*देश की वो बेटी जिसने सुभाष चंद्र बोस को बचाने के लिए अपने ही पति के प्राण ले लिए*
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दो सौ सालों की गुलामी के बाद भारत आजाद हुआ। हालांकि इस आजादी के लिए बड़ी कीमतें चुकानी पड़ी। गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए सैकड़ों जानें कुर्बान हुईं। इनमें कई नायक बनकर उभरे, तो कईयों ने गुमनाम बलिदान दिया। जिन्हें मुश्किल से ही कोई जान पाया। नीरा आर्य एक ऐसा ही नाम हैं।इस बेटी ने देश की आजादी के लिये अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। यहां तक कि अपने नायक, नेताजी सुभाष चंद बोस को बचाने के लिए अपने पति की हत्या तक कर दी, जेल में अंग्रेजों ने उनके स्तन तक काट दिए, लेकिन इन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली।
नीरा आर्य का जन्म 5 मार्च 1902 को उत्तर प्रदेश के बागपत के खेकड़ा में हुआ था। इनके माता-पिता की मृत्यु के बाद इनको हरियाणा के दानवीर चौधरी सेठ छज्जूमल लाम्बाने गोद ले लिया। नीरा व इनके भाई बसन्त ने सेठ को ही अपना धर्मपिता स्वीकार किया। जब नीरा आर्य का जन्म हुआ, उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था। कहते हैं, छोटी उम्र से ही नीरा ने अपने देश के लिए आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी थी।
इन्हें बचपन में वीर भगत सिंह से भी मिलने का मौका मिला। जब वे चौधरी साहब के पास अंग्रेजों से बचने के लिए कई दिनों तक रुके थे। बड़े होकर अपने धर्मपिता सेठ छज्जूमल के आदर्शों पर चलते हुए नेताजी की आजाद हिंद फौज में शामिल हुई। क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान नीरा 'आजाद हिंद फौज' के संपर्क में आईं और 'झांसी रेजिमेंट' का हिस्सा बन गईं। इसके साथ ही देश की पहली जासूस होने का गौरव प्राप्त किया।
कम उम्र में नीरा के पिता ने उनकी शादी श्रीकांत जयरंजन दास से कर दी थी। हालांकि नीरा में देशभक्ति का जज्बा कम नहीं हुआ। बल्कि नीरा के लिए रूकावटें और बढ़ गई। दरअसल, जहां नीरा अंग्रेजों से अपने देश की आजादी चाहती थीं, वहीं उनके पति ब्रिटिश सरकार के लिए काम कर रहे थे। अंग्रेजों ने नीरा के पति जयरंजन दास को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जासूसी करने और मौका मिलते ही उनकी हत्या करने की जिम्मेदारी थी। अपने पति के मिशन के बारे में जब मीरा को जानकारी हुई तो वो उनके खिलाफ हो गईं। एक दिन जब उनके पति ने सुभाष चंद्र बोस की हत्या करने का प्रयास किया, तो उन्होंने अपने पति को ही मार डाला, और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को बचा लिया।
पति को मारने के कारण ही नेताजी ने उन्हें नागिनी कहा था।वहीं दूसरी ओर, अंग्रेजों ने इसके लिए नीरा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई गई।
डॉ. नरेंद्र सिंह आर्य ने इनकी आत्मकथा का एक अंश प्रस्तुत किया जो स्वयं इन्होंने लिखा था ‘‘मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची तो रात भर हम भारत माता से जुदा होने के दर्द की से पीड़ा से तड़पते रही और सूर्य निकलते ही जेलर ने कड़क आवाज में कहा, तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं? वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे, मैंने जवाब दिया, सारी दुनिया जानती है। नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए? जेलर ने कहा। हाँ नेताजी जिंदा हैं। तो कहाँ हैं। मेरे दिल में जिंदा हैं वे।जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और उसके इशारे पर लुहार ने मुझे असहनीय पीड़ा देते हुए लोहे के जंबूर से मेरे दोनों स्तन काटने की कोशिश की। इतिहासकारों ने मुताबिक अगर नीरा सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानकारी दे देतीं तो उन्हें जमानत मिल जाती, लेकिन नीरा ने अपना मुंह नहीं खोला।
नीरा आर्य को आजाद हिंद फौज की प्रथम जासूस होने का गौरव प्राप्त है। नीरा को यह जिम्मेदारी इन्हें स्वयं नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दी थी। नीरा ने अपनी साथी मानवती आर्या, सरस्वती राजामण और दुर्गा मल्ल गोरखा एवं युवक डेनियल काले के संग नेताजी के लिए अंग्रेजों की जासूसी भी की।जब इन्हें जासूसी के लिए भेजा गया था, तब हमें साफ तौर से बताया गया था कि पकड़े जाने पर हमें खुद को गोली मार लेनी है।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, नीरा जेल से बाहर निकली। इन्होंने जीवन के अंतिम दिनों में फूल बेचकर गुजारा किया। हैदराबाद में फूल बेचकर अपना बाकी का जीवन बिताया। वृद्धावस्था में बीमारी की हालत में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में इन्होंने रविवार 26 जुलाई, 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया।
Mar 14 2023, 12:02