मध्य प्रदेश का वो मंदिर जहां अश्वत्थामा करते हैं शिव पूजा, जाने एक अद्भुत रहस्य
असीरगढ़ किले में स्थित शिव मंदिर की प्राचीन महिमा कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलती है। इतना ही नहीं इस प्राचीन शिव मंदिर में विराजमान भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु असीरगढ़ के किले में पहुंचते हैं।
मंदिर से जुड़ी है कई धार्मिक मान्यताएं
मंदिर के आसपास रहने वाले लोग और निरंतर मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन और पूजन करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की मानें तो मंदिर से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, जहां कुछ लोगों की माने तो इस मंदिर का एक बड़ा रहस्य भी है, जहां इस मंदिर के रोजाना शाम को बंद होने के बावजूद जब सुबह मंदिर के द्वार खुलते हैं, तो शिवलिंग पर फूल और रोली चढ़ी हुई होती है। इतना ही नहीं शिव मंदिर में किसी के पूजन करने के प्रमाण भी मिलते हैं। बहरहाल, यह खोज का विषय है कि, आखिर मंदिर के कपाट बंद होने के बावजूद सुबह द्वार खुलते ही शिवलिंग पर फूल और रोली आखिर कहां से आकर चढ़ते हैं।
लगभग 5 हजार साल पुराना है शिव मंदिर
बुरहानपुर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित असीरगढ़ का किला बेहद ही प्राचीन है, लगभग 5 हजार साल पुराने इस किले में भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है, जो इतिहासकारों की मानें तो लगभग 5 हजार साल पुराना ही है। इतना ही नहीं यह मंदिर महाभारत काल के पहले का बताया जाता है। यही कारण है कि, मान्यता अनुसार यहां सालों तक भटकने का श्राप पा चुके अश्वत्थामा रोजाना शिव आराधना के लिए मंदिर आते हैं, और वे ही फूल और रोली भगवान शिव को अर्पित करते हैं।
जिसने भी देखा वो हो गया पागल
किले के आसपास रहने वाले और निरंतर मंदिर आने वाले लोग अश्वत्थामा से जुड़ी कई कहानियां सुनाते हैं। ग्रामीणों की माने तो आज तक जिसने भी अश्वत्थामा देखा है, उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई। इतना ही नहीं कुछ लोगों की माने ऐसी भी मान्यता है कि,भगवान शिव की पूजा करने से पहले अश्वत्थामा किले में स्थित तालाब में नहाते भी हैं। गांव के बुजुर्गों की माने तो कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। हालांकि, अभी तक इन मान्यताओं को लेकर किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं हो सकी है।
कौन हैं महाभारत के अश्वत्थामा?
महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया, और युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दिया था। यही कारण है कि धार्मिक मान्यताओं के चलते आज भी अश्वत्थामा भटक रहे हैं, जहां असीरगढ़ स्थित किले में लोगों को उनकी मौजूदगी का अहसास होता है।
कुछ ऐसा ही किले का इतिहास
उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र तल से लगभग 750 फीट की ऊंचाई पर असीरगढ़ का किला स्थित है। विशाल पहाड़ी पर स्थित इस किले की सुंदरता हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। पगडंडी और संकरे रास्तों से पर्यटक इस किले तक पहुंचते हैं, जहां इस किले पर पहुंचने के बाद आसपास का नजारा अत्यंत ही सुंदर नजर आता है। यही कारण है कि, दूर-दूर से लोग पर्यटन की दृष्टि से असीरगढ़ किले पर पहुंचते हैं। साथ ही यहां स्थित शिव मंदिर में दर्शन और पूजन के लिए भी लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।
Sep 11 2024, 17:09