धर्म और चर्च बचाने के लिए ज्यादा बच्चे पैदा करें, मिजोरम में चर्च की सलाह

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देश में कहीं परिसीमन के बाद प्रतिनिधित्व घटने खौफ में लोगों को जनसंख्या बढ़ाने की सलाह दी जा रही हो तो कहीं धर्म को बचान के लिए। अभी हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने राज्य के नव-विवाहित जोड़ों से अपील की है कि वे जल्द से जल्द बच्चे पैदा करें। द्रमुक के एक कार्यकर्ता के विवाह समारोह में भाग लेने गए स्टालिन ने कहा, पहले हम कहते थे कि आप आराम से बच्चे पैदा करें परन्तु अब हालात बदल गए हैं और अब हमें कहना चाहिए कि तुरन्त बच्चे पैदा करें। इधर, मिजोरम में दूसरा सबसे बड़ा चर्च बैप्टिस्ट चर्च ऑफ मिजोरम (बीसीएम) ने बच्चों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया है।

बीसीएम ने गिरती जनसंख्या को देखते हुए 'बेबी बूम' यानी ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है। यह अपील 129वीं सभा में चर्च के विवाहित सदस्यों से की गई, ताकि धर्म की रक्षा की जा सके। बीसीएम ने लोगों को इस मुद्दे के प्रति जागरूक करने और ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करने का फैसला किया है, ताकि मिजो समुदाय का अस्तित्व और पहचान बनी रहे।

असेंबली के सदस्यों ने एक अजेंडा पास किया और सदस्यों ने कहा, अगर मिजोरम की आबादी घटती रही तो यह बहुत बड़ी मुसीबत होगी। इससे समाज, राज्य, धर्म और चर्च, सबको नुकसान होगा। हमें आबादी बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक करना होगा।

इससे पहले मिज़ोरम प्रेस्बिटेरियन चर्च ने भी यही बात कही थी।दरअसल, मिजोरम की कुल तादाद 12 लाख से ज्यादा है, लेकिन यहां जन्म दर में गिरावट देखी जा रही है। इसके अलावा, बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों, खासकर बौद्ध चकमा समुदाय के लोगों का लगातार आगमन हो रहा है। चर्च को चिंता है कि अगर मिजो लोगों की तादाद इसी तरह घटती रही, तो इससे 'समाज, राज्य, धर्म और चर्च' पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

*Rishabh Pant's Mumbai Pickle Power and Robin Hood Army bring the joy of cricket to underprivileged children*

Sports

Khabar kolkata sports Desk: Mumbai Pickle Power, the pickleball team co-owned by ace Indian cricketer Rishabh Pant and Swiggy partnered with the Robin Hood Army to host 25 underprivileged children for a spirited game of gully cricket in Mumbai.

जनसंख्या को लेकर चिंतित चंद्रबाबू नायडू, स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए लाने जा रहे नया प्रस्ताव

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आंध्र प्रदेश में घटती युवा आबादी पर मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू चिंतित हैं। हाल ही में उन्होंने दो से अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत की थी। उन्होंने अब नया प्रस्ताव लाने की बात कही है। इसके अनुसार अब लोकल चुनाव लड़ने के लिए 2 से ज्यादा बच्चे होना जरूरी होगा। इसके साथ ही 3 बच्चे वाले परिवारों को अलग लाभ दिए जाएंगे। नायडू का यह बयान तीन दशक पुराने कानून को निरस्त करने के कुछ ही महीनों बाद सामने आया है। जिसमें दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था।

मकर संक्रांति पर अपने पैतृक गांव नरवरिपल्ली पहुंचे चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि लगातार कम हो रहा फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है। जापान, कोरिया समेत कई यूरोप देश प्रजनन दर कम होने और बढ़ती उम्र की आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं। यह भारत के लिए चेतावनी है क्योंकि हम दो बच्चों पैदा करने के लिए लोगों को मजबूर कर रहे हैं। अगर परिवार नियोजन की पॉलिसी नहीं बदली तो कुछ वर्षों में भारत को बढ़ती उम्र की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

चंद्राबाबू नायडू ने कहा कि पहले दो से अधिक बच्चों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोक दिया जाता था। अब कम बच्चों वालों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए नियम बनाने होंगे। नायडू ने कहा कि वे ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को पंचायत और नगरपालिका चुनावों में चुनाव लड़ने की अनुमति देने सहित उन्हें प्रोत्साहित करने जा रहे हैं, उन्होंने कहा कि वे ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को ज्यादा सब्सिडी वाले चावल मुहैया कराने के प्रस्ताव पर भी काम कर रहे हैं। वर्तमान में हर परिवार को 25 किलोग्राम सब्सिडी वाले चावल दिए जाते हैं, जिसमें हर एक सदस्य को 5 किलोग्राम चावल मिलता है।

पहले ही इस नियम को रद्द कर चुकी है नायडू सरकार

बता दें कि 2024 में सत्ता में आने के बाद टीडीपी सरकार आंध्र प्रदेश में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने वाले नियम को रद्द कर चुकी है।

जनसंख्या में बड़ी गिरावट के संकेत

70 के दशक में देश के सभी सरकारों ने पॉपुलेशन कंट्रोल के लिए परिवार नियोजन अभियान चलाया। 'हम दो हमारे दो' और 'बच्चे दो ही अच्छे' के नारों से शहर से लेकर गांव कस्बे की दीवारें रंग दी गई। परिवार नियोजन के अन्य तौर-तरीकों का जमकर प्रचार हुआ। इसका असर पूरे देश में हुआ, मगर दक्षिण भारत के राज्यों ने इस पॉलिसी को दशकों पहले हासिल कर लिया। 1988 में केरल में फर्टिलिटी रेट दो के करीब पहुंच गया। 1993 में तमिलनाडु, 2001 में आंध्रप्रदेश और 2005 में कर्नाटक भी इस लिस्ट में शामिल हो गया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार, अभी पूरे देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 2.1 है, मगर दक्षिण भारत के राज्यों में यह राष्ट्रीय औसत से भी नीचे 1.75 पर पहुंच गया है। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि अगर ऐसा ट्रेंड बना रहा तो जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ सकती है।

माता-पिता की सहमति के बिना बच्चे नहीं चला पाएंगे सोशल मीडिया अकाउंट, नए नियम लाने की तैयारी में केंद्र सरकार

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आने वाले समय में बच्चे बगैर आपकी अनुमित के सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट बनाने और चलाने के लिए पैरेंट्स यानी माता-पिता की मंजूरी जरूरी होगी। इसको लेकर केंद्र सरकार नया नियम लाने जा रही है। यह नियम डेटा प्रोटेक्शन के नए ड्राफ्ट में है। केंद्र सरकार इन नियमों को लागू करने के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट के ड्रॉफ्ट को जारी कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस ड्रॉफ्ट के तहत जिन नियमों का जिक्र किया गया है उन्हें अंतिम निमय बनाने के लिए 18 फरवरी के बाद विचार किया जाएगा।

रेल, सूचना एवं प्रसारण, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट लिखकर डीपीडीपी नियमों के ड्रॉफ्ट को लेकर लोगों से सलाह भी मांगी है। उन्होंने लिखा कि डीपीडीपी नियमों का मसौदा परामर्श के लिए खुला है। आपकी राय चाहता हूं।

मंजूरी के 14 महीने के बाद सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी

करीब 14 महीने पहले संसद की ओर से डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम-2023 को मंजूरी देने के बाद मसौदा नियम सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किए गए हैं। मसौदा माईजीओवी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। इसका उद्देश्य डिजिटल व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करना है। मसौदा नियमों में डिजिटल डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत व्यक्तियों की सहमति लेने, डाटा प्रसंस्करण निकायों और अधिकारियों के कामकाज से संबंधित प्रावधान तय किए गए हैं। नियमों में व्यक्तियों से स्पष्ट सहमति हासिल करने के लिए एक तंत्र बनाने की बात कही गई है।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट

ड्राफ्ट के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 की सेक्शन 40 की सब-सेक्शन 40 (1) और (2) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार की ओर से एक्ट के लागू होने की डेट को या उसके बाद बनाए जाने वाले प्रस्तावित नियमों का ड्राफ्ट पब्लिश किया जाता है। ड्राफ्ट नियमों में डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 के तहत लोगों की सहमति लेने, डेटा प्रोसेसिंग निकायों और अधिकारियों के कामकाज से संबंधित प्रोविजन (प्रावधान) तय किए गए हैं।

18 फरवरी के बाद होगा विचार

नोटिफिकेशन में कहा गया है कि ड्राफ्ट नियमों पर 18 फरवरी 2025 के बाद विचार किया जाएगा। नियमों में डीपीडीपी एक्ट, 2023 के तहत पेनाल्टी का जिक्र नहीं किया गया है। डीपीडीपी नियमों का लंबे समय से इंतजार हो रहा था। फिलहाल सरकार ने जो ड्राफ्ट तैयार किया है उसमें नियमों के उल्लंघन पर किसी तरह की कार्रवाई का जिक्र नहीं है। सरकार ने अभी सिर्फ लोगों से उनकी राय मांगी है। सरकार लोगों की राय पर गौर करने के बाद कोई कदम उठाएगी।

आध्यात्मिकता के दबाव में शिक्षा की अनदेखी: अभिनव अरोड़ा के मामले से सीख

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Child spiritual leader Abhinav Arora

हाल के वर्षों में एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरी है, जिसमें कुछ माता-पिता अपने बच्चों को आध्यात्मिकता और धार्मिक प्रथाओं की ओर धकेल रहे हैं, जबकि उनकी शिक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा है। हालांकि आध्यात्मिक विकास निश्चित रूप से मानसिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान कर सकता है, लेकिन जब यह शिक्षा और बौद्धिक विकास की कीमत पर होता है, तो यह बच्चे के समग्र विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। अभिनव अरोड़ा का मामला, जिसमें उनके माता-पिता की आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ी एक दुखद घटना सामने आई, इस बात का प्रतीक है कि यह प्रवृत्ति बच्चों को किस तरह प्रभावित कर रही है।

अभिनव अरोड़ा का मामला

अभिनव अरोड़ा, एक 10 वर्षीय लड़का जो एक साधारण लड़का था, जो अपने माता-पिता से अत्यधिक आध्यात्मिक दबाव का सामना करना पड़ा, जो मानते थे कि उनका भविष्य आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने में निहित है। हालांकि अभिनव एक बुद्धिमान छात्र था और शैक्षिक रूप से सफल होने की पूरी क्षमता रखता था, लेकिन उसके माता-पिता ने उसकी ऊर्जा को आध्यात्मिक गतिविधियों में लगाने पर जोर दिया। वे चाहते थे कि वह हर दिन घंटों ध्यान करे, मंत्र जाप करे और धार्मिक अध्ययन में लिप्त रहे, क्योंकि उनका मानना था कि इससे वह भगवान के करीब पहुंचेगा और एक समृद्ध जीवन प्राप्त करेगा।

अभिनव की स्थिति तब दुखद मोड़ पर आ गई, जब उसकी पढ़ाई में गिरावट और लगातार आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने के मानसिक और भावनात्मक तनाव ने उसे निराशा की स्थिति में डाल दिया। उसकी ग्रेड्स गिरने लगे, उसका सामाजिक जीवन खत्म हो गया उसे इंटरनेट पर भारी ट्रॉल्लिंग का सामना करना पड़ रहा है। वह एक धर्म गुरु बनने की मार्ग पर चल रहा है,ऐसे ही अन्य कई मामले सामने आ रहे है बच्चों की पढाई छुड़वा कर उनसे दरम की बातें करवाई जा रही हैं। 

आध्यात्मिकता की ओर झुकाव के कारण

अभिनव अरोड़ा का मामला एकमात्र उदाहरण नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें माता-पिता अपने बच्चों को आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं, यहां तक कि शिक्षा को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से उन समुदायों में अधिक देखने को मिलती है, जहां धार्मिक मान्यताओं और आध्यात्मिक उन्नति को सफलता के मार्ग के रूप में देखा जाता है।

कुछ मुख्य कारणों से माता-पिता बच्चों को आध्यात्मिकता की ओर धकेलते हैं:

1.सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वास: कई संस्कृतियों में आध्यात्मिक उन्नति को बौद्धिक सफलता से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। माता-पिता धार्मिक शिक्षाओं को एक नैतिक दिशा के रूप में देखते हैं, जो उनके बच्चों को जीवन में मार्गदर्शन करेगी। उनका मानना है कि आध्यात्मिकता उनके बच्चों को आंतरिक शांति, सफलता और संतोष दिलाएगी, भले ही इसका मतलब शिक्षा की उपेक्षा करना हो।

2. सफलता का दबाव: उन समाजों में जहां शैक्षिक प्रतिस्पर्धा अत्यधिक है, कुछ माता-पिता आध्यात्मिकता को तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के एक उपाय के रूप में देखते हैं। हालांकि यह अच्छी नीयत से किया जाता है, लेकिन यह अक्सर आध्यात्मिक गतिविधियों को अतिशय महत्वपूर्ण बना देता है, जबकि बच्चों की शिक्षा और समग्र विकास को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

३ 3. बेहतर भविष्य की उम्मीद: कुछ परिवारों में विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में यह मान्यता है कि आध्यात्मिकता सफलता और धन पाने का एक रास्ता हो सकती है। माता-पिता अपने बच्चों से यह उम्मीद करते हैं कि वे धार्मिक प्रथाओं में भाग लें, ताकि उन्हें दिव्य आशीर्वाद मिले और उनका भविष्य बेहतर हो। हालांकि, इससे बच्चे की शिक्षा में बाधा आती है और वे ऐसे क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं जहां मेहनत, शिक्षा और सामाजिक संबंध आवश्यक हैं।

शिक्षा पर प्रभाव

जब आध्यात्मिकता को शिक्षा से ऊपर रखा जाता है, तो इसके बच्चों पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बच्चे अत्यधिक दबाव के कारण उलझन में पड़ सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप:

1. शैक्षिक उपेक्षा: जैसा कि अभिनव के मामले में देखा गया, आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने से शैक्षिक उपेक्षा हो सकती है। बच्चों को धार्मिक गतिविधियों में अधिक समय बिताने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनकी पढ़ाई में गिरावट आती है और उन्हें भविष्य में सफलता प्राप्त करने के लिए जरूरी कौशल और ज्ञान की कमी हो सकती है।

2. भावनात्मक और मानसिक तनाव: आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने का दबाव बच्चों पर अत्यधिक भावनात्मक तनाव डाल सकता है। यदि बच्चे अकादमिक या सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो वे अकेलापन, चिंता और अवसाद का शिकार हो सकते हैं।

3. अवसरों की कमी: वे बच्चे जो आध्यात्मिक प्रथाओं में अत्यधिक संलग्न होते हैं, शिक्षा, बौद्धिक विकास और सामाजिक कौशल प्राप्त करने के अवसरों से वंचित रहते हैं। ये अवसर बच्चे को एक सफल और संतुलित व्यक्ति बनाने में मदद करते हैं।

अभिनव अरोड़ा का दुखद मामला यह दर्शाता है कि जब आध्यात्मिकता को शिक्षा की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जबकि आध्यात्मिकता एक मूल्यवान उपकरण हो सकती है, यह बच्चे की शिक्षा या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए बिना किया जाना चाहिए। माता-पिता को यह सुनिश्चित करने के लिए संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है कि उनके बच्चे बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से समग्र रूप से विकसित हों। ऐसा करने से वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके बच्चे एक सक्षम और संतुलित व्यक्तित्व के रूप में समाज में योगदान देने के लिए तैयार हों।

महिलाओं और बुजुर्गों के बाद केजरीवाल का बच्चों को तोहफा, दलित छात्रों के लिए स्कॉलरशिप का ऐलान

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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी जनता को अपने पाले में करने के लिए हर दांव आजमा रही है। पहले महिलाएं फिर बुजुर्ग और अब बच्चों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपना पिटारा खोला है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दलित समाज के लिए बड़ी घोषणा की है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दलित छात्रों के लिए डॉ. आंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप योजना का एलान किया है।

अंबेडकर विवाद के जवाब में केजरीवाल का दांव

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिल्ली में दलित छात्रों के लिए डॉ आंबेडकर स्कॉलरशिप का ऐलान किया है। इस दौरान केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 3 दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह ने बाबा साहेब अंबेडकर का मजाक उड़ाया। केजरीवाल ने कहा कि बाबा साहेब जब जिंदा थे तब भी पूरे जीवन में उनका मजाक उड़ाया करते थे। संसद बाबा साहेब की वजह से है और उस संसद से मजाक उड़ाया जाएगा किसी सोचा नहीं होगा। उसकी हम निंदा करते हैं लेकिन उसके जवाब में मैं बाबा साहेब के सम्मान में एक बड़ी घोषणा कर रहा हूं। आज मैं चाहत हूं कि कोई भी दलित समाज का बच्चा पैसे की कमी की वजह से उच्च शिक्षा से वंचित ना रह जाए।

विदेशी यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई का खर्ज उठाएगी आप सरकार

केजरीवाल ने कहा कि आज मैं डॉक्टर आंबेडकर स्कॉलरशिप का ऐलान करता हूं, जिसके तहत दलित समाज का कोई भी बच्चा दुनिया की किसी भी टॉप की यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहेगा तो वो बच्चा उस यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले। बस उसका सारा पढ़ाई लिखाई का खर्चा दिल्ली सरकार वहन करेगी।

संघ प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान, हिंदुओं को 3-3 बच्‍चे पैदा करने की सलाह, जानें क्या वजह बताई

#mohanbhagwatstressesneedformorechildrentosave_hindu

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत में हिंदुओं की घटती जनसंख्या पर चिंता जाहिर की है।उन्होंने हिंदुओं का नाम लिए बगैर भारत में उनकी घटती जनसंख्या पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि अगर समाज की जनसंख्या वृद्धि दर गिरते-गिरते 2.1 प्रतिशत के नीचे चली गई तो तब समाज को किसी को बर्बाद करने की जरूरत नहीं, वह अपने आप ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए कम से कम तीन बच्चे पैदा करना बेहद जरूरी है।

मोहन भागवत ने रविवार को नागपुर में कठाले कुल सम्मेलन में एक सभा में बोलते हुए कहा, कुटुंब समाज का हिस्सा है और हर परिवार एक इकाई है। हालांकि जनसंख्‍या वृद्ध‍ि को देखते हुए सालों से ‘बच्‍चे 2 ही अच्‍छे’ का नारा सरकार की तरफ से लगाया जाता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जनसंख्या वृद्धि दर को सही बनाए रखना देश के भविष्य के लिए जरूरी है।

आधुनिक जनसंख्या विज्ञान का हवाला देते हुए भागवत ने कहा, किसी भी समाज की जनसंख्या 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वो समाज दुनिया से खत्म हो जाता है। भागवत ने कहा कि हमारे देश की जनसंख्या नीति, जो 1998 या 2002 के आसपास तय की गई थी, वो ये कहती है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए। हमें दो से अधिक बच्चों की जरूरत है, यानी तीन (जनसंख्या वृद्धि दर के रूप में), जनसंख्या विज्ञान यही कहता है। यह संख्या महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे (समाज को) जीवित रहना चाहिए।' यहां 2.1 जनसंख्या से उनका आशय प्रजनन दर से था।

भारत में हिंदू आबादी गिरी

इसी साल भारत बढ़ती आबादी की लंबी छलांग लगाते हुए चीन को पछाड़ कर जनसंख्या में मामले में दुनिया में नंबर वन पर आ गया। हालांकि, भारत में बहुसंख्यक हिंदू पिछली जनगणना में 80 प्रतिशत थे। जो अब इस साल तक उनकी जनसंख्या वृद्धि दर घटने से देश में उनकी कुल आबादी घटकर 78.9 प्रतिशत ही रह गई है। वहीं, हिंदू आबादी अब भी देश में करीब 100 करोड़ है। दुनिया के 95 प्रतिशत हिंदू भारत में रहते हैं। वहीं, देश में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर बढ़ी है।

चंद्रबाबू नायडू भी कर चुके अधिक बच्चों की वकालत

मोहन भागवत से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने भी दो से अधिक बच्चा पैदा करने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के राज्यों के लोगों को ज्यादा बच्चा पैदा करने की जरूरत है। दक्षिण में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। गांव खाली हो रहे हैं। आंध्र प्रदेश की सरकार दो से अधिक बच्चा पैदा करने वाले परिवारों को प्रोत्साहन राशि देने पर भी विचार कर रही है। सरकार यह भी कानून बनाने की तैयारी में है कि दो से अधिक बच्चे वाले लोग ही स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। नायडू का कहना है कि गांवों से युवाओं के पलायन की वजह से समस्या और विकराल हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.1 है। जबकि दक्षिण के राज्यों में 1.6 फीसदी है।

Graceful Hands Trust Celebrates Children’s Day with Yoga, Mental Health Session, and Sports Donations

 

Panvel, Raigad – November 14, 2024 – Graceful Hands Trust (E-1432) organized a special Yog Mudras & Mental Health Handling session on Children’s Day at I.C.A. Primary, Secondary, and Higher Secondary Ashram School in Chikhle, Panvel. The event brought together nearly 600 children for a day filled with activities focused on health, fitness, and celebration.

The session included a variety of engaging activities such as yoga, dance, stretching, relaxation techniques, and fitness tips, led by certified Ashtanga Power Yoga coach and trainer Ms. Megha Ingle. The program aimed to promote physical and mental well-being among the children, creating a joyful and enriching experience.

To further motivate and support the students, the Graceful Hands Trust Team donated sports equipment to deserving candidates as a token of appreciation. Additionally, the trust honored board exam scholars for their remarkable achievements.

The event was spearheaded by Ms. Payal Madhok, President and Chairperson of Graceful Hands Trust, with support from Program Incharge Ms. Latha Kurian (Treasurer) and Ms. Nirmal Arora. The school’s president, Mr. Vijay Ramachandra Lokhande, warmly welcomed the team, and Principal Mr. Vishnu Shankar Gaikar provided assistance with the arrangements.

“We are delighted to celebrate Children’s Day in such a meaningful way, combining health, education, and appreciation. Watching the children enjoy and learn was the highlight of the day,” shared Ms. Payal Madhok.

The event concluded on a cheerful note with evening snacks served to all participants, leaving smiles on the faces of the students and staff alike.

Graceful Hands Trust E-1432 Hosts Heartwarming International Yoga Day for Balgram Orphanage

Panvel, June 21st, 2024: Graceful Hands Trust orchestrated a day filled with joy and camaraderie for the children of Balgram Orphanage in Khanda Colony, Panvel. The event, held at the Balgram Activity Hall, was a delightful blend of sportsmanship, celebration, and inclusivity.

The yoga day, organised under the guidance of Ms. Payal Madhok and supported by the guest's Mr Arvind More & Dr. Nilima More & Yoga Group Ms Jaya Trivedi , Ms Manisha Mane & Ms Sneha Gupta (certified by Patanjali Yog Samiti trainers ) & their team, Graceful Team members,  volunteers, and the dedicated staff of Balgram orphanage.

Kicking off with a warm welcome speech by Ms. Suma Lalit, a member of GHT, and a motivational address by Ms. Payal Madhok, the day commenced with invigorating warm-up exercises before the children enthusiastically delved into yoga and meditation sessions. 

A heartwarming highlight was the involvement of kids, who joyfully participated in yoga sessions. 

As a testament to their commitment to the children's happiness, the celebrations concluded with a vote of thanks by Ms. Latha Kurian , Treasurer in GHT.

Orphanage staff received essential groceries and vegetables for the upcoming month, provided by Graceful Hands Trust.

The day culminated in a delightful dinner arranged by the GHT team, with promises to reunite for more engaging and exciting activities in the future.

 

बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के तहत एक दिवसीय जन जागरूकता कार्यक्रम का किया गया आयोजन।


बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के तहत एक दिवसीय जन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन जिला समाज कल्याण सभागार में की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन जिला समाज कल्याण पदाधिकारी शिप्रा सिन्हा ने दीप करके किया गया। जिला समाज कल्याण पदाधिकारी ने बताया कि बाल विवाह एक सामाजिक बुराई और कानून का उल्लंघन है, जो बालिाकाओं को शिक्षा, सुरक्षा स्वास्थ्य और विकास में बाधा है, तथा उनके सपनों को साकार होने से रोकता है। इस अवसर पर उन्होंने उपस्थित लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ भी दिलायी गयी। 

महिला एवं बाल विकास विभाग, भारत सरकार द्वारा विज्ञान भवन, नई दिल्ली में माननीय मंत्री, महिला एवं विकास विभाग द्वारा बाल विवाह मुक्त भारत अभियान का शुभांरभ वेबकास्टिंग के माध्यम से किया गया। इसी के तहत सभी आँगनबाड़ी केन्द्रों पर भी आयोजित की गई। विभाग द्वारा बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 को अधिक प्रभावी बनाने हेतु अधिनियम अंतर्गत निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए विभागीय अधिसूचना संख्या 645 दिनांक-13.03.2023 द्वारा प्रखंड विकास पदाधिकारी के अतिरिक्त निदेशक, समाज कल्याण, सभी प्रमंडलीय आयुक्त, सभी उपायुक्त, सभी जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, सभी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, सभी महिला पर्यवेक्षिका तथा सभी पंचायत सचिव को उनके निविर्दिष्ट क्षेत्राधिकार अंतर्गत बाल विवाह निषेध अधिकारी के रूप में अधिसूचित किया गया है।

इस अभियान को अधिक प्रभावी बनाने हेतु गैर सरकारी संगठनों का एक समूह "Just Right For Children" का सहयोग प्राप्त है। इसके तहत बाल विवाह के विरूद्ध शपथ लिया जाना, बाल विवाह के कारण स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणामों पर सत्र, बाल विवाह के विरूद्ध वाद-विवाद/नारा लेखन/पोस्टर बनाना आदि का प्रतियोगिता, बाल विवाह के विरूद्ध मानव श्रृखंला बनाने हुए शपथ सहित अन्य गतिविधियों का आयोजन किया जाना है।

गतिविधि में भाग लेने वाले लक्षित समूह में प्रार्थना सभा के दौरान स्कूली बच्चे, सभी सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों के शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कर्मीगण, सभी सखी मंडल, ग्राम संगठन, संकुल स्तरीय फेडरेशन के सदस्यगण, आँगनबाड़ी केन्द्र से जुड़ी किशोरियाँ एवं धातृमाताएँ, एन्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट एवं थानों में पदस्थापित बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी एवं अन्य पुलिसकर्मी शामिल है। इस अवसर पर जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी संजय प्रसाद, राकेश कुमार सिंह सहित गैर सरकारी संस्था के प्रतिनिधिगण सहित अन्य लोग शामिल थे।

धर्म और चर्च बचाने के लिए ज्यादा बच्चे पैदा करें, मिजोरम में चर्च की सलाह

#mizoram_church_instructions_to_produce_more_children

देश में कहीं परिसीमन के बाद प्रतिनिधित्व घटने खौफ में लोगों को जनसंख्या बढ़ाने की सलाह दी जा रही हो तो कहीं धर्म को बचान के लिए। अभी हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने राज्य के नव-विवाहित जोड़ों से अपील की है कि वे जल्द से जल्द बच्चे पैदा करें। द्रमुक के एक कार्यकर्ता के विवाह समारोह में भाग लेने गए स्टालिन ने कहा, पहले हम कहते थे कि आप आराम से बच्चे पैदा करें परन्तु अब हालात बदल गए हैं और अब हमें कहना चाहिए कि तुरन्त बच्चे पैदा करें। इधर, मिजोरम में दूसरा सबसे बड़ा चर्च बैप्टिस्ट चर्च ऑफ मिजोरम (बीसीएम) ने बच्चों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया है।

बीसीएम ने गिरती जनसंख्या को देखते हुए 'बेबी बूम' यानी ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है। यह अपील 129वीं सभा में चर्च के विवाहित सदस्यों से की गई, ताकि धर्म की रक्षा की जा सके। बीसीएम ने लोगों को इस मुद्दे के प्रति जागरूक करने और ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करने का फैसला किया है, ताकि मिजो समुदाय का अस्तित्व और पहचान बनी रहे।

असेंबली के सदस्यों ने एक अजेंडा पास किया और सदस्यों ने कहा, अगर मिजोरम की आबादी घटती रही तो यह बहुत बड़ी मुसीबत होगी। इससे समाज, राज्य, धर्म और चर्च, सबको नुकसान होगा। हमें आबादी बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक करना होगा।

इससे पहले मिज़ोरम प्रेस्बिटेरियन चर्च ने भी यही बात कही थी।दरअसल, मिजोरम की कुल तादाद 12 लाख से ज्यादा है, लेकिन यहां जन्म दर में गिरावट देखी जा रही है। इसके अलावा, बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों, खासकर बौद्ध चकमा समुदाय के लोगों का लगातार आगमन हो रहा है। चर्च को चिंता है कि अगर मिजो लोगों की तादाद इसी तरह घटती रही, तो इससे 'समाज, राज्य, धर्म और चर्च' पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

*Rishabh Pant's Mumbai Pickle Power and Robin Hood Army bring the joy of cricket to underprivileged children*

Sports

Khabar kolkata sports Desk: Mumbai Pickle Power, the pickleball team co-owned by ace Indian cricketer Rishabh Pant and Swiggy partnered with the Robin Hood Army to host 25 underprivileged children for a spirited game of gully cricket in Mumbai.

जनसंख्या को लेकर चिंतित चंद्रबाबू नायडू, स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए लाने जा रहे नया प्रस्ताव

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आंध्र प्रदेश में घटती युवा आबादी पर मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू चिंतित हैं। हाल ही में उन्होंने दो से अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत की थी। उन्होंने अब नया प्रस्ताव लाने की बात कही है। इसके अनुसार अब लोकल चुनाव लड़ने के लिए 2 से ज्यादा बच्चे होना जरूरी होगा। इसके साथ ही 3 बच्चे वाले परिवारों को अलग लाभ दिए जाएंगे। नायडू का यह बयान तीन दशक पुराने कानून को निरस्त करने के कुछ ही महीनों बाद सामने आया है। जिसमें दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था।

मकर संक्रांति पर अपने पैतृक गांव नरवरिपल्ली पहुंचे चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि लगातार कम हो रहा फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है। जापान, कोरिया समेत कई यूरोप देश प्रजनन दर कम होने और बढ़ती उम्र की आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं। यह भारत के लिए चेतावनी है क्योंकि हम दो बच्चों पैदा करने के लिए लोगों को मजबूर कर रहे हैं। अगर परिवार नियोजन की पॉलिसी नहीं बदली तो कुछ वर्षों में भारत को बढ़ती उम्र की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

चंद्राबाबू नायडू ने कहा कि पहले दो से अधिक बच्चों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोक दिया जाता था। अब कम बच्चों वालों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए नियम बनाने होंगे। नायडू ने कहा कि वे ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को पंचायत और नगरपालिका चुनावों में चुनाव लड़ने की अनुमति देने सहित उन्हें प्रोत्साहित करने जा रहे हैं, उन्होंने कहा कि वे ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को ज्यादा सब्सिडी वाले चावल मुहैया कराने के प्रस्ताव पर भी काम कर रहे हैं। वर्तमान में हर परिवार को 25 किलोग्राम सब्सिडी वाले चावल दिए जाते हैं, जिसमें हर एक सदस्य को 5 किलोग्राम चावल मिलता है।

पहले ही इस नियम को रद्द कर चुकी है नायडू सरकार

बता दें कि 2024 में सत्ता में आने के बाद टीडीपी सरकार आंध्र प्रदेश में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने वाले नियम को रद्द कर चुकी है।

जनसंख्या में बड़ी गिरावट के संकेत

70 के दशक में देश के सभी सरकारों ने पॉपुलेशन कंट्रोल के लिए परिवार नियोजन अभियान चलाया। 'हम दो हमारे दो' और 'बच्चे दो ही अच्छे' के नारों से शहर से लेकर गांव कस्बे की दीवारें रंग दी गई। परिवार नियोजन के अन्य तौर-तरीकों का जमकर प्रचार हुआ। इसका असर पूरे देश में हुआ, मगर दक्षिण भारत के राज्यों ने इस पॉलिसी को दशकों पहले हासिल कर लिया। 1988 में केरल में फर्टिलिटी रेट दो के करीब पहुंच गया। 1993 में तमिलनाडु, 2001 में आंध्रप्रदेश और 2005 में कर्नाटक भी इस लिस्ट में शामिल हो गया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार, अभी पूरे देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 2.1 है, मगर दक्षिण भारत के राज्यों में यह राष्ट्रीय औसत से भी नीचे 1.75 पर पहुंच गया है। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि अगर ऐसा ट्रेंड बना रहा तो जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ सकती है।

माता-पिता की सहमति के बिना बच्चे नहीं चला पाएंगे सोशल मीडिया अकाउंट, नए नियम लाने की तैयारी में केंद्र सरकार

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आने वाले समय में बच्चे बगैर आपकी अनुमित के सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट बनाने और चलाने के लिए पैरेंट्स यानी माता-पिता की मंजूरी जरूरी होगी। इसको लेकर केंद्र सरकार नया नियम लाने जा रही है। यह नियम डेटा प्रोटेक्शन के नए ड्राफ्ट में है। केंद्र सरकार इन नियमों को लागू करने के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट के ड्रॉफ्ट को जारी कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस ड्रॉफ्ट के तहत जिन नियमों का जिक्र किया गया है उन्हें अंतिम निमय बनाने के लिए 18 फरवरी के बाद विचार किया जाएगा।

रेल, सूचना एवं प्रसारण, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट लिखकर डीपीडीपी नियमों के ड्रॉफ्ट को लेकर लोगों से सलाह भी मांगी है। उन्होंने लिखा कि डीपीडीपी नियमों का मसौदा परामर्श के लिए खुला है। आपकी राय चाहता हूं।

मंजूरी के 14 महीने के बाद सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी

करीब 14 महीने पहले संसद की ओर से डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम-2023 को मंजूरी देने के बाद मसौदा नियम सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किए गए हैं। मसौदा माईजीओवी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। इसका उद्देश्य डिजिटल व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करना है। मसौदा नियमों में डिजिटल डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत व्यक्तियों की सहमति लेने, डाटा प्रसंस्करण निकायों और अधिकारियों के कामकाज से संबंधित प्रावधान तय किए गए हैं। नियमों में व्यक्तियों से स्पष्ट सहमति हासिल करने के लिए एक तंत्र बनाने की बात कही गई है।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट

ड्राफ्ट के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 की सेक्शन 40 की सब-सेक्शन 40 (1) और (2) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार की ओर से एक्ट के लागू होने की डेट को या उसके बाद बनाए जाने वाले प्रस्तावित नियमों का ड्राफ्ट पब्लिश किया जाता है। ड्राफ्ट नियमों में डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 के तहत लोगों की सहमति लेने, डेटा प्रोसेसिंग निकायों और अधिकारियों के कामकाज से संबंधित प्रोविजन (प्रावधान) तय किए गए हैं।

18 फरवरी के बाद होगा विचार

नोटिफिकेशन में कहा गया है कि ड्राफ्ट नियमों पर 18 फरवरी 2025 के बाद विचार किया जाएगा। नियमों में डीपीडीपी एक्ट, 2023 के तहत पेनाल्टी का जिक्र नहीं किया गया है। डीपीडीपी नियमों का लंबे समय से इंतजार हो रहा था। फिलहाल सरकार ने जो ड्राफ्ट तैयार किया है उसमें नियमों के उल्लंघन पर किसी तरह की कार्रवाई का जिक्र नहीं है। सरकार ने अभी सिर्फ लोगों से उनकी राय मांगी है। सरकार लोगों की राय पर गौर करने के बाद कोई कदम उठाएगी।

आध्यात्मिकता के दबाव में शिक्षा की अनदेखी: अभिनव अरोड़ा के मामले से सीख

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Child spiritual leader Abhinav Arora

हाल के वर्षों में एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरी है, जिसमें कुछ माता-पिता अपने बच्चों को आध्यात्मिकता और धार्मिक प्रथाओं की ओर धकेल रहे हैं, जबकि उनकी शिक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा है। हालांकि आध्यात्मिक विकास निश्चित रूप से मानसिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान कर सकता है, लेकिन जब यह शिक्षा और बौद्धिक विकास की कीमत पर होता है, तो यह बच्चे के समग्र विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। अभिनव अरोड़ा का मामला, जिसमें उनके माता-पिता की आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ी एक दुखद घटना सामने आई, इस बात का प्रतीक है कि यह प्रवृत्ति बच्चों को किस तरह प्रभावित कर रही है।

अभिनव अरोड़ा का मामला

अभिनव अरोड़ा, एक 10 वर्षीय लड़का जो एक साधारण लड़का था, जो अपने माता-पिता से अत्यधिक आध्यात्मिक दबाव का सामना करना पड़ा, जो मानते थे कि उनका भविष्य आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने में निहित है। हालांकि अभिनव एक बुद्धिमान छात्र था और शैक्षिक रूप से सफल होने की पूरी क्षमता रखता था, लेकिन उसके माता-पिता ने उसकी ऊर्जा को आध्यात्मिक गतिविधियों में लगाने पर जोर दिया। वे चाहते थे कि वह हर दिन घंटों ध्यान करे, मंत्र जाप करे और धार्मिक अध्ययन में लिप्त रहे, क्योंकि उनका मानना था कि इससे वह भगवान के करीब पहुंचेगा और एक समृद्ध जीवन प्राप्त करेगा।

अभिनव की स्थिति तब दुखद मोड़ पर आ गई, जब उसकी पढ़ाई में गिरावट और लगातार आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने के मानसिक और भावनात्मक तनाव ने उसे निराशा की स्थिति में डाल दिया। उसकी ग्रेड्स गिरने लगे, उसका सामाजिक जीवन खत्म हो गया उसे इंटरनेट पर भारी ट्रॉल्लिंग का सामना करना पड़ रहा है। वह एक धर्म गुरु बनने की मार्ग पर चल रहा है,ऐसे ही अन्य कई मामले सामने आ रहे है बच्चों की पढाई छुड़वा कर उनसे दरम की बातें करवाई जा रही हैं। 

आध्यात्मिकता की ओर झुकाव के कारण

अभिनव अरोड़ा का मामला एकमात्र उदाहरण नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें माता-पिता अपने बच्चों को आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं, यहां तक कि शिक्षा को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से उन समुदायों में अधिक देखने को मिलती है, जहां धार्मिक मान्यताओं और आध्यात्मिक उन्नति को सफलता के मार्ग के रूप में देखा जाता है।

कुछ मुख्य कारणों से माता-पिता बच्चों को आध्यात्मिकता की ओर धकेलते हैं:

1.सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वास: कई संस्कृतियों में आध्यात्मिक उन्नति को बौद्धिक सफलता से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। माता-पिता धार्मिक शिक्षाओं को एक नैतिक दिशा के रूप में देखते हैं, जो उनके बच्चों को जीवन में मार्गदर्शन करेगी। उनका मानना है कि आध्यात्मिकता उनके बच्चों को आंतरिक शांति, सफलता और संतोष दिलाएगी, भले ही इसका मतलब शिक्षा की उपेक्षा करना हो।

2. सफलता का दबाव: उन समाजों में जहां शैक्षिक प्रतिस्पर्धा अत्यधिक है, कुछ माता-पिता आध्यात्मिकता को तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के एक उपाय के रूप में देखते हैं। हालांकि यह अच्छी नीयत से किया जाता है, लेकिन यह अक्सर आध्यात्मिक गतिविधियों को अतिशय महत्वपूर्ण बना देता है, जबकि बच्चों की शिक्षा और समग्र विकास को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

३ 3. बेहतर भविष्य की उम्मीद: कुछ परिवारों में विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में यह मान्यता है कि आध्यात्मिकता सफलता और धन पाने का एक रास्ता हो सकती है। माता-पिता अपने बच्चों से यह उम्मीद करते हैं कि वे धार्मिक प्रथाओं में भाग लें, ताकि उन्हें दिव्य आशीर्वाद मिले और उनका भविष्य बेहतर हो। हालांकि, इससे बच्चे की शिक्षा में बाधा आती है और वे ऐसे क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं जहां मेहनत, शिक्षा और सामाजिक संबंध आवश्यक हैं।

शिक्षा पर प्रभाव

जब आध्यात्मिकता को शिक्षा से ऊपर रखा जाता है, तो इसके बच्चों पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बच्चे अत्यधिक दबाव के कारण उलझन में पड़ सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप:

1. शैक्षिक उपेक्षा: जैसा कि अभिनव के मामले में देखा गया, आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने से शैक्षिक उपेक्षा हो सकती है। बच्चों को धार्मिक गतिविधियों में अधिक समय बिताने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनकी पढ़ाई में गिरावट आती है और उन्हें भविष्य में सफलता प्राप्त करने के लिए जरूरी कौशल और ज्ञान की कमी हो सकती है।

2. भावनात्मक और मानसिक तनाव: आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करने का दबाव बच्चों पर अत्यधिक भावनात्मक तनाव डाल सकता है। यदि बच्चे अकादमिक या सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो वे अकेलापन, चिंता और अवसाद का शिकार हो सकते हैं।

3. अवसरों की कमी: वे बच्चे जो आध्यात्मिक प्रथाओं में अत्यधिक संलग्न होते हैं, शिक्षा, बौद्धिक विकास और सामाजिक कौशल प्राप्त करने के अवसरों से वंचित रहते हैं। ये अवसर बच्चे को एक सफल और संतुलित व्यक्ति बनाने में मदद करते हैं।

अभिनव अरोड़ा का दुखद मामला यह दर्शाता है कि जब आध्यात्मिकता को शिक्षा की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जबकि आध्यात्मिकता एक मूल्यवान उपकरण हो सकती है, यह बच्चे की शिक्षा या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए बिना किया जाना चाहिए। माता-पिता को यह सुनिश्चित करने के लिए संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है कि उनके बच्चे बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से समग्र रूप से विकसित हों। ऐसा करने से वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके बच्चे एक सक्षम और संतुलित व्यक्तित्व के रूप में समाज में योगदान देने के लिए तैयार हों।

महिलाओं और बुजुर्गों के बाद केजरीवाल का बच्चों को तोहफा, दलित छात्रों के लिए स्कॉलरशिप का ऐलान

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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी जनता को अपने पाले में करने के लिए हर दांव आजमा रही है। पहले महिलाएं फिर बुजुर्ग और अब बच्चों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपना पिटारा खोला है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दलित समाज के लिए बड़ी घोषणा की है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दलित छात्रों के लिए डॉ. आंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप योजना का एलान किया है।

अंबेडकर विवाद के जवाब में केजरीवाल का दांव

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिल्ली में दलित छात्रों के लिए डॉ आंबेडकर स्कॉलरशिप का ऐलान किया है। इस दौरान केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 3 दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह ने बाबा साहेब अंबेडकर का मजाक उड़ाया। केजरीवाल ने कहा कि बाबा साहेब जब जिंदा थे तब भी पूरे जीवन में उनका मजाक उड़ाया करते थे। संसद बाबा साहेब की वजह से है और उस संसद से मजाक उड़ाया जाएगा किसी सोचा नहीं होगा। उसकी हम निंदा करते हैं लेकिन उसके जवाब में मैं बाबा साहेब के सम्मान में एक बड़ी घोषणा कर रहा हूं। आज मैं चाहत हूं कि कोई भी दलित समाज का बच्चा पैसे की कमी की वजह से उच्च शिक्षा से वंचित ना रह जाए।

विदेशी यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई का खर्ज उठाएगी आप सरकार

केजरीवाल ने कहा कि आज मैं डॉक्टर आंबेडकर स्कॉलरशिप का ऐलान करता हूं, जिसके तहत दलित समाज का कोई भी बच्चा दुनिया की किसी भी टॉप की यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहेगा तो वो बच्चा उस यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले। बस उसका सारा पढ़ाई लिखाई का खर्चा दिल्ली सरकार वहन करेगी।

संघ प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान, हिंदुओं को 3-3 बच्‍चे पैदा करने की सलाह, जानें क्या वजह बताई

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत में हिंदुओं की घटती जनसंख्या पर चिंता जाहिर की है।उन्होंने हिंदुओं का नाम लिए बगैर भारत में उनकी घटती जनसंख्या पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि अगर समाज की जनसंख्या वृद्धि दर गिरते-गिरते 2.1 प्रतिशत के नीचे चली गई तो तब समाज को किसी को बर्बाद करने की जरूरत नहीं, वह अपने आप ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए कम से कम तीन बच्चे पैदा करना बेहद जरूरी है।

मोहन भागवत ने रविवार को नागपुर में कठाले कुल सम्मेलन में एक सभा में बोलते हुए कहा, कुटुंब समाज का हिस्सा है और हर परिवार एक इकाई है। हालांकि जनसंख्‍या वृद्ध‍ि को देखते हुए सालों से ‘बच्‍चे 2 ही अच्‍छे’ का नारा सरकार की तरफ से लगाया जाता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जनसंख्या वृद्धि दर को सही बनाए रखना देश के भविष्य के लिए जरूरी है।

आधुनिक जनसंख्या विज्ञान का हवाला देते हुए भागवत ने कहा, किसी भी समाज की जनसंख्या 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वो समाज दुनिया से खत्म हो जाता है। भागवत ने कहा कि हमारे देश की जनसंख्या नीति, जो 1998 या 2002 के आसपास तय की गई थी, वो ये कहती है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए। हमें दो से अधिक बच्चों की जरूरत है, यानी तीन (जनसंख्या वृद्धि दर के रूप में), जनसंख्या विज्ञान यही कहता है। यह संख्या महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे (समाज को) जीवित रहना चाहिए।' यहां 2.1 जनसंख्या से उनका आशय प्रजनन दर से था।

भारत में हिंदू आबादी गिरी

इसी साल भारत बढ़ती आबादी की लंबी छलांग लगाते हुए चीन को पछाड़ कर जनसंख्या में मामले में दुनिया में नंबर वन पर आ गया। हालांकि, भारत में बहुसंख्यक हिंदू पिछली जनगणना में 80 प्रतिशत थे। जो अब इस साल तक उनकी जनसंख्या वृद्धि दर घटने से देश में उनकी कुल आबादी घटकर 78.9 प्रतिशत ही रह गई है। वहीं, हिंदू आबादी अब भी देश में करीब 100 करोड़ है। दुनिया के 95 प्रतिशत हिंदू भारत में रहते हैं। वहीं, देश में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर बढ़ी है।

चंद्रबाबू नायडू भी कर चुके अधिक बच्चों की वकालत

मोहन भागवत से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने भी दो से अधिक बच्चा पैदा करने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के राज्यों के लोगों को ज्यादा बच्चा पैदा करने की जरूरत है। दक्षिण में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। गांव खाली हो रहे हैं। आंध्र प्रदेश की सरकार दो से अधिक बच्चा पैदा करने वाले परिवारों को प्रोत्साहन राशि देने पर भी विचार कर रही है। सरकार यह भी कानून बनाने की तैयारी में है कि दो से अधिक बच्चे वाले लोग ही स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। नायडू का कहना है कि गांवों से युवाओं के पलायन की वजह से समस्या और विकराल हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.1 है। जबकि दक्षिण के राज्यों में 1.6 फीसदी है।

Graceful Hands Trust Celebrates Children’s Day with Yoga, Mental Health Session, and Sports Donations

 

Panvel, Raigad – November 14, 2024 – Graceful Hands Trust (E-1432) organized a special Yog Mudras & Mental Health Handling session on Children’s Day at I.C.A. Primary, Secondary, and Higher Secondary Ashram School in Chikhle, Panvel. The event brought together nearly 600 children for a day filled with activities focused on health, fitness, and celebration.

The session included a variety of engaging activities such as yoga, dance, stretching, relaxation techniques, and fitness tips, led by certified Ashtanga Power Yoga coach and trainer Ms. Megha Ingle. The program aimed to promote physical and mental well-being among the children, creating a joyful and enriching experience.

To further motivate and support the students, the Graceful Hands Trust Team donated sports equipment to deserving candidates as a token of appreciation. Additionally, the trust honored board exam scholars for their remarkable achievements.

The event was spearheaded by Ms. Payal Madhok, President and Chairperson of Graceful Hands Trust, with support from Program Incharge Ms. Latha Kurian (Treasurer) and Ms. Nirmal Arora. The school’s president, Mr. Vijay Ramachandra Lokhande, warmly welcomed the team, and Principal Mr. Vishnu Shankar Gaikar provided assistance with the arrangements.

“We are delighted to celebrate Children’s Day in such a meaningful way, combining health, education, and appreciation. Watching the children enjoy and learn was the highlight of the day,” shared Ms. Payal Madhok.

The event concluded on a cheerful note with evening snacks served to all participants, leaving smiles on the faces of the students and staff alike.

Graceful Hands Trust E-1432 Hosts Heartwarming International Yoga Day for Balgram Orphanage

Panvel, June 21st, 2024: Graceful Hands Trust orchestrated a day filled with joy and camaraderie for the children of Balgram Orphanage in Khanda Colony, Panvel. The event, held at the Balgram Activity Hall, was a delightful blend of sportsmanship, celebration, and inclusivity.

The yoga day, organised under the guidance of Ms. Payal Madhok and supported by the guest's Mr Arvind More & Dr. Nilima More & Yoga Group Ms Jaya Trivedi , Ms Manisha Mane & Ms Sneha Gupta (certified by Patanjali Yog Samiti trainers ) & their team, Graceful Team members,  volunteers, and the dedicated staff of Balgram orphanage.

Kicking off with a warm welcome speech by Ms. Suma Lalit, a member of GHT, and a motivational address by Ms. Payal Madhok, the day commenced with invigorating warm-up exercises before the children enthusiastically delved into yoga and meditation sessions. 

A heartwarming highlight was the involvement of kids, who joyfully participated in yoga sessions. 

As a testament to their commitment to the children's happiness, the celebrations concluded with a vote of thanks by Ms. Latha Kurian , Treasurer in GHT.

Orphanage staff received essential groceries and vegetables for the upcoming month, provided by Graceful Hands Trust.

The day culminated in a delightful dinner arranged by the GHT team, with promises to reunite for more engaging and exciting activities in the future.

 

बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के तहत एक दिवसीय जन जागरूकता कार्यक्रम का किया गया आयोजन।


बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के तहत एक दिवसीय जन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन जिला समाज कल्याण सभागार में की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन जिला समाज कल्याण पदाधिकारी शिप्रा सिन्हा ने दीप करके किया गया। जिला समाज कल्याण पदाधिकारी ने बताया कि बाल विवाह एक सामाजिक बुराई और कानून का उल्लंघन है, जो बालिाकाओं को शिक्षा, सुरक्षा स्वास्थ्य और विकास में बाधा है, तथा उनके सपनों को साकार होने से रोकता है। इस अवसर पर उन्होंने उपस्थित लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ भी दिलायी गयी। 

महिला एवं बाल विकास विभाग, भारत सरकार द्वारा विज्ञान भवन, नई दिल्ली में माननीय मंत्री, महिला एवं विकास विभाग द्वारा बाल विवाह मुक्त भारत अभियान का शुभांरभ वेबकास्टिंग के माध्यम से किया गया। इसी के तहत सभी आँगनबाड़ी केन्द्रों पर भी आयोजित की गई। विभाग द्वारा बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 को अधिक प्रभावी बनाने हेतु अधिनियम अंतर्गत निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए विभागीय अधिसूचना संख्या 645 दिनांक-13.03.2023 द्वारा प्रखंड विकास पदाधिकारी के अतिरिक्त निदेशक, समाज कल्याण, सभी प्रमंडलीय आयुक्त, सभी उपायुक्त, सभी जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, सभी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, सभी महिला पर्यवेक्षिका तथा सभी पंचायत सचिव को उनके निविर्दिष्ट क्षेत्राधिकार अंतर्गत बाल विवाह निषेध अधिकारी के रूप में अधिसूचित किया गया है।

इस अभियान को अधिक प्रभावी बनाने हेतु गैर सरकारी संगठनों का एक समूह "Just Right For Children" का सहयोग प्राप्त है। इसके तहत बाल विवाह के विरूद्ध शपथ लिया जाना, बाल विवाह के कारण स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणामों पर सत्र, बाल विवाह के विरूद्ध वाद-विवाद/नारा लेखन/पोस्टर बनाना आदि का प्रतियोगिता, बाल विवाह के विरूद्ध मानव श्रृखंला बनाने हुए शपथ सहित अन्य गतिविधियों का आयोजन किया जाना है।

गतिविधि में भाग लेने वाले लक्षित समूह में प्रार्थना सभा के दौरान स्कूली बच्चे, सभी सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों के शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कर्मीगण, सभी सखी मंडल, ग्राम संगठन, संकुल स्तरीय फेडरेशन के सदस्यगण, आँगनबाड़ी केन्द्र से जुड़ी किशोरियाँ एवं धातृमाताएँ, एन्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट एवं थानों में पदस्थापित बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी एवं अन्य पुलिसकर्मी शामिल है। इस अवसर पर जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी संजय प्रसाद, राकेश कुमार सिंह सहित गैर सरकारी संस्था के प्रतिनिधिगण सहित अन्य लोग शामिल थे।