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ढाका पहुंचे यूएन सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरेस, जानें बांग्लादेश दौरे की वजह
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#un_secretary_general_antonio_guterres_bangladesh_visit

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस बांग्लादेश के दौरे पर हैं। एंटोनियो गुटेरेस बांग्लादेश की चार दिवसीय यात्रा के लिए बृहस्पतिवार को ढाका पहुंचे।गुटेरेस का ये दौरा नई सरकार में रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति की समीक्षा करने के लिए हो रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों को मिलने वाली सहायता में कटौती की खबरों के बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव का यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है।

विदेश सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गुटेरेस का स्वागत किया, जहां से वे इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में पहुंचे। उनकी यात्रा के बारे में संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि गुटेरेस 13-16 मार्च तक रमजान एकजुटता यात्रा पर बांग्लादेश की यात्रा कर रहे हैं।

गुटेरेस ढाका से मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के साथ इफ्तार में शामिल होने के लिए कॉक्स बाजार जाएंगे और म्यांमार में अपने घरों से जबरन विस्थापित किए गए रोहिंग्या शरणार्थियों से मिलेंगे। साथ ही, बांग्लादेशी समुदायों से भी मिलेंगे, जो म्यांमार से आए शरणार्थियों की मेजबानी कर रहे हैं।

बता दें कि बांग्लादेश में 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैं, जो 2017 के बाद हुई हिंसा के बाद यहां आए हैं। अमेरिका समेत कई वैश्विक संगठनों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को दी जाने वाली सहायता में कटौती करने की घोषणा की है। ऐसे में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आशा व्यक्त की है कि गुटेरेस की इस यात्रा से रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सहायता जुटाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बल मिलेगा साथ ही रोहिंग्या संकट की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित होगा।

भारत पर ट्रंप के टैरिफ से अमेरिका भी होगा परेशान, महंगी हो जाएंगी दवाएं
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#trump_tariffs_impact_on_india_us_medicine_prices

दुनिया में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी से हड़कंप मचा हुआ है। अमेरिका ने भारत पर भी जवाबी शुल्‍क यानी रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है।ट्रंप ने घोषणा की है कि 2 अप्रैल से भारत से आयात पर भारी शुल्क लगाया जाएगा। इसका असर सिर्फ भारत पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि ट्रंप का टैरिफ अमेरिकियों के लिए गले की फांस बन सकता है। इससे अमेरिका में लाखों मरीजों को महंगी दवाओं का सामना करना पड़ सकता है, जबकि भारत का दवा उद्योग भी संकट में आ सकता है।

अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं अकेले भारत से आती हैं। ये दवाएं ब्रांड नाम वाली दवाओं के मुकाबले काफी सस्ती होती हैं। अमेरिका में डॉक्टर मरीजों को जिन 10 दवाओं को लेने की सलाह देते हैं, उनमें से नौ दवाएं भारत जैसे देशों से आयात की जाती हैं। इससे वाशिंगटन को स्वास्थ्य सेवा लागत में अरबों की बचत होती है।

अमेरिका में उच्च रक्तचाप और मानसिक स्वास्थ्य की 60% से अधिक दवाएँ भारत से आती हैं। मिसाल के तौर पर सबसे ज्यादा सलाह दी गई दवा एंटी-डिप्रेसेंट सेरट्रालाइन की आपूर्ति में भारत की बड़ी भूमिका है, और ये दवाएं गैर-भारतीय कंपनियों की तुलना में आधी कीमत पर मिलती हैं।

उपभोक्ता हितों के लिए काम करने वाली संस्था पब्लिक सिटिजंस के वकील पीटर मेबार्डक ने बीबीसी से कहा कि अमेरिका में हर चार में से एक मरीज पहले ही दवाओं की ऊंची कीमतों के कारण उन्हें लेने में असमर्थ है। ट्रंप के टैरिफ़ से यह संकट और गहरा सकता है। अमेरिकी अस्पताल और जेनेरिक दवा निर्माता पहले से ही ट्रंप के चीन से आयात पर बढ़ाए गए टैरिफ़ से दबाव में हैं। दवाओं के लिए कच्चे माल का 87% हिस्सा अमेरिका के बाहर से आता है, जिसमें से 40% वैश्विक आपूर्ति चीन से होती है। ट्रंप के कार्यकाल में चीनी आयात पर टैरिफ़ 20% बढ़ने से कच्चे माल की लागत पहले ही बढ़ चुकी है।

भारतीय दवा कंपनियां बड़े पैमाने पर जेनेरिक दवाएं बेचती हैं। वे पहले से ही कम मार्जिन पर काम करती हैं और वे भारी कर का खर्च वहन नहीं कर पाएंगी। वे प्रतिस्पर्धी कंपनियों की तुलना में बहुत कम कीमतों पर बेचती हैं। यही वजह है कि ये दुनिया के सबसे बड़े फार्मा बाजार में हृदय, मानसिक स्वास्थ्य, त्वचाविज्ञान और महिलाओं के स्वास्थ्य की दवाओं में लगातार प्रभुत्व हासिल कर रही हैं।

माना जा रहा है कि न तो अमेरिका और न ही भारत फार्मा आपूर्ति श्रृंखला में टूट का जोखिम उठा सकते हैं। इससे बचने के लिए भारत और अमेरिका एक व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। इसका लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाना है। पिछले सप्ताह वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अधिकारियों के साथ चर्चा के लिए अमेरिका की एक अनिर्धारित यात्रा की थी। इस यात्रा का उद्देश्य व्यापार समझौते पर सहमति बनाना था।

ट्रेन हाईजैक के आरोपों पर पाक को भारत का जवाब, कहा-दुनिया जानती है ग्लोबल आतंकवाद का केंद्र कहां
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#pakistantrainhijackindiamearejectspaki_allegations

पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत में ट्रेन हाईजैक की घटना के पीछे भारत का हाथ बताया है। शहबाज सरकार की ओर से लगाए गए इस आरोप पर भारत ने करारा जवाब दिया है। भारत ने पाकिस्तान के विदेश कार्यालय द्वारा लगाए गए उन आरोपों का जोरदार खंडन किया है। भारत ने कहा है कि पूरी दुनिया को पता है कि वैश्विक आतंकवाद का केंद्र कहां है? दरअसल, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से आरोप लगाए गए थे कि जाफर एक्सप्रेस हमले मामले में भारत का हाथ हो सकता है।

“अपने अंदर झांकना चाहिए”

विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम पाकिस्तान के निराधार आरोपों को दृढ़ता से खंडन करते हैं। पूरी दुनिया जानती है कि वैश्विक आतंकवाद का केंद्र कहां है? पाकिस्तान को अपनी अंदरूनी समस्याओं और विफलताओं के लिए दूसरों पर उंगली उठाने और दोष मढ़ने के बजाय अपने अंदर झांकना चाहिए।

पाक ने क्या कहा था?

इससे पहले गुरुवार को पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने दावा किया था कि जाफर एक्सप्रेस पर हमले में शामिल विद्रोही अफगानिस्तान में मौजूद सरगनाओं के संपर्क में थे।शफकत अली खान ने अपने प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा, भारत पाकिस्तान में आतंकवाद में शामिल रहा है। जाफर एक्सप्रेस पर विशेष हमले में आतंकवादी अफगानिस्तान में मौजूद अपने आकाओं और सरगनाओं के संपर्क में थे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंध सीमा पर लगातार झड़पों और इस्लामाबाद के दावों के कारण तनावपूर्ण हो गए हैं।

पाकिस्तान में 11 मार्च को जाफर एक्सप्रेस ट्रेन का हाईजैक हुआ। जाफ़र एक्सप्रेस की घटना में 450 से अधिक यात्री शामिल थे, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 21 यात्री, चार सैनिक और अलगाववादी संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के 33 आतंकवादी शामिल थे। पाकिस्तान लगातार भारत पर बलूचिस्तान में अशांति पैदा करने के लिए बीएलए जैसे समूहों का समर्थन करने का आरोप लगाता है, इन आरोपों का भारत ने खंडन किया है।

पुतिन ने की पीएम मोदी की तारीफ, यूक्रेन संघर्ष सुलझाने की कोशिश के लिए दिया धन्यवाद
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#putin_thanks_trump_and_narendra_modi_to_work_on_war_end

रूस-यूक्रेन युद्धविराम पर चर्चा जोरों पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार रूस और यूक्रेन से युद्धविराम समझौता करने की गुहार लगा रहे हैं। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को पहली बार अमेरिका द्वारा यूक्रेन में 30 दिन के युद्धविराम के प्रस्ताव पर टिप्पणी की। इस दौरान उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया कि वे यूक्रेन संघर्ष पर ध्यान दे रहे हैं, जबकि उनके पास अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे भी हैं।

अपने भाषण में, पुतिन ने तीन साल पुराने युद्ध को समाप्त करने में मदद करने के लिए वैश्विक नेताओं की ओर से किए गए प्रयासों के बारे में विस्तार से बात की। पुतिन ने अपने आभार भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता शी जिनपिंग का जिक्र किया।

पुतिन ने कहा, सबसे पहले, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रंप को यूक्रेन के समाधान पर इतना ध्यान देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। हम सभी को अभी बहुत कुछ करना है, लेकिन कई देशों के लीडर्स, जैसे चीन के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य के राष्ट्रपति। वे इस मुद्दे पर बहुत समय देते हैं, और हम उनके आभारी हैं, क्योंकि यह शत्रुता को रोकने और मानव हानि को रोकने के महान उद्देश्य के लिए है।

गुरुवार को बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ एक जॉइंट में बोलते हुए व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस दुश्मनी खत्म करने के प्रस्तावों से सहमत है, लेकिन वह इस उम्मीद से आगे बढ़ता है कि इस समाप्ति से दीर्घकालिक शांति आएगी और संकट के मूल कारणों का उन्मूलन होगा।

भारत ने कई वैश्विक मंचों पर शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट की है।पीएम मोदी ने फरवरी में व्हाइट हाउस में ट्रंप से मुलाकात की, तो उन्होंने दोहराया कि ‘भारत तटस्थ नहीं है। भारत शांति के पक्ष में है। पीएम मोदी ने कहा, मैंने पहले ही राष्ट्रपति पुतिन से कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। मैं राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से उठाए गए प्रयासों का समर्थन करता हूं।

सिसोदिया और जैन पर होगी एफआईआर, राष्ट्रपति ने दी मंजूरी, 1300 करोड़ के क्लासरूम घोटाले का आरोप
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दिल्ली सरकार में पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार के आरोपों में जांच का शिकंजा कसता जा रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली सरकार के स्कूलों में क्लास रूम के निर्माण में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए पूर्व आम आदमी पार्टी के मंत्रियों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के खिलाफ जांच की मंजूरी दे दी है। यह मामला कथित 1300 करोड़ रुपये के क्लासरूम घोटाले से जुड़ा है। बीजेपी के कार्यकर्ताओं हरीश खुराना, कपिल मिश्रा और नीलकंठ बख्शी ने जुलाई 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें 12,748 कक्षाओं के निर्माण में 1300 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप लगाया गया था।

दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने इस घोटाले की जांच सिफारिश की थी और मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंपी थी। राष्ट्रपति की ओर से हरी झंडी के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोनों आप नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच की अनुमति दे दी है। यह मंजूरी दिल्ली के उपराज्यपाल सचिवालय को भेज दी गई है।

सीवीसी ने फरवरी 2020 में इस मामले पर अपनी टिप्पणी मांगने के लिए डीओवी को रिपोर्ट भेजी थी, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने दो-ढाई साल तक इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया, जब तक कि लेफ्टिनेंट गवर्नर वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव को इस साल अगस्त में देरी की जांच करने का निर्देश नहीं दिया और इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया ने सरकारी स्कूलों का कायाकल्प करने की योजना के अंतर्गत 193 स्कूलों में 2400 से अधिक कक्षाओं का निर्माण कराया था। निर्माण की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी को सौंपी गई थी। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने 17 फरवरी 2020 की एक रिपोर्ट में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की ओर से दिल्ली सरकार के स्कूलों में 2,400 से अधिक कक्षाओं के निर्माण में घोर अनियमितताओं को उजागर किया।

अगस्त 2024 में उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव को देरी की जांच करने और इस संबंध में एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। अप्रैल 2015 में उस समय के सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त कक्षाओं के निर्माण का निर्देश दिया था। पीडब्ल्यूडी को 193 स्कूलों में 2405 कक्षाओं के निर्माण का काम सौंपा गया था। पीडब्ल्यूडी ने कक्षाओं की आवश्यकता का पता लगाने के लिए एक सर्वे किया। सर्वे के आधार पर, 194 स्कूलों में 7180 समतुल्य कक्षाओं (ईसीआर) की कुल आवश्यकता का अनुमान लगाया गया। यह 2405 कक्षाओं की आवश्यकता का लगभग तीन गुना था।

तमिलनाडु सरकार ने बदला दिया रुपये का प्रतीक चिन्ह, जानिए क्या है नियम?
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#tamil_nadu_govt_replaces_rupee_symbol

देश में भाषा को लेकर बहस चल रही है। इस बीच डीएमके की अगुआई वाली तमिलनाडु सरकार ने भाषा विवाद को और भड़का दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट 2025-26 से रुपये के आधिकारिक प्रतीक (₹) को बदल कर आग में घी डालने का काम किया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदला हो। तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के इस कदम को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?

तमिलनाडु द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव का यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह का कदम नहीं उठाया। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देश भर में मान्य इस रुपये के चिह्न को राज्य सरकार बदल सकती है?

बता दें कि केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम या निर्देश नहीं हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम कानून का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। यह जरूर है कि इस कदम को अदालत में चुनौती देकर स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।

यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती तो इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।

चीन के बाहर पैदा होगा मेरा उत्तराधिकारी” दलाई लामा ने चीन को दे डाली चुनौती
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#dalai_lama_said_my_successor_will_be_born_outside_china

तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने अपनी नई किताब में कहा है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। करीब छह दशक पहले चीन छोड़कर भारत में शरण लेने वाले दलाई लामा की इस किताब वॉयस ऑफ द वॉयसलेस का मंगलवार को लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही हिमालयी क्षेत्र तिब्बत पर नियंत्रण को लेकर चीन के साथ उनकी तनातनी एक बार फिर बढ़ गई है।

दलाई लामा ने ‘वायस फॉर द वायसलेस’ नामक अपनी पुस्तक में लिखा कि दुनिया भर के तिब्बती चाहते हैं दलाई लामा नामक संस्था उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहे। इस किताब में दलाई लामा ने पहली बार विशिष्ट रूप से साफ किया है कि उनका उत्तराधिकारी ‘स्वतंत्र दुनिया‘ में जन्म लेगा, जो चीन के बाहर है।

दलाई लामा लिखते हैं, "चूंकि पुनर्जन्म का उद्देश्य पूर्ववर्ती के कार्य को आगे बढ़ाना है, इसलिए नए दलाई लामा का जन्म मुक्त विश्व में होगा, ताकि दलाई लामा का पारंपरिक मिशन - यानी सार्वभौमिक करुणा की आवाज बनना, तिब्बती बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक नेता और तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने वाला तिब्बत का प्रतीक बनना - जारी रहे।"

तिब्बती परंपरा का मानना है कि जब एक वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु का निधन हो जाता है, तो उसकी आत्मा एक बच्चे के शरीर में पुनर्जन्म लेती है। वर्तमान दलाई लामा, जिन्हें दो साल की उम्र में अपने पूर्ववर्ती के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी गई थी, ने पहले उल्लेख किया था कि आध्यात्मिक नेताओं का वंश उनके साथ समाप्त हो सकता है। लेकिन अपनी किताब में स्पष्ट किया है कि उनके उत्तराधिकारी का जन्म चीन से बाहर होगा।

दलाई लामा का ये बयान टीन की बौखलाहट बढ़ाने वाला है। चीन की बैचेनी की वजह ये है कि 14वें दलाई लामा ने पुष्टि की है कि अगले दलाई लामा का जन्म ‘स्वतंत्र दुनिया’ में होगा। जिससे यह सुनिश्चित होगा कि संस्था चीनी नियंत्रण से परे तिब्बती अधिकारों और आध्यात्मिक नेतृत्व की वकालत करने की अपनी पारंपरिक भूमिका जारी रखेगी। यह बयान बीजिंग के लिए एक सीधी चुनौती है, जो लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि अगले दलाई लामा को मान्यता देने का अंतिम अधिकार उसके पास है। चीन ने तिब्बती नेता की घोषणाओं को खारिज करते हुए जोर दिया है कि किसी भी उत्तराधिकारी को बीजिंग की मंजूरी लेनी होगी।

बता दें कि चीन ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण हासिल कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप तनाव और प्रतिरोध हुआ। 1959 में, 23 साल की उम्र में, 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, माओत्से तुंग के कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ एक विफल विद्रोह के बाद हजारों तिब्बतियों के साथ भारत भाग गए। चीन दलाई लामा को "अलगाववादी" कहता है और दावा करता है कि वह उनके उत्तराधिकारी का चयन करेगा। हालांकि, 89 वर्षीय ने कहा है कि चीन द्वारा चुने गए किसी भी उत्तराधिकारी को सम्मानित नहीं किया जाएगा।

पाकिस्तान से क्यों अलग होना चाहते हैं बलूच? आजादी की लड़ाई नाजुक मोड़ पर
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#whybaluchistananxioustobefreefrom_pakistan

बलूचिस्तान में जाफर एक्सप्रेस ट्रेन हाईजैकिंग कांड ने बलूचियों और पाकिस्तानियों के बीच के पुराने संघर्ष को उजागर कर दिया है। अपने खोए अस्‍तित्‍व वापस पाने के लिए बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) ने एक बार फिर पाकिस्‍तानी सेना के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। बलूचों ने ठान लिया है कि वो आजादी हासिल करके रहेंगे। जबरन पाकिस्‍तान मिलाने का दर्द उस वक्‍त बलूचियों के लिए नासूर बना गया, जब पाकिस्‍तान ने उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू कर दिया।

पाकिस्तान का सबसे संपन्न लेकिन पिछड़ा राज्य

बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। जर्मनी के आकार का होने का बावजूद यहां की आबादी सिर्फ डेढ़ करोड़ है, जर्मनी से 7 करोड़ कम। बलूचिस्तान तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से सम्पन्न है। इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अपनी जरूरतें पूरी करता है। इसके बाद भी ये इलाका सबसे पिछड़ा है। यही वजह है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है।

आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी

बलूचिस्तान कभी भी पाकिस्तान का अंग नहीं बनना चाहता था। जबरन पाकिस्‍तान मिलाने का दर्द बलूचियों के लिए नासूर बना गया है। अब बलूचों की आजादी की लड़ाई नाजुक मोड़ पर पहुंच गई है। आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी 1876 से शुरू होती है। तब बलूचिस्तान पर कलात रियासत का शासन था। भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश हुकूमत शासन कर रही थी। इसी साल ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई।

संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को सिक्किम और भूटान की तरह प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। यानी भूटान और सिक्किम की तरह कलात के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार का दखल नहीं था, लेकिन विदेश और रक्षा मामलों पर उसका नियंत्रण था

भारत-पाक की तरह कलात में भी आजादी की मांग

1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। भारत और पाकिस्तान की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हो गई। जब 1946 में ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ रहे हैं, तब कलात के खान यानी शासक मीर अहमद खान ने अंग्रेजों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को सरकारी वकील बनाया। बलूचिस्तान नाम से एक नया देश बनाने के लिए 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक बुलाई गई। इसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए। बैठक में जिन्ना ने कलात की आजादी की वकालत की।

बैठक में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी माना कि कलात को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। तब जिन्ना ने ही ये सुझाव दिया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाए

आजादी की घोषणा के एक महीने बाद बदले हालात

11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके साथ ही बलूचिस्तान एक अलग देश बन गया। हालांकि, इसमें एक पेंच ये था कि बलूचिस्तान की सुरक्षा पाकिस्तान के हवाले थी। आखिरकार कलात के खान ने 12 अगस्त को बलूचिस्तान को एक आजाद देश घोषित कर दिया। बलूचिस्तान में मस्जिद से कलात का पारंपरिक झंडा फहराया गया। कलात के शासक मीर अहमद खान के नाम पर खुतबा पढ़ा गया।

लेकिन, आजादी घोषित करने के ठीक एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित किया और कहा कि बलूचिस्तान एक अलग देश बनने की हालत में नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता।

बलूचिस्तान जबरन पाकिस्‍तान में मिला दिया

कलात के खान ने अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान का दौरा किया। उन्हें उम्मीद थी कि जिन्ना उनकी मदद करेंगे। जब खान कराची पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों बलूच लोगों ने उनका स्वागत बलूचिस्तान के राजा की तरह किया, लेकिन उनका स्वागत करने पाकिस्तान का कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा।पाकिस्तान के इरादे में बदलाव का यह बड़ा संकेत था। बलूचिस्तान जबरन पाकिस्‍तान में मिला दिया गया। इसी के साथ पाकिस्‍तान ने उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू कर दिया। बदले में बलूचिस्‍तान को ना ही विकास मिला और ना ही उनके प्राकृतिक संपदा के दोहन से होने वाले फायदे में कोई हिस्‍सा। देखते ही देखते, बलूचिस्‍तान की प्राकृतिक संपदा पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ बन चुकी थी, लेकिन बलूचिस्‍तान कंगाली की गर्त में जा गिरा था।

1948 से जारी है विद्रोह

बलूचिस्‍तान की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा शुरू से ही स्वतंत्रता और स्वायत्तता की मांग करता रहा है। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहला विद्रोह शुरू किया। पाकिस्तान ने 1948 के विद्रोह को कुचल दिया। विद्रोह को तब भले ही दबा दिया गया, लेकिन ये कभी खत्म नहीं हुआ। बलूचिस्तान की आजादी के लिए शुरू हुए इस विद्रोह को नए नेता मिलते रहे। 1950, 1960 और 1970 के दशक में वे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौती बनते रहे। 2000 तक पाकिस्तान के खिलाफ चार बलूच विद्रोह हुए।

गोल्ड स्मगलिंग केसः रान्या ने यूट्यूब से सीखा सोना छिपाना, पूछताछ में बड़ा खुलासा
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सोना तस्करी के मामले में गिरफ्तार कन्नड़ एक्ट्रेस रान्या राव के केस में बड़ा खुलासा हुआ है। एक्ट्रेस फिलहाल राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) की हिरासत में हैं। डीआरआई) की हिरासत में मौजूद एक्ट्रेस रान्या राव ने पूछताछ के दौरान खुलासा किया कि यह पहली बार था जब उसने दुबई से सोने की तस्करी की थी। साथ ही एक्ट्रेस ने इस बात को भी बता दिया है कि उन्होंने सोना छिपाना कहां से सिखा। रान्या ने बताया है कि उसने यूट्यूब वीडियो देखकर सोने की छड़ें छिपाना सीखा था।

रान्या ने बताया कि सोना दो प्लास्टिक से ढके पैकेट में था। मैंने एयरपोर्ट के बाथरूम में सोने की छड़ें अपने शरीर से चिपका लीं थी। मैंने सोने को अपनी जींस और जूतों में छिपा लिया। मैंने यूट्यूब वीडियो से यह करना सीखा। रान्या राव ने खुलासा किया कि उन्होंने एयरपोर्ट पर क्रेप पट्टियां और कैंची खरीदीं और एयरपोर्ट के वॉशरूम में सोने के बार अपने शरीर में छिपाए।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एक्ट्रेस रान्या ने कहा, मुझे किसी विदेशी नंबर से 1 मार्च को कॉल आया था। पिछले 2 हफ्ते से लगातार मुझे विदेशी नंबरों से फोन आ रहे थे। मुझे दुबई एयरपोर्ट के टर्मिनल 3 के गेट ए में जाने के लिए कहा गया था। मुझ से कहा गया था कि मैं दुबई एयरपोर्ट से सोना ले कर उसको बेंगलुरू में डिलीवर कर दूं। उन्होंने कहा, यह पहली बार है कि जब मैंने दुबई से गोल्ड की तस्करी कर के बेंगलुरू लेकर आई हूं। इससे पहले मैंने कभी दुबई से सोना नहीं खरीदा है और मैं कभी सोना लेकर नहीं आई हूं।

जब एक्टर से सवाल किया गया कि क्या आप बता सकती है कि आपको किसके पास से कॉल आया था, उस शख्स की पहचान जानती हैं तो उन्होंने कहा, मुझे पूरी तरह से नहीं पता है कि मुझे किसने कॉल किया था। जिस शख्स ने मुझे कॉल किया था उसके बात करने का तरीका अफ्रीकी- अमेरिकी था। एयरपोर्ट पर उसने सिक्योरिटी चेक होने के बाद मुझे गोल्ड बार दिए और उसी के फौरन बाद वो चला गया। मैं कभी दोबारा उससे नहीं मिली और मैंने कभी दोबारा उसको नहीं देखा। वो शख्स 6 फीट लंबा था और काफी गौरा था।

बता दे कि रान्या कर्नाटक के डीजीपी के रामचन्द्र राव की सौतेली बेटी हैं। एक्ट्रेस को बेंगलुरू एयरपोर्ट से अरेस्ट किया गया था। उन्हें 14.2 किलोग्राम सोने की तस्करी करने के आरोप में पकड़ा गया। इस सोने की कीमत 12.56 करोड़ है, जिसको उन्होंने अपने शरीर में छिपाया हुआ था।

परिसीमन पर स्टालिन को मिला तेलंगाना सीएम का साथ, रेवंत रेड्डी ने केन्द्र पर लगाया साज़िश करने का आरोप
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दक्षिण के राज्यों में परिसीमन को लेकर घमाशान मचा हुआ है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस पर विरोध जताया है। परिसीमन और ट्राई लैंग्वेज पॉलिसी के विरोध में स्टालिन ने 5 मार्च तमिलनाडु में सर्वदलीय की थी। बैठक में जॉइंट एक्शन कमेटी बनाने का फैसला हुआ था, ताकि इन मुद्दों पर साझा रणनीति बनाई जा सके। स्टालिन ने परिसीमन मामले में 7 मार्च को अन्य राज्यों के मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने 22 मार्च को होने वाली जॉइंट एक्शन कमेटी (जेएसी) की पहली बैठक में अपने प्रतिनिधि भेजने का अनुरोध किया था। इस बीच स्टालिन का एक प्रतिनिधिमंडल तेलंगाना पहुंचा है। ये लोग परिसीमन के मुद्दे पर बुलाई गई मीटिंग के लिए तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी को आमंत्रित करने पहुंचे।

बीजेपी बदले की कार्रवाई कर रही-रेवंत रेड्डी

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा, बीजेपी-एनडीए के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार दक्षिण भारत के राज्यों के साथ साज़िश कर रही है। यह परिसीमन नहीं है, बल्कि दक्षिणी राज्यों को सीमित करना है। हम इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, बीजेपी दक्षिण भारत के लोगों के साथ अपना स्कोर सेट करने के लिए यह सब कर रही है क्योंकि यहां लोग कभी भी बीजेपी को आगे नहीं बढ़ने देते। बीजेपी बदले की कार्रवाई कर रही है। मैं इस मुद्दे पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ खड़ा हूं।

तेलंगाना में भी होगी एक सर्वदलीय बैठक

रेवंत रेड्डी ने बताया है, सीएम स्टालिन की बुलाई बैठक में शामिल होने के लिए मुझे अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अनुमति लेनी है। पर सैद्धांतिक तौर पर मैं स्टालिन की मांग से सहमत हूं। हम स्टालिन के प्रयास का स्वागत करते हैं। कांग्रेस पार्टी इस बैठक में जाने को तैयार हो गई है लेकिन मैं शीर्ष नेतृत्व की अनुमति से जाऊंगा। तमिलनाडु जाने से पहले हम तेलंगाना में एक सर्वदलीय बैठक आयोजित करेंगे।

लोकसभा में दक्षिण की हिस्सेदारी कम होने की आशंका

सीएम रेड्डी ने कहा कि हम किशन रेड्डी को भी तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित करेंगे। यह एक ऐसा निर्णय है जो हमारे मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है। किशन रेड्डी को इस बैठक में जरूर आना चाहिए। इस पर हम सभी की ओर से कैबिनेट में सवाल उठाया जाना चाहिए। दक्षिण के राज्यों को इस बात का डर सता रहा है कि परिसीमन के बाद कहीं लोकसभा की सीटें कम न हो जाएं। दक्षिण के राज्यों को इस बात का डर है कि परिसीमन के बात लोकसभा में दक्षिण की हिस्सेदारी कम हो सकती है। वहीं, नॉर्थ इंडिया में सीटों की संख्या बढ़ सकती है। जनसंख्या

परिसीमन क्या है

लोकसभा और विधानसभा सीट की सीमा नए तरह से तय करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं। इसके लिए आयोग बनता है। परिसीमन के लिए 1952, 1963, 1973 और 2002 में आयोग गठित हो चुके हैं। आखिरी बार परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 के तहत साल 2008 में परिसीमन हुआ था। लोकसभा सीटों को लेकर परिसीमन प्रक्रिया की शुरुआत 2026 से हो सकती है। इससे 2029 के चुनाव में करीब 78 सीटें बढ़ सकती हैं। दक्षिणी राज्य जनसंख्या आधारित परिसीमन का विरोध कर रहे हैं। इस वजह से सरकार समानुपातिक परिसीमन पर विचार कर रही है।

समानुपातिक परिसीमन क्या है

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। वहीं, तमिलनाडु-पुडुचेरी में इसकी आधी यानी 40 सीटें हैं। अगर उत्तर प्रदेश की 14 सीटें बढ़ती हैं तो इसकी आधी यानी 7 सीटें तमिलनाडु-पुडुचेरी में बढ़ाना समानुपातिक प्रतिनिधित्व है। आबादी के आधार पर जितनी सीटें हिंदी पट्‌टी में बढ़ेंगी, उसी अनुपात में जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों में भी सीटें बढ़ेगी। हिंदी पट्टी के किसी राज्य की सीट में 20 लाख की आबादी पर एक सांसद होगा तो दक्षिणी राज्य में 10-12 लाख की आबादी पर एक सांसद होगा।