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हमारे सैनिक ही नहीं इसरो की 10 आंखों भी कर रहीं थीं देश की निगरानी, पाकिस्तान से विवाद के बीच इसरो चीफ का बयान

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पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान को सबक सिखाया। आतंकियों को पालने वाले पाकिस्तान पर भारतीय सेना कहर बनकर टूटी। भारतीय सेना ने एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।भारत की ओर से जारी ऑपरेशन सिंदूर के तहत किए गए सटीक हमलों में 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया। भारत की इस कार्वाई से बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया, जिसका जवाब भारतीय एयरफोर्स ने बखूबी दिया और उसके एयरबेस को नुकसान पहुंचाया। साथ ही साथ रडार सिस्टम को भी ध्वस्त कर दिया। सेना के इस एक्शन को पूरा देश सराह रहा है। इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रमुख वी नारायणन का बड़ा बयान सामने आया है।

‘आप सभी हमारे पड़ोसियों के बारे में जानते हैं’

इसरो के चेयरमैन वी नारायणन ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि देश के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक उद्देश्य से 10 सेटेलाइट चौबीसों घंटे काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आप सभी हमारे पड़ोसियों के बारे में जानते हैं। ऐसे में हमें देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सैटेलाइट्स की मदद लेनी पड़ती है। हम 7000 किलोमीटर का इलाका कवर कर रहे हैं। साथ ही पूरे उत्तर पूर्व पर भी लगातार निगरानी की जा रही है और बिना सैटेलाइट्स और ड्रोन की मदद ली जा रही है।

‘सैटेलाइट और ड्रोन बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकते’

अगरतला में केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के पांचवें दीक्षांत समारोह में उन्होंने कहा, अगर हम अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो हमें अपने उपग्रहों के माध्यम से सेवा करनी होगी। हमें अपने 7,000 किलोमीटर के समुद्री इलाकों की निगरानी करनी है। सैटेलाइट और ड्रोन तकनीक के बिना हम बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकते।

9 आतंकी ठिकाने में 100 से दहशतगर्द ढेर

बता दें कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिसमें सवाई नल्ला, सरजाल, मुरीदके, कोटली, कोटली गुलपुर, महमूना जोया, भीमबर और बहावलपुर शामिल हैं। इन ठिकानों में चार पाकिस्तान में और पांच पीओके में थे। प्रमुख स्थलों में बहावलपुर, जैश-ए-मोहम्मद का अड्डा और मुरीदके शामिल थे। वहीं, भारत की ओर से जारी ऑपरेशन सिंदूर के तहत किए गए सटीक हमलों में 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया। जिसके बाद पाकिस्तान ने भी भारत पर हमला कर दिया। हालांकि, से करारा जवाब दिया गया।

इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन का निधन, 84 साल की आयु में ली अंतिम सांस

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु में निधन हो गया। बेंगलुरु स्थित आवास पर उन्होंने 84 साल की आयु में अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका पार्थिव शरीर 27 अप्रैल को अंतिम दर्शन के लिए रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) में रखा जाएगा।

पूर्व इसरो प्रमुख के निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया। पीएम मोदी ने कहा कि के कस्तूरीरंगन ने इसरो में बहुत परिश्रम से काम किया और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए भारत हमेशा डॉ. कस्तूरीरंगन का आभारी रहेगा।

कस्तूरीरंगन सबसे लम्बे समय तक इसरो चीफ के पद पर कार्यरत रहे हैं। वह 10 साल तक इसरो के चेयरमैन रहे। इसके अलावा कस्तूरी रंगन के सरकारी नीतियों के फार्मूलेशन में भी योगदान दिया। डॉ कस्तूरीरंगन ने 27 अगस्त, 2003 को रिटायरमेंट से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग में भारत सरकार के सचिव के रूप में 9 वर्षों से अधिक समय तक काम किया।

कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो ने रचा इतिहास

डॉ. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो ने भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के सफल प्रक्षेपण और संचालन सहित कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की। डॉ. कस्तूरीरंगन ने जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) के पहले सफल उड़ान परीक्षण की भी देखरेख की। उनके कार्यकाल में आईआरएस-1सी और 1डी सहित प्रमुख उपग्रहों का विकास और प्रक्षेपण और दूसरी और तीसरी पीढ़ी के इनसैट उपग्रहों की शुरुआत हुई। इन प्रगति ने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में मजबूती से स्थापित कर दिया।

इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले डॉ. कस्तूरीरंगन इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक थे, जहां उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट-2) और भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रहों (आईआरएस-1ए और आईआरएस-1बी) जैसे अगली पीढ़ी के अंतरिक्ष यान के विकास का नेतृत्व किया। उपग्रह आईआरएस-1ए के विकास में उनका योगदान भारत की उपग्रह क्षमताओं के विस्तार में महत्वपूर्ण था।

एनईपी मसौदा समिति के अध्यक्ष रहे

इसरो के पूर्व प्रमुख महत्वाकांक्षी नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को तैयार करने वाली मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। कस्तूरीरंगन ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और कर्नाटक नॉलेज कमीशन के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था।

2003 से 2009 तक रहे राज्यसभा सदस्य

कस्तूरीरंगन 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। भारत के तत्कालीन योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दी थीं। कस्तूरीरंगन अप्रैल 2004 से 2009 तक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरु के निदेशक भी रहे थे।

सरगुजा के लाल का ISRO के युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम के लिए हुआ चयन, विशेष प्रशिक्षण शिविर में होंगे शामिल

अंबिकापुर- सरगुजा के लाल ने कमाल कर दिखाया है. जवाहर नवोदय विद्यालय, सरगुजा में दसवीं कक्षा के छात्र हर्षित राज का चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के “युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम – युविका 2025” के लिए हुआ है. 

हर्षित “सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा” में 12 दिवसीय विशेष प्रशिक्षण शिविर में भाग लेंगे, जहाँ उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान, तकनीकी खोजों एवं वैज्ञानिक सोच से सीधे रू-ब-रू होने का अवसर मिलेगा.

विद्यालय परिवार इस उपलब्धि से गौरवान्वित है. विद्यालय के प्राचार्य डॉ. एसके सिन्हा ने हर्षित को बधाई देते हुए अन्य विद्यार्थियों को भी वैज्ञानिक सोच एवं अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.

कार्यक्रम के समन्वयक एवं रसायन शास्त्र के प्रवक्ता राहुल मुद्गल ने हर्षित की इस सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं. हर्षित राज की इस उपलब्धि ने विद्यालय एवं जिले का नाम रोशन किया है.

286 दिन बाद धरती पर लौटी सुनीता विलियम्स, CM विष्णुदेव साय ने दी बधाई, कहा- कठिनाइयों के बावजूद डटे रहना ही सफलता की असली पहचान

रायपुर-  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भारतीय मूल की प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को उनके ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन की सफल समाप्ति और पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी पर हार्दिक बधाई दी है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि यह असाधारण अभियान सुनीता विलियम्स के धैर्य, साहस और विज्ञान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की अद्भुत मिसाल है, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायी है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने अपने संदेश में कहा कि नभ के पार गई नारी ने धैर्य को अपना हथियार बनाया और साहस, संकल्प एवं स्वाभिमान से नव इतिहास रच दिया। कठिनाइयों के बावजूद डटे रहना ही सफलता की असली पहचान है। सुनीता विलियम्स ने इस मिशन के माध्यम से विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि जोड़ी है। उनकी यह यात्रा न केवल भारत, बल्कि समूचे विश्व के लिए प्रेरणादायी है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि सुनीता विलियम्स की सफलता नारी शक्ति के अदम्य साहस और अटूट इच्छाशक्ति का प्रतीक है। उनकी यह उपलब्धि भारत की बेटियों और युवाओं को उनके सपनों को ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए प्रेरित करेगी। यह मिशन अंतरिक्ष विज्ञान और अनुसंधान में एक नए युग का संकेत देता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।

अंतरिक्ष अन्वेषण और विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की नारी शक्ति हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही है और यह मिशन इस बात का प्रमाण है कि महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। मुख्यमंत्री श्री साय ने अंतरिक्ष अनुसंधान और वैज्ञानिक उपलब्धियों को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक समुदाय और इसरो (ISRO) के योगदान की भी सराहना की।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि हम सभी को सुनीता विलियम्स पर गर्व है। उनकी असाधारण उपलब्धि से भारत का नाम एक बार फिर अंतरिक्ष जगत में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हुआ है। उनकी यह यात्रा विज्ञान और अनुसंधान में एक नई ऊर्जा का संचार करेगी।

अंतरिक्ष में इसरो की एक और छलांग, स्पैडेक्स उपग्रह सफलतापूर्वक अनडॉक, जानें क्या होगा फायदा

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अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नया आयाम कायम किया है।इसरो ने स्पेडेक्स मिशन में अनडॉकिंग को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया है। इसके साथ ही चंद्रयान-4 के लिए रास्ता साफ हो गया है। दरअसल, अंतरिक्ष को उपग्रहों को एक साथ जोड़ने की प्रक्रिया को डॉकिंग और अलग करने की प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं। मिशन की लॉन्चिंग के बाद 2 अलग-अलग सेटेलाइट्स को स्पेस में आपस मे जोड़कर इसरो ने इतिहास लिखा था। आपस में जुड़े इन दो सेटेलाइट्स को आज फिर से सफलता पूर्वक अलग कर दिया गया।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने इस कामयाबी के लिए इसरों को बधाई दी। उन्होंने 'एक्स' पर पोस्ट किया, 'इसरो टीम को बधाई। यह हर भारतीय के लिए खुशी की बात है। स्पैडेक्स उपग्रहों ने अविश्वसनीय डी-डॉकिंग को पूरा कर लिया गया है। इससे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, चंद्रयान 4 और गगनयान समेत भविष्य के महत्वाकांक्षी मिशनों में काफी मदद मिलेगी। इन मिशनों को आगे बढ़ाने का मार्ग भी इससे प्रशस्त होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निरंतर संरक्षण इस उत्साह को बढ़ाता है।'

इसरो ने 30 दिसंबर 2024 की रात 10 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र यानी शार से स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) लॉन्च किया था।16 जनवरी को भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और लंबी छलांग लगाकर विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया था।

इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट’ (स्पेडेक्स) के तहत उपग्रहों की ‘डॉकिंग’ सफलतापूर्वक की थी। इसरो ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा था, 'भारत ने अंतरिक्ष इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है। सुप्रभात भारत, इसरो के स्पेडेक्स मिशन ने ‘डॉकिंग’ में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। इस क्षण का गवाह बनकर गर्व महसूस हो रहा है।' इसके साथ ही अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया था।

स्पेडेक्स मिशन पीएसएलवी द्वारा लॉन्च किए गए दो छोटे अंतरिक्ष यान का उपयोग करके अंतरिक्ष में डॉकिंग के प्रदर्शन के लिए एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिशन है। यह टेक्नोलॉजी भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं, जैसे चंद्रमा पर भारतीय के जोन, चंद्रमा से नमूना वापसी, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) के निर्माण और संचालन आदि के लिए जरूरी है। जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई रॉकेटों के लॉन्चिंग की आवश्यकता होती है, तब इन-स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी अनिवार्य होती है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से आज नई दिल्ली में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के अध्यक्ष डॉ वी नारायणन ने की मुलाक़ात

रायपुर-  मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से आज नई दिल्ली में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन वी. नारायणन ने भेंट कर छत्तीसगढ़ में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में नवाचारों को बढ़ावा देने पर गहन चर्चा की। इस महत्वपूर्ण बैठक में छत्तीसगढ़ में सैटेलाइट आधारित सर्वेक्षण, भू-मानचित्रण (geo-mapping), प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और स्मार्ट एग्रीकल्चर को बढ़ावा देने जैसे विषयों पर विशेष जोर दिया गया।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ में कृषि, जल संसाधन, पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में तकनीकी नवाचारों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसरो के सहयोग से हम इन क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कार्य करेंगे, जिससे किसानों को अधिक सटीक जानकारी मिले और राज्य के विकास को गति मिले।

इसरो का विशेषज्ञ दल करेगा छत्तीसगढ़ का दौरा

बैठक में बताया गया कि इसरो का एक विशेषज्ञ दल जल्द ही छत्तीसगढ़ का दौरा करेगा और राज्य में सैटेलाइट इमेजरी, जीआईएस (GIS) तकनीक और डेटा विश्लेषण के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों का विस्तृत अध्ययन करेगा। इसके तहत राज्य में मृदा स्वास्थ्य विश्लेषण, जल स्रोतों का सटीक आकलन, बाढ़ और सूखे की भविष्यवाणी, और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए डेटा-संचालित निर्णय लेने की प्रणाली विकसित की जाएगी।

छत्तीसगढ़ को मिलेगा अत्याधुनिक स्पेस टेक्नोलॉजी का लाभ

इसरो की विशेषज्ञता और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से छत्तीसगढ़ को कृषि, आपदा प्रबंधन, स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर प्लानिंग, पर्यावरण एवं वन संरक्षण सहित अन्य क्षेत्रों मे व्यापक लाभ होगा। कृषि क्षेत्र में सैटेलाइट डेटा के उपयोग से बेहतर फसल पूर्वानुमान, मिट्टी की गुणवत्ता सुधार, और जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन, बाढ़, सूखा और वनाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व-चेतावनी प्रणाली को सशक्त बनाना, नगर नियोजन, परिवहन व्यवस्था, और पर्यावरणीय संतुलन के लिए अत्याधुनिक स्पेस डेटा के उपयोग सहित वन क्षेत्रों की निगरानी और अवैध कटाई की रोकथाम के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग में सुविधा होगी।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि इसरो और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच साझेदारी से राज्य में तकनीकी प्रगति को नई ऊंचाइयां मिलेंगी। इस पहल के तहत छत्तीसगढ़ अनुसंधान संस्थानों को भी जोड़ा जाएगा, जिससे युवा वैज्ञानिकों को नवाचारों में योगदान देने का अवसर मिलेगा। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के नए युग में इसरो का सहयोग राज्य को भविष्य की तकनीकों से सशक्त बनाएगा, जिससे कृषि, पर्यावरण, जल प्रबंधन और आपदा न्यूनीकरण जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे।

भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ा झटका, ऑर्बिट में स्थापित नहीं हो सका NVS-02 सैटेलाइट, आगे क्या करेगा इसरो ?

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अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार सफलता हासिल कर रहे भारत को बड़ा क्षटका लगा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 100वें NVS-02 सैटेलाइट मिशन में रविवार को तकनीकी खराबी आ गई। NVS-02 ऑर्बिट में स्थापित नहीं हो सका है। इसरो ने बताया कि अंतरिक्ष यान के थ्रस्टर्स सही से काम नहीं कर सके, जिसकी वजह से ऑर्बिट एजजस्टमेंट में बाधा आई। इसरो का ये मिशन अंतरिक्ष-आधारित नेविगेशन सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण था। 29 जनवरी को श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी-एफ 15 के जरिए NVS-02 सैटेलाइट लॉन्च किया था।

इसरो ने अपनी वेबसाइट पर कहा कि अंतरिक्ष यान में लगे ‘थ्रस्टर्स’ के काम नहीं करने के कारण एनवीएस-02 उपग्रह को वांछित कक्षा में स्थापित करने का प्रयास सफल नहीं हो सका। इसरो ने कहा कि लॉन्‍च के बाद सेटेलाइट में लगे सौर पैनल को सफलतापूर्वक तैनात किया गया था। बिजली उत्पादन नाममात्र है. ग्राउंड स्टेशन के साथ कम्‍यूनिकेशन सिस्‍टम स्थापित हो गया है लेकिन सेटेलाइट कक्षा को आगे नहीं बढ़ाया जा सका क्योंकि ऐसा करने के लिए थ्रस्टर्स को फायर करने के लिए ऑक्सीडाइज़र को प्रवेश करने वाले वाल्व नहीं खुले थे।

इसरो ने अपने अपडेट में बताया कि हालांकि, सैटेलाइट के सभी सिस्टम सामान्य हैं और यह फिलहाल एक अंडाकार कक्षा (Elliptical Orbit) में मौजूद है। अब वैज्ञानिक इस सैटेलाइट का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसरो का NVS-02 सेटेलाइट को पृथ्वी के चारों ओर एक अण्डाकार कक्षा में स्थापित करने का इरादा था। बताया गया था कि इसकी अपोजी यानी सबसे दूर का बिंदू 37,500 किमी रहेगा जबकि पेरीजी यानी निकटतम बिंदू और 170 किमी की होगी। 29 जनवरी को जीएसएलवी द्वारा बहुत सटीक इंजेक्शन ने सेटेलाइट को एक ऐसी कक्षा में स्थापित कर दिया था जो लक्ष्‍य किए गए अपोजी से 74 किमी और पेरीजी से 0.5 किमी दूर थी।

बता दें कि इसरो का ये अभियान सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम का हिस्सा है, जो भारत में जीपीएस जैसी नेविगेशन सुविधा को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सिस्टम कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से अरुणाचल तक का हिस्सा कवर करेगा। साथ ही साथ कोस्टल लाइन से 1500 किमी तक की दूरी भी कवर होगी। इससे हवाई, समुद्री और सड़क यात्रा के लिए बेहतर नेविगेशन हेल्प मिलेगी।

अंतरिक्ष में इसरो की एक और बड़ी कामयाबी, अंतरिक्ष में 100वां मिशन सफल, एनवीएस-2 नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च

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भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो बुधवार को अपना 100वां ऐतिहासिक मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया। सुबह 6:23 बजे जीएसएलवी-एफ12 रॉकेट ने नेविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 को अंतरिक्ष में स्थापित किया। यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से किया गया। यह प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और मील का पत्थर साबित हुआ।

इसरो ने मिशन को लेकर कहा है कि मिशन सफल सफल हो गया है. भारत अंतरिक्ष नेविगेशन में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसरो के मिशन सफल होने पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘श्रीहरिकोटा से 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने के लिए इसरो को बधाई। इस रिकॉर्ड उपलब्धि के ऐतिहासिक क्षण में अंतरिक्ष विभाग से जुड़ना सौभाग्य की बात है। टीम इसरो, आपने एक बार फिर जीएसएलवी-एफ15/एनवीएस-02 मिशन के सफल प्रक्षेपण से भारत को गौरवान्वित किया है।’

नेविगेशन प्रणाली का विस्तार

एनवीएस-2 उपग्रह भारतीय नेविगेशन प्रणाली 'नाविक' का हिस्सा है। इसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप और 1,500 किलोमीटर तक के क्षेत्रों में उपयोगकर्ताओं को सटीक समय, गति और स्थिति की जानकारी देना है। 2,250 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह में एल-1, एल-5 और एस-बैंड में पेलोड्स लगाए गए हैं, जो कृषि, बेड़े प्रबंधन और लोकेशन-आधारित सेवाओं में उपयोगी साबित होंगे।

वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन

यह इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन है। उन्होंने 13 जनवरी को पदभार संभाला था। प्रक्षेपण से पहले इसरो अध्यक्ष नारायणन ने तिरुपति मंदिर में पूजा अर्चना की।

महाकुंभ में करोड़ों लीटर मल का समाधान: ISRO और वैज्ञानिकों ने खोजा निपटान का अनोखा रास्ता

हर महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं, और इसके साथ ही एक और समस्या उत्पन्न होती है – मल-मूत्र और अपशिष्ट का भारी ढेर। इस अपशिष्ट का निपटारा न केवल स्थानीय स्वच्छता के लिए, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन जाता है। इस समस्या के समाधान में अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित विभिन्न वैज्ञानिकों और अधिकारियों की टीमों ने अपनी विशेषज्ञता का योगदान देना शुरू कर दिया है।

मल-मूत्र का जमा होना

महाकुंभ के दौरान हर दिन करोड़ों लीटर मल-मूत्र और अन्य अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं। प्रयागराज जैसे शहर में, जहां भीड़-भाड़ अत्यधिक होती है, यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही, जल, वायु और भूमि पर इसके असर को नियंत्रित करना एक बड़ा चुनौती है।

ISRO की भूमिका

समस्या के समाधान के लिए ISRO ने अपनी उपग्रह तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। उपग्रहों से एकत्रित डेटा का उपयोग करके, मल-मूत्र के इकट्ठा होने वाले स्थानों की निगरानी की जा रही है। इसके अलावा, जलस्रोतों और भूमि की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए उपग्रह चित्रों की मदद ली जा रही है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तरीके से पर्यावरणीय नुकसान न हो।

ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तकनीक का उद्देश्य अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना है, ताकि उसका असर सीमित किया जा सके और स्वच्छता को बनाए रखा जा सके। "हमारे उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग स्थानीय प्रशासन और स्वच्छता टीमों द्वारा किया जा रहा है ताकि त्वरित उपाय किए जा सकें," एक ISRO अधिकारी ने बताया।

बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक तकनीक का उपयोग

वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने भी बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक मल-मूत्र उपचार तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है। इन तकनीकों का उद्देश्य जल, भूमि और हवा में प्रदूषण कम करना है। विशेष रूप से, स्वच्छता उपायों को बढ़ावा देने के लिए ‘बायो-सील’ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मल-मूत्र को जल्दी से निष्क्रिय करने में मदद करती हैं।

स्मार्ट टॉयलेट्स और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली

महाकुंभ आयोजन स्थल पर स्मार्ट टॉयलेट्स और वेस्ट ट्रीटमेंट यूनिट्स का भी उपयोग किया जा रहा है। इन टॉयलेट्स में मल-मूत्र को तुरंत ही संसाधित कर लिया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अपशिष्ट पर्यावरण में न जाए। इसके अलावा, इन टॉयलेट्स के आस-पास मल-मूत्र के एकत्रित होने के स्थानों की निगरानी और सफाई के लिए स्वच्छता दल तैनात किया जाता है।

स्थानीय प्रशासन की पहल

स्थानीय प्रशासन ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करना शुरू किया है। प्रयागराज नगर निगम और अन्य स्वच्छता अधिकारियों ने 24 घंटे का अपशिष्ट प्रबंधन सेवा उपलब्ध करवाई है। इस सेवा के तहत, मल-मूत्र को सही तरीके से निपटाने के लिए ट्रकों और विशेष यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।

महाकुंभ जैसे आयोजनों में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और इसके साथ जुड़ी अपशिष्ट समस्या को सुलझाने के लिए सरकारी एजेंसियों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की टीम एकजुट हो चुकी है। ISRO जैसी तकनीकी एजेंसियों से लेकर बायो-डिग्रेडेबल टेक्नोलॉजी और स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन उपायों तक, इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल पर्यावरण की सुरक्षा है, बल्कि स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करना है। यह एक बड़ा कदम है, जो देशभर में अन्य आयोजनों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा: सफलता के पीछे की रणनीतियाँ और प्रेरक कारण

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भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं रही है, जो उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला से भरी हुई है, जिसे वैश्विक पहचान मिली है। उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अंतर-ग्रहण अन्वेषण तक, भारत ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नेतृत्व किए गए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जो इस लेख में विस्तार से बताए गए हैं।

 1. मजबूत सरकारी समर्थन और दृष्टिकोण

भारत के अंतरिक्ष प्रयास 1969 में ISRO की स्थापना के साथ शुरू हुए, जिसे डॉ. विक्रम साराभाई ने स्थापित किया था, जिनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों की सेवा करेगा। दशकों तक, भारत सरकारों ने ISRO के मिशनों का लगातार वित्तीय समर्थन किया है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता ने भारत की इस क्षेत्र में प्रगति के रास्ते को मजबूत किया है।

2. लागत-प्रभावीता और संसाधनों का कुशल उपयोग

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य देशों द्वारा किए गए समान परियोजनाओं की तुलना में सफलता को एक मामूली लागत पर प्राप्त करता है। ISRO ने अपनी मितव्ययिता और नवाचार के कारण एक लागत-प्रभावी संगठन के रूप में ख्याति प्राप्त की है। 2013 का मंगल मिशन (मंगलयान) इसका प्रमुख उदाहरण है। केवल 74 मिलियन डॉलर की लागत से यह एशिया का पहला मिशन बन गया, जो मंगल की कक्षा में पहुंचा और भारत ने इसे पहली बार प्रयास में हासिल किया। इस मिशन की सफलता ने भारत की क्षमता को सीमित संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने में साबित किया।

 3. प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित है। हालांकि ISRO की शुरुआत में विदेशों से मदद प्राप्त की जाती थी, लेकिन वर्षों में संगठन ने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया है, जैसे रॉकेटों का प्रक्षेपण, उपग्रहों का निर्माण और अंतर-ग्रहण मिशनों का संचालन। PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) दो ऐसे उदाहरण हैं जो भारत की प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाते हैं। उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्माण करने की क्षमता ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है और इसने देश की क्षमता में विश्वास को मजबूत किया है।

 4. शिक्षा और प्रतिभा विकास पर जोर

ISRO ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को पोषित करने पर भी जोर दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि देश अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों का निरंतर उत्पादन करता है। भारत में बड़ी संख्या में सक्षम इंजीनियर, वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जिन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है। इस बौद्धिक पूंजी ने देश की अंतरिक्ष सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 5.सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां

भारत के अंतरिक्ष मिशन अकेले नहीं किए गए हैं। ISRO ने वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं। NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), रूसी अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य देशों के साथ सहयोग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है। विशेष रूप से, ISRO द्वारा विदेशी देशों के लिए उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया जाना, एक व्यावसायिक दृष्टिकोण से, ISRO को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित करता है। इन साझेदारियों के माध्यम से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों, डेटा साझाकरण और अतिरिक्त वित्तीय अवसरों का लाभ मिलता है, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करता है।

6. व्यावहारिक और सामाजिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करना

भारत के अंतरिक्ष मिशन केवल अन्वेषण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए किया है, जो समाज के लिए लाभकारी हैं। इसमें उपग्रह आधारित संचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना शामिल हैं। ISRO का पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों का काम भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संकटों जैसे बाढ़, सूखा और चक्रवातों से निपटने के तरीके को बदलने में क्रांतिकारी साबित हुआ है।

7. जनसामान्य का उत्साह और राष्ट्रीय गर्व

ISRO के मिशनों की सफलता ने एक राष्ट्रीय गर्व और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जनसामान्य के उत्साह को बढ़ावा दिया है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मील के पत्थरों के आसपास पूरे देश में उत्साह और उत्सव का माहौल था, जिससे आगे और अन्वेषण के लिए समर्थन मिला। ISRO की उपलब्धियों को व्यापक पहचान मिली है, जिससे युवा भारतीयों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली है, जो देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं।

 8. प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति

ISRO की क्षमता को जटिल अंतरिक्ष मिशनों को सफलता से अंजाम देने का श्रेय उसकी अत्यधिक प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति को भी जाता है। संगठन को समयसीमा से पहले और बजट के भीतर मिशन पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह दक्षता एक सुव्यवस्थित संगठन, स्पष्ट उद्देश्यों और ISRO की विभिन्न टीमों के बीच सहयोग पर आधारित है।

भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता एक संयोजन है दृष्टि, लागत-प्रभावी रणनीतियों, प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता का। जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष अन्वेषण में नए शिखर प्राप्त करता जाएगा, जिसमें मानव अंतरिक्ष मिशन की योजनाएं भी शामिल हैं, इसकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा यह उदाहरण पेश करती है कि कैसे रणनीतिक योजना, धैर्य और नवाचार से कोई भी देश सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकता है। सरकार के समर्थन, लोगों की प्रतिभा और दूरदृष्टि के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आने वाले वर्षों में और भी बड़े मील के पत्थर हासिल करने के लिए तैयार है।

हमारे सैनिक ही नहीं इसरो की 10 आंखों भी कर रहीं थीं देश की निगरानी, पाकिस्तान से विवाद के बीच इसरो चीफ का बयान

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पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान को सबक सिखाया। आतंकियों को पालने वाले पाकिस्तान पर भारतीय सेना कहर बनकर टूटी। भारतीय सेना ने एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।भारत की ओर से जारी ऑपरेशन सिंदूर के तहत किए गए सटीक हमलों में 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया। भारत की इस कार्वाई से बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया, जिसका जवाब भारतीय एयरफोर्स ने बखूबी दिया और उसके एयरबेस को नुकसान पहुंचाया। साथ ही साथ रडार सिस्टम को भी ध्वस्त कर दिया। सेना के इस एक्शन को पूरा देश सराह रहा है। इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रमुख वी नारायणन का बड़ा बयान सामने आया है।

‘आप सभी हमारे पड़ोसियों के बारे में जानते हैं’

इसरो के चेयरमैन वी नारायणन ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि देश के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक उद्देश्य से 10 सेटेलाइट चौबीसों घंटे काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आप सभी हमारे पड़ोसियों के बारे में जानते हैं। ऐसे में हमें देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सैटेलाइट्स की मदद लेनी पड़ती है। हम 7000 किलोमीटर का इलाका कवर कर रहे हैं। साथ ही पूरे उत्तर पूर्व पर भी लगातार निगरानी की जा रही है और बिना सैटेलाइट्स और ड्रोन की मदद ली जा रही है।

‘सैटेलाइट और ड्रोन बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकते’

अगरतला में केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के पांचवें दीक्षांत समारोह में उन्होंने कहा, अगर हम अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो हमें अपने उपग्रहों के माध्यम से सेवा करनी होगी। हमें अपने 7,000 किलोमीटर के समुद्री इलाकों की निगरानी करनी है। सैटेलाइट और ड्रोन तकनीक के बिना हम बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकते।

9 आतंकी ठिकाने में 100 से दहशतगर्द ढेर

बता दें कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिसमें सवाई नल्ला, सरजाल, मुरीदके, कोटली, कोटली गुलपुर, महमूना जोया, भीमबर और बहावलपुर शामिल हैं। इन ठिकानों में चार पाकिस्तान में और पांच पीओके में थे। प्रमुख स्थलों में बहावलपुर, जैश-ए-मोहम्मद का अड्डा और मुरीदके शामिल थे। वहीं, भारत की ओर से जारी ऑपरेशन सिंदूर के तहत किए गए सटीक हमलों में 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया। जिसके बाद पाकिस्तान ने भी भारत पर हमला कर दिया। हालांकि, से करारा जवाब दिया गया।

इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन का निधन, 84 साल की आयु में ली अंतिम सांस

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को बेंगलुरु में निधन हो गया। बेंगलुरु स्थित आवास पर उन्होंने 84 साल की आयु में अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका पार्थिव शरीर 27 अप्रैल को अंतिम दर्शन के लिए रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) में रखा जाएगा।

पूर्व इसरो प्रमुख के निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया। पीएम मोदी ने कहा कि के कस्तूरीरंगन ने इसरो में बहुत परिश्रम से काम किया और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए भारत हमेशा डॉ. कस्तूरीरंगन का आभारी रहेगा।

कस्तूरीरंगन सबसे लम्बे समय तक इसरो चीफ के पद पर कार्यरत रहे हैं। वह 10 साल तक इसरो के चेयरमैन रहे। इसके अलावा कस्तूरी रंगन के सरकारी नीतियों के फार्मूलेशन में भी योगदान दिया। डॉ कस्तूरीरंगन ने 27 अगस्त, 2003 को रिटायरमेंट से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग में भारत सरकार के सचिव के रूप में 9 वर्षों से अधिक समय तक काम किया।

कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो ने रचा इतिहास

डॉ. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो ने भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के सफल प्रक्षेपण और संचालन सहित कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की। डॉ. कस्तूरीरंगन ने जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) के पहले सफल उड़ान परीक्षण की भी देखरेख की। उनके कार्यकाल में आईआरएस-1सी और 1डी सहित प्रमुख उपग्रहों का विकास और प्रक्षेपण और दूसरी और तीसरी पीढ़ी के इनसैट उपग्रहों की शुरुआत हुई। इन प्रगति ने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में मजबूती से स्थापित कर दिया।

इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले डॉ. कस्तूरीरंगन इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक थे, जहां उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट-2) और भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रहों (आईआरएस-1ए और आईआरएस-1बी) जैसे अगली पीढ़ी के अंतरिक्ष यान के विकास का नेतृत्व किया। उपग्रह आईआरएस-1ए के विकास में उनका योगदान भारत की उपग्रह क्षमताओं के विस्तार में महत्वपूर्ण था।

एनईपी मसौदा समिति के अध्यक्ष रहे

इसरो के पूर्व प्रमुख महत्वाकांक्षी नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को तैयार करने वाली मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। कस्तूरीरंगन ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और कर्नाटक नॉलेज कमीशन के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था।

2003 से 2009 तक रहे राज्यसभा सदस्य

कस्तूरीरंगन 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। भारत के तत्कालीन योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दी थीं। कस्तूरीरंगन अप्रैल 2004 से 2009 तक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरु के निदेशक भी रहे थे।

सरगुजा के लाल का ISRO के युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम के लिए हुआ चयन, विशेष प्रशिक्षण शिविर में होंगे शामिल

अंबिकापुर- सरगुजा के लाल ने कमाल कर दिखाया है. जवाहर नवोदय विद्यालय, सरगुजा में दसवीं कक्षा के छात्र हर्षित राज का चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के “युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम – युविका 2025” के लिए हुआ है. 

हर्षित “सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा” में 12 दिवसीय विशेष प्रशिक्षण शिविर में भाग लेंगे, जहाँ उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान, तकनीकी खोजों एवं वैज्ञानिक सोच से सीधे रू-ब-रू होने का अवसर मिलेगा.

विद्यालय परिवार इस उपलब्धि से गौरवान्वित है. विद्यालय के प्राचार्य डॉ. एसके सिन्हा ने हर्षित को बधाई देते हुए अन्य विद्यार्थियों को भी वैज्ञानिक सोच एवं अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.

कार्यक्रम के समन्वयक एवं रसायन शास्त्र के प्रवक्ता राहुल मुद्गल ने हर्षित की इस सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं. हर्षित राज की इस उपलब्धि ने विद्यालय एवं जिले का नाम रोशन किया है.

286 दिन बाद धरती पर लौटी सुनीता विलियम्स, CM विष्णुदेव साय ने दी बधाई, कहा- कठिनाइयों के बावजूद डटे रहना ही सफलता की असली पहचान

रायपुर-  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भारतीय मूल की प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को उनके ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन की सफल समाप्ति और पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी पर हार्दिक बधाई दी है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि यह असाधारण अभियान सुनीता विलियम्स के धैर्य, साहस और विज्ञान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की अद्भुत मिसाल है, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायी है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने अपने संदेश में कहा कि नभ के पार गई नारी ने धैर्य को अपना हथियार बनाया और साहस, संकल्प एवं स्वाभिमान से नव इतिहास रच दिया। कठिनाइयों के बावजूद डटे रहना ही सफलता की असली पहचान है। सुनीता विलियम्स ने इस मिशन के माध्यम से विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि जोड़ी है। उनकी यह यात्रा न केवल भारत, बल्कि समूचे विश्व के लिए प्रेरणादायी है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि सुनीता विलियम्स की सफलता नारी शक्ति के अदम्य साहस और अटूट इच्छाशक्ति का प्रतीक है। उनकी यह उपलब्धि भारत की बेटियों और युवाओं को उनके सपनों को ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए प्रेरित करेगी। यह मिशन अंतरिक्ष विज्ञान और अनुसंधान में एक नए युग का संकेत देता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।

अंतरिक्ष अन्वेषण और विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की नारी शक्ति हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही है और यह मिशन इस बात का प्रमाण है कि महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। मुख्यमंत्री श्री साय ने अंतरिक्ष अनुसंधान और वैज्ञानिक उपलब्धियों को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक समुदाय और इसरो (ISRO) के योगदान की भी सराहना की।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि हम सभी को सुनीता विलियम्स पर गर्व है। उनकी असाधारण उपलब्धि से भारत का नाम एक बार फिर अंतरिक्ष जगत में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हुआ है। उनकी यह यात्रा विज्ञान और अनुसंधान में एक नई ऊर्जा का संचार करेगी।

अंतरिक्ष में इसरो की एक और छलांग, स्पैडेक्स उपग्रह सफलतापूर्वक अनडॉक, जानें क्या होगा फायदा

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अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नया आयाम कायम किया है।इसरो ने स्पेडेक्स मिशन में अनडॉकिंग को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया है। इसके साथ ही चंद्रयान-4 के लिए रास्ता साफ हो गया है। दरअसल, अंतरिक्ष को उपग्रहों को एक साथ जोड़ने की प्रक्रिया को डॉकिंग और अलग करने की प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं। मिशन की लॉन्चिंग के बाद 2 अलग-अलग सेटेलाइट्स को स्पेस में आपस मे जोड़कर इसरो ने इतिहास लिखा था। आपस में जुड़े इन दो सेटेलाइट्स को आज फिर से सफलता पूर्वक अलग कर दिया गया।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने इस कामयाबी के लिए इसरों को बधाई दी। उन्होंने 'एक्स' पर पोस्ट किया, 'इसरो टीम को बधाई। यह हर भारतीय के लिए खुशी की बात है। स्पैडेक्स उपग्रहों ने अविश्वसनीय डी-डॉकिंग को पूरा कर लिया गया है। इससे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, चंद्रयान 4 और गगनयान समेत भविष्य के महत्वाकांक्षी मिशनों में काफी मदद मिलेगी। इन मिशनों को आगे बढ़ाने का मार्ग भी इससे प्रशस्त होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निरंतर संरक्षण इस उत्साह को बढ़ाता है।'

इसरो ने 30 दिसंबर 2024 की रात 10 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र यानी शार से स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) लॉन्च किया था।16 जनवरी को भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और लंबी छलांग लगाकर विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया था।

इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट’ (स्पेडेक्स) के तहत उपग्रहों की ‘डॉकिंग’ सफलतापूर्वक की थी। इसरो ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा था, 'भारत ने अंतरिक्ष इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है। सुप्रभात भारत, इसरो के स्पेडेक्स मिशन ने ‘डॉकिंग’ में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। इस क्षण का गवाह बनकर गर्व महसूस हो रहा है।' इसके साथ ही अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया था।

स्पेडेक्स मिशन पीएसएलवी द्वारा लॉन्च किए गए दो छोटे अंतरिक्ष यान का उपयोग करके अंतरिक्ष में डॉकिंग के प्रदर्शन के लिए एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिशन है। यह टेक्नोलॉजी भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं, जैसे चंद्रमा पर भारतीय के जोन, चंद्रमा से नमूना वापसी, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) के निर्माण और संचालन आदि के लिए जरूरी है। जब सामान्य मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई रॉकेटों के लॉन्चिंग की आवश्यकता होती है, तब इन-स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी अनिवार्य होती है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से आज नई दिल्ली में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के अध्यक्ष डॉ वी नारायणन ने की मुलाक़ात

रायपुर-  मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से आज नई दिल्ली में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन वी. नारायणन ने भेंट कर छत्तीसगढ़ में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में नवाचारों को बढ़ावा देने पर गहन चर्चा की। इस महत्वपूर्ण बैठक में छत्तीसगढ़ में सैटेलाइट आधारित सर्वेक्षण, भू-मानचित्रण (geo-mapping), प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और स्मार्ट एग्रीकल्चर को बढ़ावा देने जैसे विषयों पर विशेष जोर दिया गया।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ में कृषि, जल संसाधन, पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में तकनीकी नवाचारों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसरो के सहयोग से हम इन क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कार्य करेंगे, जिससे किसानों को अधिक सटीक जानकारी मिले और राज्य के विकास को गति मिले।

इसरो का विशेषज्ञ दल करेगा छत्तीसगढ़ का दौरा

बैठक में बताया गया कि इसरो का एक विशेषज्ञ दल जल्द ही छत्तीसगढ़ का दौरा करेगा और राज्य में सैटेलाइट इमेजरी, जीआईएस (GIS) तकनीक और डेटा विश्लेषण के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों का विस्तृत अध्ययन करेगा। इसके तहत राज्य में मृदा स्वास्थ्य विश्लेषण, जल स्रोतों का सटीक आकलन, बाढ़ और सूखे की भविष्यवाणी, और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए डेटा-संचालित निर्णय लेने की प्रणाली विकसित की जाएगी।

छत्तीसगढ़ को मिलेगा अत्याधुनिक स्पेस टेक्नोलॉजी का लाभ

इसरो की विशेषज्ञता और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से छत्तीसगढ़ को कृषि, आपदा प्रबंधन, स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर प्लानिंग, पर्यावरण एवं वन संरक्षण सहित अन्य क्षेत्रों मे व्यापक लाभ होगा। कृषि क्षेत्र में सैटेलाइट डेटा के उपयोग से बेहतर फसल पूर्वानुमान, मिट्टी की गुणवत्ता सुधार, और जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन, बाढ़, सूखा और वनाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व-चेतावनी प्रणाली को सशक्त बनाना, नगर नियोजन, परिवहन व्यवस्था, और पर्यावरणीय संतुलन के लिए अत्याधुनिक स्पेस डेटा के उपयोग सहित वन क्षेत्रों की निगरानी और अवैध कटाई की रोकथाम के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग में सुविधा होगी।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि इसरो और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच साझेदारी से राज्य में तकनीकी प्रगति को नई ऊंचाइयां मिलेंगी। इस पहल के तहत छत्तीसगढ़ अनुसंधान संस्थानों को भी जोड़ा जाएगा, जिससे युवा वैज्ञानिकों को नवाचारों में योगदान देने का अवसर मिलेगा। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के नए युग में इसरो का सहयोग राज्य को भविष्य की तकनीकों से सशक्त बनाएगा, जिससे कृषि, पर्यावरण, जल प्रबंधन और आपदा न्यूनीकरण जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे।

भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ा झटका, ऑर्बिट में स्थापित नहीं हो सका NVS-02 सैटेलाइट, आगे क्या करेगा इसरो ?

#isros_100th_mission_faces_technical_glitch_nvs_02_navigation_satellite_stuck

अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार सफलता हासिल कर रहे भारत को बड़ा क्षटका लगा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 100वें NVS-02 सैटेलाइट मिशन में रविवार को तकनीकी खराबी आ गई। NVS-02 ऑर्बिट में स्थापित नहीं हो सका है। इसरो ने बताया कि अंतरिक्ष यान के थ्रस्टर्स सही से काम नहीं कर सके, जिसकी वजह से ऑर्बिट एजजस्टमेंट में बाधा आई। इसरो का ये मिशन अंतरिक्ष-आधारित नेविगेशन सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण था। 29 जनवरी को श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी-एफ 15 के जरिए NVS-02 सैटेलाइट लॉन्च किया था।

इसरो ने अपनी वेबसाइट पर कहा कि अंतरिक्ष यान में लगे ‘थ्रस्टर्स’ के काम नहीं करने के कारण एनवीएस-02 उपग्रह को वांछित कक्षा में स्थापित करने का प्रयास सफल नहीं हो सका। इसरो ने कहा कि लॉन्‍च के बाद सेटेलाइट में लगे सौर पैनल को सफलतापूर्वक तैनात किया गया था। बिजली उत्पादन नाममात्र है. ग्राउंड स्टेशन के साथ कम्‍यूनिकेशन सिस्‍टम स्थापित हो गया है लेकिन सेटेलाइट कक्षा को आगे नहीं बढ़ाया जा सका क्योंकि ऐसा करने के लिए थ्रस्टर्स को फायर करने के लिए ऑक्सीडाइज़र को प्रवेश करने वाले वाल्व नहीं खुले थे।

इसरो ने अपने अपडेट में बताया कि हालांकि, सैटेलाइट के सभी सिस्टम सामान्य हैं और यह फिलहाल एक अंडाकार कक्षा (Elliptical Orbit) में मौजूद है। अब वैज्ञानिक इस सैटेलाइट का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसरो का NVS-02 सेटेलाइट को पृथ्वी के चारों ओर एक अण्डाकार कक्षा में स्थापित करने का इरादा था। बताया गया था कि इसकी अपोजी यानी सबसे दूर का बिंदू 37,500 किमी रहेगा जबकि पेरीजी यानी निकटतम बिंदू और 170 किमी की होगी। 29 जनवरी को जीएसएलवी द्वारा बहुत सटीक इंजेक्शन ने सेटेलाइट को एक ऐसी कक्षा में स्थापित कर दिया था जो लक्ष्‍य किए गए अपोजी से 74 किमी और पेरीजी से 0.5 किमी दूर थी।

बता दें कि इसरो का ये अभियान सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम का हिस्सा है, जो भारत में जीपीएस जैसी नेविगेशन सुविधा को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सिस्टम कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से अरुणाचल तक का हिस्सा कवर करेगा। साथ ही साथ कोस्टल लाइन से 1500 किमी तक की दूरी भी कवर होगी। इससे हवाई, समुद्री और सड़क यात्रा के लिए बेहतर नेविगेशन हेल्प मिलेगी।

अंतरिक्ष में इसरो की एक और बड़ी कामयाबी, अंतरिक्ष में 100वां मिशन सफल, एनवीएस-2 नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च

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भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो बुधवार को अपना 100वां ऐतिहासिक मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया। सुबह 6:23 बजे जीएसएलवी-एफ12 रॉकेट ने नेविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 को अंतरिक्ष में स्थापित किया। यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से किया गया। यह प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और मील का पत्थर साबित हुआ।

इसरो ने मिशन को लेकर कहा है कि मिशन सफल सफल हो गया है. भारत अंतरिक्ष नेविगेशन में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसरो के मिशन सफल होने पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘श्रीहरिकोटा से 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने के लिए इसरो को बधाई। इस रिकॉर्ड उपलब्धि के ऐतिहासिक क्षण में अंतरिक्ष विभाग से जुड़ना सौभाग्य की बात है। टीम इसरो, आपने एक बार फिर जीएसएलवी-एफ15/एनवीएस-02 मिशन के सफल प्रक्षेपण से भारत को गौरवान्वित किया है।’

नेविगेशन प्रणाली का विस्तार

एनवीएस-2 उपग्रह भारतीय नेविगेशन प्रणाली 'नाविक' का हिस्सा है। इसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप और 1,500 किलोमीटर तक के क्षेत्रों में उपयोगकर्ताओं को सटीक समय, गति और स्थिति की जानकारी देना है। 2,250 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह में एल-1, एल-5 और एस-बैंड में पेलोड्स लगाए गए हैं, जो कृषि, बेड़े प्रबंधन और लोकेशन-आधारित सेवाओं में उपयोगी साबित होंगे।

वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन

यह इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन है। उन्होंने 13 जनवरी को पदभार संभाला था। प्रक्षेपण से पहले इसरो अध्यक्ष नारायणन ने तिरुपति मंदिर में पूजा अर्चना की।

महाकुंभ में करोड़ों लीटर मल का समाधान: ISRO और वैज्ञानिकों ने खोजा निपटान का अनोखा रास्ता

हर महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं, और इसके साथ ही एक और समस्या उत्पन्न होती है – मल-मूत्र और अपशिष्ट का भारी ढेर। इस अपशिष्ट का निपटारा न केवल स्थानीय स्वच्छता के लिए, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन जाता है। इस समस्या के समाधान में अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित विभिन्न वैज्ञानिकों और अधिकारियों की टीमों ने अपनी विशेषज्ञता का योगदान देना शुरू कर दिया है।

मल-मूत्र का जमा होना

महाकुंभ के दौरान हर दिन करोड़ों लीटर मल-मूत्र और अन्य अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं। प्रयागराज जैसे शहर में, जहां भीड़-भाड़ अत्यधिक होती है, यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही, जल, वायु और भूमि पर इसके असर को नियंत्रित करना एक बड़ा चुनौती है।

ISRO की भूमिका

समस्या के समाधान के लिए ISRO ने अपनी उपग्रह तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। उपग्रहों से एकत्रित डेटा का उपयोग करके, मल-मूत्र के इकट्ठा होने वाले स्थानों की निगरानी की जा रही है। इसके अलावा, जलस्रोतों और भूमि की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए उपग्रह चित्रों की मदद ली जा रही है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तरीके से पर्यावरणीय नुकसान न हो।

ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तकनीक का उद्देश्य अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना है, ताकि उसका असर सीमित किया जा सके और स्वच्छता को बनाए रखा जा सके। "हमारे उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग स्थानीय प्रशासन और स्वच्छता टीमों द्वारा किया जा रहा है ताकि त्वरित उपाय किए जा सकें," एक ISRO अधिकारी ने बताया।

बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक तकनीक का उपयोग

वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने भी बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक मल-मूत्र उपचार तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है। इन तकनीकों का उद्देश्य जल, भूमि और हवा में प्रदूषण कम करना है। विशेष रूप से, स्वच्छता उपायों को बढ़ावा देने के लिए ‘बायो-सील’ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मल-मूत्र को जल्दी से निष्क्रिय करने में मदद करती हैं।

स्मार्ट टॉयलेट्स और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली

महाकुंभ आयोजन स्थल पर स्मार्ट टॉयलेट्स और वेस्ट ट्रीटमेंट यूनिट्स का भी उपयोग किया जा रहा है। इन टॉयलेट्स में मल-मूत्र को तुरंत ही संसाधित कर लिया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अपशिष्ट पर्यावरण में न जाए। इसके अलावा, इन टॉयलेट्स के आस-पास मल-मूत्र के एकत्रित होने के स्थानों की निगरानी और सफाई के लिए स्वच्छता दल तैनात किया जाता है।

स्थानीय प्रशासन की पहल

स्थानीय प्रशासन ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करना शुरू किया है। प्रयागराज नगर निगम और अन्य स्वच्छता अधिकारियों ने 24 घंटे का अपशिष्ट प्रबंधन सेवा उपलब्ध करवाई है। इस सेवा के तहत, मल-मूत्र को सही तरीके से निपटाने के लिए ट्रकों और विशेष यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।

महाकुंभ जैसे आयोजनों में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और इसके साथ जुड़ी अपशिष्ट समस्या को सुलझाने के लिए सरकारी एजेंसियों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की टीम एकजुट हो चुकी है। ISRO जैसी तकनीकी एजेंसियों से लेकर बायो-डिग्रेडेबल टेक्नोलॉजी और स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन उपायों तक, इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल पर्यावरण की सुरक्षा है, बल्कि स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करना है। यह एक बड़ा कदम है, जो देशभर में अन्य आयोजनों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा: सफलता के पीछे की रणनीतियाँ और प्रेरक कारण

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भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं रही है, जो उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला से भरी हुई है, जिसे वैश्विक पहचान मिली है। उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अंतर-ग्रहण अन्वेषण तक, भारत ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नेतृत्व किए गए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जो इस लेख में विस्तार से बताए गए हैं।

 1. मजबूत सरकारी समर्थन और दृष्टिकोण

भारत के अंतरिक्ष प्रयास 1969 में ISRO की स्थापना के साथ शुरू हुए, जिसे डॉ. विक्रम साराभाई ने स्थापित किया था, जिनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों की सेवा करेगा। दशकों तक, भारत सरकारों ने ISRO के मिशनों का लगातार वित्तीय समर्थन किया है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता ने भारत की इस क्षेत्र में प्रगति के रास्ते को मजबूत किया है।

2. लागत-प्रभावीता और संसाधनों का कुशल उपयोग

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य देशों द्वारा किए गए समान परियोजनाओं की तुलना में सफलता को एक मामूली लागत पर प्राप्त करता है। ISRO ने अपनी मितव्ययिता और नवाचार के कारण एक लागत-प्रभावी संगठन के रूप में ख्याति प्राप्त की है। 2013 का मंगल मिशन (मंगलयान) इसका प्रमुख उदाहरण है। केवल 74 मिलियन डॉलर की लागत से यह एशिया का पहला मिशन बन गया, जो मंगल की कक्षा में पहुंचा और भारत ने इसे पहली बार प्रयास में हासिल किया। इस मिशन की सफलता ने भारत की क्षमता को सीमित संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने में साबित किया।

 3. प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित है। हालांकि ISRO की शुरुआत में विदेशों से मदद प्राप्त की जाती थी, लेकिन वर्षों में संगठन ने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया है, जैसे रॉकेटों का प्रक्षेपण, उपग्रहों का निर्माण और अंतर-ग्रहण मिशनों का संचालन। PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) दो ऐसे उदाहरण हैं जो भारत की प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाते हैं। उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्माण करने की क्षमता ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है और इसने देश की क्षमता में विश्वास को मजबूत किया है।

 4. शिक्षा और प्रतिभा विकास पर जोर

ISRO ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को पोषित करने पर भी जोर दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि देश अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों का निरंतर उत्पादन करता है। भारत में बड़ी संख्या में सक्षम इंजीनियर, वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जिन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है। इस बौद्धिक पूंजी ने देश की अंतरिक्ष सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 5.सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां

भारत के अंतरिक्ष मिशन अकेले नहीं किए गए हैं। ISRO ने वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं। NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), रूसी अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य देशों के साथ सहयोग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है। विशेष रूप से, ISRO द्वारा विदेशी देशों के लिए उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया जाना, एक व्यावसायिक दृष्टिकोण से, ISRO को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित करता है। इन साझेदारियों के माध्यम से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों, डेटा साझाकरण और अतिरिक्त वित्तीय अवसरों का लाभ मिलता है, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करता है।

6. व्यावहारिक और सामाजिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करना

भारत के अंतरिक्ष मिशन केवल अन्वेषण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए किया है, जो समाज के लिए लाभकारी हैं। इसमें उपग्रह आधारित संचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना शामिल हैं। ISRO का पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों का काम भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संकटों जैसे बाढ़, सूखा और चक्रवातों से निपटने के तरीके को बदलने में क्रांतिकारी साबित हुआ है।

7. जनसामान्य का उत्साह और राष्ट्रीय गर्व

ISRO के मिशनों की सफलता ने एक राष्ट्रीय गर्व और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जनसामान्य के उत्साह को बढ़ावा दिया है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मील के पत्थरों के आसपास पूरे देश में उत्साह और उत्सव का माहौल था, जिससे आगे और अन्वेषण के लिए समर्थन मिला। ISRO की उपलब्धियों को व्यापक पहचान मिली है, जिससे युवा भारतीयों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली है, जो देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं।

 8. प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति

ISRO की क्षमता को जटिल अंतरिक्ष मिशनों को सफलता से अंजाम देने का श्रेय उसकी अत्यधिक प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति को भी जाता है। संगठन को समयसीमा से पहले और बजट के भीतर मिशन पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह दक्षता एक सुव्यवस्थित संगठन, स्पष्ट उद्देश्यों और ISRO की विभिन्न टीमों के बीच सहयोग पर आधारित है।

भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता एक संयोजन है दृष्टि, लागत-प्रभावी रणनीतियों, प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता का। जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष अन्वेषण में नए शिखर प्राप्त करता जाएगा, जिसमें मानव अंतरिक्ष मिशन की योजनाएं भी शामिल हैं, इसकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा यह उदाहरण पेश करती है कि कैसे रणनीतिक योजना, धैर्य और नवाचार से कोई भी देश सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकता है। सरकार के समर्थन, लोगों की प्रतिभा और दूरदृष्टि के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आने वाले वर्षों में और भी बड़े मील के पत्थर हासिल करने के लिए तैयार है।