जयंती विशेष : इकलौते एक्टर जो सरकार से जीत गए थे केस, शूटिंग के सामान और लाइट उठाने का मिला था काम, फिल्म क्रांति के लिए बेच दिया था अपना बंगला
दिल्ली : मनोज कुमार, बॉलीवुड के वो महानायक जिन्होंने हिन्दी फिल्मों को एक से बढ़कर एक शानदार फिल्में दीं। मनोज पर्दे पर अपनी फिल्मों के जरिए लोगों को देशभक्ति की भावना को गहराई से एहसास कराया। मनोज कुमार को हिन्दी फिल्मों में एक देशभक्त एक्टर के चेहरे के तौर पर जाना जाता है।
बताया जाता है कि एक्टर भगत सिंह से बेहद प्रभावित हैं और उन्होंने 'शहीद' जैसी देशभक्ति फिल्म में एक्टिंग की और कइयों के लिए प्रेरणा बन गए। हिन्दी सिनेमा में मनोज कुमार कई देशभक्ति फिल्मों में नजर आए। मनोज कुमार 24 जुलाई को अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं। आज यहां सुना रहे हैं एक्टर का वो किस्सा, जब मनोज कुमार के 2 माह के भाई ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था और मां को बचाने के लिए एक्टर ने नर्स और डॉक्टरों की लाठी से पिटाई शुरू कर दी थी। वहीं मनोज भारत के इकलौते फिल्ममेकर कहे जाते हैं जिन्होंने सरकार से केस जीता था।
नैशनल अवॉर्ड, दादा साहेब फाल्के, पद्मश्री अवॉर्ड और 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके मनोज कुमार की शुरुआती जिंदगी सितारों वाली नहीं थी बल्कि उन्हें तो एहसास भी नहीं था कि उनका ये रास्ता उन्हें कहां ले जा रहा।
मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को एबटाबाद , ब्रिटिश इंडिया (अब खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) में हुआ था। उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था। बताया जाता है कि उस समय मनोज केवल 10 साल के थे जब अपने 2 महीने के भाई को तड़प-तड़प कर दम तोड़ते देखा था।
2 महीने भाई तपड़ कर मर गया, मां दर्द से चिल्लाती थीं
दरअसल हुआ यूं कि छोटे भाई कुक्कू के जन्म के बाद मां और भाई दोनों को हॉस्पिटलाइज कराया गया था। उसी दौरान दंगा भड़का और हॉस्पिटल के स्टाफ जान बचाने के लिए भागने लगे थे। कहते हैं कि उसी अफरा-तफरी में इलाज न मिलने की वजह से नन्हे भाई ने दम तोड़ दिया।
वहीं मां की हालत भी काफी खराब थी और वो तकलीफ की वजह से चिल्लाती रहती थीं। वहां कोई डॉक्टर या नर्स उनका इलाज करने नहीं पहुंचता। छोटी सी उम्र में अपनी आंखों के सामने ये सब होते देख आखिरकार मनोज एकदम परेशान हो गए। वो अब अपनी मां को भाई की तरह खोना नहीं चाहते थे।
कहते हैं कि एक दिन परेशान होकर उन्होंने लाठी उठा ली और छिपे हुए डॉक्टरों और नर्सों को पीटना शुरू किया। जैसे-तैसे पिता ने उन्हें रोका और फिर उन्होंने परिवार की जान बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ने का फैसला ले लिया।
पाकिस्तान से आकर 2 महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए
यहां दिल्ली पहुंचकर उन्होंने 2 महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए और वक्त के साथ जब दंगे कम होने लगे तो वो लोग दिल्ली में बस गए और फिर मनोज की पढ़ाई-लिखाई शुरू हुई। हिंदू कॉलेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई के बाद उन्होंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी।
लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले समान उठाने का मिला था काम
फिल्मों में आने का किस्सा भी काफी मजेदार है। कहते हैं कि एक बार वह काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे। उन्होंने उन्हें बताया कि वो काम ढूंढ रहे हैं। उन्हें यहां काम मिला लेकिन लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले जरूरी सामानों को उठाकर इधर से उधर रखना होता था। वो काम दिल लगाकर करते और फिर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा।
सेट पर लाइट चेक करने के लिए हीरो की जगह किया जाता था खड़ा
कई बार फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार जब शॉट शुरू होने से बस थोड़ी ही देर पहले पहुंचते। सेट पर हीरो के ऊपर लाइट कैसे पड़ेगी इन चीजों को चेक करने के लिए मनोज कुमार को हीरो की जगह खड़ा किया जाता। एक दिन ऐसे ही वो खड़े थे और लाइट में उनका चेहरा इतना आकर्षक दिख रहा था कि डायरेक्टर ने उन्हें (1957 में आई फिल्म फैशन में) एक छोटा रोल ही दे दिया। यहीं से फिल्मों में उनका सफर शुरू हो गया। इसके बाद तो मनोज कुमार को बैक टु बैक फिल्में मिलने लगीं और एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए।
मनोज कुमार ने इमरजेंसी का किया विरोध तो हुआ बड़ा नुकसान
यूं तो मनोज कुमार और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच सबकुछ सही था, लेकिन जब इमरजेंसी की घोषणा हुई तो एक्टर ने इसका विरोध किया। बताया जाता है कि उन दिनों इमरजेंसी का विरोध करने वाले कई फिल्मी कलाकारों को बैन कर दिया गया, जिनमें मनोज कुमार की फिल्में भी थीं। उनकी फिल्म 'दस नंबरी' को फिल्म सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बैन कर दिया था। इतना ही नहीं उनकी फिल्म 'शोर' सिनेमाघरों में रिलीज हुई (जिसका निर्देशन और इसे प्रडयूस भी किया और एक्टिंग भी की थी) भी नहीं हुई कि पहले ही दूरदर्शन पर दिखा दी गई और नतीजा ये हुआ कि जब फिल्म सिनेमाघरों में लगी तो दर्शक देखने ही नहीं पहुंचे और फिल्म फ्लॉप हो गई।
भारत के इकलौते एक्टर, सरकार से जीत गए थे केस
बताया जाता है कि जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म 'शोर' को बैन कर दिया तो मनोज कुमार कोर्ट तक जा पहुंचे। कई हफ्तों तक कोर्ट के उन्होंने चक्कर लगाया और फैसला उनके ही पक्ष में आया। इसलिए कहा भी जाता है कि ये वो देश के इकलौते ऐसे फिल्ममेकर हैं जिन्होंने सरकार से केस जीता।
अमृता प्रीतम से पूछा- क्या आप बिक चुकी हैं?
रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार मनोज कुमार के पास 'इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट' की तरफ से फोन आया और पूछा गया कि क्या वो 'इमरजेंसी' पर बन रही डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन करना चाहेंगे? कहते हैं कि मनोज ने साफ इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि इस डॉक्यूमेंट्री को कोई और नहीं बल्कि मशहूर राइटर अमृता प्रीतम लिख रही हैं तो उन्होंने तुरंत उन्हें फोन लगाकर ये भी पूछा कि - क्या आप बिक चुकी हैं? और ये है सुनकर लेखिका भी उदास हो गईं। बताया जाता है कि आगे मनोज ने उनसे ये भी कहा था कि उन्हें इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रिप्ट फाड़ देनी चाहिए।
फिल्म क्रांति के लिए बेच दिया था अपना बंगला
ये फिल्म थी क्रांति, जो बॉक्स ऑफिस पर एक शानदार सफल साबित हुई. इस फिल्म में मनोज कुमार, दिलीप कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, प्रेम चोपड़ा, परवीन बॉबी, सारिका और निरूपा रॉय जैसे कई सितारे शामिल थे. क्रांति ने ब्रिटिश राज के खिलाफ़ एकजुट हुए क्रांतिकारी किसानों की कहानी को पेश किया. फिल्म ने अपने दमदार म्यूजिक और हार्ट टचिंग फीलिंग से आडियंस को खूब प्रभावित किया. क्रांति हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है. मनोज कुमार की डायरेक्शन में बनी इस फिल्म का स्क्रीन प्ले जावेद अख्तर, सलीम खान और खुद मनोज कुमार ने लिखी है.
फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की
यह फिल्म 13 फरवरी, 1981 को रिलीज हुई थी और सिनेमाघरों में जबरदस्त ऑडियंस को आकर्षित किया था. यह जल्द ही अपने समय की सबसे तेजी से कमाई करने वाली फिल्म बन गई, जिसने मुंबई और दक्षिण भारत को छोड़कर अधिकांश सर्किट में कई रिकॉर्ड स्थापित किए. रिपोर्ट के अनुसार, क्रांति ने बॉक्स ऑफिस पर 16 करोड़ रुपये की कमाई की. फिल्म ने 26 अलग-अलग केंद्रों में सिल्वर जुबली मनाकर उपलब्धियां हासिल की, जिसमें मिर्जापुर और जूनागढ़ जैसे कम प्रसिद्ध स्थान शामिल हैं. सिनेमा के इतिहास में केवल सीमित संख्या में फिल्में ही 25 से अधिक केंद्रों में जयंती मनाने का मील का पत्थर हासिल कर पाई हैं.
उनकी भूमिका ने उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया
मनोज कुमार हिंदी फिल्म उद्योग में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं. वह शहीद, रोटी कपड़ा और मकान, मैदान-ए-जंग, उपकार, पूरब और पश्चिम, शोर और मेरा नाम जोकर सहित कई सफल फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. अभिनेता ने 1957 की फिल्म फैशन से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की, लेकिन 1961 की फिल्म कांच की गुड़िया में सईदा खान के साथ उनकी भूमिका ने उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया.
Jul 24 2024, 17:53