राष्ट्रपति के 14 सवालों पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सभी राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयक को मंजूरी देने की समयसीमा तय कर दी थी। इस पर ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछे थे। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए संदर्भ पर केंद्र सरकार और देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब मांगा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी, जिसमें समय-सीमा तय करने पर विचार होगा।
विधानसभा से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल कब तक फैसला लेंगे? क्या इस पर कोई समयसीमा तय की जा सकती है? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में इस संवैधानिक सवाल पर सुनवाई हुई। अदालत ने साफ किया कि यह केवल एक राज्य का नहीं बल्कि पूरे देश के लिए मुद्दा है। इसलिए केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर 29 जुलाई तक विस्तृत जवाब मांगा गया है।
अगस्त के मध्य से शुरू होगी सुनवाई
इस मामले पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ गठित की गई है। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए. एस. चंदुरकर हैं। पीठ ने साफ किया कि अगस्त मध्य से इस मुद्दे पर नियमित सुनवाई शुरू हो सकती है।
राष्ट्रपति ने क्या कहा?
जिसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। संविधान का अनुच्छेद 143(1) राष्ट्रपति के सुप्रीम कोर्ट से विचार-विमर्श करने से संबंधित है। इसमें कहा गया है, 'यदि किसी भी समय राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि किसी कानून या तथ्य का लेकर कोई सवाल उठ रहा है, या उठ सकता है, जो सार्वजनिक महत्व का हो तो उस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जा सकती है। राष्ट्रपति उस सवाल को सर्वोच्च न्यायालय के पास भेज सकता हैं और न्यायालय, सुनवाई के बाद राष्ट्रपति को उस सवाल पर अपनी राय से अवगत करा सकता है।'
राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल
1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?
2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?
3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?
4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?
5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?
6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?
7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?
8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?
9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं।
10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?
11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?
12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है?
13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?
14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?
क्या है मामला?
इस पूरे मामले की शुरुआत 8 अप्रैल को तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए एक फैसला दिया था। इस फैसले में राष्ट्रपति के लिए एक समय सीमा तय की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए रखे गए विधेयकों को राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। जस्टिस जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था।
Jul 22 2025, 17:46