*दूसरे दिन "पर्यावरण रक्षा _भविष्य की सुरक्षा" विषयक संगोष्ठी पर वक्ताओं ने डाला प्रकाश*
गोरखपुर। युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 54वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 9वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत आयोजित संगोष्ठी के क्रम में दूसरे दिन "पर्यावरण रक्षा _भविष्य की सुरक्षा" विषयक संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डी पी सिंह ने कहा कि पर्यावरण और आध्यात्मिकता का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। अध्यात्म हमारे जीवन के उत्थान के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए भी हमें प्रेरित करता है ।
हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज जी जितना अध्यात्म से जुड़े हैं उतना ही पर्यावरण को लेकर भी चिंतित रहते हैं। हमारा देश आध्यात्मिक चेतना का देश रहा है और यही कारण है कि पर्यावरण को लेकर हमारे देश के प्रधानमंत्री जी विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं। पर्यावरण को लेकर हमारे शास्त्रों में निर्देशित किया गया है कि प्रकृति का प्रत्येक तत्व देवत्व से युक्त है, ऐसा बताकर सभी के प्रति समाज में सम्मान व सुरक्षा को भाव लाया गया है। हमारी संस्कृति में प्रारंभ से ही व्यक्ति को प्रकृति से जोड़ने का प्रयास किया जाता रहा है। जीव जंतुओं से लेकर वृक्ष वनस्पतियों तक सभी में देव दृष्टि रखना हमारी संस्कृति की पहचान है । हमारे सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयोगात्मक केंद्र बने और वहां से समाज में पर्यावरण को लेकर क्या करना चाहिए उसका संदेश दिया जाए तो एक बड़ा प्रयास होगा।
पर्यावरण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर से प्रयास करना होगा । हमें ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, वायु संरक्षण के लिए संकल्प लेने की आवश्यकता है। हमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण को संतुलित बनाने का प्रयास करना है। भारत की दृष्टि समग्र विकास की है जिसमें आर्थिक ,सामाजिक, शैक्षणिक आदि सभी के विकास के साथ ही पर्यावरण के सभी तत्वों की सुरक्षा की बात की जाती है । ये जो दृष्टि है ये अध्यात्म से आई हुई दृष्टि है। इसका हम सभी को अपने जीवन में पालन करना चाहिए।
सवाई आगरा से पधारे ब्रह्मचारी दासलाल जी महाराज ने कहा कि पर्यावरण हमारे चारों तरफ विद्यमान पांच तत्वों का आवरण है। हम इनको अपने स्वार्थ के लिए प्रदूषित करते हैं , जिसका परिणाम अनेक रूपों में हमें दुखद रूप में प्राप्त हो रहा है। हमारे शरीर में वात , पित्त और कफ इसी पर्यावरण के प्रभाव से संतुलित और असंतुलित होते है। प्रकृति का संतुलन हमारे शरीर के संतुलन के लिए आवश्यक है।
सतुआबाबा आश्रम काशी से पधारे संतोषदास जी महाराज ने कहा कि हम सभी को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चिंता करनी चाहिए। सभी शिक्षण संस्थानों के छात्र व शिक्षको को अध्ययन-अध्यापन के साथ ही पर्यावरण के लिए अपना योगदान देना चाहिए। हमें देश के विकास के साथ ही अपने पर्यावरण को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा, तभी हम सही रूप में विकास कर सकेंगे। हमें संकल्प लेना होगा कि हम अधिक से अधिक वृक्ष लगावें और प्रतिदिन उसकी देखभाल भी करें। श्री गोरखनाथ मंदिर में चारों तरफ हरियाली ही दिखाई देती है।जहां देखें वहां स्वच्छता है , गमलों में बड़े-बड़े पौधे लगाए गए हैं ,साथ ही जहां खाली स्थान है वहां अधिक मात्रा में वृक्ष भी लगाए गए हैं । हम सभी को इसका अनुकरण करना चाहिए ।
विशिष्ट वक्ता दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं प्राणी विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो डी के सिंह ने कहा कि आज पर्यावरण नई पीढ़ी के लिए चुनौती बन रही है। पर्यावरण का प्रथम तत्व व्यक्ति ही है। हमारे शरीर के अंदर जो आत्मा है उसके लिए हमारा शरीर पहला पर्यावरण है। हमें स्वस्थ रहने के लिए अपने शरीर रूपी पर्यावरण को सही रखना पड़ेगा । उसके लिए हमें यम और नियम का नियमित पालन करना चाहिए। हमारे शास्त्रों में शरीर का निर्माण पांच तत्वों से बताया जाता है, इन्हीं पांच तत्वों से यह सृष्टि भी बनती है, इसलिए हमें पिण्ड से ब्रह्मांड तक के पर्यावरण को सही रखने की आवश्यकता है । प्रकृति के संसाधनों का उपयोग आवश्यकता से अधिक होने से पर्यावरण असंतुलित हो रहा है।
इस समय जैव विविधता की कमी पर्यावरण के प्रमुख कारण है। हमें मांस उत्पादन की जगह पशुपालन और वनस्पतियों से खाद्य सामग्री का उत्पादन करना होगा। पर्यावरण में कार्बन डाइआॅक्साइड गैस अधिक होने से पृथ्वी अधिक गर्म हो रही है और ग्लेशियर भी अधिक मात्रा में पिघल रहे है जिस कारण से समुद्र में वाष्पन अधिक हो रहा है। और उसी का परिणाम है कि अतिवृष्टि हो रही है। इन सभी समस्याओं का समाधान है कि हम अधिक मात्रा में वृक्ष लगावें।
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति प्रो उदय प्रताप सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हमारे यहां जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो वहां एक शांति मंत्र का पाठ किया जाता है जिसे पर्यावरण मंत्र कहा जाता है ,इस मन्त्र में शांति शब्द, संतुलन के अर्थ में है। इस मंत्र में सृष्टि के सभी प्रमुख तत्वों के संतुलन की कामना की गई है। हम सभी का सौभाग्य है और एक दैवीय संयोग भी है कि जिस दिन 5 जून को हम पर्यावरण दिवस मनाते हैं वह दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पूज्य महाराज जी का भी जन्मदिन है । आज पूज्य महाराज जी ने न केवल प्रदेश को ही अपितु पूरे देश को अपने पर्यावरण के प्रति प्रयास से संदेश दिया है।
हमारे शास्त्रों में सभी जड़ व चेतन में उसी परम तत्व का दर्शन करने की बात कही गई है। प्रकृति की पूजा को हमारा धर्म व कर्तव्य बताया गया है। वैदिक सूक्तों में प्रकृति को जननी और देव रूप में वर्णन किया गया है।
संगोष्ठी में अयोध्या से महंत सुरेश दास जी महाराज , कटक से महंत शिवनाथ जी , अयोध्या से महंत राममिलन दास जी, प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ जी, देवीपाटन से महंत मिथलेश नाथ जी, कालीबाड़ी के महंत रविंद्रदास जी, वाराणसी के योगी रामनाथ जी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का प्रारम्भ डॉ॰ रंगनाथ त्रिपाठी के वैदिक मङ्गलाचरण तथा गौरव तिवारी व आदित्य पाण्डेय के गोरक्षाष्टक पाठ से हुआ ।संचालन माधवेंद्र राज सिंह ने किया।
Sep 28 2023, 17:53