सरायकेला : दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के तराई में बसा कोंकादासा गांव जहां आज भी लोग है बुनियादी सुविधाओं से वंचित
यहां की है परम्परा,लोग अपनी पालतू भैंसों को छोड़ देते हैं दिवाली के बाद जंगलो में,फिर फरवरी में लाते हैं वापस
रिपोर्ट:-विजय कुमार(सराईकेला)
सरायकेला : दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के बिहोड़ों में बसे आदिवास बहुल गांव कोंकादासा जहा 30 परिवार बास करते आ रहे हैं।
ईन लोगो का जीवन ईश्वर और दलमा जंगल पर निर्भर करता है। कभी समय पर बारिश होने पर खेती होता है । नही तो जंगल की सूखे लकड़ी और पत्ता दातुन कंदमूल इकट्ठा करके बोड़ाम मार्केट पर ले जाकर बेच कर जीवन का गुजर -बसर करते है।
कोल्हान के पूर्वी सिंहभूम बोड़ाम थाना क्षेत्र के बोटा पंचायत के जमशेदपुर गज परियोजना के कोकादासा के ग्रामीण सुनील सिंह सरदार ने बताया कि यह गांव आदिवासी बहुल गांव है।देश के आजादी के बाद से लेकर आज तक झारखंड राज्य अलग हुए लेकिन अबतक विकास नहीं हुआ। न कोई सरकारी योजना यहां पहुंचा है जिससे गांव का विकास हो ।
ग्रामीणों आपने भैंसा काड़ा को सेंचुरी जंगल में छोड़ देता है। जो भैंसा को हरी घास खाने को मिल जाता है।
ग्रामीणों का मानना है कि खेती बाड़ी के दौरान भैंसा को फरबरी माह में जंगल से गांव लाते हैं और खेती बाड़ी के बाद दीपावली और बंदना पर्व को भैसा बैल खुटान के बाद पूर्ण जंगल में छोड़ देते हैं।
भैसा का झुंड जंगल में बिछड़ न जाए और खोजने में आसान हो जिसे भैसा के गले में लकड़ी का बना घंटा लगाकर रखते हैं, जिसे घंटा का आवाज में खोजने में आसान होता है।यह भैंसा का झुंड सेंचुरी के बड़का बाध,छोटका बाध ,निचला बाध आदि जगह घुम् - घूम कर विचरण करते हैं।
झुंड में भैसा का।छोटे बच्चे भी रहते हैं, भैसा मालिक द्वारा दो माह के अंदर एक आध बार जरूर भैसा झुंड को देखने जंगल में पहुंचते हैं।
लोगो का मानना है कि दलमा बूढ़ा बाबा , दलमा पाट में बर्ष में एक बार पूजा अर्चना करने पहुंचे हैं।जो उनका पालतू जानवर को जंगली जानवर से सुरक्षित रखते हैं।
सुनील सिंह सरदार (ग्रामीण
कोंकादासा) का कहते हैं कि जंगल के ऊपरी क्षेत्र होने के कारण पानी की किल्लत होता है।लोग झरने की पानी पीते हैं ।जिसे कई प्रकार का रोगों से निजात मिलती है , सरकार द्वारा इस क्षेत्र को पर्यटक के लिए र
रिसोर्ट गेस्ट हाउस खोले ओर पर्यटकों बढ़ावा दे जिसे हम लोगो को पानी ,बिजली सड़क ,स्वास्थ्य की सुविधा होगा और हम लोगो को स्वरोजगार प्राप्त होगा।
एक दशक पूर्व यह घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र था जिसके कारण अबतक कोई विकास नही हुआ है। चुनाव के समय नेता मंत्री पहुंचते है और बड़े बड़े वादे करके चले जाते हैं। इस क्षेत्र में एक मात्र स्कूल है ।उसके बाद उच्च शिक्षा के 30 किलोमीटर जंगल के बीहड़ों में पैदल चलकर बोटा पंचायत जाना पड़ता है।
सड़क में बिजली स्वास्थ्य केंद्र नही होने के कारण लोगो को जीना यहां मुश्किल है । डर की साए में है ग्रामीण इस जंगल में वास करते हैं ।यहां रॉयल बंगाल टाईगर,चिता,भालू और हाथी की डर लगा रहता है। कई बार जंगली जानवर द्वारा पालतू जानवर को खा जाते हैं। वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा हमारे गांव में कोई विकास नहीं किया । अब नक्सल से कोई डर नही पर्यटक इस क्षेत्र में आए और इन हसीन वादियों का मनोरंजन ले जंगल से हराभरा और झरनों की कलकलाहट की आवाज के साथ पंछी की आवाज सुनने को यहां मिलता है।
Oct 17 2023, 17:31