सरायकेला:मकर संक्रांति के दिन से पांच दिवसीय जयदा मेला में दूर दराज से लाखो की तादात में पहुंचते है, श्रद्धालु
सरायकेला : कोल्हान के ईचागढ़ विधान सभा क्षेत्र के चांडिल अनुमंडल अन्तर्गत जयदा मंदिर का निर्माण 1819 वीं शदी के मध्यकाल में हुआ।
केरा (खरसावां) महाराजा इस पहाड़ी पर शिकार करने आए थे, जिस पर जयदा बूढ़ा बाबा की कृपा दृष्टि हुई ।महाराज को स्वप्न मिला यहां मंदिर निर्माण का जिससे प्रेरित होकर केरा राजा श्री जयदेव सिंह, ईचागढ़ के राजा विक्रमादित्य देव को जयदा श्री बुढ़ा बाबा की इच्छा जाहिर किया। ईचागढ़ राजा की देख रेखा में जयदा मंदिर का स्थापना हुआ, कालांतर में इस पावन तीर्थ धाम सन 1966 में बाबा ब्रम्हानंद सरस्वती की आगमन हुआ।
महात्मा की कोठर तपस्या एवं एकाग्रत से सन 1971 से मंदिर पूर्ण निर्माण कार्य शुरू हुआ जो वर्तमान समय ब्रह्मलीन सरस्वती के प्रयास से जारी , मंदिर में खुदाई के दौरान उपलब्ध प्राचीन पत्थर की मूर्तियां तथा शिलालेख से ज्ञान होता है ।की यह मंदिर 9 से वीं13 वीं शताब्दी के बीच में भोगूल्ल दामन द्वारा बनाया गया था। स्वर्ण रेखा नदी के तट पर पवित्र जयदा बूढ़ा बाबा का मंदिर भक्त था जहां स्वयं कैलाशपति बूढ़ाबाबा के रूप में भक्तो के मनोकामना पूरी करते हैं।
आस्था और विश्वास को देखते हुए आज दूरदराज से श्रद्धालू झारखंड राज्य के साथ पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा ,बिहार ,छत्तीसगढ़आदि राज्यों से जयदा बूढ़ा बाबा शिव मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं। प्रतिदिन श्रद्धालू ,सावन के पावन
महीना में लाखो श्रद्धालु की भीड़ कतारबद्ध होकर पूजा के लिए जुटते हैं।
कहा पर स्थित है यह मंदिर :
टाटा रांची मुख्य राज्य मार्ग एन एच 33 से महज एक किलोमीटर दूरी प्रकृति जंगल की इन वादियों से घिरे हुए और स्वर्णरेखा नदी के तट पर विराजमान है यह मंदिर। जहां जयदा बूढ़ा बाबा नाम से प्रसिद्ध तीर्थ धाम है। जहां आने पर इन मनोरम वादियों में मन को मोह लेता और शांति मिलता है।
आगामी 14 जनवरी से पांच दिवसीय लगते हे मेला
चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के जयदा बुढ़ा बाबा मंदिर सुवर्णरेखा नदी तट में अगामी 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन से लेकर 19 जनवरी तक पांच दिवसीय जयदा मेला के साथ टुसू पर्व का आयोजन होता है, इस मेला के उत्सव में दूरदराज के साथ राज्य के सैकडो लोग मकर संक्रांति के दिन को शुभ मानते हुए स्वर्ण नदी में स्नान कर नए वस्त्र पहन कर जयदा बूढ़ा बाबा को जलाविषेक ओर पूजा अर्चना करते हैं।
परंपरागत अनुसार टुसू गीत और गांव में बनाए गए चावल की बने पीठा, चिड़ा दही, तिलकुट, मुड़ही,ओर विभिन्न तरह के व्यंजन पकाकर ले जाते हैं ,नदी किनारे बालू के ऊपर बैठकर सपरिवर यहां खाते हैं और नए जीवन का आनंद उठाते हुए टुसू गीतो के साथ मनोरंजन करते हैं।
और अपने अपने घर चले जाते हैं। इस मेले में दूरदराज से सैकड़ों साधु संत पहुंचते हैं ।
जयदा मंदिर के महंत केशवानंद सरस्वती बताते है कि वे गुरु ब्रह्मलीन ..ब्रम्हानंद सरस्वती जी के शिष्य हैं इस मंदिर में 23 बर्ष हो गया महंत बनकर केशवानंद जी कहते हे मेंरा गुरु जी चांडिल गोलचकर से हमे उठाकर लाये और हमे चेला बनाकर गुरुदीक्षा दिया ।
मैं उनके डगर पर चलकर तपस्या करके और जयदा बुढ़ा बाबा पूजा अर्चना तनमन कर रहा हूँ।
भक्त मुझे महंत का दर्जा दिया है। आगामी 14 जनवरी से पांच दिवसीय मेला यहां लगता है, जिस में भारी संख्यां में भक्त जुटते हैं।
Jan 08 2024, 18:31