अलविदा जुमा आज, इंतजाम मुकम्मल
गोरखपुर। शहर की मस्जिदों में अलविदा जुमा (रमज़ान का अंतिम जुमा) के मद्देनजर तमाम इंतजाम मुकम्मल कर लिए गए हैं। मस्जिदों की साफ-सफाई करीब पूरी हो गई है। दरी, चटाई व पानी की समुचित व्यवस्था कर ली गई है। मस्जिदों में खूब भीड़ उमड़ेगी।
दोपहर 12:30 बजे से 2:30 बजे तक सभी मस्जिदों में जुमा की नमाज़ अदा की जाएगी। मस्जिदों में तकरीर और अलविदाई ख़ुत्बा होगा। इसके बाद मुस्लिम समाज के लोग दो रकात जुमा की फ़र्ज़ नमाज़ अदा करेंगे। सभी मस्जिदों में जुमा की नमाज़ अदा कर खुसूसी दुआ मांगी जाएगी। जुमा की नमाज़ सबसे अंत में चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में दोपहर 2:15 बजे व सुन्नी जामा मस्जिद सौदागार मोहल्ला बसंतपुर में दोपहर 2:30 बजे अदा की जाएगी।
मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि रमज़ान के महीने के आख़िरी जुमा को अलविदा या जुमातुल विदा भी कहते हैं। यूं तो इस माह के हर दिन की अहमियत है, लेकिन जुमा को और दिनों का सरदार कहा जाता है इसलिए इसकी अहमियत और बढ़ जाती है। इसे छोटी ईद या हफ्ते की ईद भी कहा जाता है। रमज़ान के आखिरी जुमा की नमाज़ से रमज़ान के समापन का संदेश मिलता है। रहमत भरा महीना जाने के गम में अलविदा-अलविदा माह-ए-रमज़ान अलविदा कहा जाता हैं। ईद के आने की खुशी जहां लोगों में होती है, वहीं इस रहमत भरे महीने के जाने का गम भी होता है। अलविदा के माने रुखसत करना है। अलविदा रमज़ान के आखिरी जुमा को कहते है। इसके बाद रमज़ान में कोई दूसरा जुमा नहीं आता है, इसलिए अलविदा कहा जाता है।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने बताया कि कुरआन-ए-पाक में अल्लाह तआला फरमाता है, रोजों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत फरमाई । हदीस में है जब पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने में तशरीफ लाए उस जमाने में अहले मदीना साल में दो दिन ख़ुशी करते थे महरगान व नौरोज। पैग़ंबरे इस्लाम ने फरमाया यह क्या दिन है? लोगों ने अर्ज किया कि जाहिलियत में हम इन दिनों में ख़ुशी करते थे। पैग़ंबरे इस्लाम ने फरमाया अल्लाह तआला ने उनके बदले में इनसे बेहतर दो दिन तुम्हें दिए हैं ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अज़हा।
24वां रोज़ा मुकम्मल : सहरी-इफ्तार का नूरानी समा चारों ओर
मुकद्दस रमज़ान के माह में की गई इबादत व नेकी का सवाब कई गुना बढ़ा कर मिलता है, इसीलिए अल्लाह के बंदे रोज़ा, नमाज़, जकात, सदका-ए-फित्र, एतिकाफ आदि के जरिए खूब नेकी बटोर रहे हैं। वहीं बंदों द्वारा शबे कद्र की ताक रातों में जागकर खूब इबादत की जा रही है। भाईचारगी बढ़ाने के लिए सामूहिक इफ्तार की दावतें हर जगह आम हैं। कुरआन-ए-पाक की तिलावत मस्जिद व घरों में हो रही है। पुरुषों की तरह महिलाएं भी इबादत के साथ कीचन व बाजार की जिम्मेदारी भी उठा रही हैं। इस वक्त रेती, शाह मारुफ, उर्दू बाजार, घंटाघर, जाफरा बाजार, गीता प्रेस रोड, गोलघर, गोरखनाथ आदि बाजारों में मुस्लिम महिलाओं को खरीदारी करते आसानी से देखा जा सकता है। ईद के लिए जमकर खरीदारी हो रही है। शाह मारुफ में ईद के लिए सजा दस दिनों वाला अस्थायी बाज़ार गुलज़ार है। गुरुवार को 24वां रोजा खैर के साथ बीता। बड़े तो बड़े बच्चे भी रोज़ा रखकर इबादत में मशरूफ हैं। शाम को दस्तरख़्वान पर तमाम तरह की खाने, शर्बत रोज़ेदारों का इस्तकबाल करते नज़र आ रहे हैं। हदीस शरीफ़ के मुताबिक रोज़ेदार के लिए दरिया की मछलियां भी दुआ करती हैं। सहरी व इफ्तार के समय नूरानी समा चारों तरफ नज़र आ रहा है।
औरतों पर जुमा की नमाज़ फ़र्ज़ नहीं है : उलमा किराम
उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्प लाइन नंबर पर गुरुवार को रोज़ा, नमाज, जकात, सदका-ए-फित्र व ईद की नमाज़ आदि के बारे में सवाल आते रहे। उलमा किराम ने शरीअत की रोशनी में जवाब दिया।
1. सवाल : औरतों पर जुमा की नमाज़ पढ़ने का क्या हुक्म है? (शादाब, गेहूंआ सागर)
जवाब : जुमा की नमाज़ मर्दों पर फ़र्ज़ है। औरतों पर जुमा की नमाज़ फर्ज नहीं। वह रोज़ाना की तरह नमाज़े जोहर अदा करें।(मुफ्ती अख्तर)
2. ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना कैसा है? (जुबैर, गोरखनाथ)
जवाब : ईदैन की नमाज़ वाजिब है और उसके लिए खुले मैदान में निकलकर अदा करना सुन्नत है, बगैर किसी उज्र के ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना खिलाफे सुन्नत है। अलबत्ता किसी उज्र की वजह से ईदगाह या खुले मैदान में नमाज़ पढ़ना मुश्किल हो तो मस्जिद में पढ़ना जायज़ है। (मुफ्ती अजहर)
3. सवाल : अगर नमाज़ में सूरह फातिहा पढ़ने के बाद सूरत मिलाना भूल जाए और रुकु में याद याद आए तो क्या करें? (अदहम, छोटे काजीपुर)
जवाब : अगर सूरत मिलाना भूल जाए फिर रुकु में याद आए तो खड़ा हो जाए और सूरत मिलाए फिर रुकु करे और आखिर में सजदा-ए-सह्व करे। (मौलाना जहांगीर अहमद)
4. सवाल : नमाजे चाश्त कितनी रकात है? (मो. आज़म, खोखर टोला)
जवाब : चाश्त की नमाज़ मुस्तहब है। कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा बारह रकात है। हुजूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया जो चाश्त की दो रकातों पर मुहाफजत करे उसके गुनाह बख्श दिए जाएंगे, अगरचे समंदर के झाग के बराबर हों। (मौलाना मोहम्मद अहमद
Apr 05 2024, 15:59