*एक अनूठी परंपरा :अनोखे प्रेम के लिए सुविख्यात टेसू और झेंझी का बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ विवाह*
कन्नौज जिले में बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ टेसू और झेंझी का विवाह किसी जमाने में अपने अनोखे प्रेम के लिए सुविख्यात टेसू और झेंझी विवाह परंपरा को आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है।
अगर हम इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो पता चलता है कि किसी समय में इस प्रेम कहानी को परवान चढ़ने से पहले ही मिटा दिया गया था। लेकिन उनके सच्चे प्रेम की उस तस्वीर की झलक आज भी यदाकदा देखने को मिल ही जाती है। शहर के लोग तो इसे लगभग पूरी तरह भूल ही चुके हैं। लेकिन गांवों में कुछ हद तक यह परंपरा अभी भी जीवित है। जहां आज भी टेसू-झेंझी का विवाह बच्चों व युवाओं द्वारा रीति-रिवाज व पूरे उत्साह के साथ कराया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि अपनी प्राचीन परंपरा को सहेजने में गांव आज भी शहरों से कई गुना आगे हैं।
छिबरामऊ नगर पालिका रोड पर मोहल्ला चौधरियान में गमा देवी मंदिर के पास टेसू और झेंझी का विवाह समारोह आयोजित किया गया। बैंड बाजों के साथ टेसू झेंझी की बारात निकली और बाकायदा विदाई भी की गई। इस दौरान डीजे पर बज रहे लांगुरिया गीतों पर युवक जमकर झूमे। वधू (झेंझी) पक्ष की तरफ से राजा बेटी, ममता, शीला, शिल्पी, मधु व शिवानी आदि ने इस कार्यक्रम को शुरू करने के साथ समापन भी किया। जिस प्रकार शादी कार्यक्रम किए जाते हैं उसी तरह गाना बजाना के साथ खानपान, बारात और विदाई की रस्में भी निभाई गई। वर पक्ष (टेसू) की तरफ से जवाहर लाल बाथम, पंकज बाथम, शीलू, वीरा देवी ने इस आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
बड़े धूम-धाम से निकाली गई टेसू और झेंझी की बारात
सुबह से ही बालक बालिकाएं टेसू झेंझी के विवाह को लेकर अपनी तैयारी करने में जुट गए। बच्चों ने पिछले दिनों गली मोहल्ले में घर-घर जाकर टेसू झेंझी से संबंधित परंपरागत लोकगीतों का गायन कर दान स्वरूप लोगों से धनराशि एकत्रित की थी। दान की इसी धनराशि से खील बताशे और विवाह में काम आने वाला जरूरी सामान खरीदा गया। टेसू झेंजी का विवाह धूमधाम से रचाया गया। इस दौरान महिलाओं एवं लड़कियों ने मंगल गीत गाये। विवाह कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने पटाखे चलाकर धूम धड़ाका किया। सभी को खील बताशे का प्रसाद वितरित किया गया। विवाह संपन्न होने के पश्चात टेसू झेंजी का विसर्जन कर दिया गया। वहीं एलआईसी अभिकर्ता राममोहन सैनी का कहना है भारतीय लोक परंपराएं एक से बढ़कर एक है, कि रामलीला के दौरान टेसू और झेंझी के विवाह की परंपरा बरसों से चली आ रही है। शाम होते ही बच्चों की टोलियां हाथों में टेसू और झेंजी को लेकर गली मोहल्लों में 'मेरा टेसू यहीं अड़ा खाने को मांगे दही बड़ा'... 'टेसू रे टेसू घंटा बजैयो नौ नगरी दस गांव बसइयो'... जैसे तुकबंदी से गाए जाने वाले गानों की धूम देखने को मिलती है। छोटे-छोटे बच्चे घर-घर दस्तक देकर गीत गाते हुए बदले में अनाज व पैसा मांगते हैं।
विवाह के दौरान हुए परंपरागत गीत
अड़ता रहा टेसू, नाचती रही झेंझी : - ' टेसू गया टेसन से पानी पिया बेसन से...', 'नाच मेरी झिंझरिया...' आदि गीतों को गाकर उछलती-कूदती बच्चों की टोली आपने जरूर देखी होगी। हाथों में पुतला और तेल का दीपक लिए यह टोली घर-घर जाकर चंदे के लिए पैसे मांगती है। कोई इन्हें अपने द्वार से खाली हाथ ही लौटा देता है, तो कहीं ये गाने गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं।
धीरे-धीरे कम होती जा रही है यह परंपरा
मकसद सिर्फ एक होता है, चंदे के पैसे इकट्ठे कर टेसू-झेंझी के विवाह को धूमधाम से करना। वहीं छोटी-छोटी बालिकाएं भी अपने मोहल्ला-पड़ोस में झेंझी रानी को नचाकर बड़े-बुजुर्गों से पैसे ले लेती हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में बच्चों की ये टोलियां बहुत ही कम दिखाई देती हैं।
Nov 08 2023, 18:13