सती के चरित्र से सीख लेना चाहिए -जगदीशाचार्य महराज जी
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अयोध्या - कोतवाली क्षेत्र के खजुरहट स्थित शिव धर्म कांटा पर चल रहे साप्ताहिक भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के माध्यम से स्वामी जगदीशा चार्य महाराज जी की अमृत माई वाणी की वर्षा से भक्तगण ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने को मजबूर होते देखे गए हैं महाराज जी द्वारा शनिवार की कथा में राजा परीक्षित को श्रम मिलने, सृष्टि का विस्तार ,विदुर का चरित्र एवं बाराह भगवान के अवतार के साथ सती चरित्र के एवं शिव विवाह को विस्तार से वर्णन किया है।
ये कथा में सती चरित्र को बताते हुए महाराज जी ने कहा कि दक्ष भगवान जी के यहां बिना निमंत्रण मिले सती के हठ पर शिव जी के द्वारा जाने से मना करने और सती द्वारा हठ करने पर सभी होने वाली अनहोनी को शिव समझ गए। और यज्ञ में जाने पर अपने सभी आभूषण वस्त्र लेकर जाने को कहते हुए नन्दी को साथ ले जाने को कहा जिस पर सती ने कहा दो दिन में वापस आना है तो सामान लेकर क्या करूंगी तो शिव ने कहा आते समय लेकर चली आना यज्ञ में जाने के बाद अपने पिता के यहां पति का कोई स्थान न होने तथा बहनों द्वारा हंसी का पात्र बनने पर क्रोधित होकर यज्ञ में कूदने की कथा से श्रोताओं की आंखों में आंसू छलक आए। इस लिए हठ करके कुछ करने से अच्छा आपस में विचार करके करना कहा है। श्री जगदीश चार्य जी ने बारह भगवान के अवतार से पृथ्वी की संरचना को विस्तार करते हुए मनू -सतरुपा के रूप में मानव की उत्पत्ति को विस्तार करते हुए भागवत कथा में मोक्ष की प्राप्ति कैसे मिलती है इस पर प्रकाश डालते हुए महाराज जी ने कहा 27 ( सत्ताइस) बार हिरणाक्ष और हिरणया कश्यप द्वारा इस कलयुग को देख चुके हैं।
इनका जन्म पूर्व में माता दिति से होना बताया है।
उक्त कथा के प्रमुख यजमान छोटेलाल केसरवानी और सुनील केसरवानी द्वारा आयोजित साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ में आए हजारों की संख्या में श्रोता गणों ने कथा वाचक की भूरि-भूरि प्रशंसा की हैं। कथा में प्रमुख रूप से ज्ञान केसरवानी की उपस्थिति में शिवांकांत केसरवानी , महेंद्र केसवानी, वीरेंद्र केसरवानी द्वारा कथा श्रवण करने आने वाले लोगों को सम्मान के साथ उचित स्थान देते देखे गए जिससे श्रवण करने आए भक्तगण संगीत मई कथा को श्रवण करके प्रसन्नता व्यक्त करते एवं प्रसाद ग्रहण करते गये है।
Feb 17 2024, 19:57