महा कवि मंगल मुंशी के मूर्ति का किया गया अनावरण
शेरवा मीरजापुर ।महा कवि मंगल मुंशी के मूर्ति का अनावरण विकास खंड जमालपुर के भाईपुर बैरियर(भाइपुर कला) में किया गया।
ऋषि परम्परा के अनुयायी रामस्वरूप लाल ' मंगल मुन्शी ' लोक अंचल ही नहीं प्रदेश देश के सुप्रसिद्ध कवि थे। इनकी कविताएँ कोई न कोई सीख अवश्य देती हैं। वे भारतीय संस्कृति के महान चिंतक एवं सबके हृदय में निवास करने वाले सरल, मृदुभाषी, कोमल हृदय के कवि एवं उच्चकोटि के विचारक थे।
भारतीय संस्कृति, एकता और देशभक्ति पर इनकी कई रचनाएँ हिन्दी साहित्य पटल पर अंकित हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के माध्यम से इनकी रचनाएँ किसी न किसी आकाशवाणी से या दूरदर्शन से अवश्य सुनने को मिलती है।
विन्ध्य पर्वत मालाओं से आच्छादित मीरजापुर जनपद के भूप भूरिश्रवा की पावन धरती शस्य श्यामला भुइली परगना के भाईपुर कलाँ ग्राम में परम रामभक्त पिंता अवध बिहारी के घर पूज्या माता भागीरथी के गर्भ से 6 जनवरी सन् 1920 को, मंगल मुन्शी जी का जन्म हुआ। उनका तृप्तिमान चेहरा देखकर अकस्मात सब लोग कह बैठे कि अवध बिहारी के घर राम आ गए।
पुरोहित के मुख से सुनकर सभी जन उन्हें राम के स्वरूप जैसा देखकर उन्हें राम स्वरूप पुकारने लगे। एक अच्छे पुत्र के सारे गुण मुन्शी जी में विद्यमान थे। बचपन से ही लोग उन्हें अवतारी कहते रहे। कम उम्र में ही वे सामयिक, भक्ति, राष्ट्रीय कविता कुछ न कुछ लिखने लगे, मंगल जी की सभी रचनाएँ लोक मंगल के लिए समर्पित रही। मधुरभाषी एवं मिलनसार प्रवृत्ति के मंगल जी की रचनाएँ बहुत लोगों के जीवन को सुधारने में सहायक हुई।
बिना कहे, बिना सीखे समझाए अभिवादनशीलता मंगल मुन्शी में अपने आप समा गई थी। उनके प्रारम्भिक जीवन के व्यक्तित्व में बहुत मिठास थी। हमेशा आनन्दमय चेहरा मुन्शी का दिखता था। सबसे बड़ी बात मुन्शी से जो एक बार मिलता था, वह पूरी जिन्दगी के लिए उनका हो गया। शिक्षण काल में उनको गुरुवर जो पढ़ाते, बताते थे वह अक्षरसः याद हो जाता था। उनके बाल्यावस्था में उनमें जिसने आदर्श निहित थे, उतना आदर्श और किसी में देखने को नहीं मिलता।
रचना शक्ति का भाव हृदय में विद्यार्थी जीवन से ही आरम्भ हो गया था। ये अक्सर रामायण जहाँ होता था, बैठते, ताली बजाते थे, यह याद कर लिए थे। "मंगल भवन अमंगल हारी।।" इस चौपाई को बार-बार दोहराते थे। मुन्शी जी उसी चौपाई से अपना उपनाम मंगल रख लिए।
मुन्शी जी को साहित्यिक प्रेरणा ईश्वरीय देन थी। वे 30 हजार भजन (भक्ति रस का गीत लिखकर) समाज को एक नई दिशा दिए। मंगल मुन्शी जी ऐसे रचनाकार थे जिनसे आप शास्त्रीय संगीत किसी प्रकार का लोकगीत, नाटक, एकांकी, कविता, छन्द कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। अपने सरल स्वभाव से जिस साहित्यकार ने साहित्य को अम्बर तक पहुंचाने का कार्य किया उनमें मंगल मुन्शी का नाम पहले आता है।
मंगल मुंशी हिन्दी के अलावा उर्दू, फारसी, अरबी की रचनाएँ भी किए हैं। उनकी प्रतिमा का आकलन उर्दू वाले उर्दू में, हिन्दी साहित्य वाले हिन्दी में और भोजपुरी वाले भोजपुरी में करते है। लगता है इनको हिन्दी उर्दू में बराबर विजय श्री हासिल थी। सम्भवतः वो लाख डेढ़ लाख गीत लिखे थे उनके गायकों के पास किसी के यहाँ 10 हजार किसी के यहाँ 5 हजार ऐसे-ऐसे गीत है। जो अन्यत्र मिलना मुश्किल है।
हर पारम्परिक धुन पर राष्ट्रीय गीत, गजल मुक्तक छन्द सब पर इनका समान अधिकार था। शास्त्रीय संगीत में भी इनकी रचनाएँ अनगिनत है। यहाँ तक कि इनके गीत पंडित छन्नूलाल मिश्र ने भारत में ही नहीं अन्यत्र देशों में जाकर "खेलें मसाने में होरी दिगम्बर-खेलै मसाने में होरी" सुनाकर अपने और इनके नाम को स्वर्ण अक्षरों में लिखवा दिया है।
महान प्रतिभा के धनी, बजरंग बली के उपासक मुन्शी मंगल लाल ने षास्त्रीय संगीत में भी अपनी प्रतिभा को प्रतिस्थापित किया है। इनको सम्मान लेना या सम्मान पाना बहुत ही कष्टदायक लगता था। इनको अमेरिकन बायोग्राफिकल इन्स्टीट्यूट इन्हें "मैन आफ दी इयर" के सम्मान के लिए नामांकित किए, परन्तु मुन्शी जी वहाँ नहीं गए और सम्मान लेना स्वीकार नहीं किए।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थी चन्द्रशेखर सिंह जी ने इन्हें अपने यहाँ दिल्ली बुलाया था। इनकी रचनाओं से प्रभावित होकर वो इनको सम्मान देना चाहते थे परन्तु मुन्शी जी सम्मान लेना पसन्द नहीं किए।
इनकी साहित्यिक साधना बाल्यावस्था से ही शुरू हो गई थी। किसी विधाओं में कोई रचना ये तत्काल कर देते थे।
मूर्ति अनावरण में रामगुलम सिंह, ओम प्रकाश श्रीवास्तव,शशि भूषण लाल, चेट नारायण,गौरव सिंह,आलोक कुमार श्रीवास्तव,भोला सिंह,चंदन लाल,विवेक बाबा सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।
Jan 27 2024, 20:01