बिल काटना पड़ा महंगा: पूर्वी सिंहभूम प्रशासन महिला को देगा ₹2 करोड़ का मुआवजा
पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन को एक मामूली सा बिल काटना भारी पड़ गया है। दरअसल, प्रशासन द्वारा काटे गए ₹7.13 लाख के एक बिल के मामले में उन्हें अदालत में हार का सामना करना पड़ा है। इस हार के परिणामस्वरूप, अब जिला प्रशासन को संबंधित महिला को लगभग ₹2 करोड़ का मुआवजा देना होगा। यह घटना प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बरती गई लापरवाही और उसके गंभीर वित्तीय परिणामों का एक उदाहरण है।
यह मामला वर्ष 2017 का है, जब पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 33 के चौड़ीकरण का कार्य चल रहा था। इस दौरान, सड़क निर्माण कंपनी ने कथित तौर पर पीड़िता, श्रीमती सोनिया देवी की जमीन से मिट्टी उठा ली थी। श्रीमती देवी का आरोप था कि कंपनी ने उनकी अनुमति के बिना और उचित मुआवजा दिए बिना मिट्टी का खनन किया, जिससे उन्हें काफी नुकसान हुआ।
इसके बाद, श्रीमती देवी ने जिला प्रशासन से शिकायत की और मुआवजे की मांग की। जांच के बाद, जिला प्रशासन ने सड़क निर्माण कंपनी पर ₹7.13 लाख का बिल काटा। हालांकि, श्रीमती देवी इस कार्रवाई से संतुष्ट नहीं थीं। उनका मानना था कि उन्हें जो नुकसान हुआ है, वह इस बिल की राशि से कहीं अधिक है। इसलिए, उन्होंने मुआवजे की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।
लंबे समय तक चली कानूनी लड़ाई के बाद, अदालत ने श्रीमती सोनिया देवी के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने पाया कि जिला प्रशासन द्वारा काटा गया बिल पर्याप्त नहीं था और श्रीमती देवी को वास्तव में अधिक नुकसान हुआ है।
अदालत ने अपने फैसले में जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि वह श्रीमती देवी को लगभग ₹2 करोड़ का मुआवजा दे। इस मुआवजे में मिट्टी के खनन से हुए नुकसान के साथ-साथ कानूनी लड़ाई में हुए खर्च भी शामिल हैं।
इस मामले में जिला प्रशासन की हार कई सवाल खड़े करती है। सबसे पहला सवाल तो यही है कि आखिर किस आधार पर ₹7.13 लाख का बिल काटा गया था? क्या प्रशासन ने नुकसान का सही आकलन किया था? दूसरा बड़ा सवाल यह है कि जब श्रीमती देवी ने मुआवजे की मांग की थी, तो प्रशासन ने उनकी शिकायतों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? अगर प्रशासन ने समय रहते उचित कार्रवाई की होती, तो शायद इस भारी भरकम मुआवजे से बचा जा सकता था।
यह घटना अन्य सरकारी विभागों और प्रशासनिक निकायों के लिए भी एक सबक है। किसी भी मामले में लापरवाही बरतना और पीड़ित की शिकायतों को अनदेखा करना कितना महंगा साबित हो सकता है, यह इस घटना से स्पष्ट होता है।
प्रशासनिक अधिकारियों को चाहिए कि वे हर मामले की गंभीरता को समझें और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए त्वरित और न्यायसंगत कार्रवाई करें।
इस मामले में पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन की हार न केवल वित्तीय नुकसान का कारण बनी है, बल्कि इससे प्रशासन की छवि भी धूमिल हुई है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस फैसले के बाद क्या कदम उठाता है और भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने के लिए क्या उपाय करता है। वहीं, श्रीमती सोनिया देवी के लिए यह फैसला एक लंबी और कठिन कानूनी लड़ाई के बाद मिली जीत है, जो यह साबित करती है कि न्याय के लिए लड़ने वाले अंततः सफल होते हैं।
5 hours ago