंह

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग की सहायक आचार्य डॉ. पद्मजा सिंह ने कहा कि सामाजिक समरसता नाथपंथ का मूल है। समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए इसके कार्यों की विस्तृत श्रृंखला है। उन्होंने कहा कि भारत में सामाजिक पुनर्जागरण का शंखनाद महायोगी गोरखनाथ जी ने उस कालखंड में किया जब सामाजिक विखंडन तेजी से बढ़ रहा था। महायोगी गोरखनाथ जी ऐतिहासिक युग में भारतीय इतिहास के ऐसे पहले तपस्वी हैं जिन्होंने विशुद्ध योगी होते हुए भी सामाजिक चेतना का नेतृत्व किया। वास्तव में उन्होंने नाथपंथ का पुनर्गठन ही सामाजिक पुनर्जागरण और समरसता को बढ़ाने के लिए किया। उन्होंने सामाजिक समरसता की वह लौ प्रज्ज्वलित की जिसकी लपटें जाति-पांति, छुआछूत, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, पुरुष-स्त्री, विषमताओं और क्षेत्रीयतावाद जैसी प्रवृत्तियों को निरंतर जलाती रहीं हैं।

नाथपंथ के विचार-दर्शन ने एक ऐसी योगी परंपरा को जन्म दिया जिसने भारतीय संस्कृति की एकाकार सामाजिक चिंतन की प्रतिष्ठा को ही अपना उद्देश्य बना लिया और इसे नाथपंथ की अध्यक्षीय पीठ गोरक्षपीठ के प्रकल्पों में देखा जा सकता है। डॉ. पद्मजा सिंह ने कहा कि गोरक्षपीठ की यह विशेषता है कि इसके कपाट सभी के लिए खुले रहते हैं। इस पीठ के सभी महंत बिना भेदभाव समाज में सभी के यहां, सभी के साथ पानी पीते हैं, भोजन करते हैं और अपने भंडारे में सभी के साथ भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं। उन्होंने गोरक्षपीठ के मूर्धन्य पीठाधीश्वरद्वय ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालने के साथ ही इन दोनों महान विभूतियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अवदान तथा सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए किए गए अविस्मरणीय कार्यों को विस्तार से रेखांकित किया।

किसी के साथ भेदभाव नहीं करता नाथपंथ : सतुआ बाबा

सम्मेलन को संबोधित करते हुए काशी से आए महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा ने कहा कि नाथपंथ सबका और सबके लिए है। यह पंथ किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है। इसकी विशेषता को कोई भी गोरक्षपीठ आकर देख सकता है। गोरक्षपीठ न सदैव समाज को जोड़ने और समरसता बढ़ाने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने का काम किया है। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए जबलपुर से आए महंत नरिसंह दास ने कहा कि सामाजिक समरसता की जो अलख शिवावतार गुरु गोरखनाथ ने जगाई थी, वह नाथपंथ के संतों के लिए आज भी पथप्रदर्शक है। उन्होंने कहा विगत सौ सालों में सामाजिक समरसता बढ़ाने के लिए गोरक्षपीठ और इसके पीठाधीश्वरों, विशेषकर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने जो कार्य किए हैं, वे अनिर्वचनीय हैं। अपने गुरुजनों का अनुसरण कर वर्तमान पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी भी सामाजिक समरसता के आयाम को नई ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं।

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य प्रमथनाथ मिश्र, संचालन माधवेंद्र राज, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी ने किया। इस अवसर पर दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महंत सुरेशदास, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी विलासनाथ, कटक उड़ीसा से आए महंत शिवनाथ,सवाई आगरा से आए ब्रह्मचारी दासलाल, अयोध्या से आए महंत राममिलनदास, देवीपाटन शक्तिपीठ, तुलसीपुर के महंत मिथलेशनाथ, कालीबाड़ी के महंत रविन्द्रदास आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

ईद ए मिलाद पर गांवों कस्बों में निकाला गया भव्य जुलूस

खजनी गोरखपुर। कस्बे सहित आसपास के गांवों ?कस्बों तथा कस्बा संग्रामपुर उनवल नगर पंचायत में ईद-ए-मिलादुन्नबी के मौके पर जुलूस-ए- मुहम्मदी निकाला गया। जिसमें शामिल मुस्लिम समुदाय के लोगों ने डीजे की धुनों पर पुरजोश अंदाज में मदरसों से निकल कर गलियों मोहल्लों से गुजरते हुए, "सरकार की आमद मरहब्बा" "हुजूर की आमद मरहब्बा" "हिंदुस्तान जिंदाबाद" "इस्लाम जिंदाबाद" के नारे लगाए जिससे पूरा इलाका गूंज उठा। जलसे की शुरूआत तिलावत-ए-कुरान-ए-पाक से की गई।

बताया गया कि पैगंबर हजरत मुहम्मद के यौमे पैदाइश के मौके पर इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह त्योहार हर साल रबी अल-अव्वल के तीसरे महीने के बारहवें दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान सभी मस्जिदों और मदरसों को खूबसूरत तरीके से सजाया गया।

हाजी शहाबुद्दीन, मौलाना जहीरूद्दीन, कारी रियाजुद्दीन, ने बताया कि सरकार आज ही के दिन पैदा हुए थे, उन्होंने दुनियां को नेकी, ईमानदारी, और अ़म्न का पैगाम दिया है।

जुलूस सबेरे नमाज के बाद आयतें और नातिया कलाम गाते हुए कस्बे से डोहरियां,

भिटहाँ,तेतरियां, विश्वनाथपुर, छताईं, कटघर, बेलडांड़, मझगांवां, सतुआभार, साखडांड़, जाखां, बसडीला, केवटली, बंगला पांडेय, पिपरां बनवारी, रामपुर, सहिजनां, गहना, बघैला, महुरांव आदि गांवों में होकर मदरसे पर पहुंचा। जुलूस में

अत्ताउल्लाह खान, हबीउद्दीन खान, जमीर उल्लाह, गुड्डू अहमद, मुमताज, शमशाद

अब्दुल रहमान, अब्बास, डॉक्टर के.अली, यूसुफ, सुबराती, कमरूद्दीन, अरशद, अलीनाद खाँ, मुर्तजा,असगर आदि दर्जनों शामिल हुए।

अठारह शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति रहा भारत : प्रो. अमरेश दूबे

गोरखपुर, 16 सितंबर। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. अमरेश दूबे ने कहा कि भारत पहले विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति था और उसी स्थिति को पुनर्प्राप्त करना है। आर्थिक स्थिति में हम पहले पायदान पर थे और पुनः पहले स्थान पर ही आना है। सुखद स्थिति यह है कि आजादी के बाद दशकों तक गरीबी और भुखमरी की चपेट में रहने के बाद देश बीते दस सालों से उसी रोडमैप पर आगे बढ़ चला है जिससे वह पहली शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में प्रतिष्ठित था।

प्रख्यात अर्थवेत्ता प्रो. दूबे सोमवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के दूसरे दिन ‘विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की ओर बढ़ता भारत’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने दो हजार वर्षों की विश्व की अर्थव्यवस्था को लेकर हुए एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि पहली शताब्दी में आठ-नौ देशों के पास विश्व की 70 प्रतिशत संपदा पर अधिकार था। इसमें भारत का हिस्सा अकेले 35 प्रतिशत था जबकि चीन की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी। तबसे लेकर अठारहवीं शताब्दी के अंत तक यही स्थिति बनी रही। अर्थात हम पहली आर्थिक शक्ति थे इसलिए आज बात तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति पर करने की बजाय चर्चा इस पर होनी चाहिए कि हम अपनी पहले नम्बर की स्थिति को कैसे दोबारा प्राप्त करें।

प्रो. दूबे ने कहा कि औद्योगिक क्रांति के दौर में अंग्रेजी शासन में उत्पादन प्रक्रिया को तीव्रतम करने के लिए भारत की संपदा को बाहर भेजना शुरू किया। दूसरा आजादी मिलने के बाद भी भारत में सोवियत यूनियन की तर्ज पर वामपंथी आर्थिक नीति का अनुसरण होने लगा। कालांतर में इसका प्रभाव यह हुआ आजादी मिलने के बाद भी 1970 में विश्व स्तर पर संपदा के मामले में भारत की हिस्सेदारी महज 2.5 प्रतिशत रह गई। उन्होंने कहा कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इसकी गिनती दुनिया के सबसे गरीब देशों में थी जबकि एक अंग्रेज विद्वान ने अपने अध्ययन में कहा था कि अठारहवीं शताब्दी में अविभाजित भारत के मुर्शिदाबाद का एक सामान्य व्यक्ति रहन-सहन और खाने-पीने के मामले में लंदन के सामान्य व्यक्ति से अधिक संपन्न था।

प्रो. दूबे ने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो विश्वेश्वरैया जी के नेतृत्व में आर्थिक पुनर्निर्माण, गरीबी और भुखमरी से मुक्ति के लिए नेशनल डेवलपमेंट कमेटी का गठन किया गया लेकिन 1950 में गणराज्य बनने के बाद देश में इस कमेटी की अनुशंसाओं को दरकिनार कर सोवियत यूनियन वाली प्लानिंग को अपनाया जाना शुरू कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि गरीबी पर कुछ असर नहीं पड़ा। गरीबी हटाओ का नारा तो दिया गया लेकिन देश में आर्थिक संपदा बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया गया। जबकि यह तथ्यपूर्ण सत्य है कि बिना संपदा बढ़ाए गरीबी नहीं हटाई जा सकती।

प्रो. दूबे ने आजादी के बाद से अब तक की आर्थिकी का विश्लेषण करते हुए कहा कि 2013 तक अर्थव्यवस्था के मामले में उतार चढ़ाव के बीच पॉलिसी पैरालिसिस वाली स्थिति रही। पर, 2014 से पिछले दस सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आर्थिक संपदा बढ़ाने और गरीबी हटाने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समावेशी कदम उठाए हैं। जिस देश में 1974 में गरीबी 55 से 65 प्रतिशत तक रही हो, वहां के लोग अब गर्व कर सकते हैं कि भारत मे 2023 में गरीबी एक प्रतिशत से भी नीचे रह गई है। उन्होंने कहा कि देश की आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। बीते सात सालों से यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ ही विकास के जो समावेशी प्रयास किए हैं, वे अभूतपूर्व हैं। इससे यह तय हो गया है कि देश की अर्थव्यवस्था को पुराना गौरव दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उत्तर प्रदेश ही निभाने जा रहा है।

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने कहा कि अर्थव्यवस्था किसी भी देश की आर्थिक दिशा व दशा का निर्धारण करती है। पिछले कुछ वर्षों से भारत की अर्थव्यवस्था सुधरी है, जिसके कारण आज दुनिया में भारत की सुनी जा रही है। पहले वह देश शक्तिशाली होता था जिसके पास सेनाएं व युद्ध उपकरण अधिक होते थे, किंतु आज वह देश शक्तिशाली है जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है। इसी कारण से पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर भारत विश्व में मजबूती से खड़ा है और आगे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से अगले तीन वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर है। तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर भारत न केवल विश्व में मजबूती से प्रस्तुत होगा बल्कि प्रत्येक भारतीय की आय दर में भी वृद्धि होगी। इस दिशा में विचार करने पर हमें अपने बीच में एक चक्रवर्ती उदाहरण के रूप में हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिलते हैं, जो अपने कार्यकाल में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को चरमोत्कर्ष पर ले जा रहे है।

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने की।।इस अवसर पर सम्मेलन को गुरुधाम वाराणसी से पधारे श्रीमद् जगद्गुरु अनंतानन्द द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. रामकमल दास वेदांती, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी विलासनाथ, कटक उड़ीसा से पधारे महंत शिवनाथ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सम्मेलन में आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. रामजन्म सिंह, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी तथा संचालन माधवेंद्र राज ने किया। इस अवसर पर सुग्रीव किला अयोध्या से स्वामी विश्वेष प्रपन्नाचार्य, सवाई आगरा से ब्रह्मचारी दासला ,रावत मंदिर अयोध्या धाम से महंत राम मिलन दास, सतुआ बाबा आश्रम काशी से महंत संतोष दास, देवीपाटन शक्तिपीठ तुलसीपुर से महंत मिथिलेश नाथ, महंत रवींद्र दास, काशी से योगी रामनाथ आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।