बीएड के छात्र-छात्राओं के पांच दिवसीय भारत स्काउट गाइड प्रशिक्षण शिविर का समापन
अशोक कुमार जायसवाल,पीडीडीयू नगर। क्षेत्र के परशुरामपुर स्थित विश्वनाथ सिंह महाविद्यालय में बीएड के छात्र-छात्राओं के पांच दिवसीय भारत स्काउट गाइड प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। जिसमें महाविद्यालय के प्रबंधक सुभाष सिंह यादव, डॉ.मदन मोहन दुबे एवं बीएड विभाग के विभागध्यक्ष डॉ.मो.शौकत ने कैंप का निरीक्षण करके समापन किया। वहीं विशिष्ट अतिथि सैय्यद अली अंसारी ने कहा कि यह लोगों में जीवन जीने कला को विकसित करती है।
इस मौके पर डॉ.शौकत सिद्दिकी ने वेडन पावेल के जीवनी पे प्रकाश डालते हुए बताया कि
स्काउटिंग के जन्मदाता राबर्ट स्टीफेन्सन स्मिथ लार्ड बेडेन पावेल एक अंग्रेज सैनिक थे। इनका जन्म इग्लैण्ड स्थित स्टैनपोल टैरेस, लैंकस्टार गेट, लंदन में 22 फरवरी 1857 को हुआ। इनके पिता प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ज्योमिति के प्राध्यापक और महान प्रकृतिवादी थे। इनकी माता हैनरिट्टा ग्रेस स्मिथ बर्तानवी एडमिरल डब्ल्यू टी स्मिथ की पुत्री थीं।
बेडेन पावेल को बचपन में स्टी नाम से जाना जाता था। इनमें अनेकों प्रतिभाऐं थी। जिसकी बजह से बेडेन पावेल की अलग पहिचान थी। दोनों हाथों से चित्र बनाना, लिखना, अभिनय करना, नौका चालन, प्रकृति भ्रमण, घुड़ सवारी करना इनके प्रमुख शौक थे।
बेडेन पावेल के पिता का सन् 1860 में निधन हो गया तब बी.पी. 3 वर्ष के थे। इनकी माता को कठोर परिस्तिथियों से गुजरना पड़ा। अपनी माता से खाना बनाने की कला और भाईयों से समुद्री यात्रा, हाईकिंग करना बचपन में ही सीख लिया था। ग्रेट ब्रिटेन के किनारे पर नाव चलाते और कैम्पिंग करते समय उत्तरी सागर से नार्वे तक का बी.पी. ने रास्ता तय किया। साहस का कार्य था।
स्कूली शिक्षा- बी.पी. को सर्वप्रथम केन्सिंगटन में डेम स्कूल में सन् 1869 में प्रवेश दिलाया गया। लंदन के ‘चार्टर हाई स्कूल‘ में छात्रवृत्ति पाकर ‘गाउन ब्वाय फांउडेशन‘ के रूप में प्रवेश किया।
समय का उपयोग-बी.पी. का अतिरिक्त समय स्कूल के पीछे जंगल में पशु-पक्षियों को देखनंे, चाकू-कुल्हाड़ी का प्रयोग करने, बिना बर्तन भोजन बनानें, झोपड़ी तैयार करने में बीतता था। यह सब स्काउटिंग की भव्य तैयारी थी। कम्पास का प्रयोग और मानचित्र बनाना भी सीखा। इन सब कलाओं ने बी.पी. को सेना में तरक्की के अवसर प्रदान किए।
और प्रकाश डालते हुए डॉ शौक़त ने कहा कि
कहा कि शिक्षा समाज में प्रकाश डालने के साथ-साथ सामाजिकता को विकसित करती है। डॉ.शौकत ने कहा कि वक्त की कद्र करना चाहिए क्योंकि वक्त नूर को बेनूर बना देता है, फकीर को हुजूर बना देता है, वक्त कोयले को कोहिनूर बना देता है। कार्यक्रम के अंत में प्रबंधक, प्राचार्य एवं एचओडी ने संयुक्त से अतिथियों एवं छात्रों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस मौके पर डॉ.अनुराधा रानी, सीमा, निरंजन, सावित्री, आलोक मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन महेंद्र कुमार व धन्यवाद ज्ञापन डॉ.शौकत ने किया।
May 09 2024, 09:40