राजनीति का वो चमकता सितारा, तेजी से बढ़ा जिसका ग्राफ, उतनी ही तेज गिरा, क्या रही वजहें?
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राजधानी दिल्ली में आम आदमी की पार्टी की सरकार 10 साल की सत्ता के बाद ढह गई। राष्ट्रीय राजनीति में तेजी से उभर रहे अरविंद केजरीवाल की साख को भी इस हार ने बट्टा लगा दिया। लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों से तुलना करें तो इस बार आप को 65 सीटों पर वोट शेयर का नुकसान हुआ। वहीं पार्टी को सिर्फ़ पांच सीटों पर वोट शेयर में बढ़ोतरी हासिल हो सकी। आप के वोट शेयर में सबसे ज़्यादा गिरावट ओखला, संगम विहार और मुस्तफ़ाबाद सीटों पर दिखाई दी। पार्टी ने इन सभी तीन सीटों पर साल 2020 में 50 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे। जिन सीटों पर इसका वोट शेयर बढ़ा उनमें बदरपुर, गांधीनगर और सीलमपुर शामिल हैं। आप को साल 2020 में 48 सीटों पर 50 फीसदी से अधिक वोट मिला था। इस चुनाव में उसे सिर्फ 12 सीटों पर ही 50 फ़ीसदी से अधिक वोट मिल सके हैं। ये आंकड़े गवाही हैं कि जिस तेजी से केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी का ग्राफ उपर गया, उतनी ही तेजी से ढलता दिखाई दिया।
देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ 13 साल पहले खड़े हुए आंदोलन से निकल कर अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा। केजरीवाल ने अपने पहले ही सियासी मैच में शानदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया था। इसके बाद दिल्ली में तीन बार सरकार बनाई, जिसमें एक बार गठबंधन और दो बार प्रचंड बहुमत के साथ। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई।
*जब ब्रैंड मोदी भी बेबस नजर आया*
केजरीवाल के करिश्मे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब ब्रैंड मोदी को पूरे देश में कामयाबी मिल रही थी तो दो बार ब्रैंड केजरीवाल ने उन्हें तगड़ी टक्कर दी और ब्रैंड मोदी पर भारी पड़े। 2015 और 2020 में जब पूरे देश पर ब्रैंड मोदी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था और उन्हें हर राज्य में कामयाबी मिल रही थी, उस वक्त दिल्ली आकर ब्रैंड केजरीवाल के सामने ब्रैंड मोदी भी बेबस नजर आया। एक बार नहीं दो बार।
*राजनीति में बना ब्रांड केजरीवाल*
राजनीति के एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि ब्रैंड केजरीवाल इसलिए मजबूत हुआ, क्योंकि लोगों को लगा कि वे दूसरे दलों से अलग हटकर काम करेंगे। दिल्ली की सत्ता में आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त-बिजली, पानी, शिक्षा का एक मॉडल तैयार किया था। उस वक्त लोगों ने इसे इसलिए स्वीकारा, क्योंकि उन्हें लगा कि मुफ्त योजनाएं भी मिलेंगी और करप्शन भी खत्म होगा। यही केजरीवाल की राजनीतिक ताकत बना। ब्रांड केजरीवाल के आगे बीजेपी दस साल तक दिल्ली में पस्त नजर आई। हालांकि, जल्द ही दूसरी पार्टियों ने भी फ्रीबीज का ऐलान कर दिया तो केजरीवाल ब्रैंड में कुछ नया नहीं रहा।
*दावों पर पूरी तरह खरे नहीं उतरे*
दूसरी तरफ, केजरीवाल जब राजनीति में आए थे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस और वीआईपी कल्चर से दूर रहने की बात कही थी। इसके अलावा वीआईपी कल्चर के बजाय आम आदमी पार्टी की तरह साधारण तरीके रहन-सहन रखने की बातें की थी। इस तरह केजरीवाल ने अपना खुद की छवि गढ़ी थी। लेकिन सत्ता मिलने के बाद उस पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सके।
*जितना बोला, उतना किया नहीं*
केजरीवाल ने रामलीला मैदान के मंच से कहा था कि हम तो आम आदमी हैं, हम तो दो कमरे के घर में रह लेंगे, बड़ी गाड़ियों और सुरक्षा के तामझाम की हमें जरूरत नहीं, भ्रष्टाचारियों को पहले दिन से ही जेल में डालेंगे। केजरीवाल अधिक बोले। कभी कहा, यमुना साफ कर दूंगा। कभी कहा, कूड़े के पहाड़ हटा दूंगा। इस तरह के अनगिनत दावे और वादे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और देश की जनता से किया था, लेकिन सत्ता की मलाई उन्हें इतनी मीठी लगी कि वो जैसे भूल ही गए कि उन्होंने कहा क्या था और कर क्या रहे हैं। केजरीवाल ने सीएम रहते हुए अपने सरकारी घर में करोड़ों रुपये खर्च कर दिया, जिसे बीजेपी ने शीश महल का नाम दिया।
Feb 11 2025, 10:52