मोदी ने सेक्युलर सिविल कोड का दांव क्यों खेला, क्या विपक्ष को चित्त कर सकेगी बीजेपी?
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स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को नया नाम दिया।उन्होंने देश में मौजूद संहिता को कम्युनल सिविल कोड कहकर पुकारा और इसकी जगह सेक्युलर सिविल कोड की वकालत की। यूं तो यूसीसी बीजेपी का तो यह पुराना एजेंडा रहा ही है, साथ ही साथ पीएम मोदी ने भी कई मौकों पर इस मुद्दे को उठा रखा है। लेकिन विपक्ष को चित करने के लिए इस बार पीएम मोदी ने अपने सियासी पिटारे से एक नया तीर छोड़ा है। उन्होंने बड़ी ही चालाकी से इस बार यूनिफॉर्म सिविल कोड को सेकुलर सिविल कोड बता दिया है।
प्रधानमंत्री के इस बयान के मायने से लेकर टाइमिंग तक पर सवाल उठ रहे हैं।पॉलिटिकल एक्सपर्ट पीएम मोदी के इस कदम को बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बड़ा मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं। अगर ध्यान से समझने की कोशिश हो तो इसे बड़ी रणनीति माना जाएगा। अगर थोड़ा पीछे चला जाए तो पता चलता है कि बीजेपी को सबसे ज्यादा हमले यह बोलकर होते हैं कि पार्टी सांप्रदायिक है, उसकी तरफ से हिंदू-मुस्लिम किया जाता है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट का ये भी मानना है कि पीएम मोदी का सेक्युलर सिविल कोड दरअसल धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाली विपक्षी पार्टियों के खिलाफ दांव हैं, जिन्होंने हमेशा भाजपा के यूसीसी एजेंडे को निशाना बनाया है।दरअसल 1985 में सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले के बाद जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना की थी तभी से भाजपा यूसीसी की मांग बड़े पैमाने पर उठाती आई है।
1985 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पांच बच्चों वाली तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता के रूप में प्रति माह 179 रुपये का भुगतान करना होगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, 1986 को लागू करके सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया। इस कानून में कहा गया था कि महिलाओं के भरण-पोषण से संबंधित सीआरपीसी की धारा 125 मुस्लिम महिलाओं पर लागू नहीं है। यहीं से कम्युनल सिविल कोड पैदा हुआ, जो अब तक चला आ रहा है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी राजीव सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए परोक्ष रूप से यह कहा कि कांग्रेस ने एक वर्ग को खुश करने के लिए मुस्लिम महिलाओं के बीच धार्मिक भेदभाव किया। इसके बाद से ही राममंदिर निर्माण और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 की समाप्ति के साथ-साथ यूसीसी भी भाजपा के मुख्य एजेंडे में शामिल हो गया।
देश में बहुत सी पार्टियां मुस्लिम समुदाय को यूसीसी का डर बनाकर उनका वोट लेती रही हैं, पर इससे होने वाले फायदे के बारे में सोचकर आंखें मूंद लेती रही है। अब गेंद विपक्ष के पाले में हैं। भारतीय जनता पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों में विपक्ष पर हमलावर होने का मौका मिल गया है।
जानकार मानते हैं कि सेकुलर शब्द का तोड़ निकालना विपक्ष के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। जिस बात को आधार बनाकर हमला हो रहा था, उसी को पीएम मोदी ने खत्म कर दिया। ऐसे में यूसीसी का विरोध करना ही विपक्ष को भारी पड़ सकता है।
Aug 22 2024, 20:00