धूप में झुलसते ‘ड्यूटी के योद्धा’, जब सिस्टम ने किया नजरअंदाज़
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लखनऊ । उत्तर प्रदेश की राजधानी में पारा 43 डिग्री के पार पहुंच चुका है। दोपहर का सूरज आग उगल रहा है, सड़कों पर धूल और गर्म हवाओं की मार है, लेकिन इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच भी ट्रैफिक पुलिसकर्मी चौराहों पर मोर्चा संभाले खड़े हैं। आम लोगों के लिए महज़ ट्रैफिक पुलिसकर्मी, लेकिन असल में ये 'तपते चौराहों के सिपाही' हैं, जिनकी ड्यूटी शरीर ही नहीं, मानसिक संतुलन की भी परीक्षा लेती है।
धूप से झुलसते शरीर पर भी ड्यूटी पहले
जानकारी के लिए बता दें कि गर्मियों में सबसे कठिन ड्यूटी अगर किसी की मानी जाती है, तो वह ट्रैफिक पुलिसकर्मी की है। इन दिनों लखनऊ के हजरतगंज, भूतनाथ, चारबाग, पालीटेक्निक, चिनहट, हजरतगंज और कपूरथला जैसे प्रमुख चौराहों पर तैनात पुलिसकर्मी दिन के 6-8 घंटे सड़कों पर खड़े रहकर यातायात व्यवस्था को संभालते हैं। गर्मी इतनी भीषण है कि एक जगह खड़े रहना भी मुश्किल हो जाए, लेकिन ट्रैफिक पुलिसकर्मी बार-बार पानी पीने, छांव में खड़े होने या आराम करने के बजाय, लोगों को सुरक्षित रास्ता देने में जुटे रहते हैं।
विभाग ने क्या की है गर्मी से सुरक्षा की क्या व्यवस्था, हकीकत में क्या
विभागीय अधिकारी का दावा है कि गर्मी को देखते हुए पुलिसकर्मियों को छाते, कैप, गमछा और ORS घोल जरूर दिए गए हैं। कुछ स्थानों पर ट्रैफिक बूथ या टीन शेड भी हैं, लेकिन अधिकतर चौराहों पर ये सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं। कई जवान अपने स्तर पर पानी की बोतल, गीले कपड़े और पाउडर लेकर आते हैं ताकि लू से बचाव हो सके। जबकि इस मामले में जब ट्रैफिक सिपाहियों से बात की गई तो बताया कि यह दावा केवल हवा हवाई है। पीने के लिए ठंडा पानी तो मिलता नहीं है। कहीं कहीं कहने के लिए एकाध छाते मुहैया करा दिये गये है। बूथों पर ट्रफिक सिपाहियों के आराम करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
छुट्टी की योजना ज़मीन पर नहीं आई
योगी सरकार ने गर्मियों में पुलिसकर्मियों को छुट्टी देने की बात कही थी, लेकिन ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के अनुसार अभी तक इसका कोई सीधा लाभ नहीं मिला है। स्टाफ की भारी कमी और चौकियों की जरूरत के चलते अवकाश मिलना लगभग असंभव होता है। कई कर्मियों ने बताया कि "हमें तो महीने में एक या दो छुट्टियाँ भी मुश्किल से मिलती हैं।"ट्रैफिक सिपाही का कहना है कि यह रूल पुलिसकर्मियों पर लागू होता होगा, यातायात विभाग में ऐसा कुछ नहीं है।
ट्रैफिक सिपाहियों के आराम की व्यवस्था बूथों पर उपलब्ध नहीं
एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी औसतन 8 की ड्यूटी करता है, जिसमें दोपहर की सबसे भीषण गर्मी वाले घंटे भी शामिल रहते हैं। ट्रैफिक का सबसे अधिक दबाव सुबह 9 से 11 और शाम 5 से 8 बजे के बीच होता है। इन घंटों में बिना रुके, बिना बैठे काम करना पड़ता है। ऐसे में कड़ी धूप में खड़ा होने के बाद जब उन्हें कुछ देर आराम करने का मौका मिले तो बूथ के अंदर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जो कि राजधानी के अस्सी प्रतिशत ट्रैफिक बूथों पर अाराम करने के लिए सुविधा जनक कोई इंतजाम नहीं है। जबकि इस भीषण गर्मी में उनके लिए यह आराम करने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस पर कई ट्रैफिक सिपाहियों से बात की गई तो उनका यही कहना है कि बूथों पर सुविधा का इंतजाम राम भरोसे चल रही है।
लोगों की नोंकझोंक और एंगर मैनेजमेंट
बता दें कि चौराहों पर तैनात ट्रैफिक पुलिसकर्मी न केवल मौसम से जूझते हैं, बल्कि लोगों की बदतमीज़ी और झुंझलाहट से भी। चालान कटने पर कई बार बहसबाजी होती है। प्रशासन की ओर से इस तनाव को कम करने के लिए कोई विशेष काउंसलिंग या एंगर मैनेजमेंट ट्रेनिंग नहीं दी जाती। हालांकि, कुछ सीनियर अधिकारी व्यक्तिगत रूप से सहयोग करते हैं, पर वह काफी नहीं है। क्योंकि इन सारी समस्याओं से अकेले ट्रैफिक का जिम्मा संभालने वालों को ही भुगतना पड़ता है।
कैसी होती है एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी की दिनचर्या?
सुबह 7-8 बजे रिपोर्टिंग होती है। इसके बाद ड्यूटी स्थल पर तैनाती। लंच ब्रेक अक्सर नहीं मिल पाता या बेहद सीमित होता है। कई बार एक जगह से दूसरी जगह ड्यूटी बदलती है। गर्मियों में सबसे बड़ी चुनौती पानी पीने, टॉयलेट जाने और बैठने की होती है। "कई बार लगता है कि बस अब चक्कर आ जाएगा, लेकिन मजबूरी है, खड़ा रहना पड़ता है," एक सिपाही ने बताया कि बूथों पर पीने के लिए ठंडा पानी तो सही से मिल नहीं पाता है, ऐसे में अन्य व्यवस्था की बात करना तो दूर है। एक ट्रैफिक सिपाही ने कहना रहा कि दिन में धूप और जब थोड़ा बहुत फुर्सत मिलती है तो आराम के लिए उन्हें टीन से बना बूथ मिलता है, उसमें भी उन्हें तपना पड़ता है। आराम करने के लिए ज्यादातर बूथों पर कोई इंतजाम नहीं है। जबकि बूथों पर इसकी सुविधा होनी चाहिए।
पुलिसवालों को लेकर आम सोच पर क्या कहते हैं पुलिसकर्मी?
बहुत से लोग ट्रैफिक पुलिस को केवल चालान काटने वाला मानते हैं। इस पर खुद पुलिसकर्मी कहते हैं —"हमें चालान काटना पसंद नहीं, लेकिन नियम तोड़ने वालों को सबक सिखाना ज़रूरी है। लोग हमें दोष देते हैं, लेकिन कोई यह नहीं देखता कि हम किस हालात में काम कर रहे हैं। डीसीपी अपराध एवं मीडिया सेल प्रभारी कमलेश दीक्षित ने बताया कि -"हमारा मुख्य काम ट्रैफिक को सुचारू रूप से चलाना है, लेकिन जब लोग हेलमेट, सीट बेल्ट जैसे नियम नहीं मानते, तो कार्रवाई करनी ही पड़ती है।"
ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को लेकर आम लोगों की राय
इंदिरा नगर निवासी अजय तिवारी व चिनहट निवासी वीजेंद्र वर्मा का कहना है कि ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की ड्यूटी सिर्फ नियम लागू करना नहीं है, यह धैर्य, मानसिक दृढ़ता और त्याग की परीक्षा है। ऐसे में न केवल सरकार को बल्कि समाज को भी इन कर्मियों के प्रति सोच बदलनी होगी। अगर वे ठान लें कि उन्हें नियमों का पालन करना है, तो शायद एक दिन ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को सिर्फ चालान काटने वाला नहीं, बल्कि ‘सड़क सुरक्षा का प्रहरी’ माना जाएगा। उन्होंने कहा कि आज सड़क हादसे बढ़ते जा रहे है। जबकि यातायात नियम का पालन करने से हादसों को कम किया जा सकता है।
May 20 2025, 11:19