नई तकनीकी से मिलेगी कृषि जगत को नई पहचान- डीडीजी
कुमारगंज अयोध्या। कृषि में नई तकनीकों की पहचान करने के साथ-साथ नई प्रजातियों को विकसित करने की जरूरत है। नई तकनीकों के प्रयोग से किसानों को भी अधिक से अधिक लाभ होगा। फसलों की अच्छी पैदावार के लिए रोग प्रतिरोधक प्रजातियों को विकसित करने पर कार्य करना होगा। खेतों के किनारे फसल प्रसंस्करण, कृषि पर्यटन, निर्यात के लिए उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पादन के साथ-साथ उभरते बाजार की पहचान कर उत्पादन करने की जरूरत पर ध्यान देने की जरूरत है। यह बातें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के उप महानिदेशक डा. संजय कुमार सिंह ने कही। वे अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना अंतर्गत सब्जी फसलों पर 42वीं वार्षिक समूह की बैठक को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वित्तीय एवं मानव शक्ति की कमी के बावजूद एक्रिप द्वारा अनुसंधान का कार्य किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आज का समय प्राकृतिक एवं जैविक खेती का है जिसके लिए हम सभी को एक साथ मिलकर कार्य करना होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सहायक उप महानिदेशक डा. सुधाकर पांडेय ने कहा कि कृषि में विकास के लिए जैविक, प्राकृतिक एवं अनुसंधान आधारित खेती को अपनाने की जरूरत है। वैज्ञानिकों के साथ-साथ किसानों को फसल उत्पादन के लिए नई-नई तकनीकियों पर कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि फसलों की अच्छी पैदावार के लिए जलवायु प्रतिरोधी किस्म, कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं ड्रोन को उपयोग में लाना होगा। डा. पांडेय ने कहा कि आवश्यकता आधारित पाठ्यक्रम और नई तकनीक की पहचान करने और अपनाने की जरूरत है। नए जर्मप्लाज्मा के विकास, आवश्यकता आधारित अनुसंधान और निजी क्षेत्रों में भागीदारी को और तेजी के साथ बढ़ाना होगा। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के निदेशक डा. टी. के. बहेरा ने कहा कि कृषि जीडीपी में 33 प्रतिशत है, जिसमें बागवानी में 71 प्रतिशत नारी शक्ति, सब्जियों का योगदान 60 प्रतिशत और फलीय फसलों का योगदान 29 प्रतिशत है। सब्जियों की अच्छी पैदावार के लिए रोग प्रतिरोधी गुणवत्तापूर्ण बीजों का उत्पादन और सब्जियों के जर्मप्लाज्म को बढ़ाना होगा। उन्होने कहा कि बेहतर सब्जी फसल के लिए निजी कंपनियों को भी आगे आने होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विवि के कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने कहा कि 37 वर्ष बाद विवि में कार्यक्रम आयोजित हो रहा है जो पूरे विवि परिवार के लिए गर्व की बात है। आधुनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर तेजी से कार्य हो रहे हैं। मुख्य परिसर की कई एकड़ बंजर भूमि पर प्राकृतिक और जैविक खेती का कार्य किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों तक आधुनिक तकनीकी की जानकारी पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। विवि ने आंवला, बेल, धान, गेहू और अरहर सहित 198 प्रजातियों को विकसति कर चुका है। आईआईवीआर वाराणसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. वी.के सिंह, आईआईवीआर के परियोजना समन्वयक डा. राजेश कुमार ने भी सभी के समक्ष अपने विचारों को रखा।
इस दौरान भुवनेश्वर को बेस्ट एक्रिप सेंटर के अवार्ड से नवाजा गया। एक्रिप की वार्षिक रिपोर्ट 2023-24 का विमोचन किया गया। विवि की कंपेन्डियम का विमोचन किया गया। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना समन्वय केंद्र 2023 की सर्वश्रेष्ठ फसलों को पुरस्कार दिया गया। विभिन्न प्रजातियों को विकसित करने वाले पूर्व वैज्ञानिक डा. एस.पी सिंह, डा. एस.एस सिंह, डा. एस.बी सिंह एवं डा. बी.पी पांडेय को सम्मानित किया गया। इससे पूर्व सभी अतिथियों ने आचार्य नरेंद्र देव की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर जल भरो के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। छात्राओं ने आईसीएआर एवं विवि कुलगीत प्रस्तुत कर सभी अतिथियों का स्वागत किया। सभी अतिथियों को शॉल, पुष्पगुच्छ एवं स्मृति चिह्न भेंटकर सम्मानित किया गया। कृषि महाविद्यालय आजमगढ़ के एसोसिएट डीन डा. डी.के सिंह एवं वानिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. संजय पाठक के संयोजन में कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। स्वागत संबोधन डा. डी.के सिंह एवं अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ संजीत कुमार ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ सुप्रिया ने किया। इस मौके पर विभिन्न संस्थाओं से आए महानिदेशक कुलपति निर्देशक उप महानिदेशक वरिष्ठ वैज्ञानिक मौजूद रहे।
Feb 23 2024, 17:06