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दिल्ली:सावन में हरे कपड़े क्यों पहनने चाहिए आइए जानते है इसके पीछे के धार्मिक कारण


दिल्ली:- सावन का पवित्र महीना भगवान शिव की भक्ति और धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहारों के लिए जाना जाता है। इस दौरान श्रद्धालु व्रत रखते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और आशीर्वाद पाने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि सावन में महिलाएं हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियां धारण करती हैं? यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है? आइए आज हम इस पहेली को सुलझाएं और जानें कि सावन में हरे रंग का इतना महत्व क्यों है। सावन में हरे कपड़े पहनने की परंपरा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं:

भगवान शिव का संबंध: सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। हरा रंग शिव को प्रिय माना जाता है, इसलिए लोग इस महीने में हरे कपड़े पहनकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

हरा रंग सुहाग का प्रतीक

सावन के महीने में सुहागिनों के पहनावे और श्रृंगार में भी एक खास रंग नजर आता है – हरा। हरा रंग सुहाग का प्रतीक माना जाता है, इसलिए सावन में सुहागिनें हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं। हाथों में रची मेहंदी का रंग भी हरा या गहरा होता है, जो सुहाग की खुशियों और मंगलकामनाओं का प्रतीक है। हरी या चूड़ेदार चूड़ियां कलाईयों को सजाती हैं, जो सुहाग की निशानी होती हैं। सावन के सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत और हरियाली तीज जैसे व्रतों का पालन करना भी सुहागिनों के लिए परंपरा का हिस्सा है।सावन की मंदिरों में गूंजती भक्तिमय धुन और चारों ओर फैली हरियाली सिर्फ आंखों को ही सुहाती नहीं लगती, बल्कि महिलाओं के सौंदर्य में भी एक खास रंग भर देती है। हरे रंग की चूड़ियां कलाईयों को सजाती हैं, हरे रंग के वस्त्र तन को सुहाते हैं और हाथों में रची हरी मेहंदी मानो सावन की हरियाली का ही एक अंश है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सावन के श्रृंगार में छिपा एक गहरा अर्थ है? हरा रंग सिर्फ श्रृंगार का एक हिस्सा नहीं, बल्कि सुहाग का प्रतीक, देवी पार्वती के प्रति श्रद्धा और भगवान शिव को प्रसन्न करने का माध्यम भी है।

प्रकृति की हरियाली

सावन के महीने में प्रकृति अपने सर्वोत्तम रूप में होती है, चारों ओर हरियाली छाई रहती है। हरा रंग इस हरियाली का प्रतीक है और इसे पहनकर लोग प्रकृति के साथ एकरूपता का अनुभव करते हैं।

समृद्धि और शांति:

 हरा रंग समृद्धि, शांति और नई ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को पहनने से मन में शांति और सकारात्मकता बनी रहती है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद में हरे रंग को स्वस्थ्य और ताजगी का प्रतीक माना गया है। इसे पहनने से मन और शरीर में संतुलन बना रहता है।

इस प्रकार, सावन में हरे कपड़े पहनने की परंपरा धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व को दर्शाती है।

दिल्ली:अब हाईटेक साइबर ठग करने वालो का ठिकाना जामताड़ा नहीं रहा अब साइबर क्राइम करने वालो ने इस राज्य को बना लिया अपना नया अड्डा


नयी दिल्ली : एक समय में जब किसी के साथ ऑनलाइन ठगी होती थी तो सबसे पहला शक जामताड़ा के ठगों पर जाता था अब ठगों को पता चल गया है कि लोग क्रेडिट कार्ड, एटीएम ब्लॉक और शॉपिंग वेबसाइट के नाम पर उनका शिकार नहीं बन रहे हैं. इसलिए उन्होंने इसके लिए एक नया तरीका खोज निकाला है. अब जामताड़ा नहीं रहा साइबर क्राइम करने वालों का ठिकाना, स्कैमर्स ने इस राज्य में बना लिया नया अड्डा

हरियाणा बन रहा साइबर ठगों का गढ़

एक समय में जब किसी के साथ ऑनलाइन ठगी होती थी तो सबसे पहला शक जामताड़ा के ठगों पर जाता था. लेकिन अब जामताड़ा से ज्यादा ठग नूंह में हो गए हैं. 

नूंह हरियाणा का एक जिला है. इस जिले के गांवों में ठगों के कई गिरोह एक्टिव हैं. यहां ठगों का कोचिंग सेंटर भी चलता है. इन कोचिंग सेंटरों में फीस लेकर लोगों को ठगी के गुण सिखाए जाते हैं. चलिए इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.

ठगी की कोचिंग

एक खबर के अनुसार, नुंह के कई गांव ऐसे हैं जहां ठग ऐसे कोचिंग सेंटर्स चलाते हैं जहां ठगी के गुण सिखाए जाते हैं. ये कोचिंग सेंटर्स ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन भी चलाए जाते हैं. यहां एडमिशन के लिए छात्रों से 40 हजार से एक लाख रुपये तक की फीस वसूली जाती है. बीते दिनों हरियाणा पुलिस ने नूंह के ऐसे कई गांवों में छापा मारा और कई लोगों को गिरफ्तार किया. इसके अलावा अब पुलिस ठगी वाले इन कोचिंग संस्थानों को ध्वस्त करने में जुट गई है.

मेवात का इलाका भी ठगों का गढ़

नूंह के अलावा हरियाणा का ही एक इलाका और है मेवात. मेवात को भी ठगी का गढ़ माना जाता है. दरअसल, मेवात यूपी और राजस्थान के साथ बॉर्डर शेयर करता है, इसलिए ठग यहां सबसे ज्यादा एक्टिव रहते हैं. जैसे ही पुलिस की छापेमारी होती है ये ठग राजस्थान और यूपी में भाग जाते हैं. यहां के ठग ज्यादातर ठगी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइटों के नाम से करते हैं. खासतौर से ओएलएक्स, फ्लिकार्ट और एमाज़ॉन का नाम लेकर ये ठग सबसे ज्यादा ठगी करते हैं.

ठगी का एक और नया तरीका निकला है

अब ठगों को पता चल गया है कि लोग क्रेडिट कार्ड, एटीएम ब्लॉक और शॉपिंग वेबसाइट के नाम पर उनका शिकार नहीं बन रहे हैं. इसलिए उन्होंने इसके लिए एक नया तरीका खोज निकाला है. अब ठग आपको फोन करते हैं और खुद को क्राइम ब्रांच का अधिकारी या फिर कोई पुलिस अधिकारी बताते हैं. इसके बाद ये आप पर तरह-तरह के आरोप लगा कर आपको डराने की कोशिश करते हैं.

जैसे- आपने अपने फोन में गंदी तस्वीरें और वीडियो देखी है, आपके नाम से कोई कुरियर है जिसमें ड्रग्स हैं, आपके फोन से किसी को गाली दी गई है, आपने ट्रैफिक सिग्नल तोड़ा है या आपका कोई रिश्तेदार किसी मामले में पुलिस की गिरफ्त में है. 

ये सब बोल कर पहले वो आपसे आपकी नॉर्मल जानकारी लेंगे. इसके बाद ये ठग आपसे बैंक डिटेल्स जैसी पर्सनल डिटेल्स मांगते हैं और जैसे ही आप इन्हें अपनी पर्सनल डिटेल्स देते हैं आपके बैंक खाते को पलक झपकते ही खाली कर देते हैं।

दिल्ली:कारगिल युद्ध की उन जवानों की गाथाएँ हैं जिन्होंने इस युद्ध में अद्वितीय साहस दिखाया था


दिल्ली:- कारगिल युद्ध, 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया, कई जवानों की वीरता और बलिदान की कहानी है। यहाँ कुछ मुख्य जवानों की गाथाएँ हैं जिन्होंने इस युद्ध में अद्वितीय साहस दिखाया:

कैप्टन विक्रम बत्रा: कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें 'शेरशाह' के नाम से भी जाना जाता है, ने पॉइंट 5140 को जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी टीम के साथ इस पॉइंट को दुश्मन से छीनकर भारतीय सेना के लिए बड़ी विजय प्राप्त की। उन्होंने अपने अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र प्राप्त किया।

कैप्टन मनोज कुमार पांडे : कैप्टन मनोज पांडे ने भी अपनी बटालियन के साथ पॉइंट 4875 को जीतने में अहम भूमिका निभाई। उनकी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता के लिए उन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव: 18 ग्रेनेडियर्स के योगेंद्र सिंह यादव ने टाइगर हिल की चोटी पर कब्जा करने के दौरान अद्भुत साहस दिखाया। भले ही वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे, उन्होंने अपनी मिशन को पूरा किया। उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

राइफलमैन संजय कुमार: राइफलमैन संजय कुमार ने दुश्मन के बंकर को तबाह कर महत्वपूर्ण क्षेत्र को जीतने में भूमिका निभाई। उन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

ये सभी जवान कारगिल युद्ध के सच्चे नायक हैं, जिनकी वीरता और बलिदान हमेशा याद किए जाएंगे। इनके साहस और देशभक्ति ने भारत को विजय दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आज का इतिहास:1999 में 60 दिन तक चला था युद्ध…आज ही के दिन मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस,जाने 26 जुलाई की महत्वपूर्ण घटनाएं


नयी दिल्ली : देश और दुनिया में 26 जुलाई का इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है और कई महत्वपूर्ण घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है।

26 जुलाई का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 26 जुलाई 1999 का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच लगभग 60 दिनों तक चलने वाले युद्ध का अंत हुआ और भारत विजयी हुआ था। 

2008 में 26 जुलाई को ही यूरोपीय वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के बाहर एक और नए ग्रह की खोज की थी।

वर्षवार 26 जुलाई का इतिहास इस प्रकार हैः

2012 आज ही के दिन उत्तर कोरिया में खानून तूफान से 88 लोगों की मौत 60 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे।

2012 सीरिया की हिंसा में 1 दिन में करीब 200 लोग मारे गए थे।

2008 आज ही के दिन गुजरात के अहमदाबाद शहर में 21 धमाकों में 56 लोगों की मौत और 200 से ज्यादा घायल हो गए थे।

2008 यूरोपीय वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के बाहर एक और नए ग्रह की खोज की थी।

2007 आज ही के दिन पाकिस्तान ने परमाणु शक्ति सम्पन्न क्रूज मिसाइल बाबर हत्फ-7 का सफल परीक्षण किया था।

2005 आज ही के दिन नासा शटल डिस्कवरी का प्रक्षेपण हुआ था।

1999 26 जुलाई को ही कारगिल युद्ध जीतने के बाद भारतीय सेना ने तिरंगा लहराया था।

1998 आज ही के दिन महानतम महिला एथलीट जैकी जायनर कर्सी ने एथलेटिक्स से संन्यास लिया था।

1997 श्रीलंका ने क्रिकेट एशिया कप जीता था।

1974 आज ही के दिन फ्रांस ने मुरूओरा द्वीप में परमाणु परीक्षण किया था।

1965 मालदीव ब्रिटेन के कब्जे से स्वतंत्र हुआ था।

1956 आज ही के दिन मिस्र ने स्वेज नहर पर कब्जा जमा लिया था।

1951 नीदरलैंड ने जर्मनी के साथ चल रहे युद्ध को खत्म किया था।

1945 आज ही के दिन विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया था।

1876 कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना हुई थी।

1614 मेवाड़ के राणा का स्वागत किया था।

26 जुलाई को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1914 26 जुलाई के दिन ही भारत की प्रसिद्ध कवयित्रियों में से एक विद्यावती ‘कोकिल’ का जन्म हुआ था।

1874 26 आज ही के दिन महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारक छत्रपति साहू महाराज का जन्म हुआ था।

1844 आज ही के दिन भारत के प्रमुख शिक्षाविद गुरुदास बनर्जी का जन्म हुआ था।

26 जुलाई को हुए निधन

1966 आज ही के दिन भारत के प्रसिद्ध विद्वान वासुदेव शरण अग्रवाल का निधन हुआ था।

26 जुलाई को प्रमुख उत्सव

कारगिल विजय दिवस।

कारगिल विजय दिवस की 25 वी बरसी आज,आइए जानते हैं कारगिल दिवस के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को


कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है, ताकि भारतीय सेना की 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध में जीत का सम्मान किया जा सके। यह दिन भारतीय सैनिकों के अद्वितीय साहस, बलिदान और देशभक्ति की याद दिलाता है। आइए जानते हैं कारगिल विजय दिवस के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को:

कारगिल युद्ध का प्रारंभ: मई 1999 में पाकिस्तानी सैनिक और कश्मीरी उग्रवादियों ने कारगिल जिले के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना की आपूर्ति रेखाओं को काटना था।

ऑपरेशन विजय: भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए "ऑपरेशन विजय" शुरू किया। यह ऑपरेशन लगभग दो महीने तक चला और इसमें भारतीय सेना के कई जवानों ने अपना जीवन बलिदान किया।

महत्वपूर्ण स्थान: कारगिल युद्ध के दौरान टोलोलिंग, टाइगर हिल, और अन्य महत्वपूर्ण चोटियों को फिर से कब्जा करने के लिए कड़े संघर्ष हुए।

वीरता पुरस्कार: इस युद्ध में बहादुरी दिखाने वाले सैनिकों को परमवीर चक्र, महावीर चक्र, और वीर चक्र जैसे प्रतिष्ठित वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

शहीदों को श्रद्धांजलि: कारगिल विजय दिवस के अवसर पर देशभर में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। दिल्ली में इंडिया गेट और जम्मू-कश्मीर के द्रास में कारगिल वार मेमोरियल पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

राष्ट्रीय गर्व: कारगिल विजय दिवस भारतीय सेना की अदम्य साहस और दृढ़ता का प्रतीक है और यह दिन भारतीय नागरिकों के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत है।

कारगिल विजय दिवस न केवल हमारे सैनिकों के बलिदान को याद करने का दिन है, बल्कि यह हमारे देश की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।

दिल्ली दंगा: पांच मुस्लिम युवकों की पिटाई मामले की होगी CBI जांच, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया आदेश, जानें पूरा मामला*l

नई दिल्ली:- दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा के दौरान राष्ट्रगान गाने का दबाव बनाने के लिए पुलिस द्वारा पांच मुस्लिम युवकों की पिटाई मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया है. जस्टिस अनूप जयराम भांभानी की बेंच ने ये आदेश दिया है. इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था कि फोरेंसिक रिपोर्ट के लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकते हैं.

दरअसल, दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी गुजरात से कुछ वीडियो फुटेज के फॉरेंसिक रिपोर्ट आने बाकी हैं. इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कोर्ट गुजरात में चल रहे फॉरेंसिक जांच पर रोक लगा सकती है.

कोर्ट फोरेंसिक रिपोर्ट के लिए इंतजार नहीं कर सकती है. फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार काफी समय से किया जा रहा है, आखिर ये इंतजार कब खत्म होगा. इसके लिए कुछ समय तय होना चाहिए. पहले दिल्ली से फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा था और अब गुजरात से.

दिल्ली पुलिस को कोर्ट ने लगाई फटकारः

 कोर्ट ने मुस्लिम युवकों की पिटाई करने वाले पुलिसकर्मियों की पहचान कर जांच करने के मामले में भी लचर रवैया अपनाने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने कहा था कि मृतक युवक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोट की संख्या अधिक आई है. एमएलसी में दर्ज चोट की संख्या से कैसे बढ़ गए. कोर्ट ने कहा था कि पुलिस जांच रिपोर्ट में कई गड़बड़ियां है. पांच युवकों में एक की मौत हो गई, लेकिन चार तो जिंदा है. क्या जिंदा बचे युवकों से उन पुलिसकर्मियों की पहचान कराई गई. आप पूरी दुनिया की जांच करेंगे लेकिन चश्मदीद गवाह से कोई पूछताछ नहीं करेंगे. उन चार युवकों का बयान दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई, ये किस किस्म की जांच है.

सोशल मीडिया में वायरल हुआ था वीडियोः

 दरअसल, सोशल मीडिया पर जन-गण-मन नामक एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें पांच मुस्लिम युवकों को पुलिसकर्मी घेरे हुए हैं. इस दौरान पुलिस उनसे राष्ट्रगान गाने के लिए दबाव बना रहे हैं. ये युवक जमीन पर असहाय रूप ये लेटे हुए हैं. पुलिस उनके साथ मारपीट कर रही है. फैजान नामक युवक को 24 फरवरी 2020 को पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उसे 25 फरवरी 2020 को काफी नाजुक स्थिति में छोड़ा था. उसे एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां उसकी 26 फरवरी 2020 को मौत हो गई.

जांच में पुलिसकर्मियों को बचाने का आरोपः 

याचिका फैजान की मां ने दायर किया था. याचिका में कहा गया था कि 25-26 फरवरी 2020 की दरम्यानी रात को फैजान ने अपनी मां को बताया था कि उसे पुलिस ने प्रताड़ित किया था. याचिका में कहा गया था कि फैजान को ज्योति नगर पुलिस थाने में गैरकानूनी हिरासत में रखा गया और उसका इलाज उपलब्ध करने से इनकार कर दिया गया था. जब उसकी स्थिति खराब होने लगी थी. पुलिस को लगा कि वह नहीं बच पाएगा तो उसे छोड़ा दिया गया. 

याचिका में कहा गया कि इस मामले में हत्या का केस दर्ज किया गया, लेकिन जांच में पुलिसकर्मियों को बचाने की कोशिश की जा रही है.

आगरा में 2.39 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला, फुटवियर निर्माता विजय तोमर गिरफ्तार

दिल्ली: आगरा पुलिस कमिश्नरेट की सिकंदरा पुलिस ने फुटवियर निर्माता अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट कर्नल विजय तोमर को मंगलवार को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. उनके खिलाफ धारा 409 के तहत गैरजमानती वारंट जारी हुआ था।

अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट कर्नल विजय तोमर की कंपनी एबीएस इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड पर राना ओवरसीज कम्पनी ने धोखाधड़ी और रकम न देने का आरोप लगाया था.

बता दें कि आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्ट चैंबर (एफमेक) के पूर्व अध्यक्ष कैप्टन एएस राना की सिकंदरा के औद्योगिक क्षेत्र ईपीआईपी में पत्नी सुनीता राना के नाम से राना ओवरसीज कम्पनी है. एबीएस इंटरनेशनल प्राइवेट के निदेशक अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट कर्नल विजय तोमर भी एफमेक के चर्चित हैं.

कैप्टन एएस राना का आरोप है कि, एबीएस इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक ने 2020 में उनकी फैक्ट्री में आए. कहा कि, मैं घरेलू जूते की सप्लाई करने के साथ ही अब दक्षिण अफ्रीका के घाना में भी जूतों की सप्लाई करता हूं.

इसके बाद व्यापारिक डील तय की. इसके आधार पर 11 सितंबर 2020 तक राना ओवरसीज ने एबीएस इंटरनेशल प्राइवेट लिमिटेड को 3.22 करोड़ रुपये के जूते तैयार करके दिए. लेकिन, भुगतान नहीं हुआ. इस पर एबीएस इंटरनेशनल ने 2.60 लाख रुपये का मैटेरियल दिया. 80 लाख रुपये का ही भुगतान किया गया. बाकी रकम देने में एबीएस इंटरनेशल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक ने आनाकानी शुरू कर दी. इस बीच एबीएस इंटरनेशनल ने पचास लाख रुपये का चेक भी बाउंस हो गया.

कोर्ट से जारी किया गया था गैरजमानती वारंट: कैप्टन एएस राना की राना ओवरसीज की मालिक सुनीता राना ने कोर्ट में एबीएस इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक कमलेश तोमर, विजय तोमर, प्रशांत कुमार, मलिका तोमर, देविका तोमर, हार्दिक चौहान, जोजफ किरण के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. तब ये मामला चर्चा में आया. सिकंदरा थाना पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके छानबीन की और पुलिस ने गैरजमानती वारंट जारी कराया था.

एक आरोपी भेजा जेल, अन्य की तलाश: सिकंदरा थाना के प्रभारी नीरज कुमार शर्मा ने बताया कि गैर जमानती वारंट जारी होने पर फुटवियर निर्माता अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट कर्नल विजय तोमर को जेल भेज दिया है. इस मामले में अन्य आरोपियों के खिलाफ भी जांच जारी है.

बेंगलुरु को पांच जोन में बांटने की सिफारिश को मिली मंजूरी


बेंगलुरु : बेंगलुरु को पांच जोन में बांटने की सिफारिश को मिली मंजूरी । कर्नाटक कैबिनेट ने बेंगलुरु को पांच जोन में बांटने की सिफारिश करने वाले बिल को मंजूरी दे दी है. इस बिल को कल विधानसभा में पेश किया जाएगा. इसमें ग्रेटर बेंगलरु अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव दिया गया है. बीएस पाटिल की अगुवाई वाली एक्सपर्ट कमेटी ने राज्य की राजधानी को पांच जोन में बांटने की सिफारिश की थी.

कर्नाटक के पूर्व मुख्य सचिव बीएस पाटिल की अध्यक्षता वाली बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) पुनर्गठन समिति ने पिछले हफ्ते सोमवार को राज्य के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को शहर के प्रशासन पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. अपनी रिपोर्ट में पैनल ने सरकार को ग्रेटर बेंगलुरु अथॉरिटी बनाने का सुझाव दिया था.

बेंगलुरु में वार्डों की संख्या भी बढ़ाने की सिफारिश

एक्सपर्ट कमेटी ने मौजूदा BBMP की जगह तीन नए निगम बनाने की सिफारिश की है, जो शहर की शासन व्यवस्था को देखेगी. इसके अतिरिक्त, समिति ने वार्डों की संख्या को मौजूदा 198 से बढ़ाकर 400 नए वार्ड करने का प्रस्ताव दिया है. इस पुनर्गठन से बेंगलुरु के भीतर स्थानीय शासन और सर्विस डिस्ट्रीब्यूशन में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है.

विधानसभा में पेश किया जाएगा बिल

कर्नाटक सरकार ने इन परिवर्तनों को लागू करने के लिए एक विधेयक का मसौदा भी तैयार किया है, जिसे कल विधानसभा में पेश किया जाना है. प्रस्तावित सुधार तेजी से बढ़ते शहर बेंगलुरु के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और इसके प्रशासन और सर्विस डिस्ट्रीब्यूशन में सुधार करने के सरकार की कोशिशों का हिस्सा है.

संभावित अथॉरिटी का नेतृत्व करेंगे मुख्यमंत्री

सूत्रों की मानें तो बिल में एक से लेकर 10 तक कई निगमों का प्रावधान होने की संभावना है और इसमें 400 वार्ड तक का प्रावधान होगा. सूत्रों ने बताया कि बिल में प्रत्येक निगम में 12 सदस्यों वाली मेयर-इन-काउंसिल का प्रावधान भी होने की संभावना है, जिससे स्थायी समिति सिस्टम खत्म हो जाएगी. ग्रेटर बेंगलुरु अथॉरिटी का नेतृत्व मुख्यमंत्री करेंगे और सह-अध्यक्षता बेंगलुरु विकास मंत्री करेंगे, जिसमें चार मंत्री, शहर के सभी विधायक शामिल होंगे.

मान्यता : इस मंदिर में गये बगैर अयोध्या में श्रीराम के दर्शन रह जाते हैं अधूरे


अयोध्या : सावन का पवित्र महीना चल रहा है और सावन के इस पवित्र महीने में शिव भक्त प्राचीन मठ-मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर रहे हैं. तो वहीं मंदिर और मूर्तियों की नगरी अयोध्या में भी प्रभु राम से जुड़ा एक ऐसा शिव मंदिर है जिसकी महिमा अपरंपार है .

भगवान राम की जन्मस्थली में कई ऐसे गुप्त दिव्य स्थान है जिसे अधिकतर लोग नहीं जानते हैं. उन्हीं में से एक स्थान है नागेश्वरनाथ मंदिर. यह अयोध्या के उन महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं के बीच उतना प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

इस मंदिर का निर्माण प्रभु राम के पुत्र कुश ने कराया था

पंडित कल्कि राम बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथो के अनुसार कहा जाता है कि नागेश्वरनाथ मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान राम के पुत्र कुश ने करवाया था. पौराणिक मान्यता है कि एक बार भगवान राम के पुत्र कुश सरयू में स्नान कर रहे थे। 

उस वक्त उनकी बांह से कड़ा निकलकर सरयू में गिर गया. कुश ने उसे खूब तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला। वह कड़ा सरयू में ही रहने वाले नागराज कुमुद को मिल गया, जिसे उन्होंने अपनी बेटी को दे दिया. जब कुश को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने कुमुद से अपना कड़ा मांगा, लेकिन नागराज ने वह कड़ा देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया और कहा कि बेटी को दिया गया उपहार वापस नहीं लिया जाता है. 

इस तर्क पर क्रोध से तिलमिलाए कुश ने धनुष उठा लिया और पृथ्वी से संपूर्ण नाग जाति का संहार करने के लिए आगे बढ़ गए. तब कुमुद ने भगवान शिव से प्रार्थना की. भगवान शिव प्रकट हुए और कुश को शांत करवाया.

मान्यता : नागेश्वरनाथ मंदिर में गये बगैर अयोध्या में श्रीराम के दर्शन अधूरे रह जाते हैं

पंडित कल्कि राम बताते हैं कि यहां विधि विधान के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. सावन और शिवरात्रि के दिन इस मंदिर में काफी भीड़ होती है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं. इसके अलावा अयोध्या में मंदिरों के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु भी इस मंदिर में जाते हैं. मान्यता कि इस मंदिर में गए बिना अयोध्या में श्रीराम के दर्शन अधूरे रह जाते हैं.

जयंती विशेष : इकलौते एक्टर जो सरकार से जीत गए थे केस, शूटिंग के सामान और लाइट उठाने का मिला था काम, फिल्म क्रांति के लिए बेच दिया था अपना बंगला


दिल्ली : मनोज कुमार, बॉलीवुड के वो महानायक जिन्होंने हिन्दी फिल्मों को एक से बढ़कर एक शानदार फिल्में दीं। मनोज पर्दे पर अपनी फिल्मों के जरिए लोगों को देशभक्ति की भावना को गहराई से एहसास कराया। मनोज कुमार को हिन्दी फिल्मों में एक देशभक्त एक्टर के चेहरे के तौर पर जाना जाता है। 

बताया जाता है कि एक्टर भगत सिंह से बेहद प्रभावित हैं और उन्होंने 'शहीद' जैसी देशभक्ति फिल्म में एक्टिंग की और कइयों के लिए प्रेरणा बन गए। हिन्दी सिनेमा में मनोज कुमार कई देशभक्ति फिल्मों में नजर आए। मनोज कुमार 24 जुलाई को अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं। आज यहां सुना रहे हैं एक्टर का वो किस्सा, जब मनोज कुमार के 2 माह के भाई ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था और मां को बचाने के लिए एक्टर ने नर्स और डॉक्टरों की लाठी से पिटाई शुरू कर दी थी। वहीं मनोज भारत के इकलौते फिल्ममेकर कहे जाते हैं जिन्होंने सरकार से केस जीता था।

नैशनल अवॉर्ड, दादा साहेब फाल्के, पद्मश्री अवॉर्ड और 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके मनोज कुमार की शुरुआती जिंदगी सितारों वाली नहीं थी बल्कि उन्हें तो एहसास भी नहीं था कि उनका ये रास्ता उन्हें कहां ले जा रहा। 

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को एबटाबाद , ब्रिटिश इंडिया (अब खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) में हुआ था। उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था। बताया जाता है कि उस समय मनोज केवल 10 साल के थे जब अपने 2 महीने के भाई को तड़प-तड़प कर दम तोड़ते देखा था।

2 महीने भाई तपड़ कर मर गया, मां दर्द से चिल्लाती थीं

दरअसल हुआ यूं कि छोटे भाई कुक्कू के जन्म के बाद मां और भाई दोनों को हॉस्पिटलाइज कराया गया था। उसी दौरान दंगा भड़का और हॉस्पिटल के स्टाफ जान बचाने के लिए भागने लगे थे। कहते हैं कि उसी अफरा-तफरी में इलाज न मिलने की वजह से नन्हे भाई ने दम तोड़ दिया। 

वहीं मां की हालत भी काफी खराब थी और वो तकलीफ की वजह से चिल्लाती रहती थीं। वहां कोई डॉक्टर या नर्स उनका इलाज करने नहीं पहुंचता। छोटी सी उम्र में अपनी आंखों के सामने ये सब होते देख आखिरकार मनोज एकदम परेशान हो गए। वो अब अपनी मां को भाई की तरह खोना नहीं चाहते थे। 

कहते हैं कि एक दिन परेशान होकर उन्होंने लाठी उठा ली और छिपे हुए डॉक्टरों और नर्सों को पीटना शुरू किया। जैसे-तैसे पिता ने उन्हें रोका और फिर उन्होंने परिवार की जान बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ने का फैसला ले लिया।

पाकिस्तान से आकर 2 महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए

यहां दिल्ली पहुंचकर उन्होंने 2 महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए और वक्त के साथ जब दंगे कम होने लगे तो वो लोग दिल्ली में बस गए और फिर मनोज की पढ़ाई-लिखाई शुरू हुई। हिंदू कॉलेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई के बाद उन्होंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी।

लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले समान उठाने का मिला था काम

फिल्मों में आने का किस्सा भी काफी मजेदार है। कहते हैं कि एक बार वह काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे। उन्होंने उन्हें बताया कि वो काम ढूंढ रहे हैं। उन्हें यहां काम मिला लेकिन लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले जरूरी सामानों को उठाकर इधर से उधर रखना होता था। वो काम दिल लगाकर करते और फिर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा।

सेट पर लाइट चेक करने के लिए हीरो की जगह किया जाता था खड़ा

कई बार फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार जब शॉट शुरू होने से बस थोड़ी ही देर पहले पहुंचते। सेट पर हीरो के ऊपर लाइट कैसे पड़ेगी इन चीजों को चेक करने के लिए मनोज कुमार को हीरो की जगह खड़ा किया जाता। एक दिन ऐसे ही वो खड़े थे और लाइट में उनका चेहरा इतना आकर्षक दिख रहा था कि डायरेक्टर ने उन्हें (1957 में आई फिल्म फैशन में) एक छोटा रोल ही दे दिया। यहीं से फिल्मों में उनका सफर शुरू हो गया। इसके बाद तो मनोज कुमार को बैक टु बैक फिल्में मिलने लगीं और एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए।

मनोज कुमार ने इमरजेंसी का किया विरोध तो हुआ बड़ा नुकसान

यूं तो मनोज कुमार और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच सबकुछ सही था, लेकिन जब इमरजेंसी की घोषणा हुई तो एक्टर ने इसका विरोध किया। बताया जाता है कि उन दिनों इमरजेंसी का विरोध करने वाले कई फिल्मी कलाकारों को बैन कर दिया गया, जिनमें मनोज कुमार की फिल्में भी थीं। उनकी फिल्म 'दस नंबरी' को फिल्म सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बैन कर दिया था। इतना ही नहीं उनकी फिल्म 'शोर' सिनेमाघरों में रिलीज हुई (जिसका निर्देशन और इसे प्रडयूस भी किया और एक्टिंग भी की थी) भी नहीं हुई कि पहले ही दूरदर्शन पर दिखा दी गई और नतीजा ये हुआ कि जब फिल्म सिनेमाघरों में लगी तो दर्शक देखने ही नहीं पहुंचे और फिल्म फ्लॉप हो गई।

भारत के इकलौते एक्टर, सरकार से जीत गए थे केस

बताया जाता है कि जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म 'शोर' को बैन कर दिया तो मनोज कुमार कोर्ट तक जा पहुंचे। कई हफ्तों तक कोर्ट के उन्होंने चक्कर लगाया और फैसला उनके ही पक्ष में आया। इसलिए कहा भी जाता है कि ये वो देश के इकलौते ऐसे फिल्ममेकर हैं जिन्होंने सरकार से केस जीता।

अमृता प्रीतम से पूछा- क्या आप बिक चुकी हैं?

रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार मनोज कुमार के पास 'इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट' की तरफ से फोन आया और पूछा गया कि क्या वो 'इमरजेंसी' पर बन रही डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन करना चाहेंगे? कहते हैं कि मनोज ने साफ इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि इस डॉक्यूमेंट्री को कोई और नहीं बल्कि मशहूर राइटर अमृता प्रीतम लिख रही हैं तो उन्होंने तुरंत उन्हें फोन लगाकर ये भी पूछा कि - क्या आप बिक चुकी हैं? और ये है सुनकर लेखिका भी उदास हो गईं। बताया जाता है कि आगे मनोज ने उनसे ये भी कहा था कि उन्हें इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रिप्ट फाड़ देनी चाहिए।

फिल्म क्रांति के लिए बेच दिया था अपना बंगला

ये फिल्म थी क्रांति, जो बॉक्स ऑफिस पर एक शानदार सफल साबित हुई. इस फिल्म में मनोज कुमार, दिलीप कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, प्रेम चोपड़ा, परवीन बॉबी, सारिका और निरूपा रॉय जैसे कई सितारे शामिल थे. क्रांति ने ब्रिटिश राज के खिलाफ़ एकजुट हुए क्रांतिकारी किसानों की कहानी को पेश किया. फिल्म ने अपने दमदार म्यूजिक और हार्ट टचिंग फीलिंग से आडियंस को खूब प्रभावित किया. क्रांति हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है. मनोज कुमार की डायरेक्शन में बनी इस फिल्म का स्क्रीन प्ले जावेद अख्तर, सलीम खान और खुद मनोज कुमार ने लिखी है.

फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की

यह फिल्म 13 फरवरी, 1981 को रिलीज हुई थी और सिनेमाघरों में जबरदस्त ऑडियंस को आकर्षित किया था. यह जल्द ही अपने समय की सबसे तेजी से कमाई करने वाली फिल्म बन गई, जिसने मुंबई और दक्षिण भारत को छोड़कर अधिकांश सर्किट में कई रिकॉर्ड स्थापित किए. रिपोर्ट के अनुसार, क्रांति ने बॉक्स ऑफिस पर 16 करोड़ रुपये की कमाई की. फिल्म ने 26 अलग-अलग केंद्रों में सिल्वर जुबली मनाकर उपलब्धियां हासिल की, जिसमें मिर्जापुर और जूनागढ़ जैसे कम प्रसिद्ध स्थान शामिल हैं. सिनेमा के इतिहास में केवल सीमित संख्या में फिल्में ही 25 से अधिक केंद्रों में जयंती मनाने का मील का पत्थर हासिल कर पाई हैं.

उनकी भूमिका ने उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया

मनोज कुमार हिंदी फिल्म उद्योग में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं. वह शहीद, रोटी कपड़ा और मकान, मैदान-ए-जंग, उपकार, पूरब और पश्चिम, शोर और मेरा नाम जोकर सहित कई सफल फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. अभिनेता ने 1957 की फिल्म फैशन से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की, लेकिन 1961 की फिल्म कांच की गुड़िया में सईदा खान के साथ उनकी भूमिका ने उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया.