टाटा समूह ने यू.के. के वेल्स स्थित पोर्ट टैलबोट स्टील प्लांट को की बंद करने की घोषणा, कामगारों में हड़कंप, 3000 लोग होंगे बेरोजगार


नई दिल्ली। बड़ी खबर आ रही है, टाटा समूह ने यू.के. के वेल्स में स्थित पोर्ट टैलबोट स्टील प्लांट बंद करने की घोषणा कर दी। अब टाटा समूह की घोषणा के बाद यू.के. की स्टील इंडस्ट्री में हड़कंप मच गया है।

 टाटा की घोषणा से एक तरफ जहां इस स्टील यूनिट में काम करने वाले 3000 वर्करों की जॉब पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यू.के. के सामने स्टील का बड़ा संकट खड़े होने का भी खतरा है।

बता दें कि, पोर्ट टैलबोट में स्थित टाटा के यह प्लांट ब्लास्ट फर्नैस प्लाट है, जिसमें कोयले की मदद से कच्चे माल को पिघला कर स्टील का निर्माण किया जाता है और यदि टाटा अपना यह प्लांट बंद कर देता है, तो जी-20 देशों में सिर्फ यू.के. एक ऐसा देश होगा, जहां कच्चे माल से स्टील का निर्माण नहीं हो सकेगा।

टाटा यू.के. में स्टील के निर्माण के लिए पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित विकल्पों पर विचार कर रहा है। इस प्रक्रिया में बहुत कम वर्करों की जरूरत पड़ती है। इस मामले में टाटा के अधिकारियों और ट्रेड यूनियन के कर्मचारियों के बीच लंदन में एक मीटिंग भी हुई है।

हालांकि टाटा ने इस प्लांट को बंद करने की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं की है, लेकिन अपने फैसले के बारे में प्रशासन को अवगत करवा दिया गया है।

बताते चलें कि, टाटा के यू.के. स्थित इस प्लांट आप्रेशन्स के जरिए कंपनी को वित्त वर्ष 2023-24 की जुलाई सितंबर तिमाही में 6511 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। कंपनी द्वारा एक्सचेंज को दी गई जानकारी में यह बताया गया है कि इस घाटे में 6358 करोड़ रुपए की बड़ी हिस्सेदारी इंपेयरमैंट चार्जिज की है।

यह चार्ज इस प्रोजैक्ट की डी कार्बोनाइजेशन के लिए लगाए गए हैं। कंपनी ने इलैक्ट्रिक आर्क इंडैक्शन पर आधारित प्रोजैक्ट का विश्लेषण किया है। कंपनी का कहना है कि नई टैक्नोलोजी के जरिए स्टील के निर्माण में खर्चा भी कम होगा और प्रदूषण से भी बचा जा सकेगा।

इस बीच लेबर पार्टी एम.पी. स्टीफन किनोक ने टाटा से अपील की है कि वह अपने फैसले के बारे में पुनर्विचार करे और ट्रेड यूनियनों से इस मामले में दोबारा बातचीत करे। उन्होंने कहा कि टाटा स्टील को सरकार ने इन 3000 नौकरियों के गठन के लिए ही 500 मिलियन पौंड की सहायता की थी और टाटा का इस तरीके से प्लांट बंद करने का फैसला ठीक नहीं है।

इस बीच वेल्स के फर्स्ट मिनिस्टर मार्क ड्रैकफर्ड ने इस मामले में तुरन्त ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सूनक को दखल देने की मांग की है और साथ ही उनसे मीटिंग के लिए समय भी मांगा है।

उन्होंने कहा कि वेल्स में इस तरीके स्टील प्लांट का बंद होना यू.के. की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा। मैंने इस मामले में जल्दी से जल्दी प्रधानमंत्री ऋषि सूनक से चर्चा के लिए समय मांगा है।

नीति आयोग द्वारा दिये गए रिपोर्ट, कि 9 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने किया खारिज, कहा यह झूठ

नई दिल्ली। कांग्रेस के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने बुधवार को देश में बहुआयामी गरीबी को लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने इसे गलत बताया।

एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने नीति आयोग की उस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि पिछले नौ सालों में लगभग 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है।

नीति आयोग की रिपोर्ट फर्जी है- कांग्रेस

उन्होंने कहा, "नीति आयोग की रिपोर्ट फर्जी है। यह रिपोर्ट झूठ है। नीति आयोग कोई स्वतंत्र संस्था नहीं है। नीति आयोग प्रधानमंत्री के लिए चीयरलीडर और ढोल बजाने वाला है। नीति आयोग द्वारा दिए गए आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। सभी विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना की है।"

आयोग की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी

कांग्रेस सांसद ने आगे कहा कि आयोग की रिपोर्ट को लेकर पार्टी प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले नौ सालों में भारत में कम से कम 24.82 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।

क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है, जो 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत हो गई है। इसमें 17.89 फीसदी अंक की कमी आई है।

यूपी में नौ सालों में 5.94 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले

उत्तर प्रदेश में पिछले नौ सालों के दौरान 5.94 करोड़ लोगों के गरीबी से बाहर निकलने के साथ ही गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। इसके बाद बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं।

कांग्रेस के 65 सालों के गरीबी हटाओ नारे खोखले- चंद्रशेखर

वहीं, केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस पर हमला करते हुए एक कार्यक्रम में कहा, "कांग्रेस के 65 सालों के गरीबी हटाओ के खोखले नारों के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने केंद्रित, मेहनती, दृढ़, भ्रष्टाचार मुक्त शासन और 'गरीब कल्याण' नीतियों के जरिए 25 करोड़ भारतीयों को गरीबी से बाहर निकाला है।

23 और 24 जनवरी को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में होने वाली राज्यों के सचिवों के सम्मेलन में जल प्रबंधन पर होगी चर्चा

नई दिल्ली। क्या राज्यों के स्तर पर ऐसी एकल नियामक संस्था की जरूरत है जो भूजल के साथ-साथ नदियों-तालाबों की निगरानी और पानी की कीमत जैसे विषयों पर निर्णय करने में सक्षम हो।

 बर्बाद हो जाने वाले पानी के फिर से इस्तेमाल को कैसे बढ़ावा दिया जाए, पानी का बजट निर्धारण और प्रबंधन कैसे बेहतर हो... ऐसे तमाम सवालों पर केंद्र और राज्यों के बीच अगले सप्ताह अहम बातचीत होने वाली है। 

23 और 24 जनवरी को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में जलशक्ति मंत्रालय का राष्ट्रीय वाटर मिशन राज्यों के सचिवों का एक सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है, जिसमें 21 सिफारिशों पर विचार होगा। इस सम्मेलन में चर्चा के लिए जो मसला सबसे अहम है वह है जल प्रशासन और पानी की गुणवत्ता।

वाटर गर्वेनेंस को लेकर प्रजेंटेशन प्रस्तावित

2047 के दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाया है। इसके लिए जल प्रशासन सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि पानी को लेकर जो तमाम सुधार आगे बढ़ाए जा रहे हैं, उनके लिए मौजूदा ढांचे से बात बनने वाली नहीं है। इस सम्मेलन में वाटर गर्वेनेंस को लेकर एक प्रजेंटेशन भी प्रस्तावित है। पानी के लिए बजटिंग और मैनेजमेंट (आपूर्ति और मांग, दोनों स्थितियों में) ऐसा विषय है जिस पर राज्यों को एक राय पर लाना आसान नहीं है।

पानी के उपयोग को लेकर सिफारिश

केंद्र सरकार के सूत्रों के अनुसार, हाल ही में ब्यूरो आफ वाटर यूज इफिशिएंसी की जो रिपोर्ट आई, उसकी कई सिफारिशों से राज्यों ने असहमति जताई है। इसके चलते रिपोर्ट पर बने एक्शन प्लान में केवल उन्हीं विषयों को शामिल किया गया है जिन पर राज्यों को कोई आपत्ति नहीं है। असहमति के बिंदुओं में कृषि के लिए पानी के उपयोग को लेकर सिफारिश भी है। पानी की सबसे अधिक खपत कृषि और उद्योगों में होती है, लेकिन ज्यादा बातें घरेलू उपयोग को सीमित करने पर केंद्रित होती हैं। कृषि में पानी का इस्तेमाल एक राजनीतिक मुद्दा है, जिस पर आम सहमति कायम करना आसान नहीं है।

जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन में मिलेगी मदद

केंद्र सरकार के अधिकारियों का मानना है कि पानी का शुल्क वसूलना अहम मसला है, लेकिन यह अच्छी बात है कि इसे लेकर समझबूझ बढ़ रही है और राज्य भी अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं। महाबलीपुरम में इस पर विस्तृत चर्चा होगी। इसी से संबंधित विषय जियो सेंसिंग, जियो मैपिंग और रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल है। इससे जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन और नियोजन में मदद मिलेगी। चर्चा के अन्य बिंदुओं में जलाशयों और नदियों तथा अन्य स्त्रोतों की सफाई भी शामिल है। पिछली बैठक में इसको लेकर काम तेज करने की सिफारिश की गई थी।

प्रगति की समीक्षा

सम्मेलन में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी। ब्यूरो की एक अन्य अहम सिफारिश यह भी थी कि किसी अन्य इस्तेमाल के मुकाबले स्टोर किए जा सके पेयजल को सबसे अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। खासकर उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जो पेयजल के लिहाज से बेहद खराब स्थिति में हैं। इन्हें वाटर ग्रिट से जोड़ने की जरूरत है।

जल जीवन मिशन इस साल दिसम्बर तक पूरा होने का आसार,साल के अंत तक तीन करोड़ नए कनेक्शन दिए जाएंगे,

 इस मिशन के तहत अब तक केंद्र सरकार ने पिछले बजट में 70 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी, जिसमें जनवरी मध्य तक लगभग 55 हज़ार करोड़ राज्यों को उपलब्ध कराया जा चुका है।

नई दिल्ली। प्रति सेकेंड एक कनेक्शन की मौजूदा रफ्तार के साथ इस साल दिसंबर तक जल जीवन मिशन लगभग पूरा होने के आसार हैं। पूरी ग्रामीण आबादी को टैप से पीने योग्य जल उपलब्ध कराने की केंद्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना आगामी अंतरिम बजट में भी सरकार की प्राथमिकता में बनी रहेगी।

जलशक्ति मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, इस साल दिसंबर तक तीन करोड़ नए कनेक्शन दिए जा सकते हैं। इसलिए पूरे आसार हैं कि इस योजना को पिछले तीन सालों की तरह इस बार भी बजट में पूरा महत्व मिलेगा। केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन अब तक 17 करोड़ ग्रामीण घरों को टैप के जरिये पेयजल के कनेक्शन उपलब्ध करा चुका है।

योजना के क्रियान्वयन में UP सबसे आगे

बकौल अधिकारी, पिछले दिनों इस योजना ने ग्रामीण कवरेज के लिहाज से 73 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया। 2023 इस योजना के लिए निर्णायक वर्ष रहा है, जब उत्तर प्रदेश सरीखे कुछ राज्यों की ओर से दिखाई गई अभूतपूर्व तेजी ने इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने का रास्ता तैयार किया। उत्तर प्रदेश इस योजना के क्रियान्वयन में सबसे आगे हैं, जहां प्रति सेकेंड दो कनेक्शन तक उपलब्ध कराए गए। इस मिशन की एक खास बात यह है कि केंद्र सरकार ने एक डैश बोर्ड के जरिये इसके क्रियान्वयन पर लगातार निगाह रखी।

कब शुरू हुआ था जल जीवन मिशन?

अधिकारी के अनुसार, कोविड और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पाइपों की लागत बढ़ने जैसे कारणों से मिशन को आगे बढ़ाने में दिक्कतें आई हैं, लेकिन यह इस साल दिसंबर तक लगभग पूरा होने के आसार हैं, जैसा कि मिशन की शुरुआत के समय लक्ष्य निर्धारित किया गया था। केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में 19 करोड़ से कुछ अधिक घरों की गणना की है। 15 अगस्त, 2019 को इस मिशन की जब शुरुआत की गई थी तब केवल तीन करोड़ घरों में ही पाइप के जरिये पेयजल की आपूर्ति की सुविधा थी। जल जीवन मिशन ने अब तक लगभग 14 करोड़ से अधिक घरों में टैप के जरिये पानी पहुंचाने में सफलता हासिल की है।

मंत्रालय को उम्मीद है कि अगले साल कुछ लाख ही घर बचे होंगे। इस मिशन के लिए केंद्र सरकार ने पिछले बजट में 70 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी, जिसमें जनवरी मध्य तक लगभग 55 हजार करोड़ रुपये राज्यों को उपलब्ध कराए जा चुके हैं। राज्यों ने भी इतना ही योगदान किया है। 2022-23 में भी केंद्र और राज्यों के व्यय की लगभग ऐसी ही स्थिति थी।

हिमाचल सहित इन राज्यों में शत-प्रतिशत कवरेज

मौजूदा समय तक गोवा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात और हरियाणा समेत दस राज्यों ने शत-प्रतिशत कवरेज की सूचना केंद्र सरकार को दे दी है, जबकि राजस्थान, झारखंड और बंगाल उन राज्यों में शामिल हैं जहां कवरेज पचास प्रतिशत भी नहीं पहुंच सका है। जलशक्ति मंत्रालय ने जल जीवन मिशन में पिछड़ रहे राज्यों से क्रियान्वयन की रफ्तार तेज करने के लिए कहा है। अगर छत्तीसगढ़ और राजस्थान सत्ता परिवर्तन के बाद अपने यहां इस मिशन की रफ्तार बढ़ाते हैं तो लक्ष्य हासिल करना और सरल होगा। तेलंगाना का मामला अलग है जहां सौ प्रतिशत गांवों को कवर तो कर लिया गया है, लेकिन मिशन के नियमों के अनुसार, इन्हें ग्राम पंचायतों के माध्यम से सर्टिफाई नहीं किया है।

चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी 34 प्रतिशत से घटकर 1.8 लाख करोड़ रुपये रहने की है उम्मीद : मनसुख मांडविया(केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया)

नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया ने बुधवार को कहा कि वैश्विक कीमतों में गिरावट और यूरिया के कम आयात के कारण चालू वित्त वर्ष में सरकार का उर्वरक सब्सिडी बिल 30-34 प्रतिशत घटकर 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये रहने की संभावना है.

 पिछले वित्त वर्ष में यह सब्सिडी बिल 2.56 लाख करोड़ रुपये था. रसायन और उर्वरक मंत्री ने कहा कि देश में उर्वरक की कोई कमी नहीं है और लाल सागर संकट के बीच आयात बाधित नहीं हुआ है क्योंकि भारतीय नौसेना मालवाहक जहाजों की सुरक्षा कर रही है.

मांडविया ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि चालू वित्त वर्ष में यूरिया आयात 40-50 लाख टन का ही होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष आयात किए गए लगभग 75 लाख टन से कम है. आयात में इस कमी का कारण उच्च घरेलू उत्पादन और नैनो तरल यूरिया का बढ़ता उपयोग है. लाल सागर में समस्याओं के कारण आयात पर किसी प्रतिकूल प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर, मंत्री ने कहा, 'देश में उर्वरकों की कोई कमी नहीं है.

मांडविया ने संवाददाताओं से कहा, 'विदेश मंत्रालय आवश्यक हस्तक्षेप कर रहा है और हमारी नौसेना भारतीय मालवाहक जहाजों को सुरक्षा दे रही है.' निर्यातकों के अनुसार, लाल सागर संकट के कारण माल ढुलाई दरें 600 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं, जिससे विश्व व्यापार को नुकसान होगा. 

लाल सागर और भूमध्य सागर को हिंद महासागर से जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण शिपिंग मार्ग, बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य के आसपास अंतरराष्ट्रीय तनाव, यमन स्थित हूती आतंकवादियों के हालिया हमलों के कारण बढ़ गया है. सम्मेलन में मांडविया ने अपनी नई किताब 'फर्टिलाइजिंग द फ्यूचर: भारत मार्च टुवार्ड्स फर्टिलाइजर सेल्फ सफिशिएंसी' के बारे में भी बात की.

मंत्री ने कहा कि खरीफ (ग्रीष्मकालीन बुआई) सत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता है. 

मौजूदा समय में, देश में 70 लाख टन यूरिया, 20 लाख टन डीएपी, 10 लाख टन एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश), 40 लाख टन एनपीके और 20 लाख टन एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) का भंडार है. उर्वरक सब्सिडी के बारे में पूछे जाने पर, मांडविया ने कहा कि सब्सिडी बिल लगभग 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. उन्होंने कहा, 'वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण इस साल सब्सिडी कम रहने की उम्मीद है. हमने सब्सिडी कम करने के लिए खुदरा कीमतें नहीं बढ़ाई हैं.

ड्राइविंग लाइसेंस में बदलाव की जरूरत है या नही इसे सुलझाने के लिए न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दिया 15 अप्रैल तक का समय

नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने उस कानूनी सवाल की जांच के बाद एक मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि क्या हल्के मोटर वाहन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति भी कानूनी तौर पर बिना भार वाले 7500 किलोग्राम तक का परिवहन वाहन चलाने का हकदार है. 

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए केंद्र को 15 अप्रैल तक का समय दिया और कहा कि यदि मामला अनसुलझा रहता है तो वह याचिकाओं पर सुनवाई करेगी और फैसला सुनाएगी.

पीठ ने कहा, 'दरअसल, यह आधा सुना हुआ मामला है. हमने इसे काफी हद तक सुना है... हम आपको (सरकार को) मामले को सुलझाने के लिए समय देंगे. अगर इसका समाधान नहीं हुआ तो हम मामले की सुनवाई करेंगे और कानून बनाएंगे.' 

पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज सिन्हा भी शामिल हैं. न्यायालय ने कहा, 'अंततः, अगर संसद हस्तक्षेप करना चाहती है, तो वह हमेशा ऐसा कर सकती है।पीठ ने रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए फरवरी के मध्य तक का समय दिया और सरकार से वादी पक्षों को इसकी प्रतियां उपलब्ध कराने को कहा. 

इसमें कहा गया है कि याचिकाओं को अब 16 अप्रैल को निर्देश पारित करने के लिए रखा जाएगा और सुनवाई 23 अप्रैल से शुरू होगी। शीर्ष अदालत ने कहा, 'अटॉर्नी जनरल का कहना है कि सरकार द्वारा नियुक्त समिति की मसौदा रिपोर्ट प्राप्त हो गई है.

 वह इसकी जांच के लिए समय देने का अनुरोध करेंगे। कार्यवाही अब 16 अप्रैल को निर्देशों के लिए सूचीबद्ध की जाएगी और समझा जाता है कि यदि उस दिन भारत संघ द्वारा मुद्दे का समाधान नहीं किया जाता है, तो कार्यवाही 23 अप्रैल 2024 को सुनवाई के शेष भाग के समापन के लिए सूचीबद्ध की जाएगी.'

जयाप्रदा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के दो मामलों में एक बार फिर NBW जारी, कोर्ट ने जमानत अनुबंध भी क‍िए समाप्‍त


नई दिल्ली : फिल्म अभिनेत्री एवं पूर्व सांसद जयाप्रदा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के दो मामलों में एक बार फिर गैर जमानती वारंट जारी किया गया हैं। न्यायालय ने उनके जमानत का अनुबंध भी समाप्त कर दिए है।

जयाप्रदा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के मामले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के हैं। तब जयाप्रदा रामपुर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। वह चुनाव हार गई थीं, उनके खिलाफ स्वार और केमरी थाने में चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 

इनमें स्वार में दर्ज प्राथमिकी में उन पर आचार संहिता के बावजूद 19 अप्रैल को नूरपुर गांव में सड़क का उद्घाटन करने का आरोप है।

केमरी थाने का है दूसरा मामला

दूसरा मामला केमरी थाना का है, जिसमें उन पर पिपलिया मिश्र गांव में आयोजित जनसभा में आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। दोनों मामलों की सुनवाई एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) में चल रही है। इन मामलों में पिछली कई तारीखों से वह कोर्ट में पेश नहीं हो रही थीं, जिस पर उनके खिलाफ चार बार गैर जमानती वारंट जारी किए गए थे। साथ ही न्यायालय ने उनकी गिरफ्तारी के लिए विशेष पुलिस निरीक्षक तैनाती के आदेश जारी किए थे।

25 जनवरी को होगी सुनवाई

पुलिस अधीक्षक की ओर से उनकी गिरफ्तारी को विशेष टीम गठित की थी, जो दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और हरियाणा तक गई पर टीम उन्हें पकड़ नहीं सकी। बुधवार को पुलिस की ओर से बनाई टीम और उनकी ओर से गिरफ्तारी के प्रयास से संबंधित रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई। वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी अमरनाथ तिवारी ने बताया कि न्यायालय ने एक बार फिर जयाप्रदा के गैर जमानती वारंट जारी करते हुए उनके जमानत अनुबंध समाप्त कर दिए हैं। अब 25 जनवरी को सुनवाई होगी।

परिवार में सुख संपन्नता एवं उच्च शिक्षा के वाबजूद नौकरी की चाहत छोड़ कई युवा बने संत, जानिये उनकी कहानी


हरिद्वार: तमाम ऐसे युवा संत हैं, जिन्होंने कम उम्र में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर संन्यास लिया और अब समाजसेवा के साथ ही धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहे हैं।  

परिवार में सुख और संपन्नता सहित सब कुछ है। एमए, ट्रिपल एमए तक पढ़ाई भी की है। इसके बाद भी धर्म की खातिर कई युवाओं ने संन्यास की राह चुनी। 

धर्मनगरी में तमाम ऐसे युवा संत हैं, जिन्होंने कम उम्र में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर संन्यास लिया और अब समाजसेवा के साथ ही धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहे हैं।  

एमए पास कर संत बने महंत शिवम

महंत शिवम ने योग विषय से एमए किया है। उन्होंने युवा अवस्था में आते ही संन्यास लिया और संत बन गए। बताते हैं कि गुरु परंपरा को देखते हुए उन्होंने संन्यास की राह अपनाई। संत बनकर अपने जीवन को जानना और लोगों का मार्गदर्शन कर उनकी सेवा करना ही उनका उद्देश्य है।

गुरु को देख खुद भी ले लिया संन्यास : शास्त्री

स्वामी रविदेव शास्त्री ने ट्रिपल एमए किया है। उन्होंने बताया कि किशोरावस्था में परिवार से अलग होने के बाद वह अपने गुरु की सेवा में लग गए। गुरु को ही देखकर उन्होंने संत बनने का निर्णय लिया। कहा, राष्ट्रहित, समाज हित और धर्म की रक्षा के लिए संन्यास लिया है।

सबके राम: संघ ने राम, VHP ने लक्ष्मण और संतों ने निभाई गुरु वशिष्ठ की भूमिका, स्वामी परमानंद ने बताई खास बातें

पढ़ाई करते-करते संत बन गए ओमानंद

महंत ओमानंद अभी संस्कृत से ग्रेजुएशन कर रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले ही संन्यास लिया और संत बने। महंत ओमानंद ने एन एफ । बताया, युवा पीढ़ी को आईएएस, पीसीएस, डॉक्टर आदि की तरफ भागते हुए कॅरिअर बनाने की होड़ देखी। इस सबके बीच उन्होंने ठाना कि उन्हें संत बनना है। बताया, अपनी संस्कृति को बचाना भी हमारा कर्तव्य है।

सनातन की रक्षा उद्देश्य : विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद ने बताया, उन्होंने एमए वेदांताचार्य किया हुआ है। उन्होंने सनातन की रक्षा के लिए किशोरावस्था में ही संत बनने की ठान ली थी। बताया, भटक रहे लोगों को सही राह दिखाना और हिंदुत्व, सनातन के प्रति लोगों को जोड़ना ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।

शूटिंग के दौरान समुद्र में गिरे नवाजुद्दीन सिद्दिकी, बचे


मुंबई: नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज किसी पहचान के मोहताजB नहीं हैं। वे फिल्म ‘सैंधव’ से तेलुगू सिनेमा में डेब्यू करने जा रहे हैं। इसी बीच उनसे जुड़ी एक बुरी सामने आई है। जब वह नाव से गिर गए।

बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी फिल्म सैंधव से तेलुगु डेब्यू करने के लिए तैयार हैं। इसे सैलेश कोलानु ने लिखा और निर्देशित किया है। इसमें वेंकटेश दग्गुबाती मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी नेगेटिव रोल निभाएंगे। 

यह फिल्म 13 जनवरी को मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। निर्माताओं ने हाल ही में फिल्म का ट्रेलर जारी किया है

बॉलीवुड में अपने जलवे दिखाने के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी अब तेलुगू सिनेमा में डेब्यू करने जा रहे हैं।

नवाजुद्दीन की परफॉर्मेंस पहले से ही दर्शकों का दिल जीत रही है. सैंधव के कलाकारों और क्रू ने फिल्म का प्रचार भी शुरू कर दिया है। हाल ही में एक प्रेस वार्ता के दौरान नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सैंधव की शूटिंग के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने साझा किया कि फिल्म के एक दृश्य के फिल्मांकन के दौरान वह नाव से गिरते-गिरते बचे थे।

उस पल को याद करते हुए, नवाज़ुद्दीन ने कहा, ''हम श्रीलंका में शूटिंग कर रहे थे। शूट के दौरान मैं एक नाव से गिर गया था। एक ऊंची लहर हमारी ओर आई और उसने मुझे गिरा दिया... मैं नाव से गिर पड़ा। मैं भाग्यशाली था कि मुझे समुद्र की बजाय दोबारा नाव पर उतरने का मौका मिला।''

फिल्म निर्माताओं ने इस अनियोजित लेकिन रोमांचक क्षण को अंतिम कट में शामिल करने का फैसला किया क्योंकि उन्हें यह सब कैमरे पर मिल गया था। ''उन्होंने फिल्म में शॉट रखा। मुझे यकीन है कि दर्शक इसे पसंद करेंगे!''

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी सरेंडर,3 महीनों से कमेटियां भंग

देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी ने सरेंडर कर दिया है. उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की संगठनात्मक कमेटियां तीन महीने से भंग हैं. विधानसभा चुनाव से पहले जनता के लिए तमाम विकास कार्यों और योजनाओं की गारंटी देने वाली आम आदमी पार्टी अब खुद की गारंटी भी नहीं दे पा रही है. राज्य में लोकसभा चुनाव के लिए जहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत बाकी राजनीतिक दल अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहे हैं तो वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता अपने दिल्ली हाई कमान की तरफ आस लगाए बैठे हैं.

उत्तराखंड में ना तो आप का संगठनात्मक ढांचा मौजूद है और न ही नेताओं के पास किसी रणनीति पर काम करने का कोई खाका है.

उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी का इतिहास बहुत लंबा नहीं है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बेहद कम समय में ही पार्टी ने राज्य में अपनी लोकप्रियता को काफी तेजी से आगे बढ़ाया था. खासतौर पर अरविंद केजरीवाल के उत्तराखंड में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बयान के बाद तो राज्य में सोशल मीडिया पर तूफान सा आ गया था.

हालत यह रही कि उत्तराखंड का सोशल मीडिया पेज बनने के कुछ ही दिनों में इस पर फॉलोअर्स की संख्या लाखों में पहुंच गई थी. राज्य के बड़े-बड़े नेता भी आम आदमी पार्टी की धमाकेदार एंट्री से कांग्रेस के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करने लगे थे. मगर जब पार्टी ने चुनाव में कदम रखा तो खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली कहावत सच होती हुई दिखाई दी.

उत्तराखंड में लाखों परिवारों के जुड़ने का किया था दावा:

उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की गारंटी योजनाओं से लाखों लोगों के जुड़ने का दावा किया गया. महज दो महीने में ही अरविंद केजरीवाल ने खुद प्रदेश के लाखों लोगों को जोड़ने की बात कही थी. इस दौरान आंकड़ा दिया गया कि पार्टी की रोजगार गारंटी से करीब 8 लाख लोग जुड़े. इसी तरह बिजली गारंटी से 14 लाख लोगों को जोड़ने का भी दावा किया गया. उधर पार्टी के उस दौरान सीएम का चेहरा रहे कर्नल अजय कोठियाल ने तो दो हफ्तों में ही महिलाओं को ₹1000 देने की गारंटी योजना में एक लाख से ज्यादा महिलाओं को जोड़ने की बात कही थी. यह सब दावे चुनाव से पहले के थे, लेकिन चुनावों के परिणाम के बाद ये सारे दावे हवा हो गये.

जमानत भी नहीं बचा पाए आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी:

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के 90% से भी ज्यादा प्रत्याशी ऐसे थे जो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी ने जिस प्रत्याशी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया उसकी भी गंगोत्री विधानसभा में चुनाव परिणाम के लिहाज से जबरदस्त फजीहत हुई. इससे भी बड़ी बात यह है कि इसके बाद आम आदमी पार्टी राज्य में किसी भी चुनाव में दम खम से उतरने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाई.

राज्य में एक-एक कर पार्टी छोड़कर भागे नेता:

चुनाव परिणाम में खराब स्थिति के बाद आम आदमी पार्टी की हालात और भी खराब हो गई. पार्टी की डूबती नाव से बड़े चेहरों ने भागना शुरू कर दिया. खास बात यह है कि मुख्यमंत्री का चेहरा रहे कर्नल अजय कोठियाल ने भी आम आदमी पार्टी छोड़ने में देरी नहीं की. उन्होंने फौरन भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा. इसके बाद एक एक कर आम आदमी पार्टी के नेता दूसरी पार्टियों में जाते दिखे.

800 से ज्यादा नेताओं ने छोड़ी पार्टी:आम आदमी पार्टी से दूसरे दलों में या पार्टी का दामन छोड़ चुके नेताओं की संख्या 800 से ऊपर जा चुकी है. जिसमें 30 से ज्यादा बड़े नेता भी शामिल हैं, जिनके ऊपर आम आदमी पार्टी को उत्तराखंड में खड़े करने की जिम्मेदारी थी. इसमें पार्टी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री का चेहरा रहे कर्नल अजय कोठियाल मुख्य रहे. कार्यकारी अध्यक्ष अनंत राम चौहान, भूपेश उपाध्याय और प्रेम सिंह जैसे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी पार्टी से किनारा कर चुके हैं. इसके साथ ही रविन्द्र जुगरान, वरिष्ठ नेता चन्द्र किशोर जखमोला, मेजर जनरल, प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद कपरूवाण, प्रदेश उपाध्यक्ष अनन्त राम चौहान IPS, कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष सुबर्धन शाह, IAS संजय भट्ट, प्रदेश प्रवक्ता राकेश काला, प्रदेश प्रवक्ता आशुतोष नेगी, प्रदेश प्रवक्ता अवतार राणा, प्रदेश प्रवक्ता जितेंद मलिक, प्रदेश सचिव अतुल जोशी, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य संजय पोखरियाल, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य संजय सिलसुवाल, फाउंडर रिंकू सिंह राठौर, जिलाध्यक्ष पछवादून गुरमेल सिंह राठौर और जिलाध्यक्ष पछवादून संजय छेत्री जैसे सैकड़ों नाम शामिल हैं.

तीन महीने से भंग है संगठनात्मक ढांचा, नेता परेशान:उत्तराखंड में पिछले 3 महीने से आम आदमी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भंग है. इस स्थिति में पार्टी के नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि वह क्या करें. एक तरफ बाकी दलों के नेता तय रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी में जो नेता बचे हुए हैं वो दिल्ली के अपने बड़े नेताओं की तरफ टकटकी लगाए बैठे हुए हैं. फिलहाल पार्टी की गतिविधियां करीब करीब निष्क्रिय हो चुकी हैं. किसी खास राजनीतिक एजेंडा पर पार्टी काम करती हुई नहीं दिखाई दे रही है.

केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर केजरीवाल:अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेता इस समय केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर हैं. लगातार पूछताछ और जांच का सिलसिला जारी है. ऐसे में पार्टी हाईकमान भी विभिन्न राज्यों के संगठनात्मक ढांचे पर कुछ खास ध्यान देता हुआ नजर नहीं आ रहा है. उत्तराखंड में भी इसी कारण पार्टी कुछ खास नहीं कर पा रही है.

माना जा रहा है कि पार्टी हाईकमान खुद में ही उलझा हुआ है. केंद्रीय एजेंसियों की जांच से निकलने की ही जद्दोजहद में जुटा हुआ है. लिहाजा ऐसे में राज्यों में संगठन को विस्तृत रूप देने और पार्टी को मजबूत करने में बहुत बड़ी निष्क्रियता सी दिखाई दे रही है. ऐसा हम नहीं बल्कि पार्टी के नेता खुद भी मानते हैं. जोत सिंह बिष्ट कहते हैं पार्टी के बड़े नेता केंद्रीय एजेंसियों की जांच से निकलने में जुटे हुए हैं. इसीलिए राज्य में कुछ खास कदम नहीं उठाये जा रहे हैं.

लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में मच सकती है भगदड़: चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दल खुद को मजबूत करने के लिए दूसरे दलों के नेताओं को भी जोड़ने का काम करते हैं. ऐसे में यदि आम आदमी पार्टी के यही हालात रहे तो पार्टी के भीतर परेशान नेता बाकी दलों की तरफ भी रुख कर सकते हैं. खास बात यह है कि बिना जिम्मेदारी के आम आदमी पार्टी में फिलहाल हाईकमान की तरफ टकटकी लगाए देख रहे नेताओं को बाकी राजनीतिक दलों द्वारा अपने दल में शामिल करवाना काफी आसान रहेगा. इस स्थिति के बीच लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के नेताओं में भगदड़ मच सकती है.

गारंटी देने वाली पार्टी अब खुद की भी नहीं दे पा रही गारंटी:

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले आम लोगों को तमाम गारंटियां देने वाली पार्टी के नेता अब खुद की गारंटी भी नहीं दे पा रहे हैं. चुनाव से पहले पार्टी ने महिलाओं को ₹1000 प्रति माह देने की गारंटी दी थी. सरकारी नौकरियों में करीब 60,000 भर्तियां खोलने की गारंटी दी गई थी. उधर निजी क्षेत्र मिलाकर ढाई लाख नौकरियां सृजित करने की बात कही गई थी. प्रदेशवासियों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की गारंटी हुई थी. प्रदेश में मुफ्त तीर्थ यात्रा करने की भी गारंटी दी गई थी. लेकिन अब ये बीती बात हो चुकी है.