इस दिन से शुरू हो रहा संसद का शीतकालीन सत्र, वक्फ बिल समेत 16 विधेयक लाने की तैयारी में मोदी सरकार

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संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर यानी सोमवार से शुरू हो रहा है। शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक चलेगा। इसी साल हुए आम चुनाव में नई सरकार के गठन के बाद इस पहले शीतकालीन सत्र में सरकार कुछ पेंडिंग विधेयक पारित कराने की तैयारी में है तो वहीं कुछ नए विधेयक भी कार्यसूची में हैं। शीतकालीन सत्र के लिए जो कार्यसूची सामने आई है, उसमें नए-पुराने कुल 16 विधेयकों के नाम हैं।इनमें पांच नए विधेयक भी शामिल हैं। इन पांच नए प्रस्तावित कानूनों में एक सहकारी विश्वविद्यालय स्थापना से जुड़ा विधेयक भी है। लंबित विधेयकों में वक्फ (संशोधन) विधेयक भी शामिल है जिसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति की ओर से लोकसभा में अपनी रिपोर्ट सौंपने के बाद चर्चा और फिर पास करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

इस लिस्ट में सबसे चर्चित विधेयक हैं वक्फ संशोधन विधेयक और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024। यह विधेयक संसद के मॉनसून सत्र के दौरान ही लोकसभा में पेश के गए थे। विपक्षी दलों के विरोध और हंगामे के बीच अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ संशोधन विधेयक और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक लोकसभा में पेश किया था। संसद में पेश होते ही इन विधेयकों को बगैर किसी चर्चा के संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया था।

जेपीसी को इस दिन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश

वक्फ संशोधन बिल पर जेपीसी को शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के आखिरी दिन अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है। जेपीसी की अगुवाई कर रहे जगदंबिका पाल ने कहा भी है कि हमारी रिपोर्ट तैयार है। हालांकि, विपक्षी दलों के सांसद जेपीसी का कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

ये बिल सूची में

इसके अलावा, कोस्टल शिपिंग बिल और इंडियन पोर्ट्स विधेयक को भी पेश और पारित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। वक्फ (संशोधन) विधेयक और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक सहित आठ विधेयक लोकसभा में लंबित हैं। दो अन्य राज्यसभा के पास हैं। उधर वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने समिति का कार्यकाल बढ़ाने की मांग की। उन्होंने कहा कि मसौदा कानून में बदलावों का अध्ययन करने के लिए उन्हें और समय चाहिए।

एक देश एक चुनाव विधेयक सूचीबद्ध नहीं

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित 'एक राष्ट्र एक चुनाव' से जुड़ा कोई विधेयक फिलहाल सूचीबद्ध नहीं है। हालांकि, किरेन रिजिजू ने वन नेशन, वन इलेक्शन से संबंधित बिल इसी सत्र में लाए जाने की तैयारी के संकेत दिए थे। रामनाथ कोविंद कमेटी इसे लेकर अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंप चुकी है और उस रिपोर्ट को कैबिनेट मंजूरी भी मिल चुकी है लेकिन 16 विधेयकों की लिस्ट में इससे संबंधित विधेयक का जिक्र नहीं है।

सऊदी अरब ने इमरान खान को सत्ता से हटवाया? बुशरा बीबी का बड़ा दावा

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पाकिस्तान और सऊदी अरब दोस्त माने जाते हैं। लेकिन सऊदी अरब पर ही पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से हटाने का आरोप लगा है। ये आरोप किसी और ने नहीं बल्कि इमरान खान की पत्नी बुशरा बीबी ने लगाया है। एक वीडियो संदेश में बुशरा बीबी ने साल 2022 में इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को हटाने में सऊदी अरब की भूमिका की बात कही है।वीडियो संदेश में बुशरा बीबी ने पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का भी नाम लिया है। बुशरा बीबी के वीडियो बयान को पाकिस्तान तहरीक के इंसाफ (पीटीआई) के आधिकारिक एक्स हैंडल से शेयर किया गया है।

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान की पत्नी बुशरा बीबी ने पति की सत्ता से बाहर होने के मामले में बड़ा खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि सऊदी अरब ने उनके पति इमरान खान को सत्ता से हटाने में अहम भूमिका निभाई है। बुशरा बीबी ने इस मामले में एक वीडियो संदेश जारी कर कहा है कि सऊदी अधिकारियों ने पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) कमर जावेद बाजवा से संपर्क किया और खान के नेतृत्व पर चिंता जाहिर की। साथ ही कहा कि इमरान खान जैसे व्यक्ति को सत्ता में क्‍यों आने दिया गया।

बुशरा बीबी ने दावा किया कि सऊदी अधिकारियों ने बाजवा से कहा कि 'ये अपने साथ किस आदमी को उठा लाए हो... हम इस मुल्क में शरीयत का निजाम खत्म करना चाहते हैं और तुम शरीयत के ठेकेदारों को उठा लाए हो। हम ऐसे आदमी को नहीं चाहते।' उन्होंने आगे कहा कि इसके बाद से उन्होंने हमारे खिलाफ 'बदनामी का अभियान शुरू कर दिया और इमरान को यहूदी एजेंट कहना शुरू कर दिया।

धरने में शामिल होने की अपील

बुशरा बीबी ने वीडियो संदेश में पीटीआई समर्थकों से 24 नवम्बर को इस्लामाबाद में होने वाले विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की है। उन्होंने कहा कि पीटीआई संस्थापक ने संदेश भेजा है कि सभी 24 नवम्बर के विरोध प्रदर्शन में शामिल होना चाहिए। 'किसी भी हालत में तारीख नहीं बदली जाएगी।' उन्होंने कहा कि जब तक इमरान खान खुद बाहर आकर ऐलान नहीं करते, 24 नवम्बर के धरने की तारीख नहीं बदली जाएगी।

बुशरा बीबी के दावे पर बाजवा का जवाब

बुशरा बीबी के इन आरोपों पर पूर्व आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने जवाब दिया है। द एक्स्प्रेस ट्रिब्यून से बात करते हुए कमर बाजवा ने कहा कि कोई भी देश ऐसे दावे नहीं करेगा, खासकर वो देश जिसके साथ पाकिस्तान के लंबे समय से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हों। उन्होंने कहा कि बुशरा बीबी की सऊदी अरब यात्राओं के दौरान, जिनमें खान-ए-काबा और पैगंबर की मस्जिद जैसे पवित्र स्थलों की यात्राएं भी शामिल थीं, उनका बड़े सम्मान के साथ स्वागत किया गया और उन्हें कई महंगे गिफ्ट्स भी दिए गए थे। उन्होंने कहा कि “इस महिला के दावे (बुशरा बीबी) मुझे हैरान कर रहे हैं। ये 100 प्रतिशत झूठ हैं। ऐसा लगता है कि इमरान खान भी भविष्य में इस कथन का समर्थन करना शुरू कर सकते हैं।

गौतम अडानी पर लगे आरोपों पर आया व्हाइट हाउस का बयान, भारत से संबंधों पर कही ये बात

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भारत के दूसरे सबसे अमीर शख्स गौतम अदानी पर अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट ने रिश्वत और धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है।अडानी और उनके सात सहयोगियों के ख़िलाफ न्यूयॉर्क की अदालत में आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं। उनके खिलाफ अरेस्ट वारंट भी जारी किया गया है। अडानी इस मामले में चौतरफा घिर गए हैं। इस बीच पूरे मामले में अब व्हाइट हाउस का बयान आया है।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरीन जीन-पियरेने कहा है, हम इन आरोपों से वाकिफ हैं। इन आरोपों पर अमेरिका के सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमिशन (एसईसी) और न्याय विभाग (डीओजी) ही अधिक जानकारी दे पाएंगे। प्रवक्ता से पूछा गया कि गौतम अदानी पर लगे आरोपों के कारण क्या दोनों देशों के बीच संबंधों को नुकसान होगा। इसके जवाब में प्रवक्ता ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते काफी मज़बूत नींव पर टिके हैं। मुझे यकीन है कि यह संबंध आगे भी बने रहेंगे।

अडानी समूह पर क्या आरोप हैं?

अडानी समूह पर आरोप हैं कि उसने कथित तौर पर सौर उर्जा अनुबंधों के लिए 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 2,100 करोड़ रुपये) रिश्वत दी थी, जिसके बाद के बाद अमेरिकी अभियोजकों ने जांच शुरू की है। न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में हुई सुनवाई में गौतम अडानी समेत 8 लोगों पर अरबों की धोखाधड़ी और रिश्वत के आरोप लगे हैं। यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नी ऑफिस का कहना है कि अडानी ने भारत में सोलर एनर्जी से जुड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन डॉलर (करीब 2200 करोड़ रुपए) की रिश्वत दी।

क्या है मामला?

पूरा मामला अडानी ग्रुप की कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और एक अन्य फर्म से जुड़ा हुआ है। 24 अक्टूबर 2024 को यह मामला अमेरिकी कोर्ट में दर्ज किया गया, जिसकी सुनवाई बुधवार को हुई. अडानी के अलावा शामिल सात अन्य लोग सागर अडानी, विनीत एस जैन, रंजीत गुप्ता, साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल हैं। अडानी पर आरोप है कि रिश्वत के इन पैसों को जुटाने के लिए अमेरिकी, विदेशी निवेशकों और बैंकों से झूठ बोला। सागर और विनीत अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के अधिकारी हैं। सागर, गौतम अडानी के भतीजे हैं. गौतम अडानी और सागर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया।

कर्नाटक में वक्फ बोर्ड के अतिक्रमण के खिलाफ लोगों में गुस्सा, सड़कों पर उतरे साधु-संत और किसान

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कर्नाटक समेत देशभर में जिस तेजी से वक्फ बोर्ड मनमाने तरीके से संपत्तियों को क्लेम करता जा रहा है उसके खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि उसके खिलाफ अब लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं। ताजा मामला कलबुर्गी का है, जहां साधु-संतों, किसानों और बीजेपी कार्यकर्ताओं ने वक्फ बोर्ड की ओर से कथित अतिक्रमण को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान विशाल रैली निकालकर आक्रोश जताया गया।

वक्फ बोर्ड की मनमानियों के खिलाफ नेगिलायोगी स्वाभिमान वेदिके के बैनर तले प्रदेश के मठों के हिन्दू संत, भाजपा नेताओं और किसान समर्थक संगठनों के सदस्यों ने “वक्फ हटाओ, अन्नदाता बचाओ” तीन दिवसीय विरोध मार्च निकाला है। इस दौरान प्रदर्शन करते हुए संतों और भाजपा नेताओं ने प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया औऱ अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बी जेड जमीर अहमद के खिलाफ नारेबाजी की। साथ ही वक्फ बोर्ड को खत्म करने की मांग की। विरोध मार्च कलबुर्गी के नागेश्वर स्कूल से निकाला गया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने हाथों में “ज़मीर हटाओ, ज़मीन बचाओ”, “रायता देशदा आस्थी”, “वक्फ हटाओ, अन्नदाता बचाओ” नारे लिखी तख्तियां ले रखा था।

इस मौके पर कर्नाटक विधान परिषद के नेता चालावाड़ी नारायणस्वामी ने कहा कि आप स्थिति देख सकते हैं। किसानों की जमीनें छीनी जा रही हैं। यह विरोध प्रदर्शन कलबुर्गी में हो रहा है। हम मंत्री ज़मीर अहमद खान और कांग्रेस सरकार के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

इससे पहले बीजेपी प्रदेश महासचिव प्रीतम गौड़ा ने कहाा था कि कहा कि हजारों प्रभावित व्यक्तियों और किसानों को अपनी शिकायतें प्रस्तुत करने के लिए पूरे दिन मंच पर आमंत्रित किया गया है। हम जिलेवार मुद्दों की गंभीरता की समीक्षा कर रहे हैं। राज्य बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने इन चिंताओं को दूर करने के लिए पहले ही तीन टीमों की घोषणा कर दी है। ये टीमें किसानों, धार्मिक संस्थाओं और जनता की शिकायतों को सुनने के लिए जिलों में जाएंगी और उनके निष्कर्षों पर आगामी बेलगावी विधानसभा सत्र में चर्चा की जाएगी।

कनाडा फिर बैकफुट, पीएम मोदी, जयशंकर और डोभाल पर किए गए दावे से पलटा

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पहले दावे करना और फिर उससे पलट जाना। हरदीप सिंह निज्जर मामले में कनाडा एक बार फिर अपने दावों से पीछे हट गई है। कनाडा सरकार ने माना है कि निज्जर हत्याकांड में पीएम मोदी, एस जयशंकर और अजित डोभाल का न तो कोई कनेक्शन है और न ही कोई सबूत है। ट्रूडो सरकार ने उस कनाडाई मीडिया के दावे को खारिज किया है, जिसने यह आरोप लगाया था। इससे पहले द ग्लोब एंड मेल नाम के कनाडा के अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के शीर्ष नेतृत्व को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की साजिश के बारे में पता था। अखबार ने आरोप लगाया गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के प्लान के बारे में पहले से जानकारी थी। भारत सरकार ने कनाडाई अखबार द ग्लोब एंड मेल की उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया था।

भारत की सख्ती के बाद कनाडा के तेवर नरम पड़ते दिख रहे हैं। भारत की सख्ती के बाद ट्रूडो सरकार ने बयान जारी किया है। कनाडाई मीडिया रिपोर्ट पर सफाई देते हुए जस्टिन सरकार ने कहा, ‘कनाडा सरकार ने यह बयान नहीं दिया है, न ही उसे प्रधानमंत्री मोदी, विदेश मंत्री जयशंकर, या एनएसए अजित डोभाल को कनाडा के भीतर गंभीर आपराधिक गतिविधि से जोड़ने वाले सबूतों की जानकारी है। यह रिपोर्ट अटकलों पर आधारित और गलत है। 

ट्रूडो सरकार ने क्या कहा?

कनाडा सरकार ने एक बयान जारी कर रहा कि, 14 अक्टूबर को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण और निरंतर खतरे के कारण आरसीएमपी और अधिकारियों ने भारत सरकार के एजेंटों द्वारा कनाडा में गंभीर आपराधिक गतिविधि को अंजाम देने के सार्वजनिक आरोप लगाने का असाधारण कदम उठाया था। बयान में आगे कहा गया है कि, कनाडा सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी, मंत्री जयशंकर या एनएसए अजित डोभाल के कनाडा के भीतर किसी भी तरह की आपराधिक गतिविधि में शामिल होने के कोई भी सबूत नहीं है, न ही उसे इसकी जानकारी है। 

निराधार आरोपों पर चिंताएं

कनाडा सरकार ने इस मामले में मीडिया और अन्य स्रोतों से अनुरोध किया कि वे किसी भी बिना साक्ष्य के आरोपों को बढ़ावा न दें। सरकार का कहना था कि इस तरह के निराधार आरोप अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं और दोनों देशों के बीच विश्वास को भी चोट पहुंचा सकते हैं।

कनाडा सरकार का यह बयान दोनों देशों के बीच जारी तनावपूर्ण स्थिति को और स्पष्ट करता है। हालांकि, कनाडा ने यह भी माना है कि सार्वजनिक सुरक्षा के संदर्भ में गंभीर खतरे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह कदम उठाया था, लेकिन अब इसने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय नेताओं का इस आपराधिक गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है। अब देखने वाली बात यह होगी कि दोनों देशों के बीच रिश्ते इस स्थिति के बाद किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।

रिपोर्ट में क्या कहा गया?

बता दें कि द ग्लोब एंड मेल नाम के कनाडा के अखबार ने मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र था कि निज्जर की हत्या से जुड़े कथित प्लॉट के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर और एनएसए अजित डोवाल को जानकारी थी और सेक्योरिटी एजेंसियों को लगता है कि इसकी जानकारी पीएम मोदी को भी हो सकती है। रिपोर्ट में ये दावे बिना नाम दिए कनाडा के नेशनल सिक्योरिटी ऑफिसर के हवाले से किए गए थे।

निज्जर की हत्या के मामले में पहली बार सीधे पीएम मोदी पर आरोप लगाए गए। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि इसे लेकर कानाडा सरकार के पास कोई ठोस सबूत नहीं है। इससे पहले कनाडा की संसदीय समिति के सामने वहां के उप विदेशमंत्री केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर भी ऐसी ही टिप्पणी कर चुके हैं। भारत ने इन पर भी कड़ी आपत्ति जताते हुए इन्हें बेतुका और निराधार बताया था। बीते दिनों विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को निराधार करार देते हुए कनाडा सरकार के समक्ष आधिकारिक तौर पर विरोध भी दर्ज करवाया था।

बेंजामिन नेतन्याहू की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी, जानें इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले के पीछे की वजह

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इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध ने बड़ा रूप धारण कर लिया है। पिछले साल अक्‍टूबर में हमास के लड़ाकों ने इजरायल में घुसकर हजार से ज्‍यादा लोगों की निर्मम तरीके से हत्‍या कर दी थी और 250 से ज्‍यादा इजरयली नागरिकों को अगवा कर लिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू ने बदला लेने की कसम खाई। जिसके बाद शुरू हुई जंग बढ़ती ही जा रही है। इजराइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान 40 हजार से ज्‍यादा मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। जबकि एक लाख से ज्‍यादा घायल हुए हैं। इस बीच इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने गुरुवार को युद्ध और मानवता के खिलाफ अपराधों को लेकर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योव गैलेंट के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

आईसीसी के जजों ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलंट और हमास के सैन्य कमांडर मोहम्मद डेफ के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया है। आईसीसी ने कहा कि इन नेताओं पर इजराइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों का आरोप है। कोर्ट ने नेतन्याहू के खिलाफ आरोपों को लेकर जांच कराने का भी आदेश दिया है।

रिर्पोट के मुताबिक, आईसीसी ने पीएम नेतन्याहू और इजराइल के रक्षा मंत्री पर इजराइली सेना को फिलिस्तीनी नागरिकों को जानबूझ कर मारने का आदेश देने और गाजा में अंतराष्ट्रीय मानवीय मदद को पहुंचने से रोकने के मामले में दोषी पाया, जिससे वजह से वहां पर भुखमरी के स्तिथी बनी। कोर्ट ने अपने जांच में पाया कि इजराइली पीएम ने जंग के बहाने फिलिस्तीनियों नागरिकों की हत्याएं करवाईं और गाजा को तहस नहस करने का भी आदेश दिया। आईसीसी के जजों ने इन सभी पहलुओं को देखते हुए उनके खिलाफ वारंट जारी करने का फैसला लिया।

इजराइल के राष्ट्रपति ने कहा- आईसीसी का ये फैसला एक मजाक

इस फैसले पर इजराइल के राष्ट्रपति आइजैक हर्जोग ने कहा कि आईसीसी का यह फैसला एक मजाक बन गया है। फैसला आतंकवाद के पक्ष में गया है। वहीं, फिलिस्तीनी नेता मुस्तफा बारघौती ने नेतन्याहू और गैलंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट का स्वागत किया और आईसीसी से इस्राइल के खिलाफ नरसंहार के मामले में जल्द फैसला लेने का अनुरोध किया।

अमेरिका ने क्या कहा?

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले पर अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की है। राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि इजरायल को आत्‍मरक्षा का पूरा अधिकार है। पीएम नेतन्‍याहू और अन्‍य के खिलाफ आईसीसी की ओर से जारी अरेस्‍ट वारंट के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्‍हें कौन और कहां की पुलिस गिरफ्तार करेगी? दरअसल, निर्धारित प्रावधानों के तहत आईसीसी के सदस्‍य देशों की पुलिस नेतन्‍याहू को गिरफ्तार कर सकती है। बता दें कि अमेरिका आईसीसी का सदस्‍य देश नहीं है। हालांकि, आईसीसी के फैसले पर अमल काफी मुश्किल है

डोनाल्‍ड ट्रंप कैसे पूरा करेंगे अपना वादा, लाखों अवैध प्रवासियों को निकालना होगा कितना मुश्किल?

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डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीता है। वे जनवरी महीने में अपना पदभार ग्रहण करेंगे। दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन में ट्रंप अपनी आक्रामक नीतियों को लागू करेंगे। वे जो बाइडन प्रशासन के कई फैसलों को पलटने की तैयारी में हैं। अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और महंगाई को लेकर ट्रंप बड़ा फैसला लेंगे। ट्रंप के प्लान में प्रवासियों का बड़े पैमाने पर निर्वासन भी शामिल है। डोनाल्ड ट्रंप सबसे पहले आव्रजन और उर्जा नीति में बदलाव करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप 2015 से ही आव्रजन पर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। ट्रंप ने भारी संख्या में अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकालने का वादा किया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि ट्रंप सबसे पहले इसी पर काम करेंगे। चुनाव जीतने के बाद अपने भाषण में भी डोनाल्ड ट्रंप ने बिना प्राधिकरण के देश में रहने वाले विदेशियों के खिलाफ आलोचना की और चेतावनी दी कि अनियंत्रित आप्रवासन "हमारे देश के खून में जहर घोल रहा है" और इसे रोका जाना चाहिए। ट्रंप कह चुके हैं कि "पहले ही दिन, हम अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान शुरू करेंगे।"

दुनिया का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान चलाने की प्लानिंग कर चुके डोनाल्ड ट्रंप ने इसके लिए टॉम होमन को जिम्मा सौंपा है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) के निदेशक टॉम होमन को "सीमा ज़ार" के रूप में नियुक्त करेंगे जो देश की सीमाओं के प्रभारी होंगे। टॉम होमन ने कहा कि उनका प्रशासन पहले उन 4 लाख 25 हजार अवैध प्रवासियों को निर्वासित करेगा। ये वे आंकड़े हैं जिनके खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड हैं।

ट्रंप इस मुद्दे को लेकर जितनी मुखरता दिखा रहे हैं, उसके रास्ते में कई कानूनी अड़चनें आने और हिंसक झड़पें होने के आसार हैं। केवल अवैध आप्रवासियों में ही नहीं बल्कि वैध रूप से अमेरिका आकर काम कर रहे और आगे यहां स्थायी रूप से बसने के लिए ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे लोगों के बीच भी संशय पैदा हो गया है। हालात यह हो गए हैं कि इससे बचने के रास्ते तलाशने के लिए आप्रवासन मामलों के वकीलों के पास सलाह लेने वालों का तांता लगने लगा है और इसके साथ ही अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा है। ऐसी अफवाहें भी फैल गई हैं कि जन्म से नागरिकता दिए जाने की व्यवस्था भी ट्रंप सरकार खत्म करने जा रही है जबकि ऐसा कोई सरकारी एजेंडा नहीं है।

ट्रंप और नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने आपराधिक रिकॉर्ड वाले 50 लाख से लेकर 10 लाख तक अवैध आप्रवासियों को गिरफ्तार कर निर्वासित करने की शुरुआत करने की बात कही है। ट्रंप इस मुद्दे को लेकर जितनी मुखरता दिखा रहे हैं, उसके रास्ते में कई कानूनी अड़चनें आने और हिंसक झड़पें होने के आसार हैं। ट्रंप ने अपने सबसे बड़े चुनावी वादे को पूरा करने की अहम जिम्मेदारी टॉम होमन को सौंपी है। उन्हें सीमा सुरक्षा विभाग का मुखिया चुना है। साथ ही यह भी कहा है कि वह बार्डर जार साबित होंगे यानि की एक ऐसी शख्सियत जिन्हें निर्वासन प्रक्रिया के लिए जरूरी सभी अधिकार दिए जाएंगे। इन्हीं होमन और उनके परिवार को पिछले कुछ दिनों में जान से मारने की धमकियां मिल चुकी हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब कार्रवाई शुरू होगी तो ऐसे मामले तेजी से बढ़ेंगे।

वहीं, अवैध प्रवासियों का सामूहिक निर्वासन अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। दरअसल, अमेरिका में निर्माण कार्यो और खेती बाड़ी जैसे क्षेत्र तो पूरी तरह से आप्रवासी श्रमिकों पर ही टिके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये लोग स्थानीय लोगों की तुलना में कम पैसों में काम करने को राजी हो जाते हैं। ऐसे में कारोबारियों के लिए ये सस्ते में उपलब्ध श्रमिक होते हैं। इनमें से ज्यादातर अवैध रूप से मेक्सिको के रास्ते घुस आए आप्रवासी हैं। कई को दो साल तक के लिए अमेरिका में काम करने का अस्थायी लाइसेंस मिला हुआ है लेकिन जिनकी यह अवधि खत्म हो रही है, वह ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से बेहद चिंतित नजर आ रहे हैं। इससे

ट्रंप को अपना वादा पूरा करने के लिए उनके प्रशासन को आव्रजन अदालत प्रणाली का विशाल विस्तार करना होगा। वह नए न्यायाधीशों की एक बड़ी सेना कैसे जुटाएंगे, यह अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है। बड़े पैमाने पर कार्यस्थल पर छापेमारी सहित गैर-दस्तावेज आप्रवासियों को ढूंढना और उनका पता लगाना, आईसीई एजेंटों का काम होगा। उनकी संख्या, जो अब लगभग 20,000 है, बहुत अधिक बढ़ानी होगी, शायद दोगुनी या तिगुनी। ट्रम्प के कार्यालय संभालने के समय इतने सारे एजेंटों की भर्ती करना उतना ही असंभव है जितना कि आप्रवासन न्यायाधीशों की एक बड़ी सेना को खड़ा करना। ये केवल दो बाधाएं हैं जिन्हें विशेषज्ञ ट्रम्प के नए कार्यकाल की शुरुआत में बड़ी कार्रवाई की संभावना पर संदेह के कारणों के रूप में उद्धृत करते हैं।

रूस ने यूक्रेन पर दागी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, जंग में पहली बार इस हथियार का इस्तेमाल*
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रूस और यूक्रेन के बीच जंग अपने चरम पर पहुंचती दिख रही है। इस युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन बीत गए हैं। अब दोनों के देशों के बीच इस लड़ाई में नई तेजी आ गई है। रूस ने यूक्रेन से लड़ने के लिए उत्‍तर कोरिया के हजारों सैनिकों को मैदान में उतार दिया है। वहीं इससे भड़के अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का इस्‍तेमाल करने की अनुमति दे दी है। इसके बाद यूक्रेन ने अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों की मदद से रूस पर कई हमले किए हैं। इसके जवाब में रूस की ओर से इस युद्ध में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया गया है। रूस ने गुरुवार को यूक्रेन पर एक बड़ा हमला किया, जिसमें उसने अपने दक्षिण आस्त्रखान क्षेत्र से इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल दागी। यह पहली बार है, जब रूस ने इस तरह की शक्तिशाली और लंबी दूरी वाली मिसाइल का इस्तेमाल किया। यूक्रेनी वायुसेना ने यह जानकारी दी। मॉस्को की ओर से इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल से हमला उस समय हुआ है, जब यूक्रेन ने इस हफ्ते अमेरिका और ब्रिटेन की मिसाइलों का उपयोग करके रूस के अंदर कुछ लक्ष्यों को निशाना बनाया, जिसके बारे में मॉस्को ने महीनों पहले चेतावनी दी थी कि यह तनाव को बहुत अधिक बढ़ा सकता है। रूस के आस्त्रखान क्षेत्र से लॉन्च की गई एक इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, ताम्बोव क्षेत्र में मिग-31K फाइटर जेट से दागी गई। वायु सेना के एक सूत्र ने एएफपी को बताया कि रूस ने गुरुवार को यूक्रेन में जो इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की, उसमें परमाणु चार्ज नहीं था। यूक्रेनी वायु सेना के सूत्र ने एएफपी को बताया कि यह स्पष्ट था कि जिस हथियार का पहली बार यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था, उसमें कोई परमाणु हथियार नहीं था। यह पहली बार है जब रूस ने युद्ध के दौरान इतनी शक्तिशाली, लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल किया है। यह हमला यूक्रेन द्वारा युद्ध के बाद पहली बार रूस के अंदर लक्ष्यों पर ब्रिटिश-फ्रांसीसी निर्मित स्टॉर्म शैडो मिसाइलों को दागने के एक दिन बाद हुआ है। मॉस्को ने महीनों पहले चेतावनी दी थी कि इस तरह के हमले को एक बड़ी वृद्धि के रूप में देखा जाएगा।
रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों पर अडानी ग्रुप ने जारी किया बयान, कहा- हरसंभव कानूनी सहारा लेंगे*
#adani_group_issued_a_statement_on_the_allegations_in_america *
अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी और उनकी कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी के डायरेक्टर्स समेत 8 लोगों के खिलाफ अमेरिकी न्याय विभाग ने रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। अडानी समूह ने अमेरिकी न्याय विभाग और अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग की ओर से अडानी ग्रीन के निदेशकों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। कंपनी के बयान के मुताबिक, सभी आरोप निराधार हैं। साथ ही ग्रुप ने अपना अगला कदम भी स्पष्ट कर दिया है। अडानी ग्रुप ने गुरुवार को अडानी ग्रीन के निदेशकों के खिलाफ अमेरिकी न्याय विभाग और अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग की ओर से लगाए गए रिश्वत के आरोपों को निराधार बताते हुए उनका खंडन किया। इस मामले में ग्रुप ने एक स्टेटमेंट जारी किया है। इसमें लिखा है कि अमेरिकी न्याय विभाग ने अभियोग में अभी लगाए हैं। जब तक दोष साबित नहीं हो जाते, तब तक प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाता है। इसमें लिखा है कि इस मामले में सभी संभव कानूनी उपाय किए जाएंगे। अडानी ग्रुप ने स्टेटमेंट में अपने शेयरधारकों को भरोसा दिलाया है। इसमें कहा गया है कि अडानी ग्रुप ने सभी सेक्टर में हमेशा पारदर्शिता और रेगुलेटरी नियमों का पालन किया है और करता रहेगा। स्टेटमेंट में लिखा है, हम अपने शेयरहोल्डर्स, पार्टनर और ग्रुप के कर्मचारियों को आश्वस्त करते हैं कि हम एक कानून का पालन करने वाले संगठन हैं, जो सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है। *क्या है पूरा मामला?* बता दें कि देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अडानी पर अमेरिका में रिश्वत और धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं। यह पूरा मामला अडाणी ग्रुप की कंपनी अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और एक अन्य फर्म से जुड़ा हुआ है। आरोपों के अनुसार, यह रिश्वत 2020 से 2024 के बीच बड़े सौर ऊर्जा अनुबंध हासिल करने के लिए दी गई, जिससे अडानी समूह को 2 बिलियन डॉलर से अधिक का लाभ होने की संभावना थी। 24 अक्टूबर 2024 को यह मामला यूएस कोर्ट में दर्ज किया गया, जिसकी सुनवाई बुधवार को हुई। न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में हुई सुनवाई में गौतम अडानी समेत 8 लोगों पर अरबों की धोखाधड़ी और रिश्वत के आरोप लगे हैं। अडानी के अलावा शामिल 7 अन्य लोग सागर अडाणी, विनीत एस जैन, रंजीत गुप्ता, साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल हैं। सागर और विनीत अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के अधिकारी हैं। सागर, गौतम अडानी के भतीजे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गौतम अडानी और सागर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है।
कसाब तक को निष्पक्ष सुनवाई दी गई, यासीन मलिक केस में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक के मामले में सुनवाई हुई। कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक की कोर्ट में व्यक्तिगत पेशी के खिलाफ सीबीआई की अपील पर गुरुवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी अजमल कसाब का जिक्र किया। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि इस देश में आतंकी अजमल कसाब को भी निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिया गया था, तो यासीन मलिक को क्यों नहीं। साथ ही कोर्ट ने सीबीआई को एक हफ्ते में संशोधित याचिका दायर करने को कहा और केस से जुड़े सभी आरोपियों को पक्षकार बनाने की इजाजत दी। मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने जम्मू कश्मीर सत्र अदालत के बीते साल सितंबर में दिए एक आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे संकेत दिए कि अदालत यासीन मलिक मामले में तिहाड़ जेल के भीतर ही कोर्ट रूम स्थापित करने का निर्देश दे सकती है। सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि यह यासीन मलिक की चालबाजी है इसलिए वह कह रहे हैं कि किसी वकील के बजाय वह खुद कोर्ट में पेश होंगे। एसजी मेहता ने लश्कर-ए-तैयबा के फाउंडर हाफिज सईद के साथ यासीन मलिक की फोटो कोर्ट को दिखाते हुए कहा कि यह सुरक्षा के लिहाज से यह बहुत बड़ा मुद्दा है। साथ ही यह गवाहों के लिए भी खतरे की बात है। तुषार मेहता के तर्क पर जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा, लेकिन ऑनलाइन सुनवाई में क्रॉस एग्जामिनशेन कैसे हो पाएगा? जम्मू में तो अच्छी कनेक्टिविटी भी नहीं है।' जज की चिंता पर एसजी तुषार मेहता ने फिर से दोहराया कि यासीन मलिक कोई साधारण अपराधी नहीं है वह कई बार हाफिज सईद से मिलने पाकिस्तान भी जा चुका है। उन्होंने कहा कि गवाहों को भी सिक्योरिटी की जरूरत होगी क्योंकि पहले एक गवाह की हत्या कर दी गई थी। तब जस्टिस ओका ने कहा कि हमारे देश में अजमल कसाब को भी निष्पक्ष ट्रायल दिया गया था। इसके बाद पीठ ने कहा कि वे तिहाड़ जेल में ही यासीन मलिक के मामले की सुनवाई के लिए सत्र अदालत के जज को दिल्ली बुलाने पर विचार सकते हैं, लेकिन उससे पहले मामले में सभी आरोपियों की सुनवाई होनी चाहिए। इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई 28 नवंबर के लिए टाल दी है। क्या है मामला? दरअसल, यह पूरा मामला 1990 में चार वायु सेना कर्मियों की हत्या से जुड़ा है। यासीन मलिक के नेतृत्व में आतंकवादियों के एक समूह ने 25 जनवरी 1990 को श्रीनगर में भारतीय वायु सेना के जवानों पर गोलीबारी की थी। इस हमले में चार जवान मारे गए थे और 40 अन्य घायल हुए थे। मलिक उस समय आतंकवादी समूह जेकेएलएफ का नेता था। मलिक को 1990 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उसे रिहा कर दिया था। उसके मुकदमे पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि, यासीन पिछले 5 साल से जेल में बंद है. यासीन को अभी सिर्फ टेरर फंडिंग के केस में सजा हुई है।