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बांग्लादेशी राजदूत ने अपनी ही सरकार को घेरा, मोहम्मद यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

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शेख हसीने के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ है। मोहम्मद यूनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरता अपने चरम पर है। मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों को बढ़ावा देने के आरोप लग रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों और कट्टरपंथियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से दुनिया भर में यूनुस सरकार की निंदा हुई है। भारत ने भी हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर कई बार बांग्लादेश सरकार को कड़े कदम उठाने को लेकर बोल चुका है। लेकिन यूनुस सरकार ने इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इस बीच मोरक्को में बांग्लादेश के राजदूत हारुन अल रशीद ने अपनी ही सरकार को घेरा है।

राजदूत हारुन अल रशीद ने मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों का समर्थन करने और देश में अराजकता फैलाने का गंभीर आरोप लगाया है। रशीद का कहना है कि यूनुस बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष संरचना को तोड़ने और शेख हसीना की सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं।

हारुन अल रशीद ने फेसबुक पर पोस्ट कर मोहम्मद यूनुस पर जमकर निशाना साधा। हारुन अल रशीद ने पोस्ट में लिखा कि बांग्लादेश आतंक और अराजकता की गिरफ्त में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के शासन में कट्टरपंथियों को खुली छूट दी गई है और मीडिया को दबा दिया गया है, जिससे अत्याचार की खबरें सामने नहीं आ रही हैं। रशीद ने लिखा, यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने में लगे हैं। ये लोग संग्रहालयों, सूफी दरगाहों और हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रहे हैं।

कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन देने का आरोप

रशीद ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के बाद से मुहम्मद यूनुस ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। वह अब एक सुधारक नहीं बल्कि एक अत्याचारी शासक बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि शेख हसीना ने जिस बांग्लादेश का निर्माण किया था, यूनुस ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। यहीं नहीं उन्होंने आगे कहा कि यूनुस के शासन के दौरान महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। कट्टरपंथी संगठन जैसे हिजब-उत-तहरीर, इस्लामिक स्टेट और अल कायदा खुलेआम इस्लामी शासन की मांग कर रहे हैं और इन्हें यूनुस का समर्थन मिल रहा है।

यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

रशीद ने आगे कहा कि, बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित हुआ था, लेकिन अब कट्टरपंथी इस पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी बेटी शेख हसीना दोनों ही चरमपंथियों के निशाने पर रहे हैं, और अब यूनुस भी इन्हें शह दे रहे हैं।

कौन हैं हारुन अल रशीद?

बांग्लादेश सरकार ने अक्टूबर, 2023 में मोहम्मद हारुन अल रशीद को मोरक्को में बांग्लादेश का राजदूत नियुक्त किया था। मोहम्मद हारुन अल रशीद बांग्लादेश सिविल सेवा (विदेश मामले) कैडर के 20वें बैच से आते हैं। उन्होंने 2001 में सेवा में शामिल होने के बाद कनाडा में बांग्लादेश उच्चायोग में मंत्री और उप उच्चायुक्त के रूप में भी काम किया है। वह रोम, काहिरा, मैक्सिको सिटी और मैड्रिड में बांग्लादेश मिशनों में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं।

रुपये सिंबल विवाद पर इसे डिजाइन करने वाले ने क्या है? डीएमके से है कनेक्शन

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तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने रुपये के चिन्ह '₹' को हटाकर 'ரூ' सिंबल से रिप्लेस कर दिया है। इस सिंबल का मतलब भी तमिल लिपी में 'रु' ही है। यह तमिल शब्द ‘रुबाई’ (रुपया) का पहला अक्षर है। ये बदलाव स्टालिन सरकार ने राज्य के बजट में किया है। बीजेपी ने स्टालिन सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया है। इस बीच तमिलनाडु सरकार के इस फैसले को लेकर रुपये सिंबल का डिजाइन बनाने वाले डी उदय कुमार का रिएक्शन आया है। उन्होंने कहा, सरकार ने बदलाव की जरूरत महसूस की और अपनी लिपि को शामिल किया। यह उनका निर्णय है, मैं इस पर कुछ नहीं कह सकता।

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स्टालिन भाषा विवाद को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। वह केंद्र पर हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं। इसी क्रम में उनकी सरकार ने रुपये का सिंबल बदलने का फैसला किया। हालांकि शायद उनको यह मालूम नहीं होगा कि रुपये के '₹' सिंबल को तमिलनाडु में जन्मे व्यक्ति ने ही डिजाइन किया था और उनके पिता खुद डीएमके के विधायक थे।

आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर डी उदय कुमार ने तमिलनाडु सरकार की ओर से राज्य बजट के लिए रुपये का नया लोगो जारी किए जाने के कुछ ही घंटों बाद भाषा विवाद में पड़ने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह महज संयोग है कि उनके पिता द्रमुक के विधायक थे। उन्होंने कहा कि मेरे पिता बहुत पहले विधायक थे। उन्होंने कहा कि मेरे पिता मेरे जन्म से पहले ही विधायक थे। अब वे गांव में शांति से रह रहे हैं। इसका इस फैसले से कोई लेना-देना नहीं है। डी उदय कुमार के पिता एन धर्मलिंगम 1971 में डीएमके के विधायक थे।

डी उदय कुमार ने 2010 में भारत सरकार द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लिया था। उनका डिज़ाइन चुना गया और 15 जुलाई 2010 को इसे आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। सरकारी पोर्टल ‘Know India’ के अनुसार, भारतीय रुपये का प्रतीक देवनागरी ‘र’ और रोमन ‘R’ का मिश्रण है। इसके ऊपर दो समानांतर रेखाएं हैं, जो राष्ट्रीय ध्वज और ‘बराबर’ के चिन्ह का प्रतीक हैं।

आपको बता दें कि तमिलनाडु सरकार 2025/26 के बजट को शुक्रवार को विधानसभा में पेश करने वाली है। उससे पहले रुपए के सिंबल को बदलने का ये फैसला सत्तारूढ़ द्रमुक ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रिभाषा फॉर्मूले के जरिए राज्य पर हिंदी थोपने के आरोप के बीच लिया है। तमिलनाडु देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां रुपए का सिंबल बदला गया है।

क्या बांग्लादेशी सेना में तख्तापलट की साजिश को भारत ने किया नाकाम? इसके पीछे था पाकिस्तान

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पड़ोसी देश बांग्लादेश में सियासती उथल-पुथल जारी है। बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बाद अब वर्तमान सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान के तख्तापलट की साजिश के दावे किए जा रहे है। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक बांग्लादेशी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद फैजुर रहमान सेना की बागडोर संभालने की तैयारियों में जुटे हैं। इस साजिश में कई कट्टरपंथी अफसर भी शामिल हैं। अब खुफिया रिपोर्टों से पता चला है कि भारत की मदद से बांग्लादेश की सेना के अंदर तख्तापलट की साजिश नाकाम हो गई है। हालांकि बांग्लादेश के आर्मी चीफ जनरल वकार-उज्जमान के ऊपर से अभी खतरा टला नहीं है।

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स्‍वराज्‍य मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक नई दिल्ली ने ना सिर्फ सेना प्रमुख की कुर्सी को बचाने में मदद की, बल्कि भारत ने चरमपंथियों की सरकार चलाने में मोहम्मद यूनुस को बहुत बड़ा झटका भी दिया है। बांग्लादेश के सेना प्रमुख के खिलाफ नाकाम तख्तापलट की कोशिश को लेकर अब रिपोर्ट्स से सामने आने लगे हैं। खुफिया जानकारियों से पता चलता है कि सैना प्रमुख की तख्तापलट की साजिश पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने तैयार की थी। आईएसआई, जनरल वकार-उज्जमान से इसलिए नाराज थी, क्योंकि आर्मी चीफ बांग्लादेश को पाकिस्तान के साथ बने रहे करीबी संबंध के बीच अवरोध बन रहे थे।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बांग्लादेश आर्मी में पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी परस्त लेफ्टिनेंट जनरल फैजुर रहमान ने अन्य जनरलों के समर्थन से बांग्लादेश आर्मी के मौजूदा चीफ जनरल वकार-उज-जमां को हटाने की कोशिश की थी, लेकिन पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने से यह नाकाम रहा। फैजुर रहमान ने पिछले हफ्ते ढाका में पाकिस्तान की सीक्रेट एजेंसी आईएसआई के प्रमुख और उसके प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की थी। इसके साथ ही वो बांग्लादेश की खुफिया एजेंसी डीजीएफआई से समर्थन जुटाने की कोशिश कर सकते हैं।

यह साजिश पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा रची गई थी। आईएसआई जनरल वाकर से नाराज थी क्योंकि उन्होंने भारत-बांग्लादेश के बीच मबूत सैन्य संबंधों के खिलाफ आवाज उठाई थी। दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश के मौजूदा इस्लामवादी शासक भी आईएसआई की इस योजना का समर्थन कर रहे थे।

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साज़िश में बांग्लादेश आर्मी के कई अधिकारी कथित रूप से शामिल थे। जनरल ऑफिसर्स कमांडिंग (जीओसी) के 10 अधिकारियों का नाम इसमें आया है। इसमें मेजर जनरल मीर मुशफिक़ुर रहमान भी हैं, जो जीओसी के 24 इन्फैन्ट्री डिवीजन में हैं और वह चटगाँव के एरिया कमांडर हैं। रहमान लेफ्टिनेंट जनरल रैंक का प्रमोशन चाहते हैं। इसके अलावा मेजर जनरल अबुल हसनत मोहम्मद तारिक़ भी हैं, जो जीओसी 33 इन्फैन्ट्री में हैं। ये सभी जनरल रहमान का समर्थन कर रहे हैं।

इकनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, बांग्लादेश के मौजूदा आर्मी प्रमुख जनरल वक़ार वैचारिक रूप से मध्यमार्गी माने जाते हैं। इन्हें भारत की तरफ झुकाव रखने वाला माना जाता है और बांग्लादेश में इस्लामिक दबदबे वाली सरकार के विरोधी रहे हैं।

बांग्लादेश की आर्मी ने रिपोर्ट को ख़ारिज किया

वहीं, बांग्लादेश आर्मी ने इस रिपोर्ट को खारिज कर चुकी है। बांग्लादेश आर्मी ने कहा है कि यह पूरी तरह से बेबुनियाद है। मंगलवार रात बांग्लादेश की इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन डायरेक्टोरेट यानी आईएसपीआर ने इस रिपोर्ट पर चिंता जताते हुए विरोध दर्ज कराया है। आईएसपीआर ने अपने बयान में कहा है, बांग्लादेश आर्मी ने भारत के कुछ मीडिया आउटलेट्स में बेबुनियाद रिपोर्ट देखी हैं। इस रिपोर्ट में आर्मी के भीतर ही संभावित तख़्तापलट का दावा किया गया है।

वकार को माना जाता है हसीना और भारत का समर्थक

वकार-उज-जमान को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और भारत का समर्थक माना जाता है। उन्होंने 5 अगस्त को तख्तापलट के बाद शेख हसीना को बांग्लादेश से निकलने में मदद की थी। हाल ही में जनरल वक़ार ने संकेत दिया था कि बांग्लादेश में क़ानून व्यवस्था बनाए रखने में सेना बड़ी भूमिका निभा सकती है। जबकि इसके उलट मोहम्मद फैजुर रहमान अपनी कट्टरपंथी सोच और पाकिस्तान समर्थक रुख के लिए जाने जाते हैं।

ढाका पहुंचे यूएन सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरेस, जानें बांग्लादेश दौरे की वजह

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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस बांग्लादेश के दौरे पर हैं। एंटोनियो गुटेरेस बांग्लादेश की चार दिवसीय यात्रा के लिए बृहस्पतिवार को ढाका पहुंचे।गुटेरेस का ये दौरा नई सरकार में रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति की समीक्षा करने के लिए हो रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों को मिलने वाली सहायता में कटौती की खबरों के बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव का यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है।

विदेश सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गुटेरेस का स्वागत किया, जहां से वे इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में पहुंचे। उनकी यात्रा के बारे में संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि गुटेरेस 13-16 मार्च तक रमजान एकजुटता यात्रा पर बांग्लादेश की यात्रा कर रहे हैं।

गुटेरेस ढाका से मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के साथ इफ्तार में शामिल होने के लिए कॉक्स बाजार जाएंगे और म्यांमार में अपने घरों से जबरन विस्थापित किए गए रोहिंग्या शरणार्थियों से मिलेंगे। साथ ही, बांग्लादेशी समुदायों से भी मिलेंगे, जो म्यांमार से आए शरणार्थियों की मेजबानी कर रहे हैं।

बता दें कि बांग्लादेश में 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैं, जो 2017 के बाद हुई हिंसा के बाद यहां आए हैं। अमेरिका समेत कई वैश्विक संगठनों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को दी जाने वाली सहायता में कटौती करने की घोषणा की है। ऐसे में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आशा व्यक्त की है कि गुटेरेस की इस यात्रा से रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सहायता जुटाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बल मिलेगा साथ ही रोहिंग्या संकट की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित होगा।

भारत पर ट्रंप के टैरिफ से अमेरिका भी होगा परेशान, महंगी हो जाएंगी दवाएं

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दुनिया में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी से हड़कंप मचा हुआ है। अमेरिका ने भारत पर भी जवाबी शुल्‍क यानी रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है।ट्रंप ने घोषणा की है कि 2 अप्रैल से भारत से आयात पर भारी शुल्क लगाया जाएगा। इसका असर सिर्फ भारत पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि ट्रंप का टैरिफ अमेरिकियों के लिए गले की फांस बन सकता है। इससे अमेरिका में लाखों मरीजों को महंगी दवाओं का सामना करना पड़ सकता है, जबकि भारत का दवा उद्योग भी संकट में आ सकता है।

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अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं अकेले भारत से आती हैं। ये दवाएं ब्रांड नाम वाली दवाओं के मुकाबले काफी सस्ती होती हैं। अमेरिका में डॉक्टर मरीजों को जिन 10 दवाओं को लेने की सलाह देते हैं, उनमें से नौ दवाएं भारत जैसे देशों से आयात की जाती हैं। इससे वाशिंगटन को स्वास्थ्य सेवा लागत में अरबों की बचत होती है।

अमेरिका में उच्च रक्तचाप और मानसिक स्वास्थ्य की 60% से अधिक दवाएँ भारत से आती हैं। मिसाल के तौर पर सबसे ज्यादा सलाह दी गई दवा एंटी-डिप्रेसेंट सेरट्रालाइन की आपूर्ति में भारत की बड़ी भूमिका है, और ये दवाएं गैर-भारतीय कंपनियों की तुलना में आधी कीमत पर मिलती हैं।

उपभोक्ता हितों के लिए काम करने वाली संस्था पब्लिक सिटिजंस के वकील पीटर मेबार्डक ने बीबीसी से कहा कि अमेरिका में हर चार में से एक मरीज पहले ही दवाओं की ऊंची कीमतों के कारण उन्हें लेने में असमर्थ है। ट्रंप के टैरिफ़ से यह संकट और गहरा सकता है। अमेरिकी अस्पताल और जेनेरिक दवा निर्माता पहले से ही ट्रंप के चीन से आयात पर बढ़ाए गए टैरिफ़ से दबाव में हैं। दवाओं के लिए कच्चे माल का 87% हिस्सा अमेरिका के बाहर से आता है, जिसमें से 40% वैश्विक आपूर्ति चीन से होती है। ट्रंप के कार्यकाल में चीनी आयात पर टैरिफ़ 20% बढ़ने से कच्चे माल की लागत पहले ही बढ़ चुकी है।

भारतीय दवा कंपनियां बड़े पैमाने पर जेनेरिक दवाएं बेचती हैं। वे पहले से ही कम मार्जिन पर काम करती हैं और वे भारी कर का खर्च वहन नहीं कर पाएंगी। वे प्रतिस्पर्धी कंपनियों की तुलना में बहुत कम कीमतों पर बेचती हैं। यही वजह है कि ये दुनिया के सबसे बड़े फार्मा बाजार में हृदय, मानसिक स्वास्थ्य, त्वचाविज्ञान और महिलाओं के स्वास्थ्य की दवाओं में लगातार प्रभुत्व हासिल कर रही हैं।

माना जा रहा है कि न तो अमेरिका और न ही भारत फार्मा आपूर्ति श्रृंखला में टूट का जोखिम उठा सकते हैं। इससे बचने के लिए भारत और अमेरिका एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। इसका लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाना है। पिछले सप्ताह वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अधिकारियों के साथ चर्चा के लिए अमेरिका की एक अनिर्धारित यात्रा की थी। इस यात्रा का उद्देश्य व्यापार समझौते पर सहमति बनाना था।

ट्रेन हाईजैक के आरोपों पर पाक को भारत का जवाब, कहा-दुनिया जानती है ग्लोबल आतंकवाद का केंद्र कहां

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पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत में ट्रेन हाईजैक की घटना के पीछे भारत का हाथ बताया है। शहबाज सरकार की ओर से लगाए गए इस आरोप पर भारत ने करारा जवाब दिया है। भारत ने पाकिस्तान के विदेश कार्यालय द्वारा लगाए गए उन आरोपों का जोरदार खंडन किया है। भारत ने कहा है कि पूरी दुनिया को पता है कि वैश्विक आतंकवाद का केंद्र कहां है? दरअसल, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से आरोप लगाए गए थे कि जाफर एक्सप्रेस हमले मामले में भारत का हाथ हो सकता है।

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“अपने अंदर झांकना चाहिए”

विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम पाकिस्तान के निराधार आरोपों को दृढ़ता से खंडन करते हैं। पूरी दुनिया जानती है कि वैश्विक आतंकवाद का केंद्र कहां है? पाकिस्तान को अपनी अंदरूनी समस्याओं और विफलताओं के लिए दूसरों पर उंगली उठाने और दोष मढ़ने के बजाय अपने अंदर झांकना चाहिए।

पाक ने क्या कहा था?

इससे पहले गुरुवार को पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने दावा किया था कि जाफर एक्सप्रेस पर हमले में शामिल विद्रोही अफगानिस्तान में मौजूद सरगनाओं के संपर्क में थे।शफकत अली खान ने अपने प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा, भारत पाकिस्तान में आतंकवाद में शामिल रहा है। जाफर एक्सप्रेस पर विशेष हमले में आतंकवादी अफगानिस्तान में मौजूद अपने आकाओं और सरगनाओं के संपर्क में थे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंध सीमा पर लगातार झड़पों और इस्लामाबाद के दावों के कारण तनावपूर्ण हो गए हैं।

पाकिस्तान में 11 मार्च को जाफर एक्सप्रेस ट्रेन का हाईजैक हुआ। जाफ़र एक्सप्रेस की घटना में 450 से अधिक यात्री शामिल थे, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 21 यात्री, चार सैनिक और अलगाववादी संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के 33 आतंकवादी शामिल थे। पाकिस्तान लगातार भारत पर बलूचिस्तान में अशांति पैदा करने के लिए बीएलए जैसे समूहों का समर्थन करने का आरोप लगाता है, इन आरोपों का भारत ने खंडन किया है।

पुतिन ने की पीएम मोदी की तारीफ, यूक्रेन संघर्ष सुलझाने की कोशिश के लिए दिया धन्यवाद

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रूस-यूक्रेन युद्धविराम पर चर्चा जोरों पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार रूस और यूक्रेन से युद्धविराम समझौता करने की गुहार लगा रहे हैं। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को पहली बार अमेरिका द्वारा यूक्रेन में 30 दिन के युद्धविराम के प्रस्ताव पर टिप्पणी की। इस दौरान उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया कि वे यूक्रेन संघर्ष पर ध्यान दे रहे हैं, जबकि उनके पास अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे भी हैं।

अपने भाषण में, पुतिन ने तीन साल पुराने युद्ध को समाप्त करने में मदद करने के लिए वैश्विक नेताओं की ओर से किए गए प्रयासों के बारे में विस्तार से बात की। पुतिन ने अपने आभार भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता शी जिनपिंग का जिक्र किया।

पुतिन ने कहा, सबसे पहले, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रंप को यूक्रेन के समाधान पर इतना ध्यान देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। हम सभी को अभी बहुत कुछ करना है, लेकिन कई देशों के लीडर्स, जैसे चीन के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य के राष्ट्रपति। वे इस मुद्दे पर बहुत समय देते हैं, और हम उनके आभारी हैं, क्योंकि यह शत्रुता को रोकने और मानव हानि को रोकने के महान उद्देश्य के लिए है।

गुरुवार को बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ एक जॉइंट में बोलते हुए व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस दुश्मनी खत्म करने के प्रस्तावों से सहमत है, लेकिन वह इस उम्मीद से आगे बढ़ता है कि इस समाप्ति से दीर्घकालिक शांति आएगी और संकट के मूल कारणों का उन्मूलन होगा।

भारत ने कई वैश्विक मंचों पर शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट की है।पीएम मोदी ने फरवरी में व्हाइट हाउस में ट्रंप से मुलाकात की, तो उन्होंने दोहराया कि ‘भारत तटस्थ नहीं है। भारत शांति के पक्ष में है। पीएम मोदी ने कहा, मैंने पहले ही राष्ट्रपति पुतिन से कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। मैं राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से उठाए गए प्रयासों का समर्थन करता हूं।

सिसोदिया और जैन पर होगी एफआईआर, राष्ट्रपति ने दी मंजूरी, 1300 करोड़ के क्लासरूम घोटाले का आरोप

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दिल्ली सरकार में पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार के आरोपों में जांच का शिकंजा कसता जा रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली सरकार के स्कूलों में क्लास रूम के निर्माण में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए पूर्व आम आदमी पार्टी के मंत्रियों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के खिलाफ जांच की मंजूरी दे दी है। यह मामला कथित 1300 करोड़ रुपये के क्लासरूम घोटाले से जुड़ा है। बीजेपी के कार्यकर्ताओं हरीश खुराना, कपिल मिश्रा और नीलकंठ बख्शी ने जुलाई 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें 12,748 कक्षाओं के निर्माण में 1300 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप लगाया गया था।

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दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने इस घोटाले की जांच सिफारिश की थी और मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंपी थी। राष्ट्रपति की ओर से हरी झंडी के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोनों आप नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच की अनुमति दे दी है। यह मंजूरी दिल्ली के उपराज्यपाल सचिवालय को भेज दी गई है।

सीवीसी ने फरवरी 2020 में इस मामले पर अपनी टिप्पणी मांगने के लिए डीओवी को रिपोर्ट भेजी थी, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने दो-ढाई साल तक इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया, जब तक कि लेफ्टिनेंट गवर्नर वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव को इस साल अगस्त में देरी की जांच करने का निर्देश नहीं दिया और इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया ने सरकारी स्कूलों का कायाकल्प करने की योजना के अंतर्गत 193 स्कूलों में 2400 से अधिक कक्षाओं का निर्माण कराया था। निर्माण की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी को सौंपी गई थी। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने 17 फरवरी 2020 की एक रिपोर्ट में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की ओर से दिल्ली सरकार के स्कूलों में 2,400 से अधिक कक्षाओं के निर्माण में घोर अनियमितताओं को उजागर किया।

अगस्त 2024 में उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव को देरी की जांच करने और इस संबंध में एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। अप्रैल 2015 में उस समय के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त कक्षाओं के निर्माण का निर्देश दिया था। पीडब्ल्यूडी को 193 स्कूलों में 2405 कक्षाओं के निर्माण का काम सौंपा गया था। पीडब्ल्यूडी ने कक्षाओं की आवश्यकता का पता लगाने के लिए एक सर्वे किया। सर्वे के आधार पर, 194 स्कूलों में 7180 समतुल्य कक्षाओं (ईसीआर) की कुल आवश्यकता का अनुमान लगाया गया। यह 2405 कक्षाओं की आवश्यकता का लगभग तीन गुना था।

तमिलनाडु सरकार ने बदला दिया रुपये का प्रतीक चिन्ह, जानिए क्या है नियम?

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देश में भाषा को लेकर बहस चल रही है। इस बीच डीएमके की अगुआई वाली तमिलनाडु सरकार ने भाषा विवाद को और भड़का दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट 2025-26 से रुपये के आधिकारिक प्रतीक (₹) को बदल कर आग में घी डालने का काम किया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदला हो। तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के इस कदम को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?

तमिलनाडु द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव का यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह का कदम नहीं उठाया। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देश भर में मान्य इस रुपये के चिह्न को राज्य सरकार बदल सकती है?

बता दें कि केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम या निर्देश नहीं हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम कानून का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। यह जरूर है कि इस कदम को अदालत में चुनौती देकर स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।

यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती तो इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।

चीन के बाहर पैदा होगा मेरा उत्तराधिकारी” दलाई लामा ने चीन को दे डाली चुनौती

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तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने अपनी नई किताब में कहा है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। करीब छह दशक पहले चीन छोड़कर भारत में शरण लेने वाले दलाई लामा की इस किताब वॉयस ऑफ द वॉयसलेस का मंगलवार को लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही हिमालयी क्षेत्र तिब्बत पर नियंत्रण को लेकर चीन के साथ उनकी तनातनी एक बार फिर बढ़ गई है।

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दलाई लामा ने ‘वायस फॉर द वायसलेस’ नामक अपनी पुस्तक में लिखा कि दुनिया भर के तिब्बती चाहते हैं दलाई लामा नामक संस्था उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहे। इस किताब में दलाई लामा ने पहली बार विशिष्ट रूप से साफ किया है कि उनका उत्तराधिकारी ‘स्वतंत्र दुनिया‘ में जन्म लेगा, जो चीन के बाहर है।

दलाई लामा लिखते हैं, "चूंकि पुनर्जन्म का उद्देश्य पूर्ववर्ती के कार्य को आगे बढ़ाना है, इसलिए नए दलाई लामा का जन्म मुक्त विश्व में होगा, ताकि दलाई लामा का पारंपरिक मिशन - यानी सार्वभौमिक करुणा की आवाज बनना, तिब्बती बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक नेता और तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने वाला तिब्बत का प्रतीक बनना - जारी रहे।"

तिब्बती परंपरा का मानना है कि जब एक वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु का निधन हो जाता है, तो उसकी आत्मा एक बच्चे के शरीर में पुनर्जन्म लेती है। वर्तमान दलाई लामा, जिन्हें दो साल की उम्र में अपने पूर्ववर्ती के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी गई थी, ने पहले उल्लेख किया था कि आध्यात्मिक नेताओं का वंश उनके साथ समाप्त हो सकता है। लेकिन अपनी किताब में स्पष्ट किया है कि उनके उत्तराधिकारी का जन्म चीन से बाहर होगा।

दलाई लामा का ये बयान टीन की बौखलाहट बढ़ाने वाला है। चीन की बैचेनी की वजह ये है कि 14वें दलाई लामा ने पुष्टि की है कि अगले दलाई लामा का जन्म ‘स्वतंत्र दुनिया’ में होगा। जिससे यह सुनिश्चित होगा कि संस्था चीनी नियंत्रण से परे तिब्बती अधिकारों और आध्यात्मिक नेतृत्व की वकालत करने की अपनी पारंपरिक भूमिका जारी रखेगी। यह बयान बीजिंग के लिए एक सीधी चुनौती है, जो लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि अगले दलाई लामा को मान्यता देने का अंतिम अधिकार उसके पास है। चीन ने तिब्बती नेता की घोषणाओं को खारिज करते हुए जोर दिया है कि किसी भी उत्तराधिकारी को बीजिंग की मंजूरी लेनी होगी।

बता दें कि चीन ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण हासिल कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप तनाव और प्रतिरोध हुआ। 1959 में, 23 साल की उम्र में, 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, माओत्से तुंग के कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ एक विफल विद्रोह के बाद हजारों तिब्बतियों के साथ भारत भाग गए। चीन दलाई लामा को "अलगाववादी" कहता है और दावा करता है कि वह उनके उत्तराधिकारी का चयन करेगा। हालांकि, 89 वर्षीय ने कहा है कि चीन द्वारा चुने गए किसी भी उत्तराधिकारी को सम्मानित नहीं किया जाएगा।