ऑपरेशन सिंदूर’ में मारा गया रऊफ अजहर, कंधार विमान हाइजैक सरगना की मौत पर अमेरीका-इजराइल क्यों खुश

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पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीएम मोदी ने कहा था आतंकियों को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। 15 दिन बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर दिया। भारत के ऑपरेशन सिंदूर में लगभग 100 आतंकवादियों को मार गिराया गया। जिसमें खूंखार आतंकी जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख कमांडर अब्दुल रऊफ अजहर भी शामिल था। रऊफ अजहर, जैश सरगना मसूद अजहर का छोटा भाई था और वर्तमान में जैश का सारा आतंक यही देखता था। रऊफ अजहर 1999 में हुए कंधार प्लेन हाईजैक का मास्टरमाइंड था।

रऊफ की मौत पर केवल भारत में जश्न नहीं है, बल्कि इजरायल और अमेरिका भी इस मौत से खुश है। यहां तक की अमेरिकी-इजराइली लोग भारत को बधाई देने लगे हैं। एसे में सवाल ये है कि अब्दुल रऊफ अजहर की मौत पर इजरायल और अमेरिका की खुशी की वजह क्या है?

रऊफ अजहर की मौत पर इजरायल और अमेरिका क्यों खुश?

दरअसल, जैश-ए-मोहम्मद का कमांडर अब्दुल रऊफ अजहर अमेरिका और इजरायल दोनों का कट्टर दुश्मन था। इसकी वजह ये है कि रऊफ अजहर कंधार विमान हाइजैकिंग के अलावा अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या में भी शामिल था। 2002 में अमेरिकी-यहूदी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या कर दी गई थी। ऑपरेशन सिंदूर ने न सिर्फ पहलगाम आतंकी हमले का जवाब दिया, बल्कि 23 साल पुराने उस जख्म को भी न्याय दिलाया, जो दुनियाभर के लोगों के जेहन में था।

अमेरिका ने किया भारत का समर्थन

जैसे ही अब्दुल रऊफ अजहर की नौत की खबर आई अमेरिका के पूर्व राजदूत और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि रहे जालमे खलीलजाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के दौरान क्रूर आतंकवादी अब्दुल रऊफ अजहर को मार गिराया है। यह वही शख्स है जिसने 2002 में यहूदी पत्रकार डेनियल पर्ल का सिर कलम कर हत्या कर दी थी। आज इंसाफ हुआ है। थैक्यू इंडिया।

लोग भारत को दे रहे बधाई

पर्ल की दोस्त और पत्रकार असरा नोमानी ने एक्स पर लिखा, मेरा दोस्त डैनी पर्ल 2001 में बहावलपुर गया था, सिर्फ नोटबुक और पेन के साथ। उसने वहां के आतंकी ठिकानों की सच्चाई उजागर की। वो कोई जोखिम लेने वाला नहीं था, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी जान खतरे में है। अमेरिकी कार्यकर्ता एमी मेक ने भी अजहर की मौत पर खुशी जताई। उन्होंने लिखा, भारत ने पर्ल की हत्या का बदला ले लिया। ऑपरेशन सिंदूर ने आतंक के गढ़ को ध्वस्त किया। पश्चिमी देशों को भारत से सीखना चाहिए कि इस्लामिक आतंक से कैसे निपटा जाता है।

कौन थे डैनियल पर्ल?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, डैनियल पर्ल वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार थे. जनवरी 2002 में कराची में उनका अपहरण हुआ, जब वे पाकिस्तान की सेना और आतंकियों के बीच संबंधों की जांच कर रहे थे. एक महीने बाद उनकी बर्बर हत्या का वीडियो सामने आया था, जिसके बाद पूरी दुनिया सन्न रह गई थी. पर्ल की हत्या का मास्टरमाइंड था उमर सईद शेख, जिसे 1999 में इंडियन एयरलाइंस के फ्लाइट IC-814 के अपहरण के बाद रिहा किया गया था. इस अपहरण के पीछे भी अब्दुल रऊफ अजहर का हाथ था. जिसे कंधार कांड के नाम से भी जाना जाता है.

विदेशी जमीन से फिर राहुल ने देश के आतंरिक मुद्दों पर उठाए सवाल, बोले- चुनाव आयोग ने किया समझौता

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लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि, इस बार उन्होंने भारत से नहीं बल्कि अमेरिका की धरती से कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि चुनाव आयोग ने समझौता कर लिया है और सिस्टम में कुछ गड़बड़ है।

निर्वाचन आयोग को कटघरे में खड़ा किया

राहुल 2 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। राहुल गांधी शनिवार देर रात को अमेरिका के बॉस्टन एयरपोर्ट पर उतरे थे। माना जा रहा था कि राहुल एक बार फिर विदेशी जमीन से देश की मोदी सरकार और देश के आतंरिक मुद्दों पर बोलेंगे, वैसा ही हुआ। उन्होंने बोस्टन में ब्राउन यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ एक सत्र में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने पिछले साल हुए महाराष्ट्र चुनाव का मुद्दा उठाया। उन्होंने देश की चुनाव प्रणाली और निर्वाचन का आयोग की मंशा को कटघरे में खड़ा किया।

महाराष्ट्र में वयस्कों की संख्या से ज्यादा मतदान-राहुल

राहुल गांधी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी में संबोधन के दौरान राहुल ने कहा कि मैंने यह कई बार कहा है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में वयस्कों की संख्या से ज्यादा लोगों ने मतदान किया। राहुल गांधी ने आगे कहा कि चुनाव आयोग ने हमें शाम 5:30 बजे तक के मतदान के आंकड़े दिए और शाम 5:30 बजे से 7:30 बजे के बीच 65 लाख मतदाताओं ने मतदान कर दिया। ऐसा होना शारीरिक रूप से असंभव है। एक मतदाता को मतदान करने में लगभग 3 मिनट लगते हैं और अगर आप गणित लगाएं तो इसका मतलब है कि सुबह 2 बजे तक मतदाताओं की लाइनें लगी रहीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब हमने उनसे वीडियोग्राफी देने के लिए कहा तो उन्होंने न केवल मना कर दिया, बल्कि उन्होंने कानून भी बदल दिया ताकि हम वीडियोग्राफी के लिए न कह सकें।

महीने में पांच साल से ज्यादा वोटर्स जोड़े गए-राहुल

राहुल ने आरोप लगाया था कि लोकसभा चुनाव के लिए पांच साल में महाराष्ट्र में 32 लाख वोटर्स जोड़े गए, जबकि इसके पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव के लिए 39 लाख वोटर्स को जोड़ा गया। उन्होंने चुनाव आयोग से पूछा कि पांच महीने में पांच साल से ज्यादा वोटर्स कैसे जोड़े गए? विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल वयस्क आबादी से ज्यादा रजिस्टर्ड वोटर्स कैसे थे? राहुल ने कहा कि इसका एक उदाहरण कामठी विधानसभा है, जहां भाजपा की जीत का अंतर लगभग उतना ही है जितने नए वोटर्स जोड़े गए।

पहले भी उठा चुके हैं सवाल

यह पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी ने चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े किए हैं। पिछले महीने 10 मार्च को राहुल ने सदन में मतदाता सूची का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि कई राज्यों में वोटर लिस्ट पर सवाल उठे हैं, इसलिए संसद में चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि सरकार वोटर लिस्ट नहीं बनाती है, यह तो सबको पता है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं तो अच्छा होगा कि संसद में इस विषय पर चर्चा हो।

लागू हो गया ट्रंप का नया टैरिफ: चीन पर फिर चला अमेरिकी “चाबुक”

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ बुधवार आधी रात के बाद पूरी तरह से लागू हो गए।अमेरिका के स्थानीय समयानुसार मंगलवार आधी रात से भारत समेत दर्जनों देशों पर ट्रंप का जवाबी टैरिफ लागू हो गया है।इसके तहत भारत पर अब 26 फीसदी टैरिफ प्रभावी हो गया है। इसके साथ ही उन लगभग 60 देशों पर भी टैरिफ लग गए, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका पर 'सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाले सबसे खराब देश' बताया था। ट्रंप ने 2 अप्रैल को जवाबी टैरिफ का एलान किया था।

नया टैरिफ लागू होने से पहले अमेरिका ने चीन पर एक बार फिर “चाबुक” चलाया है। अमेरिका ने चीनी सामानों पर अतिरिक्त टैरिफ को प्रभावी करने का फैसला लिया है। व्हाइट हाउस ने ऐलान किया है कि चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर 104 फीसदी टैरिफ लागू हो गया है और अतिरिक्त शुल्क मंगलवार आधी रात यानी 9 अप्रैल से शुरू हो जाएंगे। यह वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच जारी ट्रेड वॉर में अब तक उठाए गए सबसे आक्रामक कदमों में से एक है। फॉक्स बिजनेस के अनुसार, व्हाइट हाउस प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा कि चीन ने अमेरिका पर अपने प्रतिशोधी टैरिफ को नहीं हटाया है। ऐसे में अमेरिका कल, 9 अप्रैल से चीनी आयात पर कुल 104% टैरिफ लगाना शुरू कर देगा।

चीन की धमकी के बाद यूएस का एक्शन

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को चीन पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने की बात कही थी। डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा था कि अगर चीन ने अमेरिका पर लगाए गए 34% टैरिफ को वापस नहीं लिया, तो अमेरिका भी उस पर 50% अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। अब व्हाइट हाउस की ओर से इस धमकी को अमलीजामा पहनाते हुए कुल 104% टैरिफ की घोषणा कर दी गई है।

बता दें कि ट्रंप ने चीन की ओर से अमेरिकी सामानों पर 34 प्रतिशत का जवाबी टैरिफ लगाने के बाद ये चेतावनी दी थी।

चीन ने कहा था- अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला रवैया

ट्रंप के बयान पर कल चीन ने कहा था कि हमारे ऊपर लगे टैरिफ को और बढ़ाने की धमकी देकर अमेरिका गलती के ऊपर गलती कर रहा है। इस धमकी से अमेरिका का ब्लैकमेलिंग करने वाला रवैया सामने आ रहा है। चीन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। अगर अमेरिका अपने हिसाब से चलने की जिद करेगा तो चीन भी आखिर तक लड़ेगा।

रविवार को चीन ने दुनिया के लिए साफ संदेश भेजा था- ‘अगर ट्रेड वॉर हुआ, तो चीन पूरी तरह तैयार है- और इससे और मजबूत होकर निकलेगा।‘ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपल्स डेली ने रविवार को एक टिप्पणी में लिखा: 'अमेरिकी टैरिफ का असर जरूर होगा, लेकिन 'आसमान नहीं गिरेगा।'

“अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला व्यवहार उजागर” टैफिक को लेकर भड़के चीन ने चेताया, ट्रेड वॉर की बढ़ी आशंका


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दुनिया की दो सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देशों अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर 50 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी है। मंगलवार को चीन ने अमेरिका को कड़ा संदेश दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को अमेरिका में आयातित सभी चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त 34% टैरिफ की घोषणा की। मौजूदा टैरिफ लागू होने पर अमेरिका में सभी चीनी आयातों पर शुल्क 54% से अधिक हो जाएगा। जवाब में शुक्रवार को बीजिंग ने सभी अमेरिकी आयातों पर 34% टैरिफ का एलान कर दिया। इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अमेरिका का चीन पर तथाकथित पारस्परिक टैरिफ लगाना पूरी तरह से गलत है। यह एकतरफा दादागीरी है। चीन ने पहले भी जवाबी टैरिफ लगाए हैं। मंत्रालय ने संकेत दिया कि और भी टैरिफ लगाए जा सकते हैं।

“अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला व्यवहार उजागर”

मंत्रालय के मुताबिक, चीन के प्रतिक्रियात्मक उपाय उसकी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा करने के लिए हैं। यह सामान्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था को बनाए रखने के उद्देश्य उठाए गए पूरी तरह से वैध उपाय हैं। इसके अलावा चीन पर टैरिफ बढ़ाने की अमेरिकी धमकी एक गलती के ऊपर की गई एक और गलती है। इससे एक बार फिर अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला व्यवहार उजागर हो गया है। चीन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। अगर अमेरिका अपने तरीके पर अड़ा रहा, तो चीन अंत तक लड़ेगा।

ट्रेड वॉर गहराने की आशंका की चिंता

चीन ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब ट्रंप द्वारा चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की सोमवार को धमकी दिए जाने के बाद से यह चिंता बढ़ गई है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्संतुलित करने का उनका प्रयास आर्थिक रूप से विनाशकारी व्यापार युद्ध के खतरे को और बढ़ा सकता है।

ट्रंप ने दी धमकी

इससे पहले, ट्रंप ने सोमवार को चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। ट्रंप की धमकी तब आई जब चीन ने कहा कि वह अमेरिका द्वारा पिछले सप्ताह घोषित टैरिफ का जवाब देगा। ट्रंप ने सोशल मीडिया मंच ‘ट्रूथ सोशल’ पर लिखा, ‘‘अगर चीन आठ अप्रैल 2025 तक अपने पहले से ही दीर्घकालिक व्यापार दुरुपयोगों से ऊपर 34 प्रतिशत की वृद्धि को वापस नहीं लेता है तो हम चीन पर 50 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाएंगे जो नौ अप्रैल से प्रभावी हो जाएगा।

ट्रंप के टैरिफ का ऐलानः दोस्त मोदी पर दिखाई ‘मेहरबानी’, भारत पर लगाया 26% टैरिफ

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आखिरकार रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा कर दी है। उन्होंने 185 देशों से आने वाले सामान पर टैरिफ लगाया है। यह अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़ा टैरिफ है। ट्रंप ने इंटरनेशनल व्यापार नीति को लेकर बड़ा कदम उठाया है। ट्रंप ने इसे डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल टैरिफ नाम दिया है। बुधवार (2 अप्रैल) को व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में 'मुक्ति दिवस' की घोषणा करते हुए ट्रंप ने कहा कि मेरे साथी अमेरिकियों, यह मुक्ति दिवस है, जिसका लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। 2 अप्रैल 2025 को वह दिन माना जाएगा जब अमेरिकी उद्योग का पुनर्जन्म हुआ, अमेरिका की किस्मत बदली और हमने अमेरिका को फिर से समृद्ध बनाना शुरू किया है।

ट्रंप के दैरिफ नीति के ऐलान के बाद भारत को अब अमेरिका में अपने सामान भेजने पर 26% टैक्स देना होगा। दूसरे देशों पर भी इसी तरह के टैक्स लगाए जाएंगे। चीन पर 34 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। यह पहले लगाए गए 20 फीसदी के अतिरिक्त है। इस तरह चीन को 54 फीसदी टैरिफ देना होगा। चीन अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है।

पीएम मोदी को बताया अच्छा दोस्त

राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि कुछ देश गलत तरीके से व्यापार कर रहे हैं, इसलिए ये टैरिफ लगाए गए हैं। जिन देशों में अमेरिका से आने वाले सामान पर ज्यादा टैक्स लगता है, उन पर ये टैरिफ लगेंगे। राष्ट्रपति ट्रंप ने रोज गार्डन में "मेक अमेरिकन वेल्दी अगेन" कार्यक्रम में कहा, 'भारत बहुत, बहुत सख्त है। प्रधानमंत्री अभी गए हैं और मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन आप हमारे साथ सही व्यवहार नहीं कर रहे हैं। वे हमसे 52% चार्ज करते हैं और हम उनसे लगभग कुछ भी नहीं लेगे।

भारत भी टैक्स कम करने को तैयार!

2024 में भारत और अमेरिका के बीच 124 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। भारत ने अमेरिका को 81 अरब डॉलर का सामान बेचा, जबकि अमेरिका से 44 अरब डॉलर का सामान खरीदा। इस तरह, भारत को 37 अरब डॉलर का फायदा हुआ। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत अमेरिका से आने वाले 23 अरब डॉलर के सामान पर टैक्स कम करने को तैयार है। ये बहुत बड़ी छूट होगी।

इन देशों पर लगाया इतना टैरिफ

कंबोडिया पर सबसे ज्यादा 49 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। वियतनाम को सबसे ज्यादा नुकसान होगा, क्योंकि उसे 46% टैक्स देना होगा। स्विटजरलैंड पर 31, ताइवान पर 32, जापान पर 24, ब्रिटेन पर 10, ब्राजील पर 10, इंडोनेशिया पर 32, सिंगापुर पर 10, दक्षिण अफ्रीका पर 30 फीसदी टैरिफ लगा दिया है। उन्होंने विदेश से ऑटोमोबाइल के आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया है, जबकि ऑटो पार्ट पर भी इतना ही टैरिफ लगाने की घोषणा की है। ऑटोमोबाइल पर नया टैरिफ 3 अप्रैल से और ऑटो पार्ट 3 मई से प्रभावी होगा।

10 फीसदी टैरिफ वाले देश

यूनाइटेड किंगडम, ब्राजील, सिंगापुर, चिली, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की, कोलंबिया, पेरू, न्यूजीलैंड, यूएई, डोमिकन गणराज्य, अर्जेंटीना, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, मिस्र, सऊदी अरब, अल सल्वाडोर, मोरक्को, त्रिनिदाद और टोबैगो

अमेरिका में किसने की रॉ को बैन करने की मांग? भारतीय एजेंसी पर लगाए कई गंभीर आरोप

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भारत और अमेरिका के बीच काफी अच्छा संबंध है। खासकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंधों एक नया आयाम स्थापित किया है। हालांकि, एक बार फिर भारत में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर जहर उगला गया है। धार्मिक आजादी पर काम करने वाली यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) ने मंगलवार को एक नई रिपोर्ट जारी की। हमेशा की तरह एक बार फिर भारत पर कीचड़ उछाला गया है।

यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ बुरा बर्ताव बढ़ता जा रहा है। साथ ही अमेरिकी आयोग ने भारत की जासूसी एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। इसके लिए उसने सिख अलगाववादियों की कथित हत्या में भारतीय एजेंसी की संलिप्तता के बेबुनियाद आरोपों को आधार बनाया है।

भारत की तुलना वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार

रिपोर्ट में भारत की तुलना वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार से कर दी। संस्था ने सुझाव दिया कि भारत और वियतनाम दोनों को खास चिंता वाला देश घोषित किया जाए। दोनों देश चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2024 में धार्मिक आधार पर भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं। यूएससीआईआरएफ का कहना है कि नागरिक समाज समूहों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

अमेरिका खुद सख्त प्रवास नीति को लेकर घिरा

अमेरिकी आयोग की ये टिप्पणी भारत की आंतरिक राजनीति और सुरक्षा संबंधी मामलों में दखल देने की कोशिश मानी जा सकती है, जो भारतीय सरकार के लिए विवादास्पद हो सकता है। अमेरिका के इस कदम पर सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि खुद अमेरिका का इतिहास भी प्रवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के उल्लंघन से भरा पड़ा है। अमेरिका को खुद दुनियाभर में अपने सख्त प्रवास नीति के तहत प्रवासियों को क्रूर तरीके से निपटने के लिए जाने जाते हुए कई बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ता रहा है।

क्या ट्रंप लगाएंगे प्रतिबंध?

रॉ पर उठ रही उंगली के बीच सवाल ये है कि क्या ट्रंप सरकार इस भारतीय एजेंसी को बैन करेगी। विश्लेषकों का कहना है कि वॉशिंगटन ने लंबे समय से नई दिल्ली को एशिया और अन्य जगहों पर चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रतिकार के रूप में देखा है। रॉयट्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि अमेरिकी सरकार भारत की जासूसी संस्था रॉ के खिलाफ प्रतिबंध लगाएगी, क्योंकि पैनल की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं है।

क्या है रॉ?

रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) भारत की प्रमुख विदेशी खुफिया एजेंसी है, जो भारतीय सुरक्षा और खुफिया जानकारी जुटाने का कार्य करती है। इसकी स्थापना 1968 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय हितों की रक्षा के लिए विदेशों में खुफिया जानकारी प्राप्त करना है। रॉ आतंकवाद, बाहरी खतरों, और भारत की सुरक्षा से संबंधित अन्य मुद्दों पर निगरानी रखती है। यह विशेष रूप से पाकिस्तान, चीन और अन्य पड़ोसी देशों के बारे में खुफिया जानकारी जुटाने में सक्रिय रहती है। रॉ भारतीय विदेश नीति और सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में अहम भूमिका निभाती है।

ट्रंप ने एक बार फिर पूरी दुनिया को चौंकायाःUN में रूस का दिया साथ, यूक्रेन युद्ध के लिए दोषी मानने से इनकार

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद वैश्विक राजनीति में बड़े स्तर पर बदलाव की बात कही जा रही थी। ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद इसकी झलकी देखी भी जा रही है। इस बार तो ट्रंप ने ऐसा कुछ किया है कि पूरी दुनिया हैरान है। दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष को लेकर अमेरिका ने अपनी नीतियों में परिवर्तन करते हुए संयुक्त राष्ट्र में रूस का साथ दिया है।

रूस और यूक्रेन युद्ध को तीन साल हो गए हैं। यूरोपीय संघ और यूक्रेन की ओर से रूस के हमले की निंदा से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने वोट दिया। यानी, अब तक यूक्रेन का साथ निभा रहा अमेरिका अब रूस के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दे रहा है। वहीं अमेरिका ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया है।

दरअसल, तीन साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में तीन प्रस्ताव लाए गए थे। इन प्रस्तावों के खिलाफ में अमेरिका ने वोटिंग की है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर रूस के जैसे ही वोटिंग की है, जिसमें क्रेमलिन को आक्रामक नहीं बताया गया, और न ही यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकार किया। अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद की झलक

यह पहली बार है जब रूस-यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के खिलाफ कोई कदम उठाया है। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद यह अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। यह डोनाल्ड ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद और पुतिन के साथ करीबी को दिखाता है।

अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव किया पेश

इसके बाद, अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें युद्ध समाप्त करने की अपील की गई थी, लेकिन रूस की आक्रामकता का जिक्र नहीं था। जब फ्रांस और यूरोपीय देशों ने इसमें संशोधन जोड़कर रूस को आक्रमणकारी घोषित कर दिया, तो अमेरिका ने मतदान से बचने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अमेरिका ने अपने मूल प्रस्ताव पर मतदान कराया, लेकिन 15 सदस्यीय परिषद में 10 देशों ने समर्थन किया, जबकि 5 यूरोपीय देशों ने मतदान से परहेज किया। इससे यह साफ है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोप के बीच गहरा मतभेद उभर रहा है। अमेरिका अब रूस को सीधे तौर पर दोष देने से बच रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

भारत का मतदान से परहेज

93 देशों ने यूरोप के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 18 देशों ने इसका विरोध किया। भारत ने इस दौरान मतदान से परहेज किया। प्रस्ताव में रूस को एक आक्रामक देश बताया गया और उसे यूक्रेन से अपने सैनिकों को हटाने का आह्वान किया गया।

अवैध भारतीय प्रवासी: एक गहरी समस्या और अमेरिका में उनकी स्थिति

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Picture used in reference (CNN)

अमेरिका, जो विश्व में अपने सशक्त अर्थव्यवस्था और बेहतरीन अवसरों के लिए प्रसिद्ध है, लाखों लोगों का सपना है। हर साल, हजारों भारतीय नागरिक अमेरिका में नौकरी, शिक्षा, और बेहतर जीवन के लिए जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग कानूनी तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने में नाकाम रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे अवैध प्रवासी बन जाते हैं। भारत के नागरिकों के लिए यह मुद्दा दिन-ब-दिन गंभीर होता जा रहा है। हाल ही में, अमेरिका द्वारा 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को स्वदेश भेजने के कदम ने इस समस्या को और भी उजागर किया है।

अवैध प्रवासी कौन होते हैं?

अवैध प्रवासी वे लोग होते हैं जो किसी भी देश में बिना कानूनी दस्तावेजों या अनुमति के रहते हैं। ये लोग या तो वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी वहां बने रहते हैं, या फिर बिना वीज़ा के ही देश में प्रवेश कर लेते हैं। अमेरिका में भारतीय अवैध प्रवासी के रूप में रहने वाले लोग, अधिकतर या तो रोजगार के लिए अमेरिका गए थे, या फिर परिवारों के साथ रहते हुए वीज़ा की अवधि समाप्त कर चुके हैं।

अवैध भारतीय प्रवासियों का अमेरिका में प्रवेश

1. वीज़ा समाप्त होने के बाद अतिक्रमण

  अमेरिका में जाने वाले भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या पर्यटक वीज़ा, छात्र वीज़ा या कार्य वीज़ा पर जाते हैं। हालांकि, इनमें से कई लोग वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी अमेरिका में रहते हैं और उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होते।  

2. फर्जी दस्तावेजों का उपयोग

  कुछ लोग फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से अमेरिका प्रवेश करते हैं। ये दस्तावेज़ वीज़ा, शरण या अन्य कानूनी कारणों के रूप में हो सकते हैं। जब यह धोखाधड़ी सामने आती है, तो इन्हें अवैध प्रवासी के रूप में माना जाता है।  

3. शरणार्थी के रूप में प्रवेश 

  कुछ भारतीय नागरिक राजनीतिक या धार्मिक कारणों से शरणार्थी के रूप में अमेरिका आते हैं। हालांकि, कई बार इनकी स्थिति की सही जांच नहीं होती और वे अवैध रूप से अमेरिका में रह जाते हैं।  

अवैध प्रवासियों के लिए अमेरिका में जीवन

अवैध रूप से अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं में प्रमुख हैं:

1.कानूनी सुरक्षा की कमी  

  अवैध प्रवासियों के पास कोई कानूनी सुरक्षा नहीं होती। यदि अमेरिकी सरकार द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो वे बिना किसी बचाव के देश से बाहर भेजे जा सकते हैं।  

2. आर्थिक कठिनाइयाँ

  अवैध प्रवासी रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करते हैं, क्योंकि उन्हें काम करने के लिए कानूनी दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है। हालांकि, वे अक्सर अंशकालिक या असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहाँ मजदूरी कम और अधिकार न के बराबर होते हैं।  

3. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी 

  अवैध प्रवासी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकते। वे बिना बीमा या अन्य सरकारी सेवाओं के मेडिकल सेवाओं के लिए संघर्ष करते हैं।  

4. शैक्षिक अवसरों की कमी

  अवैध प्रवासियों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में समस्याएँ होती हैं। अधिकांश राज्य अवैध प्रवासियों के बच्चों को सार्वजनिक स्कूलों में दाखिला देने से मना कर सकते हैं।  

अमेरिका का रुख और कार्रवाई

अमेरिका में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन ने कई बार इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें स्वदेश भेजने की प्रक्रिया को तेज किया है।

1. "डीपी" (Deferred Action for Childhood Arrivals - DACA) नीति

  यह नीति विशेष रूप से उन बच्चों के लिए है जो अवैध रूप से अमेरिका में आकर बड़े हुए हैं। इसे "ड्रीमर्स" कहा जाता है। हालांकि, यह नीति सख्त नहीं है और बार-बार इसकी स्थिति पर सवाल उठते रहे हैं।  

2. आव्रजन और कस्टम्स प्रवर्तन (ICE)

  ICE अमेरिकी सरकार का एक प्रमुख विभाग है, जो अवैध प्रवासियों को ट्रैक करता है और उन्हें देश से बाहर करने के लिए कार्रवाई करता है। 

3. स्वदेश वापसी की योजनाएं

  अमेरिकी सरकार कई कार्यक्रमों के तहत अवैध प्रवासियों को स्वदेश भेजने की योजना बनाती है। हाल ही में, 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को सी-17 विमान से स्वदेश भेजने की योजना के तहत यह कार्रवाई की गई।

भारत में अवैध प्रवासियों की स्थिति

भारत में अवैध प्रवासियों की वापसी के बाद, उन्हें स्थानीय समुदाय में समायोजित करने की प्रक्रिया भी चुनौतीपूर्ण होती है। भारत सरकार के पास इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, जिससे इन व्यक्तियों को पुनः स्थापित करने में समस्याएँ आती हैं। 

1. स्वदेश लौटने पर चुनौतियाँ

  कई बार अवैध प्रवासियों के लिए स्वदेश लौटना कोई आसान रास्ता नहीं होता। उनके पास सीमित संसाधन होते हैं, और वे वापस अपने देश में पुनः समायोजित होने के लिए संघर्ष करते हैं।  

2.आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ

  अवैध प्रवासी अक्सर आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर होते हैं। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ भी हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें लंबे समय तक दबाव और डर का सामना करना पड़ता है।  

अवैध प्रवासियों के लिए समाधान

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल एक देश की नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक मुद्दा बन चुकी है। इसके समाधान के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:

1. कानूनी मार्गों का विस्तार  

  देशों को अपने आव्रजन नियमों को सुधारने की आवश्यकता है। यदि उचित और वैध मार्ग उपलब्ध हों, तो लोग अवैध तरीके से प्रवेश करने की कोशिश नहीं करेंगे।  

2. कानूनी सहायता  

  अवैध प्रवासियों को कानूनी सहायता मिलनी चाहिए, ताकि वे अपनी स्थिति को समझ सकें और उचित कदम उठा सकें।  

3. शरणार्थी नीति का सुधार

  देशों को शरणार्थियों के मामलों की अधिक गहराई से जांच करनी चाहिए और उन लोगों को मान्यता देनी चाहिए जो सचमुच शरण के योग्य हैं।  

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल भारत या अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है, जिसके समाधान के लिए देशों को सामूहिक रूप से कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत के नागरिकों की अमेरिका में अवैध स्थिति एक जटिल मुद्दा है, लेकिन इसे कानूनी ढंग से सुलझाया जा सकता है। इसके लिए दोनों देशों को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके और भविष्य में इस तरह की स्थितियों से बचा जा सके।

भारतीयों के खिलाफ ट्रंप का एक्शन शुरू, अमेरिका से अवैध प्रवासियों को लेकर सेना का पहला विमान भारत रवाना

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिका ने अवैध प्रवासियों को निकालना शुरू कर दिया है। तक अमेरिका द्वारा दक्षिण अमेरिकी देशों के अवैध अप्रवासियों को निर्वासित किया जा रहा था, लेकिन अब भारत के अवैध अप्रवासियों पर भी कार्रवाई शुरू हो गई है। इसी के तहत अमेरिका से सोमवार को एक अमेरिकी सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर भारत के लिए रवाना हो गया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से बताया है कि सी-17 सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर रवाना हुआ है।

सेना की मदद से निर्वासन अभियान

अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इमिग्रेशन एजेंडे को पूरा करने के लिए सेना की मदद ली है, जिसके तहत ही सैन्य एयरक्राफ्ट की मदद से लोगों को डिपोर्ट करने का काम शुरू किया जा चुका है। इसी के बाद अब अमेरिका में बसे भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट करने के लिए अमेरिका से C-17 विमान रवाना हो गया है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा, अमेरिका का एक सैन्य विमान C-17 भारतीय प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए रवाना हो गया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह विमान अगले 24 घंटे तक भारत नहीं पहुंचेगा।

अलग-अलग जगहों के लिए डिपोर्ट किए जा रहे अप्रवासी

इसी के साथ पेंटागन ने एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा रखे गए 5,000 से अधिक अप्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए फ्लाइट देना भी शुरू कर दिया है। अब तक, सैन्य विमान प्रवासियों को ग्वाटेमाला, पेरू और होंडुरास ले गए हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने कहा है कि अमेरिका के एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगा, कैलिफोर्निया से पांच हजार से ज्यादा अवैध अप्रवासियों को लेकर जल्द ही सेना के विमान उड़ान भरेंगे।

लगभग 18,000 अवैध भारतीयों की पहचान का दावा

डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद पहली बार भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट किया जाएगा। ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अपनी-अपनी बातचीत के दौरान अमेरिका में बसे अवैध भारतीयों को लेकर पहले ही चिंता जताई थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी से बातचीत के बाद कहा था कि उन्होंने इमिग्रेशन को लेकर पीएम से बात की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि जब अवैध अप्रवासियों को वापस लेने की बात आएगी तो भारत वही करेगा जो सही होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने लगभग 18,000 भारतीय अप्रवासियों की पहचान की है जो अवैध रूप से अमेरिका में हैं।

करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करेंगे ट्रंप

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका से करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने की बात कही थी। पिछले सप्ताह ही अमेरिकी सेना ने लैटिन अमेरिकी देशों में अवैध अप्रवासियों को लेकर छह उड़ानें भरी हैं। हालांकि कोलंबिया ने अमेरिका के विमानों को अपने देश में उतरने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन ट्रंप के सख्त रुख के बाद कोलंबिया ने अपने नागरिकों को लाने के लिए अपने ही विमान भेजे थे।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

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भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

ऑपरेशन सिंदूर’ में मारा गया रऊफ अजहर, कंधार विमान हाइजैक सरगना की मौत पर अमेरीका-इजराइल क्यों खुश

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पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीएम मोदी ने कहा था आतंकियों को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। 15 दिन बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर दिया। भारत के ऑपरेशन सिंदूर में लगभग 100 आतंकवादियों को मार गिराया गया। जिसमें खूंखार आतंकी जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख कमांडर अब्दुल रऊफ अजहर भी शामिल था। रऊफ अजहर, जैश सरगना मसूद अजहर का छोटा भाई था और वर्तमान में जैश का सारा आतंक यही देखता था। रऊफ अजहर 1999 में हुए कंधार प्लेन हाईजैक का मास्टरमाइंड था।

रऊफ की मौत पर केवल भारत में जश्न नहीं है, बल्कि इजरायल और अमेरिका भी इस मौत से खुश है। यहां तक की अमेरिकी-इजराइली लोग भारत को बधाई देने लगे हैं। एसे में सवाल ये है कि अब्दुल रऊफ अजहर की मौत पर इजरायल और अमेरिका की खुशी की वजह क्या है?

रऊफ अजहर की मौत पर इजरायल और अमेरिका क्यों खुश?

दरअसल, जैश-ए-मोहम्मद का कमांडर अब्दुल रऊफ अजहर अमेरिका और इजरायल दोनों का कट्टर दुश्मन था। इसकी वजह ये है कि रऊफ अजहर कंधार विमान हाइजैकिंग के अलावा अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या में भी शामिल था। 2002 में अमेरिकी-यहूदी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या कर दी गई थी। ऑपरेशन सिंदूर ने न सिर्फ पहलगाम आतंकी हमले का जवाब दिया, बल्कि 23 साल पुराने उस जख्म को भी न्याय दिलाया, जो दुनियाभर के लोगों के जेहन में था।

अमेरिका ने किया भारत का समर्थन

जैसे ही अब्दुल रऊफ अजहर की नौत की खबर आई अमेरिका के पूर्व राजदूत और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि रहे जालमे खलीलजाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के दौरान क्रूर आतंकवादी अब्दुल रऊफ अजहर को मार गिराया है। यह वही शख्स है जिसने 2002 में यहूदी पत्रकार डेनियल पर्ल का सिर कलम कर हत्या कर दी थी। आज इंसाफ हुआ है। थैक्यू इंडिया।

लोग भारत को दे रहे बधाई

पर्ल की दोस्त और पत्रकार असरा नोमानी ने एक्स पर लिखा, मेरा दोस्त डैनी पर्ल 2001 में बहावलपुर गया था, सिर्फ नोटबुक और पेन के साथ। उसने वहां के आतंकी ठिकानों की सच्चाई उजागर की। वो कोई जोखिम लेने वाला नहीं था, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी जान खतरे में है। अमेरिकी कार्यकर्ता एमी मेक ने भी अजहर की मौत पर खुशी जताई। उन्होंने लिखा, भारत ने पर्ल की हत्या का बदला ले लिया। ऑपरेशन सिंदूर ने आतंक के गढ़ को ध्वस्त किया। पश्चिमी देशों को भारत से सीखना चाहिए कि इस्लामिक आतंक से कैसे निपटा जाता है।

कौन थे डैनियल पर्ल?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, डैनियल पर्ल वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार थे. जनवरी 2002 में कराची में उनका अपहरण हुआ, जब वे पाकिस्तान की सेना और आतंकियों के बीच संबंधों की जांच कर रहे थे. एक महीने बाद उनकी बर्बर हत्या का वीडियो सामने आया था, जिसके बाद पूरी दुनिया सन्न रह गई थी. पर्ल की हत्या का मास्टरमाइंड था उमर सईद शेख, जिसे 1999 में इंडियन एयरलाइंस के फ्लाइट IC-814 के अपहरण के बाद रिहा किया गया था. इस अपहरण के पीछे भी अब्दुल रऊफ अजहर का हाथ था. जिसे कंधार कांड के नाम से भी जाना जाता है.

विदेशी जमीन से फिर राहुल ने देश के आतंरिक मुद्दों पर उठाए सवाल, बोले- चुनाव आयोग ने किया समझौता

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लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि, इस बार उन्होंने भारत से नहीं बल्कि अमेरिका की धरती से कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि चुनाव आयोग ने समझौता कर लिया है और सिस्टम में कुछ गड़बड़ है।

निर्वाचन आयोग को कटघरे में खड़ा किया

राहुल 2 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। राहुल गांधी शनिवार देर रात को अमेरिका के बॉस्टन एयरपोर्ट पर उतरे थे। माना जा रहा था कि राहुल एक बार फिर विदेशी जमीन से देश की मोदी सरकार और देश के आतंरिक मुद्दों पर बोलेंगे, वैसा ही हुआ। उन्होंने बोस्टन में ब्राउन यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ एक सत्र में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने पिछले साल हुए महाराष्ट्र चुनाव का मुद्दा उठाया। उन्होंने देश की चुनाव प्रणाली और निर्वाचन का आयोग की मंशा को कटघरे में खड़ा किया।

महाराष्ट्र में वयस्कों की संख्या से ज्यादा मतदान-राहुल

राहुल गांधी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी में संबोधन के दौरान राहुल ने कहा कि मैंने यह कई बार कहा है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में वयस्कों की संख्या से ज्यादा लोगों ने मतदान किया। राहुल गांधी ने आगे कहा कि चुनाव आयोग ने हमें शाम 5:30 बजे तक के मतदान के आंकड़े दिए और शाम 5:30 बजे से 7:30 बजे के बीच 65 लाख मतदाताओं ने मतदान कर दिया। ऐसा होना शारीरिक रूप से असंभव है। एक मतदाता को मतदान करने में लगभग 3 मिनट लगते हैं और अगर आप गणित लगाएं तो इसका मतलब है कि सुबह 2 बजे तक मतदाताओं की लाइनें लगी रहीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब हमने उनसे वीडियोग्राफी देने के लिए कहा तो उन्होंने न केवल मना कर दिया, बल्कि उन्होंने कानून भी बदल दिया ताकि हम वीडियोग्राफी के लिए न कह सकें।

महीने में पांच साल से ज्यादा वोटर्स जोड़े गए-राहुल

राहुल ने आरोप लगाया था कि लोकसभा चुनाव के लिए पांच साल में महाराष्ट्र में 32 लाख वोटर्स जोड़े गए, जबकि इसके पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव के लिए 39 लाख वोटर्स को जोड़ा गया। उन्होंने चुनाव आयोग से पूछा कि पांच महीने में पांच साल से ज्यादा वोटर्स कैसे जोड़े गए? विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल वयस्क आबादी से ज्यादा रजिस्टर्ड वोटर्स कैसे थे? राहुल ने कहा कि इसका एक उदाहरण कामठी विधानसभा है, जहां भाजपा की जीत का अंतर लगभग उतना ही है जितने नए वोटर्स जोड़े गए।

पहले भी उठा चुके हैं सवाल

यह पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी ने चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े किए हैं। पिछले महीने 10 मार्च को राहुल ने सदन में मतदाता सूची का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि कई राज्यों में वोटर लिस्ट पर सवाल उठे हैं, इसलिए संसद में चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि सरकार वोटर लिस्ट नहीं बनाती है, यह तो सबको पता है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं तो अच्छा होगा कि संसद में इस विषय पर चर्चा हो।

लागू हो गया ट्रंप का नया टैरिफ: चीन पर फिर चला अमेरिकी “चाबुक”

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ बुधवार आधी रात के बाद पूरी तरह से लागू हो गए।अमेरिका के स्थानीय समयानुसार मंगलवार आधी रात से भारत समेत दर्जनों देशों पर ट्रंप का जवाबी टैरिफ लागू हो गया है।इसके तहत भारत पर अब 26 फीसदी टैरिफ प्रभावी हो गया है। इसके साथ ही उन लगभग 60 देशों पर भी टैरिफ लग गए, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका पर 'सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाले सबसे खराब देश' बताया था। ट्रंप ने 2 अप्रैल को जवाबी टैरिफ का एलान किया था।

नया टैरिफ लागू होने से पहले अमेरिका ने चीन पर एक बार फिर “चाबुक” चलाया है। अमेरिका ने चीनी सामानों पर अतिरिक्त टैरिफ को प्रभावी करने का फैसला लिया है। व्हाइट हाउस ने ऐलान किया है कि चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर 104 फीसदी टैरिफ लागू हो गया है और अतिरिक्त शुल्क मंगलवार आधी रात यानी 9 अप्रैल से शुरू हो जाएंगे। यह वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच जारी ट्रेड वॉर में अब तक उठाए गए सबसे आक्रामक कदमों में से एक है। फॉक्स बिजनेस के अनुसार, व्हाइट हाउस प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा कि चीन ने अमेरिका पर अपने प्रतिशोधी टैरिफ को नहीं हटाया है। ऐसे में अमेरिका कल, 9 अप्रैल से चीनी आयात पर कुल 104% टैरिफ लगाना शुरू कर देगा।

चीन की धमकी के बाद यूएस का एक्शन

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को चीन पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने की बात कही थी। डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा था कि अगर चीन ने अमेरिका पर लगाए गए 34% टैरिफ को वापस नहीं लिया, तो अमेरिका भी उस पर 50% अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। अब व्हाइट हाउस की ओर से इस धमकी को अमलीजामा पहनाते हुए कुल 104% टैरिफ की घोषणा कर दी गई है।

बता दें कि ट्रंप ने चीन की ओर से अमेरिकी सामानों पर 34 प्रतिशत का जवाबी टैरिफ लगाने के बाद ये चेतावनी दी थी।

चीन ने कहा था- अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला रवैया

ट्रंप के बयान पर कल चीन ने कहा था कि हमारे ऊपर लगे टैरिफ को और बढ़ाने की धमकी देकर अमेरिका गलती के ऊपर गलती कर रहा है। इस धमकी से अमेरिका का ब्लैकमेलिंग करने वाला रवैया सामने आ रहा है। चीन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। अगर अमेरिका अपने हिसाब से चलने की जिद करेगा तो चीन भी आखिर तक लड़ेगा।

रविवार को चीन ने दुनिया के लिए साफ संदेश भेजा था- ‘अगर ट्रेड वॉर हुआ, तो चीन पूरी तरह तैयार है- और इससे और मजबूत होकर निकलेगा।‘ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपल्स डेली ने रविवार को एक टिप्पणी में लिखा: 'अमेरिकी टैरिफ का असर जरूर होगा, लेकिन 'आसमान नहीं गिरेगा।'

“अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला व्यवहार उजागर” टैफिक को लेकर भड़के चीन ने चेताया, ट्रेड वॉर की बढ़ी आशंका


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दुनिया की दो सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देशों अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर 50 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी है। मंगलवार को चीन ने अमेरिका को कड़ा संदेश दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को अमेरिका में आयातित सभी चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त 34% टैरिफ की घोषणा की। मौजूदा टैरिफ लागू होने पर अमेरिका में सभी चीनी आयातों पर शुल्क 54% से अधिक हो जाएगा। जवाब में शुक्रवार को बीजिंग ने सभी अमेरिकी आयातों पर 34% टैरिफ का एलान कर दिया। इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अमेरिका का चीन पर तथाकथित पारस्परिक टैरिफ लगाना पूरी तरह से गलत है। यह एकतरफा दादागीरी है। चीन ने पहले भी जवाबी टैरिफ लगाए हैं। मंत्रालय ने संकेत दिया कि और भी टैरिफ लगाए जा सकते हैं।

“अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला व्यवहार उजागर”

मंत्रालय के मुताबिक, चीन के प्रतिक्रियात्मक उपाय उसकी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा करने के लिए हैं। यह सामान्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था को बनाए रखने के उद्देश्य उठाए गए पूरी तरह से वैध उपाय हैं। इसके अलावा चीन पर टैरिफ बढ़ाने की अमेरिकी धमकी एक गलती के ऊपर की गई एक और गलती है। इससे एक बार फिर अमेरिका का ब्लैकमेलिंग वाला व्यवहार उजागर हो गया है। चीन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। अगर अमेरिका अपने तरीके पर अड़ा रहा, तो चीन अंत तक लड़ेगा।

ट्रेड वॉर गहराने की आशंका की चिंता

चीन ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब ट्रंप द्वारा चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की सोमवार को धमकी दिए जाने के बाद से यह चिंता बढ़ गई है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्संतुलित करने का उनका प्रयास आर्थिक रूप से विनाशकारी व्यापार युद्ध के खतरे को और बढ़ा सकता है।

ट्रंप ने दी धमकी

इससे पहले, ट्रंप ने सोमवार को चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। ट्रंप की धमकी तब आई जब चीन ने कहा कि वह अमेरिका द्वारा पिछले सप्ताह घोषित टैरिफ का जवाब देगा। ट्रंप ने सोशल मीडिया मंच ‘ट्रूथ सोशल’ पर लिखा, ‘‘अगर चीन आठ अप्रैल 2025 तक अपने पहले से ही दीर्घकालिक व्यापार दुरुपयोगों से ऊपर 34 प्रतिशत की वृद्धि को वापस नहीं लेता है तो हम चीन पर 50 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाएंगे जो नौ अप्रैल से प्रभावी हो जाएगा।

ट्रंप के टैरिफ का ऐलानः दोस्त मोदी पर दिखाई ‘मेहरबानी’, भारत पर लगाया 26% टैरिफ

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आखिरकार रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा कर दी है। उन्होंने 185 देशों से आने वाले सामान पर टैरिफ लगाया है। यह अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़ा टैरिफ है। ट्रंप ने इंटरनेशनल व्यापार नीति को लेकर बड़ा कदम उठाया है। ट्रंप ने इसे डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल टैरिफ नाम दिया है। बुधवार (2 अप्रैल) को व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में 'मुक्ति दिवस' की घोषणा करते हुए ट्रंप ने कहा कि मेरे साथी अमेरिकियों, यह मुक्ति दिवस है, जिसका लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। 2 अप्रैल 2025 को वह दिन माना जाएगा जब अमेरिकी उद्योग का पुनर्जन्म हुआ, अमेरिका की किस्मत बदली और हमने अमेरिका को फिर से समृद्ध बनाना शुरू किया है।

ट्रंप के दैरिफ नीति के ऐलान के बाद भारत को अब अमेरिका में अपने सामान भेजने पर 26% टैक्स देना होगा। दूसरे देशों पर भी इसी तरह के टैक्स लगाए जाएंगे। चीन पर 34 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। यह पहले लगाए गए 20 फीसदी के अतिरिक्त है। इस तरह चीन को 54 फीसदी टैरिफ देना होगा। चीन अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है।

पीएम मोदी को बताया अच्छा दोस्त

राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि कुछ देश गलत तरीके से व्यापार कर रहे हैं, इसलिए ये टैरिफ लगाए गए हैं। जिन देशों में अमेरिका से आने वाले सामान पर ज्यादा टैक्स लगता है, उन पर ये टैरिफ लगेंगे। राष्ट्रपति ट्रंप ने रोज गार्डन में "मेक अमेरिकन वेल्दी अगेन" कार्यक्रम में कहा, 'भारत बहुत, बहुत सख्त है। प्रधानमंत्री अभी गए हैं और मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन आप हमारे साथ सही व्यवहार नहीं कर रहे हैं। वे हमसे 52% चार्ज करते हैं और हम उनसे लगभग कुछ भी नहीं लेगे।

भारत भी टैक्स कम करने को तैयार!

2024 में भारत और अमेरिका के बीच 124 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। भारत ने अमेरिका को 81 अरब डॉलर का सामान बेचा, जबकि अमेरिका से 44 अरब डॉलर का सामान खरीदा। इस तरह, भारत को 37 अरब डॉलर का फायदा हुआ। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत अमेरिका से आने वाले 23 अरब डॉलर के सामान पर टैक्स कम करने को तैयार है। ये बहुत बड़ी छूट होगी।

इन देशों पर लगाया इतना टैरिफ

कंबोडिया पर सबसे ज्यादा 49 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। वियतनाम को सबसे ज्यादा नुकसान होगा, क्योंकि उसे 46% टैक्स देना होगा। स्विटजरलैंड पर 31, ताइवान पर 32, जापान पर 24, ब्रिटेन पर 10, ब्राजील पर 10, इंडोनेशिया पर 32, सिंगापुर पर 10, दक्षिण अफ्रीका पर 30 फीसदी टैरिफ लगा दिया है। उन्होंने विदेश से ऑटोमोबाइल के आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया है, जबकि ऑटो पार्ट पर भी इतना ही टैरिफ लगाने की घोषणा की है। ऑटोमोबाइल पर नया टैरिफ 3 अप्रैल से और ऑटो पार्ट 3 मई से प्रभावी होगा।

10 फीसदी टैरिफ वाले देश

यूनाइटेड किंगडम, ब्राजील, सिंगापुर, चिली, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की, कोलंबिया, पेरू, न्यूजीलैंड, यूएई, डोमिकन गणराज्य, अर्जेंटीना, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, मिस्र, सऊदी अरब, अल सल्वाडोर, मोरक्को, त्रिनिदाद और टोबैगो

अमेरिका में किसने की रॉ को बैन करने की मांग? भारतीय एजेंसी पर लगाए कई गंभीर आरोप

#americauscirf2025annualreportbanon_raw

भारत और अमेरिका के बीच काफी अच्छा संबंध है। खासकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंधों एक नया आयाम स्थापित किया है। हालांकि, एक बार फिर भारत में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर जहर उगला गया है। धार्मिक आजादी पर काम करने वाली यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) ने मंगलवार को एक नई रिपोर्ट जारी की। हमेशा की तरह एक बार फिर भारत पर कीचड़ उछाला गया है।

यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ बुरा बर्ताव बढ़ता जा रहा है। साथ ही अमेरिकी आयोग ने भारत की जासूसी एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। इसके लिए उसने सिख अलगाववादियों की कथित हत्या में भारतीय एजेंसी की संलिप्तता के बेबुनियाद आरोपों को आधार बनाया है।

भारत की तुलना वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार

रिपोर्ट में भारत की तुलना वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार से कर दी। संस्था ने सुझाव दिया कि भारत और वियतनाम दोनों को खास चिंता वाला देश घोषित किया जाए। दोनों देश चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2024 में धार्मिक आधार पर भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं। यूएससीआईआरएफ का कहना है कि नागरिक समाज समूहों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

अमेरिका खुद सख्त प्रवास नीति को लेकर घिरा

अमेरिकी आयोग की ये टिप्पणी भारत की आंतरिक राजनीति और सुरक्षा संबंधी मामलों में दखल देने की कोशिश मानी जा सकती है, जो भारतीय सरकार के लिए विवादास्पद हो सकता है। अमेरिका के इस कदम पर सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि खुद अमेरिका का इतिहास भी प्रवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के उल्लंघन से भरा पड़ा है। अमेरिका को खुद दुनियाभर में अपने सख्त प्रवास नीति के तहत प्रवासियों को क्रूर तरीके से निपटने के लिए जाने जाते हुए कई बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ता रहा है।

क्या ट्रंप लगाएंगे प्रतिबंध?

रॉ पर उठ रही उंगली के बीच सवाल ये है कि क्या ट्रंप सरकार इस भारतीय एजेंसी को बैन करेगी। विश्लेषकों का कहना है कि वॉशिंगटन ने लंबे समय से नई दिल्ली को एशिया और अन्य जगहों पर चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रतिकार के रूप में देखा है। रॉयट्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि अमेरिकी सरकार भारत की जासूसी संस्था रॉ के खिलाफ प्रतिबंध लगाएगी, क्योंकि पैनल की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं है।

क्या है रॉ?

रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) भारत की प्रमुख विदेशी खुफिया एजेंसी है, जो भारतीय सुरक्षा और खुफिया जानकारी जुटाने का कार्य करती है। इसकी स्थापना 1968 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय हितों की रक्षा के लिए विदेशों में खुफिया जानकारी प्राप्त करना है। रॉ आतंकवाद, बाहरी खतरों, और भारत की सुरक्षा से संबंधित अन्य मुद्दों पर निगरानी रखती है। यह विशेष रूप से पाकिस्तान, चीन और अन्य पड़ोसी देशों के बारे में खुफिया जानकारी जुटाने में सक्रिय रहती है। रॉ भारतीय विदेश नीति और सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में अहम भूमिका निभाती है।

ट्रंप ने एक बार फिर पूरी दुनिया को चौंकायाःUN में रूस का दिया साथ, यूक्रेन युद्ध के लिए दोषी मानने से इनकार

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद वैश्विक राजनीति में बड़े स्तर पर बदलाव की बात कही जा रही थी। ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद इसकी झलकी देखी भी जा रही है। इस बार तो ट्रंप ने ऐसा कुछ किया है कि पूरी दुनिया हैरान है। दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष को लेकर अमेरिका ने अपनी नीतियों में परिवर्तन करते हुए संयुक्त राष्ट्र में रूस का साथ दिया है।

रूस और यूक्रेन युद्ध को तीन साल हो गए हैं। यूरोपीय संघ और यूक्रेन की ओर से रूस के हमले की निंदा से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने वोट दिया। यानी, अब तक यूक्रेन का साथ निभा रहा अमेरिका अब रूस के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दे रहा है। वहीं अमेरिका ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया है।

दरअसल, तीन साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में तीन प्रस्ताव लाए गए थे। इन प्रस्तावों के खिलाफ में अमेरिका ने वोटिंग की है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर रूस के जैसे ही वोटिंग की है, जिसमें क्रेमलिन को आक्रामक नहीं बताया गया, और न ही यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकार किया। अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद की झलक

यह पहली बार है जब रूस-यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के खिलाफ कोई कदम उठाया है। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद यह अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। यह डोनाल्ड ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद और पुतिन के साथ करीबी को दिखाता है।

अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव किया पेश

इसके बाद, अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें युद्ध समाप्त करने की अपील की गई थी, लेकिन रूस की आक्रामकता का जिक्र नहीं था। जब फ्रांस और यूरोपीय देशों ने इसमें संशोधन जोड़कर रूस को आक्रमणकारी घोषित कर दिया, तो अमेरिका ने मतदान से बचने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अमेरिका ने अपने मूल प्रस्ताव पर मतदान कराया, लेकिन 15 सदस्यीय परिषद में 10 देशों ने समर्थन किया, जबकि 5 यूरोपीय देशों ने मतदान से परहेज किया। इससे यह साफ है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोप के बीच गहरा मतभेद उभर रहा है। अमेरिका अब रूस को सीधे तौर पर दोष देने से बच रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

भारत का मतदान से परहेज

93 देशों ने यूरोप के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 18 देशों ने इसका विरोध किया। भारत ने इस दौरान मतदान से परहेज किया। प्रस्ताव में रूस को एक आक्रामक देश बताया गया और उसे यूक्रेन से अपने सैनिकों को हटाने का आह्वान किया गया।

अवैध भारतीय प्रवासी: एक गहरी समस्या और अमेरिका में उनकी स्थिति

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Picture used in reference (CNN)

अमेरिका, जो विश्व में अपने सशक्त अर्थव्यवस्था और बेहतरीन अवसरों के लिए प्रसिद्ध है, लाखों लोगों का सपना है। हर साल, हजारों भारतीय नागरिक अमेरिका में नौकरी, शिक्षा, और बेहतर जीवन के लिए जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग कानूनी तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने में नाकाम रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे अवैध प्रवासी बन जाते हैं। भारत के नागरिकों के लिए यह मुद्दा दिन-ब-दिन गंभीर होता जा रहा है। हाल ही में, अमेरिका द्वारा 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को स्वदेश भेजने के कदम ने इस समस्या को और भी उजागर किया है।

अवैध प्रवासी कौन होते हैं?

अवैध प्रवासी वे लोग होते हैं जो किसी भी देश में बिना कानूनी दस्तावेजों या अनुमति के रहते हैं। ये लोग या तो वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी वहां बने रहते हैं, या फिर बिना वीज़ा के ही देश में प्रवेश कर लेते हैं। अमेरिका में भारतीय अवैध प्रवासी के रूप में रहने वाले लोग, अधिकतर या तो रोजगार के लिए अमेरिका गए थे, या फिर परिवारों के साथ रहते हुए वीज़ा की अवधि समाप्त कर चुके हैं।

अवैध भारतीय प्रवासियों का अमेरिका में प्रवेश

1. वीज़ा समाप्त होने के बाद अतिक्रमण

  अमेरिका में जाने वाले भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या पर्यटक वीज़ा, छात्र वीज़ा या कार्य वीज़ा पर जाते हैं। हालांकि, इनमें से कई लोग वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी अमेरिका में रहते हैं और उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होते।  

2. फर्जी दस्तावेजों का उपयोग

  कुछ लोग फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से अमेरिका प्रवेश करते हैं। ये दस्तावेज़ वीज़ा, शरण या अन्य कानूनी कारणों के रूप में हो सकते हैं। जब यह धोखाधड़ी सामने आती है, तो इन्हें अवैध प्रवासी के रूप में माना जाता है।  

3. शरणार्थी के रूप में प्रवेश 

  कुछ भारतीय नागरिक राजनीतिक या धार्मिक कारणों से शरणार्थी के रूप में अमेरिका आते हैं। हालांकि, कई बार इनकी स्थिति की सही जांच नहीं होती और वे अवैध रूप से अमेरिका में रह जाते हैं।  

अवैध प्रवासियों के लिए अमेरिका में जीवन

अवैध रूप से अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं में प्रमुख हैं:

1.कानूनी सुरक्षा की कमी  

  अवैध प्रवासियों के पास कोई कानूनी सुरक्षा नहीं होती। यदि अमेरिकी सरकार द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो वे बिना किसी बचाव के देश से बाहर भेजे जा सकते हैं।  

2. आर्थिक कठिनाइयाँ

  अवैध प्रवासी रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करते हैं, क्योंकि उन्हें काम करने के लिए कानूनी दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है। हालांकि, वे अक्सर अंशकालिक या असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहाँ मजदूरी कम और अधिकार न के बराबर होते हैं।  

3. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी 

  अवैध प्रवासी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकते। वे बिना बीमा या अन्य सरकारी सेवाओं के मेडिकल सेवाओं के लिए संघर्ष करते हैं।  

4. शैक्षिक अवसरों की कमी

  अवैध प्रवासियों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में समस्याएँ होती हैं। अधिकांश राज्य अवैध प्रवासियों के बच्चों को सार्वजनिक स्कूलों में दाखिला देने से मना कर सकते हैं।  

अमेरिका का रुख और कार्रवाई

अमेरिका में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन ने कई बार इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें स्वदेश भेजने की प्रक्रिया को तेज किया है।

1. "डीपी" (Deferred Action for Childhood Arrivals - DACA) नीति

  यह नीति विशेष रूप से उन बच्चों के लिए है जो अवैध रूप से अमेरिका में आकर बड़े हुए हैं। इसे "ड्रीमर्स" कहा जाता है। हालांकि, यह नीति सख्त नहीं है और बार-बार इसकी स्थिति पर सवाल उठते रहे हैं।  

2. आव्रजन और कस्टम्स प्रवर्तन (ICE)

  ICE अमेरिकी सरकार का एक प्रमुख विभाग है, जो अवैध प्रवासियों को ट्रैक करता है और उन्हें देश से बाहर करने के लिए कार्रवाई करता है। 

3. स्वदेश वापसी की योजनाएं

  अमेरिकी सरकार कई कार्यक्रमों के तहत अवैध प्रवासियों को स्वदेश भेजने की योजना बनाती है। हाल ही में, 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को सी-17 विमान से स्वदेश भेजने की योजना के तहत यह कार्रवाई की गई।

भारत में अवैध प्रवासियों की स्थिति

भारत में अवैध प्रवासियों की वापसी के बाद, उन्हें स्थानीय समुदाय में समायोजित करने की प्रक्रिया भी चुनौतीपूर्ण होती है। भारत सरकार के पास इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, जिससे इन व्यक्तियों को पुनः स्थापित करने में समस्याएँ आती हैं। 

1. स्वदेश लौटने पर चुनौतियाँ

  कई बार अवैध प्रवासियों के लिए स्वदेश लौटना कोई आसान रास्ता नहीं होता। उनके पास सीमित संसाधन होते हैं, और वे वापस अपने देश में पुनः समायोजित होने के लिए संघर्ष करते हैं।  

2.आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ

  अवैध प्रवासी अक्सर आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर होते हैं। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ भी हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें लंबे समय तक दबाव और डर का सामना करना पड़ता है।  

अवैध प्रवासियों के लिए समाधान

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल एक देश की नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक मुद्दा बन चुकी है। इसके समाधान के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:

1. कानूनी मार्गों का विस्तार  

  देशों को अपने आव्रजन नियमों को सुधारने की आवश्यकता है। यदि उचित और वैध मार्ग उपलब्ध हों, तो लोग अवैध तरीके से प्रवेश करने की कोशिश नहीं करेंगे।  

2. कानूनी सहायता  

  अवैध प्रवासियों को कानूनी सहायता मिलनी चाहिए, ताकि वे अपनी स्थिति को समझ सकें और उचित कदम उठा सकें।  

3. शरणार्थी नीति का सुधार

  देशों को शरणार्थियों के मामलों की अधिक गहराई से जांच करनी चाहिए और उन लोगों को मान्यता देनी चाहिए जो सचमुच शरण के योग्य हैं।  

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल भारत या अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है, जिसके समाधान के लिए देशों को सामूहिक रूप से कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत के नागरिकों की अमेरिका में अवैध स्थिति एक जटिल मुद्दा है, लेकिन इसे कानूनी ढंग से सुलझाया जा सकता है। इसके लिए दोनों देशों को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके और भविष्य में इस तरह की स्थितियों से बचा जा सके।

भारतीयों के खिलाफ ट्रंप का एक्शन शुरू, अमेरिका से अवैध प्रवासियों को लेकर सेना का पहला विमान भारत रवाना

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिका ने अवैध प्रवासियों को निकालना शुरू कर दिया है। तक अमेरिका द्वारा दक्षिण अमेरिकी देशों के अवैध अप्रवासियों को निर्वासित किया जा रहा था, लेकिन अब भारत के अवैध अप्रवासियों पर भी कार्रवाई शुरू हो गई है। इसी के तहत अमेरिका से सोमवार को एक अमेरिकी सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर भारत के लिए रवाना हो गया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से बताया है कि सी-17 सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर रवाना हुआ है।

सेना की मदद से निर्वासन अभियान

अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इमिग्रेशन एजेंडे को पूरा करने के लिए सेना की मदद ली है, जिसके तहत ही सैन्य एयरक्राफ्ट की मदद से लोगों को डिपोर्ट करने का काम शुरू किया जा चुका है। इसी के बाद अब अमेरिका में बसे भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट करने के लिए अमेरिका से C-17 विमान रवाना हो गया है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा, अमेरिका का एक सैन्य विमान C-17 भारतीय प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए रवाना हो गया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह विमान अगले 24 घंटे तक भारत नहीं पहुंचेगा।

अलग-अलग जगहों के लिए डिपोर्ट किए जा रहे अप्रवासी

इसी के साथ पेंटागन ने एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा रखे गए 5,000 से अधिक अप्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए फ्लाइट देना भी शुरू कर दिया है। अब तक, सैन्य विमान प्रवासियों को ग्वाटेमाला, पेरू और होंडुरास ले गए हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने कहा है कि अमेरिका के एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगा, कैलिफोर्निया से पांच हजार से ज्यादा अवैध अप्रवासियों को लेकर जल्द ही सेना के विमान उड़ान भरेंगे।

लगभग 18,000 अवैध भारतीयों की पहचान का दावा

डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद पहली बार भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट किया जाएगा। ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अपनी-अपनी बातचीत के दौरान अमेरिका में बसे अवैध भारतीयों को लेकर पहले ही चिंता जताई थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी से बातचीत के बाद कहा था कि उन्होंने इमिग्रेशन को लेकर पीएम से बात की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि जब अवैध अप्रवासियों को वापस लेने की बात आएगी तो भारत वही करेगा जो सही होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने लगभग 18,000 भारतीय अप्रवासियों की पहचान की है जो अवैध रूप से अमेरिका में हैं।

करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करेंगे ट्रंप

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका से करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने की बात कही थी। पिछले सप्ताह ही अमेरिकी सेना ने लैटिन अमेरिकी देशों में अवैध अप्रवासियों को लेकर छह उड़ानें भरी हैं। हालांकि कोलंबिया ने अमेरिका के विमानों को अपने देश में उतरने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन ट्रंप के सख्त रुख के बाद कोलंबिया ने अपने नागरिकों को लाने के लिए अपने ही विमान भेजे थे।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

#indiaexpectsgoodtieswithamericaposttrumpsinaugration

भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।