संस्कृति से जुड़ती युवा पीढ़ी: यूपी में ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाओं के जरिए लोक कलाओं का पुनर्जागरण
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की संस्कृति को पुनर्जीवित करने और भावी पीढ़ी को अपनी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाओं का आयोजन प्रदेशव्यापी स्तर पर किया जा रहा है। इन कार्यशालाओं के माध्यम से बच्चों और युवाओं को लोकनृत्य, लोकसंगीत, चित्रकला, कठपुतली, पारंपरिक नाट्य एवं हस्तशिल्प जैसी विधाओं का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
यह जानकारी प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने दी। उन्होंने कहा, "संस्कृति केवल स्मृति नहीं, सृजन का स्रोत है।" इसी भावना से प्रदेश के कोने-कोने में भारतेंदु नाट्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, भातखंडे विश्वविद्यालय, बिरजू महाराज कथक संस्थान, अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान जैसी संस्थाओं के माध्यम से विविधतापूर्ण सांस्कृतिक कार्यशालाएं संचालित की जा रही हैं।
बौद्धिक परंपराओं को भी मिला सम्मान
इस वर्ष कार्यशालाओं की विशेषता यह है कि इनमें बौद्ध और जैन दर्शन को भी स्थान दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान द्वारा आयोजित "बुद्ध पथ प्रदीप" कार्यशाला में बच्चों को ध्यान, करुणा, सह-अस्तित्व और नैतिकता के मूल्यों से परिचित कराया जा रहा है। वहीं जैन विद्या शोध संस्थान की कार्यशालाओं में अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य जैसे सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप में सिखाया जा रहा है।
55 जिलों में 59 कार्यशालाएं संपन्न
‘सृजन’ ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं के अंतर्गत अब तक प्रदेश के 55 जिलों में कुल 59 कार्यशालाएं सफलतापूर्वक आयोजित की जा चुकी हैं। ये कार्यशालाएं प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से संपन्न हुईं। कार्यशालाओं में कृ भगत, ढोला-मारु, नौटंकी, आल्हा, सोहर, बुंदेली गायन, मयूर नृत्य, राई, रसिया ब्रजलोक गायन, कठपुतली कला, तथा राम-केवट संवाद जैसे लोक तत्वों को शामिल कर युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास किया गया।
हस्तशिल्प और वादन कला का भी प्रशिक्षण
हस्तशिल्प के क्षेत्र में थारू जनजाति की मूंज शिल्प, बुंदेली चितेरी कला, रंगोली, मुखौटा निर्माण और पारंपरिक चौक पूरण चित्रकला की कार्यशालाएं आयोजित की गईं। वहीं ढोलक वादन की कार्यशालाओं के माध्यम से बच्चों को ताल-लय और लोकवाद्य की समझ से जोड़ा गया।
एक नया सांस्कृतिक युग प्रारंभ
जयवीर सिंह ने कहा कि संस्कृति विभाग के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रदेश में पिछले तीन वर्षों में सांस्कृतिक आयोजनों की संख्या तीन गुना बढ़ी है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से नवोदित कलाकारों, महिलाओं और युवाओं की भागीदारी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इन कार्यशालाओं ने लोक कला को न केवल संरक्षित किया है, बल्कि उन्हें पुनर्जीवित भी किया है।
* उद्देश्य: यूपी को भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनाना
इन समग्र प्रयासों का लक्ष्य स्पष्ट है—उत्तर प्रदेश को भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में स्थापित करना। जब वैश्वीकरण के दौर में हमारी लोक परंपराएं और मूल्य संकट में हों, तब इस प्रकार की सांस्कृतिक पहलें राष्ट्र की सांस्कृतिक आत्मा को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
May 30 2025, 19:50