भारत कोई धर्मशाला नहीं...जानें सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी की वजह

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सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से शरणार्थियों को रखा जा सके। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें?

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए ये बात कही। सुप्रीम कोर्ट में श्रीलंका के एक नागरिक की हिरासत के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर दखल देने से इनकार कर दिया। पीठ मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA मामले में लगाए गए 7 साल की सजा पूरी होते ही तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए।

हालांकि, सजा पूरा होते ही उसने श्रीलंका वापस जाने से मना कर दिया। उसने दलील दी कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है इसलिए उसे भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की इजाजत दी जाए। याचिकाकर्ता ने ये भी बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भी भारत में ही हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

याचिकाकर्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि श्रीलंकाई नागरिक को 2015 में टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) से जुड़े होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। लिट्टे एक आतंकवादी संगठन था। यह कभी श्रीलंका में सक्रिय था। 2018 में, एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। उसे 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई। 2022 में, मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि निर्वासन से पहले उसे एक शरणार्थी शिविर में रहना होगा। इसका मतलब है कि उसे देश से निकालने से पहले कुछ समय के लिए एक खास शिविर में रहना होगा।

कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी करने वाले मंत्री विजय शाह की बढ़ी मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाने को कहा

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कर्नल सोफिया पर विवादित बयान देने वाले मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है।कर्नल कुरैशी को लेकर विवादित टिप्पणी करने वाले विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह मामला गंभीर है और इसे किसी भी तरह से राजनीतिक रंग नहीं लेने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह को कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए बयान पर फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम इस मामले में मंत्री की माफी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने आगे कहा, "आप एक सार्वजनिक चेहरा हैं। एक अनुभवी नेता हैं। आपको बोलने से पहले अपने शब्दों को तोलना चाहिए। हमें आपके वीडियो यहां चलाने चाहिए। यह सेना के लिए एक अहम मुद्दा है। हमें इस मामले में बेहद जिम्मेदार होना होगा।"

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एसवीएन भट की पीठ इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से सख्त लहजे में कहा कि हम इस केस को बहुत करीब से देख रहे हैं और यह सरकार के लिए एक अग्नि परीक्षा है। अदालत ने कहा कि मंत्री को उनके बयान के नतीजे भुगतने होंगे और कानून को अपना रास्ता तय करने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि एफआईआर की जांच एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें एमपी कैडर के सीधे भर्ती किए गए 3 वरिष्ठ आईपीसी अधिकारी शामिल हों, लेकिन जो एमपी से संबंधित नहीं हों। इन 3 में से 1 महिला आईपीएस अधिकारी होनी चाहिए। डीजीपी, एमपी को कल रात 10 बजे से पहले एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया जाता है। इसका नेतृत्व एक आईजीपी द्वारा किया जाना चाहिए और दोनों सदस्य भी एसपी या उससे ऊपर के रैंक के होंगे।

इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने दलील देते हुए कहा कि विजय शाह माफी मांग रहे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपकी माफी कहां है? यह जिस प्रकृति का मामला है, आप किस तरह कि माफी मांगना चाहते हैं, आपका क्या घड़ियाली आंसू बहाना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने बिना सोचे जो किया और अब माफी मांग रहे हैं। हमें आपकी माफी नहीं चाहिए। अब कानून के मुताबिक निपटेंगे। आपने अगर दोबारा माफी मांगी तो हम अदालत की अवमानना मानेंगे। आप पब्लिक फिगर हैं, राजनेता हैं और क्या बोलते हैं? ये सब वीडियो में है और आप कहां जाकर रुकेंगे। संवेदनशील होना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। यह बहुत गैर जिम्मेदाराना है। हमें अपनी आर्मी पर गर्व है और आप टाइमिंग देखिए, क्या आप बोले?

इससे पहले बीते गुरुवार को विजय शाह सुप्रीम कोर्ट की शरण पहुंचे और एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन शाह को यहां भी फटकार ही पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप संवैधानिक पद हैं, आपको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। एक मंत्री होकर आप कैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर कें कंटेंट को लेकर भी फटकारा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर की भाषा ऐसी लिखी गई है जो चुनौती देने पर निरस्त हो जाए। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एफआईआर में सुधार करने और पुलिलिस विवेचना की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट द्वारा किए जाने के भी आदेश दिए।

सुप्रीम कोर्ट के किस जज के पास कितनी संपत्ति, सीजेआई के पास 10 साल पुरानी स्विफ्ट कार और 250 ग्राम सोना


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सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी को ऑफिशियल वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जुडिशियरी में ट्रांसपेरेंसी के तहत ऐतिहासिक फैसला लिया है। जनता का विश्वास जुडिशियरी पर और बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। भारत में ऐसा पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक की गई है।

जस्टिस यशवंत वर्मा मामले के बाद फैसला

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 22 जजों की संपत्ति का ब्यौरा अपलोड किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 31 है। उनमें से 22 की डिटेल मौजूद है। इनमें सीजेआई संजीव खन्ना समेत अन्य जजों की घोषणाएं हैं। इनमें वे तीन जज भी शामिल हैं, जो निकट भविष्य में सीजेआई बनने की कतार में हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जजों की चल और अचल संपत्तियों का ब्योरा है। किस जज के पास कितना पैसा है, कितना सोना-चांदी और कार है, यह सब मौजूद है। दरअसल, सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई में बीते दिनों कोर्ट ने यह फैसला जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से कथित कैश की बरामदगी की घटना के बाद लिया था।

चीफ जस्टिस के पास है कितनी संपत्ति?

सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के पास साउथ दिल्ली में तीन बेडरूम वाला डीडीए फ्लैट, दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज में दो पार्किंग स्पेस के साथ चार बेडरूम वाला फ्लैट है, जिसका सुपर एरिया 2446 वर्ग फीट है। गुरुग्राम के सेक्टर 49 के सिसपाल विहार में चार बेडरूम वाले फ्लैट में 56 प्रतिशत हिस्सा, जिसका सुपर एरिया 2016 वर्ग फीट है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में जमीन में अविभाजित हिस्से के साथ घर के आंशिक मालिक देव राज खन्ना (एचयूएफ) में हिस्सा है।

एफ.डी.आर. और बैंक खाते में लगभग 55 लाख 75 हजार, पी.पी.एफ लगभग एक करोड़ 6 लाख 86 हजार, जी.पी.एफ. में 1 करोड़ 77 लाख 89 हजार, एल.आई.सी. मनी बैक पॉलिसी वार्षिक प्रीमियम 29,625 रुपये, शेयर में14 हजार, सोना – 250 ग्राम, चांदी -2 किलोग्राम है। सोना और चांदी ज्यादातर विरासत और गिफ्ट में मिले हैं। साथ ही एक 2015 मॉडल की स्विफ्ट मारुति कार है। इनके एफडीआर और बैंक खाते 55 लाख 75 हजार रुपये है।

इनकी पत्नी के पास 700 ग्राम सोना, 5 किलोग्राम चांदी, कुछ हीरे की अंगूठियां, पेंडेंट और झुमके हैं। साथ ही कुछ मोती और माणिक की लड़ियां भी हैं। इनमें से ज्यादातर चीजें विरासत में मिली हैं या फिर किसी खास मौके पर गिफ्ट में दी गई हैं।

अगले सीजेआई के पास कितनी संपत्ति

इसके बाद जस्टिस बी आर गवई इस महीने की आखिर तक अगले सीजेआई बनेंगे। उनके पास महाराष्ट्र के अमरावती में एक घर है, जो उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है। इसके अलावा उनके पास डिफेंस कॉलोनी में एक आवासीय अपार्टमेंट और अमरावती और नागपुर में कृषि भूमि है। जस्टिस गवई ने शेयरों और म्यूचुअल फंड में भी निवेश किया है। पीपीएफ में 6,59,692 रुपये और सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) में 35,86,736 रुपये जमा हैं।

नियुक्ति प्रक्रिया भी की गई सार्वजनिक

संपत्ति के ब्योरे के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया भी अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इसमें हाई कोर्ट कॉलेजियम को सौंपी गई भूमिका, राज्य और केंद्र सरकार से प्राप्त भूमिका और इनपुट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के विचार शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला जनता की जानकारी और जागरूकता के लिए लिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून पर आज सुनवाई, सांविधानिक वैधता मामले में हो सकता है फैसला

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सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। 17 अप्रैल को सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह 5 मई तक न तो वक्फ बाय यूजर समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा।

याचिकाओं पर हो सकती है अंतिम सुनवाई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट आज यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाए या नहीं। सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए उनके पास समय कम है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से कई वकीलों को सुनना होगा।

वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा के इजाफा का दावा

केंद्र सरकार ने याचिकाओं के जवाब में 1,300 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।

नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर

बता दें कि पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और इसके खिलाफ 95 सदस्यों ने मतदान किया। वहीं, इसके पास होने के बाद कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने अधिनियम की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दिया था। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। याचिकाओं के इस समूह में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है।

पाकिस्तानी परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, वापस भेजने पर लगाई रोक

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पाकिस्तान निर्वासित होने के कगार पर पहुंचे एक परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान भेजने के आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय नागरिकता का दावा करते हुए भारतीय दस्तावेज पेश किए हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को परिवार के दस्तावेज जांचने और कोई फैसला लेने तक परिवार को पाकिस्तान निर्वासित न करने का निर्देश दिया है।

भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज का दावा

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागिरकों का वीजा रद्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब तक कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान वापस भेजे जा चुके हैं। हालांकि इस बीच बेंगलुरु में रहने वाले छह सदस्यों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया है कि उनके पास भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज मौजूद हैं।

अपनी याचिका में बेंगलुरु में नौकरी कर रहे अहमद तारिक बट ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार के पांच सदस्यों को श्रीनगर के फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस से पाकिस्तान डिपोर्ट किए जाने का नोटिस मिला है। इन सभी सदस्यों का दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

उनकी इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता 2 और 3 पति-पत्नी हैं। याचिकाकर्ता 1, 4, 5 और 6 उनके बच्चे हैं। वे मौजूदा समय श्रीनगर के निवासी हैं। सरकारी निर्देश के अनुसार वीजा रद्द कर दिए गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो संरक्षित हैं, ऐसे में याचिकाकर्ताओं को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। कुछ लोगों को निर्वासन के लिए हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किए गए आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। ऐसे में तथ्यात्मक दलील को सत्यापित करने की आवश्यकता है, इसलिए हम अधिकारियों को इन दस्तावेजों और उनके ध्यान में लाए जाने वाले किसी भी अन्य तथ्य को सत्यापित करने के निर्देश देने के साथ याचिका की योग्यता पर कुछ भी कहे बिना इसे समाप्त कर देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हम कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर रहे हैं। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कड़ी कार्रवाई न करें। अगर याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इस आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार है।

सेना का का मनोबल न गिराएं...पहलगाम हमले की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

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पहलगाम आतंकी हमलों की न्यायीक जांच की मांग से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर करने से पहले मामले की गंभीरता को समझना चाहिए था। हमारे बलों का मनोबल मत तोड़ो। इन याचिकाओं के लिए यह सही समय नहीं है।

जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट ?

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि आपने मांग की है कि रिटायर्ड जज की अगुवाई में पहलगाम हमले के जांच हो। जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट हो गए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखिए। कोर्ट ने कहा कि यह कठिन समय है और सभी को साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।

हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुश्किल वक्त में देश का प्रत्येक नागरिक आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह ऐसा जरूरी समय है, जब हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ खड़ा है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी मांग कर सुरक्षाबलों का मनोबल ना गिराएं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि ये मामला बहुत ही संवेदनशील है। ऐसे में इस मामले की संवेदनशीलता का भी ख्याल रखें।

याचिका पर सुनवाई करने से इनकार

बता दें कि पहलगाम आतंकी हमले में विदेशी पर्यटकों समेत 26 लोग मारे गए थे। आतंकियों ने धर्म पूछकर सबको मारा था। याचिकाकर्ताओं ने 26 लोगों की मौत वाली पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच की मांग की थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने निष्कर्षों को लेकर थोड़ा ज़िम्मेदार बनिए।

पेगासस रिपोर्ट सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा-देश में स्पाईवेयर का उपयोग गलत नहीं


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पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। पेगासस जासूसी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुरक्षा उद्देश्यों के लिए किसी भी देश का स्पाईवेयर रखना गलत नहीं है। अगर देश अपनी सिक्योरिटी के लिए स्पाइवेयर का यूज कर रहा तो इसमें क्या गलत है? चिंता की बात ये है कि इसका इस्तेमाल किसके खिलाफ हो रहा है?

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने मंगलवार को कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी किसी भी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जाएगा। बेंच ने कहा- व्यक्तिगत आशंकाओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन टेक्निकल पैनल की रिपोर्ट सड़कों पर चर्चा के लिए नहीं हो सकती। इस बात की जांच करनी होगी कि जानकारी किस हद तक साझा की जा सकती है। 

रिपोर्ट को छुआ नहीं जाएगा- कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को प्रभावित करने वाली किसी भी रिपोर्ट को नहीं छुआ जाएगा, लेकिन जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें इसमें शामिल किया गया है, उन्हें सूचित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, हां, व्यक्तिगत आशंकाओं को संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन इसे सड़कों पर चर्चा के लिए दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले में अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

क्या है मामला?

2021 में एक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि केंद्र सरकार ने 2017 से 2019 के दौरान करीब 300 भारतीयों की पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की। इनमें पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, विपक्ष के नेता और बिजनेसमैन शामिल थे। अगस्त 2021 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। अगस्त 2022 में इसकी रिपोर्ट आई। इसमें कहा गया कि 29 फोन की जांच की गई, उनमें पेगासस का कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन उनमें से 5 में मैलवेयर पाया गया।

क्या है पेगासस?

पेगासस सबसे उन्नत जासूसी सॉफ्टवेयर्स में से एक है, जिसे इजराइल की साइबर सिक्योरिटी कंपनी एनएसओ ग्रुप ने तैयार किया। ये केवल फोन नंबर से फोन हैक कर सकता है। कंपनी केवल सरकारों को ही ये सॉफ्टवेयर बेचती है और 10 से ज्यादा देशों की सरकारें पेगासस का इस्तेमाल कर रही हैं।भारत सरकार ने 2017 में इजरायल से एक रक्षा सौदे में पेगासस खरीदा था, जिसका खुलासा अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने किया था।

स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ ऐसा बयान स्‍वीकार नहीं” सावरकर विवाद पर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने चेताया

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सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में टिप्पणी करने के खिलाफ चेतावनी दी है। शीर्ष अदालत ने वीर सावरकर के खिलाफ दिए कांग्रेस के बयान को गैरजिम्‍मेदार करार दिया और भविष्‍य में ऐसा न करने की नसीहत भी दे डाली। साथ ही कोर्ट ने वीडी सावरकर के बारे में टिप्पणी करने पर ट्रायल कोर्ट के समन पर रोक लगा दी है। बता दें कि कांग्रेस के सीनियर लीडर राहुल गांधी ने सावरकर पर दिए गए कथित विवादित बयान को लेकर दर्ज मानहानि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने कांग्रेस नेता को सावरकर के खिलाफ आगे कोई अपमानजनक टिप्पणी करने से आगाह किया। सुप्रीम कोर्ट ने वीर सावरकर को लेकर दिए राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें यह स्वीकार नहीं कि किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के खिलाफ इस तरह का स्‍टेटमेंट दिया जाए।

“महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल”

कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में उनकी पूजा की जाती है। अदालत ने कहा कि अगर गांधी इस तरह की टिप्पणी करना जारी रखते हैं, तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। जब वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि इस मामले में धारा 196 लागू नहीं होती। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल किया था। इस तरह आप कहेंगे कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के सेवक थे। क्या उन्हें पता है कि उनकी दादी ने भी स्वतंत्रता सेनानी को पत्र भेजा था। उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में गैरजिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए।

भविष्य के लिए चेताया

अदालत ने कहा कि आप स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास- भूगोल को जाने बिना ऐसे बयान नहीं दे सकते। मैंने भी हमारे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को इसी तरह लिखते देखा है। कानून के बारे में आपकी बात सही है और आपको स्थगन मिल जाएगा। लेकिन उनके द्वारा आगे दिए गए किसी भी बयान पर स्वतः संज्ञान लेकर विचार किया जाएगा। अदालत ने सख्त भरे लहजे में कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहें।

देशभर में दर्ज हुए थे राहल के खिलाफ केस

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 17 नवंबर 2022 को महाराष्ट्र के अकोला में एक रैली में वीर सावरकर पर बयान दिया था, जिसे लेकर देशभर में उनके खिलाफ कई केस दर्ज हुए। लखनऊ में वकील नृपेंद्र पांडेय ने भी सिविल कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राहुल पर स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने का आरोप लगाया था। इस याचिका को पहले सत्र न्यायालय ने जून 2023 में खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ नृपेंद्र पांडेय ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और राहुल गांधी को समन जारी कर दिया।

संसद ही सर्वोच्च…,न्यायपालिका की आलोचना के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात


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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर न्यायापलिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक "अधिकारों के अतिक्रमण" की आलोचना की और दोहराया कि "संसद ही सर्वोच्च है"।

संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं-धनखड़

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति की बात हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि संवैधानिक पद सिर्फ औपचारिक या दिखावटी होते हैं, लेकिन यह गलत सोच है। संविधान लोगों के लिए है और यह उनके चुने हुए प्रतिनिधियों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी संस्था की कल्पना नहीं की गई है। संसद सबसे सर्वोच्च है।

लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका-धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। मुझे यह बात समझ से परे लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका (चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक) के बारे में गलत समझ से कोई भी दूर नहीं हो सकता।

लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है-धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है। अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए। हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें। देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है। जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई थी चिंता

यहां, उपराष्ट्रपति ने किसी का नाम नहीं लिया। हालांकि, साफ है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई अपनी टिप्पणी को लेकर आलोचना करने वालों पर निशाना साधा। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल में कहा था कि राज्यपाल अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।

बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम पर पहले ही लग रहे आरोप

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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई है।वकील विष्णु शंकर जैन ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष याचिका पेश की, जिसके बाद याचिका को कल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की याचिका सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि वक्फ कानून के विरोध में हुई मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कोर्ट इस पर फैसला ले। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कोई आदेश नहीं दिया। बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा, क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को इसे लागू करने का आदेश भेजें? हम पर दूसरों के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी के आरोप लग रहे हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाया सवाल

बता दें कि हाल ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लगाया है। जिस पर खासा विवाद हो रहा है। साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सवाल उठाए थे और सुप्रीम कोर्ट पर सुपर संसद के रूप में काम करने का आरोप लगाया था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे, जिसमें शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को निर्देश दिया था कि अगर कोई विधेयक संसद या विधानसभा की तरफ से दोबारा पारित किया गया हो, तो तीन महीने के भीतर उसे मंजूरी दी जाए।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाए गंभीर आरोप

वहीं इसके कुछ ही दिनों बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए जिम्मेदार है। निशिकांत दुबे ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था, अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

भारत कोई धर्मशाला नहीं...जानें सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी की वजह

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सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से शरणार्थियों को रखा जा सके। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें?

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए ये बात कही। सुप्रीम कोर्ट में श्रीलंका के एक नागरिक की हिरासत के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर दखल देने से इनकार कर दिया। पीठ मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA मामले में लगाए गए 7 साल की सजा पूरी होते ही तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए।

हालांकि, सजा पूरा होते ही उसने श्रीलंका वापस जाने से मना कर दिया। उसने दलील दी कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है इसलिए उसे भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की इजाजत दी जाए। याचिकाकर्ता ने ये भी बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भी भारत में ही हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

याचिकाकर्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि श्रीलंकाई नागरिक को 2015 में टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) से जुड़े होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। लिट्टे एक आतंकवादी संगठन था। यह कभी श्रीलंका में सक्रिय था। 2018 में, एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। उसे 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई। 2022 में, मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि निर्वासन से पहले उसे एक शरणार्थी शिविर में रहना होगा। इसका मतलब है कि उसे देश से निकालने से पहले कुछ समय के लिए एक खास शिविर में रहना होगा।

कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी करने वाले मंत्री विजय शाह की बढ़ी मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाने को कहा

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कर्नल सोफिया पर विवादित बयान देने वाले मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है।कर्नल कुरैशी को लेकर विवादित टिप्पणी करने वाले विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह मामला गंभीर है और इसे किसी भी तरह से राजनीतिक रंग नहीं लेने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह को कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए बयान पर फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम इस मामले में मंत्री की माफी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने आगे कहा, "आप एक सार्वजनिक चेहरा हैं। एक अनुभवी नेता हैं। आपको बोलने से पहले अपने शब्दों को तोलना चाहिए। हमें आपके वीडियो यहां चलाने चाहिए। यह सेना के लिए एक अहम मुद्दा है। हमें इस मामले में बेहद जिम्मेदार होना होगा।"

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एसवीएन भट की पीठ इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से सख्त लहजे में कहा कि हम इस केस को बहुत करीब से देख रहे हैं और यह सरकार के लिए एक अग्नि परीक्षा है। अदालत ने कहा कि मंत्री को उनके बयान के नतीजे भुगतने होंगे और कानून को अपना रास्ता तय करने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि एफआईआर की जांच एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें एमपी कैडर के सीधे भर्ती किए गए 3 वरिष्ठ आईपीसी अधिकारी शामिल हों, लेकिन जो एमपी से संबंधित नहीं हों। इन 3 में से 1 महिला आईपीएस अधिकारी होनी चाहिए। डीजीपी, एमपी को कल रात 10 बजे से पहले एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया जाता है। इसका नेतृत्व एक आईजीपी द्वारा किया जाना चाहिए और दोनों सदस्य भी एसपी या उससे ऊपर के रैंक के होंगे।

इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने दलील देते हुए कहा कि विजय शाह माफी मांग रहे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपकी माफी कहां है? यह जिस प्रकृति का मामला है, आप किस तरह कि माफी मांगना चाहते हैं, आपका क्या घड़ियाली आंसू बहाना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने बिना सोचे जो किया और अब माफी मांग रहे हैं। हमें आपकी माफी नहीं चाहिए। अब कानून के मुताबिक निपटेंगे। आपने अगर दोबारा माफी मांगी तो हम अदालत की अवमानना मानेंगे। आप पब्लिक फिगर हैं, राजनेता हैं और क्या बोलते हैं? ये सब वीडियो में है और आप कहां जाकर रुकेंगे। संवेदनशील होना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। यह बहुत गैर जिम्मेदाराना है। हमें अपनी आर्मी पर गर्व है और आप टाइमिंग देखिए, क्या आप बोले?

इससे पहले बीते गुरुवार को विजय शाह सुप्रीम कोर्ट की शरण पहुंचे और एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन शाह को यहां भी फटकार ही पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप संवैधानिक पद हैं, आपको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। एक मंत्री होकर आप कैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर कें कंटेंट को लेकर भी फटकारा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर की भाषा ऐसी लिखी गई है जो चुनौती देने पर निरस्त हो जाए। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एफआईआर में सुधार करने और पुलिलिस विवेचना की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट द्वारा किए जाने के भी आदेश दिए।

सुप्रीम कोर्ट के किस जज के पास कितनी संपत्ति, सीजेआई के पास 10 साल पुरानी स्विफ्ट कार और 250 ग्राम सोना


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सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी को ऑफिशियल वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जुडिशियरी में ट्रांसपेरेंसी के तहत ऐतिहासिक फैसला लिया है। जनता का विश्वास जुडिशियरी पर और बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। भारत में ऐसा पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक की गई है।

जस्टिस यशवंत वर्मा मामले के बाद फैसला

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 22 जजों की संपत्ति का ब्यौरा अपलोड किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 31 है। उनमें से 22 की डिटेल मौजूद है। इनमें सीजेआई संजीव खन्ना समेत अन्य जजों की घोषणाएं हैं। इनमें वे तीन जज भी शामिल हैं, जो निकट भविष्य में सीजेआई बनने की कतार में हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जजों की चल और अचल संपत्तियों का ब्योरा है। किस जज के पास कितना पैसा है, कितना सोना-चांदी और कार है, यह सब मौजूद है। दरअसल, सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई में बीते दिनों कोर्ट ने यह फैसला जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से कथित कैश की बरामदगी की घटना के बाद लिया था।

चीफ जस्टिस के पास है कितनी संपत्ति?

सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के पास साउथ दिल्ली में तीन बेडरूम वाला डीडीए फ्लैट, दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज में दो पार्किंग स्पेस के साथ चार बेडरूम वाला फ्लैट है, जिसका सुपर एरिया 2446 वर्ग फीट है। गुरुग्राम के सेक्टर 49 के सिसपाल विहार में चार बेडरूम वाले फ्लैट में 56 प्रतिशत हिस्सा, जिसका सुपर एरिया 2016 वर्ग फीट है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में जमीन में अविभाजित हिस्से के साथ घर के आंशिक मालिक देव राज खन्ना (एचयूएफ) में हिस्सा है।

एफ.डी.आर. और बैंक खाते में लगभग 55 लाख 75 हजार, पी.पी.एफ लगभग एक करोड़ 6 लाख 86 हजार, जी.पी.एफ. में 1 करोड़ 77 लाख 89 हजार, एल.आई.सी. मनी बैक पॉलिसी वार्षिक प्रीमियम 29,625 रुपये, शेयर में14 हजार, सोना – 250 ग्राम, चांदी -2 किलोग्राम है। सोना और चांदी ज्यादातर विरासत और गिफ्ट में मिले हैं। साथ ही एक 2015 मॉडल की स्विफ्ट मारुति कार है। इनके एफडीआर और बैंक खाते 55 लाख 75 हजार रुपये है।

इनकी पत्नी के पास 700 ग्राम सोना, 5 किलोग्राम चांदी, कुछ हीरे की अंगूठियां, पेंडेंट और झुमके हैं। साथ ही कुछ मोती और माणिक की लड़ियां भी हैं। इनमें से ज्यादातर चीजें विरासत में मिली हैं या फिर किसी खास मौके पर गिफ्ट में दी गई हैं।

अगले सीजेआई के पास कितनी संपत्ति

इसके बाद जस्टिस बी आर गवई इस महीने की आखिर तक अगले सीजेआई बनेंगे। उनके पास महाराष्ट्र के अमरावती में एक घर है, जो उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है। इसके अलावा उनके पास डिफेंस कॉलोनी में एक आवासीय अपार्टमेंट और अमरावती और नागपुर में कृषि भूमि है। जस्टिस गवई ने शेयरों और म्यूचुअल फंड में भी निवेश किया है। पीपीएफ में 6,59,692 रुपये और सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) में 35,86,736 रुपये जमा हैं।

नियुक्ति प्रक्रिया भी की गई सार्वजनिक

संपत्ति के ब्योरे के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया भी अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इसमें हाई कोर्ट कॉलेजियम को सौंपी गई भूमिका, राज्य और केंद्र सरकार से प्राप्त भूमिका और इनपुट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के विचार शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला जनता की जानकारी और जागरूकता के लिए लिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून पर आज सुनवाई, सांविधानिक वैधता मामले में हो सकता है फैसला

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सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। 17 अप्रैल को सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह 5 मई तक न तो वक्फ बाय यूजर समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा।

याचिकाओं पर हो सकती है अंतिम सुनवाई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट आज यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाए या नहीं। सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए उनके पास समय कम है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से कई वकीलों को सुनना होगा।

वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा के इजाफा का दावा

केंद्र सरकार ने याचिकाओं के जवाब में 1,300 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।

नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर

बता दें कि पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और इसके खिलाफ 95 सदस्यों ने मतदान किया। वहीं, इसके पास होने के बाद कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने अधिनियम की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दिया था। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। याचिकाओं के इस समूह में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है।

पाकिस्तानी परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, वापस भेजने पर लगाई रोक

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पाकिस्तान निर्वासित होने के कगार पर पहुंचे एक परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान भेजने के आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय नागरिकता का दावा करते हुए भारतीय दस्तावेज पेश किए हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को परिवार के दस्तावेज जांचने और कोई फैसला लेने तक परिवार को पाकिस्तान निर्वासित न करने का निर्देश दिया है।

भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज का दावा

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागिरकों का वीजा रद्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब तक कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान वापस भेजे जा चुके हैं। हालांकि इस बीच बेंगलुरु में रहने वाले छह सदस्यों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया है कि उनके पास भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज मौजूद हैं।

अपनी याचिका में बेंगलुरु में नौकरी कर रहे अहमद तारिक बट ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार के पांच सदस्यों को श्रीनगर के फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस से पाकिस्तान डिपोर्ट किए जाने का नोटिस मिला है। इन सभी सदस्यों का दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

उनकी इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता 2 और 3 पति-पत्नी हैं। याचिकाकर्ता 1, 4, 5 और 6 उनके बच्चे हैं। वे मौजूदा समय श्रीनगर के निवासी हैं। सरकारी निर्देश के अनुसार वीजा रद्द कर दिए गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो संरक्षित हैं, ऐसे में याचिकाकर्ताओं को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। कुछ लोगों को निर्वासन के लिए हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किए गए आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। ऐसे में तथ्यात्मक दलील को सत्यापित करने की आवश्यकता है, इसलिए हम अधिकारियों को इन दस्तावेजों और उनके ध्यान में लाए जाने वाले किसी भी अन्य तथ्य को सत्यापित करने के निर्देश देने के साथ याचिका की योग्यता पर कुछ भी कहे बिना इसे समाप्त कर देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हम कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर रहे हैं। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कड़ी कार्रवाई न करें। अगर याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इस आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार है।

सेना का का मनोबल न गिराएं...पहलगाम हमले की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

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पहलगाम आतंकी हमलों की न्यायीक जांच की मांग से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर करने से पहले मामले की गंभीरता को समझना चाहिए था। हमारे बलों का मनोबल मत तोड़ो। इन याचिकाओं के लिए यह सही समय नहीं है।

जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट ?

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि आपने मांग की है कि रिटायर्ड जज की अगुवाई में पहलगाम हमले के जांच हो। जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट हो गए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखिए। कोर्ट ने कहा कि यह कठिन समय है और सभी को साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।

हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुश्किल वक्त में देश का प्रत्येक नागरिक आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह ऐसा जरूरी समय है, जब हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ खड़ा है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी मांग कर सुरक्षाबलों का मनोबल ना गिराएं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि ये मामला बहुत ही संवेदनशील है। ऐसे में इस मामले की संवेदनशीलता का भी ख्याल रखें।

याचिका पर सुनवाई करने से इनकार

बता दें कि पहलगाम आतंकी हमले में विदेशी पर्यटकों समेत 26 लोग मारे गए थे। आतंकियों ने धर्म पूछकर सबको मारा था। याचिकाकर्ताओं ने 26 लोगों की मौत वाली पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच की मांग की थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने निष्कर्षों को लेकर थोड़ा ज़िम्मेदार बनिए।

पेगासस रिपोर्ट सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा-देश में स्पाईवेयर का उपयोग गलत नहीं


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पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। पेगासस जासूसी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुरक्षा उद्देश्यों के लिए किसी भी देश का स्पाईवेयर रखना गलत नहीं है। अगर देश अपनी सिक्योरिटी के लिए स्पाइवेयर का यूज कर रहा तो इसमें क्या गलत है? चिंता की बात ये है कि इसका इस्तेमाल किसके खिलाफ हो रहा है?

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने मंगलवार को कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी किसी भी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जाएगा। बेंच ने कहा- व्यक्तिगत आशंकाओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन टेक्निकल पैनल की रिपोर्ट सड़कों पर चर्चा के लिए नहीं हो सकती। इस बात की जांच करनी होगी कि जानकारी किस हद तक साझा की जा सकती है। 

रिपोर्ट को छुआ नहीं जाएगा- कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को प्रभावित करने वाली किसी भी रिपोर्ट को नहीं छुआ जाएगा, लेकिन जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें इसमें शामिल किया गया है, उन्हें सूचित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, हां, व्यक्तिगत आशंकाओं को संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन इसे सड़कों पर चर्चा के लिए दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले में अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

क्या है मामला?

2021 में एक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि केंद्र सरकार ने 2017 से 2019 के दौरान करीब 300 भारतीयों की पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की। इनमें पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, विपक्ष के नेता और बिजनेसमैन शामिल थे। अगस्त 2021 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। अगस्त 2022 में इसकी रिपोर्ट आई। इसमें कहा गया कि 29 फोन की जांच की गई, उनमें पेगासस का कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन उनमें से 5 में मैलवेयर पाया गया।

क्या है पेगासस?

पेगासस सबसे उन्नत जासूसी सॉफ्टवेयर्स में से एक है, जिसे इजराइल की साइबर सिक्योरिटी कंपनी एनएसओ ग्रुप ने तैयार किया। ये केवल फोन नंबर से फोन हैक कर सकता है। कंपनी केवल सरकारों को ही ये सॉफ्टवेयर बेचती है और 10 से ज्यादा देशों की सरकारें पेगासस का इस्तेमाल कर रही हैं।भारत सरकार ने 2017 में इजरायल से एक रक्षा सौदे में पेगासस खरीदा था, जिसका खुलासा अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने किया था।

स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ ऐसा बयान स्‍वीकार नहीं” सावरकर विवाद पर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने चेताया

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सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में टिप्पणी करने के खिलाफ चेतावनी दी है। शीर्ष अदालत ने वीर सावरकर के खिलाफ दिए कांग्रेस के बयान को गैरजिम्‍मेदार करार दिया और भविष्‍य में ऐसा न करने की नसीहत भी दे डाली। साथ ही कोर्ट ने वीडी सावरकर के बारे में टिप्पणी करने पर ट्रायल कोर्ट के समन पर रोक लगा दी है। बता दें कि कांग्रेस के सीनियर लीडर राहुल गांधी ने सावरकर पर दिए गए कथित विवादित बयान को लेकर दर्ज मानहानि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने कांग्रेस नेता को सावरकर के खिलाफ आगे कोई अपमानजनक टिप्पणी करने से आगाह किया। सुप्रीम कोर्ट ने वीर सावरकर को लेकर दिए राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें यह स्वीकार नहीं कि किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के खिलाफ इस तरह का स्‍टेटमेंट दिया जाए।

“महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल”

कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में उनकी पूजा की जाती है। अदालत ने कहा कि अगर गांधी इस तरह की टिप्पणी करना जारी रखते हैं, तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। जब वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि इस मामले में धारा 196 लागू नहीं होती। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल किया था। इस तरह आप कहेंगे कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के सेवक थे। क्या उन्हें पता है कि उनकी दादी ने भी स्वतंत्रता सेनानी को पत्र भेजा था। उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में गैरजिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए।

भविष्य के लिए चेताया

अदालत ने कहा कि आप स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास- भूगोल को जाने बिना ऐसे बयान नहीं दे सकते। मैंने भी हमारे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को इसी तरह लिखते देखा है। कानून के बारे में आपकी बात सही है और आपको स्थगन मिल जाएगा। लेकिन उनके द्वारा आगे दिए गए किसी भी बयान पर स्वतः संज्ञान लेकर विचार किया जाएगा। अदालत ने सख्त भरे लहजे में कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहें।

देशभर में दर्ज हुए थे राहल के खिलाफ केस

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 17 नवंबर 2022 को महाराष्ट्र के अकोला में एक रैली में वीर सावरकर पर बयान दिया था, जिसे लेकर देशभर में उनके खिलाफ कई केस दर्ज हुए। लखनऊ में वकील नृपेंद्र पांडेय ने भी सिविल कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राहुल पर स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने का आरोप लगाया था। इस याचिका को पहले सत्र न्यायालय ने जून 2023 में खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ नृपेंद्र पांडेय ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और राहुल गांधी को समन जारी कर दिया।

संसद ही सर्वोच्च…,न्यायपालिका की आलोचना के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात


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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर न्यायापलिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक "अधिकारों के अतिक्रमण" की आलोचना की और दोहराया कि "संसद ही सर्वोच्च है"।

संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं-धनखड़

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति की बात हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि संवैधानिक पद सिर्फ औपचारिक या दिखावटी होते हैं, लेकिन यह गलत सोच है। संविधान लोगों के लिए है और यह उनके चुने हुए प्रतिनिधियों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी संस्था की कल्पना नहीं की गई है। संसद सबसे सर्वोच्च है।

लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका-धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। मुझे यह बात समझ से परे लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका (चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक) के बारे में गलत समझ से कोई भी दूर नहीं हो सकता।

लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है-धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है। अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए। हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें। देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है। जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई थी चिंता

यहां, उपराष्ट्रपति ने किसी का नाम नहीं लिया। हालांकि, साफ है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई अपनी टिप्पणी को लेकर आलोचना करने वालों पर निशाना साधा। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल में कहा था कि राज्यपाल अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।

बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम पर पहले ही लग रहे आरोप

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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई है।वकील विष्णु शंकर जैन ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष याचिका पेश की, जिसके बाद याचिका को कल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की याचिका सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि वक्फ कानून के विरोध में हुई मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कोर्ट इस पर फैसला ले। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कोई आदेश नहीं दिया। बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा, क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को इसे लागू करने का आदेश भेजें? हम पर दूसरों के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी के आरोप लग रहे हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाया सवाल

बता दें कि हाल ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लगाया है। जिस पर खासा विवाद हो रहा है। साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सवाल उठाए थे और सुप्रीम कोर्ट पर सुपर संसद के रूप में काम करने का आरोप लगाया था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे, जिसमें शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को निर्देश दिया था कि अगर कोई विधेयक संसद या विधानसभा की तरफ से दोबारा पारित किया गया हो, तो तीन महीने के भीतर उसे मंजूरी दी जाए।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाए गंभीर आरोप

वहीं इसके कुछ ही दिनों बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए जिम्मेदार है। निशिकांत दुबे ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था, अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।