नवीन पटनायक के पतन की क्या है वजह?
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दो दशक से भी अधिक समय तक ओडिशा में नवीन पटनायक का एकछत्र राज रहा। सब यही मानकर चल रहे थे कि नवीन पटनायक लगातार छठी बार सरकार बनाएंगे और अगले ढाई महीनों में सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग का रिकॉर्ड तोड़कर देश में सबसे अधिक समय तक सत्ता में बने रहने वाले मुख्यमंत्री बन जाएंगे। हालांकि 2024 के नतीजे चौंकाने वाले रहे।चौंकाने वाले नतीजों का मतलब यह है कि पटनायक भारत में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले पवन चामलिंग को पछाड़ने से 73 दिन पीछे रह गए। नवीन बाबू, जिन्हें कभी अजेय माना जाता था। 1024 के चुनाव में भाजपा ने न केवल राज्य की 147 विधानसभा सीटों में से 78 सीटें हासिल करके बल्कि 21 लोकसभा सीटों में से 20 पर कब्जा करके बीजू जनता दल (बीजेडी) के शासन को समाप्त कर दिया। केवल 51 विधानसभा सीटों और लोकसभा चुनावों में पूरी तरह से सफाया होने के साथ, बीजेडी लड़खड़ा रही है।
इस भूचालपूर्ण बदलाव ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि - इस राजनीतिक दिग्गज के पतन का कारण क्या था?अधिकांश मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वीके पांडियन को ओडिशा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजेडी की हार का मुख्य कारण माना जा रहा है। प्रेक्षकों की मानें तो उनकी हार का सबसे बड़ा कारण था आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश करने वाले उनके पूर्व निजी सचिव वीके पांडियन को पार्टी की कमान पूरी तरह थमा देना। पांडियन जो पिछले अक्टूबर तक उनके निजी सचिव थे, वो नौकरी से इस्तीफ़ा देकर बीजेडी में शामिल हो गए थे। चुनाव के दौरान उन्होंने न केवल प्रत्याशियों का चयन किया, बल्कि पार्टी की ओर से प्रचार का पूरा ज़िम्मा अपने हाथों में लिया।
पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में 40 नाम थे। लेकिन लगभग 40 दिनों के प्रचार में केवल पांडियन और कभी कभार नवीन के अलावा पार्टी के किसी और नेता को कहीं मंच पर या रोड शो के दौरान देखा नहीं गया। केवल चुनाव के दौरान ही नहीं, पिछले कई महीनों से न बीजेडी का कोई नेता, मंत्री या विधायक न कोई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी मुख्यमंत्री और बीजेडी सुप्रीमो नवीन पटनायक से मिल पाया या उनके सामने अपनी बात रख पाया। पार्टी और सरकार के सारे फ़ैसले पांडियन ही लिया करते रहे। यहां तक कि मुख्यमंत्री के पास पहुंचने वाली फ़ाइलों पर भी उनके डिजिटल हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया गया जबकि खुद नवीन लोगों की नज़र से ओझल हो गए।
एक और महत्वपूर्ण कारक था चुनाव प्रचार अभियान से पटनायक की स्पष्ट अनुपस्थिति। पिछले चुनावों के विपरीत, जहाँ उनकी उपस्थिति सर्वत्र थी, इस बार पटनायक कम दिखाई दिए। जिन रैलियों में वे वास्तव में दिखाई दिए, उनके साथ हमेशा सर्वव्यापीश्री पांडियन थे, जो या तो 77 वर्षीय पटनायक के लिए माइक थामे रहे, या अपना हाथ स्थिर रखे रहे, या पटनायक के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को हाथ हिलाते हुए नज़र आए। इस कमी ने बीजद के अभियान को फीका और कम आकर्षक बना दिया। इसके विपरीत, भाजपा के कारपेट-बमबारी में, पीएम मोदी और शाह के अलावा, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, हिमंत बिस्वा सरमा और हेमा मालिनी जैसे नेताओं ने स्टार पावर को जोड़ा, जिसकी बीजद में कमी थी।
बीजेडी के पतन का सबसे बड़ा कारण बाहरी लोगों के खिलाफ बढ़ती भावना थी। खास तौर पर श्री पटनायक के भरोसेमंद सहयोगी और निजी सचिव वीके पांडियन के खिलाफ। पूर्व आईएएस अधिकारी श्री पांडियन का बीजेडी और राज्य की प्रशासनिक मशीनरी में बहुत प्रभाव था, जिन्हें अक्सर वास्तविक शासक के रूप में देखा जाता था। तमिलनाडु से एक "बाहरी व्यक्ति" द्वारा सरकार चलाने की यह धारणा ओडिया लोगों को पसंद नहीं आई, जो पांडियन के प्रभुत्व और उनकी कार्यशैली से नाराज होने लगे।
भाजपा ने इस भावना का लाभ उठाया और बीजेडी को एक अनिर्वाचित नौकरशाह की कठपुतली के रूप में चित्रित किया। प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के सभी नेताओं ने बार बार इस बात को दोहराया कि ओडिशा के साढ़े चार करोड़ लोगों को अपना "परिवार" बताने वाले नवीन ने अपने राज्य और पार्टी के सभी नेताओं को नज़रअंदाज़ कर तमिलनाडु में जन्मे एक आदमी को सत्ता संभालने का ज़िम्मा सौंप दिया। यह बात लोगों में काम कर गई क्योंकि वे देख रहे थे की पार्टी और सरकार दोनों में पांडियन का ही बोलबाला था और पार्टी के मंत्री, विधायक तथा अन्य सभी सरकारी अफसर पूरी तरह से नाकाम कर दिए गए।
Jun 09 2024, 15:44