भारत से मुशर्रफ का नामोनिशान खत्म, बागपत में आखिरी जमीन भी नीलाम हुई, किसने खरीदी और कितने में बिकी?


डेस्क: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के कोताना में स्थित शत्रु संपत्ति के अंतर्गत आने वाली दो हेक्टेयर जमीन को तीन लोगों ने नीलामी में खरीद ली है। नीलामी में बिकी जमीन पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत परवेज मुशर्रफ से जुड़ी होने का दावा किया जा रहा है। बताया जाता है कि यह जमीन पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के रिश्तेदारों की है। इस जमीन को ऑनलाइन नीलामी में 3 लोगों ने खरीदा है जिसके बाद उन्होंने 25 प्रतिशत पैसा भी सरकार को जमा कर दिया है। परवेज मुशर्रफ के रिश्तेदारों की जमीन काफी वक्त से यहां पड़ी हुई थी।

जिले के अपर जिला मजिस्ट्रेट (ADM) पंकज वर्मा ने बताया कि तीन लोगों ने ऑनलाइन नीलामी के जरिये 1 करोड़ 38 लाख 16 हज़ार रुपये में आठ प्लॉट वाली कुल 13 बीघा जमीन खरीदी है और कुल रकम का 25 फीसदी पैसा जमा कर कर दिया है।

सोशल मीडिया पर, नीलाम संपत्ति मुशर्रफ के परिजनों की बताई जा रही है। हालांकि, वर्मा के अनुसार इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है और न ही कोई ऐसा कोई सबूत मिला है कि नूरू नामक व्यक्ति मुशर्रफ का परिजन था। उन्होंने कहा, “राजस्व अभिलेख में यह शत्रु सम्पत्ति नूरू के नाम से दर्ज है। हालांकि दस्तावेजों में नूरू और मुशर्रफ के बीच किसी संबंध के बारे में जानकारी नहीं है। रिकॉर्ड में केवल इतना पता चला है कि नूरु इस संपत्ति का मालिक था, जो 1965 में पाकिस्तान चला गया था।" वर्मा ने बताया कि धन जमा करने के बाद खरीदारों के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज हो जाएंगे।

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुशर्रफ के दादा कोटाना में रहते थे जबकि मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था और वह कभी बागपत नहीं आए। अपर जिलाधिकारी वर्मा ने कहा कि मुशर्रफ के पिता सैयद मुशर्रफुद्दीन और मां जरीन बेगम कभी इस गांव में नहीं रहे, लेकिन उनके चाचा हुमायूं लंबे समय तक यहां रहे। उन्होंने कहा कि गांव में एक घर भी है, जहां हुमायूं आजादी से पहले रहते थे। साल 2010 में इस जमीन को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था।
खालिस्तानी अर्श डल्ला पर बड़ा खुलासा, भारत के खिलाफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI दे रही घातक हथियार

डेस्क: खलिस्तान टाइगर फोर्स की कमान संभाल रहे अर्श डल्ला पर बड़ा खुलासा हुआ है। भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI भारत के खिलाफ खलिस्तानी आतंकियों को हथियार भेज रही है। अर्श डल्ला के पास से कनाडा पुलिस ने कई हाइटेक हथियार बरामद किए हैं। जांच में पता चला कि ये हथियार अर्श डल्ला के हैं।

सूत्रों ने बताया कि खालिस्तानी अर्श डल्ला को कनाडा में 28 अक्टूबर की रात गोली लगी थी। ये गोली डल्ला के दाहिने हाथ में लगी थी। जानकारी के अनुसार, अर्श डल्ला और उसका एक साथी गुरजंत सिंह कार में मिल्टन इलाके से गुजर रहे थे। तभी उसकी कार में रखे हथियार से गलती से गोली चल जाती है। जिसमें वह घायल हो जाता है। इसके बाद डल्ला अस्पताल में इलाज कराने पहुंचा।

अस्पताल प्रशासन गोली लगने से घायल होने की जानकारी पुलिस को दी। डल्ला ने एक फर्जी कहानी बनाते हुए बताया कि उस पर एक कार में आए हमलावरों ने हमला किया है। पुलिस अस्पताल में पहुंची और डल्ला से बात करने के बाद उसकी गाड़ी की तलाशी लेती है। इसके बाद पुलिस घटना के बाद गाड़ी का रूट चेक करती है। पुलिस वारदात वाले रूट पर एक घर में पहुंची। उस घर के गैराज से पुलिस को कई प्रतिबंधित हथियार और कारतूस मिले। जांच में पता चला कि ये हथियार अर्श डल्ला के हैं।

बता दें कि अभी हाल में ही कनाडा पुलिस ने अर्श डल्ला को गिरफ्तार किया था। यह घटनाक्रम भारत और कनाडा के बीच गहराते तनाव के बीच आया है। डल्ला हरदीप सिंह निज्जर का करीबी सहयोगी है। निज्जर जून 2023 में सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर मारा गया था। डल्ला की जमानत अर्जी पर आज सुनवाई होगी।
मुख्यमंत्री योगी की पहल पर UPPSC ने लिया बड़ा फैसला, छात्रों की मान ली गई मांग

डेस्क: प्रयागराज में छात्रों की मांग का सीएम योगी ने संज्ञान लिया है। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर UPPSC ने बड़ा निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री ने आयोग को पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा 2024 को एक दिवस में कराए जाने को लेकर छात्रों के साथ संवाद और समन्वय बनाकर आवश्यक निर्णय लेने को कहा था। जिस पर आयोग ने पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा 2024 को एक दिन में कराए जाने का निर्णय लिया है।

सीएमओ ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग  यूपी पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा एक दिन में कराएगा। सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में छात्रों की मांग का संज्ञान लिया और आयोग को एक दिन में पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा 2024 के संबंध में छात्रों से संवाद और समन्वय कर आवश्यक निर्णय लेने को कहा। वहीं, आरओ/एआरओ (प्री.) परीक्षा-2023 के लिए आयोग द्वारा एक समिति गठित की गई है। समिति सभी पहलुओं पर विचार कर अपनी विस्तृत रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत करेगी।

आसान भाषा में कहें तो आयोग ने सीएम योगी के निर्देश पर फैसला लिया है कि यूपीपीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा पुराने पैटर्न से होंगी यानी एक ही दिन में यह परीक्षा आयोजित होगी। जबकि RO/ARO परीक्षा पर फैसले के लिए कमेटी बनाने की घोषणा की गई है।

जानकारी के लिए बता दें कि पीसीएस की परीक्षा के लिए दो चरण होते हैं, पहला प्रीलिम्स और दूसरा मेंस। पहले ये पेपर चार शिफ्ट में 7 और 8 दिसंबर को होने थे पर अब नए आदेश में यह परीक्षा एक ही दिन में दो शिफ्ट में आयोजित होगी। वहीं, RO/ARO परीक्षा में एक ही पेपर होता है, जो पहले 22 और 23 दिसंबर को तीन पालियों में होनी थी, जिस पर अब कमेटी बना दी गई है जो जल्द ही अपना रिपोर्ट देगी।
कन्हैया कुमार बोले- ‘धर्म बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी, देवेंद्र फडणवीस की पत्नी बस इंस्टाग्राम पर रील बनाएंगी'


डेस्क: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। 20 नवंबर को मतदान होगा और 23 नवंबर को मतों की गणना की जाएगी। इस दिन तय हो जाएगा कि आखिर महाराष्ट्र में किसकी सरकार आएगी। इसी कड़ी में महाराष्ट्र में सभी राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने में लगे हुए हैं। इस बीच कांग्रेस पार्टी के नेता कन्हैया कुमार नागपुर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा, "धर्म को बचाने की जिम्मेदारी हम सब की जिम्मेदारी है। ऐसा न हो कि हम धर्म बचाएं और उपमुख्यमंत्री की बीवी इंस्टाग्राम पर रील बनाएगी।"

कन्हैया कुमार ने कहा, 'जय शाह बीसीसीआई में आईपीएल की टीम बना रहे हैं और हमें ड्रीम 11 पर टीम बनाकर जुआरी बनाया जा रहा है।' दरअसल कन्हैया कुमार नागपुर दक्षिण-पश्चिम विधानसभा के कांग्रेस उम्मीदवार प्रफुल्ल गुडघे के लिए चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे। इसी दौरान उन्होंने अमित शाह के बेटे जय शाह और देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृत फडणवीस पर निशाना साधा। प्रफुल्ल गुडघे के प्रचार में संबोधित करेत हुए कन्हैया कुमार ने कहा, धर्म को बचाने की जिम्मेदारी हम सब की होगी। ऐसा तो नहीं होगा कि धर्म बचाने की जिम्मेदारी होगी और उपमुख्यमंत्री की पत्नी इंस्टाग्राम पर रील बनाएंगी।

कन्हैया कुमार ने देवेंद्र फडणवीस की पत्नी का नाम लिए बगैर उनपर निशाना साधा। वहीं अमित शाह के बेटे जय शाह का नाम लेते हुए कन्हैया कुमार ने कहा, वह बीसीसीआई में आईपीएल की टीम बना रहे हैं और हमें ड्रीम 11 पर टीम बनाने के लिए बोल रहे हैं। क्रिकेटर बनाने का सपना दिखाकर जुआरी बनाया जा रहा है। बता दें कि महाराष्ट्र में एक चरण में 20 नवंबर को मतदान किया जाना है। वहीं 23 नवंबर को चुनाव के परिणाम घोषित किए जाएंगे। इस बीच महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच चुनावी मुकाबला कड़ा है।
कनाडा पुलिस ने पहले खालिस्तानियों का किया समर्थन, अब हिंदुओं की सुरक्षा के बदले मांगे पैसे


डेस्क: कनाडा और भारत के बिगड़ते रिश्तों के बीच अब जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व वाली सरकार का खालिस्तान समर्थकों के लिए नर्म रुख देखकर स्थानीय पुलिस भी उन्हें सपोर्ट करने लगी है। इसकी बानगी कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर हुए हमले के बाद साफ नजर आ रही है। खालिस्तान आतंकियों के समर्थकों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इस बीच अब पुलिस हिंदुओं के साथ भेदभाव पर उतर आई है। कनाडा पुलिस ने हिंदू संगठनों से कार्यक्रमों में सुरक्षा देने के बदले पैसा की मांग की है। हालांकि, इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि पील पुलिस ने हिंदू संगठनों से कथित तौर पर सुरक्षा देने के बदले 70 हजार डॉलर की मांग की है। पुलिस के इस रवैये के बाद हिंदू संगठन के लोगों में खासी नाराजगी भी देखने को मिल रही है। इतना ही नहीं ट्रूडो की सरकार पर अल्पसंख्यक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया जा रहा है। कई हिंदू संगठनों का कहना है, “हम भी तो टैक्स दे रहे हैं फिर यह भेदभाव क्यों?”

हिंदू संगठनों का कहना है कि उनके कार्यक्रमों को रद्द करने के लिए कनाडा सरकार पर खालिस्तानी समूह दबाव बना रहे हैं और जस्टिन ट्रूडो की सरकार इस दबाव में आ रही है। दुनिया में पहला मौका है, जब स्थानीय पुलिस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के बदले फीस मांग रही है। कनाडा के विभिन्न शहरों में खालिस्तानी समर्थक भारत विरोधी नारेबाजी और हिंसक प्रदर्शन करते रहे हैं, जिससे हिंदू समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है। कनाडा पुलिस से जुड़ा यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।
ब्राजील की सुप्रीम कोर्ट के बाहर शख्स ने खुद को बम से उड़ाया, मच गया हड़कंप

डेस्क: ब्राजील से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश करने में असफल रहे एक शख्स ने  इमारत के बाहर विस्फोट कर खुद को खत्म कर लिया। अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि घटना के बाद न्यायाधीशों और कर्मचारियों ने इमारत खाली कर दी और बाहर आ गए। ब्राजील के उच्चतम न्यायालय ने एक बयान में कहा कि सत्र समाप्त होने के बाद बुधवार शाम करीब साढ़े सात बजे दो बार तेज धमाकों की आवाज सुनी गई। धमाकों के बाद सभी न्यायाधीश और कर्मचारी सुरक्षित रूप से भवन से बाहर निकल गए।

अग्निशमन कर्मियों ने राजधानी ब्रासीलिया में एक व्यक्ति की घटनास्थल पर ही मौत हो जाने की पुष्टि की है, हालांकि मृतक की पहचान नहीं की जा सकी है। ब्राजील के संघीय जिले की लेफ्टिनेंट गवर्नर सेलिना लियो ने कहा कि संदिग्ध ने पहले संसद की पार्किंग में एक कार में विस्फोटक लगाया था, जिससे कोई हताहत नहीं हुआ। ‘स्पीकर’ आर्थर लिरा के अनुसार, लीओ ने जोखिमों से बचने के लिए बृहस्पतिवार को संसद बंद करने का सुझाव दिया। ब्राजील की सीनेट ने उनकी बात मान ली और निचला सदन दोपहर तक बंद रहेगा।

ब्रासीलिया के थ्री पॉवर्स प्लाजा में उच्चतम न्यायालय के बाहर लगभग 20 सेकंड के अंतराल पर विस्फोट हुए, इस स्थान पर उच्चतम न्यायालय, संसद और राष्ट्रपति भवन सहित ब्राजील की मुख्य सरकारी इमारतें स्थित हैं। फिलहाल, पुलिस ने मामले की गहन जांच शुरू कर दी है। अभी तक विस्फोट के पीछे की वजहों का पता नहीं चल सका है।
लखनऊ में सभी प्रकार के धरना प्रदर्शन-पुतला जलाने पर रोक, इन चीजों पर भी लगा बैन, BNS की धारा 163 लागू


डेस्क: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 12 जनवरी तक सभी तरह के धरना प्रदर्शन पर रोक लग गई है। पुलिस ने धारा-163 (पूर्व में धारा 144) लागू कर दिया है। पुलिस की तरफ जारी आदेश में कहा गया है कि आगामी त्यौहार एवं कानून व्यवस्था के दृष्टिगत लखनऊ में धारा-163 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लागू किया गया है।

इसके तहत बिना अनुमति के निर्धारित धरना स्थल (ईको गार्डेन) को छोड़कर अन्य स्थान पर किसी भी प्रकार का धरना प्रदर्शन, सरकारी दफ्तरों व राजभवन, मुख्यमंत्री आवास, विधानभवन के आसपास नो फ्लाइंग जोन में ड्रोन कैमरे से शूटिंग, ट्रैक्टर, ट्रैक्टर-ट्राली, घोड़ागाड़ी, बैल गाड़ी, भैसा गाड़ी, तांगागाड़ी और ग्नि सम्बन्धी उपकरण, ज्वलनशील पदार्थ, घातक पदार्थ हथियार आदि लेकर आवागमन पूर्णरूप से प्रतिबन्धित रहेगा।

लखनऊ पुलिस की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है कि आगामी त्यौहार कार्तिक पूर्णिमा, गुरू तेग बहादुर शहीद दिवस, काला दिवस, क्रिसमस डे, नववर्ष व विभिन्न प्रवेश परीक्षाएं और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों, भारतीय किसान संगठनों एवं प्रदर्शनकारियों द्वारा धरना प्रदर्शन से शान्ति व्यवस्था का पूर्णतया अनुपालन कराने हेतु दिनांक 14.11.2024 से धारा 163 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (पूर्व धारा 144 सीआरपीसी) लागू की जाती है।

आदेश के अनुसार, लखनऊ की सीमा के अन्दर बिना अनुमति के आयोजन जिनसे कानून व्यवस्था प्रभावित होने की संभावना हो, तेज धार वाले तथा नुकीले शस्त्र अथवा सार्वजनिक स्थलों पर पुतला जलाना, अफवाहे फैलाना और मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रानिक या सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना का प्रसारित किया जाना प्रतिबन्धित रहेगा।

कोई भी मकान मालिक जिनका मकान लखनऊ में स्थित है वह बिना किरायेदार का पुलिस सत्यापन कराये मकान किराये पर नहीं देंगे। निर्देशों का उल्लंघन करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस का यह आदेश 12 जनवरी तक लागू रहेगा।
हिमाचल सरकार को हाई कोर्ट से बड़ा झटका, प्रदेश के सभी CPS को हटाने के आदेश, बंद होंगी सरकारी सुविधाएं

डेस्क : हिमाचल प्रदेश सरकार को हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने सुक्खू सरकार के सभी छह मुख्य संसदीय सचिव (CPS) को हटाने का आदेश दिया है। सीपीएस की सभी सरकारी सुविधाओं को भी तुरंत वापस लेने के आदेश जारी किए गए हैं। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सीपीएस को पद से हटाया जाए लेकिन वे विधायक रहेंगे।

जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कांग्रेस के 6 विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव (CPS) बनाया था। कल्पना के अलावा राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी के 11 विधायकों और पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था ने भी सीपीएस की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका डाली थी। इनकी याचिका पर ही हाईकोर्ट ने जनवरी महीने में CPS द्वारा मंत्रियों जैसी शक्तियों का उपयोग न करने का अंतरिम आदेश दिया था।

इस मामले में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटा चुकी है और दूसरे राज्यों के सुप्रीम कोर्ट में चल रहे सीपीएस केस के साथ क्लब करने का आग्रह कर चुकी है। मगर, सुपीम कोर्ट  ने राज्य सरकार के आग्रह को ठुकराते हुए हाईकोर्ट में ही केस सुनने के आदेश दिए थे।

सीएम सुक्खू ने कांग्रेस के जिन 6 विधायकों को सीपीएस बना रखा है, उनमें रोहड़ू के विधायक एमएल ब्राक्टा, कुल्लू के सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, दून के राम कुमार चौधरी और बैजनाथ के विधायक किशोरी लाल शामिल हैं। सरकार इन्हें गाड़ी, दफ्तर, स्टाफ और मंत्रियों के समान वेतन दे रही है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-164 में किए गए संशोधन के मुताबिक, किसी राज्य में उसके विधायकों की कुल संख्या के 15% से अधिक मंत्री नहीं हो सकते। हिमाचल विधानसभा में 68 विधायक हैं, इसलिए यहां अधिकतम 12 मंत्री बन सकते हैं।

याचिका में कहा गया कि हिमाचल और असम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति से जुड़े एक्ट एक जैसे हैं। सुप्रीम कोर्ट असम और मणिपुर में संसदीय सचिवों की नियुक्ति से जुड़े एक्ट को गैरकानूनी ठहरा चुका है। इस बात की जानकारी होने के बावजूद हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने अपने विधायकों की नियुक्ति बतौर सीपीएस की।

इसकी वजह से राज्य में मंत्रियों और सीपीएस की कुल संख्या 15% से ज्यादा हो गई। इस केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील पर CPS बने सभी कांग्रेसी विधायकों को व्यक्तिगत तौर पर प्रतिवादी बना रखा है।

हाईकोर्ट में दाखिल पिटीशन में आरोप लगाया गया कि CPS बनाए गए सभी 6 कांग्रेसी विधायक लाभ के पदों पर तैनात हैं। इन्हें हर महीने 2 लाख 20 हजार रुपए वेतन और भत्ते के रूप में मिलते हैं। यानी ये विधायक राज्य के मंत्रियों के बराबर वेतन और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। याचिका में हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) एक्ट, 2006 को भी रद्द करने की मांग की गई थी।

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिन्दल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण फैसले ने साबित कर दिया कि हिमाचल प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार किस प्रकार गैर कानूनी तरीके से मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति करते हुए दो साल व्यतीत कर दिए। लगातार हिमाचल प्रदेश के पैसे का दुरूपयोग हुआ, शक्तियों का दुरूपयोग हुआ, 6 मुख्य संसदीय सचिव बनाकर उनको मंत्रियो के बराबर शक्तियां देना गैर कानूनी रहा, संविधान के खिलाफ रहा। बिन्दल ने कहा कि हम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं जिन्होनें सभी 6 मुख्य संसदीय सचिवों को पद मुक्त करने का निर्देश दिया।
दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट हुई जारी, टॉप नंबर पर भारत-पाकिस्तान के 2 शहर


डेस्क: इन दिनों भारत समेत दुनिया के कई शहरों में लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है, कारण है यहां के एयर पॉल्यूशन। स्विस फर्म आईक्यूएयर ने इसे लेकर 121 देशों की लाइव रैंकिंग शेयर की है। इस रैकिंग के मुताबिक, भारत व पाकिस्तान के 2 शहर में हालात काफी खराब हैं। 121 देशों की लिस्ट में भारत के 3 शहर हैं, इनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, कोलकाता और मुंबई है। 13 नवंबर को स्विस फर्म आईक्यूएयर की लाइव रैंकिग में पहले नंबर पर राजधानी दिल्ली हैं। दिल्ली में आज एक्यूआई 515 तक दर्ज की गई है।

वहीं, दूसरे नबंर पर पाकिस्तान का लाहौर जिला है। यहां कि एक्यूआई 432 मापी गई है। आईक्यूएयर की लाइव रैंकिंग में लाहौर की एक्यूआई 432 है। वहीं, पड़ोसी देश का कराची शहर भी इस लिस्ट में शामिल है। कराची को 147 एक्यूआई के साथ 14वें नंबर पर रखा गया है।

दुनिया के प्रदूषित शहरों में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के किंशासा का तीसरे नंबर पर नाम है। यहां का एक्यूआई 193 मापा गया है। वहीं, मिस्र के काहिरा शहर को चौथे स्थान पर रखा गया, यहां का एक्यूआई 184 पाया गया। वहीं, रैंकिंग में पांचवें स्थान पर वियतनाम की राजधानी हनोई का नाम है। यहां का एक्यूआई लेवल 168 पहुंच गया है। छठवें नंबर पर कतर देश का दोहा शहर है, जहां का एक्यूआई लेवल 166 दर्ज किया गया। इसके अलावा, 7वें नंबर पर सउदी अरब के रियाद का नाम है, यहां का एक्यूआई 160 दर्ज हुआ है।

रैकिंग लिस्ट में 8वें स्थान पर नेपाल की राजधानी काठमांडू है, यहां एक्यूआई लेवल 160 दर्ज हुआ। नौवें नंबर पर 158 एक्यूआई लेवल के साथ मंगोलिया का उल्लानबटार शहर है। जबकि 10वें नंबर पर 158 एक्यूआई के साथ मुंबई शहर है। उसके बाद कोलकाता का नंबर आता है, जहां एक्यूआई 136 रिकॉर्ड किया गया।


वहीं, बांग्लादेश की राजधानी ढाका को 17वें नंबर पर रखा है। जहां का एक्यूआई 122 पहुंच गया। इस लिस्ट में चीन के 7 शहरों में हवा काफी खराब पाई गई है।

आमतौर पर एयर पॉल्यूशन का लेवल एयर क्वालिटी इंडेक्स या AQI के रूप में मापा जाता है। विदेशी मानकों के मुताबिक, 200 से ज्यादा AQI 'बहुत खराब' श्रेणी की मानी जाती है और 300 का लेवल 'गंभीर रूप से खराब स्थिति' को बताता है। वहीं, अगर 0-50 के बीच में AQI का लेवल रहता है तो ये अच्छा माना जाता है, 51-100 रहा तो मध्यम और अगर 101-150 के बीच मिला तो संवेदनशील समूहों के लिए 'खराब हवा' मानी जाती है। वहीं, अगर 151 से 200 के बीच एक्यूआई पाया गया तो ये 'खतरनाक' होता है। इसके अलावा, 201-300 लेवल तक पाए जाने पर 'बहुत खतरनाक' और अगर यह 301 से अधिक पाया गया तो यह 'बहुत-बहुत खतरनाक' माना जाता है।
यह मुस्लिम देश 9 साल की मासूमों से क्यों देने जा रहा शादी का अधिकार, ऐसे में बच्चियां कैसे रहेंगी सुरक्षित?



डेस्क: महज 9 साल की मासूम बच्चियां जिन्हें सनातन धर्म में देवी मानकर पूजा जाता है, उसी उम्र की बच्चियों को एक मुस्लिम देश हवस का शिकार बनाने की खुल्लम-खुल्ला इजाजत देने की तैयारी कर चुका है। आपको सुनकर हैरानी हो रही होगी, लेकिन यह मुस्लिम देश महज 9 साल की बच्चियों से पुरुषों को शादी करने का अधिकार देने वाला कानूनी प्रस्ताव पेश कर चुका है। अब इसे सदन से पास कराने की तैयारी है। महज 9 साल की बच्चियों से शादी का अधिकार देने का मतलब सीधे-सीधे उनका कानूनी रूप से यौन शोषण करने का अधिकार देने जैसा है। इसीलिए महिलाएं सरकार के इस फैसले के विरोध में सड़क पर उतर आई हैं।

इस देश का नाम इराक है। अब यह देश अपने यहां विवाह कानूनों में संशोधन करेगा। जहां लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से घटाकर 9 साल की जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार यह कानून बनने के बाद किसी भी उम्र का पुरुष 9 साल की बच्चियों से शादी करने का कानूनन अधिकारी होगा। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार इस कानून के बनने के बाद उन बच्चियों को तलाक लेने, बच्चे की हिरासत और विरासत का अधिकार भी नहीं होगा। इन सभी से उनको वंचित करने के लिए भी संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं।

इराक में शिया पार्टियों के गठबंधन के नेतृत्व वाली रूढ़िवादी सरकार का इस फैसले के पीछे तर्क है कि यह लड़कियों को "अनैतिक संबंधों" से बचाने का प्रयास है। इसलिए यह प्रस्तावित संशोधन पारित करना है। कानून में दूसरा संशोधन 16 सितंबर को पारित किया गया था। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसे "कानून 188" नाम दिया गया था, जिसे 1959 में पेश किए जाने पर पश्चिम एशिया में सबसे प्रगतिशील कानूनों में से एक माना जाता था। इसने इराकी परिवारों पर शासन करने के लिए नियमों का एक व्यापक सेट प्रदान किया, भले ही उनका धार्मिक संप्रदाय कुछ भी हो।

प्रस्तावित कानून को बताया इस्लाम के अनुरूप
इराक की गठबंधन सरकार ने प्रस्तावित संशोधन को इस्लामी शरिया कानून की सख्त व्याख्या के अनुरूप बताया है। सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य युवा लड़कियों की "सुरक्षा" करना है। उम्मीद है कि संसदीय बहुमत वाली सरकार इराकी महिला समूहों के विरोध के बावजूद इस कानून को आगे बढ़ाएगी। वहीं यूनिसेफ के अनुसार पूरे इराक में पहले से ही बाल विवाह उच्च दर पर है।

यहां लगभग 28% इराकी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है। ऐसे में प्रस्तावित संशोधनों से स्थिति और खराब होने की आशंका है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि ऐसे संशोधन से युवा लड़कियों को यौन और शारीरिक हिंसा का खतरा बढ़ जाएगा और वे शिक्षा व रोजगार तक पहुंच से भी वंचित हो जाएंगी।