*बेतिया: सूचना प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष विज्ञान में आगे आए देश की नई पीढ़ी*
बेतिया: आज दिनांक 25 फरवरी 2023 को सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत द्वारा पहली बार अंतरिक्ष में पृथ्वी मिसाइल का सफल परिक्षेपण की 35 वी वर्षगांठ पर सूचना प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष विज्ञान में आगे आने की नई पीढ़ी के युवाओं एवं युवतियों आह्वान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता नवीदु चतुर्वेदी एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान के जनक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एवं विभिन्न अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज से 35 साल पहले भारत ने पहली बार स्वदेशी तकनीक से निर्मित पृथ्वी मिसाइल का परीक्षण कर दुनिया में हलचल मचा दी थी.
पृथ्वी मिसाइल के पहले परीक्षण के बाद भारतीय मिसाइल कार्यक्रम में तेजी आ गई थी.
पृथ्वी मिसाइल के पहले परीक्षण के बाद भारतीय मिसाइल कार्यक्रम में तेजी आ गई थी।
आज भारत की मिसाइल तकनीक दुनिया में आधुनिक और उन्नत तो है ही, इसके साथ ही यह आत्मनिर्भर भी है. लेकिन आत्मनिर्भरता का यह सफर बहुत लंबा रहा है. इसमें से एक अहम दिन 25 फरवरी साल 1988 का है, जब भारत ने पहली बार पृथ्वी मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. यह भारतीय सुरक्षा तंत्र के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी जिसके तरह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से देश ने सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल बना कर सामरिक दुनिया में हलचल मचा दी थी.
इस मिसाइल का विकास केवल एक शुरूआत थी और एक छोटा लेकिन बहुत ही अहम कदम था जिसके बाद भारतीय सुरक्षा तकनीकी वैज्ञानिकों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. लेकिन इस पृथ्वी मिसाइल जिसे बाद में पृथ्वी-1 मिसाइल कहा जाने लगा था, रातों रात विकिसित नहीं हुई. 1983 में इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) की शुरुआत हुई.
इसरो के महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम और तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी
इस कार्यक्रम में भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाला पूर्व राष्ट्रपति डॉ एजीपी अब्दुल कलाम आजाद की प्रमुख भूमिका था. उन्हीं की निगरानी में ही IGMDP कार्यक्रम चल रहा था. इसकी शुरुआत में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस कार्यक्रम को शुरु करवाया और 300 करोड़ रुपये के बजट का आवंटन किया गया था।
पृथ्वी मिसाइल (Prithvi Missile) का बाद में एक उन्नत संस्करण विकसित किया गया जिसकी जद 600 किलोमीटर तक हो गई.
अलग अलग जगह अमल लाए गए कार्यक्रम के हिस्से
1985 में शुरुआती तौर के परीक्षण सफल हुए लेकिन पृथ्वी मिसाइल का परीक्षण 25 फरवरी 1988 को ही हो सका. जब कार्यक्रम की शुरुआत में कलाम ने इंदिरा गांधी को जून 1987 तक का समय दिया था. जोधपुर यूनिवर्सिटी में इसके एल्गॉरिदम बनाए गए. भारतीय विज्ञान संस्थान और इसरो इसके अलग अलग हिस्सों पर काम कर रहे थे. कलाम तब डीआरडीएल के निदेशक के तौर पर इन सभी में समन्वय का काम कर रहे थे.
दुनिया के हालात उस दौर में अमेरिका और सोवियत संघ में शीत युद्ध जारी थी, सोवियतसंघ में विघटन की नींव पड़ चुकी थी. वहीं अमेरिका नाटो के जरिए अपना दबदबा बढ़ा रहा था. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान अमेरिका खुला समर्थक था जिससे उसे किसी भी तरह का हथियार की पहुंच की कमी नहीं थी, लेकिन भारत एक गुटनिरपेक्ष देश था. सोवियत संघ के ज्यादा करीब था. ऐसे में यह परीक्षण अमेरिका को रास नहीं आया था.
भारत पर परमाणुओं संपन्न सात देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक संबंधी हस्तांतरण पर रोक लगा दी.
इससे भारत को गाइडेड मिसाइल और उससे जुड़े किसी भी हिस्से या पार्ट्स या उपकरण को खरीदना नामुमकिन हो गया. लेकिन ऐसी घटनाओं ने भारत को अंततः आत्मनिर्भर ही बनाया है. इसके बाद भारत ने देर से सही लेकिन अंततः उन सभी तकनीकों में आत्मनिर्भरता हासिल की जिन पर भारत को प्रतिबंधित किया गया था.
इसकी सबसे अच्छी मिसाल क्रायोजेनिक इंजन तकनीक है जिसे संपन्न देशों ने यह कहकर नहीं दिया था कि इसका भारत परमाणु हथियार के दिए दुरुपयोग कर सकता है.
IGMDP कार्यक्रम के तहत पृथ्वी के अलावा आकाश, नाग, त्रिशूल और अग्नि मिसाइलों का विकास भी भारत आज सफलता पूर्वक कर चुका है और इस समय भारत अग्नि मिलाइल की जद को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है.
जबकि अग्नि साथ आकाश, नाग, त्रिशूल भारतीय सेनाओं का हिस्सा बन चुके हैं. पृथ्वी की शुरुआती जद या रेंज 150 किलोमीटर ही थी जो साल 2004 में बढ़ा कर 600 किलोमीटर तक की जा चुकी है.
Feb 27 2023, 20:22