स्वतंत्रता दिवस विशेष:- अंग्रेजी साम्राज्य के दमनकारी नीति के विरुद्ध उपजा आदिवासियों का आक्रोश हुल क्रांति
अबुआ दिसोम, अबुआ राज (अपनी धरती, अपना राज), महिलाओं का सम्मान और अस्मिता की रक्षा। अंग्रेजी साम्राज्य की दमनकारी नीति ने जब इसमें खलल डालने की कोशिश की, तो झारखंड के भोले-भाले संथालों को योद्धा बनते देर न लगी। 1855 की हूल क्रांति इसी रोष की उपज थी। यह देश की बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं में से एक है।
संथाल अपनी जमीन पर मालगुजारी देने को तैयार न थे और उस समय की स्थिति ऐसी थी कि मालगुजारी न देने पर उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी। उस वक्त का जनजातीय समुदाय महसूस कर रहा था कि ब्रिटिश आक्रांता उनकी आजादी छीन रहे हैं। उनमें असंतोष बढ़ रहा था, लिहाजा उन्होंने मालगुजारी, बंधुआ मजदूरी और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के खिलाफ विद्रोह किया और अपने पारंपरिक हथियारों से ही अंग्रेजों से लोहा लेने की हिम्मत दिखाई। असंतोष से उपजी संथालों की इस क्रांति से पहाड़िया और अन्य जनजातीय समुदाय के लोग भी जुड़ गए थे।
संथाल क्षेत्र में इस क्रांति को चार भाइयों सिद्धो, कान्हू, चांद, भैरव और दो बहनें फूलो और झानो ने शुरू किया था, लेकिन देखते ही देखते पूरा समाज इससे जुड़ गया। भारतीय इतिहासकारों की मानें तो हूल क्रांति ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार की थी। हालांकि, ब्रिटिश इतिहासकार इस क्रांति पर चर्चा करने से बचते रहे और इसके लिए विद्रोह शब्द का इस्तेमाल करते रहे। जबकि, भारतीय इतिहासकारों ने 1857 के सिपाही विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई का दर्जा देकर कहीं न कहीं हूल विद्रोह की अनदेखी की है।
30 जून 1855 में साहिबगंज के भोगनाडीह में 10,000 लोगों की सभा में सिद्धो को राजा घोषित किया गया, कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति बनाया गया। ये चारों भाई थे। इस तरह ‘अपना राज’ कायम हुआ। अंग्रेजी सरकार को मालगुजारी देना बंद हो गया। संथाल लड़ाकों ने कंपनी सरकार के दारोगा, सिपाहियों को मारना-काटना शुरू कर दिया। लेकिन कुछ गद्दारों ने कान्हू को गिरफ्तार करवा दिया।
विद्रोहियों को परास्त करने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की तमाम हदें लांघ दी थीं। चांद और भैरव को मार डाला गया। इसके बाद 26 जुलाई को भोगनाडीह में सिद्धो-कान्हू को पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गई। जनवरी 1856 में हूल क्रांति समाप्त हो गई। हूल क्रांति में 30,000 से अधिक लोग शहीद हुए थे। इस क्रांति में फूलो और झानो भी बहादुरी से लड़ी थीं। इस क्रांति के बाद क्षेत्र को समग्र रूप से संथाल परगना घोषित किया गया।
हूल क्रांति पर कई गीत भी लिखे गए हैं। इतिहासकारों ने भी हूल क्रांति को लिखने में इन गीतों की मदद ली है। संथाल परगना क्षेत्र में हूल गीत काफी प्रचलित हैं। सिद्धू तुमि केमोन लोक छीले गो, कान्हू तुमि केमोन लोग छिले गो…(सिद्धू तुम किस तरह के व्यक्ति थे, कान्हू तुम किस तरह के व्यक्ति थे), इसी तरह – संताल मा दिसोम रे सिदो कानू किन राजा हो….(संथालों के देश में सिद्धू कान्हू ने राज किया), फूलो झानो पर भी गीत लिखे गए हैं- फूलो झानो आम दो तीर रे तलरार रेम साअकिदा…(फूलों झानो तुमने हाथों में तलवार उठा लिया), इन जैसे अनगिनत गीतों में हूल क्रांति का इतिहास छिपा है।
Aug 15 2023, 21:21