सम्पादकीय: सरकार धर्म को लेकर राजनीति करने के बजाय देश के विकास और जनता की बुनियादी समस्यायों के निराकरण के लिए काम करे
-विनोद आनंद
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का एक बयान सुन रहा था।वे एक मीडिया हाउस से बात करते हुए कह रहे थे-धर्म क्या है, समाज में धर्म का प्रचार और धर्म की मर्यादा का रक्षा करना धर्म गुरु का काम है, राजनेता इसमें ना हस्तक्षेप करे तो ज्यादा बेहतर है।
उसी तरह धर्म गुरु को भी राजनीति में हस्तक्षेप करने की जरूरत नही है। उनका तात्पर्य है कि धर्म का राजनीतिकरण नही हो।राजनेता धर्म का सहारा लेकर लोगो की भावनाओं को ना भड़काए, ना उसका दुरुपयोग करें।
उन्होंने संसद में राहुल गांधी के हिंदू वाले बयान के बाद उसका राजनीतिकरण पर भी प्रतिक्रिया दिया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी का संसद में दिए गए बयान को मैंने सुना,उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म में हिंसा का स्थान नही है।भाजपा के ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग हिन्दू होंने का दाबा करते हैं वे हिंसा की बात करते हैं।उनका इशारा था भाजपा के ओर ।लेकिन उसको पूरे हिन्दू समाज से जोड़ देना अपराध है।
नि:संदेह धर्म और राजनीति को बिल्कुल अलग रखना चाहिए।धर्म का मतलब हमारे जीवन पद्धति, हमारे संस्कार, हमारी भावनाओं से है। और राजनीति का जुड़ाव हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमे राज नेताओं को हम अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनकर भेजते हैं और वे बहुमत से जीतकर जाने वाले राजनीति दल सरकार बनाते और कम संख्यां में जानेवाले दल जो सत्ता से बाहर हैं विपक्ष की भूमिका निभाते हैं।
जनता को यह कभी नही भूलना चाहिए कि इस राजनीतिक व्यवस्था में दोनों हीं जनता के हित में जरूरी है।हमारे लिए जितना प्रिय सत्ताधारी दल है ,उतना ही प्रिय विपक्ष में बैठे लोग हैं। किसी भी लोकतंत्रिक परम्परा में दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।अगर विपक्ष के प्रतिनिधि नही होंगे जो सरकार से सवाल करे, उनके किसी भी गलत निर्णय का विरोध करे,और हमारी आवाज को संसद में पहुंचाए तो सत्ताधारी दल निरंकुश हो जायेगी, और हमारे ऊपर तानाशाही करेगी। अगर हम इन दोनों व्यवस्थाओं को नही स्वीकार करेंगे तो हमे राजतंत्र के लिए तैयार रहना चाहिए।
खैर यह बहुत गंभीर विषय है जिसे हम अगले अंक में उठाएंगे आज का विषय हमारा है धर्म और राजनीति।आज धर्म का अपने राजनीति के लिए दुरुपयोग करना सही नही है।क्योंकि धर्म बहुत हीं संवेदनशील विषय है। हमारे और आपके जनभावनाओं से जुड़ा हुआ है।हमारा भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है ।यहां सभी धर्म, सम्प्रदाय के लोग हैं जो भाईचारा और तालमेल से रहते हैं। हमारा संविधान धर्म निरपेक्ष संविधान है।और जब हम अपने प्रतिनिधि को सरकार बनाने के लिए भेजते हैं तो वे इसी संविधान की शपथ लेकर इस बात को दोहराते हैं हम इस संविधान की रक्षा करेंगे और इसमें उल्लेखित नियमो के अनुरूप सभी धर्म सम्प्रदाय के हित के लिए काम करेंगे।
लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह माहौल हमारे पवित्र संसद में धर्म और एक दूसरे को नीचे दिखाने के लिए अनर्गल विषयों पर बहस होती है वह दुर्भाग्यपूर्ण है।आज संसद में बहस होनी चाहिए कि हमपर जिन जनताओं ने भरोसा जताया उसके हित के लिए हमे किया करना है,..?
देश के युवाओं के रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य,और भारत को आगे ले जाने के लिए किस तरह की नीति बनानी है..?और विकसित देशों के श्रेणी में अपने को खड़ा करने के लिए हमे किस तरह प्रबंधित नीतियां बनानी है।इस पर चर्चा ना कर सत्ताधारी दल बात करेंगे कि पहले जिन लोगों ने सत्ता सम्भाली थी उसने देश को डूबा दिया, कानून व्यवस्था खराब कर दी, देश का विकास नही हुआ..बेगैरह बेगैरह!
यह सब सरासर बकवास है। जिसे नही तो हम जनता को सुननी है और नही उस पर बहस करनी है।उसने नही किया इसी लिए हम जनता ने आप को मौका दिया आप क्या कर रहे हो उसका रिजल्ट दो। बस जनता को इसी से मतलब रखना चाहिए।और सरकार को भी आलोचना प्रतिलोचना के बजाय काम कर बेहतर रिजल्ट दिखाना चाहिए।
धर्म और उसकी राजनीति से ज्यादा जरूरी देश की जनता को उनकी बुनियादी जरूरत से है।और राजनेताओं को हम चुने जाने के बाद उन्हें सारी सुविधाएं देते है, हमारे पैसा से वे राजसुख भोग रहे हैं,और हमारी जीवन को सही ढंग से प्रबंधित करने के लिए वह कितने कुशलता के साथ काम करते हैं इसके आधार पर हमें मूल्यांकन करना चाहिए।
अंत में मैं राजनेताओं से कहूंगा धर्म के लिए नीति निर्धारण धर्म गुरु को करने दीजिए,देश की व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए आप अपनी क्षमताओं को लगाइए,बस तभी भारत आगे बढ़ पायेगा।
Aug 01 2024, 09:09