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बेवफाई की सजा:बीमार पति से लिया 10 साल पुरानी बेवफाई का बदला डॉक्टर से बोलीं लाइफ सिस्टम हटाओ और मरने दो...



शादी दो आत्माओं का मिलन कहते है ना जोड़ी आसमान में बनती है और जमीन पे मिलती है। पर आजकल शादी करके चीट करना चलन बनता जा रहा ना लोगो के आंखों में शर्म रही ना समाज का डर किसी को धोखा देना और खास कर शादी के बाद धोखा इंसान को अंदर तक तोड़ देता हैं।इंसान धोखा खाने के बाद जो नहीं करना चाहता वो भी कर गुजरता हैं अभी हाल में चीन से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया जिसमें एक महिला ने अस्पताल में भर्ती अपन पति से ऐसा बदला लिया कि उसकी मौत ही हो गई.

पूर्वोत्तर चीन के लियाओनिंग प्रांत का 38 साल का एक व्यक्ति शादीशुदा होते हुए भी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रह रहा था. वहीं एक दिन उसे सेरिब्रल हैमरेज हुआ तो उसकी गर्लफ्रेंड उसे इमरजेंसी में अस्पताल ले आई. उसे आईसीयू में भर्ती किया गया तो डॉक्टरों ने सर्जरी के कंसेंट के लिए उसकी गर्लफ्रेंड को खोजना शुरू किया लेकिन वह गायब हो गई।

 

इसके बाद एक अन्य महिला अस्पताल पहुंची और उसने डॉक्टरों को बताया कि वह उस आदमी की पत्नी है. चेन नाम के एक डॉक्टर ने उसे बताया कि मरीज की हालत गंभीर है और वह कोमा में है और ऑपरेशन के बाद उसके बचने की संभावना बहुत कम है.

 

इसके अलावा, मौजूदा मेडिकल एक्विपमेंट उसे केवल टेंपररी सपोर्ट दे सकते थे, और सर्जरी की लागत बहुत अधिक थी. पत्नी ने कहा कि वह जानती है कि उसका पति एक दशक से अधिक समय से बेवफा रहा है और उसके मन में उसके लिए कोई भावना नहीं थी.उसने सर्जरी के कंसेंट लेटर पर साइन करने से मना कर दिया. साथ ही उसने डॉक्टरों से उसके पति की लाइफ सपोर्टिंग ट्यूब को हटाने के कह दिया. उसने डॉक्टरों से कोई भी कोशिश न करने और उसे मरता छोड़ देने के लिए कहा।

चीनी कानून के अनुसार, जब कोई मरीज निर्णय लेने में असमर्थ होता है तो डॉक्टरों को मरीज के करीबी रिश्तेदारों को सर्जरी के जोखिमों के बारे में बताकर उनसे लिखित सहमति लेनी होती है. 

यहां महिला के फैसले के चलते शख्स की मौत हो गई. पत्नी की इस हरकत से सोशल मीडिया पर चर्चा छिड़ गई. कई लोगों ने उसे हार्टलेस कहा. एक यूजर ने कहा- कितनी हार्टलेस है, चाहे कुछ भी हो, इलाज छोड़ना एक जीवन ले लेने जैसा है. एक अन्य ने कहा- एक बेवफा आदमी को अपने कर्मों का सही फल मिल गया.

हादसा:साउथ अमेरिका के देश ब्राजील के विनहेडो में 62 लोगों को ले जा रहा प्लेन क्रैश,सभी की मौत


साउथ अमेरिका के देश ब्राजील के विनहेडो में 62 लोगों को ले जा सकने की क्षमता वाला एक पैसेंजर प्लेन क्रैश हो गया है।स्थानीय मीडिया आउटलेट्स ने शुक्रवार को बताया कि ब्राजील के विनहेडो में 62 लोगों को ले जा रहा एक यात्री विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. ब्राजील की क्षेत्रीय एयरलाइन VOEPASS ने साओ पाउलो राज्य के विनहेडो क्षेत्र में उड़ान 2283-PS-VPB से जुड़ी दुर्घटना की पुष्टि की, कैस्कवेल से ग्वारूलहोस हवाई अड्डे के लिए रवाना हुए इस विमान में 58 यात्री और 4 चालक दल के सदस्य सवार थे.

अधिकारियों ने यह नहीं बताया कि साओ पाओलो महानगर से लगभग 80 किलोमीटर (50 मील) उत्तर-पश्चिम में विनहेडो शहर में जिस जगह विमान उतरा, वहां ज़मीन पर कोई मारा गया या नहीं. लेकिन घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि स्थानीय निवासियों में से कोई भी पीड़ित नहीं था. वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे प्लेन क्रैश कर रहा है. पहले प्लेन हवा में तैरा फिर मानो किसी कटी पतंग की तरह जमीन पर जा गिरा.

VOEPASS ने एक बयान में कहा, ‘कंपनी को यह बताते हुए दुख हो रहा है कि फ्लाइट 2283 में सवार सभी 62 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. इस समय, वोएपास पीड़ितों के परिवारों को अप्रतिबंधित सहायता प्रदान करने को प्राथमिकता दे रहा है और दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए अधिकारियों के साथ प्रभावी ढंग से सहयोग कर रहा है।

हिंदी साहित्य को व्यंग्य विधा से सुशोभित करने वाले हरिशंकर परसाई की आज पुण्यतिथि, आईए जानते है उनसे जुड़ी बाते


नयी दिल्ली : हरिशंकर परसाई कहते हैं कि लेखक को व्यवस्था विरोधी होना चाहिए, यह सही नहीं है. यानी कि जो मौजूदा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में जो खामियां हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास एक लेखक को करना चाहिए

हिंदी साहित्य जगत इस वर्ष को हरिशंकर परसाई जन्मशती वर्ष के रूप में मना रहा है. 22 अगस्त 1924 को उनका जन्म हुआ था. उल्लेखनीय है कि अगस्त के महीने में ही उन्होंने प्राण त्यागे थे. 10 अगस्त 1995 को उनका निधन हुआ था।हिंदी साहित्य को व्यंग्य विधा से सुशोभित करने वाले हरिशंकर परसाई की आज पुण्यतिथि है. वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया.

हरिशंकर परसाई का शुरूआती जीवन बहुत ही कष्टों में बीता.मैट्रिक नहीं हुए थे कि प्लेग के कारण उनकी मां की मृत्यु हो गई.होशंगाबाद जिले टिमरनी से हरिशंकर परसाई ने 1939 में मैट्रिक पास की. मैट्रिक करने के बाद उन्होंने छह महीने तक वन विभाग में नौकरी की.हरिशंकर परसाई बचपन से ही बहुत ही संवेदनशील, न्यायशील तथा विवेकशील थे. वे बचपन से ही बहुत पढ़ाकू थे.हरिशंकर परसाई के पिता उन्हें रेलवे में बाबू तथा रिश्तेदार सिपाही बनाना चाहते थे. लेकिन उनका सपना एक अच्छा अध्यापक बनने का था. उन्होंने रेलवे क्लर्क की परीक्षा पास की और उनका चयन भी हो गया, लेकिन परसाई जी ने वहां नौकरी नहीं की.

हरिशंकर परसाई की पहली रचना जबलपुर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र 'प्रहरी' में प्रकाशित हुई. उस समय वे वहां एक हाईस्कूल में टीचर थे।

पगडंडियों का जमाना, जैसे उनके दिन फिरे, सदाचार की ताबीज, शिकायत मुझे भी है, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, अपनी-अपनी बीमारी, वैष्णव की फिसलन, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, सुनो भाई साधो, तुलसीदास चंदन घिसे, हँसते हैं रोते हैं, तब की बात और थी, ऐसा भी सोचा जाता है, पाखण्ड का अध्यात्म, आवारा भीड़ के खतरे और प्रेमचंद के फटे जूते उनके चर्चित व्यंग्य संग्रह हैं.

आज 44वीं पुण्यतिथि पर विशेष : हिन्दी फिल्मों की पहली महिला संगीतकार सरस्वती देवी जिनके कोरस में गाते थे किशोर कुमार


नयी दिल्ली : सरस्वती देवी जरूर वह शख्सियत हुईं, जिन्होंने शुरुआत तो गायकी से ही की. लेकिन आगे चलकर मशहूरियत उनकी संगीत-निर्देशक के तौर पर ज़्यादा हुई. क्योंकि उन्होंने एक, दो या चार नहीं, बल्कि 30-35 फिल्मों में संगीत दिया. इस लिहाज़ से इन्हें ‘पहली फुल-टाइम महिला संगीतकार’ कहा जा सकता है.

सरस्वती देवी का निधन 10 अगस्त 1980 को हुआ था।

सरस्वती देवी जरूर वह शख्सियत हुईं, जिन्होंने शुरुआत तो गायकी से ही की. लेकिन आगे चलकर मशहूरियत उनकी संगीत-निर्देशक के तौर पर ज़्यादा हुई. क्योंकि उन्होंने एक, दो या चार नहीं, बल्कि 30-35 फिल्मों में संगीत दिया. इस लिहाज़ से इन्हें ‘पहली फुल-टाइम महिला संगीतकार’ कहा जा सकता है. इस हैसियत से कई हिट नग़्में उनकी पहचान बने. जैसे कि फिल्मों में पहला देशभक्ति गीत इन्हीं के निर्देशन में गाया गया. इसी तरह कहा ये भी जाता है कि प्ले-बैक सिंगिंग यानी पार्श्व गायकी की शुरुआत भी इन्हीं सरस्वती देवी के साथ एक वाक़ि’अे के दौरान हुई. 

अलबत्ता, बड़ी तादाद आज भी उन लोगों की है, जो फिल्म डायरेक्टर नितिन बोस और संगीत निर्देशक रायचंद (आरसी) बोराल को यह श्रेय देते हैं कि उन्होंने फिल्मों में पार्श्व गायन का सिलसिला शुरू कराया, जिसकी कहानी अपन पिछली दास्तान में तफ़सील से बता ही चुके हैं.

लेकिन जनाब, सरस्वती देवी का क़िस्सा या कहें कि दावा भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. तो सुनिए. मध्य प्रदेश के बड़े अफ़सर पंकज राग की क़िताब ‘धुनों की यात्रा’ में इसका ज़िक्र है. उनके मुताबिक, सरस्वती देवी ने ही एक इंटरव्यू में ‘जवानी की हवा’ (1935) फिल्म बनने के दौरान हुए वाक़ि’अे का ख़ुलासा किया था. यह फिल्म ‘बॉम्बे टॉकीज़’ के बैनर तले बनी थी. मशहूर अदाकारा देविका रानी और उनके पति फिल्मकार हिमांशु राय ने यह फिल्म कंपनी बनाई थी. तो जनाब, इस फिल्म में संगीत निर्देशन का जिम्मा सरस्वती देवी के पास था. जबकि उनकी बहन चंद्रप्रभा इसमें अदाकारी कर रही थीं. उन दिनों में हर अदाकार, अदाकारा को अपने गीत ख़ुद ही गाने पड़ते थे. चंद्रप्रभा भी अच्छी गायिका थीं. अदाकारी से पहले गाने ही गाती थीं. लेकिन इस फिल्म के दौरान एक बार उनका गला ख़राब हो गया. इससे मुश्किल आ पड़ी.

सरस्वती देवी के मुताबिक, तब हिमांशु राय के ज़ेहन में एक ख़्याल आया. यह कि क्यों न चंद्रप्रभा के लिए गाना सरस्वती देवी गा दें. उसे रिकॉर्ड कर लिया जाए और फिर चंद्रप्रभा कैमरे के सामने उस गाने के बोल के मुताबिक होंठ हिला दिया करें. बात सरस्वती देवी और चंद्रप्रभा को भी जम गई और बताते हैं कि कोई गाना भी रिकॉर्ड किया गया, इस तरह से. लेकिन तारीख़ में उसका कोई निशां नहीं मिलता. जबकि दूसरी तरफ़ 1935 के ही बरस में नितिन बोस और आरसी बोराल ने गायक, अदाकार कृष्ण चंद्र डे यानी केसी डे के साथ प्ले-बैक सिंगिंग का जो तज़ुर्बा किया, उसका रिकॉर्ड आज भी है. उसका ज़िक्र भी पिछली दास्तान में किया ही गया था. तो जनाब, इसी वज़ह से नितिन बोस और आरसी बोराल के ख़ाते में यह उपलब्धि दर्ज़ हुई कि उन्होंने ही हिन्दुस्तानी फिल्मों (बांग्ला और हिन्दी दोनों ज़बानों में) में प्ले-बैक सिंगिंग का सिलसिला शुरू कराया.

लेकिन जनाब क्या इतने भर से सरस्वती देवी के ख़ाते में जो उपलब्धियां वे कमतर कहला जाएंगी? यक़ीनन नहीं. क्योंकि ये वह शख़्सियत हुईं, जिन्होंने उस दौर में गीत-संगीत को चुना, जब यह सब एक ख़ास वर्ग तक सिमटा था. 

इस वर्ग के लोगों को समाज में अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था. और फिल्म-लाइन तो तौबा, तौबा. अच्छे घरों की औरतों का तो इसमें आना, समझिए ग़ुनाह ही होता था. और सरस्वती देवी तो एक बड़े पारसी ख़ानदान से तअल्लुक रखती थीं. ख़ुर्शीद मिनोचर होमजी उनका अस्ल नाम होता था. साल 1912 में जन्मी. तारीख़ सही-सही किसी को पता नहीं. गीत-संगीत में रुझान था. संगीत-शास्त्री पंडित विष्णुनारायण भातखंडे के संगीत-विद्यालय में इनकी मां सचिव हुआ करती थीं. तो इस तरह संजोग बन गया और पिता की इज़ाज़त मिलने के बाद इन्होंने पंडित भातखंडे जी से ही संगीत की शुरुआती शिक्षा लेनी शुरू कर दी.

इसके बाद लखनऊ में मॉरिस कॉलेज में पढ़ने चली गईं. वहां भी संगीत शिक्षा ली. फिर वहीं संगीत सिखाया भी. लखनऊ में ही विष्णुनारायण भातखंडे जी का एक संगीत-विश्वविद्यालय भी था. इन्होंने कुछ समय वहां भी पढ़ाया. फिर 1927 के आस-पास जब बंबई में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने रेडियो स्टेशन शुरू किया तो वहां कार्यक्रम देने लगीं. यहां बताते चलें कि इस पूरे सफ़र में ख़ुर्शीद मिनोचर के साथ उनकी बहन मानेक भी रहीं. शायद दो और बहनें भी थीं. रेडियो पर ख़ुर्शीद ऑर्गन बजाकर गाया करती थीं और उनकी बहनें सितार, दिलरुबा, मैंडोलिन बजाती थीं. इस तरह ‘होमजी सिस्टर्स’ के नाम से एक ऑर्केस्ट्रा बन गई थी, जो उस वक़्त बहुत मशहूर हुई।

बताते हैं कि इसी दौरान एक बार 1933-34 में ‘होमजी सिस्टर्स’ थियोसोफिकल सोसायटी के जलसे में अपना कार्यक्रम देने आई थीं. वहीं उनका परिचय हिमांशु राय से हुआ था.

कहते हैं, हिमांशु राय ने वहीं खुर्शीद और मानेक को अपनी फिल्म कंपनी में शामिल होने का न्यौता दे डाला. थोड़ी हीला-हवाली के बाद वे भी तैयार हो गईं. लेकिन यह बात जब पारसी समाज के ‘बड़े’ लोगों को पता चली तो उन्होंने भारी बवाल किया. कहा यहां तक जाता है कि एक बार तो खुर्शीद जब हिमांशु राय की गाड़ी में सवार थीं, तो उन्हें पारसी समाज के कुछ लोगों ने घेर लिया. उस वक़्त हिमांश साहब ने उन्हें अपनी पत्नी देविका रानी बताकर किसी तरह लोगों से पीछा छुड़ाया. हालांकि वहीं से यह भी तय कर लिया गया कि ख़ुर्शीद और मानेक को उनके अस्ल नामों से फिल्मों में नहीं दिखाया जाएगा. सो, दोनों के नाम बदल दिए गए. ख़ुर्शीद हो गईं सरस्वती देवी और मानेक कहलाईं चंद्रप्रभा. 

हालांकि इसके बावजूद जब दोनों की पहली फिल्म ‘जवानी की हवा’ रिलीज़ हुई तो विरोध और बवाल का आलम ये था कि पुलिस की सुरक्षा लेनी पड़ गई.

बंबई के इंपीरियल सिनेमा के बाहर तब बड़े जुलूस निकाले गए थे. विरोध में. हालांकि फिल्म कंपनी ‘बॉम्बे टॉकीज’ के ट्रस्ट से जुड़े पारसी सदस्यों ने किसी तरह अपने समाज के विरोध-प्रदर्शनकारियों को समझाया, बुझाया, शांत किया. इसके बाद सिलसिला चल निकला जनाब. और यूं कि चला कि बताते हैं, देविका रानी को संगीत सिखाने का काम भी सरस्वती देवी ही करती थीं. 

अशोक कुमार जैसे अदाकार से गाना गवा दिया उन्होंने, ‘कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा’, (‘जीवन-नैया’ 1936). यही गाना आगे अशोक कुमार के छोटे भाई किशोर कुमार ने ‘झुमरू’ (1961) में भी गाया. इसी तरह किशोर कुमार और मन्ना डे ने ‘पड़ोसन’ फिल्म (1968) में जो गाना गया था, ‘एक चतुर नार कर के सिंगार’, उसके बारे में भी कहते हैं कि वह मूल रूप से सरस्वती देवी का ही गाना था. उन्होंने साल 1941 में ‘झूला’ फिल्म के लिए सबसे पहले इस गाने की धुन बनाई थी.

वह सरस्वती देवी थीं, जिन्होंने पहली बार ‘जन्मभूमि’ फिल्म के लिए देशभक्ति के गीतों की धुनें बनाईं. जैसे- ‘जय, जय, जय जननी जन्मभूमि’. उन्होंने अपनी धुनों में सितार, क्लैरिनेट, तबला, जलतरंग जैसे वाद्यों का तालमेल बिठाया. ‘मालकौंस’ जैसे शुद्ध रागों के साथ लोकसंगीत में इस्तेमाल होने वाले ‘मांड’ को खूबसूरती से पिरोया. इसका नतीज़ा ये हुआ कि उनकी धुनों पर गाए गए कुछ गाने तो आज तक गुनगुनाए जाते हैं. मसलन- ‘मैं बन की चिड़िया बन के बन बन डोलूं रे’ (‘अछूत-कन्या’, 1936) और ‘चने जोर गरम बाबू मैं लाया मज़ेदार’ (‘बंधन’, 1940). इस तरह साल 1949 तक सरस्वती देवी संगीत-निर्देशन के काम में लगी रहीं. फिर धीरे-धीरे फिल्मी दुनिया से दूर होती गईं. और एक वक़्त वह भी आया, जब दुनिया से ही दूर हो गईं. कोई-कोई इस दुनिया से उनके विदा होने की तारिख़ नौ अगस्त बताता है तो कोई 10 अगस्त 1980।

झंडा गीत "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा" गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त की आज पुण्यतिथि,आइए जानते है इस जादूई गीत के रचयिता का संक्षिप्त परिचय


नयी दिल्ली :' विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...' इस गाने के बोल आज भी आपके जहन में होंगे। जब कहीं ये गीत सुनाई पड़ता होगा तो जरूर आपके लबों पर ये गीत आया होगा। इस गीत में है ही ऐसा जादू के हिंद का प्रत्येकवासी इसे बुदबुदाने लगता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस जादूई गीत के रचयिता कौन थे और वे कहां के रहने वाले थे..? तो आइए इस लेख में आपको उस महान शख्सियत से रूबरू कराती हूं जिनके इस गीत को खुद पंडित नेहरू के आग्रह पर 15 अगस्त 1952 को लालकिला पर गाया गया था....

2 रातें जागकर लिखा था यह झंडागीत...

कानपुर के जनरल गंज इलाके में अपने जीवन की अंतिम सांस लेने वाले श्यामलाल गुप्त पार्षद का जन्म 9 सितंबर 1896 को कानपुर के नरवल गांव में हुआ था। इनका घर आज भी पार्षद जी के मकान के नाम से मशहूर है। जीवन की महान उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने 15 अगस्त 1973 को पद्म श्री से सम्मानित किया।

यहां से शुरू हुआ सफर...

श्याम लाल गुप्त ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर गाया था गीत

1923 में फतेहपुर जिला में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के समय 'तिरंगा झंडा' तय कर लिया गया था। लेकिन लोगों को 'जन-मन' की तरह प्रेरित करने वाला कोई झंडा गीत नहीं था। पार्षद जी को लिखने का बहुत शौक था, वो कविता-कहानी लिखते रहते थे। साल 1924 में जब कानपुर में कांग्रेस का अधिवेशन होना तय हुआ तब वे कुछ दिन तक बहुत परेशान रहे। मगर वो अपनी परेशानी कभी घर में नहीं बताते थे। अधिवेशन के 2 दिन पहले से उन्होंने घर से निकलना बंद कर दिया और 2 दिन सोए भी नहीं। रात-दिन लगकर उन्होंने झंडा गीत लिखा।

उन्होंने 13 अप्रैल 1924 को कानपुर के फूलबाग मैदान में हजारों लोगों के सामने ये गीत गाया। जवाहर लाल नेहरू भी इस सभा में मौजूद थे। नेहरू जी को उनका ये गीत बेहद पसंद आया। उन्होंने उस वक्त कहा भले ही लोग श्याम लाल गुप्त को नहीं जानते होंगे, मगर आने वाले दिनों में पूरा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से उन्हें पहचानेगा। और ऐसा ही हुआ। उनके इस गीत ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई।

खाने में दाल थी दिल अजीज....

देश आजाद कराने के लिए श्यामलाल महीनों घर से गायब रहते थे। वे बेहद शांत स्वभाव के थे। उन्हें किसी चीज का शौक नहीं था। लेकिन उनके जीवन की सबसे जरूरी चीज खाने में दाल थी। उनको सब्जी मिले ना मिले लेकिन दाल जरूर चाहिए थी। एकबार श्यामलाल बिना बताए घर से 3 दिन गायब रहे, अचानक घर आने के बाद उन्होंने खाना मांगा। सब्जी-रोटी देख उन्होंने दाल मांगी, मगर घर में दाल नहीं होने से उस दिन दाल नहीं बनी थी, सो वो बिना खाना खाए उठ गए, और घर से बाहर चले गए। वो एक हफ्ते के बाद घर लौटे थे।

उधार के पैसे से धोती, कुर्ता और जूता खरीदकर गए पद्मश्री अवार्ड लेने

पद्म श्री से सम्मानित किए गए थे श्याम लाल गुप्त 'पार्षद'

झंडा गीत को लेकर पद्मश्री अवार्ड देने के लिए दिल्ली प्रधानमंत्री कार्यालय से जब उन्हें बुलावा आया था तो उस समय उनके पास न तो ढंग का धोती-कुर्ता था, ना ही जूता। तब उनके बेटे ने दोस्त से रुपए उधार लेकर उनके लिए धोती-कुर्ता और जूते का इंतजाम किया। जिसे पहनकर वो दिल्ली गए थे।

धोती-कुर्ता के थे शौकीन, कहते थे ज्यादा धोने से फट जाएगा कपड़ा

परिवार के साथ श्याम लाल गुप्त

उन्हें कपडे की भी सुध नहीं रहती थी। सिर्फ धोती-कुर्ता ही पहनते थे। उनके पास सिर्फ 2 धोती और दो कुर्ता थे। उसे वो 3-4 दिन के अंतराल पर धोते थे। उन्हें लगता था ज्यादा धोने पर कपड़ा जल्दी फट जाएगा।

मिली दर्दनाक मौत

उनका जीवन साधारण नहीं था। बेहद कठिनाइयों में उन्होंने दिन गुजारे थे। नंगे पांव घूमने की वजह से उनके दाहिने पैर में कांटा चुभ गया था। बाद में बड़ा घाव बन गया। उन दिनों घर की माली हालत खराब होने के कारण अच्छे से इलाज भी नहीं कराया जा सका।जिंदगी के आखिरी दिनों में इन्हें उर्सला हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। डॉ. ने उनको एडमिट करने में 4 घंटे लगा दिए थे। भर्ती होने के बाद उनका इलाज भी ढंग से नहीं हुआ। 10 अगस्त 1977 को इनकी मौत हो गई। मौत के बाद डॉक्टरों ने उनकी डेडबॉडी को वार्ड से बाहर निकाल कर कैंपस में एक किनारे जमीन पर डाल दिया था। बॉडी को घर ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं कराई गई।

आज का इतिहास: 1990 में आज ही के दिन शुक्र ग्रह पर पहुंचा था अमेरिका का अंतरिक्ष यान ‘मैगलन’जाने 10 अगस्त की महत्वपूर्ण घटनाएं।


नयी दिल्ली : देश और दुनिया में 10 अगस्त का इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है और कई महत्वपूर्ण घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई ।

10 अगस्त का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 1894 में 10 अगस्त को ही देश के चौथे राष्ट्रपति वी.वी.गिरी का जन्म हुआ था। 

1990 में 10 अगस्त को ही 1.3 वर्ष की यात्रा के बाद अमेरिका का अंतरिक्ष यान मैगलन शुक्र ग्रह पर पहुंचा था। 

1979 में आज ही के दिन उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 का प्रक्षेपण किया गया था। 

2008 में 10 अगस्त के दिन ही चेन्नई की लैब में एंटी एड्स वैक्सीन की सफल टेस्टिंग की गई थी।

2010 में 10 अगस्त को ही भारत ने उपग्रह स्थिति तंत्र आधारित विमान प्रचालन तंत्र गगन की सफल टेस्टिंग की थी।

2008 में आज ही के दिन चेन्नई की लैब में एंटी एड्स वैक्सीन की सफल टेस्टिंग की गई थी।

2006 में 10 अगस्त को ही श्रीलंका में तमिल विद्रोहियों पर सैन्य कार्रवाई में 50 नागरिकों मार दिया गया था।

2004 में आज ही के दिन संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और सूडान के बीच दार्फुर कार्ययोजना पर साइन किए गए थे।

1990 में 10 अगस्त को ही 1.3 वर्ष की यात्रा के बाद अमेरिका का अंतरिक्ष यान मैगलन शुक्र ग्रह पर पहुंचा था।

1979 में आज ही के दिन उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 का प्रक्षेपण किया गया था। 

1977 में 10 अगस्त को ही ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने हाई सेक्योरिटी के बीच 11 साल के बाद उत्तरी आयरलैंड की यात्रा की थी।

1966 में 10 अगस्त को ही अमेरिका ने अंतरिक्ष में रॉकेट उतारने के लिए पहला अंतरिक्ष यान भेजा था।

1962 में आज ही के दिन बच्‍चों का पसंदीदा स्‍पाइडरमैन कॉमिक बुक ‘अमेजिंग फैंटेसी’ में दिखा था।

1809 में आज ही के दिन इक्वाडोर को स्पेन से स्वतंत्रता मिली थी।

10 अगस्त को जन्में प्रसिद्ध व्यक्ति

1963 में आज ही के दिन चंबल से निकलकर सियासी गलियारों तक पहुंचने वाली फूलन देवी का जन्म हुआ था।

1894 में आज ही के दिन देश के चौथे राष्ट्रपति वी.वी.गिरी का जन्म हुआ था।

1860 में 10 अगस्त को ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विद्वान विष्णु नारायण भातखंडे का जन्म हुआ था।

1737 में 10 अगस्त के दिन ही रूसी चित्रकार और अकादमिक एंटोन लोसेंको का जन्म हुआ था।

10 अगस्त को हुए निधन

1999 में 10 अगस्त के दिन ही भारतीय संस्कृत विद्वान पद्म भूषण आचार्य बलदेव उपाध्याय का निधन हुआ था।

1995 में आज ही के दिन प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का निधन हुआ था।

1980 में 10 अगस्त के दिन ही भारत की पहली महिला संगीतकार सरस्वती देवी का निधन हुआ था।

1977 में आज ही के दिन ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ के रचयिता श्यामलाल गुप्त का निधन हुआ था।

भारत छोड़ो' की याद, जब आम भारतीय 'करो या मरो' की शपथ लेकर सड़कों पर उतरे थे

नयी दिल्ली : 9 अगस्त 1942 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा जन आंदोलन शुरू हुआ। अंग्रेजों ने क्रूर दमन शुरू किया, लेकिन संदेश साफ था:

भारत छोड़ो आंदोलन, महात्मा गांधी, गांधी करो या मरो। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में लोगों को संबोधित करते किया।

80 साल पहले आज ही के दिन - 9 अगस्त, 1942 को - भारत के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम के निर्णायक अंतिम चरण की शुरुआत की थी। यह औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक ऐसा जन-आंदोलन था जो पहले कभी नहीं देखा गया था, और इसने यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त होने वाला है।

महात्मा गांधी, जिन्होंने पिछले दिन (8 अगस्त) अंग्रेजों को "भारत छोड़ो" कहा था, पूरे कांग्रेस नेतृत्व के साथ पहले से ही जेल में थे, इसलिए जब 9 अगस्त की सुबह हुई, तो लोग अपने आप सड़कों पर थे - महात्मा के "करो या मरो" के आह्वान से प्रेरित होकर ।

बंगलादेश में हालत बदतर:ट्रकों में भरकर आ रहे लुटेरे हिंदू के घरों में लूटपाट,महिलाओं से रेप...स्थिति भयावह।


ढाका: नफरत की सबसे निर्मम झलक देखनी है तो बांग्लादेश आइए. यहां महिलाओं के चेहरों पर डर, बच्चों की खामोशी और बुजुर्गों की बेबसी आपको बताएगी कि यहां के हालात कितने खराब हैं. एक अच्छे कल के लिए बांग्लादेश की भीड़ ने शेख हसीना की सत्ता को तो उखाड़ फेंका था, लेकिन आज इस देश में जो हो रहा है उससे भविष्य के खतरे पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. देश में हर ओर अराजकता माहौल है. सड़कों पर इंसानियत, कानून और शर्म की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

डर के साए में जी रहे लोग

बांग्लादेश में हाल इतने बेहाल हैं कि लोग डर के साए में जी रहे हैं. लोगों के घरों को लूटा जा रहा है. रात भर लोग घरों में जग रहे हैं. उन्हें डर हैं कि कहीं उनके घर को लुटेरे निशाना न बना लें. ये हालात सिर्फ बांग्लादेश की राजधानी ढाका के ही नहीं हैं, बल्कि बांग्लादेश के हर कोने से ऐसी ही घटनाएं सामने आ रही हैं.

महिलाओं से हो रहे रेप

हालात इतने खराब हैं कि लुटेरे ट्रकों में भरकर आ रहे हैं और पूरे-पूरे इलाके को टारगेट कर रहे हैं. घरों में लूट करने के साथ ही महिलाओं के साथ बलात्कार की भी घटनाएं सामने आ रही हैं. घरों को आग लगा दी जा रही है. बदमाश इतने बेखौफ हैं कि वह अधिकारियों और नेताओं किसी को नहीं छोड़ रहे हैं.

पुलिस नदारद, आर्मी का हेल्पलाइन नंबर बंद

कानून प्रवर्तन एजेंसियों की चल रही हड़ताल के कारण देश में कोई पुलिस नहीं है. सेना ने आतंकियों, बदमाशों और लुटेरों द्वारा किए गए हमलों के ऐसे किसी भी मामले की रिपोर्ट करने के लिए फोन नंबर उपलब्ध कराए हैं. लेकिन हालात ये हैं कि लोग जब इन नंबरों पर कॉल कर रहे हैं तो या तो कोई फोन नहीं उठा रहा या फिर नंबर ही बंद आ रहा है.

हिंदुओं पर हो रहे हमले

हिंदू उपद्रवियों के निशाने पर हैं. मंदिरों को जलाया जा रहा है. हिंदू समुदाय के लोगों का टारगेट करके मारा जा रहा है. बांग्लादेश के प्रमुख अखबार 'द डेली स्टार' ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश के कम से कम 27 जिलों में भीड़ ने हिंदू घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर हमले किए, तोड़फोड़ और आगजनी की और सामान लूट लिया. खुद जमात-ए-इस्लामी ने माना है कि हिंदुओं पर हमले बढ़ गए हैं।

विश्व आदिवासी दिवस आज आईए जानते है विश्व आदिवासी दिवस क्या है? इस दिन का इतिहास क्या है? और इस दिन से जुड़ी खास बातें।


नयी दिल्ली : भारत में कुल आबादी की करीब 8 फीसदी आबादी आदिवासी लोगों की है।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 104 मिलियन लोग आदिवासी हैं। 

दुनियाभर के करीब 90 से भी अधिक देशों में आदिवासी निवास करते हैं।

विश्व आदिवासी दिवस : दुनिया भर में आज यानि 9 अगस्त के दिन विश्व आदिवासी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उदेश्य पूरी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले आदिवासियों का अस्तित्व दुनिया के सामने रखना और उनके अधिकारों को बढ़ावा देना है। गौरतलब है कि आदिवासी हमेशा से कई सामाजिक परेशानियों का सामना करते रहे हैं। ऐसे में हर देश की सरकारें इनकी हिफाजत और इन्हें सम्मान दिलाने के उद्देश्य से कड़े कदम उठाती रहती हैं। आज का यह खास दिन भी आदिवासियों को ही समर्पित है। तो चलिए जानते हैं विश्व आदिवासी दिवस क्या है? इस दिन का इतिहास क्या है? और इस दिन से जुड़ी खास बातें।

भारत में कितने हैं आदिवासी?

आज यदि समूचे भारत में देखा जाए तो कुल आबादी की करीब 8 फीसदी आबादी आदिवासी लोगों की है। यानि आंकड़ों में साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 104 मिलियन लोग आदिवासी हैं। वहीँ देश में सबसे अधिक आदिवासी लोग मध्य प्रदेश में निवास करते हैं। राज्य में रहने वाली कुल आबादी में से करीब 15 मिलियन लोग आदिवासी हैं।

क्या है इस दिन का इतिहास?

दरअसल इस दिन को मनाने की शुरुआत सबसे पहले साल 1982 के दौरान जिनेवा में आयोजित एक बैठक में हुई थी। इस बैठक में मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन को लेकर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की एक बैठक का आयोजन किया गया था।

इस दौरान संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह निर्णय लिया था कि आदिवासी लोगों के लिए हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए। जिसके बाद पहली बार दिसम्बर 1994 में महासभा ने इस दिन को मनाने का फैसला किया था।

क्या है इस दिन का उद्देश्य?

आज दुनियाभर के करीब 90 से भी अधिक देशों में आदिवासी निवास करते हैं। ये आदिवासी जंगलों से लेकर कस्बों और नगरों में निवास करते हैं और हजारों प्रकार की भाषाएँ बोलते हैं। इतनी अधिक आबादी होने के बावजूद भी आदिवासियों को कई बार अपने सम्मान और अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। 

आदिवासियों की इसी अवस्था को देखते हुए उनके अधिकारों और अस्तित्व के संरक्षण के लिए इस दिन को खासतौर पर मनाया जाता है।

हिरोशिमा और नागासाकी दिवस आज,जाने इतिहास


 

नयी दिल्ली : हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी मानव इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक है। इस साल इस हमले की 79वीं वर्षगांठ है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बमबारी के विनाश को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। 

6 अगस्त को 'लिटिल बॉय' और उसके बाद 9 अगस्त को 'फैट मैन' की भयावहता ने परमाणु निरस्त्रीकरण पर वैश्विक चर्चाओं को जन्म दिया। 

इस वर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के आत्मसमर्पण के कारण हुए परमाणु हमले की 79वीं वर्षगांठ है।

हिरोशिमा का एक दृश्य जलते हुए वाहन, फंसे हुए लोग, हमले के बाद हिरोशिमा कुछ ऐसा ही दिख रहा था।

इतिहास

हिरोशिमा और नागासाकी पर बम हमला द्वितीय विश्व युद्ध के समय का है। यह घटना दो तिथियों पर हुई।

हिरोशिमा दिवस: 6 अगस्त 1945 को, अमेरिका ने जापानी शहर हिरोशिमा पर लगभग 8:15 बजे परमाणु हथियार, 'लिटिल बॉय' गिराया था। तब से, यह दिन हजारों मौतों के शोक के अवसर के रूप में मनाया जाता है और जीवित बचे लोगों और आने वाली पीढ़ियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। 

द्वितीय विश्व युद्ध की भयंकर धुआँ

नागासाकी दिवस: हिरोशिमा के विनाश के ठीक तीन दिन बाद अमेरिका ने दूसरा परमाणु बम 'फैट मैन' गिराया। यह हमला जापान के नागासाकी शहर में सुबह करीब 11:02 बजे किया गया था। 

बमबारी के बाद भारी तबाही और जान-माल की हानि के साथ-साथ विकिरण जोखिम के कारण दीर्घकालिक प्रभाव भी देखने को मिले। मानव इतिहास में इस घृणित घटना ने वैश्विक निरस्त्रीकरण और शांति पहल को जन्म दिया। 

हर साल मनाया जाने वाला यह शोक हज़ारों निर्दोष लोगों की जान जाने के साथ-साथ बचे हुए लोगों और आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले स्थायी प्रभावों को श्रद्धांजलि देता है। इसके अलावा, इस दिन भविष्य की त्रासदियों को रोकने, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और परमाणु खतरों से मुक्त दुनिया के लिए वकालत की जाती है।हिरोशिमा पर गिराया गया बम'बालकाई' का मॉडल हिरोशिमा में उतारा गया।

रोचक तथ्य

हिरोशिमा और नागासाकी दिवस से जुड़े कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार हैं:

संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जिसने इतिहास में पहली और एकमात्र बार युद्ध में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया।

हिरोशिमा पर परमाणु हमले का कोडनाम "लिटिल बॉय" था, जबकि नागासाकी पर गिराए गए बम का नाम "फैट मैन" था। 

हिरोशिमा में एक माँ और बच्चापहले से ही पीड़ित एक माँ अपने घायल बच्चे की देखभाल कर रही है। 

लिटिल बॉय यूरेनियम से बना बम था, जबकि फैट मैन प्लूटोनियम से बना बम था।