संपादकीय: भारत में लगातार बढ़ते रेल हादसे का दोषी कौन..? राष्ट्र की जीवन रेखा माने जाने वाली भारतीय रेल व्यवस्था की है समीक्षा की जरुरत...!
विनोद आनंद
मोदी सरकार के अनुसार भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. रैकिंग के अनुसार आर्थिक शक्ति के रूप में भारत विश्व के 5 वें स्थान पर है, विज्ञान,टेक्नोलोजी में भी हम आगे बढ़ रहे हैं.
रेल परियोजनाओं में भी हम जापान और अन्य विकसित देशो के प्रतिस्पर्धाओं में शामिल हो रहें हैं. बुलेट ट्रैन और बन्दे भारत ट्रेन द्वारा मोदी जी ने भारत को रेल परियोजनाओं में आगे बढ़ाया, दुनिया में भारत की जय जयकार हो रही है,साथ हीं विश्व के आर्थिक शक्ति के रूप में तेज़ी से आगे बढ़ रहे भारत के 80 करोड़ जनता को सरकार द्वारा दी गयी मुफ्त चावल पर दो वक्त का भोजन मिलता है.रोजगार के अभाव देश के युवा दर दर की ठोकरें खा रहे हैं. देश के किसान आत्महत्या कर मर रहे हैं.
यह कैसा भारत है..? जिस भारत को मोदी सरकार के अनुसार दुनिया के सभी देश विश्व के आर्थिक शक्ति के रूप में देख रही है उस देश की जनता इतना बदहाल, इतना गरीब की उन्हें भीख के राशन पर जिन्दा रहना पड़ता है.
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व्यवस्था इतना जर्ज़र की ग़रीबी के रैंकिंग में भी भारत आगे है . रेल परियोजनाओं एवं टेक्नोलोजी का दम्भ भरने वाले भारत में हर रोज दुर्घटनायें हो रही है .. इन दुर्घटनाओं में लोगों की जान जा रही है.
हम आज भारत की रेल व्यवस्था की बात करते हैं जिस रेलवे को भारत के विकास का लाइफ लाइन माना जाता उसकी क्या स्थिति है.
पिछले 18 जुलाई 2024 से अगर हम अब तक की बात करें तो 7 रेल दुर्घटनायें हो चुकी है. यानि पिछले 13 दिन में 7
रेल दुर्घटनायें,सोचिये हम हमारी व्यवस्था कितनी मज़बूत और कितना सुरक्षित है.
अगर इन दुर्घटनाओं पर हम नज़र दौरायें तो 18 जुलाई से 30 जुलाई तक रेल हादसा में कई जाने गयी कई लोग घायल हुए.
18 जुलाई को चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ रेल हादसा, 4 लोगों की मौत, 31 घायल. 19 जुलाई को गुजरात के वलसाड़ में माल गाड़ी पटरी से उतरी. 20 जुलाई को यूपी के अमरोहा में मालगाड़ी के 12 डिब्बे पटरी से उतरे. 21 जुलाई को राजस्थान के अलवर में मालगाड़ी के 3 डिब्बे पटरी से उतरे. 21 जुलाई को ही पश्चिम बंगाल के रानाघाट में मालगाड़ी पटरी से उतरी. 26 जुलाई को ओडिशा के भुवनेश्वर में मालगाड़ी पटरी से उतर गई. 29 जुलाई को बिहार के समस्तीपुर में बिहार संपर्क क्रांति के डिब्बे अलग हो गए. और 30 जुलाई को झारखंड के चक्रधरपुर में हावड़ा से मुंबई जा रही यात्री ट्रेन पटरी से उतर गई. 3 लोगों की मौत और 40 लोग घायल हुए हैं.इन दुर्घटनाओं में कई लोगों की जान गयी.
इसके पहले एक साल पूर्व सात जुलाई, 2023 को उड़ीसा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसा में 296 लोग मारे गए थे और 1,200 से अधिक घायल हुए थे.
इस रेल हादसा के बाद पूरा देश के सामने यह सवाल उठने लगा की लोगों के लिए रेल यात्रा अब कितना सुरक्षित रह गया.और इन हादसों के लिए कौन जिम्मेबार है. हालांकि बालासोर दुर्घटना के बाद रेल दुर्घटना को रोकने के लिए कवच तकनीकी की खूब चर्चा हुई और सवाल उठा की अगर सरकार इस दुर्घटनारोधी तकनीकी को रेलवे लाइन में लगाने की व्यवस्था करती तो इतने निरीह लोगों की जान नहीं जाती लेकिन इस दुर्घटना के बाद भी सरकार नहीं चेती और नहीं दुर्घटना पर अंकुश लगे इसकी कोई व्यवस्था की.
बस इस दुर्घटना की जाँच सी बी आई को सौंप कर निश्चित हो गयी और सीबीआई ने भी बालासोर दुर्घटना मामले में सीनियर सेक्शन इंजीनियर (सिग्नल) अरुण कुमार महंत, सीनियर सेक्शन इंजीनियर (सिग्नल) मोहम्मद आमिर खान और टेक्नीशियन पप्पू कुमार को गिरफ्तार कर सारा दोष इस पर थोप कर होने कर्तव्य का इतिश्री कर लिया.जबकि इस दुर्घटना और पहलू पर विचार नही किया गया, कबच सिस्टम क्यों नहीं लगा, इसके लिए मंत्रालय जिम्मेबार है या मंत्री ये सारी बातें गौण हो गयी.
रेल हादसों पर रोक कैसे लगे उसकी रोकथाम और सुरक्षित रेल यात्रा के लिए सरकार की व्यवस्था कितनी मज़बूत है आइये इसके लिए संसद में प्रस्तुत किये गए लोक लेखा समिति की रिपोर्ट पर एक नज़र डालते हैं.
संसद की लोक लेखा समिति ने संसद में 71 पेज की रिपोर्ट पेश की है इसमें 1 हजार 129 मामलों की जांच करने की बात कही गई है.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 395 बार रेल पटरियों से उतरी, जिसके कारण हादसा हुआ. रेलवे के ऑपरेटिंग विभाग की गड़बड़ी की वजह से 173 ट्रेन दुर्घटनाएं हुईं, इसमें रेलवे इंजीनियरिंग विभाग द्वारा ट्रैक के रखरखाव में गड़बड़ी की वजह से 167 हादसे हुए.
49 घटनाएं ट्रैक के पैरामीटर में गड़बड़ी की वजह से हुईं और ड्राइवर की गड़बड़ी की वजह से 149 दुर्घटनाएं हुईं.
वैसे रेल हादसों को रोकने के लिए कवच सिस्टम की बात बहुत होती है लेकिन कवच सिस्टम सिर्फ चर्चाओं में है. अब तक सिर्फ 2% रेल रूट पर ही कवच सिस्टम इंस्टॉल हो पाया है. सरकार का दावा है कि अब उसका ध्यान सुरक्षा पर सबसे ज्यादा है.
इसलिए साल 2024-25 में कवच सिस्टम के लिए 1112 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ. हालांकि, भारतीय रेल के हर रूट पर कवच सिस्टम को इंस्टॉल करने के लिए कम से कम 45 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है लेकिन इस पर सरकार का खर्च बहुत कम हो रहा है.
इसके साथ हीं रेलवे की एक सच्चाई ये भी है कि सुरक्षा से जुड़े कर्मचारियों के पद बड़े पैमाने पर खाली हैं. 2024 की शुरुआत में RTI से मिली जानकारी के मुताबिक रेलवे में ‘सुरक्षा’ के लिए जिम्मेदार लगभग 1.5 लाख पद खाली पड़े हैं. इसमें ट्रैक मेंटेनर, पॉइंट्समैन, इलेक्ट्रिक सिग्नल मेंटेनर और सिग्नलिंग सुपरवाइजर जैसे पद हैं. तो कम बजट और खाली पदों से रेलवे अपने यात्रियों की यात्रा को शुभ कैसे करेगा,
रेल की इन अव्यवस्थाओं में सरकार कहाँ चूक कर रही है उसकी समीक्षा सरकार को करनी चाहिए, अगर रेल मंत्री इसके लिए गंभीर नहीं है तो उन्हें बदलना चाहिए मंत्रालय में अगर अधिकारी की प्रबंधकीय क्षमता में कहीं कमी है तो उस पर भी विचार होना चाहिए. बढ़ती रेल दुर्घटना भारत के लिए दुर्भाग्य पूर्ण है, इस पूरी अव्यबस्था के लिए कुछ कर्मचारी को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता पूरा सिस्टम इसके लिए जिम्मेबार है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
Aug 22 2024, 10:12