भागवतीवार्ता कर्ता ब्राह्मणों ने ही, भागवती कथा का सारतत्त्व नष्ट किया है-भूपेंद्रानंद महाराज
उपेन्द्र कुमार पांडेय
आजमगढ़::श्रीमद् भागवत के, माहात्म्य के,प्रथम अध्याय के,71 वें श्लोक में, देवर्षि नारद जी ने, ब्राह्मणों को ही,भागवती कथा के सार के नाश का कारण, बताते हुए कहा कि -
विप्रैर्भागवतीवार्ता गेहे गेहे जने जने।
कारिता कणलोभेन कथासारस्ततो गत:।।
देवर्षि नारद जी ने भक्ति को,कलियुग में तीर्थों आदि के सारतत्त्व के नाश को बताते बताते कहा कि -
हे भक्ति! ब्राह्मणों ने, अपने तप,त्याग तथा वेदाध्ययन,यज्ञ आदि को त्याग कर, एकमात्र भगवान से सम्बन्धित,भागवती कथाओं को, अर्थ के लोभ से घर घर में जाकर,श्रवण कराना प्रारम्भ कर दिया है, इसीलिए भगवान की कथाओं का सारतत्व ही चला गया है। भगवान से सम्बन्धित कथाओं का जो उद्देश्य था कि - सभी स्त्री पुरुषों को, अपने धर्म में दृढ़ता हो जाए,जिनको भगवान में तथा धर्माचरण में श्रद्धा विश्वास नहीं थे,उनके हृदय में, श्रद्धा विश्वास जाग्रत हो जाएं,सभी स्त्री पुरुष,स्वकर्तव्यनिष्ठ हो जाएं, इत्यादि सारतत्त्व ही नष्ट हो गया है।
आजकल,किसी की भी कथा से,समाज में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं दिखाई दे रहा है।
भारत में, रामचरितमानस के लाखों प्रवक्ता हैं। भागवत कथा के लाखों प्रवक्ता हैं। भारत के प्रत्येक ग्राम में अनेकों मन्दिर हैं। नगरों में, अनेकों मन्दिर हैं। सभी स्त्री पुरुष, प्रायः सभी मंदिरों में जाते हैं।
भगवान के मंदिरों की अगणित संख्या है। प्रायः प्रत्येक गृह में, भगवान की प्रतिमाएं हैं,चित्रपट हैं। ऐसा कोई भी गृह नहीं है, जहां भगवान का प्रतीक स्थापित नहीं हो।
प्रायः सभी जातियों ने भी कहीं भगवान के मंदिरों का निर्माण करवाया है,या भक्तों के मंदिरों का निर्माण करवाया है।
मंदिर और भगवान,तथा चित्रपट सर्वत्र विराजमान हैं।
आजकल तो प्रत्येक गाड़ी में,किसी न किसी भगवान की प्रतिमा, अवश्य ही होती है। ऐसी कोई दुकान नहीं होगी, जिसमें, भगवान का चित्रपट नहीं हो।
यहां तक कि - अगरबत्ती के पैकेट में, रंगों के पैकेट में,बीड़ी माचिस के पैकेट में, भगवान का नाम तथा चित्र दिखाई दे रहा है।
पृथिवी में प्रत्येक स्त्री पुरुष, अपनी अपनी धार्मिकता के अनुसार भगवान से संयुक्त है।
भगवान के सर्वत्र व्याप्त होने पर भी,तथा भगवान की कथाएं भी प्रायः सभी की वाणी से निकलने पर भी,कथासार नष्ट हो गया है।
देवर्षि नारद ने,इस भागवती वार्ता के सारतत्त्व के नाश का कारण, एकमात्र ब्राह्मण को ही क्यों माना है?आइए! इस पर विचार करना चाहिए!
विप्रैर्भागवतीवार्ता गेहे गेहे जने।
भगवान से सम्बन्धित सभी प्रकार की वार्ता को ही भागवती वार्ता कहते हैं। लक्ष्मी नारायण, सीताराम, कृष्णचरित्र, नृसिंह अवतार आदि किसी की भी,किसी भी प्रसंग सन्दर्भ की चर्चा को भागवती वार्ता कहते हैं।
एकमात्र भागवत की कथा को ही भागवती वार्ता नहीं कहते हैं। कोई भी कथा हो,यदि वह भगवान के चौबीस अवतारों से सम्बंधित है तो,वह भागवतीवार्ता ही है।
क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीनों के कर्मकांड संस्कार तो एकमात्र ब्राह्मण ही करवाते आए हैं। क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन तीनों के हृदय में, बुद्धि में,जो भी शास्त्रों की वार्ता है,वे सभी प्रकार की बातें तो, ब्राह्मणों से सुनकर ही आईं हैं। जो जैसा ब्राह्मणों ने बता दिया,जिस व्रत, उपवास, अनुष्ठान आदि को बता दिया,वही सभी करते हैं।
भगवान की कथा की प्रसिद्धि तथा धर्म विषयक मान्यता तो, एकमात्र ब्राह्मण ही बताते आए हैं। यदि कुछ अच्छी परम्परा चली है तो,वह ब्राह्मणों के कथनानुसार ही चली है।
यदि कोई निषेध भी चल रहा है तो, ब्राह्मणों के कथनानुसार ही चल रहा है।
विवाह मुहूर्त से लेकर,छोटे से छोटे कार्यों का निर्णय भी ब्राह्मण ही करते हैं। बालकों के जन्म से लेकर अन्त्येष्टि संस्कार तक की सभी विधियां ब्राह्मणों ने ही करवाईं हैं, और बताईं भी हैं।
यदि कोई कुरीति का भी प्रचलन चल पड़ा है तो,उसके भी कारण ब्राह्मण ही हैं। क्यों कि - अन्य सभी जातियां तो ब्राह्मण,से ही पूंछकर धार्मिक कार्यों को करते हैं।
कथासार के नाश का कारण।
विप्रैर्भागवतीवार्ता कारिता कणलोभेन।
जब से,ब्राह्मणों ने,कणलोभ से, अर्थात धन प्राप्ति के लोभ से भागवत आदि की कथाएं करना प्रारम्भ कर दिया है,तब से ही कथा का सार समाप्त हो गया है।
ब्राह्मणों ने, कथाश्रोता के विषय में विचार करना ही बंद कर दिया है।
श्रोता श्रद्धालु है कि नहीं? श्रोता में श्रवण करने की योग्यता है कि नहीं? श्रोता जिज्ञासु है कि नहीं? भगवान के प्रति तथा ब्राह्मणों के प्रति श्रोता की श्रद्धा है कि नहीं? श्रोता, उदार है कि नहीं? इत्यादि विचार करना ही व्यर्थ समझने लगे हैं।
ब्राह्मण की वृत्ति तो एकमात्र,धनलाभ में हो गई है। सामग्री कम हो,श्रोता अपवित्र हो, अयोग्य हो,अपात्र हो तो भी कम से कम दक्षिणा में,कम से कम सामग्री में,बिना विधि विधान के भी कथाश्रवण कराने लगे हैं।
सत्यनारायण की कथा आदि में सभी श्रोता, परस्पर वार्तालाप करते रहते हैं, तो भी ब्राह्मण अपनी कथाश्रवण कराते चले जाते हैं।
शास्त्रों में कही गई विधि को बताने से भयभीत होते हैं। भगवान भले ही अप्रसन्न हो जाएं, किन्तु यजमान अप्रसन्न न हो जाए,इसका विशेष ध्यान देते हैं।
जब कोई ब्राह्मण,धनलोभी हो जाता है तो, यजमान में दोष होते हुए भी उनकी प्रसंशा ही करते हैं।*
इन्हीं सभी कारणों के कारण ही,समाज में सभी स्त्री पुरुषों ने, भगवान के प्रति तथा शास्त्रों के प्रति, और ब्राह्मणों के प्रति उपेक्षित भाव और लघुभाव कर लिया है।
Mar 11 2025, 19:27