संपादकीय:झारखंड में एक कांग्रेसी विधायक द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों को काउंटर करने के लिए बिहारी घुसपैठियों का सवाल उठाना कितना सही है...?
विनोद आनंद
झारखण्ड में इन दिनों बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण जनसंख्यां में हो रहे बदलाव को लेकर चर्चा छिड़ी हुई है.
घुसपैठी यहां आदिवासी बेटियों से विवाह कर दान के रूप में जमीन हासिल कर स्थायी रूप से बस रहे हैं , यहां ग्राम पंचयात का सदस्य बनकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं ,आदिवासी लड़कियों से शादी के बाद उसका धर्मान्तरण के साथ हीं क्षेत्र में अपराध को भी अंजाम दे रहे हैं .यह एक ऐसी समस्या है जिससे आने वाले दिनों ना सिर्फ झारखण्ड के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी बल्कि देश के आंतरिक सुरक्षा पर भी खतरा बढ़ जायेगा.
आज इस समस्या का भले हीं झारखण्ड के लोग और सरकार नज़रअंदाज़ करे कि ये रोजी रोटी के लिए घुसपैठ कर रहे हैं, लेकिन देश विरोधी ताकत और हमारे दुश्मन देश जो भारत को अस्थिर करना चाहते हैं इन घुसपैठियों को बहुत हीं आसानी से अपने प्रभाव में ले सकते और हमें और हमारी सुरक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर सकते. ऐसे समस्या को कतई राजनितिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए. और न इस पर राजनीती होनी चाहिए.लेकिन दुर्भाग्य वश इस राजनीति हो रही है.
भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया तो सत्ताधारी दल यह स्वीकार करने के लिए तैयार नही है कि यहां बांग्लादेशी घुसपैठ हो रही है. इधर सत्ताधारी दल के एक कांग्रेस विधायक ने तो हद ही कर दी.उन्होंने तर्क दिया कि झारखण्ड में बिहारियों की घुसपैठ से यहां का डेमोग्राफी बदल गया है.
बिहारियों कि तुलना बंगालदेशी घुसपैठ से करना कोंग्रेसी विधायक के लिए कितना उचित है, इस बयान से कांग्रेस को कितना लाभ होगा, एक राष्ट्रीय पार्टी की इस सोच का प्रभाव अन्य प्रदेश और झारखण्ड के अन्य सीटों के वोट बैंक पर क्या होगा यह तो आने वाला समय तय करेगा. लेकिन ऐसी हीं बयानों और भाषणों के कारण आज कांग्रेस की ऐसी स्थिति हो गयी की कांग्रेस बैसाखी के सहारे आज चल रही है.
सच तो यह है कि कांग्रेस के अंदर ना तो एक आइडियोलोजी रहा जिसके आधार पर कांग्रेस के सभी कार्यकर्त्ता और चुने गए जनप्रतिनिधि के विचार और नीति में एकरूपता हो,और नहीं नेतृत्व का प्रभाव रहा. कांग्रेस के वर्तमान स्थिति के लिए सबसे बड़ा कारण यही है.
तभी तो बंगला देशी घुसपैठ को काउंटर करने का प्रयास किया जा रहा है तो संसद में एक पंजाब से चुने गए सांसद ने खालिस्तान समर्थक के पक्ष में बात कर रहें है.
बात करें झारखंड की तो 2000 से पहले झारखण्ड बिहार था, और बिहार के लोग अपने प्रदेश में हर जगह पढ़ने, नौकरी और व्यापार करने, और साथ में रोजगार के अनुरूप बसने के लिए आये. इसमें कही भी संबैधानिक अड़चन नहीं था. आज तकनीकी रूप से सक्षम, मेहनती बिहारी देश के हर हिस्से में है. लोग काम करते हुए वहीं बस गए, दिल्ली, मुंबई बगलुरु, कोलकाता और असम आप जहाँ भी जाएँ बिहार के लोग अपने मेहनत और कठोर परिश्रम से इन महानगरों का तकदीर और तस्बीर को बदला है.
एक समय था जब यहां के स्थानीय लोग खदान या अन्य परियोजनाओं में काम नही करना चाहते थे.खदानों के अंदर घुस कर बहुत कम लोग काम करते थे.
टाटा स्टील बीसीसीएल और अन्य यहां स्थापित उद्योगों में भी तकनीकी के जानकार लोगों को बाहर से लाकर बसया गया और काम लिया गया.तब मौज़ूदा झारखण्ड बना, जंगलो, पहाड़ो से अच्छादित एक विकसित झारखण्ड को बनाने में यही बिहारी और देश के अन्य हिस्सों से आकर यहां बसें लोगों का योगदान रहा.ये कई पीढ़ी से यहीं के होकर यहां रह गये.उसके तीन से चार पीढ़ी से यहीं बसें हैं, फिर उस पर यह सवाल उठाना और बांग्ला देशी घुसपैठ से तुलना करना सही है या गलत तो इसे कांग्रेस के प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व को तय करना चाहिए और कोई भी जनप्रतिनिधि सिर्फ राजनीति करने के लिए ऐसा बयान दे या नही यह भी तय करना चाहिए.
और अगर उनके विधायक द्वारा उठाया गया यह सवाल सही है तो कांग्रेस के सभी झारखण्ड के गैर खतियानी पदाधिकारी को बोरिया विस्तर समेट कर अपने पद को छोड़कर यहां से चला जाना चाहिए ताकि यहां का डेमोग्राफी सही हो सके.
इस तरह के बयान और सोच से देश नहीं चलता है, कुछ क्षेत्रीय दल भी इसी तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं .जिससे ना तो देश चल सकता है नहीं देश का विकास हो सकता है. जब किसी भी प्रतिनिधि को जनता चुनकर किसी भी सबैधानिक संस्थाओं में भेजती है तो संविधान की मर्यादा, और कानून की जो व्यवस्था है उसको याद रखना चाहिए.
बंगालदेशी घुसपैठ और बिहारी की आवादी या देश के किसी हिस्से के लोगों का बसना को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता. हां यह अलग मुद्दा है कि स्थानीय किसे माना जाय और उसका मानदंड क्या हो यह हमारा आंतरिक मुद्दा है जिस पर हम बहस कर सकते हैं.लेकिन किसी विदेशी घुसपैठ को काउंटर करने के लिए देश के किसी भी भाग से आकर यहां बसे लोगों पर इस तरह बयानबाजी सही नही है.
बंगला देशी घुसपैठ एक गंभीर समस्या है.उसे अपने वोट बैंक के नजरिये से कोई भी राजनीतिक दल नही देखें,बल्कि आपसी सहमति के साथ इसके लिए जो भी बैधानिक रास्ता है उस पर काम करे।झारखंड में इस समस्या के लिए केंद्र और राज्य दोनों जिम्मेबार है।इसके लिए ठोस कानून बनाये और इसे रोके नाकि इस पर राजनीति करे।
Aug 02 2024, 08:55