यूएस से डिपोर्ट भारतीयों को लेकर आया प्लेन पंजाब में क्यों उतरा? कांग्रेस उठा रही सवाल

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अमेरिका से 104 अवैध अप्रवासियों की वापसी हो चुकी है। उनको लेकर आए सैन्य विमान की लैंडिंग पंजाब के अमृतसर में हुई। निर्वासित लोगों में से 30 पंजाब से, 33-33 हरियाणा और गुजरात से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश, दो चंडीगढ़ से हैं। निर्वासित किए गए लोगों में 19 महिलाएं और चार वर्षीय एक बच्चा, पांच व सात वर्षीय दो लड़कियों सहित 13 नाबालिग शामिल हैं। इस बीच प्लेन के देश की राजधानी दिल्ली की जगह अमृतसर में लैंडिंग को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

कांग्रेस ने निर्वासित भारतीयों को ले जा रहे अमेरिकी सैन्य विमान को दिल्ली के बजाय अमृतसर में उतरने की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। कांग्रेस ने कहा कि शहर को 'धारणा' और 'नैरेटिव' को ध्यान में रखते हुए चुना गया था।

“बदनाम करने वाले नैरेटिव”

कांग्रेस के जालंधर कैंट विधायक परगट सिंह ने कहा कि पंजाब की तुलना में गुजरात सहित अन्य राज्यों से अधिक निर्वासित लोग हैं। परगट सिंह ने सोशल मीडिया प्लोट कहा कि जब पंजाब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की मांग करता है, तो पंजाब को आर्थिक लाभ से वंचित करने के लिए केवल दिल्ली एयरपोर्ट को अनुमति दी जाती है। लेकिन जब बदनाम करने वाले नैरेटिव की बात आती है, तो एक अमेरिकी निर्वासन विमान पंजाब में उतरता है। भले ही उसमें अधिककर निर्वासित गुजरात और हरियाणा से हों।

लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग

वहीं, अमृतसर से सांसद और कांग्रेस नेता गुरजीत औजला ने विमान को अमृतसर में उतारे जाने पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग का नोटिस देते हुए पूछा कि प्लेन को दिल्ली में क्यों नहीं उतारा गया? उन्होंने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए एक्स पर लिखा, शर्मनाक और अस्वीकार्य! मोदी सरकार ने भारतीय अप्रवासियों को बेड़ियों में जकड़े हुए विदेशी सैन्य विमान से वापस भेजने की अनुमति दी। कोई विरोध क्यों नहीं? वाणिज्यिक उड़ान क्यों नहीं? विमान दिल्ली में क्यों नहीं उतरा? यह हमारे लोगों और हमारी संप्रभुता का अपमान है। सरकार को जवाब देना चाहिए!’

आप ने भी घेरा

इस बीच, आम आदमी पार्टी (आप) ने सवाल किया है कि विमान की लैंडिंग अमृतसर में क्यों कराई गई। देश के किसी अन्य राज्य में विमान को क्यों नहीं उतारा गया। आप पंजाब के अध्यक्ष अमन अरोड़ा ने सवाल किया कि विमान अमृतसर में क्यों उतरा, देश के किसी अन्य हवाई अड्डे पर क्यों नहीं। उन्होंने कहा, जब निर्वासित लोग पूरे देश से हैं, तो विमान को उतारने के लिए अमृतसर को क्यों चुना गया? यह सवाल हर किसी के दिमाग में है। अमन अरोड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने पंजाब के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया है। पंजाब की तुलना में अन्य राज्यों के लोग (निर्वासित) अधिक हैं. इस विमान को उतारने के लिए अमृतसर को चुनना एक सवालिया निशान खड़ा करता है।

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए महत्व: रणनीतिक सहयोग, व्यापारिक चुनौतियाँ और कूटनीतिक अवसर

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Donald Trump (President of USA)

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए पहलू सामने आए, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थे। ट्रंप की विदेश नीति और उनकी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस लेख में हम यह देखेंगे कि ट्रंप का भारत के लिए क्या मतलब था, उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे विकसित हुए, और उनके निर्णयों के परिणामस्वरूप भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध

1. चीन के खिलाफ साझा चिंता

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत साझेदारी ने चीन को दोनों देशों के लिए साझा चिंता का विषय बना दिया। भारत और अमेरिका की रणनीतिक सहयोगिता का मुख्य ड्राइवर चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय प्रभाव था।

  - क्वाड का गठन इस साझेदारी का प्रमुख हिस्सा था, जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देता है।

  - ट्रंप ने चीन के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया, जिससे भारत को इसके मुकाबले अपनी स्थिति को मजबूती से पेश करने का अवसर मिला।

2. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

  - भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में भी वृद्धि हुई, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग में। ट्रंप प्रशासन के दौरान, अमेरिकी हथियारों और रक्षा प्रणाली के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा मिला।

  - डोकलाम, बालाकोट और गलवान जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं पर भारत और अमेरिका ने एक साथ काम किया, जो उनके सहयोग को और सुदृढ़ करता है।

3. पार्टी और वैचारिक संरेखण

  - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे, और दोनों के बीच एक विचारधारात्मक समानता थी, जो उनके कार्यों और नीतियों में भी दिखाई दी।

  - ट्रंप ने मोदी के नेतृत्व में भारत को एक अहम साझेदार माना और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

1. अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता

  - ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गई। उनके अप्रत्याशित निर्णय और रणनीतियाँ, जैसे कि कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बाहर निकलना, भारत के लिए कुछ मुद्दों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते थे।

  - उदाहरण के तौर पर, इंडो-पैसिफिक नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं था, और इसमें कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।

2. व्यापारिक असंतुलन और टैरिफ़ नीति

  - ट्रंप के दृष्टिकोण में व्यापारिक असंतुलन को लेकर चिंता थी, और भारत से संबंधित व्यापार अधिशेष के कारण अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाए जाने की संभावना जताई।

  - ट्रंप का यह मानना था कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार में उचित स्थान नहीं दिया और इसका फायदा उठाया। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत को अपने निर्यात को संतुलित करने और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश और भारतीय कंपनियाँ

  - ट्रंप का मानना था कि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश किए बिना अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और इस निवेश के परिणामस्वरूप हजारों नौकरियाँ पैदा हुई थीं।

  - भारत को अपने निवेश और व्यापारिक रणनीति को सही तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी ताकि अमेरिका में भारतीय योगदान को सही रूप से पहचाना जा सके।

भारत के लिए लाभकारी रणनीतियाँ

1. भारत के लिए उपयुक्त कूटनीतिक संबंध

  - भारत के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण बनाए रखे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति को सही दिशा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता था।

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अपनी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक योग्यता का इस्तेमाल करना पड़ा।

2. चीन के खिलाफ एकजुटता

  - चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके खिलाफ साझा चिंता ने भारत और अमेरिका को एकजुट किया। यह साझा रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद रही, विशेषकर सुरक्षा, तकनीकी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रों में।

3. व्यापार और निवेश संबंधों का संतुलन

  - भारत को यह स्पष्ट करना था कि मेक इन इंडिया और मेड इन अमेरिका के बीच कोई टकराव नहीं है। अगर भारत ने सही तरीके से अपने व्यापारिक मुद्दों को हल किया, तो वह ट्रंप प्रशासन को एक राजनीतिक जीत दे सकता था और अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन बना सकता था।

4. अमेरिका में निवेश का विस्तार

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी। भारत को यह सुनिश्चित करना था कि उसके निवेश के प्रभाव को उचित तरीके से अमेरिका में समझा जाए और उसे पहचान मिले।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध

1. व्यापारिक संघर्ष

  - भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा व्यापारिक टैरिफ़ था, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने की संभावना जताई थी। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती थी, क्योंकि इसे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करने से बचना था।

  

2. आवश्यक रणनीतिक सहयोग

  - भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के लिए अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करना था। इस संदर्भ में, दोनों देशों के व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक राजनीतिक इच्छाशक्ति और लचीलेपन की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश का मौका

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश करके लाभ कमा रही थीं, लेकिन यह भारत के लिए एक अनकहा पक्ष था। भारतीय निवेश को अमेरिकी कूटनीति में ज्यादा प्रमुखता से उठाना था ताकि इसके महत्व को समझा जा सके।

भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में चुनौती और अवसर दोनों थे। ट्रंप प्रशासन के दौरान, भारत ने अपनी कूटनीति, व्यापारिक रणनीतियों और सुरक्षा सहयोग को मजबूती से पेश किया। हालांकि, कुछ मुद्दों पर अनिश्चितता और संघर्ष रहा, लेकिन साझा रणनीतिक हित और व्यक्तिगत कूटनीतिक संबंधों ने दोनों देशों के बीच सहयोग को बनाए रखा। भारत को ट्रंप प्रशासन के अंतर्गत अपनी रणनीति को और मजबूती से आकार देना होगा, खासकर व्यापारिक और निवेश संबंधों में।  

पूनम देवी राज को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा

कमलेश मेहरोत्रा लहरपुर (सीतापुर)। स्थानीय

पूर्णोदय साहित्यिक संस्थान की राष्ट्रीय अध्यक्ष कवयित्री पूनम देवी राज को, काकद्वीप गंगासागर(पश्चिम बंगाल) में जिम्बाम्बे इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी,ग्लोबल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी(USA) और धराधाम इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के कुलपति,

डॉ सौरभ पाण्डेय एवं निदेशक एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस डॉ० नारायण यादव एवं डॉ०एहसान अहमद उर्दू समिति अध्यक्ष(NCRT) के द्वारा 11 जनवरी को साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य एवं हिन्दी साहित्य के विकास के लिए पूनम देवी राज को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा।

पूनम देवी राज ने इस सफलता का श्रेय अपनी माता रूपा देवी पिता श्रीपाल,गुरुजन और अपने पति राज कलानवी को दिया।

ज्ञातव्य है कि डॉ०पूनम देवी राज लहरपुर के छोटे से गाँव गदापुर की रहने वाली हैं और कम्पोजिट विद्यालय मकनपुर में शिक्षामित्र पद पर कार्यरत हैं।

अमेरिका को बर्दाश्त नहीं भारत-रूस की दोस्ती, जाते-जाते बाइडेन ने चलाया ऐसा चाबुक, बढ़ेगी टेंशन

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अमेरिका रूस के खिलाफ यूक्रेन युद्ध की वजह से नए प्रतिबंधों का ऐलान किया। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के मुताबिक अमेरिका ने रूस की 200 से ज्यादा कंपनियों और व्यक्तियों के साथ 180 से ज्यादा शिप्स पर बैन लगा दिया। इसके अलावा दो भारतीय कंपनी स्काईहार्ट मैनेजमेंट सर्विसेज और एविजन मैनेजमेंट सर्विसेज भी बैन लगाया गया है।

रूस और यूक्रेन का युद्ध रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस पर अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। उनका उद्देश्य यह है कि रूस को मिल रहा राजस्व कम किया जाए, जिससे यूक्रेन से युद्ध में वह इसका इस्तेमाल न कर सके। इसीलिए उसने 200 से अधिक रूसी संस्थानों और लोगों पर बैन लगाए गए हैं। इनमें बीमा कंपनियां, व्यापारी और तेल टैंकर आदि शामिल हैं।

अमेरिकी ने रूस की तेल उत्पादक कंपनियों और तेल ले जाने वाले जहाजों पर प्रतिबंध लगाया है। अमेरिका ने आरोप लगाया कि रूस, भारत और चीन जैसे देशों को सस्ता क्रूड ऑयल बेचकर यूक्रेन के साथ युद्ध की फंडिंग कर रहा है। इसी खीज में अमेरिका ने रूसी तेल उत्पादकों के साथ-साथ रूसी तेल ले जाने वाले 183 जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिया। इस बैन की वजह से क्रूड ऑयल की सप्लाई में परेशानी आने लगी है।

क्रूड ऑयल की कीमतों में आई तेजी

अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी आ गई है, क्रूड ऑयल की कीमतें 3% तक का बढ़ गई। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल को पार हो गई। अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत और चीन को रूस से ऑयल इंपोर्ट करने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते सोमवार को ब्रेंट क्रूड का भाव 1.83 प्रतिशत चढ़कर 81.22 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। इस तेजी के साथ की कच्चे तेल की कीमत चार महीने के हाई पर पहुंच गई है।

रूस ने की प्रतिबंधों की आलोचना

रूस के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इन प्रतिबंधों की आलोचना की है। रूस ने कहा कि यह अमेरिका की रूसी अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान पहुंचाने की चाल है। उसने कहा कि अमेरिका के इस कदम से वैश्विक बाजार में खतरा बढ़ेगा। रूस ने कहा कि वह बड़े तेल और गैस प्राजेक्‍ट पर काम करना जारी रखेगा। अमेरिका ने जो नए प्रतिबंध लगाए हैं, उससे 143 टैंकर प्रभावित होंगे जो 53 करोड़ बैरल रूसी तेल पिछले साल लेकर गए थे।

भारत पर भी होगा असर

रूसी तेल सप्लाई में आने वाली दिक्कतों के बीच आने वाले दिनों में भारत को ऊंचे दामों पर खाड़ी के देशों से कच्चा तेल खरीदना पड़ सकता है। अगर ऐसा ही रहा तो भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेजी आ सकती है। कच्चे तेल की कीमतों में ये तेजी जारी रही तो आपको महंगाई का झटका झेलना पड़ सकता है। यानी आने वाले दिनों में आपको महंगे तेल की कीमतों से दो-चार होना पड़ सकता है। पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने का सीधा असर सप्लाई चेन पर होगा। खाने-पीने से लेकर हर चीज महंगी होने लगेगी।

कौन हैं वी नारायण जो चुने गए नए ISRO चीफ, एस सोमनाथ की लेंगे जगह

भारत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और आंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ एस सोमनाथन की जगह वी नारायणन लेगें. केंद्र सरकार की तरफ से की गई घोषणा के मुताबिक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सचिव के तौर पर वी नारायणन अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे. इस विषय पर मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति की ओर से आदेश दिया गया. वी नारायणन 14 जनवरी को पदभार ग्रहण करेंगे.

न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, वी नारायणन अगले दो सालों तक या अगली सूचना तक इस पद पर काम कर सकते हैं. मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने वी. नारायणन, निदेशक, वलियामाला को अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के सचिव के रूप में 14 जनवरी 2024 से दो साल की अवधि के लिए या अगले आदेशों तक इनमें से जो भी पहले हो, उस समय तक के लिए नियुक्ति को मंजूरी दी है. वर्तमान सचिव के एस सोमनाथन के कार्यकाल में ही चंद्रयान-3 को सफलता मिली थी.

इसरो के नए अध्यक्ष वी नारायणन कौन हैं?

वी नारायणन जाने-माने वैज्ञानिक हैं. इनके पास रॉकेट और अंतरिक्ष यान प्रणोदन में लंबा अनुभव है. लगभग चार दशकों के अनुभव के साथ वो इस जिम्मेदारी को निभाने में अपनी भूमिका निभाएंगे. वह रॉकेट और अंतरिक्षयान प्रणोदन(स्पेसक्राफ्ट प्रोपल्शन) विशेषज्ञ हैं. 19वीं सदी में इसरो में बतौर साइंटिस्ट शामिल हुए. द्रव प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) के निदेशक बनने से पहले कई बड़े पदों पर काम किया.

शुरुआती समय में उन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में साउंडिंग रॉकेट और संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी) और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के ठोस प्रणोदन क्षेत्र में काम किया. वी नारायणन ने प्रक्रिया नियोजन, प्रक्रिया नियंत्रण और एब्लेटिव नोजल सिस्टम, कम्पोजिट मोटर केस और कम्पोजिट इग्नाइटर केस को बनाने में भी अहम भूमिका निभाई.

मौजूदा समय में नारायणन एलपीएससी के निदेशक हैं. ये इसरो के प्रमुख केंद्र में से एक है. इसका मुख्यालय तिरुवनंतपुरम के वलियमाला में स्थित है. इसकी एक यूनिट बेंगलुरु में अवस्थि है.

इसरो हाल ही में स्वदेशी रूप से निर्मित स्पेस डॉकिंग तकनीक स्पैडेक्स को लॉन्च करने के लिए चर्चा में रहा है. ये चंद्रयान 4 और गगनयान जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए काफी अहम है. इसने भारत को उन देशों की सूची में शामिल कर दिया है जिनके पास यह तकनीक है. ऐसे दूसरे देश USA, रूस और चीन हैं. एलपीएससी के निदेशक के रूप में, केंद्र ने 45 लॉन्च वाहनों और 40 उपग्रहों के लिए 190 लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम और कंट्रोल पावर प्लांट वितरित किए हैं.

बीटेक, एमटेक और पीएचडी पूरी की

डॉ. नारायणन ने अपनी स्कूली शिक्षा और डीएमई प्रथम रैंक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एएमआईई के साथ पूरी की है. उन्होंने क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में पहली रैंक के साथ एम.टेक और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी पूरी की.

डीएमई पूरा करने के तुरंत बाद, टीआई डायमंड चेन लिमिटेड, मद्रास रबर फैक्ट्री, बीएचईएल, त्रिची और बीएचईएल, रानीपेट में डेढ़ साल तक काम किया. वह 1984 में इसरो में शामिल हुए और जनवरी 2018 को एलपीएससी के निदेशक बनने से पहले विभिन्न क्षमताओं में कार्य किया.

चंद्रयान मिशन की सफलता में भी रहा योगदान

क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम के विकास ने भारत को इस क्षमता वाले छह देशों में से एक बना दिया और लॉन्च व्हीकल में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की. इसमें इनकी अमह भूमिका रही. जीएसएलवी एमके-III एम1/चंद्रयान-2 और एलवीएम3/चंद्रयान-3 मिशनों के लिए, उनकी टीम ने एलवीएम3 प्रणोदन प्रणालियों के लिए एल110 लिक्विड स्टेज और सी25 क्रायोजेनिक स्टेज विकसित किया, जिसका इस्तेमाल किया गया.

ये अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से चंद्रमा की कक्षा में ले गया और विक्रम लैंडर की थ्रॉटलेबल प्रणोदन प्रणाली का उपयोग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए किया गया. वे राष्ट्रीय स्तर की विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष थे, जिसने चंद्रयान-2 की हार्ड लैंडिंग के कारणों को खोजा. साथ ही इनमें आवश्यक सुधारों की सिफारिश की. इसी वजह से अंततः चंद्रयान-3 की सफलता में भी इनका काफी योगदान रहा.

మాజీ సీఎం SM కృష్ణ కన్నుమూత

కర్ణాటక రాష్ట్ర మాజీ ముఖ్యమంత్రి, కేంద్ర మాజీ విదేశాంగ మంత్రి ఎస్‌ఎం కృష్ణ ఈరోజు కన్నుమూశారు. వృద్ధాప్యం కారణంగా అనారోగ్యంతో బాధపడుతున్న ఎస్‌ఎం కృష్ణ 92 ఏళ్ల వయస్సులో ఈరోజు తెల్లవారుజామున బెంగళూరులోని సదాశివనగర్ నివాసంలో తుదిశ్వాస విడిచారు.

కర్ణాటక రాష్ట్ర మాజీ ముఖ్యమంత్రి, కేంద్ర మాజీ విదేశాంగ మంత్రి ఎస్‌ఎం కృష్ణ ఈరోజు కన్నుమూశారు. వృద్ధాప్యం కారణంగా అనారోగ్యంతో బాధపడుతున్న ఎస్‌ఎం కృష్ణ 92 ఏళ్ల వయస్సులో ఈరోజు తెల్లవారుజామున బెంగళూరులోని సదాశివనగర్ నివాసంలో తుదిశ్వాస విడిచారు.

వృద్ధాప్యం కారణంగా గత కొన్ని రోజులుగా అనారోగ్యంతో బాధపడుతున్న కృష్ణను తొలుత వైదేహి ఆసుపత్రిలో చేర్చారు. ఆ తర్వాత ఊపిరితిత్తుల ఇన్ఫెక్షన్ కారణంగా మణిపాల్ ఆసుపత్రిలో చేరారు. డా. సత్యనారాయణ మైసూర్, డా. సునీల్ కారంత్ నేతృత్వంలోని వైద్యుల బృందం చికిత్స అందించింది.

SM కృష్ణ 1999 నుంచి 2004 వరకు కర్ణాటక 16వ ముఖ్యమంత్రి. తర్వాత 2004 నుంచి 2008 వరకు మహారాష్ట్ర గవర్నర్‌గా, కేంద్ర విదేశాంగ మంత్రిగా పనిచేశారు. అతను డిసెంబర్ 1989 నుండి జనవరి 1993 వరకు కర్ణాటక అసెంబ్లీ స్పీకర్‌గా కూడా పనిచేశాడు. 1971 నుండి 2014 వరకు, అతను వివిధ సమయాల్లో లోక్‌సభ, రాజ్యసభ సభ్యునిగా ఉన్నారు.

చాలా కాలంగా కాంగ్రెస్‌లో గుర్తింపు పొందిన ఎస్.ఎం.కృష్ణ మారిన రాజకీయ పరిస్థితుల కారణంగా 2017 మార్చిలో బీజేపీలో చేరారు. ఆయన చివరిసారిగా 2018 అసెంబ్లీ ఎన్నికల్లో బీజేపీలో చేరినప్పుడు బహిరంగంగా ప్రచారం చేశారు. ఆ తర్వాత ఎస్ఎం కృష్ణ క్రియాశీల రాజకీయాల నుంచి తప్పుకున్నారు.

మైసూర్‌లోని మహారాజా కళాశాలలో పట్టభద్రుడయ్యాక బెంగళూరులోని ప్రభుత్వ న్యాయ కళాశాలలో చదివాడు. తరువాత, అతను USA లోని టెక్సాస్ రాష్ట్రంలోని సదరన్ మెథడిస్ట్ విశ్వవిద్యాలయంలో చదివాడు. SM కృష్ణ వాషింగ్టన్‌లోని జార్జ్ వాషింగ్టన్ విశ్వవిద్యాలయంలో ప్రతిష్టాత్మకమైన ఫుల్‌బ్రైట్ స్కాలర్‌షిప్‌ను అందుకున్నారు.

2021 ఆగస్టులో మద్దూరు పట్టణాన్ని సందర్శించిన S.M. కృష్ణ రాజకీయాల నుంచి తప్పుకోవడం గురించి మాట్లాడారు. వయసు మీద పడడంతో రాజకీయాల నుంచి తప్పుకుంటువ్నట్లు వెల్లడించారు. దాదాపు 55 ఏళ్లు రాజకీయాల్లో ఉన్నాను. ఇంకెన్నాళ్లు రాజకీయాల్లో ఉండగలనని అన్నారు.

खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर अधिकारियों पर रौब जमाने वाला साथी समेत गिरफ्तार
संजीव सिंह बलिया। गाजियाबाद।थाना साहिबाबाद पुलिस ने गुरुवार को एक ऐसे शख्स को गिरफ्तार किया है जो खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर न केवल पुलिस अधिकारियों पर रौब ग़ालिब करता था, बल्कि वह जहां भी जाता था वहां प्रोटोकॉल लेता और अपने काम निकलवा कर रुपये वसूलता था। वह खुद को मणिपुर कैडर का आईपीएस बताया था। साथ ही विदेश मंत्री का सहपाठी भी बताता था।जाँच पड़ताल में पुलिस को दिल्ली एनसीआर समेत दुबई तक के उसके कारनामों की जानकारी मिली है। उसके साथ उसका एक साथी भी गिरफ्तार किया गया है। एडीसीपी पी दिनेश ने गुरुवार को बताया कि गिरफ्तार फर्जी डीजी का नाम अनिल कटियाल है। जो दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में रहता है जबकि उसका साथी विनोद कपूर हैै जो हरियाणाके गुरुग्राम का निवासी है, उसे भी गिरफ्तार किया गया है। अनिल कटियाल ने खुद को 1979 बैच का मणिपुर काडर का आईपीएस बताया था और गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से विनोद कपूर की सिफारिश की थी। उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल का साथी विनोद कपूर दिल्ली कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक है और इसने दिल्ली, पालम, सरसावा एयरपोर्ट और ग्वालियर एयरबेस जैसे महत्वपूर्ण जगह पर हैंगर रनवे कंपाउंड वॉल का निर्माण किया है। विनोद कपूर के खिलाफ थाना इंदिरापुरम में धोखाधड़ी का एक मुकदमा कायम है। जिसकी सिफारिश के लिए अनिल कटियाल गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से मिला था। इतना ही नहीं अनिल कटियाल की शिकायत पर दो पुलिसकर्मी भी सस्पेंड कर दिए गए थे। उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल मूल रूप से डब्लूए -153 जीके फर्स्ट ,न्यू दिल्ली का निवासी है, इसके पिता चेतराम कटियाल एक आईआरएस अधिकारी रहे है, तथा अनिल कटियाल की प्राथमिक पढ़ाई सेंट कोलम्बस स्कूल तथा कालेज की पढ़ाई सेंट स्टीफन्स कालेज में वर्ष 1973 से 1978 तक हुई है। इसके उपरान्त अनिल कटियाल ने वर्ष 1979 में यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें वह असफल रहा जिसके उपरान्त वह वर्ष 1979 में पीएचडी की पढ़ाई करने के लिए येल यूनिवर्सिटी, यूएसए (YALE UNIVERSITY, USA) गया तथा वर्ष 1980 में पीएचडी की पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस आ गया, उसके उपरान्त अनिल कटियाल वर्ष 1980 से 2000 तक हिन्दुस्तान लीवर (तत्कालीन नाम) कम्पनी में प्रबन्धक के पद पर कार्यरत रहा तथा वर्ष 2000 से 2005 तक यामाहा कम्पनी में चीफ जनरल मैनेजर के पद पर नियुक्त रहा तथा वर्ष 2005 से 2015 तक वोडाफोन कम्पनी में वाइस प्रैसिडेन्ट, कॉरपोरेट अफेयर्स के पद पर कार्य करते हुये सेवानिवृत्त हुआ। इसके बाद अभियुक्त अनिल कटियाल ने लोगों को अपना परिचय 1979 बैच का आईपीएस देकर ठगना शुरू किया । उन्होंने बताया कि 20नवम्बर को थाना साहिबाबाद पर उनि नीरज राठौर पीआरओ पुलिस उपायुक्त,कार्यालय जोन ट्रांस हिण्डन कमिश्नरेट गाजियाबाद में आर्थिक लाभ कमाने एवं मुकदमे में अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी सही पहचान छुपाते हुए अपने आप को 1979 बैच का रिटायर्ड आईपीएस बताकर सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने तथा पुलिस के विरुद्ध मुकदमा लिखवाकर आजीवन कारावास की सजा दिलाने की धमकी थी। जिसके बाद पुलिस को शक हुआ और उसकी कुंडली खंगाली तो मामला फर्जी निकला।
खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर अधिकारियों पर रौब जमाने वाला साथी समेत गिरफ्तार

गाजियाबाद।थाना साहिबाबाद पुलिस ने गुरुवार को एक ऐसे शख्स को गिरफ्तार किया है जो खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर न केवल पुलिस अधिकारियों पर रौब ग़ालिब करता था, बल्कि वह जहां भी जाता था वहां प्रोटोकॉल लेता और अपने काम निकलवा कर रुपये वसूलता था। वह खुद को मणिपुर कैडर का आईपीएस बताया था। साथ ही विदेश मंत्री का सहपाठी भी बताता था।जाँच पड़ताल में पुलिस को दिल्ली एनसीआर समेत दुबई तक के उसके कारनामों की जानकारी मिली है। उसके साथ उसका एक साथी भी गिरफ्तार किया गया है।

एडीसीपी पी दिनेश ने गुरुवार को बताया कि गिरफ्तार फर्जी डीजी का नाम अनिल कटियाल है। जो दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में रहता है जबकि उसका साथी विनोद कपूर हैै जो हरियाणाके गुरुग्राम का निवासी है, उसे भी गिरफ्तार किया गया है। अनिल कटियाल ने खुद को 1979 बैच का मणिपुर काडर का आईपीएस बताया था और गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से विनोद कपूर की सिफारिश की थी। उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल का साथी विनोद कपूर दिल्ली कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक है और इसने दिल्ली, पालम, सरसावा एयरपोर्ट और ग्वालियर एयरबेस जैसे महत्वपूर्ण जगह पर हैंगर रनवे कंपाउंड वॉल का निर्माण किया है। विनोद कपूर के खिलाफ थाना इंदिरापुरम में धोखाधड़ी का एक मुकदमा कायम है। जिसकी सिफारिश के लिए अनिल कटियाल गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से मिला था। इतना ही नहीं अनिल कटियाल की शिकायत पर दो पुलिसकर्मी भी सस्पेंड कर दिए गए थे।

उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल मूल रूप से डब्लूए -153 जीके फर्स्ट ,न्यू दिल्ली का निवासी है, इसके पिता चेतराम कटियाल एक आईआरएस अधिकारी रहे है, तथा अनिल कटियाल की प्राथमिक पढ़ाई सेंट कोलम्बस स्कूल तथा कालेज की पढ़ाई सेंट स्टीफन्स कालेज में वर्ष 1973 से 1978 तक हुई है। इसके उपरान्त अनिल कटियाल ने वर्ष 1979 में यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें वह असफल रहा जिसके उपरान्त वह वर्ष 1979 में पीएचडी की पढ़ाई करने के लिए येल यूनिवर्सिटी, यूएसए (YALE UNIVERSITY, USA) गया तथा वर्ष 1980 में पीएचडी की पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस आ गया, उसके उपरान्त अनिल कटियाल वर्ष 1980 से 2000 तक हिन्दुस्तान लीवर (तत्कालीन नाम) कम्पनी में प्रबन्धक के पद पर कार्यरत रहा तथा वर्ष 2000 से 2005 तक यामाहा कम्पनी में चीफ जनरल मैनेजर के पद पर नियुक्त रहा तथा वर्ष 2005 से 2015 तक वोडाफोन कम्पनी में वाइस प्रैसिडेन्ट, कॉरपोरेट अफेयर्स के पद पर कार्य करते हुये सेवानिवृत्त हुआ। इसके बाद अभियुक्त अनिल कटियाल ने लोगों को अपना परिचय 1979 बैच का आईपीएस देकर ठगना शुरू किया ।

उन्होंने बताया कि 20नवम्बर को थाना साहिबाबाद पर उनि नीरज राठौर पीआरओ पुलिस उपायुक्त,कार्यालय जोन ट्रांस हिण्डन कमिश्नरेट गाजियाबाद में आर्थिक लाभ कमाने एवं मुकदमे में अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी सही पहचान छुपाते हुए अपने आप को 1979 बैच का रिटायर्ड आईपीएस बताकर सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने तथा पुलिस के विरुद्ध मुकदमा लिखवाकर आजीवन कारावास की सजा दिलाने की धमकी थी। जिसके बाद पुलिस को शक हुआ और उसकी कुंडली खंगाली तो मामला फर्जी निकला।
अमेरिका राष्‍ट्रपति चुनावः कब होगी वोटिंग, किस दिन होगी काउंटिंग और कब आएंगे नतीजे?

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अमेरिका में नए राष्ट्रपति का इंतजार अब खत्म ही होने वाला है। कुछ ही घंटों में अमेरिका के लोग अपने अगले राष्ट्रपति को चुन लेंगे। चुनावी मैदान में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कड़ी टक्कर है। अगर कमला हैरिस ये चुनाव जीत जाती हैं, तो वह अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनेंगी और अगर डोनाल्ड ट्रंप चुनाव में बाजी मारते हैं, तो वह दूसरी बार राष्ट्रपति की सीट पर विराजमान हो जाएंगे।

तय है वोटिंग का दिन

अमेरिका में चुनाव 5 नवम्बर मंगलवार को होंगे। 5 नवंबर को होने वाले चुनाव से पहले ही 4.1 करोड़ से अधिक अमेरिकी अपने मतपत्र डाल चुके हैं। अमेरिका के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिकी नागरिक नवम्बर के पहले सोमवार के बाद आने वाले मंगलवार को मतदान करेंगे। राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने वाला उम्मीदवार 20 जनवरी को पद की शपथ लेता है और अगले चार साल वॉइट हाउस में सेवा देगा।

चुनाव के बाद वोटों की गिनती

अमेरिका में चुनाव के बाद 5 नवम्बर को ही वोटों की गिनती शुरू हो जाएगी, लेकिन यह पता लगने में कई दिन लग सकते हैं कि अगला राष्ट्रपति कौन होगा। आम तौर पर मीडिया हाउस अपने पास मौजूद आंकड़ों के आधार पर चुनाव की रात या अगले दिन राष्ट्रपति चुनाव के विजेता की घोषणा करते हैं। अगर कोई उम्मीदवार 270 या उससे अधिक इलेक्टोरल कॉलेज वोट हासिल करता है, तो उसे चुनाव का विजेता घोषित किया जाएगा।

'स्विंग स्टेट' तय करेंगे नतीजे

ज्यादातर वोटर रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स होते हैं, जो अमूमन अपनी पार्टी के लिए वफादार रहते हैं। ऐसे ही कुछ स्विंग स्टेट्स हैं, जहां के मतदाता चुनाव परिणाम तय करते हैं।ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि चुनाव नतीजे सात स्विंग स्टेट्स एरिजोना, नेवादा, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलिना और जॉर्जिया से तय होंगे। अब चूंकि लड़ाई आखिरी चरण में है और मंगलवार को मतदान ही होना है, ऐसे में सारा दारोमदार स्विंग स्टेट्स पर टिक गया है। कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को जानते हैं, यही वजह है कि उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा इन स्विंग राज्यों में चुनाव प्रचार पर लगा दी है।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

क्या होते हैं स्विंग स्टेट

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में स्विंग स्टेट्स या युद्धक्षेत्र वाले राज्य, उन राज्यों को कहा जाता है, जो चुनाव में डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी, किसी भी तरफ झुक सकते हैं। अमेरिका में कई राज्य अक्सर किसी एक ही पार्टी को वोट देते आए हैं, लेकिन जिन राज्यों में मुकाबला कड़ा रहता है और जिनका तय नहीं है कि वे किस तरफ जाएंगे, उन्हें ही स्विंग स्टेट कहा जाता है। इन राज्यों में दोनों पार्टी के उम्मीदवार प्रचार के दौरान ज्यादा धन और समय लगाते हैं। स्विंग स्टेट की पहचान के लिए कोई परिभाषा या नियम नहीं है और चुनाव के दौरान ही इन राज्यों का निर्धारण होता है।

क्या भारत-चीन सीमा समझौते में अमेरिका का भूमिका? जानें क्या कह रहा यूएस

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भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर समझौता हो गया है। समजौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट रही हैं। भारत-चीन संबंध पर दुनियाभर की नजर है, खासकर अमेरिका की। अब दोनों देशों के बीच हे सीमा समझौते के बाद अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है।अमेरिका ने कहा है कि वह भारत-चीन के बीच एलएसी समझौते पर 'गहरी नजर' बनाए हुए है और सीमा पर तनाव कम होने का "स्वागत" करता है। ये बात अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कही। बता दें कि भारत और चीन के बीच बड़ी डील हुई है। 5 साल से पूर्वी लद्दाख में बॉर्डर पर जो तनातनी चल रही थी, वो कई बैठकों के बाद आखिरकार समाप्त हो रही है।

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि वह भारत-चीन सीमा पर तनाव की स्थिति कम होने का स्वागत करता है। साथ ही कहा कि नई दिल्ली ने इस संबंध में उसे जानकारी दी है। विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने पत्रकारों से कहा, हम भारत और चीन के बीच के घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहे हैं। हम समझते हैं कि दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों को वापस बुलाने के लिए शुरुआती कदम उठाए हैं। हम सीमा पर तनाव की स्थिति में किसी भी कमी का स्वागत करते हैं।

वहीं, जब मिलर से पूछा गया कि क्या इस मामले में अमेरिका की कोई भूमिका है, तो उन्होंने जवाब दिया, नहीं, हमने भारतीय साझेदारों से इस बारे में जानकारी ली है, लेकिन इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है।

भारत-चीन के बीच समझौता

बता दें कि जून 2020 से भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव बना हुआ था। तब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष हुआ था और दोनों ओर से सैनिक हताहत हुए थे। एलएसी पेट्रोलिंग समझौता 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले घोषित किया गया था। सम्मेलन रूस के कजान में 22 से 24 अक्टूबर के बीच हुआ था। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भाग लिया।उस दौरान उनकी रूस के कजान शहर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय मुलाकात भी हुई थी।

यूएस से डिपोर्ट भारतीयों को लेकर आया प्लेन पंजाब में क्यों उतरा? कांग्रेस उठा रही सवाल

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अमेरिका से 104 अवैध अप्रवासियों की वापसी हो चुकी है। उनको लेकर आए सैन्य विमान की लैंडिंग पंजाब के अमृतसर में हुई। निर्वासित लोगों में से 30 पंजाब से, 33-33 हरियाणा और गुजरात से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश, दो चंडीगढ़ से हैं। निर्वासित किए गए लोगों में 19 महिलाएं और चार वर्षीय एक बच्चा, पांच व सात वर्षीय दो लड़कियों सहित 13 नाबालिग शामिल हैं। इस बीच प्लेन के देश की राजधानी दिल्ली की जगह अमृतसर में लैंडिंग को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

कांग्रेस ने निर्वासित भारतीयों को ले जा रहे अमेरिकी सैन्य विमान को दिल्ली के बजाय अमृतसर में उतरने की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। कांग्रेस ने कहा कि शहर को 'धारणा' और 'नैरेटिव' को ध्यान में रखते हुए चुना गया था।

“बदनाम करने वाले नैरेटिव”

कांग्रेस के जालंधर कैंट विधायक परगट सिंह ने कहा कि पंजाब की तुलना में गुजरात सहित अन्य राज्यों से अधिक निर्वासित लोग हैं। परगट सिंह ने सोशल मीडिया प्लोट कहा कि जब पंजाब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की मांग करता है, तो पंजाब को आर्थिक लाभ से वंचित करने के लिए केवल दिल्ली एयरपोर्ट को अनुमति दी जाती है। लेकिन जब बदनाम करने वाले नैरेटिव की बात आती है, तो एक अमेरिकी निर्वासन विमान पंजाब में उतरता है। भले ही उसमें अधिककर निर्वासित गुजरात और हरियाणा से हों।

लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग

वहीं, अमृतसर से सांसद और कांग्रेस नेता गुरजीत औजला ने विमान को अमृतसर में उतारे जाने पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग का नोटिस देते हुए पूछा कि प्लेन को दिल्ली में क्यों नहीं उतारा गया? उन्होंने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए एक्स पर लिखा, शर्मनाक और अस्वीकार्य! मोदी सरकार ने भारतीय अप्रवासियों को बेड़ियों में जकड़े हुए विदेशी सैन्य विमान से वापस भेजने की अनुमति दी। कोई विरोध क्यों नहीं? वाणिज्यिक उड़ान क्यों नहीं? विमान दिल्ली में क्यों नहीं उतरा? यह हमारे लोगों और हमारी संप्रभुता का अपमान है। सरकार को जवाब देना चाहिए!’

आप ने भी घेरा

इस बीच, आम आदमी पार्टी (आप) ने सवाल किया है कि विमान की लैंडिंग अमृतसर में क्यों कराई गई। देश के किसी अन्य राज्य में विमान को क्यों नहीं उतारा गया। आप पंजाब के अध्यक्ष अमन अरोड़ा ने सवाल किया कि विमान अमृतसर में क्यों उतरा, देश के किसी अन्य हवाई अड्डे पर क्यों नहीं। उन्होंने कहा, जब निर्वासित लोग पूरे देश से हैं, तो विमान को उतारने के लिए अमृतसर को क्यों चुना गया? यह सवाल हर किसी के दिमाग में है। अमन अरोड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने पंजाब के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया है। पंजाब की तुलना में अन्य राज्यों के लोग (निर्वासित) अधिक हैं. इस विमान को उतारने के लिए अमृतसर को चुनना एक सवालिया निशान खड़ा करता है।

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए महत्व: रणनीतिक सहयोग, व्यापारिक चुनौतियाँ और कूटनीतिक अवसर

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Donald Trump (President of USA)

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए पहलू सामने आए, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थे। ट्रंप की विदेश नीति और उनकी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस लेख में हम यह देखेंगे कि ट्रंप का भारत के लिए क्या मतलब था, उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे विकसित हुए, और उनके निर्णयों के परिणामस्वरूप भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध

1. चीन के खिलाफ साझा चिंता

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत साझेदारी ने चीन को दोनों देशों के लिए साझा चिंता का विषय बना दिया। भारत और अमेरिका की रणनीतिक सहयोगिता का मुख्य ड्राइवर चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय प्रभाव था।

  - क्वाड का गठन इस साझेदारी का प्रमुख हिस्सा था, जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देता है।

  - ट्रंप ने चीन के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया, जिससे भारत को इसके मुकाबले अपनी स्थिति को मजबूती से पेश करने का अवसर मिला।

2. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

  - भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में भी वृद्धि हुई, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग में। ट्रंप प्रशासन के दौरान, अमेरिकी हथियारों और रक्षा प्रणाली के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा मिला।

  - डोकलाम, बालाकोट और गलवान जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं पर भारत और अमेरिका ने एक साथ काम किया, जो उनके सहयोग को और सुदृढ़ करता है।

3. पार्टी और वैचारिक संरेखण

  - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे, और दोनों के बीच एक विचारधारात्मक समानता थी, जो उनके कार्यों और नीतियों में भी दिखाई दी।

  - ट्रंप ने मोदी के नेतृत्व में भारत को एक अहम साझेदार माना और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

1. अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता

  - ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गई। उनके अप्रत्याशित निर्णय और रणनीतियाँ, जैसे कि कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बाहर निकलना, भारत के लिए कुछ मुद्दों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते थे।

  - उदाहरण के तौर पर, इंडो-पैसिफिक नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं था, और इसमें कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।

2. व्यापारिक असंतुलन और टैरिफ़ नीति

  - ट्रंप के दृष्टिकोण में व्यापारिक असंतुलन को लेकर चिंता थी, और भारत से संबंधित व्यापार अधिशेष के कारण अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाए जाने की संभावना जताई।

  - ट्रंप का यह मानना था कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार में उचित स्थान नहीं दिया और इसका फायदा उठाया। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत को अपने निर्यात को संतुलित करने और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश और भारतीय कंपनियाँ

  - ट्रंप का मानना था कि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश किए बिना अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और इस निवेश के परिणामस्वरूप हजारों नौकरियाँ पैदा हुई थीं।

  - भारत को अपने निवेश और व्यापारिक रणनीति को सही तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी ताकि अमेरिका में भारतीय योगदान को सही रूप से पहचाना जा सके।

भारत के लिए लाभकारी रणनीतियाँ

1. भारत के लिए उपयुक्त कूटनीतिक संबंध

  - भारत के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण बनाए रखे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति को सही दिशा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता था।

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अपनी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक योग्यता का इस्तेमाल करना पड़ा।

2. चीन के खिलाफ एकजुटता

  - चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके खिलाफ साझा चिंता ने भारत और अमेरिका को एकजुट किया। यह साझा रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद रही, विशेषकर सुरक्षा, तकनीकी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रों में।

3. व्यापार और निवेश संबंधों का संतुलन

  - भारत को यह स्पष्ट करना था कि मेक इन इंडिया और मेड इन अमेरिका के बीच कोई टकराव नहीं है। अगर भारत ने सही तरीके से अपने व्यापारिक मुद्दों को हल किया, तो वह ट्रंप प्रशासन को एक राजनीतिक जीत दे सकता था और अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन बना सकता था।

4. अमेरिका में निवेश का विस्तार

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी। भारत को यह सुनिश्चित करना था कि उसके निवेश के प्रभाव को उचित तरीके से अमेरिका में समझा जाए और उसे पहचान मिले।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध

1. व्यापारिक संघर्ष

  - भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा व्यापारिक टैरिफ़ था, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने की संभावना जताई थी। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती थी, क्योंकि इसे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करने से बचना था।

  

2. आवश्यक रणनीतिक सहयोग

  - भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के लिए अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करना था। इस संदर्भ में, दोनों देशों के व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक राजनीतिक इच्छाशक्ति और लचीलेपन की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश का मौका

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश करके लाभ कमा रही थीं, लेकिन यह भारत के लिए एक अनकहा पक्ष था। भारतीय निवेश को अमेरिकी कूटनीति में ज्यादा प्रमुखता से उठाना था ताकि इसके महत्व को समझा जा सके।

भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में चुनौती और अवसर दोनों थे। ट्रंप प्रशासन के दौरान, भारत ने अपनी कूटनीति, व्यापारिक रणनीतियों और सुरक्षा सहयोग को मजबूती से पेश किया। हालांकि, कुछ मुद्दों पर अनिश्चितता और संघर्ष रहा, लेकिन साझा रणनीतिक हित और व्यक्तिगत कूटनीतिक संबंधों ने दोनों देशों के बीच सहयोग को बनाए रखा। भारत को ट्रंप प्रशासन के अंतर्गत अपनी रणनीति को और मजबूती से आकार देना होगा, खासकर व्यापारिक और निवेश संबंधों में।  

पूनम देवी राज को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा

कमलेश मेहरोत्रा लहरपुर (सीतापुर)। स्थानीय

पूर्णोदय साहित्यिक संस्थान की राष्ट्रीय अध्यक्ष कवयित्री पूनम देवी राज को, काकद्वीप गंगासागर(पश्चिम बंगाल) में जिम्बाम्बे इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी,ग्लोबल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी(USA) और धराधाम इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के कुलपति,

डॉ सौरभ पाण्डेय एवं निदेशक एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस डॉ० नारायण यादव एवं डॉ०एहसान अहमद उर्दू समिति अध्यक्ष(NCRT) के द्वारा 11 जनवरी को साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य एवं हिन्दी साहित्य के विकास के लिए पूनम देवी राज को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा।

पूनम देवी राज ने इस सफलता का श्रेय अपनी माता रूपा देवी पिता श्रीपाल,गुरुजन और अपने पति राज कलानवी को दिया।

ज्ञातव्य है कि डॉ०पूनम देवी राज लहरपुर के छोटे से गाँव गदापुर की रहने वाली हैं और कम्पोजिट विद्यालय मकनपुर में शिक्षामित्र पद पर कार्यरत हैं।

अमेरिका को बर्दाश्त नहीं भारत-रूस की दोस्ती, जाते-जाते बाइडेन ने चलाया ऐसा चाबुक, बढ़ेगी टेंशन

#petroldieselpricemayhikeinindiaafterusaimposebanonrussia 

अमेरिका रूस के खिलाफ यूक्रेन युद्ध की वजह से नए प्रतिबंधों का ऐलान किया। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के मुताबिक अमेरिका ने रूस की 200 से ज्यादा कंपनियों और व्यक्तियों के साथ 180 से ज्यादा शिप्स पर बैन लगा दिया। इसके अलावा दो भारतीय कंपनी स्काईहार्ट मैनेजमेंट सर्विसेज और एविजन मैनेजमेंट सर्विसेज भी बैन लगाया गया है।

रूस और यूक्रेन का युद्ध रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस पर अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। उनका उद्देश्य यह है कि रूस को मिल रहा राजस्व कम किया जाए, जिससे यूक्रेन से युद्ध में वह इसका इस्तेमाल न कर सके। इसीलिए उसने 200 से अधिक रूसी संस्थानों और लोगों पर बैन लगाए गए हैं। इनमें बीमा कंपनियां, व्यापारी और तेल टैंकर आदि शामिल हैं।

अमेरिकी ने रूस की तेल उत्पादक कंपनियों और तेल ले जाने वाले जहाजों पर प्रतिबंध लगाया है। अमेरिका ने आरोप लगाया कि रूस, भारत और चीन जैसे देशों को सस्ता क्रूड ऑयल बेचकर यूक्रेन के साथ युद्ध की फंडिंग कर रहा है। इसी खीज में अमेरिका ने रूसी तेल उत्पादकों के साथ-साथ रूसी तेल ले जाने वाले 183 जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिया। इस बैन की वजह से क्रूड ऑयल की सप्लाई में परेशानी आने लगी है।

क्रूड ऑयल की कीमतों में आई तेजी

अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी आ गई है, क्रूड ऑयल की कीमतें 3% तक का बढ़ गई। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल को पार हो गई। अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत और चीन को रूस से ऑयल इंपोर्ट करने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते सोमवार को ब्रेंट क्रूड का भाव 1.83 प्रतिशत चढ़कर 81.22 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। इस तेजी के साथ की कच्चे तेल की कीमत चार महीने के हाई पर पहुंच गई है।

रूस ने की प्रतिबंधों की आलोचना

रूस के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इन प्रतिबंधों की आलोचना की है। रूस ने कहा कि यह अमेरिका की रूसी अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान पहुंचाने की चाल है। उसने कहा कि अमेरिका के इस कदम से वैश्विक बाजार में खतरा बढ़ेगा। रूस ने कहा कि वह बड़े तेल और गैस प्राजेक्‍ट पर काम करना जारी रखेगा। अमेरिका ने जो नए प्रतिबंध लगाए हैं, उससे 143 टैंकर प्रभावित होंगे जो 53 करोड़ बैरल रूसी तेल पिछले साल लेकर गए थे।

भारत पर भी होगा असर

रूसी तेल सप्लाई में आने वाली दिक्कतों के बीच आने वाले दिनों में भारत को ऊंचे दामों पर खाड़ी के देशों से कच्चा तेल खरीदना पड़ सकता है। अगर ऐसा ही रहा तो भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेजी आ सकती है। कच्चे तेल की कीमतों में ये तेजी जारी रही तो आपको महंगाई का झटका झेलना पड़ सकता है। यानी आने वाले दिनों में आपको महंगे तेल की कीमतों से दो-चार होना पड़ सकता है। पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने का सीधा असर सप्लाई चेन पर होगा। खाने-पीने से लेकर हर चीज महंगी होने लगेगी।

कौन हैं वी नारायण जो चुने गए नए ISRO चीफ, एस सोमनाथ की लेंगे जगह

भारत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और आंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ एस सोमनाथन की जगह वी नारायणन लेगें. केंद्र सरकार की तरफ से की गई घोषणा के मुताबिक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सचिव के तौर पर वी नारायणन अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे. इस विषय पर मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति की ओर से आदेश दिया गया. वी नारायणन 14 जनवरी को पदभार ग्रहण करेंगे.

न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, वी नारायणन अगले दो सालों तक या अगली सूचना तक इस पद पर काम कर सकते हैं. मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने वी. नारायणन, निदेशक, वलियामाला को अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के सचिव के रूप में 14 जनवरी 2024 से दो साल की अवधि के लिए या अगले आदेशों तक इनमें से जो भी पहले हो, उस समय तक के लिए नियुक्ति को मंजूरी दी है. वर्तमान सचिव के एस सोमनाथन के कार्यकाल में ही चंद्रयान-3 को सफलता मिली थी.

इसरो के नए अध्यक्ष वी नारायणन कौन हैं?

वी नारायणन जाने-माने वैज्ञानिक हैं. इनके पास रॉकेट और अंतरिक्ष यान प्रणोदन में लंबा अनुभव है. लगभग चार दशकों के अनुभव के साथ वो इस जिम्मेदारी को निभाने में अपनी भूमिका निभाएंगे. वह रॉकेट और अंतरिक्षयान प्रणोदन(स्पेसक्राफ्ट प्रोपल्शन) विशेषज्ञ हैं. 19वीं सदी में इसरो में बतौर साइंटिस्ट शामिल हुए. द्रव प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) के निदेशक बनने से पहले कई बड़े पदों पर काम किया.

शुरुआती समय में उन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में साउंडिंग रॉकेट और संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी) और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के ठोस प्रणोदन क्षेत्र में काम किया. वी नारायणन ने प्रक्रिया नियोजन, प्रक्रिया नियंत्रण और एब्लेटिव नोजल सिस्टम, कम्पोजिट मोटर केस और कम्पोजिट इग्नाइटर केस को बनाने में भी अहम भूमिका निभाई.

मौजूदा समय में नारायणन एलपीएससी के निदेशक हैं. ये इसरो के प्रमुख केंद्र में से एक है. इसका मुख्यालय तिरुवनंतपुरम के वलियमाला में स्थित है. इसकी एक यूनिट बेंगलुरु में अवस्थि है.

इसरो हाल ही में स्वदेशी रूप से निर्मित स्पेस डॉकिंग तकनीक स्पैडेक्स को लॉन्च करने के लिए चर्चा में रहा है. ये चंद्रयान 4 और गगनयान जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए काफी अहम है. इसने भारत को उन देशों की सूची में शामिल कर दिया है जिनके पास यह तकनीक है. ऐसे दूसरे देश USA, रूस और चीन हैं. एलपीएससी के निदेशक के रूप में, केंद्र ने 45 लॉन्च वाहनों और 40 उपग्रहों के लिए 190 लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम और कंट्रोल पावर प्लांट वितरित किए हैं.

बीटेक, एमटेक और पीएचडी पूरी की

डॉ. नारायणन ने अपनी स्कूली शिक्षा और डीएमई प्रथम रैंक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एएमआईई के साथ पूरी की है. उन्होंने क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में पहली रैंक के साथ एम.टेक और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी पूरी की.

डीएमई पूरा करने के तुरंत बाद, टीआई डायमंड चेन लिमिटेड, मद्रास रबर फैक्ट्री, बीएचईएल, त्रिची और बीएचईएल, रानीपेट में डेढ़ साल तक काम किया. वह 1984 में इसरो में शामिल हुए और जनवरी 2018 को एलपीएससी के निदेशक बनने से पहले विभिन्न क्षमताओं में कार्य किया.

चंद्रयान मिशन की सफलता में भी रहा योगदान

क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम के विकास ने भारत को इस क्षमता वाले छह देशों में से एक बना दिया और लॉन्च व्हीकल में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की. इसमें इनकी अमह भूमिका रही. जीएसएलवी एमके-III एम1/चंद्रयान-2 और एलवीएम3/चंद्रयान-3 मिशनों के लिए, उनकी टीम ने एलवीएम3 प्रणोदन प्रणालियों के लिए एल110 लिक्विड स्टेज और सी25 क्रायोजेनिक स्टेज विकसित किया, जिसका इस्तेमाल किया गया.

ये अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से चंद्रमा की कक्षा में ले गया और विक्रम लैंडर की थ्रॉटलेबल प्रणोदन प्रणाली का उपयोग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए किया गया. वे राष्ट्रीय स्तर की विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष थे, जिसने चंद्रयान-2 की हार्ड लैंडिंग के कारणों को खोजा. साथ ही इनमें आवश्यक सुधारों की सिफारिश की. इसी वजह से अंततः चंद्रयान-3 की सफलता में भी इनका काफी योगदान रहा.

మాజీ సీఎం SM కృష్ణ కన్నుమూత

కర్ణాటక రాష్ట్ర మాజీ ముఖ్యమంత్రి, కేంద్ర మాజీ విదేశాంగ మంత్రి ఎస్‌ఎం కృష్ణ ఈరోజు కన్నుమూశారు. వృద్ధాప్యం కారణంగా అనారోగ్యంతో బాధపడుతున్న ఎస్‌ఎం కృష్ణ 92 ఏళ్ల వయస్సులో ఈరోజు తెల్లవారుజామున బెంగళూరులోని సదాశివనగర్ నివాసంలో తుదిశ్వాస విడిచారు.

కర్ణాటక రాష్ట్ర మాజీ ముఖ్యమంత్రి, కేంద్ర మాజీ విదేశాంగ మంత్రి ఎస్‌ఎం కృష్ణ ఈరోజు కన్నుమూశారు. వృద్ధాప్యం కారణంగా అనారోగ్యంతో బాధపడుతున్న ఎస్‌ఎం కృష్ణ 92 ఏళ్ల వయస్సులో ఈరోజు తెల్లవారుజామున బెంగళూరులోని సదాశివనగర్ నివాసంలో తుదిశ్వాస విడిచారు.

వృద్ధాప్యం కారణంగా గత కొన్ని రోజులుగా అనారోగ్యంతో బాధపడుతున్న కృష్ణను తొలుత వైదేహి ఆసుపత్రిలో చేర్చారు. ఆ తర్వాత ఊపిరితిత్తుల ఇన్ఫెక్షన్ కారణంగా మణిపాల్ ఆసుపత్రిలో చేరారు. డా. సత్యనారాయణ మైసూర్, డా. సునీల్ కారంత్ నేతృత్వంలోని వైద్యుల బృందం చికిత్స అందించింది.

SM కృష్ణ 1999 నుంచి 2004 వరకు కర్ణాటక 16వ ముఖ్యమంత్రి. తర్వాత 2004 నుంచి 2008 వరకు మహారాష్ట్ర గవర్నర్‌గా, కేంద్ర విదేశాంగ మంత్రిగా పనిచేశారు. అతను డిసెంబర్ 1989 నుండి జనవరి 1993 వరకు కర్ణాటక అసెంబ్లీ స్పీకర్‌గా కూడా పనిచేశాడు. 1971 నుండి 2014 వరకు, అతను వివిధ సమయాల్లో లోక్‌సభ, రాజ్యసభ సభ్యునిగా ఉన్నారు.

చాలా కాలంగా కాంగ్రెస్‌లో గుర్తింపు పొందిన ఎస్.ఎం.కృష్ణ మారిన రాజకీయ పరిస్థితుల కారణంగా 2017 మార్చిలో బీజేపీలో చేరారు. ఆయన చివరిసారిగా 2018 అసెంబ్లీ ఎన్నికల్లో బీజేపీలో చేరినప్పుడు బహిరంగంగా ప్రచారం చేశారు. ఆ తర్వాత ఎస్ఎం కృష్ణ క్రియాశీల రాజకీయాల నుంచి తప్పుకున్నారు.

మైసూర్‌లోని మహారాజా కళాశాలలో పట్టభద్రుడయ్యాక బెంగళూరులోని ప్రభుత్వ న్యాయ కళాశాలలో చదివాడు. తరువాత, అతను USA లోని టెక్సాస్ రాష్ట్రంలోని సదరన్ మెథడిస్ట్ విశ్వవిద్యాలయంలో చదివాడు. SM కృష్ణ వాషింగ్టన్‌లోని జార్జ్ వాషింగ్టన్ విశ్వవిద్యాలయంలో ప్రతిష్టాత్మకమైన ఫుల్‌బ్రైట్ స్కాలర్‌షిప్‌ను అందుకున్నారు.

2021 ఆగస్టులో మద్దూరు పట్టణాన్ని సందర్శించిన S.M. కృష్ణ రాజకీయాల నుంచి తప్పుకోవడం గురించి మాట్లాడారు. వయసు మీద పడడంతో రాజకీయాల నుంచి తప్పుకుంటువ్నట్లు వెల్లడించారు. దాదాపు 55 ఏళ్లు రాజకీయాల్లో ఉన్నాను. ఇంకెన్నాళ్లు రాజకీయాల్లో ఉండగలనని అన్నారు.

खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर अधिकारियों पर रौब जमाने वाला साथी समेत गिरफ्तार
संजीव सिंह बलिया। गाजियाबाद।थाना साहिबाबाद पुलिस ने गुरुवार को एक ऐसे शख्स को गिरफ्तार किया है जो खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर न केवल पुलिस अधिकारियों पर रौब ग़ालिब करता था, बल्कि वह जहां भी जाता था वहां प्रोटोकॉल लेता और अपने काम निकलवा कर रुपये वसूलता था। वह खुद को मणिपुर कैडर का आईपीएस बताया था। साथ ही विदेश मंत्री का सहपाठी भी बताता था।जाँच पड़ताल में पुलिस को दिल्ली एनसीआर समेत दुबई तक के उसके कारनामों की जानकारी मिली है। उसके साथ उसका एक साथी भी गिरफ्तार किया गया है। एडीसीपी पी दिनेश ने गुरुवार को बताया कि गिरफ्तार फर्जी डीजी का नाम अनिल कटियाल है। जो दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में रहता है जबकि उसका साथी विनोद कपूर हैै जो हरियाणाके गुरुग्राम का निवासी है, उसे भी गिरफ्तार किया गया है। अनिल कटियाल ने खुद को 1979 बैच का मणिपुर काडर का आईपीएस बताया था और गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से विनोद कपूर की सिफारिश की थी। उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल का साथी विनोद कपूर दिल्ली कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक है और इसने दिल्ली, पालम, सरसावा एयरपोर्ट और ग्वालियर एयरबेस जैसे महत्वपूर्ण जगह पर हैंगर रनवे कंपाउंड वॉल का निर्माण किया है। विनोद कपूर के खिलाफ थाना इंदिरापुरम में धोखाधड़ी का एक मुकदमा कायम है। जिसकी सिफारिश के लिए अनिल कटियाल गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से मिला था। इतना ही नहीं अनिल कटियाल की शिकायत पर दो पुलिसकर्मी भी सस्पेंड कर दिए गए थे। उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल मूल रूप से डब्लूए -153 जीके फर्स्ट ,न्यू दिल्ली का निवासी है, इसके पिता चेतराम कटियाल एक आईआरएस अधिकारी रहे है, तथा अनिल कटियाल की प्राथमिक पढ़ाई सेंट कोलम्बस स्कूल तथा कालेज की पढ़ाई सेंट स्टीफन्स कालेज में वर्ष 1973 से 1978 तक हुई है। इसके उपरान्त अनिल कटियाल ने वर्ष 1979 में यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें वह असफल रहा जिसके उपरान्त वह वर्ष 1979 में पीएचडी की पढ़ाई करने के लिए येल यूनिवर्सिटी, यूएसए (YALE UNIVERSITY, USA) गया तथा वर्ष 1980 में पीएचडी की पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस आ गया, उसके उपरान्त अनिल कटियाल वर्ष 1980 से 2000 तक हिन्दुस्तान लीवर (तत्कालीन नाम) कम्पनी में प्रबन्धक के पद पर कार्यरत रहा तथा वर्ष 2000 से 2005 तक यामाहा कम्पनी में चीफ जनरल मैनेजर के पद पर नियुक्त रहा तथा वर्ष 2005 से 2015 तक वोडाफोन कम्पनी में वाइस प्रैसिडेन्ट, कॉरपोरेट अफेयर्स के पद पर कार्य करते हुये सेवानिवृत्त हुआ। इसके बाद अभियुक्त अनिल कटियाल ने लोगों को अपना परिचय 1979 बैच का आईपीएस देकर ठगना शुरू किया । उन्होंने बताया कि 20नवम्बर को थाना साहिबाबाद पर उनि नीरज राठौर पीआरओ पुलिस उपायुक्त,कार्यालय जोन ट्रांस हिण्डन कमिश्नरेट गाजियाबाद में आर्थिक लाभ कमाने एवं मुकदमे में अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी सही पहचान छुपाते हुए अपने आप को 1979 बैच का रिटायर्ड आईपीएस बताकर सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने तथा पुलिस के विरुद्ध मुकदमा लिखवाकर आजीवन कारावास की सजा दिलाने की धमकी थी। जिसके बाद पुलिस को शक हुआ और उसकी कुंडली खंगाली तो मामला फर्जी निकला।
खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर अधिकारियों पर रौब जमाने वाला साथी समेत गिरफ्तार

गाजियाबाद।थाना साहिबाबाद पुलिस ने गुरुवार को एक ऐसे शख्स को गिरफ्तार किया है जो खुद को रिटायर्ड डीजी बताकर न केवल पुलिस अधिकारियों पर रौब ग़ालिब करता था, बल्कि वह जहां भी जाता था वहां प्रोटोकॉल लेता और अपने काम निकलवा कर रुपये वसूलता था। वह खुद को मणिपुर कैडर का आईपीएस बताया था। साथ ही विदेश मंत्री का सहपाठी भी बताता था।जाँच पड़ताल में पुलिस को दिल्ली एनसीआर समेत दुबई तक के उसके कारनामों की जानकारी मिली है। उसके साथ उसका एक साथी भी गिरफ्तार किया गया है।

एडीसीपी पी दिनेश ने गुरुवार को बताया कि गिरफ्तार फर्जी डीजी का नाम अनिल कटियाल है। जो दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में रहता है जबकि उसका साथी विनोद कपूर हैै जो हरियाणाके गुरुग्राम का निवासी है, उसे भी गिरफ्तार किया गया है। अनिल कटियाल ने खुद को 1979 बैच का मणिपुर काडर का आईपीएस बताया था और गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से विनोद कपूर की सिफारिश की थी। उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल का साथी विनोद कपूर दिल्ली कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक है और इसने दिल्ली, पालम, सरसावा एयरपोर्ट और ग्वालियर एयरबेस जैसे महत्वपूर्ण जगह पर हैंगर रनवे कंपाउंड वॉल का निर्माण किया है। विनोद कपूर के खिलाफ थाना इंदिरापुरम में धोखाधड़ी का एक मुकदमा कायम है। जिसकी सिफारिश के लिए अनिल कटियाल गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ट्रांस हिंडन से मिला था। इतना ही नहीं अनिल कटियाल की शिकायत पर दो पुलिसकर्मी भी सस्पेंड कर दिए गए थे।

उन्होंने बताया कि अनिल कटियाल मूल रूप से डब्लूए -153 जीके फर्स्ट ,न्यू दिल्ली का निवासी है, इसके पिता चेतराम कटियाल एक आईआरएस अधिकारी रहे है, तथा अनिल कटियाल की प्राथमिक पढ़ाई सेंट कोलम्बस स्कूल तथा कालेज की पढ़ाई सेंट स्टीफन्स कालेज में वर्ष 1973 से 1978 तक हुई है। इसके उपरान्त अनिल कटियाल ने वर्ष 1979 में यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें वह असफल रहा जिसके उपरान्त वह वर्ष 1979 में पीएचडी की पढ़ाई करने के लिए येल यूनिवर्सिटी, यूएसए (YALE UNIVERSITY, USA) गया तथा वर्ष 1980 में पीएचडी की पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस आ गया, उसके उपरान्त अनिल कटियाल वर्ष 1980 से 2000 तक हिन्दुस्तान लीवर (तत्कालीन नाम) कम्पनी में प्रबन्धक के पद पर कार्यरत रहा तथा वर्ष 2000 से 2005 तक यामाहा कम्पनी में चीफ जनरल मैनेजर के पद पर नियुक्त रहा तथा वर्ष 2005 से 2015 तक वोडाफोन कम्पनी में वाइस प्रैसिडेन्ट, कॉरपोरेट अफेयर्स के पद पर कार्य करते हुये सेवानिवृत्त हुआ। इसके बाद अभियुक्त अनिल कटियाल ने लोगों को अपना परिचय 1979 बैच का आईपीएस देकर ठगना शुरू किया ।

उन्होंने बताया कि 20नवम्बर को थाना साहिबाबाद पर उनि नीरज राठौर पीआरओ पुलिस उपायुक्त,कार्यालय जोन ट्रांस हिण्डन कमिश्नरेट गाजियाबाद में आर्थिक लाभ कमाने एवं मुकदमे में अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी सही पहचान छुपाते हुए अपने आप को 1979 बैच का रिटायर्ड आईपीएस बताकर सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न करने तथा पुलिस के विरुद्ध मुकदमा लिखवाकर आजीवन कारावास की सजा दिलाने की धमकी थी। जिसके बाद पुलिस को शक हुआ और उसकी कुंडली खंगाली तो मामला फर्जी निकला।
अमेरिका राष्‍ट्रपति चुनावः कब होगी वोटिंग, किस दिन होगी काउंटिंग और कब आएंगे नतीजे?

#usapresidentelectionkamalaharrisvsdonald_trump

अमेरिका में नए राष्ट्रपति का इंतजार अब खत्म ही होने वाला है। कुछ ही घंटों में अमेरिका के लोग अपने अगले राष्ट्रपति को चुन लेंगे। चुनावी मैदान में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कड़ी टक्कर है। अगर कमला हैरिस ये चुनाव जीत जाती हैं, तो वह अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनेंगी और अगर डोनाल्ड ट्रंप चुनाव में बाजी मारते हैं, तो वह दूसरी बार राष्ट्रपति की सीट पर विराजमान हो जाएंगे।

तय है वोटिंग का दिन

अमेरिका में चुनाव 5 नवम्बर मंगलवार को होंगे। 5 नवंबर को होने वाले चुनाव से पहले ही 4.1 करोड़ से अधिक अमेरिकी अपने मतपत्र डाल चुके हैं। अमेरिका के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिकी नागरिक नवम्बर के पहले सोमवार के बाद आने वाले मंगलवार को मतदान करेंगे। राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने वाला उम्मीदवार 20 जनवरी को पद की शपथ लेता है और अगले चार साल वॉइट हाउस में सेवा देगा।

चुनाव के बाद वोटों की गिनती

अमेरिका में चुनाव के बाद 5 नवम्बर को ही वोटों की गिनती शुरू हो जाएगी, लेकिन यह पता लगने में कई दिन लग सकते हैं कि अगला राष्ट्रपति कौन होगा। आम तौर पर मीडिया हाउस अपने पास मौजूद आंकड़ों के आधार पर चुनाव की रात या अगले दिन राष्ट्रपति चुनाव के विजेता की घोषणा करते हैं। अगर कोई उम्मीदवार 270 या उससे अधिक इलेक्टोरल कॉलेज वोट हासिल करता है, तो उसे चुनाव का विजेता घोषित किया जाएगा।

'स्विंग स्टेट' तय करेंगे नतीजे

ज्यादातर वोटर रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स होते हैं, जो अमूमन अपनी पार्टी के लिए वफादार रहते हैं। ऐसे ही कुछ स्विंग स्टेट्स हैं, जहां के मतदाता चुनाव परिणाम तय करते हैं।ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि चुनाव नतीजे सात स्विंग स्टेट्स एरिजोना, नेवादा, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलिना और जॉर्जिया से तय होंगे। अब चूंकि लड़ाई आखिरी चरण में है और मंगलवार को मतदान ही होना है, ऐसे में सारा दारोमदार स्विंग स्टेट्स पर टिक गया है। कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को जानते हैं, यही वजह है कि उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा इन स्विंग राज्यों में चुनाव प्रचार पर लगा दी है।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

क्या होते हैं स्विंग स्टेट

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में स्विंग स्टेट्स या युद्धक्षेत्र वाले राज्य, उन राज्यों को कहा जाता है, जो चुनाव में डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी, किसी भी तरफ झुक सकते हैं। अमेरिका में कई राज्य अक्सर किसी एक ही पार्टी को वोट देते आए हैं, लेकिन जिन राज्यों में मुकाबला कड़ा रहता है और जिनका तय नहीं है कि वे किस तरफ जाएंगे, उन्हें ही स्विंग स्टेट कहा जाता है। इन राज्यों में दोनों पार्टी के उम्मीदवार प्रचार के दौरान ज्यादा धन और समय लगाते हैं। स्विंग स्टेट की पहचान के लिए कोई परिभाषा या नियम नहीं है और चुनाव के दौरान ही इन राज्यों का निर्धारण होता है।

क्या भारत-चीन सीमा समझौते में अमेरिका का भूमिका? जानें क्या कह रहा यूएस

#usareactionindiachinalacpatrollingagreement 

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर समझौता हो गया है। समजौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट रही हैं। भारत-चीन संबंध पर दुनियाभर की नजर है, खासकर अमेरिका की। अब दोनों देशों के बीच हे सीमा समझौते के बाद अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है।अमेरिका ने कहा है कि वह भारत-चीन के बीच एलएसी समझौते पर 'गहरी नजर' बनाए हुए है और सीमा पर तनाव कम होने का "स्वागत" करता है। ये बात अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कही। बता दें कि भारत और चीन के बीच बड़ी डील हुई है। 5 साल से पूर्वी लद्दाख में बॉर्डर पर जो तनातनी चल रही थी, वो कई बैठकों के बाद आखिरकार समाप्त हो रही है।

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि वह भारत-चीन सीमा पर तनाव की स्थिति कम होने का स्वागत करता है। साथ ही कहा कि नई दिल्ली ने इस संबंध में उसे जानकारी दी है। विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने पत्रकारों से कहा, हम भारत और चीन के बीच के घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहे हैं। हम समझते हैं कि दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों को वापस बुलाने के लिए शुरुआती कदम उठाए हैं। हम सीमा पर तनाव की स्थिति में किसी भी कमी का स्वागत करते हैं।

वहीं, जब मिलर से पूछा गया कि क्या इस मामले में अमेरिका की कोई भूमिका है, तो उन्होंने जवाब दिया, नहीं, हमने भारतीय साझेदारों से इस बारे में जानकारी ली है, लेकिन इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है।

भारत-चीन के बीच समझौता

बता दें कि जून 2020 से भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव बना हुआ था। तब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष हुआ था और दोनों ओर से सैनिक हताहत हुए थे। एलएसी पेट्रोलिंग समझौता 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले घोषित किया गया था। सम्मेलन रूस के कजान में 22 से 24 अक्टूबर के बीच हुआ था। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भाग लिया।उस दौरान उनकी रूस के कजान शहर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय मुलाकात भी हुई थी।