झारखंड से जुडी है नेताजी सुभाष चंद्र बोस कि यादें,आज भी सरिया के लोग नेताजी कोठी के नाम से प्रसिद्ध प्रभाती कोठी कि करते हैं चर्चा
झा. डेस्क
स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गिरिडीह जिला के सरिया (हजारीबाग रोड) से काफी लगाव था. यहां की प्रभाती कोठी की नींव उन्होंने ही डाली थी. इसे नेता जी की कोठी के नाम से भी लोग जानते थे. उस भवन से इनकी काफी यादें जुड़ी हुई हैं.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस सरिया को अपनी कर्मभूमि मानते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध यहां रणनीति बनाते थे. फिरंगी हुकूमत के खिलाफ कई रणनीतियों की साक्षी यह कोठी रही है.यहीं से वे
1940 में कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने रामगढ़ गये थे.
यहां रहते थे नेताजी के बहनोई
बताया जाता है कि बंगाल विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल से बंगाली परिवार के लोग तत्कालीन हजारीबाग जिला में अपना आशियाना बनाने लगे थे. ग्रैंड कोर्ड रेल मार्ग के बीच हजारीबाग रोड स्टेशन था, जिस कारण सरिया में बंगाली परिवारों ने मकान बनाने के लिए जमीन तलाशनी शुरू कर दी थी. सैकड़ों बंगाली परिवारों ने यहां अपनी आलीशान कोठी बनायी.
स्थानीय लोगों की मानें तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बहन-बहनोई भी राजधनवार रोड सरिया में मकान बनाने के लिए जमीन उपलब्ध करवायी थी. यह वह दौर था जब अंग्रेजों के विरुद्ध नेताजी अभियान छेड़ चुके थे. फिरंगी हुकूमत उन्हें बंदी बनाने के लिए उनकी तलाश कर रही थी. इधर, नेताजी बोस हुकूमत की नजर बचाकर अपने बहनोई के मकान बनाने में लगे मजदूरों में शामिल हो गये.ताकि अंग्रेजी हुकूमत उनकी पहचान नहीं कर सके.
प्रभाती कोठी की नींव में उन्होंने पांच ईंट रखी थी तथा चांदी के बेलचे से मिट्टी भरने की बात भी कही जाती है. इसी कोठी में कई बार अपने सहयोगियों के साथ रहकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनायी थी. वे क्षेत्र में लोगों से मिलते थे. आजादी की लड़ाई को गति देते थे. 1920 ई से लेकर 1941 ई के बीच नेताजी का सरिया आना-जाना लगा रहता था. 1938 में कांग्रेस के महाधिवेशन में शामिल होने वह यहीं से गये थे..उग्र क्रांतिकारी स्वभाव के कारण ब्रिटिश शासन को परेशान करने में वह कामयाब रहे.
श्रमिक राजनीति में भी रही उनकी सक्रियता
बताया जाता है कि श्रमिक हितों के संरक्षण के लिए मजदूरों को एकजुट करने में इन्होंने सराहनीय भूमिका निभायी थी. सरिया में ही रहकर 1940 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 54 वें अधिवेशन के समांतर उन्होंने रामगढ़ में एक सम्मेलन आयोजित किया था. जानकार बताते हैं कि एक बार नेताजी अपने भतीजे डॉ शिशिर बोस के साथ ओडिशा से जीटी रोड होते हुए कार से सरिया पहुंचे थे.
कार में खराबी आ जाने के कारण उसे बगोदर में ही छोड़ देना पड़ा. अब उसका अवशेष भी नहीं रहा. बताया जाता है कि सुभाष चंद्र बोस के सरिया पहुंचने की खबर फिरंगियों को मिल चुकी थी. उन्हें घेर कर गिरफ्तार करने का प्रयास भी हुआ, जिसकी जानकारी उन्हें मिल चुकी थी. सुभाष चंद्र बोस छुपकर हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन आये. यहां रेलवे ट्रॉली की मदद से गोमो स्टेशन की ओर भाग निकले.
खरीदार ने कोठी की शक्ल बदल डाली
नेताजी की कोठी के नाम से जानी जाने वाली प्रभाती कोठी उनके परिजनों ने बेच दी. उस बंगले में नेताजी की कई तस्वीरें तथा उनकी लिखी डायरी होने की बात भी कही जाती है. अब उसके नामोनिशान नहीं बचे. खरीदार ने उक्त बंगले को खंडित कर अपनी दुकान बना ली है. नेताजी की बनायी प्रभाती कोठी का अवशेष आज भी मौजूद है. भले ही नेताजी की धरोहर सरिया में अब नहीं रही, परंतु उनके लगाव के कारण स्थानीय लोगों की मदद से बागोडीह मोड़ में उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी है.
Aug 15 2024, 20:01