*जलसा शोहदा ए इस्लाम मदरसा के सदर मौलाना मुहम्मद उस्मान कासमी की अध्यक्षता में पहली मुहर्रम*
सुल्तानपुर अंजुमन खुद्दाम ए सहाबा व मदरसा जामिया इस्लामिया के वैनर तले दस दिवसीय कार्यक्रम जलसा शोहदा ए इस्लाम मदरसा के सदर मौलाना मुहम्मद उस्मान कासमी की अध्यक्षता में पहली मुहर्रम से लगातार चल रहा है। जिसमें इस्लामिक शिक्षाविद और उलेमा दूर - दूर से आते है इस्लाम के बारे तथ्यात्मक जानकारी साझा करते है।
जलसे में इस्लाम दीन के लिए जद्दोजहद करने और जंग में शहादत पाने वाले शहीदों का जिक्र होता है।छठवीं मुहर्रम को देर रात मौलाना मुहम्मद मकबूल कासमी ने कहा कि मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन मुशरिक और यहूदी है।यह बात अल्लाह ने कुरआन में फरमाया है।मौलाना ने खिलाफत के हुक्म की व्याख्या करते हुए पैगम्बर के उत्तराधिकारियों के बारे विस्तार से आगंतुकों को बताया। जौनपुर से आए मुख्य अतिथि मौलाना मुहम्मद आसिफ ने जलसा शुहादा-ए-इस्लाम के बारे में कहा कि यह जलसा आम जलसा जैसा नहीं है, बल्कि दस दिन का पाठ है जिसमें अलग-अलग पाठ होते हैं। इसलिए हमें अपने व्यस्त कार्यक्रमों को एक तरफ रखकर इन जलसों में शामिल होने की कोशिश करनी चाहिए और अपने दिलों को शुद्ध और शांत करना जारी रखना चाहिए।
मौलाना ने कहा कि शहादत एक प्रशंसनीय और वांछनीय चीज है। अगर ऐसा न होता तो पैगंबर साहब इसकी इच्छा क्यों करते? मौलाना ने अपना भाषण जारी रखते हुए कहा कि जो राष्ट्र शहादत पर रोता और शोक मनाता है, वह कभी शहीद पैदा नहीं कर सकता और कयामत के दिन तक इसी तरह रोता और शोक मनाता रहेगा!!! मौलाना ने सैय्यद अल-शुहादा हज़रत हमज़ा (रजी अल्लाहु अन्हों) की जीवनी का वर्णन करते हुए कहा कि वह बहुत ही सुंदर और आकर्षक व्यक्ति थे, एक महान तीरंदाज, शिकार के शौकीन, बहादुर, साहसी और दयालु व्यक्ति थे। पैगंबर (PBUH) को कभी इतना दुख नहीं हुआ जितना उन्हें उनकी शहादत पर हुआ। हज़रत हम्ज़ा; अल्लाह के पैगंबर (PBUH) के चाचा होने के अलावा, वह पैगंबर (PBUH) की मां हज़रत अमीना की चचेरी बहन के बेटे भी थे। इसी तरह मौलाना ने हज़रत हमज़ा (र.अ.) के ईमान स्वीकार करने की घटना का भी ज़िक्र किया! मौलाना ने पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) के प्रिय नवासे हजरत हुसैन (र.अ.) के हालात पर व्यापक प्रकाश डाला। मौलाना ने कहा कि हजरत हुसैन रजी अल्लाहु अन्हों शक्ल, सूरत और चरित्र में पैगंबर (स.अ.व.) के बिल्कुल मुफीद थे। जब अल्लाह के पैगंबर इस दुनिया से चले गए तो उनकी उम्र चार या पांच साल थी। सहाबा उन्हें अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार करते थे, इस संबंध में मौलाना ने कुछ हदीसों का भी जिक्र किया। अंत में मौलाना ने हज़रत हुसैन (र.अ.) की शहादत का वाकया भी बयान किया कि कूफ़ा के लोगों ने उन्हें कूफ़ा आने के लिए लगभग 12,000 पत्र भेजे, जिसमें कहा गया कि "आप कूफ़ा आ जाइए क्योंकि हम अपने ख़लीफ़ा को ख़लीफ़ा नहीं मानते, लेकिन हम आपको ख़लीफ़ा मानेंगे।" कई प्रमुख साथियों ने उन्हें मना किया। रास्ते में उनकी मुलाक़ात फरज़ादक नामक एक मशहूर शायर से भी हुई, जो कूफ़ा से आ रहा था। जब हज़रत हुसैन ने फरज़ादक से वहाँ के हालात के बारे में पूछा तो फरज़ादक ने कहा, "तलवारें तुम्हारे खिलाफ़ हैं और उनके दिल तुम्हारे साथ हैं, इसलिए तुम्हें मदीना लौट जाना चाहिए।" हालाँकि, हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील के परिवार के आग्रह पर उन्होंने आगे बढ़ने का फ़ैसला किया। आख़िरकार मुहर्रम की 10 तारीख़ को वह त्रासदी घटी, जिसके कारण आशूरा का दिन ख़ास तौर पर जाना जाता है। मौलाना ने समय की कमी के कारण कर्बला की घटनाओं का संक्षेप में उल्लेख किया तथा प्रार्थना के साथ सत्र का समापन किया। जलसे का संचालन मौलाना मुहम्मद ओसामा कासमी ने किया।जलसे तमाम उलेमा और सैकड़ों श्रोता दर्शक मौजूद रहे।
Jul 04 2025, 12:07