संताल हूल का पैगाम: अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और हिंदुत्व-कार्पोरेट गठजोड़ की सांप्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति को परास्त करने के लिए आगे
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संताल हूल का पैगाम – अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और हिंदुत्व-कार्पोरेट गठजोड़ की सांप्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति को परास्त करने के लिए आगे बढ़ो
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सीपीआई (एम) की अपील
बहनों और भाइयों,
आज से 170 साल पहले, 1855–56 में दामिन-ए-कोह (जिसे अब संताल परगना कहा जाता है) में संताल हूल की ऐतिहासिक घटना हुई थी। इस हूल के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ-साथ इस इलाके के जमींदारों और महाजनों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका गया था। इसका नेतृत्व सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो ने किया था। यह यहां के किसानों का विद्रोह था, जिसने 1857 में शुरू हुई आज़ादी की लड़ाई की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी।
यह हूल संताल आदिवासियों और अन्य गरीबों की सामुदायिक और सामूहिक स्वामित्व वाली जमीन को जमींदारों और महाजनों द्वारा जबरन कब्ज़ा किए जाने के खिलाफ शुरू हुआ था। इस क्षेत्र के तमाम गरीब लोग भी इस विद्रोह में शामिल हो गए। इस विद्रोह को दबाने और शोषकों की मदद के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी फौज भेजी, जिसका जबर्दस्त प्रतिरोध हुआ। लगभग 60 हजार संताल विद्रोहियों ने अपने पारंपरिक हथियारों से इस बंदूकधारी फौज का बहादुरी से मुकाबला करते हुए उन्हें खदेड़ दिया।
जमींदारों और महाजनों के ज़ुल्म के खिलाफ आम जनता के इस प्रतिरोध ने सात समंदर पार बैठे ब्रिटिश शासकों को भी हिला दिया। महान चिंतक और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स ने संताल हूल को भारत का पहला जन विद्रोह बताया था। इस लड़ाई में सिदो-कान्हू समेत 10 हजार से अधिक लोग शहीद हुए, लेकिन इस विद्रोह (हूल) ने स्वतंत्रता संग्राम की भूमिका लिख दी। यह हूल, जिसका नेतृत्व सिदो-कान्हू जैसे वीर योद्धा कर रहे थे, ने इस इलाके के सभी गरीबों को एकजुट करने का कार्य किया।
आज जब हम संताल हूल की गौरवपूर्ण विरासत को याद करते हैं, तब हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संताल हूल और बिरसा मुंडा के उलगुलान जैसे शानदार संघर्षों के चलते ही छोटानागपुर काश्तकारी कानून और संताल परगना काश्तकारी कानून बने, जिन्हें यहां के आदिवासियों व अन्य गरीबों की जमीन का “रक्षा कवच” कहा जाता है।
आज देश के शासक वर्ग की मदद से बड़े पूंजीपतियों द्वारा झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों और खनिज संपदा की लूट के लिए इन कानूनों को कमजोर किया जा रहा है। साथ ही, संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आदिवासियों को मिले संवैधानिक प्रावधानों और ग्रामसभाओं के अधिकारों को भी कमजोर किया जा रहा है।
इसलिए, झारखंड के मेहनतकशों को संताल हूल की गौरवपूर्ण विरासत को याद करते हुए जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए चल रहे संघर्षों को और तेज करना होगा। साथ ही, हिंदुत्व-कार्पोरेट गठजोड़ की विभाजनकारी साजिश को भी परास्त करना होगा, ताकि हमारे पूर्वजों द्वारा शोषण के खिलाफ छेड़े गए संघर्ष की शानदार विरासत को आगे बढ़ाया जा सके।
Jun 28 2025, 18:56