*वित्त वर्ष के प्रथम दो महीनों में कालीन निर्यात 8.45 प्रतिशत तक गिरा*
नितेश श्रीवास्तव
भदोही।जून तिमाही में देश का निर्यात गत तीन वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गया। इन आंकड़ों से कदम ताल करते हुए भारत का कालीन निर्यात भी डगमगा गया है। पिछले दो महीने अप्रैल और मई माह के निर्यात आंकड़ों पर नजर डालें तो अकेले इन दो महीनों में ही भारतीय कालीन उद्योग भारतीय मुद्रा में 8.45 प्रतिशत पीछे है। यदि अमेरिकी डालर में गणना करें तो नुकसान का प्रतिशत 14.53 प्रतिशत हो जाता है। भदोही के बड़े कारोबारियों का कहना है कि कालीन उत्पादन और निर्यात बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना होगा।
सीईपीसी के अधिशासी निदेशक डाॅ. स्मिता नागरकोटी ने अप्रैल और मई माह के कालीन निर्यात आंकड़े देते हुए बताया कि गत वर्ष इसी अवधि में रुपये के दृष्टिकोण से नुकसान 8.45 प्रतिशत है। जिसमें गैर टफ्टेड कालीन का नुकसान 15.92 प्रतिशत और अन्य फ्लोर कवरिंग 23.18 प्रतिशत कम हुआ है। यदि डालर मे बात करें तो कुल घाटा 14.53 प्रतिशत है। जिसमे गैर टफ्टेड 21.49 प्रतिशत तथा अन्य फ्लोर कवरिंग में घाटा 28.34 प्रतिशत दर्ज किया गया है। अधिशासी निदेशक ने बताया कि जून के आंकड़े अभी प्राप्त नहीं हुए हैं। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) भारत सरकार और कालीन उत्पादकों की सबसे बड़ी संगठन आल इंडिया कारपेट मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन (एकमा) के पदाधिकारी दावा करते हैं कि कालीन उद्योग देश भर में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से वे 20 से 25 लाख मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं और अब जो निर्यात के वैश्विक संकेत मिल रहे हैं, वह चिंता में डाल देने वाली हैं।
ऐसे में न केवल सरकार को बल्कि उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों को कुछ सोचना होगा। नहीं तो आने वाले दिनों में और गिरावट दर्ज की जाएगी। बढ़ती महंगाई के बीच कालीनों की उत्पादन लागत तेजी से बढ़ी है। कालीनों की वैश्विक मांग कम नहीं हुई है बल्कि दूसरे देश हमसे सस्ते में कालीन उपलब्ध करा रहे हैं। जिसका नुकसान भारत को उठाना पड़ रहा है। -यादवेंद्र राय काका
बीते कुछ वर्षों में कालीन उद्योग को मिलने वाली कई सौगातें सरकार ने या तो कम कर दी हैं अथवा खत्म कर दी है। यह बहुत बड़ा कारण है। जो हालात हैं उसमे अपनी पहचान बचा पाना मुश्किल होजा जा रहा है। -असलम महबूब
Jul 18 2023, 13:55