सीपी राधाकृष्णन को ही NDA ने क्यों बनाया उपराष्ट्रपति उम्मीदवार, विपक्ष के सामने साबित होगा मास्टरस्ट्रोक ?
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बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वे फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल है। रविवार को NDA की बैठक में उनके नाम पर मुहर लगी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई बैठक के बाद इसकी आधिकारिक घोषणा की। राधाकृष्णन चार दशक से अधिक समय से राजनीति और सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे हैं और उन्हें तमिलनाडु की राजनीति का सम्मानित चेहरा माना जाता है।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीति के सधे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। मोदी की खासियत यह है कि वे चुनावी मुकाबले को सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं मानते। राधाकृष्णन का नाम घोषित कर वे एक तीर से तीन निशाना साधा है। एनडीए ने राधाकृष्णन का नाम घोषित कर उद्धव ठाकरे और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को अपने पाले में कर ही लिया है। साथ ही राहुल गांधी के सामने आगे भी विकल्प नहीं छोड़ने का काम किया है।
उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल भरा फैसला
दरअसल, एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। ऐसे में उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल ये है कि अगर वे राधाकृष्णन को समर्थन नहीं देते हैं, तो यह सीधा मैसेज जाएगा कि उन्होंने अपने ही राज्यपाल के खिलाफ जाकर वोट किया।
द्रमुक के सामने धर्मसंकट जैसी स्थिति
वहीं, सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी असमंजस में हैं। अब स्टालिन अगर उन्हें समर्थन देते हैं तो डीएमके के वोटरों में सवाल उठेगा कि आखिर स्टालिन ने एक आरएसएस विचारधारा वाले नेता का समर्थन क्यों किया. और अगर विरोध करते हैं, तो यह आरोप लगेगा कि उन्होंने तमिलनाडु के सपूत को ही नकार दिया. यानी स्टालिन के लिए भी यह चुनाव ‘हां’ या ‘ना’ दोनों में फंसा हुआ है।
भाजपा की एक सोची-समझी रणनीति
साफ है महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ओर से उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया जाना भाजपा की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। इसमें जटिल चुनावी गणित और गहरी क्षेत्रीय रणनीति समाहित है। सीपी राधाकृष्णन के नाम का एलान सिर्फ व्यक्तिगत रूप से उनकी वफादारी का इनाम नहीं है, बल्कि यह तमिलनाडु और दक्षिणी राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए भाजपा के नए प्रयास का संकेत है। यहां भाजपा को अपनी पकड़ बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है।
पहले भी विपक्ष के खेमे में लग चुकी सेंध
पहले भी जब यूपीए ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रतिभा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया था, तब शिवसेना ने एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद उनका समर्थन किया था, क्योंकि वह महाराष्ट्र से थीं। इसी तरह जब यूपीए ने प्रणब मुखर्जी को नामित किया, तो एनडीए में होने के बावजूद शिवसेना और जदयू दोनों ने अपना समर्थन दिया। ऐसे ही जब एनडीए ने रामनाथ कोविंद का नाम प्रस्तावित किया तो जदयू ने विपक्ष में होने के बावजूद उनका समर्थन किया, क्योंकि वे बिहार के राज्यपाल थे। उपराष्ट्रपति पद के लिए पिछले चुनाव में जब एनडीए ने जगदीप धनखड़ को चुना था, तो तृणमूल कांग्रेस ने मतदान से परहेज किया था।
11 hours ago