अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार की घोषणा, जोएल मोकिर, फिलिप अघियन व पीटर हॉविट को सम्मान

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अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में 2025 का स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार यानी अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार का एलान कर दिया है।इस साल यह पुरस्कार जोएल मोकिर, फिलिप अघियन और पीटर हॉविट को संयुक्त रूप से दिया गया है। “इनोवेशन पर आधारित आर्थिक विकास की व्याख्या” के लिए ये पुरस्कार प्रदान किया गया है।

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पुरस्कार का आधा हिस्सा मोकिर को "तकनीकी प्रगति के माध्यम से सतत विकास के लिए आवश्यक शर्तों की पहचान करने के लिए" और शेष आधा हिस्सा अघियन और हॉविट को "रचनात्मक विनाश के माध्यम से सतत विकास के सिद्धांत के लिए" संयुक्त रूप से दिया जाएगा।

नोबेल समिति ने क्या कहा?

नोबेल समिति ने बताया कि मोकिर ने यह प्रदर्शित किया कि यदि नवाचारों को एक स्व-उत्पादक प्रक्रिया में एक-दूसरे का उत्तराधिकारी बनाना है, तो हमें न केवल यह जानना होगा कि कोई चीज कैसे काम करती है, बल्कि हमें यह भी जानना होगा कि ऐसा क्यों होता है। अघियन और हॉविट ने सतत विकास के पीछे के तंत्र का भी अध्ययन किया। इसमें 1992 का एक लेख भी शामिल है, जिसमें उन्होंने रचनात्मक विनाश नामक गणितीय मॉडल का निर्माण किया। इसमें बताया गया कि जब एक नया और बेहतर उत्पाद बाजार में प्रवेश करता है, तो पुराने उत्पाद बेचने वाली कंपनियां नुकसान में आ जाती हैं।

अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता कहां से?

जोएल मोकिर अमेरिका के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं। वहीं, फिलिप अघियन फ्रांस के कॉलेज डी फ्रांस और INSEAD और ब्रिटेन के द लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से ताल्लुक रखते हैं। पीटर हॉविट अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी से संबंध रखते हैं।

पिछले साल किसे मिला अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार

पिछले साल का पुरस्कार तीन अर्थशास्त्रियों डेरॉन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन - को दिया गया था। इन अर्थशास्त्रियों ने इस बात का अध्ययन किया था कि कुछ देश अमीर क्यों हैं और दूसरे गरीब क्यों। उन्होंने यह प्रमाणित किया था कि अधिक स्वतंत्र और खुले समाज के समृद्ध होने की संभावना अधिक होती है। पिछले सप्ताह मेडिसिन, फिजिक्स, केमिस्ट्री, साहित्य और शांति के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई थी।

Rising infrastructure and tech growth set to pave way for logistics and warehousing demands in Bengaluru.

As India’s leading logistics and technology hub, Bengaluru with its enhanced connectivity through the Kuehne + Nagel air logistics gateway, Namma Metro Yellow Line, and emerging tech developments like Quantum City offers the ideal backdrop for innovation. Against this backdrop, the city is set to host Intralogistics & Warehousing Expo 2025 from 6–8 November 2025 at KTPO, Whitefield. Co-located with Material Handling Expo and E-Commerce Logistics Expo, the expo will bring together global and Indian leaders in automation, warehousing, logistics, and supply chain management to explore innovations shaping the industry’s future.

Visitors will experience live demonstrations of warehouse automation, AIDC (automatic identification and data capture), material handling equipment, and infrastructure solutions, alongside exhibits from 165+ companies representing 225+ brands and showcasing over 1200 advanced technologies. The expo will also provide networking opportunities with 10,000+ industry professionals from manufacturing, retail, e-commerce, FMCG, and pharmaceutical sectors, while the co-located E-Commerce Logistics Conference will feature thought leaders discussing the future of digital logistics and supply chain efficiency.

Featured Exhibitors Include:

Gandhi Automations, SOTI, ACE (Action Construction Equipment), Cloudleap, Epack, MHE Bazar, AAVON Steels Manufacturing, Avains, Central Warehousing Corporation, Nilkamal Material Handling, Sany Heavy Industry, Saint-Gobain India, Mutual Industries, Indo.S.Technologies, Kohinoor Business Park, Path Logicity, RR Industrial Packaging, Sahay Racks, Swastik Industries International among many others.

Distinguished Speakers Representing:

BigBasket, Reliance Retail, IKEA, Swiggy Instamart, Carl Zeiss, Zepto, Cargill, Bata India, SNITCH, Britannia Industries, Raymond Lifestyle, Country Delight, Fossil Group, Flipkart, Mondelez India Foods, Jockey India, AkzoNobel, FreshToHome, Diageo India, Himalayan Natives, Spykar Lifestyles, ABB, River Mobility, Kearney, Casa Grande, C.R. Narayana Rao, AESA, and several other esteemed organizations.

Industry Endorsements

"The Intralogistics & Warehousing Expo is a must-attend event for freight forwarders, offering a unique opportunity to explore innovative solutions that drive operational efficiency and business growth. We encourage all industry professionals to attend, experience the latest technologies firsthand, and build valuable networks" – Pramod Sant, Federation of Freight Forwarders’ Associations of India (FFFAI)

"For warehousing developers and supply chain professionals, this expo serves as the perfect platform to discover advanced automation, storage solutions, and smart logistics technologies. Attendees can gain practical insights, connect with leading solution providers, and stay ahead of emerging industry trends" – Amit Mittal, Association of Warehousing Developers (AWD)

Attending Intralogistics & Warehousing Expo offers access to India’s leading platform for automation, robotics, material handling, and supply chain technologies. Co-located with the Material Handling and E-Commerce Logistics Expos, the event provides a comprehensive overview of the logistics and warehousing landscape, bringing together leading solution providers and key industry decision-makers under one roof.

मारिया कोरिना मचाडो को मिला नोबेल शांति पुरस्‍कार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सपना चकनाचूर

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वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो अब 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार जीत लिया है। इसी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस पुरस्कार से चूक गए हैं। नोबेल समिति ने ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए लोकतंत्र और मानवाधिकार के लिए लगातार संघर्ष करती युवा नेता को नोबेल शांति पुरस्‍कार के लिए चुना।

इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबेल समिति की अध्यक्ष ने मचाडो की शांति की एक साहसी और प्रतिबद्ध समर्थक के रूप में सराहना की। नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने कहा कि यह सम्मान उन्हें वेनेज़ुएला के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उनके “अथक संघर्ष” और देश को तानाशाही से लोकतंत्र की ओर ले जाने के प्रयासों के लिए दिया गया है। मचाडो ने विपरीत परिस्थितियों में भी लोकतंत्र की ज्योति जलाए रखी और निरंकुश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष जारी रखा। समिति ने उन्हें लैटिन अमेरिका में “नागरिक साहस की असाधारण मिसाल” बताया है।

वेनेजुएला की 'आयरन लेडी' मचाडो

आयरन लेडी के नाम से भी मशहूर मचाडो का नाम टाइम पत्रिका की '2025 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों' की सूची में शामिल है। लेकिन कोरिना मचाडो फिलहाल किसी अज्ञात स्थान पर छिपी हुई हैं। पिछले साल वेनेजुएला में हुए चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने व्यापक रूप से धांधली की थी। जिसका मारिया कोरिना मचाडो ने जमकर विरोध किया था। उसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है।

डोनाल्ड ट्रंप को बहुत बड़ा झटका

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप बार बार नोबेल पुरस्कार के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। डोनाल्ड ट्रंप के लिए ये बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि नोबेल पुरस्कार के लिए उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में क्या नहीं किया है, उन्होंने हर युद्ध में खुद को शांति करवाने वाला मसीहा बताया है। वो 'सात युद्ध' में शांति करवाने का दावा करते आ रहे थे। लेकिन उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी शांति करवाने के लिए मध्यस्थता करने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि पाकिस्तान ने उनकी भावना को स्वीकार करते हुए उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था। पाकिस्तान के अलावा इजरायल ने भी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिल पाया।

केमिस्ट्री के नोबेल पुरस्कार का ऐलान, जापान-ऑस्ट्रेलिया और यूएस के वैज्ञानिकों को मिला सम्मान

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रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। इस साल जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों को रसायन विज्ञान का नोबेल देने का ऐलान हुआ है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन और उमर एम. याघी को पुरस्कार देने का फैसला किया है। यह पुरस्कार इन वैज्ञानिकों को डेवलपमेंट ऑफ मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क के लिए दिया गया है।

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने क्या कहा?

द रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि इन तीनों वैज्ञानिकों ने एक नए तरह के मौलिक्यूलर आर्किटेक्टर को विकसित किया है। इनकी बनाई गई संरचनाओं, जिन्हें मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स कहा जाता है, में बड़े-बड़े खोखले स्थान होते हैं, जिनमें मॉलिक्यूल्स आसानी से अंदर-बाहर आ और जा सकते हैं। शोधकर्ता इन फ्रेमवर्क्स का इस्तेमाल रेगिस्तानी हवा से पानी निकालने, पानी से गंदगी हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने और हाइड्रोजन स्टोर करने जैसे उपयोगों में कर रहे हैं। मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स के विकास के जरिए इन वैज्ञानिकों ने रसासन विज्ञान के क्षेत्र में कई नई संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं।

पिछले साल केमिस्ट्री इन्हें मिला था नोबेल पुरस्कार

पिछले साल 2024 में केमिस्ट्री में प्रोटीन साइंस में उनके क्रांतिकारी योगदान के लिए डेविड बेकर को नोबेल पुरस्कार का आधा हिस्सा दिया गया था और डेमिस हैसाबिस और जॉन एम. जंपर को संयुक्त रूप से आधा पुरस्कार दिया गया था। जहां डेविड बेकर को कम्प्यूटेशनल प्रोटीन डिजाइन के लिए आधा नोबेल पुरस्कार जबकि डेमिस हैसाबिस और जॉन एम. जंपर को प्रोटीन संरचना की भविष्यवाणी करने के लिए संयुक्त रूप से आधा नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार का ऐलान, तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों को मिला सम्मान

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आज स्टॉकहोम में रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार घोषित कर दिया। यह पुरस्‍कार अमेरिका के तीन वैज्ञानिक- जॉन क्लार्क, मिशेल एच.डेवोरेट और जॉन एम. मार्टिनिस को मिला है। ये पुरस्कार उन्हें ‘मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और इलेक्ट्रिक सर्किट में एनर्जी क्वांटाइजेशन की खोज’ के लिए मिला है।

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार 2025 कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के जॉन क्लार्क, येल यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के मिशेल एच. डेवोरेट और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के जॉन एम. मार्टिनिस को प्रदान किया जाएगा।

इस खोज के लिए मिला नोबल

इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने एक इलेक्ट्रिकल सर्किट के साथ प्रयोग किए, जिसमें उन्होंने एक ऐसी प्रणाली में क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और क्वांटाइज्ड एनर्जी लेवल, दोनों का प्रदर्शन किया जो हाथ में पकड़ने लायक थी। ये खोज क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटर और क्वांटम सेंसर सहित क्वांटम तकनीक को और समझने में मदद करेगी। आमतौर पर क्वांटम मैकेनिक्स के नियम बहुत छोटे कणों ( इलेक्ट्रॉन) पर लागू होते हैं। इनके व्यवहार को माइक्रोस्कोपिक कहा जाता है, क्योंकि ये इतने छोटे होते हैं कि सामान्य माइक्रोस्कोप से भी दिखाई नहीं देती, लेकिन अब इन वैज्ञानिकों ने पहली बार बिजली के सर्किट में बड़े पैमाने (मैक्रोस्कोपिक) पर क्वांटम टनलिंग और ऊर्जा के स्तरों की खोज की है।

पिछले साल इन वैज्ञानिकों को मिला था पुरस्कार

पिछले साल यानी 2024 में मशीन लर्निंग में फिजिक्स के इस्तेमाल के लिए नोबेल प्राइज मिला था। जॉन जे. होपफील्ड और जेफ्री हिंटन को नोबेल से नवाजा गया था। जॉन हॉपफील्ड ने कंप्यूटर को चीजें याद रखने और पहचानने में मदद करने वाली तकनीक विकसित की थी। जिसे हॉपफील्ड नेटवर्क कहा जाता है। वहीं जेफ्री हिंटन, जिनको आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का 'गॉडफादर' भी कहा जाता है। उन्होंने बोल्ट्जमैन मशीन बनाई, जो कंप्यूटर को डेटा से खुद सीखने की क्षमता देता है।

1901 से अब तक 118 वैज्ञानिकों को फिजिक्स में नोबल

नोबेलप्राइज डॉट ओआरजी के अनुसार 1901 से अब तक 118 वैज्ञानिकों को भौतिकी पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं। इनमें सबसे कम उम्र के विजेता 25 साल के लॉरेंस ब्रैग (1915) थे तो 96 साल के आर्थर अश्किन (2018) ये सम्मान हासिल करने वाले सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक थे। पहले भारतीय जिन्हें इस श्रेणी में पुरस्कृत किया गया, वो सर सीवी रमन थे। उन्हें ये सम्मान 1930 में दिया गया। उनकी खोज ने बताया था कि जब प्रकाश किसी पदार्थ से टकराता है तो उसका रंग बदल सकता है। इसे रमन इफेक्ट कहते हैं। वहीं दूसरे भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर थे। इन्हें 1983 में तारों (स्टार्स) के जीवन और मृत्यु की खोज के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने ही बताया कि बड़े तारे अंत में ब्लैक होल बन सकते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप को मिले शांति का नोबेल…पाकिस्तान के बाद दोस्त नेतन्याहू ने की बड़ी डिमांड

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इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका के दौरे पर हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को उनके लिए व्हाइट हाउस में डिनर का आयोजन किया था। इस मौके पर नेतन्याहू अपने दोस्त ट्रंप के लिए एक खास तोहफा लेकर पहुंचे। दरअसल, इजराइली पीएम ने डोनाल्ड ट्रंप को एक पत्र सौंपा, जो उनकी सरकार की ओर से नोबेल पुरस्कार समिति को भेजा गया है। इस पत्र में डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्रयासों को बताते हुए उनको नोबेल पीस प्राइज देने की सिफारिश की गई है।

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गाजा में संघर्ष विराम की कोशिशों के बीच इस्राइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में डिनर पर मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने ट्रंप को बताया कि उन्होंने नोबेल पुरस्कार के लिए ट्रंप को नामित करने की सिफारिश की थी। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार समिति को भेजा गया वही पत्र ट्रंप को भेंट भी किया।

ट्रंप को बताया नोबेल प्राइज का हकदार

इजराइल के पीएम नेतन्याहू ने कहा कि मैं आपको नोबेल पुरस्कार समिति को भेजा गया पत्र दिखाना चाहता हूं। इसमें आपको शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है, जिसके आप हकदार हैं। इस पर ट्रंप ने नेतन्याहू को धन्यवाद दिया। ट्रंप ने कहा- मुझे इस बारे में नहीं पता था, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यह बहुत सार्थक है।

पाकिस्तान भी कर चुका है ट्रंप के लिए नोबेल प्राइज की मांग

बता दें कि इस साल जनवरी में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद बेंजामिन नेतन्याहू की अमेरिका की यह तीसरी यात्रा है। नेतन्याहू की इस यात्रा का मकसद गाजा में सीजफायर पर चर्चा करना है। इससे पहले पाकिस्तान की ओर से भी ट्रंप को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की बात की गई थी। मुनीर ने हाल ही में अमेरिका के दौरे के बाद ट्रंप के लिए नोबेल की मांग उठाई थी।

फिर भारत-पाक संघर्ष विराम का श्रेय लेने की कोशिश

इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम का श्रेय लेते दिखे। नेतन्याहू से उन्होंने कहा कि हमने बहुत सी लड़ाइयां रोकी हैं, इनमें सबसे बड़ी लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच थी। हमने व्यापार के मुद्दे पर इसे रोका है। हम भारत और पाकिस्तान के साथ काम कर रहे हैं। हमने कहा था कि अगर आप लड़ने वाले हैं तो हम आपके साथ बिल्कुल भी काम नहीं करेंगे। वे शायद परमाणु स्तर पर जाकर जंग लड़ना चाहते थे। इसे रोकना वाकई महत्वपूर्ण था।

ट्रंप को नोबेल नामांकन पर पाकिस्तान में ही घिरी शहबाज सरकार, जानें पूरा मामला

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने के फैसले के बाद पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार अपने ही लोगों के निशाने पर आ गई है। पाकिस्तान के कुछ नेताओं और प्रमुख हस्तियों ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमले के बाद सरकार से 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कह रहे हैं।

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पाकिस्तान सरकार ने शुक्रवार को अचानक घोषणा की थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव कम करने में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को देखते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया जाएगा। इसके लिए उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने नॉर्वे में नोबेल कमेटी को सिफारिश पत्र भी भेज दिया। 

ट्रंप के लिए इस सिफारिश के कुछ घंटों बाद ही अमेरिका ने ईरान के तीन अहम परमाणु ठिकानों पर हमला बोल दिया, जिसके बाद पाकिस्तान में सरकार की कड़ी आलोचना शुरू हो गई। देश के कुछ प्रमुख राजनेताओं ने सरकार से नवीनतम घटनाक्रम के मद्देनजर अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। 

शहबाज सरकार से फैसला वापस लेने की मांग

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) के प्रमुख वरिष्ठ नेता मौलाना फजलुर रहमान ने मांग की कि सरकार अपना फैसला वापस ले। फजल ने रविवार को मरी में पार्टी की एक बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप का शांति का दावा झूठा साबित हुआ है। नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्ताव वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप की हाल में पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ बैठक और दोनों के साथ में भोजन करने से ‘पाकिस्तानी शासकों को इतनी खुशी हुई’ कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने की सिफारिश कर दी।

‘अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा’

फजल ने सवाल किया, ट्रंप ने फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और ईरान पर इजराइल के हमलों का समर्थन किया है। यह शांति का संकेत कैसे हो सकता है?' उन्होंने कहा, जब अमेरिका के हाथों पर अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा हो, तो वह शांति का समर्थक होने का दावा कैसे कर सकता है?'

ट्रंप कोई शांति दूत नहीं- पूर्व सांसद

पूर्व सांसद मुशाहिद हुसैन ने ट्रंप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ट्रंप अब कोई 'शांति दूत' नहीं, बल्कि 'युद्ध का समर्थक' बन चुके हैं। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से नोबेल की सिफारिश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि ट्रंप ने खुद को इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और युद्ध लॉबी के चंगुल में फंसा लिया है।

पाकिस्तान आर्मी चीफ ने ट्रंप के लिए मांगा नोबेल पुरस्कार, व्हाइट हाउस में लंच से पहले सीजफायर पर भी की बात

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक उच्च-स्तरीय कूटनीतिक कदम के तहत बुधवार को व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असिम मुनीर के साथ एक बंद दरवाजे के लंच का आयोजन किया। मुनीर और ट्रंप के लंच पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर थी। भारत में सवाल उठ रहे थे कि ट्रंप जिनका हमारे साथ अच्छा संबंध है, आखिर वह दुश्मन देश के सेना प्रमुख को इतनी तवज्जो क्यों दे रहे हैं। इसके पीछे की वजह पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग की है। उन्होंने यह पुरस्कार भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने में ट्रंप की भूमिका के लिए मांगा।

व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एना केली ने कहा कि ट्रंप, मुनीर की मेजबानी करेंगे क्योंकि मुनीर ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग की है। केली ने कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध को रोकने के लिए राष्ट्रपति को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने का आह्वान किया है।

ट्रंप ने मुनीर को कहा शुक्रिया

वहीं, ट्रंप ने मुनीर को इसके लिए शुक्रिया कहा। उन्होंने कहा- मुझे पाकिस्तान से प्यार है। ट्रंप ने कहा- मुनीर से मिलकर सम्मानित महसूस हुआ। उन्होंने भारत के साथ युद्ध रोकने में अहम भूमिका निभाई।

ट्रंप ने अपने दावे को फिर दोहराया

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को एक बार फिर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाया है। ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत में मोदी को एक शानदार व्यक्ति' बताया और कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने बुधवार को कहा, 'मैंने युद्ध रुकवाया है... मैं पाकिस्तान को पसंद करता हूं। मुझे लगता है कि मोदी एक शानदार इंसान हैं। मैंने कल रात उनसे बात की। हम भारत के मोदी के साथ व्यापार समझौता करने जा रहे हैं, लेकिन मैंने पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध रुकवा दिया है।

पीएम मोदी की ट्रंप दो टूक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बातचीत करने के कुछ घंटे बाद ही ट्रंप ने अपने दावे को दोहराया। इससे पहले पीएम मोदी ने फोन पर बातचीत के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारतीय सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर' को पाकिस्तान के अनुरोध के बाद रोका गया था। इसमें अमेरिकी मध्यस्थता या व्यापार सौदे की पेशकश जैसी कोई वजह नहीं थी। यही नहीं पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के निमंत्रण को भी ठुकरा दिया और कहा कि कनाडा से लौटते समय उनका वाशिंगटन में रुकना संभव नहीं है।

अर्थशास्त्र के नोबेल का हुआ ऐलान, जानें किसे और क्यों मिला ये पुरस्कार

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रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने अर्थिक क्षेत्र में योगदान के लिए 2024 के नोबेल पुरस्कार का एलान कर दिया है। आर्थिक विज्ञान के क्षेत्र में अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिया जाने वाला स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार डारोन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन को दिया गया है। उन्हें यह पुरस्कार इस बात पर रिसर्च के लिए मिला है कि संस्थान कैसे बनते हैं और लोगों की खुशहाली को कैसे प्रभावित करते हैं। उनकी रिसर्च बताती है कि मजबूत और निष्पक्ष संस्थान जैसे-अच्छी सरकारें और कानून व्यवस्था लोगों की जिंदगी पर सकारात्मक असर डालते हैं।

रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ साइंसेज की नोबेल समिति ने कहा कि तीनों अर्थशास्त्रियों ने ‘किसी देश की समृद्धि के लिए सामाजिक संस्थाओं के महत्व को प्रदर्शित किया है।’ समिति ने कहा, ‘‘कानून के खराब शासन वाले समाज और आबादी का शोषण करने वाली संस्थाएं वृद्धि या बेहतर बदलाव नहीं लाती हैं। पुरस्कार विजेताओं के शोध से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ऐसा क्यों होता है।'’

नोबेल पुरस्कार समिति ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्‍स पर एक पोस्ट में बताया कि संस्थाओं के गठन और परिवर्तन की परिस्थितियों को समझाने के लिए पुरस्कार विजेताओं का मॉडल तीन फैक्‍टरों पर आधारित है। पहला है संसाधनों के बंटवारे और समाज में निर्णय लेने की शक्ति (अभिजात वर्ग या जनता) को लेकर संघर्ष।सम‍ित‍ि ने आगे बताया, 'दूसरा यह है कि जनता को कभी-कभी सत्ता का इस्तेमाल करने का अवसर मिलता है। वे संगठित होकर और शासक वर्ग को धमकी देकर ऐसा कर सकते हैं। इसलिए समाज में सत्ता केवल निर्णय लेने की शक्ति से कहीं अधिक है। तीसरा है प्रतिबद्धता की समस्या, जिसका मतलब है कि अभिजात वर्ग के पास जनता को निर्णय लेने की शक्ति सौंपने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।'

कौन हैं ये तीनों इकोनॉमिस्ट?

डारोन ऐसमोग्लू, अर्मेनियाई मूल के तुर्की-अमेरिकी अर्थशास्त्री हैं, जो मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में पढ़ाते हैं। वे वहां अर्थशास्त्र के एलिजाबेथ और जेम्स किलियन प्रोफेसर हैं। 1993 से MIT से जुड़े ऐसमोग्लू ने अपने शोध कार्य में राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं के प्रभाव को समझने का प्रयास किया है। उनका काम यह दर्शाता है कि कैसे संस्थाएं विकास और समृद्धि को प्रभावित करती हैं। उनके अलावा, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन भी अर्थशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विद्वान हैं, जिन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था की जटिलताओं को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2023 में इन्हें मिला था ये पुरस्कार

पिछले वर्ष 2023 में यह पुरस्कार क्लाउडिया गोल्डिन को प्रदान किया गया था, जिन्होंने महिलाओं के श्रम बाजार में स्थिति को समझने में महत्वपूर्ण शोध किया। गोल्डिन के शोध ने दिखाया कि कैसे महिलाओं की कमाई और श्रम में भागीदारी में लिंग अंतर समय के साथ बदला है। उनके काम ने महिलाओं की आर्थिक स्थिति के प्रति जागरूकता बढ़ाई और समाज में परिवर्तन के लिए प्रेरित किया।

नोबेल पुरस्‍कार का इतिहास

यह पुरस्कार आधिकारिक तौर पर 'एल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में बैंक ऑफ स्वीडन पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है। केंद्रीय बैंक ने इसे 19वीं सदी के स्वीडिश व्यवसायी और रसायनज्ञ नोबेल की याद में स्थापित किया था। नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया था और पांच नोबेल पुरस्कारों की स्थापना की थी। रैग्नर फ्रिश और जान टिनबर्गेन को 1969 में इसका पहला विजेता घोषित किया गया था।

हालांकि, नोबेल के शुद्धतावादी इस बात पर जोर देते हैं कि अर्थशास्त्र पुरस्कार तकनीकी रूप से नोबेल पुरस्कार नहीं है। लेकिन, इसे हमेशा अन्य पुरस्कारों के साथ 10 दिसंबर को नोबेल की पुण्यतिथि पर दिया जाता है।

जापानी परमाणु बम से बचे लोगों के सम्मान में निहोन हिडांक्यो को मिला 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार

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AFP

नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम विस्फोटों के बचे लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले जापानी संगठन निहोन हिडांक्यो को 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया है। समूह को परमाणु मुक्त दुनिया की वकालत करने और परमाणु युद्ध की भयावहता पर अपनी शक्तिशाली गवाही के लिए सम्मानित किया गया।

1956 में गठित, निहोन हिडांक्यो जापान में परमाणु बम से बचे लोगों का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली संगठन है। इसका मिशन परमाणु हथियारों के विनाशकारी मानवीय परिणामों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना रहा है। अगस्त 1945 में अपने द्वारा अनुभव की गई तबाही की अपनी व्यक्तिगत कहानियों को साझा करके, हिबाकुशा - हिरोशिमा और नागासाकी के बचे लोगों - ने अंतरराष्ट्रीय "परमाणु निषेध" को आकार देने में मदद की है, जो परमाणु हथियारों के उपयोग को नैतिक रूप से अस्वीकार्य बताते हुए एक शक्तिशाली मानदंड है।

नोबेल समिति ने परमाणु हथियारों के खिलाफ वैश्विक विरोध को उत्पन्न करने और शांति बनाए रखने के उनके अथक प्रयासों के लिए निहोन हिडांक्यो की प्रशंसा की, यह देखते हुए कि उनकी गवाही ने ऐसे हथियारों के कारण होने वाले अकल्पनीय दर्द और पीड़ा की एक अनूठी, प्रत्यक्ष समझ प्रदान की है। समिति ने अपनी घोषणा में कहा, "हिबाकुशा हमें अवर्णनीय का वर्णन करने, अकल्पनीय के बारे में सोचने में मदद करता है।" बमबारी के लगभग 80 साल बीत जाने के बावजूद, परमाणु हथियार वैश्विक खतरा बने हुए हैं। यह पुरस्कार वैश्विक शांति के लिए बढ़ते खतरों की भी याद दिलाता है। समिति ने कहा कि परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण किया जा रहा है, और नए खतरों के सामने आने के कारण उनके उपयोग के खिलाफ मानदंड दबाव में हैं। 

रूस के आक्रमण से शुरू हुआ यूक्रेन में युद्ध अपने तीसरे वर्ष में भी जारी है, जिसमें बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है। गाजा में, अक्टूबर 2023 में शुरू हुआ संघर्ष पहले ही 42,000 से अधिक लोगों की जान ले चुका है, और पूरे क्षेत्र में हिंसा बढ़ रही है। सूडान भी 17 महीने से चल रहे घातक युद्ध से जूझ रहा है, जिसने लाखों लोगों को विस्थापित किया है। "मानव इतिहास के इस क्षण में, हमें खुद को याद दिलाना चाहिए कि परमाणु हथियार क्या हैं: दुनिया ने अब तक के सबसे विनाशकारी हथियार देखे हैं," बयान में कहा गया।

अगले साल हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के 80 साल पूरे हो जाएँगे, जिसमें अनुमानित 120,000 लोग तुरंत मारे गए थे, और उसके बाद के वर्षों में हज़ारों लोग चोटों और विकिरण के संपर्क में आने से मर गए। गवाहों के बयानों, सार्वजनिक अपीलों और संयुक्त राष्ट्र में वार्षिक प्रतिनिधिमंडलों के माध्यम से बताई गई हिबाकुशा की कहानियों ने परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

समिति ने कहा, "इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार निहोन हिडांक्यो को देकर, नॉर्वेजियन नोबेल समिति उन सभी बचे लोगों को सम्मानित करना चाहती है, जिन्होंने शारीरिक पीड़ा और दर्दनाक यादों के बावजूद, शांति के लिए आशा और जुड़ाव पैदा करने के लिए अपने महंगे अनुभव का उपयोग करना चुना है।"

6 और 9 अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के शहरों में 2 एटॉमिक बम गिराए थे, जिसके कारण जापान में बहुत से लोगों ने अपनी जान गावाई और आजतक उसके परिणाम भुगत रहे हैं। हलाकि अमेरिका का यह प्रतिशोध भले तत्काल में पूरा हुआ होगा लकिन जापान के लोगों ने खुद को इस क्षति से बहुत अद्भुत रूप से निकाला है और विश्व में खुद को एक आधुनिक शक्ति के रूप में उभर के आया है। 

अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार की घोषणा, जोएल मोकिर, फिलिप अघियन व पीटर हॉविट को सम्मान

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अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में 2025 का स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार यानी अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार का एलान कर दिया है।इस साल यह पुरस्कार जोएल मोकिर, फिलिप अघियन और पीटर हॉविट को संयुक्त रूप से दिया गया है। “इनोवेशन पर आधारित आर्थिक विकास की व्याख्या” के लिए ये पुरस्कार प्रदान किया गया है।

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पुरस्कार का आधा हिस्सा मोकिर को "तकनीकी प्रगति के माध्यम से सतत विकास के लिए आवश्यक शर्तों की पहचान करने के लिए" और शेष आधा हिस्सा अघियन और हॉविट को "रचनात्मक विनाश के माध्यम से सतत विकास के सिद्धांत के लिए" संयुक्त रूप से दिया जाएगा।

नोबेल समिति ने क्या कहा?

नोबेल समिति ने बताया कि मोकिर ने यह प्रदर्शित किया कि यदि नवाचारों को एक स्व-उत्पादक प्रक्रिया में एक-दूसरे का उत्तराधिकारी बनाना है, तो हमें न केवल यह जानना होगा कि कोई चीज कैसे काम करती है, बल्कि हमें यह भी जानना होगा कि ऐसा क्यों होता है। अघियन और हॉविट ने सतत विकास के पीछे के तंत्र का भी अध्ययन किया। इसमें 1992 का एक लेख भी शामिल है, जिसमें उन्होंने रचनात्मक विनाश नामक गणितीय मॉडल का निर्माण किया। इसमें बताया गया कि जब एक नया और बेहतर उत्पाद बाजार में प्रवेश करता है, तो पुराने उत्पाद बेचने वाली कंपनियां नुकसान में आ जाती हैं।

अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता कहां से?

जोएल मोकिर अमेरिका के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं। वहीं, फिलिप अघियन फ्रांस के कॉलेज डी फ्रांस और INSEAD और ब्रिटेन के द लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से ताल्लुक रखते हैं। पीटर हॉविट अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी से संबंध रखते हैं।

पिछले साल किसे मिला अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार

पिछले साल का पुरस्कार तीन अर्थशास्त्रियों डेरॉन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन - को दिया गया था। इन अर्थशास्त्रियों ने इस बात का अध्ययन किया था कि कुछ देश अमीर क्यों हैं और दूसरे गरीब क्यों। उन्होंने यह प्रमाणित किया था कि अधिक स्वतंत्र और खुले समाज के समृद्ध होने की संभावना अधिक होती है। पिछले सप्ताह मेडिसिन, फिजिक्स, केमिस्ट्री, साहित्य और शांति के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई थी।

Rising infrastructure and tech growth set to pave way for logistics and warehousing demands in Bengaluru.

As India’s leading logistics and technology hub, Bengaluru with its enhanced connectivity through the Kuehne + Nagel air logistics gateway, Namma Metro Yellow Line, and emerging tech developments like Quantum City offers the ideal backdrop for innovation. Against this backdrop, the city is set to host Intralogistics & Warehousing Expo 2025 from 6–8 November 2025 at KTPO, Whitefield. Co-located with Material Handling Expo and E-Commerce Logistics Expo, the expo will bring together global and Indian leaders in automation, warehousing, logistics, and supply chain management to explore innovations shaping the industry’s future.

Visitors will experience live demonstrations of warehouse automation, AIDC (automatic identification and data capture), material handling equipment, and infrastructure solutions, alongside exhibits from 165+ companies representing 225+ brands and showcasing over 1200 advanced technologies. The expo will also provide networking opportunities with 10,000+ industry professionals from manufacturing, retail, e-commerce, FMCG, and pharmaceutical sectors, while the co-located E-Commerce Logistics Conference will feature thought leaders discussing the future of digital logistics and supply chain efficiency.

Featured Exhibitors Include:

Gandhi Automations, SOTI, ACE (Action Construction Equipment), Cloudleap, Epack, MHE Bazar, AAVON Steels Manufacturing, Avains, Central Warehousing Corporation, Nilkamal Material Handling, Sany Heavy Industry, Saint-Gobain India, Mutual Industries, Indo.S.Technologies, Kohinoor Business Park, Path Logicity, RR Industrial Packaging, Sahay Racks, Swastik Industries International among many others.

Distinguished Speakers Representing:

BigBasket, Reliance Retail, IKEA, Swiggy Instamart, Carl Zeiss, Zepto, Cargill, Bata India, SNITCH, Britannia Industries, Raymond Lifestyle, Country Delight, Fossil Group, Flipkart, Mondelez India Foods, Jockey India, AkzoNobel, FreshToHome, Diageo India, Himalayan Natives, Spykar Lifestyles, ABB, River Mobility, Kearney, Casa Grande, C.R. Narayana Rao, AESA, and several other esteemed organizations.

Industry Endorsements

"The Intralogistics & Warehousing Expo is a must-attend event for freight forwarders, offering a unique opportunity to explore innovative solutions that drive operational efficiency and business growth. We encourage all industry professionals to attend, experience the latest technologies firsthand, and build valuable networks" – Pramod Sant, Federation of Freight Forwarders’ Associations of India (FFFAI)

"For warehousing developers and supply chain professionals, this expo serves as the perfect platform to discover advanced automation, storage solutions, and smart logistics technologies. Attendees can gain practical insights, connect with leading solution providers, and stay ahead of emerging industry trends" – Amit Mittal, Association of Warehousing Developers (AWD)

Attending Intralogistics & Warehousing Expo offers access to India’s leading platform for automation, robotics, material handling, and supply chain technologies. Co-located with the Material Handling and E-Commerce Logistics Expos, the event provides a comprehensive overview of the logistics and warehousing landscape, bringing together leading solution providers and key industry decision-makers under one roof.

मारिया कोरिना मचाडो को मिला नोबेल शांति पुरस्‍कार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सपना चकनाचूर

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वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो अब 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार जीत लिया है। इसी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस पुरस्कार से चूक गए हैं। नोबेल समिति ने ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए लोकतंत्र और मानवाधिकार के लिए लगातार संघर्ष करती युवा नेता को नोबेल शांति पुरस्‍कार के लिए चुना।

इस पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबेल समिति की अध्यक्ष ने मचाडो की शांति की एक साहसी और प्रतिबद्ध समर्थक के रूप में सराहना की। नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने कहा कि यह सम्मान उन्हें वेनेज़ुएला के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उनके “अथक संघर्ष” और देश को तानाशाही से लोकतंत्र की ओर ले जाने के प्रयासों के लिए दिया गया है। मचाडो ने विपरीत परिस्थितियों में भी लोकतंत्र की ज्योति जलाए रखी और निरंकुश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष जारी रखा। समिति ने उन्हें लैटिन अमेरिका में “नागरिक साहस की असाधारण मिसाल” बताया है।

वेनेजुएला की 'आयरन लेडी' मचाडो

आयरन लेडी के नाम से भी मशहूर मचाडो का नाम टाइम पत्रिका की '2025 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों' की सूची में शामिल है। लेकिन कोरिना मचाडो फिलहाल किसी अज्ञात स्थान पर छिपी हुई हैं। पिछले साल वेनेजुएला में हुए चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने व्यापक रूप से धांधली की थी। जिसका मारिया कोरिना मचाडो ने जमकर विरोध किया था। उसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है।

डोनाल्ड ट्रंप को बहुत बड़ा झटका

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप बार बार नोबेल पुरस्कार के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। डोनाल्ड ट्रंप के लिए ये बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि नोबेल पुरस्कार के लिए उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में क्या नहीं किया है, उन्होंने हर युद्ध में खुद को शांति करवाने वाला मसीहा बताया है। वो 'सात युद्ध' में शांति करवाने का दावा करते आ रहे थे। लेकिन उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी शांति करवाने के लिए मध्यस्थता करने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि पाकिस्तान ने उनकी भावना को स्वीकार करते हुए उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था। पाकिस्तान के अलावा इजरायल ने भी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिल पाया।

केमिस्ट्री के नोबेल पुरस्कार का ऐलान, जापान-ऑस्ट्रेलिया और यूएस के वैज्ञानिकों को मिला सम्मान

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रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो गया है। इस साल जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों को रसायन विज्ञान का नोबेल देने का ऐलान हुआ है। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन और उमर एम. याघी को पुरस्कार देने का फैसला किया है। यह पुरस्कार इन वैज्ञानिकों को डेवलपमेंट ऑफ मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क के लिए दिया गया है।

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने क्या कहा?

द रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि इन तीनों वैज्ञानिकों ने एक नए तरह के मौलिक्यूलर आर्किटेक्टर को विकसित किया है। इनकी बनाई गई संरचनाओं, जिन्हें मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स कहा जाता है, में बड़े-बड़े खोखले स्थान होते हैं, जिनमें मॉलिक्यूल्स आसानी से अंदर-बाहर आ और जा सकते हैं। शोधकर्ता इन फ्रेमवर्क्स का इस्तेमाल रेगिस्तानी हवा से पानी निकालने, पानी से गंदगी हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने और हाइड्रोजन स्टोर करने जैसे उपयोगों में कर रहे हैं। मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स के विकास के जरिए इन वैज्ञानिकों ने रसासन विज्ञान के क्षेत्र में कई नई संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं।

पिछले साल केमिस्ट्री इन्हें मिला था नोबेल पुरस्कार

पिछले साल 2024 में केमिस्ट्री में प्रोटीन साइंस में उनके क्रांतिकारी योगदान के लिए डेविड बेकर को नोबेल पुरस्कार का आधा हिस्सा दिया गया था और डेमिस हैसाबिस और जॉन एम. जंपर को संयुक्त रूप से आधा पुरस्कार दिया गया था। जहां डेविड बेकर को कम्प्यूटेशनल प्रोटीन डिजाइन के लिए आधा नोबेल पुरस्कार जबकि डेमिस हैसाबिस और जॉन एम. जंपर को प्रोटीन संरचना की भविष्यवाणी करने के लिए संयुक्त रूप से आधा नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार का ऐलान, तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों को मिला सम्मान

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आज स्टॉकहोम में रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार घोषित कर दिया। यह पुरस्‍कार अमेरिका के तीन वैज्ञानिक- जॉन क्लार्क, मिशेल एच.डेवोरेट और जॉन एम. मार्टिनिस को मिला है। ये पुरस्कार उन्हें ‘मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और इलेक्ट्रिक सर्किट में एनर्जी क्वांटाइजेशन की खोज’ के लिए मिला है।

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार 2025 कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के जॉन क्लार्क, येल यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के मिशेल एच. डेवोरेट और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के जॉन एम. मार्टिनिस को प्रदान किया जाएगा।

इस खोज के लिए मिला नोबल

इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने एक इलेक्ट्रिकल सर्किट के साथ प्रयोग किए, जिसमें उन्होंने एक ऐसी प्रणाली में क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और क्वांटाइज्ड एनर्जी लेवल, दोनों का प्रदर्शन किया जो हाथ में पकड़ने लायक थी। ये खोज क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटर और क्वांटम सेंसर सहित क्वांटम तकनीक को और समझने में मदद करेगी। आमतौर पर क्वांटम मैकेनिक्स के नियम बहुत छोटे कणों ( इलेक्ट्रॉन) पर लागू होते हैं। इनके व्यवहार को माइक्रोस्कोपिक कहा जाता है, क्योंकि ये इतने छोटे होते हैं कि सामान्य माइक्रोस्कोप से भी दिखाई नहीं देती, लेकिन अब इन वैज्ञानिकों ने पहली बार बिजली के सर्किट में बड़े पैमाने (मैक्रोस्कोपिक) पर क्वांटम टनलिंग और ऊर्जा के स्तरों की खोज की है।

पिछले साल इन वैज्ञानिकों को मिला था पुरस्कार

पिछले साल यानी 2024 में मशीन लर्निंग में फिजिक्स के इस्तेमाल के लिए नोबेल प्राइज मिला था। जॉन जे. होपफील्ड और जेफ्री हिंटन को नोबेल से नवाजा गया था। जॉन हॉपफील्ड ने कंप्यूटर को चीजें याद रखने और पहचानने में मदद करने वाली तकनीक विकसित की थी। जिसे हॉपफील्ड नेटवर्क कहा जाता है। वहीं जेफ्री हिंटन, जिनको आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का 'गॉडफादर' भी कहा जाता है। उन्होंने बोल्ट्जमैन मशीन बनाई, जो कंप्यूटर को डेटा से खुद सीखने की क्षमता देता है।

1901 से अब तक 118 वैज्ञानिकों को फिजिक्स में नोबल

नोबेलप्राइज डॉट ओआरजी के अनुसार 1901 से अब तक 118 वैज्ञानिकों को भौतिकी पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं। इनमें सबसे कम उम्र के विजेता 25 साल के लॉरेंस ब्रैग (1915) थे तो 96 साल के आर्थर अश्किन (2018) ये सम्मान हासिल करने वाले सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक थे। पहले भारतीय जिन्हें इस श्रेणी में पुरस्कृत किया गया, वो सर सीवी रमन थे। उन्हें ये सम्मान 1930 में दिया गया। उनकी खोज ने बताया था कि जब प्रकाश किसी पदार्थ से टकराता है तो उसका रंग बदल सकता है। इसे रमन इफेक्ट कहते हैं। वहीं दूसरे भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर थे। इन्हें 1983 में तारों (स्टार्स) के जीवन और मृत्यु की खोज के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने ही बताया कि बड़े तारे अंत में ब्लैक होल बन सकते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप को मिले शांति का नोबेल…पाकिस्तान के बाद दोस्त नेतन्याहू ने की बड़ी डिमांड

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इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका के दौरे पर हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को उनके लिए व्हाइट हाउस में डिनर का आयोजन किया था। इस मौके पर नेतन्याहू अपने दोस्त ट्रंप के लिए एक खास तोहफा लेकर पहुंचे। दरअसल, इजराइली पीएम ने डोनाल्ड ट्रंप को एक पत्र सौंपा, जो उनकी सरकार की ओर से नोबेल पुरस्कार समिति को भेजा गया है। इस पत्र में डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्रयासों को बताते हुए उनको नोबेल पीस प्राइज देने की सिफारिश की गई है।

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गाजा में संघर्ष विराम की कोशिशों के बीच इस्राइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में डिनर पर मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने ट्रंप को बताया कि उन्होंने नोबेल पुरस्कार के लिए ट्रंप को नामित करने की सिफारिश की थी। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार समिति को भेजा गया वही पत्र ट्रंप को भेंट भी किया।

ट्रंप को बताया नोबेल प्राइज का हकदार

इजराइल के पीएम नेतन्याहू ने कहा कि मैं आपको नोबेल पुरस्कार समिति को भेजा गया पत्र दिखाना चाहता हूं। इसमें आपको शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है, जिसके आप हकदार हैं। इस पर ट्रंप ने नेतन्याहू को धन्यवाद दिया। ट्रंप ने कहा- मुझे इस बारे में नहीं पता था, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यह बहुत सार्थक है।

पाकिस्तान भी कर चुका है ट्रंप के लिए नोबेल प्राइज की मांग

बता दें कि इस साल जनवरी में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद बेंजामिन नेतन्याहू की अमेरिका की यह तीसरी यात्रा है। नेतन्याहू की इस यात्रा का मकसद गाजा में सीजफायर पर चर्चा करना है। इससे पहले पाकिस्तान की ओर से भी ट्रंप को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की बात की गई थी। मुनीर ने हाल ही में अमेरिका के दौरे के बाद ट्रंप के लिए नोबेल की मांग उठाई थी।

फिर भारत-पाक संघर्ष विराम का श्रेय लेने की कोशिश

इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम का श्रेय लेते दिखे। नेतन्याहू से उन्होंने कहा कि हमने बहुत सी लड़ाइयां रोकी हैं, इनमें सबसे बड़ी लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच थी। हमने व्यापार के मुद्दे पर इसे रोका है। हम भारत और पाकिस्तान के साथ काम कर रहे हैं। हमने कहा था कि अगर आप लड़ने वाले हैं तो हम आपके साथ बिल्कुल भी काम नहीं करेंगे। वे शायद परमाणु स्तर पर जाकर जंग लड़ना चाहते थे। इसे रोकना वाकई महत्वपूर्ण था।

ट्रंप को नोबेल नामांकन पर पाकिस्तान में ही घिरी शहबाज सरकार, जानें पूरा मामला

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने के फैसले के बाद पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार अपने ही लोगों के निशाने पर आ गई है। पाकिस्तान के कुछ नेताओं और प्रमुख हस्तियों ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमले के बाद सरकार से 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कह रहे हैं।

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पाकिस्तान सरकार ने शुक्रवार को अचानक घोषणा की थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव कम करने में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को देखते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया जाएगा। इसके लिए उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने नॉर्वे में नोबेल कमेटी को सिफारिश पत्र भी भेज दिया। 

ट्रंप के लिए इस सिफारिश के कुछ घंटों बाद ही अमेरिका ने ईरान के तीन अहम परमाणु ठिकानों पर हमला बोल दिया, जिसके बाद पाकिस्तान में सरकार की कड़ी आलोचना शुरू हो गई। देश के कुछ प्रमुख राजनेताओं ने सरकार से नवीनतम घटनाक्रम के मद्देनजर अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। 

शहबाज सरकार से फैसला वापस लेने की मांग

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) के प्रमुख वरिष्ठ नेता मौलाना फजलुर रहमान ने मांग की कि सरकार अपना फैसला वापस ले। फजल ने रविवार को मरी में पार्टी की एक बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप का शांति का दावा झूठा साबित हुआ है। नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्ताव वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप की हाल में पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ बैठक और दोनों के साथ में भोजन करने से ‘पाकिस्तानी शासकों को इतनी खुशी हुई’ कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने की सिफारिश कर दी।

‘अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा’

फजल ने सवाल किया, ट्रंप ने फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और ईरान पर इजराइल के हमलों का समर्थन किया है। यह शांति का संकेत कैसे हो सकता है?' उन्होंने कहा, जब अमेरिका के हाथों पर अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा हो, तो वह शांति का समर्थक होने का दावा कैसे कर सकता है?'

ट्रंप कोई शांति दूत नहीं- पूर्व सांसद

पूर्व सांसद मुशाहिद हुसैन ने ट्रंप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ट्रंप अब कोई 'शांति दूत' नहीं, बल्कि 'युद्ध का समर्थक' बन चुके हैं। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से नोबेल की सिफारिश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि ट्रंप ने खुद को इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और युद्ध लॉबी के चंगुल में फंसा लिया है।

पाकिस्तान आर्मी चीफ ने ट्रंप के लिए मांगा नोबेल पुरस्कार, व्हाइट हाउस में लंच से पहले सीजफायर पर भी की बात

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक उच्च-स्तरीय कूटनीतिक कदम के तहत बुधवार को व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असिम मुनीर के साथ एक बंद दरवाजे के लंच का आयोजन किया। मुनीर और ट्रंप के लंच पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर थी। भारत में सवाल उठ रहे थे कि ट्रंप जिनका हमारे साथ अच्छा संबंध है, आखिर वह दुश्मन देश के सेना प्रमुख को इतनी तवज्जो क्यों दे रहे हैं। इसके पीछे की वजह पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग की है। उन्होंने यह पुरस्कार भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने में ट्रंप की भूमिका के लिए मांगा।

व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एना केली ने कहा कि ट्रंप, मुनीर की मेजबानी करेंगे क्योंकि मुनीर ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग की है। केली ने कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध को रोकने के लिए राष्ट्रपति को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने का आह्वान किया है।

ट्रंप ने मुनीर को कहा शुक्रिया

वहीं, ट्रंप ने मुनीर को इसके लिए शुक्रिया कहा। उन्होंने कहा- मुझे पाकिस्तान से प्यार है। ट्रंप ने कहा- मुनीर से मिलकर सम्मानित महसूस हुआ। उन्होंने भारत के साथ युद्ध रोकने में अहम भूमिका निभाई।

ट्रंप ने अपने दावे को फिर दोहराया

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को एक बार फिर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाया है। ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत में मोदी को एक शानदार व्यक्ति' बताया और कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने बुधवार को कहा, 'मैंने युद्ध रुकवाया है... मैं पाकिस्तान को पसंद करता हूं। मुझे लगता है कि मोदी एक शानदार इंसान हैं। मैंने कल रात उनसे बात की। हम भारत के मोदी के साथ व्यापार समझौता करने जा रहे हैं, लेकिन मैंने पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध रुकवा दिया है।

पीएम मोदी की ट्रंप दो टूक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बातचीत करने के कुछ घंटे बाद ही ट्रंप ने अपने दावे को दोहराया। इससे पहले पीएम मोदी ने फोन पर बातचीत के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारतीय सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर' को पाकिस्तान के अनुरोध के बाद रोका गया था। इसमें अमेरिकी मध्यस्थता या व्यापार सौदे की पेशकश जैसी कोई वजह नहीं थी। यही नहीं पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के निमंत्रण को भी ठुकरा दिया और कहा कि कनाडा से लौटते समय उनका वाशिंगटन में रुकना संभव नहीं है।

अर्थशास्त्र के नोबेल का हुआ ऐलान, जानें किसे और क्यों मिला ये पुरस्कार

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रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने अर्थिक क्षेत्र में योगदान के लिए 2024 के नोबेल पुरस्कार का एलान कर दिया है। आर्थिक विज्ञान के क्षेत्र में अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिया जाने वाला स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार डारोन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन को दिया गया है। उन्हें यह पुरस्कार इस बात पर रिसर्च के लिए मिला है कि संस्थान कैसे बनते हैं और लोगों की खुशहाली को कैसे प्रभावित करते हैं। उनकी रिसर्च बताती है कि मजबूत और निष्पक्ष संस्थान जैसे-अच्छी सरकारें और कानून व्यवस्था लोगों की जिंदगी पर सकारात्मक असर डालते हैं।

रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ साइंसेज की नोबेल समिति ने कहा कि तीनों अर्थशास्त्रियों ने ‘किसी देश की समृद्धि के लिए सामाजिक संस्थाओं के महत्व को प्रदर्शित किया है।’ समिति ने कहा, ‘‘कानून के खराब शासन वाले समाज और आबादी का शोषण करने वाली संस्थाएं वृद्धि या बेहतर बदलाव नहीं लाती हैं। पुरस्कार विजेताओं के शोध से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ऐसा क्यों होता है।'’

नोबेल पुरस्कार समिति ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्‍स पर एक पोस्ट में बताया कि संस्थाओं के गठन और परिवर्तन की परिस्थितियों को समझाने के लिए पुरस्कार विजेताओं का मॉडल तीन फैक्‍टरों पर आधारित है। पहला है संसाधनों के बंटवारे और समाज में निर्णय लेने की शक्ति (अभिजात वर्ग या जनता) को लेकर संघर्ष।सम‍ित‍ि ने आगे बताया, 'दूसरा यह है कि जनता को कभी-कभी सत्ता का इस्तेमाल करने का अवसर मिलता है। वे संगठित होकर और शासक वर्ग को धमकी देकर ऐसा कर सकते हैं। इसलिए समाज में सत्ता केवल निर्णय लेने की शक्ति से कहीं अधिक है। तीसरा है प्रतिबद्धता की समस्या, जिसका मतलब है कि अभिजात वर्ग के पास जनता को निर्णय लेने की शक्ति सौंपने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।'

कौन हैं ये तीनों इकोनॉमिस्ट?

डारोन ऐसमोग्लू, अर्मेनियाई मूल के तुर्की-अमेरिकी अर्थशास्त्री हैं, जो मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में पढ़ाते हैं। वे वहां अर्थशास्त्र के एलिजाबेथ और जेम्स किलियन प्रोफेसर हैं। 1993 से MIT से जुड़े ऐसमोग्लू ने अपने शोध कार्य में राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं के प्रभाव को समझने का प्रयास किया है। उनका काम यह दर्शाता है कि कैसे संस्थाएं विकास और समृद्धि को प्रभावित करती हैं। उनके अलावा, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन भी अर्थशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विद्वान हैं, जिन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था की जटिलताओं को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2023 में इन्हें मिला था ये पुरस्कार

पिछले वर्ष 2023 में यह पुरस्कार क्लाउडिया गोल्डिन को प्रदान किया गया था, जिन्होंने महिलाओं के श्रम बाजार में स्थिति को समझने में महत्वपूर्ण शोध किया। गोल्डिन के शोध ने दिखाया कि कैसे महिलाओं की कमाई और श्रम में भागीदारी में लिंग अंतर समय के साथ बदला है। उनके काम ने महिलाओं की आर्थिक स्थिति के प्रति जागरूकता बढ़ाई और समाज में परिवर्तन के लिए प्रेरित किया।

नोबेल पुरस्‍कार का इतिहास

यह पुरस्कार आधिकारिक तौर पर 'एल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में आर्थिक विज्ञान में बैंक ऑफ स्वीडन पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है। केंद्रीय बैंक ने इसे 19वीं सदी के स्वीडिश व्यवसायी और रसायनज्ञ नोबेल की याद में स्थापित किया था। नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया था और पांच नोबेल पुरस्कारों की स्थापना की थी। रैग्नर फ्रिश और जान टिनबर्गेन को 1969 में इसका पहला विजेता घोषित किया गया था।

हालांकि, नोबेल के शुद्धतावादी इस बात पर जोर देते हैं कि अर्थशास्त्र पुरस्कार तकनीकी रूप से नोबेल पुरस्कार नहीं है। लेकिन, इसे हमेशा अन्य पुरस्कारों के साथ 10 दिसंबर को नोबेल की पुण्यतिथि पर दिया जाता है।

जापानी परमाणु बम से बचे लोगों के सम्मान में निहोन हिडांक्यो को मिला 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार

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AFP

नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम विस्फोटों के बचे लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले जापानी संगठन निहोन हिडांक्यो को 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया है। समूह को परमाणु मुक्त दुनिया की वकालत करने और परमाणु युद्ध की भयावहता पर अपनी शक्तिशाली गवाही के लिए सम्मानित किया गया।

1956 में गठित, निहोन हिडांक्यो जापान में परमाणु बम से बचे लोगों का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली संगठन है। इसका मिशन परमाणु हथियारों के विनाशकारी मानवीय परिणामों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना रहा है। अगस्त 1945 में अपने द्वारा अनुभव की गई तबाही की अपनी व्यक्तिगत कहानियों को साझा करके, हिबाकुशा - हिरोशिमा और नागासाकी के बचे लोगों - ने अंतरराष्ट्रीय "परमाणु निषेध" को आकार देने में मदद की है, जो परमाणु हथियारों के उपयोग को नैतिक रूप से अस्वीकार्य बताते हुए एक शक्तिशाली मानदंड है।

नोबेल समिति ने परमाणु हथियारों के खिलाफ वैश्विक विरोध को उत्पन्न करने और शांति बनाए रखने के उनके अथक प्रयासों के लिए निहोन हिडांक्यो की प्रशंसा की, यह देखते हुए कि उनकी गवाही ने ऐसे हथियारों के कारण होने वाले अकल्पनीय दर्द और पीड़ा की एक अनूठी, प्रत्यक्ष समझ प्रदान की है। समिति ने अपनी घोषणा में कहा, "हिबाकुशा हमें अवर्णनीय का वर्णन करने, अकल्पनीय के बारे में सोचने में मदद करता है।" बमबारी के लगभग 80 साल बीत जाने के बावजूद, परमाणु हथियार वैश्विक खतरा बने हुए हैं। यह पुरस्कार वैश्विक शांति के लिए बढ़ते खतरों की भी याद दिलाता है। समिति ने कहा कि परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण किया जा रहा है, और नए खतरों के सामने आने के कारण उनके उपयोग के खिलाफ मानदंड दबाव में हैं। 

रूस के आक्रमण से शुरू हुआ यूक्रेन में युद्ध अपने तीसरे वर्ष में भी जारी है, जिसमें बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है। गाजा में, अक्टूबर 2023 में शुरू हुआ संघर्ष पहले ही 42,000 से अधिक लोगों की जान ले चुका है, और पूरे क्षेत्र में हिंसा बढ़ रही है। सूडान भी 17 महीने से चल रहे घातक युद्ध से जूझ रहा है, जिसने लाखों लोगों को विस्थापित किया है। "मानव इतिहास के इस क्षण में, हमें खुद को याद दिलाना चाहिए कि परमाणु हथियार क्या हैं: दुनिया ने अब तक के सबसे विनाशकारी हथियार देखे हैं," बयान में कहा गया।

अगले साल हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के 80 साल पूरे हो जाएँगे, जिसमें अनुमानित 120,000 लोग तुरंत मारे गए थे, और उसके बाद के वर्षों में हज़ारों लोग चोटों और विकिरण के संपर्क में आने से मर गए। गवाहों के बयानों, सार्वजनिक अपीलों और संयुक्त राष्ट्र में वार्षिक प्रतिनिधिमंडलों के माध्यम से बताई गई हिबाकुशा की कहानियों ने परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

समिति ने कहा, "इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार निहोन हिडांक्यो को देकर, नॉर्वेजियन नोबेल समिति उन सभी बचे लोगों को सम्मानित करना चाहती है, जिन्होंने शारीरिक पीड़ा और दर्दनाक यादों के बावजूद, शांति के लिए आशा और जुड़ाव पैदा करने के लिए अपने महंगे अनुभव का उपयोग करना चुना है।"

6 और 9 अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के शहरों में 2 एटॉमिक बम गिराए थे, जिसके कारण जापान में बहुत से लोगों ने अपनी जान गावाई और आजतक उसके परिणाम भुगत रहे हैं। हलाकि अमेरिका का यह प्रतिशोध भले तत्काल में पूरा हुआ होगा लकिन जापान के लोगों ने खुद को इस क्षति से बहुत अद्भुत रूप से निकाला है और विश्व में खुद को एक आधुनिक शक्ति के रूप में उभर के आया है।