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EVM की गड़बड़ी से हार गए..', कहने वाले उम्मीदवारों के लिए चुनाव आयोग ने लिया बड़ा फैसला, अब मिलेंगे ये विकल्प

''EVM में गड़बड़ी थी, इसलिए हम हार गए।'' अक्सर चुनावों में हारने वाले उम्मीदवारों, पार्टियों और उनके समर्थकों के मुंह से आपने ये बातें जरूर सुनी होंगी। लेकिन अब चुनाव आयोग ने इसका तोड़ निकाल लिया है। अब निर्वाचन आयोग असंतुष्ट उम्मीदवारों को बड़ी छूट देने जा रहा है। दरअसल, चुनाव आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ की जांच के लिए आवेदन करने वाले असंतुष्ट उम्मीदवारों के लिए कई विकल्प उपलब्ध कराए हैं। इन विकल्पों में विधानसभा क्षेत्र के किसी भी मतदान केंद्र से ईवीएम का चयन करना और मॉक पोल और मॉक वीवीपैट स्लिप काउंटिंग का विकल्प चुनना शामिल है।

चुनाव आयोग द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध विभिन्न यादृच्छिक परीक्षणों की रूपरेखा दी गई है। यह सुनिश्चित करता है कि नियंत्रित वातावरण से परे बर्न मेमोरी की जांच और सत्यापन प्रक्रिया फर्मवेयर में किसी भी पूर्वाग्रह या छिपी हुई कार्यक्षमता को हटा देती है। चुनाव आयोग को 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ईवीएम के माइक्रो-कंट्रोलर चिप्स में छेड़छाड़ या संशोधन के सत्यापन की मांग करने वाले कांग्रेस सहित विपक्ष के असंतुष्ट उम्मीदवारों से आठ आवेदन मिले हैं।

इससे पहले, 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम में हेरफेर के बारे में चिंताओं को "निराधार" बताते हुए पुरानी पेपर बैलट प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया था। न्यायालय ने दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे असफल उम्मीदवारों को चुनाव आयोग को लिखित अनुरोध करके और शुल्क देकर प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम में माइक्रो-कंट्रोलर चिप्स को सत्यापित करने की अनुमति भी दी।

योग्य उम्मीदवार सत्यापन के लिए विधानसभा क्षेत्र के भीतर मतदान केंद्रों या मशीनों की क्रम संख्या निर्दिष्ट कर सकते हैं, बशर्ते कि यह उस क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली ईवीएम के अधिकतम पांच प्रतिशत को कवर करे। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि आवेदक की पसंद के अनुसार पूरे निर्वाचन क्षेत्र से ईवीएम का चयन किया जाता है, बिना किसी तीसरे पक्ष या आधिकारिक भागीदारी के।

उम्मीदवार विधानसभा क्षेत्र के किसी भी मतदान केंद्र से ईवीएम इकाइयों को मिला सकते हैं। यदि किसी मतदान केंद्र से एक विशिष्ट इकाई का चयन किया जाता है, तो उसी सेट से अन्य इकाइयों की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बजाय, उम्मीदवार निर्वाचन क्षेत्र के भीतर अन्य मतदान केंद्रों से अपनी पसंद की इकाइयों को मिला सकते हैं। प्रत्येक ईवीएम में कम से कम एक बैलट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपीएटी या पेपर ट्रेल मशीन होती है।

सभी चयनित ईवीएम इकाइयों का स्व-निदान किया जाएगा, और बर्न मेमोरी विश्वसनीयता सहित कई विद्युत मापदंडों की जाँच की जाएगी। केवल स्व-निदान वाली इकाइयाँ ही आगे के सत्यापन के लिए आगे बढ़ेंगी। चुनी गई ईवीएम इकाइयों को पहले स्व-निदान से गुजरना होगा, उसके बाद पारस्परिक प्रमाणीकरण होगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वास्तविक इकाइयाँ ही जुड़ी हुई हैं। यह प्रक्रिया नकली या अनधिकृत इकाइयों को ईसीआई-ईवीएम के साथ इंटरफेस करने से रोकती है।

उम्मीदवार मॉक पोल के लिए कोई भी क्रम या पैटर्न चुन सकते हैं, जिसकी अधिकतम सीमा 1400 वोट है। वीवीपैट पर्चियों की गिनती आयोग द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करेगी। 4 जून को परिणाम घोषित होने के बाद ईवीएम की बर्न मेमोरी या माइक्रोकंट्रोलर की पुष्टि के लिए लोकसभा चुनाव के लिए कुल आठ और विधानसभा चुनाव के लिए तीन आवेदन प्राप्त हुए।

जल्द शादी करेंगी तमन्ना भाटिया! इस अभिनेता संग लेंगी सात फेरे! जानिए कब शुरू हुई लव स्टोरी

फिल्म एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया इन दिनों सुर्खियों में चल रही है। तमन्ना भाटिया और विजय वर्मा का अफेयर इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। विजय वर्मा और तमन्ना भाटिया की लव स्टोरी वेब सीरिज लस्ट स्टोरी के सेट पर शुरू हुई थी। इस सीरीज में दोनों काफी बोल्ड सीन दिए थे। एक्टर विजय वर्मा ओटीटी पर धूम मचा रहे हैं। इस बीच वे अपनी शादी को लेकर चर्चा में आ गए हैं। 

विजय से कई बार तमन्ना संग उनकी शादी को लेकर सवाल किए जा चुके हैं. इस बार एक्टर ने अपने वेडिंग प्लान्स का खुलासा कर दिया है.

तमन्ना भाटिया और विजय वर्मा पिछले काफी समय से अपने रिलेशनशिप को लेकर चर्चा में हैं। विजय वर्मा और तमन्ना की जोड़ी को 'लस्ट स्टोरीज 2' में खूब पसंद किया गया था, और उनके बीच इंटिमेट सीन्स भी थे। इस सीरीज के कुछ दिन बाद विजय वर्मा और तमन्ना ने अपना रिलेशनशिप ऑफिशियल कर दिया था।

हालांकि फैंस Vijay Varma और Tamannaah Bhatia के रिलेशनशिप को डेढ़ साल से सेलिब्रेट कर रहे हैं। दोनों के अफेयर के चर्चे तब शुरू हुए थे, जब गोवा में न्यू ईयर पार्टी से उनके किसिंग की तस्वीरें सामने आई थीं। तभी से उनके अफेयर की चर्चा शुरू हो होने लगी थी, जिन्हें तब और हवा मिली जब Lust Stories 2 के लिए विजय और तमन्ना के नाम की घोषणा की गई।

बता दें कि, विजय वर्मा और तमन्ना भाटिया की लव स्टोरी वेब सीरिज लस्ट स्टोरी के सेट पर शुरू हुई थी. इस सीरीज में दोनों काफी बोल्ड सीन दिए थे.

विजय वर्मा ने बताया था कि उन्होंने और तमन्ना ने 'लस्ट स्टोरीज 2' के बाद एक-दूसरे को डेट करना शुरू किया। पहली डेट पर जाने में उन्हें 20-25 दिन लगे। उन्होंने तमन्ना से एक यूट्यूब चैनल पर बातचीत में कहा, 'लस्ट स्टोरीज 2' तो हमारे लिए सिर्फ एक क्यूपिड की तरह रही, लेकिन असल जिंदगी की प्रेम कहानी बाद में शुरू हुई। हम 'लस्ट स्टोरीज 2' के बाद एक रैप पार्टी करने की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। पार्टी में सिर्फ चार लोग आए, और उस दिन मुझे महसूस हुआ। मैंने तमन्ना से कहा कि मैं तुम्हारे साथ और हैंगआउट करना चाहता हूं। पार्टी के बाद पहली डेट होने में 20-25 दिन लग गए।'

वहीं, तमन्ना भाटिया ने विजय वर्मा संग रिलेशनशिप के बारे में 'फिल्म कंपैनियन' से कहा था कि एक्टर ने उन्हें बिना किसी एटिट्यूड के अप्रोच किया था। तमन्ना ने कहा था कि विजय वर्मा के साथ उन्हें काफी खुश महसूस होता है, और वह उनकी बहुत परवाह करते हैं। प्रोफेशनल फ्रंट की बात करें, तो विजय वर्मा हाल ही 'मर्डर मुबारक' में नजर आए थे, और 'मिर्जापुर सीरीज 3' में भी नजर आए।

बंद करिए सबका साथ, सबका विकास का नारा, अल्पसंख्यक मोर्चे की भी जरूरत नहीं’, शुभेंदु अधिकारी का ये कैसा बयान

#bjp_leader_suvendu_adhikari_said_stop_everyone_support_everyone_development

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था। 10 साल बाद अब नारे का पश्चिम बंगाल भाजपा विधायक और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने विरोध किया है। पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा है क‍ि ‘सबका साथ-सबका विकास’ नहीं चाह‍िए। पार्टी को तुरंत अल्‍संख्‍यक मोर्चा भंग कर देना चाह‍िए।बंगाल के चुनावों में मिली हार और ह‍िन्‍दुओं पर हो रहे हमले को लेकर उन्‍होंने यह बयान दिया, जिसके बाद सियासी भूचाल आ गया है।

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शुभेंदु अधिकारी ने अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि 'मैं राष्ट्रवादी मुस्लिमों की बात करता था और आपने भी नारा दिया था कि 'सबका साथ, सबका विकास', लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कहूंगा। इसकी जगह मैं कहूंगा कि 'जो हमारे साथ, हम उनके साथ'। बंद करिए ये 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा। हमें अल्पसंख्यक मोर्चे की भी जरूरत नहीं है।'

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि 'हम जीतेंगे, हम हिंदुओं को बचाएंगे और संविधान को बचाएंगे।' इसके बाद शुभेंदु अधिकारी ने जय श्री राम के नारे लगाए और भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी तालियां बजाकर उनका स्वागत किया।

अधिकारी की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब वोटिंग पैटर्न के विश्लेषण से पता चला है कि बंगाल में बीजेपी की जीत में अल्पसंख्यक समुदाय बड़ी बाधा बनकर उभरा है। हाल ही में शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव और हालिया उपचुनाव में 50 लाख हिंदुओं को वोट नहीं देने दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि बंगाल में लोकतंत्र मर चुका है।

लोकसभा चुनाव 2024 में पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में बीजेपी के खाते में केवल 12 सीटें आई। 2019 में 18 सीट पर जीत मिली थी। बीजेपी को इस बार 6 सीट का नुकसान हुआ। बीजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 30 सीटें जीतने का टारगेट रखा था। सीएए, आरक्षण, संदेशखाली और करप्शन जैसे मुद्दे उठाने के बावजूद पार्टी कामयाब नहीं हो पाई। पार्टी के बड़े नेता जैसे निशीथ प्रमाणिक, लॉकेट चटर्जी और एसएस आहलूवालिया अपनी सीट नहीं बचा पाए।

15 जुलाई को पश्चिम बंगाल की 4 विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का रिजल्ट आया था। बीजेपी को यहां भी नुकसान हुआ। ममता बनर्जी की टीएमसी ने चारों पर जीत दर्ज की। जिन सीटों को बीजेपी को हार मिली, पिछली बार इनमें से 3 सीटें भाजपा के पास थीं, लेकिन इस बार टीएमसी ने तीनों सीटें छीन लीं।

लगातार पांचवें साल मानसरोवर की यात्रा नहीं कर सकेंगे श्रद्धालु, दोनों आधिकारिक रास्ते बंद, चीन की ये कैसी चाल

#kailash_manasarovar_yatra_india_china_agreement

चीन लाख दुहाई दे की भारत के साथ वो रिश्ते सुधारना चाहती है, हालांकि ऐसा है नहीं। चीन हर बार उस मौके की तलाश में होता है, जिससे भारत को परेशान किया जा सके। कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है।भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा 2020 से लगातार पांचवें साल भी बंद है।महामारी के कारण सीमा चार साल तक बंद रही और पिछले साल अप्रैल में फिर से खोल दी गई। हालांकि, कड़े नियमों के चलते भारतीयों के लिए ये व्यावहारिक रूप से बंद है। कोरोना को यात्रा बंद होने का कारण बताया जा रहा है, लेकिन असल में 2020 से भारत-चीन सीमा तनाव के बाद से यह चीन की एक रणनीति लगती है।

हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच स्थित ओल्ड लिपुपास, भारत को चीन से जोड़ता है, साथ ही कैलाश मानसरोवर जाने का सबसे पुराना प्रमुख मार्ग भी रहा है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है और हर साल हजारों श्रद्धालु इसकी परिक्रमा करने के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिस्सा बनते रहे हैं। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के लिए भारत को चीन पर निर्भर होना पड़ता था। बावजूद इसके चीन ने लगातार 5 वें साल भी यात्रा की अनुमति नहीं दी है।

न्यूज़18 को विदेश मंत्रालय द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में दिए गए आरटीआई जवाब मिले हैं, जिसमें चीन के साथ 2013 और 2014 में किए गए दो समझौतों की प्रतियां हैं। दोनों समझौतों में यह स्पष्ट किया गया है कि चीन बिना किसी पूर्व सूचना के समझौतों को एकतरफा तरीके से समाप्त नहीं कर सकता। उनका कहना है कि किसी भी तरह का संशोधन आम सहमति से ही होना चाहिए।

पहला समझौता

2013 में हुए पहले समजझौते के मुताबिक तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुआ था। इसमें लिपुलेख दर्रे से यात्रा का रास्ता खोला गया था। पहले समझौते के मुताबिक, यह 2013 से पांच साल के लिए वैलिड था और हर पांच साल के लिए अपने आप बढ़ता जाएगा, जब तक कि कोई पक्ष छह महीने पहले लिखित नोटिस न दे। समझौते में कहा गया है कि दोनों पक्ष सहमति से इसमें बदलाव कर सकते हैं।

दूसरा समझौता

2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वांग यी के बीच नाथू ला दर्रे से यात्रा शुरू करने के लिए दूसरा समझौता हुआ था। दूसरे समझौते में भी ऐसी ही कुछ बात थी। समझौते में कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारतीय तीर्थयात्री टूर ऑपरेटरों के जरिए कैलाश मानसरोवर जाते हैं। चीन ने इन तीर्थयात्रियों को जरूरी सुविधाएं देने पर सहमति जताई थी। दूसरे समझौते में कहा गया कि भारतीय तीर्थयात्री नाथू ला दर्रे से चीन में प्रवेश या निकल सकेंगे। इसकी प्रक्रिया राजनयिक माध्यमों से तय हुई थी। तीसरा विकल्प नेपाल के रास्ते निजी ऑपरेटरों के जरिए चीन जाना था। सभी मामलों में भारतीयों को चीन का वीजा चाहिए था।

भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प

भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प नेपाल जाना और फिर निजी ऑपरेटरों के माध्यम से चीन में प्रवेश करना था। सभी मामलों में, भारतीयों को माउंट कैलाश और मानसरोवर की यात्रा करने के लिए चीन से वीज़ा की आवश्यकता थी। जबकि दोनों आधिकारिक मार्ग बंद हैं, चीन ने पिछले साल नेपाल की ओर से अपनी सीमाएं खोल दीं, लेकिन विदेशियों, विशेष रूप से भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए और शुल्क बढ़ाने सहित कई प्रतिबंध लगा दिए, जिससे भारतीयों के लिए नेपाल के माध्यम से माउंट कैलाश जाना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया।

 

ज़्यादातर लोगों को लगता है कि कैलाश मानसरोवर भारत में होगा जबकि ऐसा है नहीं।कैलाश मानसरोवर एक भारतीय तीर्थस्थल है लेकिन यहां जाने के लिए चीन की सीमा में प्रवेश करना पड़ता है। ऐसे में यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा लेना होता है। आप समझिए कि आप नेपाल से जाएं या सिक्क्मि से जाएं आपको चीन का बॉर्डर पार करना ही पड़ेगा। सरहद पार करने के बाद पांच दिन यात्रा करके आप मानसरोवर पहुंचते हैं जहां दायचिंग बेस कैंप है। वहां से फिर आपको तीन दिन मानसरोवर की परिक्रमा करने में लगते हैं। फिर वापसी में पांच दिन और लगते हैं। 

तो ये समझ लीजिए कि चीन जब चाहे, जहां चाहे, इस यात्रा को रोक सकता है। एक तो बॉर्डर पर ही वो यात्रियों को रोक सकता है और इसके बाद यात्रियों के जत्थे को अपनी सीमा में जहां चाहे रोक कर वापस कर सकता है। क्योंकि ये सामान्य कानून है कि आप जिस देश में हैं उस देश के क़ानून का आपको पालन करना ही पड़ेगा। मानसरोवर की यात्रा कठिन होती है। बर्फ़ीले रास्तों पर चलना होता है। चीन में सरहद पार करने के बाद आप बस या कार से यात्रा करते हैं और फिर पहुंचते हैं दायचिंग के इलाक़े में जहां बेस कैंप है। कई बार चीनी अधिकारी आपको मानसरोवर झील के पास कैंप करने से भी रोक देते हैं और कहते हैं कि कैंपिंग कहीं और करें। ये सब उनके अधिकार क्षेत्र में है। वो मौसम ख़राब होने की बात कह कर भी यात्रा को बाधित कर सकते हैं।

समुद्र तल से 17 हजार फीट ऊंचे उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रे से हर साल यह यात्रा जून माह में शुरू होती थी।प्राचीन काल से ही यह यात्रा लिपूलेख दर्रे से होती रही है। वर्ष 1962 के भारत -चीन युद्ध के बाद भी इस यात्रा को दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों के कारण पूरी तरह से बंद कर दिया गया। तब डेढ़ दशक से अधिक समय बाद यह यात्रा वर्ष 1981 में फिर शुरू की सकी । तब से कोरोना काल से पूर्व तक इस मार्ग से 16 हजार 800 से अधिक देश भर के लोगों ने शिवधाम मानसरोवर जाकर अपने अराध्य के दर्शन किए। लेकिन पिछले पांच सालों से चीन ने अपनी चालाकियां दिखाते हुए यात्रा का बाधित किया है।

लगातार पांचवें साल मानसरोवर की यात्रा नहीं कर सकेंगे श्रद्धालु, दोनों आधिकारिक रास्ते बंद, चीन की ये कैसी चाल

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चीन लाख दुहाई दे की भारत के साथ वो रिश्ते सुधारना चाहती है, हालांकि ऐसा है नहीं। चीन हर बार उस मौके की तलाश में होता है, जिससे भारत को परेशान किया जा सके। कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है।भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा 2020 से लगातार पांचवें साल भी बंद है।महामारी के कारण सीमा चार साल तक बंद रही और पिछले साल अप्रैल में फिर से खोल दी गई। हालांकि, कड़े नियमों के चलते भारतीयों के लिए ये व्यावहारिक रूप से बंद है। कोरोना को यात्रा बंद होने का कारण बताया जा रहा है, लेकिन असल में 2020 से भारत-चीन सीमा तनाव के बाद से यह चीन की एक रणनीति लगती है।

हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच स्थित ओल्ड लिपुपास, भारत को चीन से जोड़ता है, साथ ही कैलाश मानसरोवर जाने का सबसे पुराना प्रमुख मार्ग भी रहा है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है और हर साल हजारों श्रद्धालु इसकी परिक्रमा करने के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिस्सा बनते रहे हैं। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के लिए भारत को चीन पर निर्भर होना पड़ता था। बावजूद इसके चीन ने लगातार 5 वें साल भी यात्रा की अनुमति नहीं दी है।

न्यूज़18 को विदेश मंत्रालय द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में दिए गए आरटीआई जवाब मिले हैं, जिसमें चीन के साथ 2013 और 2014 में किए गए दो समझौतों की प्रतियां हैं। दोनों समझौतों में यह स्पष्ट किया गया है कि चीन बिना किसी पूर्व सूचना के समझौतों को एकतरफा तरीके से समाप्त नहीं कर सकता। उनका कहना है कि किसी भी तरह का संशोधन आम सहमति से ही होना चाहिए।

पहला समझौता

2013 में हुए पहले समजझौते के मुताबिक तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुआ था। इसमें लिपुलेख दर्रे से यात्रा का रास्ता खोला गया था। पहले समझौते के मुताबिक, यह 2013 से पांच साल के लिए वैलिड था और हर पांच साल के लिए अपने आप बढ़ता जाएगा, जब तक कि कोई पक्ष छह महीने पहले लिखित नोटिस न दे। समझौते में कहा गया है कि दोनों पक्ष सहमति से इसमें बदलाव कर सकते हैं।

दूसरा समझौता

2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वांग यी के बीच नाथू ला दर्रे से यात्रा शुरू करने के लिए दूसरा समझौता हुआ था। दूसरे समझौते में भी ऐसी ही कुछ बात थी। समझौते में कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारतीय तीर्थयात्री टूर ऑपरेटरों के जरिए कैलाश मानसरोवर जाते हैं। चीन ने इन तीर्थयात्रियों को जरूरी सुविधाएं देने पर सहमति जताई थी। दूसरे समझौते में कहा गया कि भारतीय तीर्थयात्री नाथू ला दर्रे से चीन में प्रवेश या निकल सकेंगे। इसकी प्रक्रिया राजनयिक माध्यमों से तय हुई थी। तीसरा विकल्प नेपाल के रास्ते निजी ऑपरेटरों के जरिए चीन जाना था। सभी मामलों में भारतीयों को चीन का वीजा चाहिए था।

भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प

भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प नेपाल जाना और फिर निजी ऑपरेटरों के माध्यम से चीन में प्रवेश करना था। सभी मामलों में, भारतीयों को माउंट कैलाश और मानसरोवर की यात्रा करने के लिए चीन से वीज़ा की आवश्यकता थी। जबकि दोनों आधिकारिक मार्ग बंद हैं, चीन ने पिछले साल नेपाल की ओर से अपनी सीमाएं खोल दीं, लेकिन विदेशियों, विशेष रूप से भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए और शुल्क बढ़ाने सहित कई प्रतिबंध लगा दिए, जिससे भारतीयों के लिए नेपाल के माध्यम से माउंट कैलाश जाना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया।

 

ज़्यादातर लोगों को लगता है कि कैलाश मानसरोवर भारत में होगा जबकि ऐसा है नहीं।कैलाश मानसरोवर एक भारतीय तीर्थस्थल है लेकिन यहां जाने के लिए चीन की सीमा में प्रवेश करना पड़ता है। ऐसे में यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा लेना होता है। आप समझिए कि आप नेपाल से जाएं या सिक्क्मि से जाएं आपको चीन का बॉर्डर पार करना ही पड़ेगा। सरहद पार करने के बाद पांच दिन यात्रा करके आप मानसरोवर पहुंचते हैं जहां दायचिंग बेस कैंप है। वहां से फिर आपको तीन दिन मानसरोवर की परिक्रमा करने में लगते हैं। फिर वापसी में पांच दिन और लगते हैं। 

तो ये समझ लीजिए कि चीन जब चाहे, जहां चाहे, इस यात्रा को रोक सकता है। एक तो बॉर्डर पर ही वो यात्रियों को रोक सकता है और इसके बाद यात्रियों के जत्थे को अपनी सीमा में जहां चाहे रोक कर वापस कर सकता है। क्योंकि ये सामान्य कानून है कि आप जिस देश में हैं उस देश के क़ानून का आपको पालन करना ही पड़ेगा। मानसरोवर की यात्रा कठिन होती है। बर्फ़ीले रास्तों पर चलना होता है। चीन में सरहद पार करने के बाद आप बस या कार से यात्रा करते हैं और फिर पहुंचते हैं दायचिंग के इलाक़े में जहां बेस कैंप है। कई बार चीनी अधिकारी आपको मानसरोवर झील के पास कैंप करने से भी रोक देते हैं और कहते हैं कि कैंपिंग कहीं और करें। ये सब उनके अधिकार क्षेत्र में है। वो मौसम ख़राब होने की बात कह कर भी यात्रा को बाधित कर सकते हैं।

समुद्र तल से 17 हजार फीट ऊंचे उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रे से हर साल यह यात्रा जून माह में शुरू होती थी।प्राचीन काल से ही यह यात्रा लिपूलेख दर्रे से होती रही है। वर्ष 1962 के भारत -चीन युद्ध के बाद भी इस यात्रा को दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों के कारण पूरी तरह से बंद कर दिया गया। तब डेढ़ दशक से अधिक समय बाद यह यात्रा वर्ष 1981 में फिर शुरू की सकी । तब से कोरोना काल से पूर्व तक इस मार्ग से 16 हजार 800 से अधिक देश भर के लोगों ने शिवधाम मानसरोवर जाकर अपने अराध्य के दर्शन किए। लेकिन पिछले पांच सालों से चीन ने अपनी चालाकियां दिखाते हुए यात्रा का बाधित किया है।

कंचनजंगा ट्रेन हादसे में रेलवे ने लोको पायलट को दी क्लीन चिट, CCRS की रिपोर्ट में बताया गया कहां हुई थी चूक

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पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में 17 जून को कंचनजंगा एक्सप्रेस और मालगाड़ी की हुई टक्कर मामले में चीफ कमिश्नर रेलवे सेफ्टी (CCRS) जनक कुमार गर्ग की रिपोर्ट आ गई है। रेलवे सुरक्षा के मुख्य आयुक्त (CCRS) की रिपोर्ट ने कंचनजंगा ट्रेन के लोको पायलट को 17 जून को हुए हादसे के लिए दोषी नहीं पाया है। इसमें ट्रेन एक्सीडेंट कैटेगरी 'एरर इन ट्रेन वर्किंग' बताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें अकेले लोको पायलट, एएलपी या फिर गार्ड की गलती नहीं थी, बल्कि संयुक्त रूप से स्टेशन मैनेजर और ट्रेन संचालन से संबंधित कई अधिकारियों के स्तर पर 'चूक' हुई थी। जिस वजह से यह ट्रेन एक्सीडेंट हुआ और मालगाड़ी के पायलट और कंचनजंगा के गार्ड समेत हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऑटो सिग्नल क्षेत्रों में ट्रेन परिचालन प्रबंधन में कई लेवल पर खामियों, लोको पायलट और स्टेशन मास्टर को उचित परामर्श न दिए जाने से कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसा होना तय ही था।' रिपोर्ट के मुताबिक, हादसे के दिन वहां से गुजरने वाले अधिकतर लोको पायलट्स को इसकी जानकारी ही नहीं थी कि खराब सिग्नल हो तो ट्रेन 15 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चलानी है। सिग्नल खराब होने पर भी मालगाड़ी और कंचनजंगा एक्सप्रेस के अलावा 5 अन्य ट्रेनों ने प्रवेश किया। हालांकि, कंचनजंगा को छोड़कर किसी भी ट्रेन ने 15 किमी प्रतिघंटा की गति और खराब सिग्नल पर रुकने के रेलवे के नियम का पालन नहीं किया। इससे पता चलता है कि खराब सिग्नलिंग पर जारी होने वाले प्रोटोकॉल में क्या करना है इसे लेकर कोई स्पष्टता ही नहीं थी।

जांच में पाया गया कि मालगाड़ी 78 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल कर रही थी। तभी लोको पायलट ने कंचनजंगा एक्सप्रेस के पिछले हिस्से को देखा और आपातकालीन ब्रेक लगाया। लेकिन ट्रेन कंचनजंगा से टकराने से पहले केवल 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक ही धीमी हो सकी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिल ने 5 मिनट में 10 बार थ्रॉटल को एडजस्ट किया था, जो उनकी सतर्कता को दर्शाता है।

अनिल को क्लीन चिट मिलने के बाद उनकी पत्नी रोशनी कुमार ने कहा कि ट्रेन हादसे के कुछ ही घंटों के भीतर मेरे पति को दोषी ठहराया गया था। उनकी मौत का गम अभी मिटा भी नहीं था कि अनिल को जिम्मेदार ठहराए जाने की बात सुनकर हम सदमे में आ गए। हमें खुशी है कि रेलवे ने उचित जांच की और उन्हें निर्दोष पाया। अब उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। बता दें कि हादसे के दो घंटे के भीतर ही रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया वर्मा सिन्हा और अन्य रेलवे अधिकारियों ने यह मान लिया था कि मृतक लोको पायलट और उनके घायल सहायक की गलती थी।

महाराष्ट्र में अब लड़कों के लिए लाडला भाई योजना, युवाओं को हर महीने 6 से 10 हजार रुपये देगी सरकार

डेस्क: विधानसभा चुनाव से पहले महायुति सरकार ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। महाराष्ट्र सरकार ने लाडली बहना के बाद अब लाडला भाई योजना लाने का ऐलान किया है। इसके स्कीम के तहत 12वीं पास करने वाले छात्रों को हर महीने छह हजार रुपये दिए जाएंगे। महाराष्ट्र सरकार ने इस योजना के तहत डिप्लोमा कर रहे छात्रों को हर महीने आठ हजार और ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी करने वालों को हर महीने 10 हजार रुपये देने का फैसला किया है। 

सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि सरकार की नजर लड़का-लड़की में फर्क नहीं है, यह योजना बेरोजगारी का समाधान लाएगी। लाडला भाई योजना में युवाओं को फैक्ट्रियों में अप्रेंटिसशिप मिलेगी और सरकार की तरफ से उन्हें वजीफा दिया जाएगा। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार हाल ही में लाडली बहना योजना लाई थी, जिसके तहत 21 वर्ष से 60 वर्ष के बीच की सभी पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है।

बता दें कि विधानसभा सत्र के दौरान शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बेरोजगारी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार के तर्ज पर महिलाओं और युवाओं को आर्थिक सहायता देने की मांग की थी। इसके बाद अजित पवार अपने दूसरे बजट में लाडली बहना स्कीम लेकर आए। अब लाडला भाई योजना की घोषणा की गई है। 

माना जा रहा है कि यह लाडली बहना और लाडला भाई चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकता है। बेरोजगारी के मुद्दे पर घिरी सरकार इस सहायता से युवाओं को अपने पक्ष में ला सकती है। अक्टूबर और नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में महायुति को हार का सामना करना पड़ा था।

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने प्राइवेट सेक्टर में लागू किया कोटा, कन्नड़ भाषियों को नौकरियों में 50-75% रिजर्वेशन

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कर्नाटक सरकार ने नौकरी में आरक्षण को लेकर एक बड़ा फैसला किया है। कर्नाटक सरकार ने कंपनियों और उद्योगों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने वाले राज्य रोजगार विधेयक, 2024 के मसौदे को मंजूरी दे दी है। विधानसभा में इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठान में स्थानीय लोगों को आरक्षण देना अनिवार्य हो जाएगा। प्रस्तावित विधेयक में मैनेजर या प्रबंधन वाले जॉब में 50 फीसदी और गैर मैनेजमेंट वाली नौकरियों में 75 फीसदी पद कन्नड़ के लिए रिजर्व हो जाएगा। 

मंगलवार (15 जुलाई, 2024) को बेंगलुरु में हुई राज्य कैबिनेट बैठक में इस बिल को मंजूरी दे दी गई। इस बिल के अनुसार, राज्य में स्थित सभी फैक्ट्रियों और दफ्तरों में नौकरी पर रखे जाने वाले लोग अब कन्नड़ ही होने चाहिए। इस बिल के अनुसार, राज्य में स्थित सभी दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम पर रखे जाने वाले ग्रुप सी और ग्रुप डी (सामान्यतः क्लर्क और चपरासी या फैक्ट्री के कामगार) के 75% लोग कन्नड़ होने चाहिए। इसके अलावा, बिल के अनुसार इससे ऊँची नौकरियों में 50% नौकरियाँ कन्नड़ लोगों को मिलनी चाहिए।

बिल के अनुसार कर्नाटक में जन्मा या कर्नाटक में पिछले 15 वर्षों से रह रहा कोई भी व्यक्ति कन्नड़ माना जाएगा और इसे इस आरक्षण का लाभ मिलेगा। कन्नड़ आरक्षण का लाभ लेने के लिए व्यक्ति को 12वीं पास होना चाहिए और इस दौरान उसके पास कन्नड़ एक विषय के तौर पर होनी जरूरी है। यदि उसके पास यह नहीं है तो उसे कन्नड़ सीखनी होगी।

बिल में यह भी कहा गया है कि यदि कम्पनियों को अपनी नौकरियों के लिए गैर कन्नड़ लोगों की भर्ती करना आवश्यक हो जाता है और कन्नड़ भाषाई उपलब्ध नहीं है, तो उन्हने छूट दी जा सकती है। इसके लिए कम्पनियों को आवेदन देना होगा और इस पर सरकार का निर्णय अंतिम होगा।

बिल में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी स्थिति में किसी भी दफ्तर, कम्पनी या फैक्ट्री में ऊँचे पदों पर काम करने वाले कन्नड़ 25% से कम नहीं होने चाहिए। इसके अलावा इनकी संख्या निचली नौकरियों में 50% रहनी ही चाहिए। ऐसा ना करने पर कम्पनियों को ₹25,000 तक का जुर्माना झेलना पड़ेगा। इस बिल को कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब विधानसभा के चालू सत्र में पेश किया जाएगा।

कंपनियां योग्य कैंडिडेट नहीं मिलने का बहाना नहीं बना सकेंगी

कर्नाटक के श्रम मंत्री संतोष लाड के अनुसार, राज्य रोजगार विधेयक को मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल चुकी है, इसे विधानसभा के मौजूदा सत्र में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्राइवेट कंपनियां अपने प्रतिष्ठान के लिए सरकार से सब्सिडी और अन्य लाभ लेती है, इसलिए उन्हें भी नौकरी में स्थानीय लोगों की भागीदारी तय करनी होगी। उन्होंने कहा कि राज्य रोजगार विधेयक लागू होने के बाद स्थानीय कन्नड़ लोगों को नौकरी में अधिक अवसर मिलेंगे। उन्होंने बताया कि कानून लागू होने के बाद कंपनियां योग्य कैंडिडेट नहीं मिलने का बहाना नहीं बना सकेगी। अगर किसी कारण योग्य स्थानीय लोग नहीं मिलते हैं तो कंपनी को तीन साल के भीतर लोकल को ट्रेनिंग देना होगा। 

सरकार के इस प्रस्ताव का कंपनियों ने किय विरोध

बताया जाता है कि सरकार के इस प्रस्ताव का कंपनियों ने विरोध किया है। बता दें कि गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में 20 फीसदी गैर कन्नड़ आबादी काम करती है। बेंगलुरु की कंपनियों में गैर कन्नड़ कर्मचारियों की तादाद 35 फीसदी आंकी गई है। इनमें से अधिकतर उत्तर भारत, आंध्र और महाराष्ट्र से हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, बेंगलुरु शहर की कुल आबादी का 50 फीसदी गैर कन्नड़ है। पिछले दिनों बेंगलुरु में कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता पर लंबी बहस भी छिड़ी थी, जिसके बाद हिंदी में नाम लिखे गए साइन बोर्ड तोड़े गए थे।

हरियाणा ने भी उठाया था ऐसा कदम

कर्नाटक ऐसा पहला राज्य नहीं है जिसने स्थानीय लोगों को निजी नौकरियों में आरक्षण देने का निर्णय लिया हो। इससे पहले जनवरी, 2022 में हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने राज्य के भीतर निजी नौकरियों में 75% पद स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का निर्णय लिया था। इस संबंध में हरियाणा ने कानून भी बनाया था। इस कानून को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नवम्बर, 2023 में असंवैधानिक करार दे दिया था और इसे रद्द कर दिया था।

हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हरियाणा ने कहा था कि बिल को रद्द करने के लिए जो कारण बताए गए हैं, वह सही नहीं हैं। इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी, 2024 में केंद्र से भी जवाब माँगा था। अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ही लंबित है।

ओमान के पास समंदर में तेल टैंकर पलटा, 13 भारतीयों समेत 16 लापता

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ओमान के पास एक तेल टैंकर समुद्र में पलट गया है। इसके चालक दल के 16 सदस्य लापता हैं, जिसमें 13 लोग भारतीय हैं।देश के समुद्री सुरक्षा केंद्र ने तेल टैंकर डूबने की सूचना के एक दिन बाद मंगलवार को कहा है कि अभी तक लापता लोगों का पता नहीं लगा है।उन्हें खोजने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही रेस्क्यू ऑपरेशन भी लॉन्च किया गया है।

ओमानी सेंटर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, प्रेस्टीज फाल्कन के चालक दल में 13 भारतीय नागरिक और तीन श्रीलंकाई शामिल थे। केंद्र ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि जहाज डूबा हुआ है और उल्टा है। इससे यह पुष्टि नहीं हुई कि जहाज स्थिर हो गया था या तेल या तेल उत्पाद समुद्र में लीक हो रहे थे।

समुद्री सुरक्षा केंद्र के मुताबिक, प्रेस्टीज फाल्कन नाम का तेल टैंकर दुबई के हमरिया पोर्ट से रवाना हुआ था। इस पर कोमोरोस का झंडा लगा हुआ था। यह यमन के अदन पोर्ट जा रहा था। डुक्म के पोर्ट टाउन के पास रास मद्रकाह से करीब 46 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में तेल टैंकर पलट गया। क्रू मेंबर्स की तलाश में दो दिनों से सर्च और रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है।

वहीं भारतीय क्रू सदस्यों को ढूंढने के लिए इंडियन नेवी ने अपने युद्धपोत आईएनएस तेग और निगरानी के लिए एयरक्राफ्ट पी-8I भेजा है। वॉरशिप ओमानी वेसल्स के साथ अदन पोर्ट के पास सर्च ऑपरेशन में शामिल है। 15 जुलाई को मामले की सूचना मिलने के तुरंत बाद भारतीय नौसेना ने युद्धपोत को ओमान के लिए भेज दिया था।

नीति आयोग की नई टीम का ऐलान, शाह-राजनाथ सहित 15 केंद्रीय मंत्री सदस्य, शिवराज और नड्डा को भी मिली जगह

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केंद्र की मोदी सरकार ने नीति आयोग का पुनर्गठन किया है। नई सरकार बनने और मंत्रिपरिषद में कुछ नए मंत्रियों को जगह मिलने के बाद आयोग का पुनर्गठन किया गया है। आयोग के उपाध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्यों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। इसमें चार पूर्णकालिक सदस्यों के अलावा भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों के 15 केंद्रीय मंत्रियों को पदेन सदस्य या विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान को आयोग का पदेन सदस्य और स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया है।

राष्ट्रपति भवन की तरफ से मंगलवार की देर रात इससे जुड़ा नोटिफिकेशन जारी किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आयोग के अध्यक्ष और इकोनॉमिस्ट सुमन के बेरी उपाध्यक्ष बने रहेंगे। इसके अलावा साइंटिस्ट वी के सारस्वत, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट रमेश चंद, बाल रोग विशेषज्ञ वी के पॉल और मैक्रो-इकोनॉमिस्ट अरविंद विरमानी पूर्णकालिक सदस्य बने रहेंगे। 

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण चार पदेन सदस्य होंगे। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा, भारी उद्योग मंत्री एच डी कुमारस्वामी और एमएसएमई मंत्री जीतन राम मांझी नीति आयोग में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं।

इनके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्यों में पंचायती राज मंत्री लल्लन सिंह, सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार, नागरिक उड्डयन मंत्री के राममोहन नायडू, आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री अन्नपूर्णा देवी, खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान और राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार राव इंद्रजीत सिंह शामिल हैं।