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कपिल सिब्बल का उपराष्ट्रपति धनखड़ पर पलटवार, बोले- राष्ट्रपति नाम का मुखिया, कोई निजी अधिकार नहीं

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के फैसले पर सवाल उठाया। अब राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जगदीप धनखड़ की टिप्पणी की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि उपराष्ट्रपति को पता होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं और गवर्नर का भी पद ऐसा है।

निष्पक्ष बात करने की सलाह

सिब्बल ने शुक्रवार को कहा, आज अखबारों में मुझे धनखड़ साहब का भाषण पढ़कर दुख और आश्चर्य हुआ। उनको किसी पार्टी के स्पोक्सपर्सन की तरह बात नहीं करनी चाहिए बल्कि निष्पक्ष बात करें। आज पूरे देश में अगर किसी संस्था पर भरोसा किया जाता है तो वह न्यायपालिका है। जब सरकार के कुछ लोगों को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते तो वे आरोप लगाते हैं।जब अच्छी लगे तो वपक्ष से कहते हैं कि कोर्ट का फैसला है।

राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने इस पर आगे कहा कि वह उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा, आर्टिकल 142 की शक्ति सुप्रीम कोर्ट को संविधान देता है। राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं। गवर्नर का भी पद ऐसा है। गवर्नर बिल नहीं रोक सकते, राष्ट्रपति को भेजते हैं। राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह और सहयोग से ही काम करते हैं, तो राष्ट्रपति के अधिकार पर सवाल उठाने की बात नहीं है।

सभापति पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा, न्यायपालिका के अधिकारों पर ऐसे बयान हमला हैं। क्या राष्ट्रपति संसद से पास बिल को अनंत समय तक रोक सकते हैं? ऐसे काम कैसे चलेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2 जज का हो या 5 जज का, सबको मानना होता है। सभापति सदन में पक्ष-विपक्ष के बीच बैठते हैं, निष्पक्ष होते हैं। किसी पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते।

मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की बड़ी कार्रवाई, आंध्र के पूर्व सीएम जगन मोहन की 27 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त

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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक बड़ी कार्रवाई की है। ईडी ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की 27.5 करोड़ रुपये की शेयर संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है। इसके साथ ही, डालमिया सीमेंट्स (भारत) लिमिटेड (डीसीबीएल) की 377.2 करोड़ रुपये की जमीन भी जब्त की गई है। यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग मामले से जुड़ी है।

सीबीआई ने इस मामले में 2013 में चार्जशीट लगाई थी। इसके अनुसार जगन मोहन रेड्डी के साथ मिलकर डालमिया सीमेंट्स ने 417 हेक्टेयर के लाइम स्टोन अवैध तरीके से लीज में लिए थे। सीबीआई चार्जशीट के आधार पर मनी लॉर्डिंग के मामले को अब ईडी ने आगे बढ़ाया है।

जगन मोहन रेड्डी के कार्मेल एशिया होल्डिंग्स लिमिटेड, सरस्वती पावर एंड इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड और हर्षा फर्म में शेयर जब्त किए गए हैं। डीसीबीएल को यह जब्ती आदेश 15 अप्रैल, 2025 को मिला। जबकि यह आदेश 31 मार्च को ही जारी कर दिया गया था।

आरोप है आंध्र प्रदेश के कडपा जिले में 417 हेक्टेयर के लाइम स्टोन की खरीदारी में धांधली की गई थी। जगन ने अपने पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी पर प्रभाव डालकर डीसीबीएल को कडप्पा जिले में 407 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन पट्टा दिलाने में मदद की थी। यह सब 'क्विड प्रो क्वो' डील के तहत हुआ। 'क्विड प्रो क्वो' का मतलब होता है 'कुछ देना और कुछ लेना'।

इस घोटाले के जरिए जगन मोहन रेड्डी को करीब 150 करोड़ अवैध तरीके से लाभ मिलने का आरोप है। आरोप ही कि आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी तक जो पैसे पहुंचे थे, उनमें से 95 करोड़ रघुराम सीमेंट के शेयर के जरिए मिले थे और 55 करोड़ रुपये हवाला के रूप में जगन तक पहुंचे थे। सीबीआई का कहना है कि जगन मोहन रेड्डी को जो 150 करोड़ रुपये मिले हैं, उनके अलावा उन्हें हावाला के जरिए 85 करोड़ रुपये और मिलने वाले थे, लेकिन सीबीआई ने मामला दर्ज कर लिया इस वजह से ये पैसे जगन मोहन रेड्डी तक नहीं पहुंचे।

ईडी और सीबीआई का आरोप है कि वाईएस जगन मोहन रेड्डी, ऑडिटर और पूर्व सांसद वी विजय साई रेड्डी और डीसीबीएल के पुनीत डालमिया के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत, उन्होंने रघुराम सीमेंट्स लिमिटेड में अपने शेयर एक फ्रांसीसी कंपनी PARFICIM को 135 करोड़ रुपये में बेच दिए। इसमें से 55 करोड़ रुपये जगन को 16 मई, 2010 और 13 जून, 2011 के बीच हवाला चैनलों के माध्यम से नकद में दिए गए। इन भुगतानों की जानकारी आयकर विभाग, नई दिल्ली द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों में मिली।

नए वक्फ कानून पर क्या है बोहरा समुदाय की राय? विवाद के बीच पीएम मोदी से मुलाकात के मायने

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वक्फ संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में राजनीति गरम है। कुछ लोग इस कानून के पक्ष में हैं, तो एक बड़ा समुदाय इसका विरोध कर रहा है। मोदी सरकार इस कानून को मुस्लिमों की भलाई के लिए जरूरी बता रही है तो वहीं कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी पार्टियां और कई मुस्लिम संगठन वक्फ संशोधन कानून को मुसलमानों के खिलाफ बता रही है। इस बीच दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की और इस कानून की खूब तारीफ की।

नए वक्फ कानून को क्यो सपोर्ट कर रहा बोहरा समुदाय?

बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने संसद से पारित वक्फ संशोधन का स्वागत किया और इस कानून को पारित करवाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि उन्हें पीएम के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास में भरोसा है। उन्होंने पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में हो रहे सकारात्मक बदलावों की सराहना की। अब सवाल यह है कि दाऊदी बोहरा समुदाय वक्‍फ में संशोधन से क्‍यों खुश है और क्‍यों इसका सपोर्ट कर रहा है?

वक्फ कानून पर बोहरा समुदाय की राय

बोहरा सुमदाय के प्रतिनिधियों ने आगे नए वक्फ कानून की खासियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह संशोधन समुदाय के हितों की रक्षा करने के साथ-साथ वक्फ संपत्तियों से जुड़ी व्यवस्था में पारदर्शिता लाएगा। साथ ही न केवल दाऊदी बोहरा बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी साबित होगा।

102 साल पुरानी मांग पूरी

दाऊदी बोहरा समुदाय लंबे समय से वक्‍फ कानून में संशोधन की डिमांड कर रहा था। अब जाकर उनकी यह मांग पूरी हुई है। इस संशोधित कानून में दाऊदी बोहरा समुदाय की प्रमुख मांगों को शामिल किया गया है। समुदाय के लोगों का कहना है कि वह साल 1923 से ही वक्‍फ कानून के प्रावधानों से छूट देने की डिमांड कर रहे थे, लेकिन उनकी मांग अनसुनी कर दी जा रही थी। अब जाकर केंद्र सरकार ने इस कानून को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की कोशिश की है। यही वजह है कि बोहरा समुदाय इस कानून में संशोधन का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। साथ ही संशोधन होने से समुदाय के लोग खुश भी हैं।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

इधर, वक्फ संशोधन कानून का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है।सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल वक्फ कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुवनाई करते हुए गुरुवार को कहा कि अगले आदेश तक वक्फ में कोई नई नियुक्ति नहीं होगी। इसके साथ ही सरकार को जवाब देने के लिए 7 दिन का वक्त दिया गया है।

पीएम मोदी और एलन मस्क के बीच हुई बातचीत, टैरिफ वॉर के बीच किन मुद्दों पर हुई चर्चा?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेस्ला के सीईओ एलन मस्क से फोन पर बात की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर खुद मस्क के साथ हुई बातचीत की जानकारी दी है। इस बातचीत में दोनों ने भारत और अमेरिका के बीच तकनीक और इनोवेशन के क्षेत्रों में मिलकर काम करने की इच्छा जताई। इससे पहले पीएम मोदी और मास्क के बीच फरवरी में मुलाकात हुई थी। डोनाल्‍ड ट्रंप के दोबारा से अमेरिका के राष्‍ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी ने पहली बार वॉशिंगटन का दौरा किया था। इस दौरान उन्‍होंने एलन मस्‍क से भी मुलाकात की थी।

पीएम मोदी ने एक्‍स पर एक पोस्‍ट शेयर कर लिखा, एलन मस्‍क से बातचीत हुई। इस दौरान विभिन्‍न मुद्दों पर चर्चा हुई। इस साल के शुरुआत में वॉशिंगटन डीसी की यात्रा के दौरान जिन टॉपिक्‍स को हमने कवर किया था, बातचीत के दौरान उनपर भी चर्चा हुई। हमने टेक्‍नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्र में व्‍यापक संभावनाओं को देखते हुए सहयोग पर चर्चा की। इन क्षेत्रों में अमेरिका के साथ सहयोग और साझेदारी बढ़ाने के प्रति भारत पूरी तरह से समर्पित है।

फरवरी में हुई थी दोनों की मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एलन मस्क की पिछली मुलाकात फरवरी में हुई थी, जब पीएम मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे। इस दो दिन की यात्रा के दौरान दोनों ने इलेक्ट्रिक वाहन, सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे नए और उभरते क्षेत्रों में साथ मिलकर काम करने की संभावनाओं पर अच्छी बातचीत की थी।

इस मुलाकात में पीएम मोदी ने एलन मस्क के बच्चों को भारतीय साहित्य की कुछ खास किताबें तोहफे में दी थीं। इनमें रवींद्रनाथ टैगोर की "द क्रेसेंट मून", आर.के. नारायण की "द ग्रेट आर.के. नारायण कलेक्शन", और पंडित विष्णु शर्मा की "पंचतंत्र" शामिल थीं।

स्टार लिंक की टीम ने की थी पीयूष गोयल से मुलाकात

पीएम मोदी और मस्क के बीच हुई मुलाकात के एक दिन पहले केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से स्टारलिंक की टीम ने मुलाकात की थी। इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की गईं थीं, इस मुलाकात में स्टारलिंक की ओर से वाइस प्रेसिडेंट चैड गिब्स और सीनियर डायरेक्टर रायन गुडनाइट मौजूद थे। यह पहला मौका था जब स्टारलिंक के किसी प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय सरकार से औपचारिक मुलाकात की हो, मुलाकात के दूसरे दिन ही पीएम मोदी और एलन मस्क के बीच हुई बातचीत से माना जा रहा है कि अब जल्द ही भारत में स्टारलिंक की एंट्री होने वाली है।

गीता और भरत मुनि का नाट्यशास्त्र यूनेस्को ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल, पीएम मोदी ने दी बधाई

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भगवद गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी दी। इसे लेकर पीएम मोदी ने खुशी जताई। उन्होंने इसे दुनिया भर में हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण कहा।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि भारत की सभ्यतागत विरासत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को अब यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित किया गया है। यह वैश्विक सम्मान भारत के शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का जश्न मनाता है। ये कालातीत रचनाएँ साहित्यिक खजाने से कहीं अधिक हैं, वे दार्शनिक और सौंदर्यवादी आधार हैं, जिन्होंने भारत के विश्व दृष्टिकोण और हमारे सोचने, महसूस करने, जीने और अभिव्यक्त करने के तरीके को आकार दिया है। उन्होंने आगे लिखा कि इसके साथ ही, अब हमारे देश के 14 अभिलेख इस अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल हो गए हैं।

पीएम मोदी ने गजेंद्र सिंह शेखावत की पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा कि दुनिया भर में हर भारतीय के लिए यह गर्व का क्षण है। यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में गीता और नाट्यशास्त्र को शामिल किया जाना हमारी शाश्वत बुद्धिमत्ता और समृद्ध संस्कृति की वैश्विक मान्यता है। गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना का पोषण किया है। उनकी अंतर्दृष्टि दुनिया को प्रेरित करती रहती है।

17 अप्रैल को यूनेस्को ने अपने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में 74 नए दस्तावेजी विरासत संग्रह जोड़े। इससे कुल अंकित संग्रहों की संख्या 570 हो गयी। इस रजिस्टर में 72 देशों और चार अंतरराष्ट्रीय संगठनों की वैज्ञानिक क्रांति, इतिहास में महिलाओं का योगदान तथा बहुपक्षवाद की प्रमुख उपलब्धियों पर प्रविष्टियां शामिल की गईं।

यूनेस्को का मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर विश्व के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज धरोहरों की सूची है। इसमें दस्तावेजी धरोहरों को अंतरराष्ट्रीय सलाहकार समिति की सिफारिश और कार्यकारी बोर्ड की स्वीकृति से चुना जाता है। इस सूची में शामिल होना दस्तावेज़ी धरोहर के वैश्विक महत्व और सर्वकालिक मूल्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करता है। इससे शोध, शिक्षा, मनोरंजन और संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।

बंगाल हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी से भड़का भारत, अल्पसंख्यकों को लेकर दो टूक

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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते दिनों भड़की हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी को लेकर विदेश मंत्रालय ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बांग्लादेश को इस घटना पर कोई टिप्पणी करने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। साथ ही बांग्लादेश को हमारे घरेलू मसलों पर गैर-जरूरी टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में कहा, हम पश्चिम बंगाल की घटनाओं के संबंध में बांग्लादेश की टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं। यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जारी उत्पीड़न पर भारत की चिंताओं के साथ तुलना करने का एक छिपा हुआ और कपटपूर्ण प्रयास है, जहां इस तरह के कृत्यों के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। अनुचित टिप्पणियां करने और सद्गुणों का प्रदर्शन करने के बजाय, बांग्लादेश को अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत को मुस्लिमों पर दिया था ज्ञान

इससे पहले बांग्लादेश ने भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को लेकर बयान दिया है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सेक्रेटरी शफीकुल आलम ने नई दिल्ली से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए कदम उठाने का आग्रह किया था। बृहस्पतिवार को विदेश सेवा अकादमी में एक प्रेस वार्ता के दौरान आलम ने कहा, हम मुर्शिदाबाद सांप्रदायिक हिंसा में बांग्लादेश को शामिल करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से खंडन करते हैं। आलम ने कहा कि बांग्लादेश सरकार ने मुसलमानों पर हमलों की निंदा की है, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, हम भारत और पश्चिम बंगाल सरकार से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाने का आग्रह करते हैं।

मुर्शिदाबाद हिंसा में भूमिका

पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले में भारत सरकार के वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा के बाद इलाकों में पुलिस बल की तैनाती की गई है। अब तक 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रारंभिक जांच में कथित तौर पर हिंसा में बांग्लादेशी कट्टरपंथियों की संलिप्तता का संकेत मिला है।

बदला लेने की कोशिश में बांग्लादेश ने अपने पैर में मारी कुल्हाड़ी, भारत से जमीनी मार्ग से कच्चे धागे के आयात पर रोक

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भारत और बांग्लादेश के रिश्ते में बीते कुछ समय से तनातनी देखी जा रही है। दोनों देशों के बीच का तनाव अब व्यापार को भी प्रभावित करता दिख रहा है। बांग्लादेश ने भारत के साथ लैंड बॉर्डर ट्रेड को प्रभावित करने वाले कई कदम उठाए हैं।बांग्लादेश ने भारत से लैंड पोर्ट रूट के ज़रिए सूत के आयात पर पाबंदी लगा दी है। यही नहीं, बांग्लादेश ने भारत के साथ तीन लैंड पोर्ट से व्‍यापार बंद करने का ऐलान कर दिया है और एक से ट्रेड से कुछ समय के लिए स्‍थगित कर दिया है।

बांग्‍लादेश में जब से सत्‍ता मोहम्‍मद यूनुस के हाथों में आई है, तब से ही उसका झुकाव पाकिस्‍तान और चीन की ओर बढ़ता ही जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने जमीनी बंदरगाहों के माध्यम से भारत से होने वाले कच्चे धागे के आयात को निलंबित कर दिया है। बांग्लादेश के राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (NBR) के आदेश के बाद अब बेनापोल, भोमरा, सोनमस्जिद, बंग्लाबांदा और बुरीमारी भूमि बंदरगाहों के माध्यम से कच्चे धागे के आयात की अनुमति नहीं होगी। ये बंदरगाह भारत से कच्चे धागे के आयात के प्राथमिक प्रवेश बिंदु थे।

फैसले के पीछे बांग्लादेश ने बताई ये वजह

बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट ढाका ट्रिब्यून ने एनबीआर के हवाले से बताया कि भूमि बंदरगाहों के माध्यम से अब धागे का आयात नहीं किया जा सकता है। हालांकि, समुद्र या अन्य मार्गों के माध्यम से आयात की अनुमति अभी भी दी जाएगी। इस साल फरवरी में बांग्लादेश टेक्सटाइल्स मिल्स एसोसिएशन ने सरकार के जमीनी रास्तों से भारत से धागे का आयात रोकने का आग्रह किया था।

आयात रोकने के लिए तर्क दिया गया था कि सस्ता भारतीय सूत स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके बाद मार्च में बांग्लादेश व्यापार और टैरिफ आयोग ने घरेलू कपड़ा उद्योग की रक्षा के लिए जमीनी बंदरगाह आयात को अस्थायी रूप से निलंबित करने की सिफारिश की।

टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री में यूनूस को लेकर नाराजगी

वहीं, बांग्‍लादेश टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री ने यूनूस के इन कदमों को ‘आत्‍मघाती’ बताया है और वे बांग्‍लादेश सरकार से खासे नाराज हैं। भारत से धागा की आपूर्ति बाधित होने से छोटे और मध्यम आकार की गारमेंट कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि ये इकाइयां मुख्य रूप से भारतीय यार्न पर निर्भर रहती हैं। सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश ने भारतीय धागा पर बैन का फैसला इसलिए लिया है ताकि पाकिस्‍तान से ज्‍यादा यार्न बांग्‍लादेश आ सके। सरकार के इस फैसले से पाकिस्‍तान को तो भले ही फायदा हो जाए, बांग्‍लादेश को नुकसान ही नुकसान है क्‍योंकि भारतीय धागा के मुकाबले पाकिस्‍तानी धागा महंगा है। यूनूस का यह कदम भारत-बांग्लादेश व्यापारिक संबंधों में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जो आखिरकार बांग्‍लादेश के लिए ही घातक साबित होगा।

भारत ने बांग्लादेश से ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ली

पिछले कुछ महीनों से भारत और बांग्लादेश आमने-सामने हैं। हालांकि, थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में छठे बिम्सटेक समिट से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की मुलाकात के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ़ पिघल जाएगी।

लेकिन, इस बैठक के तीन दिन बाद ही भारत सरकार ने बांग्लादेश को 2020 से मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली। इस सुविधा के कारण बांग्लादेश भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों का इस्तेमाल तीसरे देश में अपने उत्पादों के निर्यात के लिए करता था।

मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर को लेकर दिया था बयान

दरअसल, भारत ने ये फैसला मोहम्मद यूनुस के एक बयान के बाद लिया था। मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर थे। इसी दौरे में यूनुस ने ऐसा बयान दिया, जिससे भारत का नाराज़ होना लाजिमी था। मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत की लैंडलॉक्ड स्थिति का हवाला दिया था। यूनुस ने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत का समंदर से कोई कनेक्शन नहीं है और बांग्लादेश ही इस इलाके का अभिभावक है। मोहम्मद यूनुस ने कहा था, भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य लैंडलॉक्ड हैं। इनका समंदर से कोई संपर्क नहीं है। इस इलाके के अभिभावक हम हैं। चीन की अर्थव्यवस्था के लिए यहाँ पर्याप्त संभावनाएं हैं। चीन यहाँ कई चीजें बना सकता है और पूरी दुनिया में आपूर्ति कर सकता है।

बांग्लादेश की पूर्वोत्तर पर बुरी नजर

बता दें कि पूर्वोत्तर भारत दशकों से उग्रवाद ग्रस्त रहा है और बांग्लादेश पर इन राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है। हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद अभी काबू में है लेकिन एक किस्म की बेचैनी अब भी देखने को मिलती है। भारत का यह इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है।

यूक्रेन में भारतीय कंपनी पर हमला, कीव के अटैक के दावों से रूस का इनकार

#russiadeniesattackonindianfirmin_ukraine

रूस-यूक्रेन के बीच जंग जारी है। इस बीच कीव स्थित एक भारतीय दवा कंपनी के गोदाम पर मिसाइल अटैक हुआ है। यूक्रेन ने दावा किया कि यह हमला रूस की ओर से किया गया था। यूक्रेन ने आरोप लगाया था कि 12 अप्रैल को रूस की सशस्त्र सेनाओं ने कीएव स्थित इस वेयरहाउस पर ड्रोन से हमला किया था। इस मामले में रूस की प्रतिक्रिया सामने आई है। रूस ने यूक्रेन के कीव में भारतीय दवा कंपनी के गोदाम पर हुए हमले में अपना हाथ होने से इनकार किया है।

कीव के दावों पर रूस ने दी सफाई

भारत स्थित रूस के दूतावास ने इस संबंध में गुरुवार को एक बयान जारी कर यूक्रेन के आरोपों को ख़ारिज कर दिया है। रूस ने कहा कि उसकी सेना ने इस भारतीय स्वामित्व वाले सिविलियन ढांचे को न तो निशाना बनाया और न ही उसकी ऐसी कोई योजना थी।

रूसी दूतावास के अनुसार, उस दिन रूसी सैन्य कार्रवाई के कुछ टार्गेट थे। इनमें यूक्रेनी सैन्य उद्योग परिसर का विमान संयंत्र, सैन्य हवाई अड्डे का ढांचा और बख्तरबंद वाहन मरम्मत केंद्र और ड्रोन असेंबली वर्कशॉप शामिल थे।

दूतावास ने बयान में कहा कि संभावना है कि यूक्रेनी वायु रक्षा प्रणाली की कोई मिसाइल लक्ष्य भेदने में विफल रही और आबादी वाले इलाके़ में जा गिरी। इससे कुसुम हेल्थकेयर के वेयरहाउस में आग लग गई। ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं।

रूस पर जानबूझकर भारतीय कारोबारियों को निशाना बनाने का आरोप

यूक्रेन ने राजधानी कीव में कुसुम ग्रुप की यूनिट ‘ग्लैडफार्म’ पर ड्रोन से हमले का दावा किया था। यूक्रेन में भारत के लिए राजदूत ओलेक्ज़ेंडर पोलिशचुक ने बुधवार को दावा किया कि यह हमला जानबूझकर किया गया था, क्योंकि कुसुम ग्रुप ने युद्ध के दौरान यूक्रेन को जरूरी मानवीय सहायता दी थी। इस हमले में कंपनी को लगभग 25 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।

यूक्रेन का आरोप है कि रूस अब फार्मास्युटिकल यूनिट्स और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को टारगेट कर रहा है। रात के वक्त ईरान निर्मित ‘शहीद’ ड्रोन से हमले इसलिए किए जा रहे हैं ताकि दिन में इंटरसेप्ट होने से बचा जा सके।

बीजेपी-एआईएडीएमके के बीच कैसा गठबंधन? साथ चुनाव लड़ेंगे पर साथ में सरकार में नहीं बनाएंगे

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तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले बीजेपी और विपक्षी एआईएडीएमके ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। हालांकि, इस गठबंधन में “गांठ” पड़ती दिख रही है। दरअसल, एआईएडीएमके ने अगले साल होने वाले तमिलनाडु चुनाव के लिए बीजेपी की योजनाओं पर पानी फेरते हुए घोषणा की कि यदि उसका गठबंधन चुनाव जीतता है तो राज्य में कोई 'गठबंधन सरकार' नहीं बनेगी। एआईएडीएमके ने साफ कर दिया कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन सिर्फ चुनाव लड़ने तक सीमित है।

एआईएडीएमके के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद एम. थंबीदुरई ने कहा है कि तमिलनाडु में गठबंधन सरकार के लिए कोई जगह नहीं है और अगर उनकी पार्टी 2026 के विधानसभा चुनाव में जीतती है, तो एडप्पाडी के. पलानीस्वामी अकेले सरकार बनाएंगे। गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए थंबीदुरई ने साफ किया कि भले ही भाजपा उनके गठबंधन में शामिल हो, लेकिन सत्ता में साझेदारी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में आज तक कभी गठबंधन सरकार नहीं बनी है। चाहे वो कांग्रेस के नेता सी. राजगोपालाचारी, के. कामराज, या द्रविड़ नेता एम.जी. रामचंद्रन और करुणानिधि हों सभी ने अकेले सरकार चलाई है। थंबीदुरई ने कहा कि 2026 में भी एडप्पाडीयार (पलानीस्वामी) अकेले सरकार बनाएंगे। गठबंधन सरकार की कोई जरूरत नहीं है और न ही इसकी परंपरा है।

वहीं, एआईएडीएमके के महासचिव और विपक्ष के नेता एडप्पाडी के. पलानीस्वामी ने बुधवार को साफ कर दिया कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन सिर्फ चुनाव लड़ने तक सीमित है। पलानीस्वामी ने कहा है कि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कभी नहीं कहा कि चुनाव के बाद तमिलनाडु में गठबंधन सरकार होगी। हमने केवल इतना कहा कि हम गठबंधन का हिस्सा हैं। हमने कभी नहीं कहा कि हम गठबंधन सरकार बनाएंगे।

यह बयान ऐसे समय आया है, जब ऐसी खबरें हैं कि एआईएडीएमके के कुछ नेता बीजेपी के साथ गठबंधन से नाखुश हैं। इस नाखुशी की वजह राज्य में 2019 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनावों में दोनों के खराब ट्रैक रिकॉर्ड से उपजी है। कथित तौर पर वक्फ कानूनों में बदलाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर मुसलमानों सहित अल्पसंख्यक समुदायों के वोटों के संभावित नुकसान को देखते हुए भी एआईएडीएमके ने अपना रुख बदला है।

बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में 12 अप्रैल को बीजेपी और एआईएडीएमके के गठबंधन पर मुहर लगी थी। एआईएडीएमके से दोस्ती के लिए बीजेपी अपने आक्रामक नेता अन्नामलाई को प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा ले लिया था, क्योंकि पलानीस्वामी उन्हें पसंद नहीं करते हैं। इसके बाद अमित शाह ने ऐलान किया था कि प्रदेश में 2026 का विधानसभा चुनाव एआईएडीएमके के साथ और अन्नाद्रमुक अध्यक्ष पलानीस्वामी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अब पलानीस्वामी के बदले रुख से बीजेपी की सियासी टेंशन बढ़ गई है।

क्या फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 हटाने से सहमत थे? पूर्व रॉ प्रमुख के खुलासा से गरमाई राजनीति

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आर्टिकल 370 जम्मू और कश्मीर की राजनीति के लिए हमेशा से एक सबसे अहम मुद्दों में से एक रहा है। इस बीच आर्टिकल 370 को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। दावा किया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए गुप्त रूप से सहमत थे। भारतीय खुफिया संस्था ‘रिसर्च एंड एनालसिस विंग’ (रॉ) के पूर्व प्रमुख एएस दुलत ने अपनी नई किताब में ये दावा किया है। इस दावे के बाद जम्मू कश्मीर में सियासी हलचल पैदा हो गई है।

पूर्व रॉ प्रमुख की किताब ने खोले राज

पूर्व चीफ एएस दुलत ने अपनी किताब 'द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई' में उन्होंने कई बड़े खुलासे किए हैं। इस किताब का विमोचन 18 अप्रैल को होने वाला है। एएस दुलत ने अपनी किताब में फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनुच्छेद 370हटाने से कुछ दिन पहले हुई मुलाकात का जिक्र किया है। दुलत लिखते हैं कि उस मुलाकात में क्या हुआ? यह कोई नहीं जान पाएगा। फारूक ने निश्चित रूप से कभी इसका जिक्र नहीं किया।

फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी को बताया दुखद

दुलत के अनुसार, 2019 में फारूक अब्दुल्ला को नजरबंद करना कश्मीर की सबसे दुखद कहानी थी। दुलत ने बताया कि बातचीत के दौरान एनसी के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला ने अपनी नजरबंदी पर सवाल उठाया था। दुलत ने किताब में लिखा है कि फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को हटाने के बारे में उनसे बात करते हुए कहा था कि 'कर लो अगर करना है। उन्होंने थोड़ा कड़वाहट के साथ कहा कि 'पर ये अरेस्ट क्यूं करना था? इसका मतलब है कि फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 हटाने के पक्ष में थे, लेकिन वे अपनी गिरफ्तारी से नाखुश थे।

किताब की बिक्री बढ़ाने के लिए “सस्ती चाल”-फारूक अब्दुल्ला

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलत द्वारा किए गए दावे की आलोचना की है। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि यह दावा दुलत की अपनी आगामी किताब की बिक्री बढ़ाने के लिए की गई “सस्ती चाल” का हिस्सा है। जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि हमें हिरासत में लिया गया क्योंकि विशेष दर्जा समाप्त किये जाने के खिलाफ हमारा रुख जगजाहिर था। मैंने जो गुपकार अलायंस बनाई उसका मकसद क्या था कि हम सब इकट्ठे होकर इसके खिलाफ खड़े हों। शुक्र है अल्लाह का कि हम सब खड़े रहे। आज भी खड़े हैं।

खुलासे पर कोई आश्चर्य नहीं- सज्जाद गनी

वहीं दूसरी तरफ, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने पोस्ट में कहा कि उन्हें इस खुलासे पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। 4 अगस्त, 2019 को मौजूदा मुख्यमंत्री (उमर अब्दुल्ला) और फारूक अब्दुल्ला की पीएम (नरेंद्र मोदी) से मुलाकात उनके लिए कभी रहस्य नहीं रही।

सज्जाद गनी लोन ने लिखा, दुलत साहब ने अपनी आने वाली किताब में खुलासा किया है कि फारूक साहब ने निजी तौर पर अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया था। दुलत साहब के इस खुलासे से यह बात बहुत विश्वसनीय लगती है क्योंकि वह फारूक के सबसे करीबी सहयोगी और मित्र हैं। सजाद ने आगे लिखा, संयोग से दुलत साहब दिल्ली के कुख्यात अंकल और आंटी ब्रिगेड के प्रसिद्ध अंकल हैं। बेशक नेशनल कॉन्फ्रेंस इससे इनकार करेगी। इसे एनसी के खिलाफ एक और साजिश कहेंगे।