जनसंख्या को लेकर चिंतित चंद्रबाबू नायडू, स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए लाने जा रहे नया प्रस्ताव
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आंध्र प्रदेश में घटती युवा आबादी पर मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू चिंतित हैं। हाल ही में उन्होंने दो से अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत की थी। उन्होंने अब नया प्रस्ताव लाने की बात कही है। इसके अनुसार अब लोकल चुनाव लड़ने के लिए 2 से ज्यादा बच्चे होना जरूरी होगा। इसके साथ ही 3 बच्चे वाले परिवारों को अलग लाभ दिए जाएंगे। नायडू का यह बयान तीन दशक पुराने कानून को निरस्त करने के कुछ ही महीनों बाद सामने आया है। जिसमें दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था।
मकर संक्रांति पर अपने पैतृक गांव नरवरिपल्ली पहुंचे चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि लगातार कम हो रहा फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है। जापान, कोरिया समेत कई यूरोप देश प्रजनन दर कम होने और बढ़ती उम्र की आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं। यह भारत के लिए चेतावनी है क्योंकि हम दो बच्चों पैदा करने के लिए लोगों को मजबूर कर रहे हैं। अगर परिवार नियोजन की पॉलिसी नहीं बदली तो कुछ वर्षों में भारत को बढ़ती उम्र की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
चंद्राबाबू नायडू ने कहा कि पहले दो से अधिक बच्चों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोक दिया जाता था। अब कम बच्चों वालों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए नियम बनाने होंगे। नायडू ने कहा कि वे ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को पंचायत और नगरपालिका चुनावों में चुनाव लड़ने की अनुमति देने सहित उन्हें प्रोत्साहित करने जा रहे हैं, उन्होंने कहा कि वे ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को ज्यादा सब्सिडी वाले चावल मुहैया कराने के प्रस्ताव पर भी काम कर रहे हैं। वर्तमान में हर परिवार को 25 किलोग्राम सब्सिडी वाले चावल दिए जाते हैं, जिसमें हर एक सदस्य को 5 किलोग्राम चावल मिलता है।
पहले ही इस नियम को रद्द कर चुकी है नायडू सरकार
बता दें कि 2024 में सत्ता में आने के बाद टीडीपी सरकार आंध्र प्रदेश में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने वाले नियम को रद्द कर चुकी है।
जनसंख्या में बड़ी गिरावट के संकेत
70 के दशक में देश के सभी सरकारों ने पॉपुलेशन कंट्रोल के लिए परिवार नियोजन अभियान चलाया। 'हम दो हमारे दो' और 'बच्चे दो ही अच्छे' के नारों से शहर से लेकर गांव कस्बे की दीवारें रंग दी गई। परिवार नियोजन के अन्य तौर-तरीकों का जमकर प्रचार हुआ। इसका असर पूरे देश में हुआ, मगर दक्षिण भारत के राज्यों ने इस पॉलिसी को दशकों पहले हासिल कर लिया। 1988 में केरल में फर्टिलिटी रेट दो के करीब पहुंच गया। 1993 में तमिलनाडु, 2001 में आंध्रप्रदेश और 2005 में कर्नाटक भी इस लिस्ट में शामिल हो गया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार, अभी पूरे देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 2.1 है, मगर दक्षिण भारत के राज्यों में यह राष्ट्रीय औसत से भी नीचे 1.75 पर पहुंच गया है। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि अगर ऐसा ट्रेंड बना रहा तो जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ सकती है।
10 hours ago