अधिवक्ता दिवस की पूर्व संध्या पर परिचर्चा संपन्न
ललितपुर। अधिवक्ता दिवस (एडवोकेट-डे) की पूर्व संध्या पर चाय की चकल्लस के संयोजन में अधिवक्ता संवाद द्वारा अधिवक्ताओं के योगदान और भविष्य को लेकर एक परिचर्चा संपन्न हुई। परिचर्चा का संयोजन करते हुए अधिवक्ता संवाद के जिला संयोजक मुकेश लोधी बताते हैं कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस पर भारत भर में अधिवक्ता दिवस मनाते हैं।
राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ संविधान समिति के अध्यक्ष भी थे, इन सबके पहले वह एक विद्वान अधिवक्ता थे। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था।
वे स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात वर्ष 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। सम्पूर्ण देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रविंद्र घोष बताते हैं कि अधिवक्ता की गरिमा वर्तमान भारत में भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।
अनेकों पेशों का आज आधुनिक बाजारवादी युग में प्रवेश हुआ है पर वकालत की चमक पर कोई पॉलिश अब तक भरी नहीं हुई है। आज भी भारतभर में बड़ी संख्या में लोग अधिवक्ता के लिए रजिस्टर हो रहे हैं।हालांकि आज समय के साथ इस पेशे के अर्थ अवश्य बदल गए है। धन कमाने के उद्देश्य से आज वकालत की जाने लगी है, आज हर वर्ग विशेष का व्यक्ति वकालत में दांव खेलने आ रहा है। जो जितना योग्य और निशांत प्रतिभा का धनी है उतना वकालत में सफल है।
अधिवक्ता अंकित जैन बंटी परिचर्चा में अपनी सहभागिता की भूमिका को गढते हुए बताते हैं कि अधिवक्ता के पेशे का अजीब रहस्य है कि इस ही पेशे में एक ही विषय का अध्ययन कर कोई व्यक्ति अच्छी संपदा एकत्रित कर लेता है और कोई शून्य रह जाता, इतना रहस्यमय पेशा कोई अन्य नहीं मालूम होता है। वकालत धन के मामले में संपूर्ण योग्यतावादी विचार देती है अर्थात जो जितना अधिक योग्य उतना धनवान और सफल।इन सब बाजारवादी विचारों के पूर्व अधिवक्ता आज भी मानवतावादी विचारों और तथा मानवीय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है।
जहां कहीं मानवीय मूल्यों का अतिक्रमण होता है वहां अधिवक्ता की उपलब्धता प्रतीत हो जाती है। अधिवक्ता संवाद के प्रदेश मंत्री राजेश पाठक बताते हैं किभारत की सारी न्याय व्यवस्था अधिवक्ता के काम पर टिकी हुई है। इतना कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि न्याय मिल ही इसलिए रहा है क्योंकि अधिवक्ता उपलब्ध है। अधिवक्ता न्यायालय के अधिकारी है, कभी कभी वह न्यायधीश से उच्च स्तरीय प्रतीत होतें क्योंकि संपूर्ण न्याय व्यवस्था का भार इन ही काले कोट के कंधों पर है। अगर अधिवक्ता न हो तो भारत की जनता को न्याय मिलना असंभव सा हो चले। युवा अधिवक्ता आकाश झां बताते है कि यदि अधिवक्ता विषय पर अधिक विस्तृत अध्ययन किया जाए तो विधि शासन को बनाए रखने में अधिवक्ता की महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यक्ति अपने अधिकारों के अतिक्रमण होने पर न्यायालय की ओर रुख करता है और न्यायालय का रास्ता वकील के मार्गदर्शन में ही पाया जाता है। भारत की विषाद न्याय व्यवस्था को समझने और उस पर कार्य करने के लिए विशेष कौशल चाहिए होता है, आम जन साधारण का ऐसा कौशल पाना सरल कार्य नहीं है। अधिवक्ता का अभ्यास ही ऐसे कौशल को जन्म देता है। अधिकारों के अतिक्रमण की दशा में अधिवक्ता की सहायता ली जाना आवश्यक है। कोई अधिवक्ता ही आपके वैधानिक और मौलिक अधिकारों के लिए न्यायालय तक आपको ला सकता है।
Dec 03 2023, 15:46